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पद्य

एक दिन वो मुस्कायेगी
कविता

एक दिन वो मुस्कायेगी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हाँ! हूँ जानता मैं की, वो फिर से मुस्कायेगी, खिल उठेंगे, अधर कमल, नेह के सुर सजाएँगी. तब वो फिर मुस्कायेगी... अलसाई - सी भोर में, रश्मि चुनर लहरायेगी, तज खुमार, जलज खिले, वात अतर बिखरायेगी. तब वो फिर मुस्कायेगी... भृमर टटोले कुसुमरज, तित्तरी रँग उड़ाएगी, कोकिल कुहू के लता लता, पिहू पिहू राग सुनायेगी. तब वो फिर मुस्कायेगी... गोधूली रज से भीगी संझा, जब चितचोर सँग निहारेगी, निशि पिछौरी तब उर्वी ओढ़े मन ही मन जब लजाएँगी. तब वो फिर मुस्कायेगी... उजयारी में ताके, पी जब, जा वलय बंध समाएगी, हिय में उठे हिलोरें जब, नयन कमल कुम्हलायेगी. हाँ! तब तो वो मुस्कायेगी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित औ...
मनाएँ कैसे हम त्योहार
कविता

मनाएँ कैसे हम त्योहार

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** देश के ऊपर मज़हब हाबी मचा है हाहाकर भारत माँ मायूस मनाएँ कैसे हम त्योहार पशुओं से भी बदतर अक्सर हो जाता इंसान मिथ्या मज़हब की घुट्टी पी बन जाता शैतान यक्ष प्रश्न है यही देश में पर देगा कौन जवाब खून खराबा मचा सड़क पर गुलशन हुआ उज़ार मनायें कैसे........ संस्कृतियों में क्यों ऐसा संघर्ष यहाँ पर होता है मठाधीश मस्ती करते हैं आम आदमी रोता है दिल्ली के दंगो ने ले ली जाने कितनी जान पुलिस नपुंसक बनी रही था शासन भी लाचार मनायें कैसे...... क़ौमी एकता गंगा जमुनी का नारा बेमानी है दिल में लोंग़ो के बसती है चाल अगर शैतानी है जाति पाँति का भेद मिटे लाओ ऐसा क़ानून मज़हब की दीवार गिरा दो जोड़ो दिल के तार मनायें कैसे हम त्यौहार..... . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभा...
समय रास्ता दिखायेगा
कविता

समय रास्ता दिखायेगा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** समय रास्ता दिखायेगा साँझ ढलती है उसे ढलने दो, नियति छलती है तुम्हें छलने दो। बुझते दीपों और टूटे तारों को सुबह का ख्वाब समझकर दिलों सें पलने दो। चलने दो अपनी राह अपने सपनों को, काँटे बनेंगे फूल इक दिन दर्द खुद मिट जायेगा। ये समय ही नयी सुबह का रास्ता दिखायेगा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
प्रियेतमा
कविता

प्रियेतमा

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** मन की निर्मल पावन उज्जवल विमल प्रेम रस पाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों जेसे नभ चर गगन बिना मृत जलचर अमृत नीर बिना तेसे तुम बिन मन तड़फत हैं प्रांण जाए नही पीर बिना तुम रूठी तों सबकुछ रूठा कलम सुहाय ना पाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों जान सका ना मैं भी तुमको तुम भी मुझको समझ ना पाई ना जाने क्यों प्रेम विवश हों मैने तुम संग प्रीत लगाई अपनें मन की विरह आग में झोंक रहा हूँ बाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों मन के घौर अंधेरों में तुम दिव्य रोशनी लायी थी जो कुटिया थी टूटी फूटी तुमने महल बनाई थी अब तुम मुझसे क्यों रूठी हों प्रति उत्तर दो पाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों . परिचय :- विमल राव सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव अ.भा.वंशावली संरक्...
जिन्दगी
कविता

जिन्दगी

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** जिन्दगी की उलझनों को सुलझाने की कोषिष न करो उलझनें उलझती चली जाएँगी रहने दो उसे उसी हाल में वक्त के झोंके से देखो खुद-ब-खुद सुलझ जाएँगी। वफा की उम्मीद न करो बेवफाओं की इस दुनिया में वफा करने की कोशिश करो किसी के अँधेरे जीवन में खुशियों की चाँदनी सब ओर छिटक जाएगी। गुज़र गए जो पल उस पर क्यों करे विमर्ष? न बीते पल का शोक न कल का हर्श। ऐसा नहीं की रोनेवालों में तुम अकेले हो छुपकर, घुटकर जीनेवालों के लगे यहाँ मेले हैं। तुम्हारे समक्ष इस जीवन से जुड़े विकल्प ही विकल्प हैं निश्चित करो तुम्हें पूर्ण करना कौन-सा संकल्प है। हाँ! अपने पथ-प्रदर्शक बनो तुम स्वयं ही यह आशा न करो कोई और तुम्हें मंज़िल तक पहुँचाएगा। . परिचय :- सीमा रानी मिश्रा पति : डाॅ. संतोष कुमार मिश्रा पता : हिसार, (हरियाणा) पद : शिक्षिका आप भी अपनी कविताएं...
कविता कवि की साधना है,
कविता

कविता कवि की साधना है,

पं. प्रशान्त कुमार "पी.के." हरदोई (उत्तर प्रदेश) ******************** कविता कवि की साधना है, वीणापाणी की वन्दना है।। कविता ही कवि की आशा है, कविता कवि की परिभाषा है। कविता है कवि की बोलचाल, कविता है निज कवि की ढाल। कविता है कवि के मन की पीड़ा, कविता सच बोलने का है बीड़ा। कविता वेदना कवि के मन की, संवेदना है कवि के निज मन की। कविता माध्यम है भावों का, पल पल हर पल संभावों की।। कविता प्रेरणा कल्पना है, निर्माण की हर परिकल्पना है।। कविता विश्वास है कवियों का, कविता आभास है कवियों का।। कविता है परिश्रम कवियों का, कविता परिणाम है कवियों का।। कविता में कवियों का भाव सार। कवि के इसमें हैं सद्विचार।। कविता है जन्मी सर्वप्रथम, कविता सच कह दे ले न दम। कविता को सहारा कवि ने दिया, कविता ने कवि को है दिया।। कविता ही कवि की पूजा है, साथी न शिवा कोई दूजा है। कविता कवि के हैं अश्रुपात, कविता...
वो नव प्रभात फिर आएगा
कविता

वो नव प्रभात फिर आएगा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जब फिर से नई सुबह होगी बच्चे स्कूल को जाएंगे फिर से जिंदगी दौड़ेगी और बाजारों में फिर रौनक होगी लेकिन क्या वो अनजाना भय न होगा क्या फिर से पहले सा सब होगा मन की उलझन क्या खत्म होगी आपस की दूरी कैसे कम होगी???? इसका हल भी हमें ही पाना है खुद को मजबूत बनाना है विश्वास की नई बेल पर उम्मीदों के फूल उगाना है चल उठ मुसाफिर जीवन की नई राह पकड़,,,, उस नव प्रभात की बेला का पूरे दिल से तू स्वागत कर चेहरे पर एक मुस्कान लिये नव पथ पर तू आगे बढ़........ जो बीत गया उसे भूलकर अपने आप को सशक्त कर वर्तमान को स्वीकार कर इस नव प्रभात का स्वागत कर,,, स्वागत कर...... परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप...
कोरोना से कर्मयुद्ध
कविता

कोरोना से कर्मयुद्ध

मुकेश सिंह राँची (झारखंड) ******************** माना हालात अभी प्रतिकूल है, रास्तों पर बिछे महामारी के शूल हैं, घर पर बैठे-बैठे रिश्तों पर जम गई धूल है, पर ये युद्धकाल है, तू इसमें अवरोध न डाल, तू योद्धा है, चिंता न कर, होगी जीत न होंगे विफल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। माना आशाओं का सूरज डूबा, अंधकार का रेला है, ना डर अँधेरी रात से तू, आने वाली प्रभात की बेला है, तुझसे बँधी हैं उम्मीदें सबकी, सोच मत तू अकेला है, तू खुद अपना विहान बन, कर दे दस अँधेरे को विफल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। इस विपदा से जीत बस एकमात्र तेरा लक्ष्य हो, संकल्प कर, अपने मन का धीरज तू कभी न खो, रण छोड़ने वाले होते हैं कायर, तू तो परमवीर है, मास्क, सेनिटाइजर, हाथों की धुलाई और सामाजिक दूरी, ये तुम्हारे तरकश के चार तीर हैं, युद्ध कर तू है सबल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। हम...
घर
कविता

घर

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** बचपन की मस्ती की यादों का घर। दादा के पैरो की जन्नत हैं ये घर।। कुछ वक्त मिला हैं अनजाने में। बीता दो ये वक्त, इतिहासो में ।। वर्षो की कशमकश में क्या पाया क्या खोया। इसमें अपनो की पहचान भर दो।। सीख लो हर पहलू जीवन का। जहाँ भूल वही से सुधार करो।। घर में उल्लास, उमंग, उत्साह भर दो। कुछ दिन साथ घर में ही रह लो।। कुछ दिन घर में उत्सव समझ लो। कुटिया हो, या हो महल ---------।। जमकर इसमें रंग भर दो। अपनी अलग पहचान कर दो।। अधरों पर मुस्कान भर दो। घर को अपने रोशन कर दो।। . परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान) जन्म तारीख : १५/०९/१९९७ पिता : खेतारामजी माता : सीता देवी स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
दिखता हैं ख़ौफ़
ग़ज़ल

दिखता हैं ख़ौफ़

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिखता हैं ख़ौफ़ कितना, आज फिजाओं में, घोला जहर हैं किसने, बहती इन हवाओँ में... दूर से ही वो पूछते है, खैरियत कि कैसे हो? हैं झिझक ये के सी, हमसे मिलने मिलाने में... खुदगर्जी कहे उनकी, या समझें की बेबसी, दो कदम सँग ना आये, यु रिवाज निभाने में... हर शख्स आज हैं डालें, नकाब सा चेहरे पे, हया इतनी कब से हैं आईं, बेहया जमाने मे... इब्तिदा-ए-इश्क़ ये, मुक़ाम बाकी हैं "निर्मल", दम भर, जा गुजर, ना ज़ोर बेकस जमाने मे... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
सत्य
कविता

सत्य

डॉ. स्वाति सिंह इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक धोबी के प्रश्न से, सीता मैली हो नहीं सकती। किसी के मन के मैल को सीता, धो नहीं सकती। सीता सत्य है, सीता सत है, विश्वास यह, खो नहीं सकती। सीता राम है, राममय है, वर्चस्व अपना यह खो नही सकती। सलाखों के अंदर गैलेलीयो को रखने से पृथ्वी का आकार बदल नहीं सकता, पृथ्वी गोल है, पृथ्वी गोल है, इसमें कुछ बदल हो नहीं सकता। सूली पर चढ़ाने से यीशु का, ईश कम नहीं हो सकता। मानव का मसीहा अमर है, गौरव, उसका कम हो नहीं सकता। यहां तो तोहमत से महरूम नहीं न युसुफ, न मरियमl वक़्त का तकाज़ा है बाकी कुछ नहीं। सत्य, सत्य है अंधेरा होने से, उजाला उसका, कम हो नहीं सकता। धुंध में कुंद हो नहीं सकताl सत्य परेशान हो सकता है, पराजित हो नहीं सकता। . परिचय :- डॉ. स्वाति सिंह निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी विभाग) सें...
जला दिए हैं
कविता

जला दिए हैं

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** जला दिए हैं ९ दिये ठीक रात ९ बजे ९ मिनिट तक, हमने सोचा था की भाग जायगा कोरोना, जैसे भाग जाते है गधे के सिर से सिंग ...!! भागा ही नही वो तो अभी भी है कायम, गलती से भी अब यारो मत बतियाना, और मत बैठना किसी के भी ढिग ..!! रहना होगा अभी हमको घरों में ही, त्रासदी भयंकर है भारी,कर दी अगर, जरा सी चूक तो लग जायँगे लाशो के ढिंग .!! वैर-भाव को छोड़ो अब तो हे धर्मधुरंधरो, देश बचा लो अब तो, इंसानियत को धारो, तुम्हारा तो कुछ भी गया न फिटकरी न हींग .!! लानत है, जिल्लत है, चायना वालो तुम पर, फैला दी पूरे विश्व मे ये कैसी महामारी, हाय लगेगी तुम्हे और मरेंगे तुम्हारे भी जिंग-पिंग .!! तुम क्या समझो वायरस हमला करके, पल में बन जाउंगा विश्व - किंग .!! इस मुगालते में मत रहना भूलकर भी, खोल त्रिनेत्र जाग गया अगर इस सृष्टी...
हे दीपज्योति नमन
कविता

हे दीपज्योति नमन

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** तिमिर नाशिनी दीपज्योति नमन! पाप शमनी हे सत्यज्योति नमन! सन्मार्ग दर्शिनी मार्गदर्शिका नमन! आत्म बोधिनी बोधशक्ति नमन! काल नाशिनी सर्वशक्ति नमन! ज्ञान प्रदायिनी ज्ञानशक्ति नमन! सद्भाव प्रवाहिनी प्रवाहशक्ति नमन! सत्यदर्शिनी हे सत्यशक्ति नमन! सिद्धि प्रदायिनी सिद्धिशक्ति नमन! . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने प...
ये दो जल बिंदु
कविता

ये दो जल बिंदु

किरण बाला ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) ******************** ये दो जल बिंदु, न जाने कब और क्यों छलक पड़ते हैं ! अस्थिर से मुझको क्यों कभी-कभी ये लगते हैं। ये सिर्फ अश्रु धारा ही हैं या फिर हैं कुछ और क्या हैं ये पीड़ा के उद्भव ! या फिर हैं चिर-शान्त मौन। ये तो हैं दर्द का कोमल अहसास ले आता है बीते दिन भी पास युगों-युगों से चिर-स्थाई सा दे जाता है सुख की आस। नहीं सिर्फ पीड़ा के साथी उन्माद में भी छलक पड़ते हैं कभी-कभी बन जीवन के प्रेरक नियत मंजिल तक ले चलते हैं। कमजोर नहीं तुम इनको समझो प्रलयकारी भी हो सकते हैं कहीं बनते हैं घावों के मलहम कहीं चिंगारी भी बन सकते हैं। यदि न होते ये अश्रु तो जीवन भाव-शून्य हो जाता रंग न होता कोई जीवन में बेजान सा ये जग होता। फिर भी सोचती हूं, न जाने कौन से उद्गम से निकल पड़ते हैं ये दो जल बिंदु, न जाने कब और क्यों छलक पड़ते हैं .... (पूर्व में प्रक...
नव संकल्प
कविता

नव संकल्प

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जला कर.... एक दीया विश्वास का, हमें मानव सभ्यता में, विजयी उद्घोष जगाना है। हम हैं भारत की संतान मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर दूसरा ... .दीया प्रेम का हमें आपसी भाईचारा लाना है। धर्म से ऊपर है ....मानवता। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर तीसरा ....दीया देश हित में लगे, असंख्य जनों के प्रति, कृतज्ञ हो जाना है। जो लड़ रहे कोरोना से, दिन-रात उनके लिए, दुआ में हाथ उठाना है। जलाकर चौथा .....दीया देश हित का हमें, देश का मान बढ़ाना है। कोरोना से उपजे अंधकार को, विजयी प्रकाश के, दीयों से जगमगाना है। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर पांचवा..... दीया कुदरत का उपकार मनाना है। बहुत गलतियां कर चुके, हम कुदरत के साथ, अब समस्त भूले सुधारना है। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर छठा .....दीया स्वच्छता का वचन निभाना है। हम रोकेंगे गंदगी के...
संक्रमण का अंधेरा
कविता

संक्रमण का अंधेरा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** रोशनी से जागती उम्मीदों की किरण अंधेरों को होती उजालों की फिक्र सूरज है चाँद है बिजली है इनमें स्वयं का प्रकाश होता ये स्वयं जलते दिये में रोशनी होती मगर जलाना पड़ता सब मिलकर दीप जलाएंगे धरती पर करोड़ो दीप जगमगाएंगे औऱ ये बताएंगे संक्रमण के अंधेरों को एकता के उजाले से दूर करके स्वस्थ जीवन को दूरियां बनाकर देखा जा सकता पाया जा सकता। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता...
गली गली डर कोरोना का
गीत

गली गली डर कोरोना का

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** गली गली डर कोरोना का, इस डर का उपचार करें। स्वीकारें एकांत वास हम, इस विपदा पर वार करें।। संक्रामक है मर्ज कोरोना, दूरी का हम ध्यान रखें। कुल्हाड़ी ना पैरों पर हम, अपने मारे भान रखें।। नजरों से ना गिरें किसी की, बन समाज के दुश्मन हम। अपने ही भाई को क्या हम, दे पाएंगे कभी सितम।। भले लाॅकडाउन हो या हो, कर्फ्यू उसको स्वीकारें। पड़े अगर कठिनाई भी कुछ, अपनी हिम्मत ना हारें।। हम समाज से समाज हमसे, नाहक ना तकरार करें। स्वीकारें एकांतवास हम, इस विपदा पर वार करें।। कुत्ते की ना मौत मरेंगे, इटली में जो हुआ अभी। अपनी इस विपदा को हमने, कम आंका क्या कहो कभी।। साथ खड़े हम सरकारों के, नहीं आग में घी डाला। उल्टे पांव चला जाएगा, कर कोरोना मुंह काला।। खून नहीं पीने देंगे हम, खून के प्यासे दुश्मन को। करवा देंगे संकल्पित पग, जल्द बंद इस नर्तन को।। शर्...
कॅरोना जनित पलायन
कविता

कॅरोना जनित पलायन

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** पूरी दुनिया आतंकित है फैला रोग कॅरोना किया चीन ने देखिये कितना काम घिनौना काल के गाल में हुए समाहित हज़्ज़ारो इंसान भाग रहे घर द्वार छोड़ कर बचेगी कैसे जान शुरू कॅरोना जनित पलायन भाग रहे नर नारी खुद को झोंक रहे आफत में फेल व्यवस्था सारी सामाजिक दूरी का फतवा हो गया हवा हवाई हारेगा फिर कैसे कॅरोना हम हार रहे हैं लड़ाई दहल गया है देश समूचा पर कुछ हैं बेफिक्र नादानी में लोग कर रहे हरकत बहुत विचित्र हार गया गर देश कॅरोना से फिर बोलो क्या होगा शहर गांव में मचेगा क्रंदन मरघट का मंजर होगा दुख के बादल छंट जाएंगे थोड़ा धैर्य धरो ना साहिल सारा देश तुम्हारा हारेगा ये कॅरोना . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि :...
कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** देश के जन सेवकों को मैं जय हिंद कहता हूं कलम का सिपाही हूं मैं सत्य कहता हूं।। लोग तो सिर्फ वादा करते हैं और मैं लिख कर देता हूं देश की जनता के लिए जो अपनी त्याग -तपस्या मेहनत -लगन और परिश्रम के बल पर छोड़कर अपना घर- परिवार जनता की सुरक्षा के लिए खड़े हो जाते हैं बनकर दीवार चाहे कोरोना महामारी हो या फिर आ जाए बाल बच्चों सहित उसकी पत्नी हंता हमारे देश के जन -सेवकों के साथ खड़ी हे देश की जनता धन्य है वह लोग जो दिन -रात करते हैं जन सेवा चाहे भारी वर्षा बाढ़ आंधी या अन्य प्राकृतिक आपदा औरआजाए चाहे तूफान करोना जैसी महामारी मैं भी लगा दी अपनी दिलों जान मानते हैं अपनी ड्यूटी को सर्वोपरि परिवार से भी महान फिर वह चाहे सुरक्षाकर्मी डॉक्टर-जनसेवक समाजसेवी संस्थाओं देश के सैनिकों और पुलिस के जवानों को शिक्षक -के .पी .चौहान का शत -शत नम...
गांधी हैं एक बहाना
कविता

गांधी हैं एक बहाना

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** उत्सव देता हमें न रोटी, देता गेहूँ दाना। प्रचार स्वयं का करते हो, गांधी हैं एक बहाना। "भूखे भजन न होहिं गोपाला", कह गए हैं पहले पुरखे। कैसे उत्सव देखें (?), जब हैं पेट हमारे भूखे। पहले गेहूँ , तब गुलाब, यह बात है एकदम सच्ची। पहले दो तुम रोटी हमको, फिर कहना बातें अच्छी। गांधी-पथ है कठिन बहुत, बस स्वांग ही रच सकते हो। समझ रहे हैं तुम्हें खूब, हमसे ना बच सकते हो। छोड़ो बाकी बातें, बस तुम कृषकों को ही ले लो। उनकी उपजायी फसलों का उचित मूल्य तो दे दो। 'भितिहरवा' में जाकर देखो कृषकों की बदहाली। जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में करते फसलों की रखवाली। शीत घाम दोनों सहते हैं बिना निकाले आह। देख रहे हैं, करते कितना तुम उनकी परवाह। बड़ी-बड़ी बातें करते हो मंचों पर बस जाकर। जीयेंगे क्या कृषक तुम्हारी बातों को ही खाकर? गांधी ने जो कहा, उसे था जीव...
खौफ
कविता

खौफ

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** भाग दौड़ की जिंदगी में ठहराव सा आ गया, ऐसा लग रहा जैसे नया युग आ गया। गली चौबारा शांत सा दिलों पे तूफ़ान सा आ गया, रह रहकर इंसान भय पे अपने पर आ गया। न किसी की निंदा न कोई पर चिंता, दूरियां बना रहा मानव घर को बनाकर पिंजरा। सोना, चांदी, धन कोई काम नहीं आ रहा, थोड़े में गुजारा करने की हुनर सा आ रहा। अनहोनी आशंका से घिरता हुआ मन, अब जीवन पाने कि आस में मर रहा है इंसान। खूबसूरत जिंदगी के सपनों के झरोंखे ने प्रकृति ने भी क्या खूब नजारे दिखाए है। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak1...
बादलों के उस पार
कविता

बादलों के उस पार

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बादलों के उस पार जो उजाला है वो मुझे चाहिए घिर गई है मेरी बस्ती गहन अंधकार में। कतरा कतरा रोशनी मुझे चाहिए। जो प्रज्वलित है भीतर हमारे वो ज्योतिर्मय भाव मुझे चाहिए। झर रही नयनो से आशा की किरणें स्पंदन सांसो में होता रहे जगमगाता जीवनदीप मुझे चाहिए। घर की देहरी पर खिंच रखी है लक्षमण रेखा उस जीवन रेखा के ऊपर प्रकाशपुंज रूप "दीपक" मुझे चाहिए। मुझे चाहिए। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
स्वर्णिम अतीत
कविता

स्वर्णिम अतीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सुखी थे घर-घर सब परिवार! लुटाते थे आपस में प्यार! नहीं थी मध्य उच्च दीवार! जुड़े था संबंधों के तार! प्रदूषण मुक्त सभी आवास! दूर होकर थे कितने पास! उरों मैं थी आलोकित आस! हमेशा रहता था विश्वास! शान्ति शाला के थे सब छात्र! मनुज थे सब आदर के पात्र! परिश्रम करते थे दिन-रात्र! बुरे व्यक्ति थे कुछ ही मात्र! घरों में पशुपालन था आम! बहुत कम करते थे आराम! शुद्ध थे दूध-दही हर ग्राम! नहीं था मिलावटों का काम! लगे अब सब सपनों-सी बात! कहाँ हैं वे स्वर्णिम दिन-रात! बहुत बदले से है हालात! समय लाया है झंझावात! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•...
कसक
कविता

कसक

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** अन्जान डगर थी स्याह था अन्धेरा, यह कदम लड़खडा़ते बढ़ते चले गये। लगती रही ठोकरे पाव घायल हो गये, अन्जानी तलाश मे खोते चले गये। मृगमरीचिका के जैसे बजे ख्वाव अक्सर, बढ़े जो कदम तो खोते चले गये। सजी न कोई महफ़िल बजे न साथ कोई, बिन साथ के ही मदहोश होते चले गये। पग में बंधे न नूपुर ने गीत गुनगुनाया , अनजाने में पांव यूं ही थिरकते चले गये। मिलन की ललक थी अतृप्त सी तृषा थी, मिट न सकी तृषा, हम मिटते चले गये . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपन...
राम तुम्हारे नाम
कविता

राम तुम्हारे नाम

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं। तुम्हें बुलाने को हम आतुर, मंत्र उच्चारे हैं।। रावण से ज्यादा बलशाली दानव आया है, इससे कौन लड़ेगा प्रभु जी, आप सहारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... अदृश्य शक्ति का भेदन कैसे हम कर पायेंगे, इसके आगे कैद हुये हम बड़े बेचारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।.. देखो कैद में आज अयोध्या का जन मानस है। रोती अंखियां राम तुम्हारी राह निहारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... ऐसे निर्मोही बने रहोगे कौन पुकारेगा, प्रकटो हे श्रीराम भक्त जन तुम्हें पुकारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्...