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पद्य

आया बसंत
कविता

आया बसंत

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आया बसंत। सखीरी रितु बसंत आई, मोसम ने ली अगड़ाई। क्यारी क्यारी सरसों फूली, अंबुआ डार मोर से झूली, अति उमंग ले आई। सखीरी रितु बसंत आई। ड़ाल डाल पे कोयल कूके मनवा खाय हिचकोले, अति सुहावन मन भाई। सखीरी रितु बसंत आई। सपने रंगे मन हुआ पलाशी, खिलती कलियाँ देह अकुलाती, पपीहे की कूहूँ कूहूँ सुनाती, मंद मंद पवन चलें पुरवाई सखीरी मन भावन रितु बसंत आयी। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मा...
तुमसे अलग हो कर
गीत

तुमसे अलग हो कर

आस्था दीक्षित  कानपुर ******************** तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है माँ कामो मे उलझा रह कर भी याद करता माँ आँखों मे सपने भरे पर सपने तुमसे है तुम मुझमे कुछ यूँ बसी सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने मे तुम साथ देना माँ . तुमसे अलग ….. रात को सर पे तेरी थापे याद आती है आँगन की वो किलकारी भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूँ तुम याद आती माँ तुमसे अलग…. अँधियारा होने पर माँ तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के मेरा सर सहलाती थी उन लम्हो मे मै फिर से जीना चाहता हूँ माँ तुमसे अलग.... शाम को घर वापस आता न कोई मिलता है पूरा दिन सब क्या किया न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच ते सब सह लेता हूँ माँ तुमसे अलग…. . परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक...
माँ  सरस्वती
कविता

माँ सरस्वती

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** हे हंस वाहिनी माता तेरे शरण में जो भी आता पुष्प चढ़ा कर करे नमन हम आशीर्वाद से छू पाएँ गगन हम सुर की देवी तु कहलाती हर बच्चे के मन को भाती छात्र करे पूजन सब तेरे दुख दूर हो जाये तेरे मेरे हो जाए परिपूर्ण ज्ञान से करे अध्ययन वो बड़े ध्यान से तेरी वीणा से जो निकले संगीत मन को मुग्ध करे वो गीत ज्ञान दायिनी तु वीणा वादिनी चन्द्र कमल स्वेत वस्त्र धारिनी अम्ब विमल दे अज्ञानी को मधुर बनाये शख्त वाणी को बसंत ऋतु में तु आती है छात्रों के हृदय बस जाती है जीवन आनंदमय का पाठ पढ़ाती कला की देवी सरस्वती कहलाती . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने...
वसन्त ऋतु में
कविता

वसन्त ऋतु में

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** वसन्त ऋतु में ! यूं धीरे–धीरे सदियों का सर्दियों का जाना, गुनगुनी धूप का आना सूखे पत्तों का झड़ना नए पत्तों का सृजन होना सरसों के फूलों की सुगंध में प्रकृति स्वयं को अपने रंगो में घोलती उस रंगों की गुदगुदाहट में गेहूं की बालियों का आना किसानों का प्रफुल्लित मन देखकर लगता हैं मानो! कोई युवती अठारह बरस की हुईं हैं। यह मोहक छवि अम्बर तक फैली धानी चूनर सी लगती हैं ।। . परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के ...
वासंती प्रणय निमंत्रण
कविता

वासंती प्रणय निमंत्रण

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** वसंत पंचमी का वह वासंती सवेरा था स्वर्ण पुष्पों संग तुमने प्रणय निमंत्रण भेजा था अहसासों का रिश्ता दिल में उतरने लगा था और सपनों में खोया मन सितारों पर चलने लगा था तुम्हारे मधुर गीतों ने मेरे मन को इस तरह छुआ था जैसे मोरपंखों से झरते रंगों ने महकी गुलाब पंखुरियों को छुआ था वासंती महक मेहंदी में घोलकर मेरी हथेलियों पर प्रणय रंग रचा था जैसे किसी हसीन ख्वाब ने मेरी रेशमी पलकों को छुआ था यही बसंत पंचमी का वह वासंती सवेरा था जब स्वर्ण पुष्पों संग तुमने प्रणय निमंत्रण भेजा था . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान सहित ४६ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीज...
मेरा हिन्दुस्तान प्राण से प्यारा है
कविता

मेरा हिन्दुस्तान प्राण से प्यारा है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मेरा हिन्दुस्तान विश्व में न्यारा है! मेरा हिन्दुस्तान प्राण से प्यारा है! गंगा-यमुना की धाराएँ भारत की गाथाएँ गाएँ शिखर हिमालय पर्वत के भी, गौरव का इतिहास बताएँ भारत जन-जन की आखों का तारा है! मेरा हिन्दुस्तान प्राण से प्यारा है! ताजमहल की सुन्दरता में गांधी सागर की दृढ़ता में ज्ञान-कला संस्कृति आदि की, भांति-भांति की समरसता में बहती देश प्रेम की इसमें धारा है! मेरा हिन्दुस्तान प्राण से प्यारा है! भिन्न-भिन्न हैं धर्म यहाँ पर रहन-सहन में भी है अन्तर बोली और भाषा अनेक हैं पर रहते हैं सब मिल-जुलकर भारत से सारे जग में उजियारा है! मेरा हिन्दुस्तान प्राण से प्यारा है! मेरा हिन्दुस्तान विश्व में न्यारा है ! मेरा हिन्दुस्तान प्राण से प्यारा है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ...
माँ
कविता

माँ

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** माँ का अभिनन्दन प्रकृति करे। धरा खेत सब .... हरे भरे। सरसों है .... पीत बसन तेरे। पीली चादर .... अद्भुत डेरे। स्वर ताल हमें सिखला दे माँ। मैं क्या गाऊँ .... बतला दे माँ। लिखूँ किताब, या अभी नहीं? कुछ ठीक ठाक,कुछ जमी नहीं। शायद तुझको हैं .... काम बहुत। माँ तेरा है जग में .... नाम बहुत। दे अलग विधा.... स्वर हों न हों। पाऊँ कुछ कुछ, कुछ खोना हों। जो भी हो .... उसे जगा भर दे। हे जग जननी .... कुछ तो वर दे। अब दौर कलम का चला गया। मोबाइल में सब .... लिखा गया। चरणों में चढ़े .... फूल नकली। ना महक़ कोई.... ना हैं असली। असली आशीष.... ज़रा दे माँ। स्वर लोरी.... मुझे सुना दे माँ। सुत बिजू तेरा.... तू मेरी माँ। सबको ये बात.... बता दे माँ।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में...
कवियों की क्लास
कविता

कवियों की क्लास

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** शुरू हुई कवियों की क्लास, उसमे शिक्षक बना विश्वास। डॉ. आज़ाद ने मालवी रचना सुनाई, डीपी. ने करुण-श्रृंगार बनाई, गोवर्धन राही ने विरह रचाई, समद ने चुलबुलाहट पर नज़र दौड़ाई। हेम अकेला का भी मन ललचाया, हेमराज ने मधुर गीत गुनगुनाया, गोवर्धन मामा ने मामी पर गीत सुनाया, रमेश नागर ने ग़ज़ल का ज्ञान कराया। हरि सोलंकी ने भी डायरी सम्भाली, हर्षित होकर बगिया में नाचा माली, गोष्ठी में किसी ने गाई होली-दिवाली, किसी ने राखी के साथ छठ भी गा ली। मेघ ठुम्मक-ठुम्मक कर आएगा, स्नेह, प्रीत-प्यार का गीत लाएगा, हर कवि अपनी कलम पर मुस्कुराएगा, श्रोताओं-दर्शकों का मनोरंजन करवाएगा।   परिचय :-  डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद" सहायक शिक्षक (शासकीय) शिक्षा - एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी.  निवास - इंदौर जिला मध्यप्रदे...
दिखावे की ये दूनियाँ
कविता

दिखावे की ये दूनियाँ

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** दिखावे की ये दूनियाँ है, यहा शोहरत भी बिकती हैं। दिलों में दर्द आखो में, सदा खुशियाँ ही दिखती हैं।। मेरे ईस्वर मेरे मालिक, बता दें तु मुझें इतना। मोहब्बत की कहानी क्यूँ सदा गुमनाम रहती हैं।। दिखावे की मोहब्बत हो, तो फिर ज्यादा नहीं टिकती। किसी अपने मे अपनेपन की कोई बात नहीं दिखती।। करे कोई लाख कोशिश पर तुम्हे बतलाती हू यारो। मोहब्बत आज भी बाजार में पैसो से नही बिकती।। कभी तुलसी कभी मीरा कभी रसखान लिखती हूँ। मैं राधा कृष्ण के ही प्रेम का गुनगान लिखतीं हूँ। मेरे मोहन तेरे बंशी के दीवाने तो सभी है। कलम से प्रेम की पाती का हर पर गान लिखती हूँ।। . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी...
अपने तिरंगे पर
कविता

अपने तिरंगे पर

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अपने तिरंगे पर मुझे इसलिए अभिमान है। मेरे भारत देश की बस एक यही पहचान है।। हिंदी रक्षक हिन्दू हूँ, मैं हिंदुस्तान का रहवासी। जहां बहती पवित्र गंगा और तीर्थ मथुरा काशी। हर भाषा और सभ्यता का होता यहां सम्मान है... मेरे भारत देश की बस एक यही पहचान है।। भारत देश की अखण्डता का परचम लहराए। देश का हर एक युवा अब विवेकानंद बन जाये। भाईचारा और भी दिखती यहां समान है... मेरे भारत देश की बस एक यही पहचान है।। भारतीय संस्कृति और धर्म का भारत मे इतिहास है। रामराज्य अब शुरू हुआ तो खत्म हुआ बनवास है।। मन स्वच्छ, तन स्वच्छ अब स्वच्छ भारत अभियान है... मेरे भारत देश की बस एक यही पहचान है।। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्व...
उजड़ी उजड़ी बस्ती
ग़ज़ल

उजड़ी उजड़ी बस्ती

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** उजड़ी उजड़ी बस्ती बिखरे पत्थर देख रहा हूं। मैं भी ज़ालिम का लश्कर देख रहा हूं। सोच में हूं कब बदलेगा मुकद्दर गरीबों का, धनवानों के हाथों में जो मैं खंजर देख रहा हूं। भूख गरीबी में उनको बेघर देख रहा हूं, हीरे-मोती वाली धरती को मैं बंजर देख रहा हूं। फटे लिवास बेरोजगारों की कतारें ये कैसा मंज़र, सियासी चेहरों में मैं अजगर देख रहा हूं। नकली दुध, ज़हरीला खाना, कसाई डॉक्टर, बापु मैं भी तेरे तीनों बंदर देख रहा हूं। महंगाई की मार, भ्रष्टाचार की लाठी, हाल गरीबों के क्यों इतने बदतर देख रहा हूं। कांटी जो ज़ुबान उसने तो कलम कहां गूंगी है, शाहरुख़ तुझमें पौरस भी, तुझमें सिम्न्द्र देख रहा हूं। . परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
मायके की यादे
कविता

मायके की यादे

संजय जैन मुंबई ******************** बचपन की यादों को, मैं भूला सकती नहीं। मां के आँचल की यादे, कभी भूली ही नहीं। दादा-दादी और नाना-नानी, का लाड़ प्यार हमे याद है। मौसी बुआ का दुलार, दिल से निकला नही। वो चाची की चुगली, चाचा से करना। भाभी की शिकायत भैया से करना। बदले में पैसे मिलना, आज भी याद है। और उस पैसे से, चाट खाना याद है। भाई बहिनों का प्यार, और लड़ना भी याद है। भैया की शादी का वो दृश्य, आंखों के समाने बार बार आता है। जिसमें भाभी की विदाई पर, उनका जोर से रोना याद है। खुद की शादी और विदाई का, हर एक लम्हा याद आ रहा है। मांबाप के द्वारा दी गई, हिदायते और नासियते दिल में रखें हूँ। मानो अपनी दुनियां खो आई हूँ। मांबाप का आंगन छोड़ आई हूं। दिल में नई उमंगे लेकर, पिया के साथ आई हूं। जो मेरे जीवन का, अब आधार स्तम्भ है। मानो मेरी जिंदगी का यही संसार है। छोड़ा माता पिता और, भाई बहिनों को तो। नये ...
मोबाइल की दीवानी
कविता

मोबाइल की दीवानी

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** दीवानी है दुनिया, मोबाइल की-----। रोबोट सदृश्य चलती है। न दया रही न धर्म रहा, कमी प्यार की खलती है। दिल में भरा घमंड... अकड़-अकड़ कर चलती है। न गालों पे लार्ली, न होठों पे स्माइल, हर वक्त हाथों में पकड़े, रखती हो मोबाइल। कमर झुक गई सारी... बात ना करने की लगी बीमारी। फेयर एंड लवली से, फेस चमका लिया,,, शरीर से फूलों की महक आए, कोबरा सेंट छिड़का लिया। फेसबुक और व्हाट्सएप में, ध्यान है तुम्हारा । मैंने किया प्रपोज तूने डिलीट मारा... जिओ था जीने का सहारा... उसने भी पीछे से धक्का मारा, गौड़ अब तू ही बता... मैं क्या करूं बेचारा ???   परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित क...
गणतंत्र दिवस
कविता

गणतंत्र दिवस

मिर्जा आबिद बेग मन्दसौर मध्यप्रदेश ******************** गणतंत्र हमारी आन बान और शान है, गणतंत्र हमारी आन बान और शान हैं, दुनिया में सबसे बड़ा हमारा हिन्दूस्तान है यहाँ सबका अपना मान-सम्मान है, राम भी है रहीम-रसखान और रहमान है सम्पूर्ण, प्रभूत्व सम्पन्न गणराज्य का मतलब आज समझलो, अम्बेडकर जी ने लिखा जो संविधान है राम रावण, हुसैन यजीद की जंग एक इतिहास बनी है, अदलो-इन्साफ की खातिर कई लोग होगये कुरबान है, जो इन्सान को इन्सान से लडवाता है, वह हमारी नजरों में इन्सान नही शैतान है, यह सूफी-सन्तों की धरती है आबिद जिसका नाम हिन्दूस्तान है, . परिचय :- ११ मई १९६५ को मंदसौर में जन्मे मिर्जा आबिद बेग के पिता स्वर्गीय मिर्जा मोहम्मद बेग एक श्रमजीवी पत्रकार थे। पिताश्री ने १५ अगस्त १९७६ से मंदसौर मध्यप्रदेश से हिंदी में मन्दसौर प्रहरी नामक समाचार पत्र प्रकाशन शुरू किया। पिता के सान...
फेसबुक
कविता

फेसबुक

मनकेश्वर महाराज "भट्ट" मधेपुरा (बिहार) ******************** फेसबुक का दौर चल रहा है सुबह, शाम, दोपहर होने का कैसे मॉर्निंग, आफ्टरनून, एंवनिग करने का खेल हो रहा है नमस्कार, प्रणाम से देखों कैसे लोग बोर हो रहे है सब-सब से मौन होकर देखों फेसबुक पर शौर हो रहे है एक लड़की के पीछे देखों कितने आदमखोर सुबह शाम हो रहे है दूसरे की बहन पर देखों कैसे अभद्र भाषा की टिप्पणी छोड़ रहे है। रात दिन ऑनलाइन होकर देखों कैसे औरत की व्यवस्ता को तौल रहे है मित्र बने नहीं देखों कितने कॉल मैसेज हो रहे है। उफ देखों ये कैसा घिनौना खेल हो रहा है उधर देखों लड़का लड़की की आईडी से कैसे मिलन जोड़ हो रहे है ये कैसा आधुनिकता का भोर हो रहा है।   परिचय :-  मनकेश्वर महाराज "भट्ट" साहित्यकार , शिक्षक मधेपुरा , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
तू नजर आया
कविता

तू नजर आया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** रात को जब चांद में, मुझे तू नजर आया रात में बस ख्वाब में, मुस्कुराता नजर आया। ख्वाबों में तेरा चेहरा, यूं पास नजर आया इश्क मोहब्बत का चढ़ता, खुमार नजर आया। किस से कहें दिले, जज्बात ए दास्तां किस्सा कई बार बहुत, पुराना याद आया। तुझे भी तो ये चांद कहीं, दिखता होगा बता ..क्या उसमें तुझे मेरा, चेहरा कभी नजर आया। जमाने को जब भी देखा, इन निगाहों ने मुझे चारों तरफ बस, तू ही तू नजर आया। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य ...
रात भर
ग़ज़ल

रात भर

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** रात भर आपकी याद आती रही चाँदनी मेरे दिल को जलाती रही मानिन्दे शमाँ मैं भी जलता रहा लौ शमाँ की मुझे आजमाती रही उनकी आँखों की मय का असर देखिए ज़िंदगी उम्रभर लडखडाती रही साँसें उनके बिना मैं भी गिनता रहा एक आती रही एक जाती रही जिसपे मरते रहे हो के अंजान सी उनकी ज़ल्फें यूँ ही बल खाती रही बेवफा वो रहे फिर भी क्यूँ आजतक उनकी तस्वीर हमको रुलाती रही वो गये जब से "शाफिर" क्यूँ आँखें तेरी झूठ की आड में मुस्कुराती रही . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
गणतंत्र दिवस पर
कविता

गणतंत्र दिवस पर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** गणतंत्र दिवस पर सच्चाई की कविता पढ़ने आया हूँ। उन नालायक़ के गालों पर एक थप्पड़ जड़ने आया हूँ। जिनने मारा था, थप्पड़ उस दिन, सैनिक के गालों पर। था शर्मसार बेज़ार देश .......... नाली के कीड़े सालों पर। घाव हरा होना ही था, बच्चा बच्चा थर्राया था। गद्दारों के हाथों ने, तब झंडा पाक उठाया था। आग लगेगी मुल्क जलेगा, महबूबा फुफकारी थी दिल्ली की गद्दी, क्रोधित हो बहुत खूब हुंकारी थी। औलादें पढ़ें विदेशों में, दिल्ली में घर बनवा डाला। निर्दोष बिचारे बच्चों को पत्थर का बैग थमा डाला। अरे तुम्हारी मक्कारी ने दिल्ली को बिल्ली बना दिया। थी नाइंसाफ़ी ज़ालिम की, हर इक़ पण्डित को भगा दिया। है लिस्ट बड़ी संतापों की, गिन गिन कर बदला लिया नहीं। हर पत्थर का गिन कर ज़वाब, शायद हाक़िम ने दिया नहीं। ये तय है तेरे कर्मों का फल इक साथ मिला तो खलता है। कश्मीर मुक्त, ल...
सिर्फ लाल
कविता

सिर्फ लाल

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** मेरी माँ ने एक बार कहा था, बेटे जहा गणतंत्र का झंडा, फहराया जाये, २६ जनवरी को, वहां ! उस जश्न मे मत जाना, उस झण्डे के नीचे मत जाना, ये सफेदपोश, उस झण्डे को दागदार कर दिये है, हर साल इसकी छाया मे, इसके साथ बलात्कार करते है, जर्जर बना दिये है इसे, अब टूटने ही वाली है -यह आजादी ! सुनो बेटे ! यह सुनो बेटे ! सुनो- यह गीत किसी कवि का है - "बाहर न जाओ सैया, यह हिन्दुस्तान हमारा, रहने को घर नही है, सारा जहां हमारा है", रेडियो पर सुनते ही यह गीत, मै ठठा कर हंसा था, और माँ से कसम लिया था- जब तक मै मुखौटे नोचकर, इनका असली रूप/तुम्हारे सामने, नही रखूँगा, लानत होगी मेरी जवानी की, धिक्कार होगा मेरे खून का, इस झण्डे को, अब बिल्कुल लाल करना होगा माँ, तुम मुझमे साहस भरो, लाल क्रांति का आहवान दे रही है माँ, ताकि तिरंगे के नीचे कोई रंग न हो, कोई रंगरे...
बुजुर्गो की वसीयत
कविता

बुजुर्गो की वसीयत

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** प्रयास यही है कि ये उम्मीद बची रहे। बुजुर्गो की दी वसीयत बची रहे। तिनका तिनका पिरोकर जो संस्कार रूपी मोती पिरोए थे। उन मोतियों की माला बची रहे। बच्चों के बीच दूरियां न हो ...... इसके सिवा एक मां को चाहिए भी नहीं कुछ। पल पल फूलों की पंखुड़ियों सा संजोकर समेटी है ये छोटी सी दुनिया। दौलत हो न हो पर ये मोहब्बत बची रहे। बिखरे फूलों का अस्तित्व नहीं है। कहते है परिंदों के झुंड भी बिखरकर खो जाते हैं। बिना संस्कारों के घर बिखर जाते हैं। संस्कार न जाने कब गुलाब सी माला पिरो जाते हैं। बुजुर्गों की दी धरोहर बची रहे। प्रयास यही है कि ये आस बची रहे।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा ...
तेरी पायल की झनकार
कविता

तेरी पायल की झनकार

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। दबे पैर आ जाना तेरा चुपके से हर बार।। तेरी खनकती चूड़ियां भी मेरा होंश उड़ाती है। तेरे आने का एहसास पल पल मुझे दिलाती है। तेरी बिंदिया भी मुझको चुपके से करती प्यार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। तेरे आने से पहले तेरी खुशबू की महक आती है। छा जाता है नशा मेरी आंखे भी बहक जाती है।। तेरी आँखों का काजल भी करता है इकरार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। पागल मुझे बनाता है तेरे माथे का टीका। दुनिया का सारा श्रृंगार तेरे आगे है फीका। तेरे कान के झुमके ही बस करते है इनकार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। हाय तेरा बाजूबंद और ये मांग का सिंदूर। ये दोनों तुझसे मुझको होने नही देते दूर। तेरे मंगलसूत्र से ही तो बसा मेरा संसार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। पहन नाक ...
भला कोई क्या लिखेगा
कविता

भला कोई क्या लिखेगा

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** नन्ही परी को गुड़िया के सिवा कोई क्या कहेगा उसे अपनी कहानी में परियों के सिवा कोई क्या लिखेगा। गुड़िया शब्द में उसे बांधना बहुत आसान हैं किन्तु! उसके अल्हड़पन में पीछे मातृत्व भाव पर कोई क्या लिखेगा।। गुड़िया को गुड़िया कहना बहुत आसान हैं उसी गुड़िया का कौमार्यं चित्रण करना बहुत आसान हैं। उसे प्रकृति का श्रृंगार औ वसुन्धरा लिखना बहुत आसान हैं किन्तु ! सीता के त्याग और धैर्यं का द्वंद्व कोई क्या लिखेगा।। मीरा के भक्ति का सार कोई क्या लिखेगा शबरी के प्रेमानुभूति का भाव कोई क्या लिखेगा। माँ के वात्सल्य भाव को लिखना बहुत आसान हैं किन्तु ! उसके प्रसव पीड़ा का दर्द रूपी प्रेम कोई क्या लिखेगा।। सच तो यह हैं एक नन्ही परी ही सृष्टि का निर्माण हैं भला इसे शब्द में कोई कितना कहेगा लड़की हैं ! बस इसी स्वरूप में इसे लिखना बहुत आस...
जिंदगी खेल नहीं
कविता

जिंदगी खेल नहीं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों, का कोई मेल नहीं है। जिंदगी खेल नहीं।। रोटी, कपड़ा और मकान के सवालों में, जिंदगी इस कदर, बे-कद्र हो जाती है। जिंदगी में तब, जीने के लायक, एहसास जैसी चीज, बचती ही नहीं। जिंदगी खेल नहीं सपनों और हकीकतों का, कोई मेल नहीं।। बचपन, जवानी और बुढ़ापे की, समस्याओं में बस, त्रासदी का, अलग -अलग ही सही, पर एहसास है..... वही। संघर्ष से, कोई बचा नहीं हर पल। जिंदगी के सामने है, हर रोज खड़ी, एक जंग नई। जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों का कोई मेल नहीं। जिंदगी खेल नहीं। हर शख्स अपने वजूद से, परेशान है ...।। काश होता .....यह। वह ..............नहीं। लेकिन मुश्किलों का, सफर थमता ही नहीं। क्योंकि.....जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों का, कोई मेल नहीं। जिंदगी सपनों से, दिल बहलाती है। उसी आस पर, बद-से-बदत...
अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो
कविता

अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** भारतवासी सुमन, वतन है उपवन अपना भारत! प्यारा घर है भारत अपना, आँगन अपना भारत! सारे जग में है सबसे मनभावन अपना भारत! सकल सृष्टि में इसकी सौरभ,चन्दन अपना भारत! भारत वर्ष स्वतंत्र अमर हो! अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो! रहे पक्षधर सदा अम्न के,नहीं किसी पर किया आक्रमण! विवश किया गया जब हमको,किए शस्त्र तब हमने धारण! सदा विजय के झंडे गाड़े, लड़े नहीं हम कभी अकारण! अमर शहीदों की जय गाथा, गाता रणभूमि का कण-कण! 'सत्यमेव' का मंत्र अमर हो! अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो! 'जनता द्वारा जनता हेतु जनता का' यह त॓त्र हमारा! हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, सबका है यह देश सहारा! सब मिल-जुल हो गए एक,जब-जब हमलावर ने ललकारा! अपनी संगठन शक्ति से ही, दुनिया का हर दुश्मन हारा! राष्ट्र प्रेम संयत्र अमर हो! अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो! दायित्वों-अधिकारों का समिश्रण अपना ...
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सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर म.प्र. ****************** अर्थ नहीं है तंत्र बता दो, देश का ऐसा मंत्र है । लाख शहीदों की वेदी पर, बना हुआ गणतंत्र है ।। न्याय दंड का मोल यहां पर, चांदी के बल होता है। अन्यायी आजाद रहे यहां, हरिश्चंद्र अब रोता है ।। देश में कुर्सी ईश्वर से भी, बढ़कर समझी जाती है। कुर्सी पूज रहे हैं नेता, कुर्सी उनकी साथी है। न्याय नहीं सरकार नहीं, फिर कैसे देश स्वतंत्र है।। अर्थ नहीं है तंत्र बता दो, देश का ऐसा मंत्र है। लाख शहीदों की वेदी पर, बना हुआ गणतंत्र है।।   परिचय :-  सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश जन्म तिथि : १९ दिसम्बर १९७७ जन्मस्थान आगर-मालवा शिक्षा : स्नातकोत्तर, पी.एच.डी.चल रही है कार्यक्षेत्र : वर्तमान में लेखिका सहायक संचालक, वित्त, संयुक्त संचालक, कोष एवं लेखा, इंदौर में द्धितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के रूप ...