ब्रज की होली
मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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गली-गली में ब्रज की देखो,
उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।
बाहों का आलिंगन दे दो,
अंग-अंग कर लाल सँवरिया।
चंचल-मन यौवन है मेरा,
फगुनाई में बौराई हूँ।
अलकों के प्याले में भरकर,
मैं मदिरा लेकर आई हूँ।।
प्रेमिल फागुन में मन भीगा,
करता बहुत धमाल सँवरिया।
गली गली में ब्रज की देखो,
उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।।
मन मतंग फगुनाया सजना,
छलक रही है प्रेम गगरिया।
मर्यादा के बंधन तोड़ो,
मौसम मादक है साँवरिया।
मधु गुंजित अधरों को पीकर,
चूमो मेरा भाल सँवरिया।
गली गली में ब्रज की देखो,
उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।।
ढलके आँचल कंचुक ढ़ीली,
रोम-रोम में फागुन छाया।
रँग से भीगा देख बदन ये,
मन अनंग भी है हुलसाया।।
पुष्पित कर अभिसार बल्लरी ,
रति को करो निहाल सँवरिया।
गली गली में ब्रज की देखो,
उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।।
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