रायता
विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कार्यगति का नहीं ठिकाना, बातें ज्यादा कर जाते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।
अभिमान दिलों में ज्यादा है, विरोध भाव समाया है
समूह संगठन शक्ति को ही, गर्त में पहुंचाया है
अकूत धन दौलत बल से, होशियारी जताते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।
आत्म प्रशंसा आदत से, खुद को खुश रखवाना है
थोड़ी बदनामी भी सहकर, नाम बड़ा चलवाना है
नुकसानी की हो क्या चिंता, तुच्छ कर्म दिखलाते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं
बॉलीवुड क्या राजनीति में, रिश्ते गहन ही देखे हैं
राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय डॉन, संपर्कों से लपेटे हैं
कथा मीडिया कितना गाये, रोज बदलती बातें हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।
एक डांटे तो दूजा सुनता, नीचापन दिख जाता है
भारी सभाओं के नाटक में, कॉलर ऊंची करता है
साथी को कलंक परोसकर, निज शोभा पा जाते हैं...