बदल रहे रिश्तों के माने
प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’
जौनपुर (उ.प्र.)
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बदल रहे रिश्तों के माने आज यहाँ प्रतिपल
समझ नही पाता है कोई क्या हो जाए कल
गुणा भाग की इस दुनिया में लाभ की बस बातें
अपना सगा और सम्बंधी भी करता है छल
कौआ भागा कान नोच कर बातें लगती सच्ची
बुद्धि टांग देते खूँटी पर अक़्ल है कितनी कच्ची
श्वेत वसन यद्यपि शरीर पे मन में भस्मासुर
गिरगिट जैसे रंग बदलते बातों में निर्बल
जाति पाँति मज़हब की रोटी रोज़ सेकते भैया
ऐसे साहिल हैं तो साहिल पर डूबेगी नैया
मज़हब की घुट्टी पीकर हम भँवर जाल में हैं
मंदिर मस्जिद के झगड़े में गई उमरिया ढल
धन वैभव सब पास हमारे मन है मगर अशांत
हंसी ख़ुशी संतोष है ग़ायब दिल है सूखा प्रांत
तिल तिल कर जल रहीं ज़िंदगी जीवन जैसे बोझ
लव पर तो मुस्कान दिख रही मन में दावानल
ईर्ष्या द्वेष जलन पर क़ाबू पा ले यदि इंसान
बच जाएगी ये दुनिया फिर बनने से शमशान
पर हित हो...