Monday, November 25राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

मकड़ी का जाल
कविता

मकड़ी का जाल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाल मकड़ी का बुना है, खो गयी संवेदनाएँ। द्वेष के फूटे पटाखे, जल रहीं हैं नित चिताएँ।। कर रहे क्रंदन सितारे, चाँद भी खामोश रहता। हर तरफ छाया तिमिर की, अब नहीं कुछ होश रहता।। आपदा की बलि चढ़े सब, चल रहीं पागल हवाएँ। शोक घर -घर हो रहा है, मौत की छाया पड़ी है। आँधियाँ सुनती नहीं कुछ, झोपड़ी सहमी खड़ी है।। छा रही है बस निराशा, टूटती सारी लताएँ। भूलती चिड़िया चहकना, साँस बिखरी कह रहीं अब, कौन सुरक्षित इस जग में, पीर अँखियाँ सह रहीं सब संत्रासों की माया है , छा गईं काली घटाएँ। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका ...
संवादहीन जो …
कविता

संवादहीन जो …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* संवादहीन जो मौन खड़ा है अंधियारे में ये कौन खड़ा है आकुल प्रश्न ये बहुत बड़ा है ये सत्य, जो स्वीकार नहीं है मत सोच ये तेरी हार नहीं है प्रयास रहे तो स्वर्ग धरा है पाप पुण्य का लेखा जोखा करो तुझको है किसने रोका तपे वही जो स्वर्ण खरा है पीड़ा का परिसीमन क्या है जीवन क्या है, मरण क्या है समयचक्र में सभी पड़ा है मृत्यु द्वार पर जीवन नाचे पाप पुण्य के किस्से बाँचे युग युग की यही परंपरा है विकट प्रश्न ये बहुत बड़ा है परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
कलम का हत्यारा
कविता

कलम का हत्यारा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब इसे कहूं तुम्हारी हताशा या लहू से हाथ रंगने का जुनून, बड़ी आसानी से बोल रहा है कि मैंने कर डाला कलम का खून, ऐसा करके तूने की है वाहियात कोशिश मिटाने की बुद्ध के विचारों को, कबीर, रैदास के विचारों को, ज्योतिबा,सावित्री के सरोकारों को, चुनौती देते पेरियार के दहकते अंगारों को, बाबा साहब के बोये संस्कारों को, जागरूक करते कांशी के पंद्रह-पच्चासी वाले बहुजन विचारों को, पर भूलना मत कि कत्ले-कलम से फिर पैदा होंगे अनगिनत कलम, उस काल्पनिक रक्तबीज की तरह, तब तू पड़ा रहेगा ताउम्र गाली खाते अपनों से, खुद से, क्या तुम्हें अब भी उम्मीद है कि कलम फिर से लिखेगा वो काल्पनिक बहकावे जिसके चपेट में तू आ गया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्...
वीणापाणि
कविता

वीणापाणि

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मां सरस्वती की कृपा हे पाई, उनके मुख से कविता गई। जब भी उनकी वीणा बजती , मुख से कविता है यह बहती। वीणापाणि हे तु शारद, विद्या बुद्धि संगीत की दायक। गीत संगीत तुझसे हम पाते, तेरी वंदना नित्य हम गाते। हाथ में पुस्तक वीणा धारिणी, श्वेत वस्त्र हंस वाहिनी। गौ लोक मे वास तेरा, कृष्ण के अधरों पर तुम रहती। बंसी की हे तान सुरीली, सरस्वती उसमें है बहती। किरण पर आशीर्वाद है तेरा, कविता का हे गान में करती। उनके चरणों में शीश झुकाऊ, तेरा गान हमेशा गावु। तेरी भक्ति नित्य में पाऊं। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय श...
पारितोषिक
कविता

पारितोषिक

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जाने के बाद, मेरा ये प्रेम ये स्नेह यादों मे सजाए रखना मैं वहीं पारितोषिक हूँ, जिसे पाने की चाहत में खो दिया तुमने बहुत कुछ खो रहे हो, समय, तन, मन धन और बहुत कुछ मैं तुम्हारी स्मृतियों में किसी पहाड़ी जीव की तरह कुलांचे भरता यहां वहां विचरण करता रहूँगा , मेरी उपस्थिति तुम्हें राहों में, गलियों,कूंचो में दिखाई देगी तुमने तो सजाया था मुझे अपने मुकुट के मान सा औरों को ना हो पाया कभी उसका भान सा मेरे आंसुओं को खारा पानी समझ झटका करते थे जो उनकी सोच में मेरे आंसुओं की मिठास बोओगे तुम सोचता रहा उम्र भर तरसता रहा प्रेम करुना, सम्मान को जिस, मधुकर रिश्ता बनाओगे, है विश्वास इस बात का ! जब मैं विदा लुंगी, लूँगा, महसूस करोगे मुझे किसी फूल सा, महाकाया जिसने था कभी कोई घर आँगन मेरी याद क...
कोशिश
कविता

कोशिश

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** कोशिश जब करते हैं मेहनत रंग ला जाती है हौसला गर कर गुजरने का पथ आसान हो जाती है दीपक स्वयं जलकर सब के जीवन को रौशन कर जाती है संघर्ष जितनी गहरी होती है परिणाम उतना ही शोर मचाती है कामयाबी जब मिलती है गुलशन में भी बहार आ जाते है ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksha...
तथागत
कविता

तथागत

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी पीड़ा को कभी समझ लो तथागत.... खुद को खुद से दुर करने में लगी हूँ मुझे खुद से कभी मिला दो तथागत.... संभलना नही आया मुझे अभी तक टुटने से पहले ही समेट लो तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी पीड़ा को कभी हर लो तथागत अंधेरी रातों से डर लगता है मुझे, तुम यूँ बिन बताएं घर से निकला न करों तथागत... राहें बहुत परेशानियों से भरी हुई है हाथ पकड़कर कांटों पर चलना सीखाओ तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी खामोशी को कभी सुन लो तथागत... अकेले जीवन गुजारना संभव नहीं बीतने से पहले हाथ थाम लो तथागत... मेरी गलियों से कभी तो गुजरों तथागत... यशोधरा राह तके अब घर लौट आओं तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... यशोधरा पुकारे कभी सुन लो तथागत... ...
अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे
कविता

अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आजादी की लड़ाई में भेदभाव रहित देशवासी झलकाये अनेकताओं में एकता स्नेह प्यार समन्वय, विश्वास आपस में था सबका साथ मिलकर सब लड़ते गए लम्बी लड़ाई देशवासी अहिंसा से लड़ने की अपनी अहम विशेषता दिखलाई विदेशियों की हिंसात्मक योजनाएं देशवासियों की एकता में पड़ी खटाई में, जमीन पर आई थके नहीं देशवासी लड़े गए अहिंसा की लड़ाई अंत तक नहीं तोड़े धैर्य हिम्मत सफलता की सीढ़ी पर ऊंचाई सीना तान चढ़ आई देशवासी ने अपनी हिम्मत बढ़ाई गाँधीजी का था अग्रणी कुशल नेतृत्व परास्त करने का सबने किया था अटल ब्रत संघर्षों में चलाया आपसी विचार विमर्श अंत तक सबने रखा प्रेम स्नेह एकमत देशवासी जब स्वतः कूदे पड़े जंग में नेस्तनाबूत शिथिल पड़ी वर्षो की गुलामी भारतीयों के मन में चढ़ आया उत्साह, उमंग, तरंग असहयोग का देशभर में हो गया संग ख...
वो समझ ना पाई
कविता

वो समझ ना पाई

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं, न वो इधर की, न वो उधर की समझी जाती हैं, हाँ वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं। उसको तो तुमने दो हिस्सो में बांटा हैं, जन्म से लेकर बीस वर्ष तक, तुमने नाजुक कली सा पाला हैं, अपने दिल के टुकड़े को, किसी और के हाथ थमाया हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं। तुम कहते हो, वो इस घर की बेटी हैं, वो कहते हैं, वो उस घर की बहू हैं, इसी में उसकी पहचान मिट जाती हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फंसी रहे जाती हैं। कली से फूल बन महका रही वो उपवन, गमो को पी के बढ़ा रही वो वंश, फिर भी, न जाने कहां है इसका अंत, तुम सब न समझ लिया है उसको, पर वो खुद को स...
हिंसा
कविता

हिंसा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************  धर्मनिरपेक्षता हिंसा को पहचान नहीं पा रही उकसावे में जल रही दुनिया या किसी की शह पर चल रही हिंसा की शतरंज चाले अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ाने वाले कबूतर के पंख जल चुके बेवजह की हिंसा में विकास की राहें साँप सीढ़ी के खेल समान होने लगी ऊपर तक पहुँचने पर हिंसा का साँप बेगुनाहों को काट लेता वो फिर जन धन की हानि के साथ वापस नीचे आ जाते कब रुकेगी हिंसा कौन रोकेगा हिंसा को हर बार भड़कने से भय के काले बादल छाए रहते धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में भाई तो है मगर चारा हिंसा में जलने लगा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में...
मेरे राम आ गए
कविता

मेरे राम आ गए

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जय-जय श्री राम। परम सुख के धाम।। जन-जन के सहारा। विष्णु के अवतारा।। राम में ही शक्ति है। राम में ही भक्ति है।। राम ही तो दृष्टि है। राम ही तो सृष्टि है।। राम नाम जपता हूँ। राम-राम कहता हूँ।। राम चारों धाम है। राम ही सत्य नाम है।। राम ही केशव है। राम ही तो माधव है।। राम नाम सार है। राम से ही संसार है।। राम ही तो धर्म है। राम ही तो कर्म है।। राम ही सगुण है। राम ही तो निर्गुण है।। राम में आस्था है। राम से ही वास्ता है।। राम में आशा है। राम तृप्त बिपाशा है।। अयोध्या में धूम मची। गली फूलों से सजी।। घी के दीप जल उठे। नगर में पटाखे फूटे।। राम से ही प्रेम है। राम नाम में सप्रेम है।। मेरे प्रभु राम आ गए। राम राज्य आ गए।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष रा...
अयोध्या से अयोध्याधाम
कविता

अयोध्या से अयोध्याधाम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज जब अयोध्या में राममंदिर का भव्य निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा का इंतजाम हो रहा है, तब अयोध्या के चहुंमुखी विकास का कार्य भी बड़े जोर शोर से आगे बढ़ रहा है। आज अयोध्या को दुनिया में अपनी गरिमा, उचित पहचान, स्थायित्व और सम्मान प्राप्त हो रहा है, राम और मंदिर-मस्जिद विवाद से कल तक अयोध्या जानी पहचानी जाती थी, आज अयोध्या राम, भव्य राम मंदिर और चहुँमुखी विकास से पहचानी जाने लगी है, राम जी के विग्रह की अब जब प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चल रही है। कोई माने या माने दुनिया तो मान रही है अयोध्या अब सिर्फ राममंदिर से नहीं अयोध्याधाम बन खूब इतराने लगी है। देश ही नहीं दुनिया भर में अब अयोध्याधाम अपनी चर्चा हर रोज हर पल कराने लगी है, बिना किसी घोषणा के ही अब तक की अयोध्या अयोध्याधाम ब...
अनसुलझी अजब पहेली
कविता

अनसुलझी अजब पहेली

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** कौन भटकता, घन जिसको? गगन कहाँ? कोना ना मिला! वह मिटी, धरा की प्यास बुझी, बगिया में सुंदर फूल खिला, सुमन देख, इठलता कौन? थपकी दे, लोरी गाता है, चुप रह चलते-हलके हलके, पलकन में मंद मुस्काता है। कौन बिछड़ के, तेज तपन से, फिर फिर बादल बन जाता, फूल कहीं मुरझा जाए! वह उमड-घुमड कर अकुलाता, बार-बार गिरि से टकराकर, कौन स्वयं मिट जाता है? दिखता है, जब फसल उगाये, फसल पके, कित जाता है? कौन है वो? कुछ भेद बताऊं, थोड़ा सा, संकेत बताऊं? ममता की क्षमता से निर्मल, दूध की सरिता बहती है, लल्ला बनकर पलना झूलें, देवों के मन में रहती है, अंजनी थी, हनुमान के लिए, राम की कौशल्या, हरि की जसोदा, बोलो जल्दी बोलो क्या तुमने सोचा? वह नहीं होती तो मैं नहीं होता? सारे मिलकर काम करें जो, कर लेती थी एक अकेली, पूरी उम्र समझ ना पाया, माँ, अन...
जाति की ख्याति
कविता

जाति की ख्याति

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जातियों के भीड़ में हर जगह नजर आ जाता है जाति, जिसके साये में रहकर ही लोग पाना चाहते हैं ख्याति, मुंह सुख गया हो और प्यास से तड़पने मरने की जब आ चुकी हो नौबत तब भी अपने से नीची माने जाने वाले लोगों के हाथों से पानी पीने से इंकार करते हुए देखा हूं लोगों को, काश ऐसे लोग मर ही जाते, क्यों इंसान को इंसान नहीं सुहाते, एक तरीके से पैदा होते, एक जैसे शरीर रखते, एक जैसे जिंदगी का स्वाद चखते, हर लम्हा एक सा गुजारते, पर एक दूजे को देख जाति की नजरों से निहारते, चीथड़ों में पड़ा व्यक्ति भी केवल जाति के कारण कुलीन सा दिखने वाले को देखता है हिराक़त की नजरों से, मुस्कान छोड़ गाली छोड़ते हैं अधरों से, ये किस तरह की समूह के लोग हैं, वो जाति ही एकमात्र आधार है नित अंगूठा काटने के लिए, इसने अब तक नफरत ...
सैनिक का प्रेम
कविता

सैनिक का प्रेम

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हाथों में यह कलम ना होती, निकलते न ये भाव, आंखें कभी ना रोती तन्हाई हमें यूं न चुभती, यदि तुम मेरे पास होती आने वाला पल याद तुम्हारी लाता है जाने वाला पर टीस पीछे छोड़ जाता है जितना चाहा तुम्हें भूलना उतना ही तुम याद आती हो तुम्हें याद करने की जरूरत ना होती यदि तुम मेरे पास होती तुम्हें कुछ लिखना चाहा, जब भी मैंने भावों को शब्दों में ना बांध पाया दिल की आवाज सुन लेती आंखों की जुबान समझ लेती यदि तुम मेरे पास होती बाहों में तुझे ले लूँ, चाह ये बार-बार होती दामन में तेरे, सर रख रोता सिंदूर मांग में तेरी भर देता सोचते-सोचते दिन कितने गुजर गए हालत हमारी यूं ना होती यदि तुम मेरे पास होती।। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा...
मैं तेरे दिल का टुकड़ा
कविता

मैं तेरे दिल का टुकड़ा

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** बाबा मैं तेरे दिल का टुकड़ा, तेरा ही अंश तेरा ही मुखड़ा। करना नही दूर मुझे ह्रदय से, बाटूंगी सब मुश्किल दुखड़ा।। सदैव रखूंगी लाज दामन की, रहूंगी तुलसी तेरे आंगन की। समझना नही बोझ कभी तुम, मैं बाती तेरे उरदीप पावन की।। होती नही बिटिया धन पराया, बिन बेटी कौन वंश मुस्काया। बेटी से ही ब्रह्मण्ड में हलचल, रच बिटिया विधना मदमाया।। बिन बिटिया जीवन सूना है, लगता भाग्य भी जैसे ऊना है। गूंजे जिस घर प्रहास बेटी की, सौभाग्य बड़ा, सम्मान दूना है।। विदाई का जब आये वक़्त, लेना छाती कुछ कर सख़्त। तेरे सपनों के सुमन खिलेंगे गर्वित होगा तेरा पुनीत रक्त।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं ...
जीवन का सत्य
गीत

जीवन का सत्य

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन का तो अंत सुनिश्चित, मुक्तिधाम यह कहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। रीति, नीति से जीने में ही, देखो नित्य भलाई है। दूर कर सको तो तुम कर दो, जो भी साथ बुराई है।। नेहभाव ही सद्गुण बनकर, पावनता को गहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। मुक्तिधाम में सत्य समाया, बात को समझो आज। साँसें तो बस गिनी-चुनी हैं, मौत का तय है राज।। बड़ा सफ़र है मुक्तिधाम का, मोक्ष को तो जो दुहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। रहे मुक्ति की चाहत सबको, सच्चाई को जानो। मोक्ष मिले यह जीवन जीकर, बात समझ लो, मानो।। कितना भी हो बड़ा राज्य पर, कालचक्र में ढहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। मुक्तिधाम तो बड़ा तीर्थ है, सबको जाना होगा। ...
श्री राम
भजन

श्री राम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभु राम का आभार है, हो सृष्टि पालन हार। निष्ठा रखें हैं न्याय में, प्रभु धर्म के आधार।। करुणा हृदय बसती प्रभो, करते तिमिर का नाश। रघुकुल शिरोमणि राम हैं, वो तोड़ दें यम पाश।। संबल हमें देते प्रभो, रामा गुणों की खान। मैं हूँ पुजारिन राम की, रघुवर मुझे पहचान।। रघुनाथ तेरी दास मैं, दे दो जरा उपहार। टूटे नहीं विश्वास है, रघुवर रखो अब ध्यान। नारी अहिल्या तारते, करते सदा सम्मान।। देते सुखों की छाँव है, रघुवर प्रभो वरदान। पावन धरा की राम ने, करते सभी गुणगान।। नायक जगत के आप हैं, कर स्वप्न भी साकार।। वंदन करे नित आपका, आकर प्रभो अब थाम। चरणों पड़े तेरे सदा, दातार प्यारे राम।। शबरी कहे रघुवर सुनो, पहुँचा जरा अब धाम। आशीष दो स्वामी मुझे, जपती रहूँ नित नाम।। छाया मिले सुख की हमें, उत्तम मिले संस्कार।।...
बुझने न पाए मशाल तेरी
कविता

बुझने न पाए मशाल तेरी

निर्मला द्विवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अब तो दम घुटने लगा, सुन शहर तेरी हवाओं में। छल कपट की राहें, बस दौलत शोहरत की बातों में। खुद की ही जय जयकार बस खुद की परवाहों में। चुभती है मेरी लेखनी भी, अब बहुतों के सीने में। नहीं किसी की खैर खबर, ना किसी से लेना देना। खुद की दुनिया में, बस खुद के लिए ही जीना। जब तक खुद के साथ ना बीते, तब तक आंख ना खुलती। जो जितना झूठ है बोले उसकी उतनी जय जयकार होती। जितना बड़ा धोखेबाज है उतनी ही बड़ी साहूकारी है। जो परिवार और रिश्ते तोड़े, वही सच्चा हितकारी है। जो जितना ज्यादा पापी, वही सबसे ज्यादा मीठा बोले। चापलूसी के धंधे हैं सबसे ज्यादा चालें खेले । जिनकी आंखों से बहते हैं मगरमच्छ के आंसू। वही कहलाते बेचारे जो होते सबसे धांसू जिसने अपना घर फूंका, औरों को राह दिखाने को। वही बना बेवकूफ, लिखी किस्मत जग हंसाने...
गणतंत्र दिवस अमर रहें
कविता

गणतंत्र दिवस अमर रहें

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** गणतंत्र दिवस अमर रहें। आओ फहराएं तिरंगा फर-फर, आन बान और शान है तिरंगा, सदा इनका सम्मान करें।। आजादी की अमृत महोत्सव, घर-घर तिरंगा, हर घर तिरंगा। भारत मां की वीर सपूतों को, सौ-सौ बार हम नमन करें।। सत्य, अहिंसा, अमन, शांति का, जिसने दिया है सुन्दर सा पैगाम। तहे दिल से सादर करते है प्रणाम, देश भक्ती की अविरल धारा को सत्कार करें।। शत्-शत् नमन है उन महापुरुषों को, जिन्होनें अपने प्राणों की दी है बलिदानी । वंदे मातरम, जय हिंद, जय भारत, गणतंत्र दिवस अमर रहें हम सभी गुनगान करें।। आसमान से ऊॅ॑चा हमारा जहान है, सारे जहां से अच्छा हमारा हिंदुस्तान है। भारत माता की जय तिरंगे झंडे की जय, मिल जुलकर हम सब गीत गान करें।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद ...
तेरे जाने के बाद
कविता

तेरे जाने के बाद

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** आयेगी बहुत तेरी याद तेरे जाने के बाद। दिल करेगा फ़रियाद तेरे जाने के बाद। ****** जब जाना था छोड़कर तो आई ही क्यों थी। जब साथ नहीं था निभाना तो आई ही क्यों थी। ****** ये तेरी बेवफाई हमें बहुत तड़पायेगी। दिन तो कैसे भी कट जायेगा रात नहीं गुजर पायेगी। ****** सच्चा प्यार करने वाले दूसरे के लिये जान देते है। खुद को तन्हा कर दूसरे का जीवन गुलजार कर देते है। ****** मेरा दिल तेरी अमानत है। नही रहेगा दूसरा कोई तेरे जाने के बाद। ****** नहीं भुला पाऊंगा कभी तुम्हारी याद। मरते दम तक तुमको करता रहूंगा याद। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
समझ ना पाई
कविता

समझ ना पाई

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं, न वो इधर की, न वो उधर की समझी जाती हैं, हाँ वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं। उसको तो तुमने दो हिस्सो में बांटा हैं, जन्म से लेकर बीस वर्ष तक, तुमने नाजुक कली सा पाला हैं, अपने दिल के टुकड़े को, किसी और के हाथ थमाया हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं। तुम कहते हो, वो इस घर की बेटी हैं, वो कहते हैं, वो उस घर की बहू हैं, इसी में उसकी पहचान मिट जाती हैं, तुम सब न समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं। कली से फूल बन महका रही वो उपवन, गमो को पी के बढ़ा रही वो वंश, फिर भी, न जाने कहा है इसका अंत, तुम सब न समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई है, वो बीच मझधार मे...
राम अयोध्या लौटे हैं
कविता

राम अयोध्या लौटे हैं

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** जो हाथ लगायेगा सीता को वह रावण मारा जायेगा। राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा। सदियों से शोषित पीड़ित जो वह स्वाभिमान पा जायेंगे। शोषण करने वालों पर कोड़े बरसाए जायेंगे। दीप जलेंगे खुशियों के गम के बादल छंट जायेंगे। जातिवाद और ऊंच नीच के सब गड्ढे पट जायेंगे। अब ना होगा जुल्म किसी पर जुल्मी मारा जायेगा। राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा। रिश्वतखोरी और दलाली अब ना होगी थानों पर। रोक लगेगी भारत भर के मक्कारों बेईमानों पर। बालाएं अब घूम सकेंगी मेलों में बाजारों में। दुष्कर्म नहीं हो पाएंगे अब ट्रेन बसों व कारों में। राहजनी और लूटपाट अब कोई नहीं कर पायेगा। राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा। हर मानव अब सच बोलेगा अब सतयुग फिर से लौटेगा । झूठ बोलने वाला कोई दूर-दूर तक ...
रामराज्य लाते हैं
कविता

रामराज्य लाते हैं

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** आओ सनातनियों हम सब मिल-जुल कर, एक बार फिर से भारत में रामराज्य लाते हैं। ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, जात-पात का, भेद मिटाकर चलो सबको गले लगाते हैं। नफरत और द्वेष को मन से दूर भगाकर आपसी अनुराग का गीत गुनगुनाते हैं। अपनी जिह्वा और वाणी में मिठास घोल, श्री राम के अवध लौटने का उत्सव मनाते हैं। हर घर, हर आंगन हो खुशियों में डूबा, पुष्प और दीपों से अवध को ऐसे सजाते हैं। करके मानवता की सेवा सारी दुनिया में, अपने आराध्य राम-नाम का ध्वज फहराते हैं। कितनी भी विकट हो स्थिति, या बिगड़े काम, उनके स्मरण से अटके हर काम बन जाते हैं। पूरे ब्रह्मांड में हम सब भारतवासी मिलके, 'जय श्री राम' के जयकारों की गूंज फैलाते हैं। पाठ्यक्रम में छोड़कर अकबर-बाबर को, बच्चों को रामायण-गीता के पाठ पढ़ाते हैं। आओ सनातनियों हम सब मिल-जुल क...
जिसका रहा ध्येय जीवन में
कविता

जिसका रहा ध्येय जीवन में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसका रहा ध्येय जीवन में, परमपिता को पाना। ज्ञानवान वह मानव जग में, जिसने खुद को जाना। उत्तम ध्येय सभी को जग में, है सम्मान दिलाता। हृदय सरोवर में, खुशियों के, सुरभित कमल खिलाता। रहा ध्येय जिनका जीवन में, बनें, दीन हितकारी। उनकी जीवन नैया हरदम, प्रभु ने पार उतारी। मन में ध्येय, देश सेवा का, जो मानव रखते हैं। शौर्य,पराक्रम दिखा, विजय का, स्वाद वही चखते हैं। जिनका ध्येय परम पद पाना, वही परम पद पाते। शबरी की महिमा मानस में, बाबा तुलसी गाते। जनहितकारी ध्येय जगत में, पूजनीय होता है। जिसका ध्येय अपावन होता, यश वैभव खोता है। रख,शुभ ध्येय, विभीषण जी ने, शरण राम की पाई। अशुभ ध्येय रख, दशकंधर ने, अपनी जान गवाँई। सदा सर्वदा निज जीवन में, पावन ध्येय बनाएं। पावन ध्येय प्राप्त करने को, प्रभु ...