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पद्य

जैसे को तैसा धुनूँ
चौपाई, छंद, दोहा

जैसे को तैसा धुनूँ

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - रौद्र, अलंकार - अतिशयोक्ति। भाव - आत्मकुंठोपजित भक्ति। छंद - दोहा, सोरठा एवं कुंडलियों के प्रयास। कारक - बचपन में अपने आस पास समृद्ध और सभ्य परिवार की उपाधि प्राप्त परिवारों में वधुयों की दहेज़ या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई परिचिताओं की जीवित जलकर या अन्य हनित संसाधनों द्वारा हत्या एवम आत्महत्या से उत्पन्न भाव जो अधिकाधिक बारह या तेरह वर्ष की आयु के समय प्रभु से करबद्ध अनुरोध करते मेरे द्वारा ही वरदान स्वरूप चाहे गए थे। कुछ परिवार ने उनकी हत्या को भाग्य कुछ ने उनमें थोपी गई अतिवादी स्त्री सहनशीलता की कमी बताया मायके वालों ने कहा "बिटिया तो ना मिलेगी हमारी" अतः कोई केस नहीं लगाया। और मेरे हृदय में उस उम्र में दहेज़ के दानवों विरुद्ध, अवस्था; अतिशह क्रुद्ध क्रांति जनित यह भाव! 'यूँ ही' आया। कि..... दुष्टन से कंजर बनूँ, ज्ञानी से...
फाल्गुनी हवा
कविता

फाल्गुनी हवा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फाल्गुनी हवा के झोंकों से- उड़ रहे हैं झर झर पत्ते। उड़ रही है मिट्टी की धूल- कण- जन जीवन में उमस जागे। नस-नस मे फिर पौरूषता की- आज महा प्रलय जागे । नवयुगल सब प्रेम गीत में- सराबोर होकर सब नाचे। ढोल, झाल, मंजीरे लेकर- ठुमक-ठुमक कर सब नाचे। पीते हैं कोई भंग-गंग-संग झूम-झूम कर सब नाचे। लिए हाथ में पिचकारी को- घोल रंग को सब पर डालें। लाल-पीली हरी रंगों में- अंग-अंग रंग डाले। फाल्गुनी हवा के झोंकों से- उड़ रहे हैं झर-झर पत्ते। आज न कोई राजा-रानी सभी मस्ती में झूमे नाचे। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
अजीब लगता हैं
कविता

अजीब लगता हैं

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** वो इक शख्स जो उसके करीब लगता है, जहां में सबसे ज्यादा खुशनसीब लगता है। दुआ है मेरी कि दुआ उसकी कुबूल ना हो, वो शख्स रिश्ते में मेरा रकीब लगता है। नजरों से नाप लेता है अरमाओ के खेत को, पटवारघर की मुझे वो कोई जरीब लगता है। हमने नहीं देखा उनको पास रहकर भी पूरा, कौन कहता है कि वस्ले इश्क़ हबीब लगता है। सुना है माल चाइना का ज्यादा नहीं टिकता, कोरोना मिट न रहा मसला ये अजीब लगता है। . परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक ...
मौन रहकर भी
कविता

मौन रहकर भी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मौन रहकर भी गमों को सहकर भी देखा है हमने। जीवन के सुंदर सपनों को बिखरते हुए देखा है हमने। बिखरे सपनों को समेटने की कोशिश में अपने आप को तिल-तिल मरते देखा है हमने। मौन रहकर भी गमों को सहकर भी देखा है हमने। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी र...
कलम का कमाल
गीत

कलम का कमाल

संजय जैन मुंबई ******************** लिखता में आ रहा, गीत मिलन के में। कलम मेरी रुकती नही, लिखने को नए गीत। क्या क्या में लिख चुका, मुझको ही नही पता। और कब तक लिखना है, ये भी नही पता। लिखता में आ रहा.....।। कभी लिखा श्रृंगार पर। कभी लिखा इतिहास पर। और कभी लिख दिया, आधुनिक समाज पर। फिर भी आया नही, सुधार लोगो की सोच में।। लिखता में आ रहा...।। लिखते लिखते थक गये, सोच बदलने वाली बाते। फिर नही बदले लोगो के विचार। इसे ज्यादा क्या कर सकता, एक रचनाकार।। लिखता हूँ सही बात, अपने गीतों में... अपने गीतों में......।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं...
मधुमास
कविता

मधुमास

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** गुनगुनाती धूप मुस्कराते पुष्प यह तेरा साथ, लिये हाथों में हाथ लो आ पहुंचा मधुमास ..... यह कोकिल उपहास और भ्रमर उल्लास लो आ पहुंचा मधुमास ..... यह नदियां की जल धार, चली करने सागर से प्यार जल कुक्कुट करें विहार। यूं रखकर नव नव रूप लो आ पहुंचा मधुमास ..... चले मन्द मस्त बयार सुरभित पुष्पों की बहार उन पर भंवरों की गुंजार नव किसलय का धर रूप लो आ पहुंचा मधुमास ..... खेतों में बिछा के पीली सेज, मानिनी चली सजा निज केश पा कृष्ण मिलन सन्देश, आतुर हो आ पहुंचा मधुमास ..... हरित मृदुल मखमली ग्रास बिछा अबनि में चहुंओर चुराकर गोरी का मन मोर लो आ पहुंचा मधुमास ..... . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ह...
हूआ नीड़ सूना
कविता

हूआ नीड़ सूना

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** लुट गया मधुवन, हुआं वो नीड़ सूना। अब ना माली के, हर्दय का घाव छूना। मधुप कलियों को, चले जाकर रुलाकर, उड़ गई कोकिला अधूरा गीत गाकर ..... जब ना होगा नीर, सरिता क्या बहेगीं मीन जल से बिछुड़कर, कैसे रहेगीं। लहरियां तट को, जाती झुलाकर, उड़ गयीँ कोकिला, अधूरा गीत गाकर ..... कौन तुम अंजान, बन मेहमान आयें, स्वपन मे दो गीत, जीवन के सुनायें। चल दिये क्यों नींद, मेरी अब चुराकर, उड़ गयी कोकिला, अधूरा गीत गाकर ..... लुट गया उपवन, हुआं वो नीड़ सूना। अब ना माली के, हर्दय का घाव छूना। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता...
कागज़ और कलम
कविता

कागज़ और कलम

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** कुछ गहरे राज़ छुपे थे दिल में कागज़ और कलम उठाया तो निकल कर बाहर आए बातों में कुछ दर्द ऐसा छुपा था जिस अकेलेपन का एहसास कागज़ की महक और कलम की खुशबू में भी हो रहा था जो कागज़ और कलम के भी आँसू ले आए कोई साथ ना था मेरे जब कोई पास ना था मेरे जब हर रास्ते पर अकेला चला मैं था जब सोचता था कौन है मेरा यहाँ तो कागज़ और कलम मेरा हाथ थाम उन राहों पर साथ चलने आए रास्ता मुश्किल था मंजिल भी दूर थी दूर.दूर तक सन्नाटा था लेकिन कागज़ और कलम ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा सोचता था कैसे उतारूँगा इन का कर्ज़ जो हर समय साथ देने आए थे मेरा सुख से भी ज्यादा मेरी परेशानी के समय दिल के दरिया में ख्वाबों का इक महल कागज़ पर लफ़्ज़ो की माला में सजा कर लिखा था जो हर बार उनको पूरा करने के लिए मुझे नींद से जगाने आई हवाओं के रुख बदलने ...
प्रेम
कविता

प्रेम

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** प्रेम संस्कार है, प्रेम एक विचार है, अतिथियों का सत्कार, अपनों का प्यार है, जीवन का सार है, प्रेम ऊंकार है, वीणा के सरगम में, खुशियों की झंकार है। प्रेम संस्कार है। प्रेम वृंदावन, कृष्ण की भक्ति है, मन के भावों की, सुंदर अभिव्यक्ति है, सृष्टि के कण-कण में, प्रेम विद्यमान है, वशीकरण मंत्र है, जीवन की शक्ति है, प्रेम के कारण, जूठे बेर स्वीकार है। प्रेम संस्कार है, प्रेम एक विचार है। प्रेम ईश्वर है, प्रेम शुद्ध साधना, प्रेमसुख का मंत्र है, प्रेम है आराधना दिल के क्यारियों में, खुशबुओं का खजाना, प्रेम है समर्पण, प्रेम सच्ची भावना, हर रंग के फूल यहां, बसंत बहार है, प्रेम संस्कार है, प्रेम एक विचार है। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए सम...
जिंदगी का सफर
कविता

जिंदगी का सफर

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जिंदगी के सफर में हर रोज दर्द मिला है। पल-पल आगे बढ़ी हूं मंजिल का फासला है। क्या बताऊं तुमको कितने दर्द मिले हैं। हमसे ना पूछो हमें दिल में जख्म मिले हैं। हर बार जिंदगी से नया तजुर्बा मिला है। क्या व्यथा सुनाऊं अपनी मुझे क्या-क्या मिला है। जिंदगी के सफर में हर शख्स मतलबी है। बातों में उलझा कर मुझे लूट लिया है। ये जिंदगी है ऐसी इससे नहीं गिला है। जो था ख्वाब सजाया और रेत में मिला है। जिंदगी की किताब में एक ऐसा पाठ पढ़ा है। छोटी सी जिंदगी में बेशुमार दर्द पला है। चांद छूने को मैंने हर बार हाथ बढ़ाया। ना जाने कितनी बार चोट खाकर खड़ी हूं। जिंदगी के सफर में इतना दर्द मिला है। लबों की मुस्कुराहट हर बार फीकी पड़ी है। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ सा...
जब जब बादल आता है
कविता

जब जब बादल आता है

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बादल की एक टोली जो घूम रही थी नभ में गाँव के बच्चे झूम रहे थे खुशी मनाई सब ने फैलाये अपने पंख मोर ने वर्षा की दस्तक दी भोर ने आज जब बरसेगा पानी तब आयेगी बरखा रानी हम सब भींगने जायेंगे खेत सींचने जाएंगे सोच रहे थे रामू काका कुदाल भी लाये शामू दादा मीरा दीदी छत पर दौड़ी उठा लाई वो पसरे अदौड़ी सोनु की माँ भी ले कर आई रखे थे बाहर जो उसने रजाई पेड़ से फँसा पतंग का फंदा आज रात नही दिखेगा चंदा पानी टप टप खूब बरसाया गगन घटा घनघोर है छाया बादल चाचा तुम रोज आना खुशियाँ ढेरों संग अपने लाना . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
आम कुजं
कविता

आम कुजं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मेरे घर के पूरब-आम् कुजं से कोयल की कूक वेदना ने मुझे जगायी। मंजर से लद गयीं है ये उपवन सारे इस "बंसतोत्सव "मे सो गया तू। निष्ठुरता है इस जीवन मे ढेर सारे। तू सजग रह मेरे साथ ये लिख अनंत वेदना के गीत सारे। कूकना है तो कूक भी अपनी वेदना मे मेरी भी असीम वेदना मिला। गाना है तो गा मेरे साथ प्राण-पण से तेरी वेदना पर लिख रहा हूँ देर गीत सारे अपने घर के पूरब आम् कुजं। कोयल की वेदना ने मुझे जगायी बीते अनुराग को तू याद रखना। उठती हृदय की ये ज्वार तू स्वीकार करना। सदियों तक 'कवि' का उद्गगार आभार तू अपनी कूक मे याद रखना। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
इंतजार
कविता

इंतजार

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** मैने, वर्षो से तुम्हारे इंतजार मे, क्या से क्या हो गया, लेकिन तुमको मालुम नही, तुम जो हो, मेरी मासूमियत का, मेरी समझ से, परे नही हो, मै जनता था, तुम मेरी हो नही सकती हो, मगर तुम्हरा इंतजार, मुझे वर्षो से, था और रहेगा, तुम जानती हो, मै तुम्हे मानता हो, मेरी साँसों, मेरी याद्दो मे, सिर्फ तुम ही तुम हो, मगर तुम्हारी याद मुझे, हमेशा तड़पाती है, काश ये दुनिया, इतना खुशनसीब ना होती, ना मै होता ना तुम होती, ना तड़प होती, ना आरजू होती, और ना गुस्तजु होती, जो ख्वाब दिल मे है, वो दिल ही मे दफन हो जाती, ना जमी होता, ना आसमां होता, ना रात होता, ना दिन होता, होता तो सिर्फ, हमारी-तुम्हारी दिलो का, बेजुबान रिश्ता! . परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड...
कहो वो कैसे भक्त हो?
कविता

कहो वो कैसे भक्त हो?

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - श्री रामकृष्ण परमहंस जी की निर्मल सरल आनंदित कर देने वाली प्रेमायुक्त भक्ति को.. जो वास्तविक प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है... भावनाओं के व्यापारियों को समझना होगा प्रेम कितना पावन है... जिसे औचित्यविहीन अंधी आधुनिकता ने कलिकाल के विकराल दलदल में सराबोर कर रखा है... प्रेम वही जिसमें ज्ञान अप्रासंगिक हो जावे फिर भक्ति इससे अछूती भला रहे तो कैसे? स्वलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत :- भाषा - तत्सम हिन्दी शब्द संयोजन रस - शांत, भाव-भक्ति, अलंकार - अनुप्रास, श्लेष. नाथ के विचार से अनाथ हो विरक्त हो; भावना विहीन जो, कहो वो कैसे भक्त हो? प्रेम बिंदु भाव का; आधार ही है अर्चना, प्रीत की विजय तभी; आराधना असक्त हो। भावना विहीन जो, कहो वो कैसे भक्त हो? ज्ञान के प्रसंग में; दंभमय कुसंग में, तो! मोक्ष ही विषक्त हो...
सुकून की ज़िंदगी
कविता

सुकून की ज़िंदगी

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सुकून की ज़िंदगी हर किसी को नसीब नही, चलो आज किसी गरीब को गले लगाया जाए। तरसते रहते है जो एक निवाले को जहाँ में, चलो आज किसी भूखे को खाना खिलाया जाए। बदलते हालात और बदलते हुए इस दौर में, चलो आज किसी गैर को अपना बनाया जाए। बहुत मुश्किलों से मिली है हमे जिंदगी यारो, चलो आज एक दूसरे को फिर हंसाया जाए। हर किसी की चाहत होती है कुछ करने की, चलो आज उनके सपनो को पंख लगाया जाए। जो खुश रहते है गैरो के आशियाने देखकर, चलो आज उनके रहने का घर बनाया जाए। रक्तदान, नैत्रजांच, भागवत कथा बुरी नही, हप्ते में एक शिविर अन्न-वस्त्र का लगाया जाए। जो करता है जीवहत्या वो होता है जानवर, चलो आज समाज को शाकाहारी बनाया जाए। प्रकृति भी नाराज़ है नियमो के उलंघन से, चलो आज अपने घर एक वृक्ष लगाया जाए। बदली दुनिया के दस्तूर भी बदल गए देखो, घर है तो बा...
एक चेहरा दिखता है
कविता

एक चेहरा दिखता है

संजय जैन मुंबई ******************** जहाँ पर हम होते है, वहां पर तुम नहीं होते। जहाँ पर तुम होते हो, वहां पर हम नहीं होते। फिर क्यों हर रोज सपने में, तुम मुझको दिखते हो। न हम तुमको जानते है, और न ही तुम मुझको।। ख़्वाबों का ये सिलसिला, निरंतर चलता जा रहा। हकीकत क्या है इसका, नहीं हमको है अंदाजा। किसी से जिक्र इसका, नहीं कर सकता हूँ मै। कही ज़माने के लोग, हमें पागल न समझ ले।। की रब से मै करता हूँ, सदा ही ये प्रार्थना। सदा ही खुश रहना तुम, दुआ करता संजय ये। की तुम जो भी हो, और जहाँ पर भी हो तुम। सदा ही सुखी शांति से, रहना वहां पर तुम।। अनजाने में कभी जो, मिल गए अगर तुमको। तो नज़ारे फेर मत लेना, हमें अनजान समझकर। कही रब को भी हो मंजूर, हम दोनों का ये मिलाना। की तुम दोनों बने हो बस, सदा ही साथ रहने को।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत है...
सियासत
कविता

सियासत

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** कहाँ गए वो दिन भारत के, सम्मान सभी का प्यारा था। मर्यादित भाषा थी सब की, कर्तव्य हमारा नारा था। आक्रोशित होना बुरा नहीं, अंदर के भाव नियंत्रित हों। मृत हुई आत्मा, मन कुंठित, तुम बुरी तरह क्यों चिंतित हो? पहले पी एम को याद करो, इन्दिरा, राजीव महान हुए। उनके कुल के तुम वारिस हो, गुण उनके तुममें नहीं छुये। भद्दी गाली, सतही भाषा, डंडे मारो, क्यों बोल गये। देख भीड़ जनता की क्यों, जहर जुबाँ से घोल गये? होकर बाशिंदे मूल रूप से, कश्मीर भुला कर रोये कब? राम लला का केस चला .... कैसे बरसों तक सोये तब? धारा हटी तीन सौ सत्तर, बेचैन हुए कपड़े फाड़े। अच्छे काम सुहाये कब, हर जगह अड़ंगे ही डाले। मनमोहन को भी तंग किया, घोषणा पत्र भी फाड़ दिया। अब तलक हमें कुछ याद नहीं, तुमने क्या अच्छा काम किया? अधीर आपका नेता है, वो जोर-जोर चिल्लाता है। दो कौड़ी का ...
साथी
कविता

साथी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** उबड़ खाबड़ कंटको से भरे पथरीले तप्त रास्तो पर से मैं तुझे सुरक्षित यात्रा करा लाया। राह के नुकीले कंकड़ कांटो का दमन करते, तेरे कष्टों का शमन करते मैं तुझे पड़ाव पर ले आया। पाते ही पड़ाव तूने मुझे तिरस्कृत कर उतार फेंका। मैं सम्पूर्ण रास्ते के कष्टों से उतना आहत नही हुआ जितना तेरे पड़ाव के दरवाजे पर हुआ मैं धूल से लथपथ फिर तेरी प्रतीक्षा में हूँ अनंत राह पर तेरे साथ चलने के लिए रुक मत चलता रह अनंत पथ पर उस पथ पर तुझे मेरी जरूरत न होगी मैं तेरा ''जूता'' जिसके हिस्से में हमेशा बिछोह आता है। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
दोहा गजल
ग़ज़ल, दोहा

दोहा गजल

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** धारण कर लो फिर गरल, शिवशंकर भगवान। धरती कर दो फिर धवल, शिवशंकर भगवान।। भस्मासुर के राज में, जीना था दुश्वार। जीवन कर दो फिर सरल, शिवशंकर भगवान। गाता जग गुणगान है, त्रयंबकं यह रूप। मानस कर दो फिर तरल, शिवशंकर भगवान।। चंद्र सुशोभित माथ पर, डम-डम-डमरू हाथ। तांडव कर दो फिर अमल, शिवशंकर भगवान।। गण-गणपति-गौरादि अरु, सजते भूत-भभूत। जागृत कर दो फिर अनल, शिवशंकर भगवान।। . परिचय : पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि :- १६ जुलाई १९६७ शिक्षा :- एम.ए. बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभ...
समझो बसन्त है
कविता

समझो बसन्त है

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** फूलों-सा हंसता हो जीवन, समझो बसन्त है। सरसों खेतों में फूल उठे, आम पेड़ बौराए हों, बेलों पर खिलें नए फूल, समझो बसन्त है। सुर-सुगन्ध-सी लगे पवन, हरीतिमा के विभिन्न रंग, पतझड़ में बिखरें पीत पात, समझो बसन्त है। भौंरे गाने को मचल उठें, कोयल भी छेड़े कूक तान, सब जीवों में ज्यों नई जान, समझो बसन्त है। भारत की प्रगति का विश्वास, आतंक संघर्ष का हो अन्त, लेखनी लिखे जब नया अंक, समझो बसन्त है। फूलों-सा हंसता हो जीवन, समझो बसन्त है। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सा...
गंतव्य मेरा
कविता

गंतव्य मेरा

शिवम यादव ''आशा'' ग्राम अन्तापुर (कानपुर) ******************** वो नहीं देख सकते हैं गंतव्य मेरा बना देखकर मुझको हैवानी चेहरा हमारे हुए न तुम्हारे क्या होंगे यही आखिरी था सफ़र साथ मेरा कल वो आप आज हम जाएंगे सालों बाद किसी की जिन्दगी चलाने से नहीं चलती किसी की झोपड़ी जलाने से नहीं जलती आसमान छूने का हौसला होता है पंछियों के अन्दर क्योंकि उड़ाने सिर्फ़ परों से नहीं होती तुम्हें कोई नफ़रत के भावों से देखे उसे प्रेम के गीत तुम अपने दे दो बने प्रीत तेरी या मेरी बने वो हर एक राह पर प्रेम की जीत लिख दो अपने ही हर काम से ही वो खुश हैं ये दुनियां क्या सोचे वो इससे से अलग हैं पड़ी बात जब-जब है मुझको उठानी मेरे साथ से वो अलग हो गए हैं ये नफ़रत की बातें हैं मुझसे न होती चलो आज मिलकरके बातें हैं होती उन्हें क्या था समझा वो क्या हो गए हैं मेरे नाम से उनको आफ़त सी होती कभी द...
तकदीर
कविता

तकदीर

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मेरे हाथों की लकीरों ने मेरी तकदीर बदल दी। मैं ऐसी नहीं थी मेरी सोच बदल दी यूं तो मैं अकेले ही चली थी सफर पर... तेरे हर एक कदम ने मेरी राह बदल दी तेरे हाथों की लकीरों ने मेरी तकदीर बदलती दी। मेरी कोशिश रही अपने जज्बातों को उतारने के पन्नों पर... तूने हर बार मेरी कोशिश बदल दी।। सुरेखा सुनील . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग...
त्वदीयं नमः
छंद, दोहा

त्वदीयं नमः

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा अगम्य अगोचर विशेश्वर वराह वमन मत्स्य कश्यप रूप धरा चरण गंग साजे कंठम स्वरा.. हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा.. राम मनोहर परशु बुद्ध रूपम् सूर्यम् मयंक पावक प्रकाशम् दुःख पाप नाशी क्षीरं निवासी सदा भक्ति प्रीतम् प्रियम् अक्षरा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा वीरम च धीरम मिथक दोष घातम भवसिंधु तारम् वरण बृंदिका अधर देह सुन्दर भुजा चार धारम् कल्याणकारी असुर मर्दणा हृदय कुञ्ज स्वामी गौ पूजयामि त्वदीयं नमामि चरण वंदना प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा सवैया - हम तो हरि मूरख देख के मूरत रीझत गावत आन पड़े.. यह नेह भी देह भी केवल रेह सी श्री चरणों में आन धरे मुस्कान की तान के तीर किये गंभीर हिय जब आन धसे तुम एक हमें हर एक से प्यारे बोलो प्रमाणित कैसे करें यह नेह भी देह भी केवल रेह सी ...
तुम जब
कविता

तुम जब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बसंत तुम जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। हवाएं चलती हैं। सुगंध ले कर। जीवन मे , खुशबू भर जाते हो। बसंत तुम जब आते हो। एहसास जागते हैं। हर तरफ, फूल खिलते हैं। कहीं पीले-कहीं नारंगी। जीवन रंग बरसते हैं । बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। नदिया इठला कर चलती है। दिनों में मस्ती आ जाती है। आसमां में चहकते हैं पक्षी, जिंदगी कोयल से गीत गाती है। बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। नई आस-नई प्यास नए विचार-नए आधार। बन कर छाते हो। बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, तरंग भर जाते हो।। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
इंदौर रहेगा नम्बर वन
कविता

इंदौर रहेगा नम्बर वन

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** खत्म नही होगा स्वच्छता का दौर था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर देश और दुनिया में छाया हुआ है। नाम हो जग में ऐसी मेरी दुआ है। अहिल्या की नगरी है एक पहचान। सुप्रसिध्द मंदिर यहां रंजीत हनुमान जहां देखो वहां तो हो रहा है शौर... था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर। स्वच्छ्ता सर्वेक्षण में चौका लगाया है। सबको पीछे छोड़ फिर अव्वल आया है। मनीष सिंह जी जब नगर निगम आयुक्त हुए। तभी से सारे इंदौर वासी गन्दगी से मुक्त हुए। फिर संभाली हाथ आशीष जी ने बागडोर... था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर आईबस में सफर करना लगता है सुहाना। खुद की कार छोड़ सबको इसमें ही जाना। इतना सुखद व सुरक्षित सफर है। अब हर यात्री की इसपर नज़र है। सिटिबस में लागू है योजना महापौर... था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर ई रिक्शा दे मुखिया ने किया रोजगार आरंभ। नारी विशेष के लिए अह...