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पद्य

दीपोत्सव
कविता

दीपोत्सव

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में दीपोत्सव की धुम मची हैं हर पथ वन्दन वार सजे। पवन सग केसरिया पताका लहराये गीत गाते राग मल्हार। आंगन, द्वारे, चौखट सजे रंग, रंगोली से करते मां लक्ष्मी का सत्कार। रंग रंगीली छटा बिखेरे दिपो की झिलमिल प्यारी ऐसे लगता मानों लक्ष्मीजी के पग पखारती। मिष्ठान्नों से पात्र भरे हैं। मां अन्नपूर्णा लगे न्यारी उत्साह, उमंग से भरी सजधज कर लगती नारी शक्ति गृह लक्ष्मी। सभी लेखक बंधु, भगिनी एवं सम्पादक महोदय को दिपावली पर्व की शुभकामनाएं स्वस्थ रहें, ख़ूब लेखनी चलाएं ...। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...
पाती एक जीव की
कविता

पाती एक जीव की

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** इंसानो ने पत्थर का कलेजा बनाया होगा तभी उसमें इतनी नफरत, क्रोध, हिंसा को समाया होगा, हम हैं एक जीव ये भूल गया होगा हमे भी उसके जैसे ईश्वर ने ही बनाया होगा! भूल गया इंसान हमारे वज़ूद को नहीं होता आभास हमारे दर्द भरी पुकारों का!, हम तरसते रहते थोड़े से प्यार और ममता के लिए, घायल तन, व्यथित मन बोझिल कदम लिए, कभी तो हमारे अस्तित्व का उनको संज्ञान होगा, उनके दिलों में हमारे लिए भी करुणा और प्यार होगा! चोट नहीं, दुत्कार नहीं, स्नेह का दीपक कभी तो जलाया होगा!! हे मानव तुम मे से ही कोई मसीहा कहीं जगा होगा, हमारे दर्द भरी कराहटों को सुना होगा, प्यार के मलहम से हमे संवारा होगा उस मसीहा ने ही धरती पर हम सबके संरक्षण का प्रण लिया होगा, तभी तो बच पाए हैं हम "जानवर" इस धरती पर हम में भी...
मुलाकात अपने आप से
कविता

मुलाकात अपने आप से

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मैं सोचता हूँ, कभी मुलाकात कर लूँ अपने आप से। पकड़ लूँ गिरेबान और मिला लूँ आंखे अपने अहम से। मैं हूं बड़ा बदतमीजी, कूट-कूट कर भरा है अभिमान मुझ में। बस पहचान का फितूर चढ़ा है खाली दिमाग में। ईर्ष्या द्वेष द्वन्द्व जैसे साथी संग खड़े हैं मन के मरुस्थल में। है विडम्बना कैसी, मेरे मन से कम खारापन सागर में। मैं अपनी बतला दूं, नैतिकता कहीं दूर खड़ी भाव-भावना बिखरी सी। गुण पर भारी अवगुण, दग्ध हृदय संताप भरा जीवन लीला घिरणी सी। खंडित आभासी वैभव, मोह माया संलिप्त दम्भ में ऐंठे रहता हूं। लघुतर मानू और को, मैं मगरूर आत्मश्लघा अहं में डूबा रहता हूं। मैं सोचता हूँ, कभी मुलाकात कर लूँ अपने आप से। पकड़ लूँ गिरेबान और मिला लूँ आँखें अपने आप से। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान स...
प्यार की पहली नज़र
कविता

प्यार की पहली नज़र

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** उस नज़र के सदके जाऊं जब तुमसे प्यार हुआ। उस नज़र पर कुर्बान जाऊं जब तुम्हारा दीदार हुआ। ******* जब देखा तुम्हे पहली बार हम सुध-बुध खो बैठे। पहिली नज़र में ही अपना दिल हार बैठे। ******* तुम्हारे कातिल नयनों ने किया था मुझे घायल देख के तुम्हारा सौंदर्य मैं हो गया था पागल। ******* तुम्हारे नयन नक्शे पर मैं फिदा हो गया। खुद से तुमको आज तक जुदा नही कर पाया। ******* मत ऐसे सज-संवर के निकला करो बाजार में। हम अपना सब कुछ लूटा देंगे तुम्हारे प्यार में। ******* प्यार की पहली नज़र का भूत अभी तक मुझपर चढ़ा है। परन्तु उसकी तरफ से एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः ...
तुम अब वापस आओ
कविता

तुम अब वापस आओ

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** (यहां लड्डू एक छोटा बालक है, जो माता-पिता से एक अनुरोध कर रहा है कि उसके खातिर अपने रिश्ते कभी ना तोड़े) मम्मा तुम अब वापस आओ, अपने लड्डू को गले लगाओ। अगर हुई है पप्पा से तू-तू, मैं-मैं, उससे तुम मुझे ना बिसराओं।। पप्पा माफी मांगे तो माफ करना, आंख दिखा उनको सचेत करना। आपसी झगड़े में मम्मा-पप्पा, अपने लड्डू को भूल ना जाना।। पप्पा ने कहा यदि कुछ मम्मा को, या मम्मा ने कुछ कहा पप्पा को। भूल कहासुनी में कही बातों को, प्यार देना अपने इस लड्डू को। मम्मा पप्पा आपसी झगड़ों से, मैं होऊंगा एक प्रेम से वंचित। मां मैं हूं आप दोनों का लड्डू , क्यों रहूं फिर प्रेम से बंधित।। पप्पा-मम्मा रिश्ते तोड़ने के पहले, इस लड्डू का ख्याल कर लेना। सपने देखें थे आपने जो मेरे संग, मिलकर उसे पूरा कर देना। मम्मा मेरे खातिर रि...
समय
दोहा

समय

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मन में चिंतन कीजिए, इसका कितना मोल। व्यर्थ न जानें दीजिए, समय बड़ा अनमोल।। आगत को सिर धारिए, सुख-दुख जो भी होय। समय-समय का फेर है, आज हँसे कल रोय ।। समय आज का कल बनें, कल बन जाये आज। पहिया इसका चल रहा, यही काल सरताज।। वापस ये आये नहीं, एक बार बित जाय। मुठ्ठी रेत फिसल रही, हाथ मले रह जाय।। अविरल ये धारा बहे, कोई रोक न पाय। अगर समय ठहरा रहे, तो सब कुछ बह जाय।। समय को गुरू जानिए, देता जीवन सीख। कभी नीम सा स्वाद है, कभी मिठाये ईख।। राजा रंक बना दिये, रंक बने धनवान। मान समय का कीजिए, कहते संत-सुजान।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
बांके बिहारी की महिमा
स्तुति

बांके बिहारी की महिमा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मेरे बांके बिहारी दयालु बहुत, दर बुलाकर है दर्शन का अवसर दिया। वो हैं करुणामई, भक्तवत्सल भी हैं, जिसने जो कुछ भी मांगा, वही दे दिया। मेरे बांके... आप यों ही बुलाते रहोगे अगर, मेरे पहले के सब पाप, कट जाएंगे। दरस पाकर तो, निर्मल बनेगा ही मन, पाप की राह पर,फिर नहीं जाएंगे। तेरी औरा की डोरी से यदि बंध गए, फिर कहीं भी लगेगा, न मेरा जिया। मेरे बांके... तुम बुलाते जिन्हें, वो ही आ पाते हैं, पा के दर्शन, छवि मन को भा जाती है। जाते घर को तो, मन छूट जाता यहां, सोते जगते, तेरी याद ही आती है। तुम सलोने हो, करुणामई हो बहुत, खुद बतादो, कि क्यों ऐसा जादू किया। मेरे बांके... तेरे महिमा को, लिखने का मन कर रहा, भाव दोगे तुम ही, तो ही लिख पाऊंगा। तेरी वंशी की धुन है मधुर, कर्णप्रिय, दोगे स्वर ज्ञान, तो ही तो गा पाऊं...
ढूँढ रही हैं आँखें किस को
कविता

ढूँढ रही हैं आँखें किस को

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ढूँढ रही हैं आँखें किस को क्या खोया कुछ खबर नहीं है. भटकन-तड़पन-बेचैनी है सब है लेकिन सबर नहीं है। क्या ऐसा था गुमा दिया जो जिसको ढूँढ रही हैं आँखें ग़लत दिशा में हो बाहर की बाहर कोई डगर नहीं है। खुद में ही खुद मंजिल अपनी खुद में ही खुद रस्ता अपना जो खोया खुद में खोया है किसी शहर किसी नगर नहीं है। कैसी तुम को बेचैनी है पहले खुद में खुद पहचानों कैसी भी आफ़त हो खुद में आखिर खुद से जबर नहीं है। ग़ाफ़िल-सा दौड़े खुद में ही खुद का कोई होश नहीं है ज़रा सुकूँ भी पा नहीं पाओ जो गर खुद में ठहर नहीं है। कुछ न कुछ तो खोया लगता कुछ न कुछ असआर ग़लत हैं या तो ये फिर ग़ज़ल नहीं है या फिर इसमें बहर नहीं है। क्या चाहा क्या पा जाओगे क्या मर्ज़ी का जी जाओगे? मरे-मरे जीना पड़ता है यहाँ हौसल...
सरल ह्रदय छला जाता है
कविता

सरल ह्रदय छला जाता है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक दिन बदल जाता है सच्चा मन भी बार-२ दोष दो बदल जाता जीवन भी बदलाव से सहजता ही चला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है मानस के मति की अब कहनी क्या है जीवन समर की आगे नियति क्या है चंचल मन जो वक़्त पर बदल जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है जीवन बन गया क्या कठपुतली जैसा आरम्भ क्या और इसका अंत ये कैसा जो दूसरों के इशारे कैसे चला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है छलते है लोग जब तक है आप सरल छलाते हुये अक्सर पी लेते कटु गरल खेला किसी के मन से खेला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है सरल हृदय जब पत्थर जैसे बन जाता सहजता सारी मानस से निकल जाता अब उसे ही पत्थर दिल कहा जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है सच की राह मे चलने से डरते है लोग आडम्बर और दिखावे मे उलझें लोग सच नहीं...
दीप जलाओ
गीत

दीप जलाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मन में तुम यदि दीप जलाओ, तो मिट जाये उलझन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीप दिखाता मानवता-पथ, रीति-नीति सिखलाता। साँच-झूठ में भेद बताता, जीवन-सुमन खिलाता।। अंतर्मन जो दीप जलाते, उनका महके आँगन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक की तो महिमा न्यारी, चमत्कार करता है। पोषित होता जहाँ उजाला, वहाँ सुयश बहता है।। शुभ-मंगल के मेले लगते, जीवन बनता मधुवन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक में तो सत् रहता है, जो दिल पावन करता। अंतर को जो आनंदित कर, खुशियों से है भरता।। दीपक तो देवत्व दिलाता, कर दे समां सुहावन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक से तो नित्य दिवाली, नगर- बस्तियाँ शोभित। उजला आँगन बने देव दर, सब कुछ होता सुरभित।। अंत...
देखिए अनंत
गीत

देखिए अनंत

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** होती कथा बुराई की तो, देखिए अनंत। क्या इसका कभी नहीं होगा, कोई भी अंत। कुछ भी कहाँ बदलाव आया, अब लो पहचान। वही राजा वही रानी हैं, चारण का गान।। चरित्र मिले हैं शकुनि जैसे, जानो श्रीमंत। कब होता यह प्रेम पुराना, मेरे मनमीत। सुर सरगम ताल वही अब और प्रेमगीत।। भूलें अपनी शकुंतला को, उसके दुष्यंत। त्रेता युग का कपटी रावण, बसता भी आज। करे हरण बस सीता का वो, नहीं और काज।। खाते मंदिर का चढ़ावा, बदले क्या संत। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभ...
अमूल्य रत्न ..
कविता

अमूल्य रत्न ..

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** अट्ठाईस दिसम्बर सन सैंतीस, अवतरण नवल निकुंज, बिखरा जननी सोनू के दामन, अत्युत्तम प्रकाश पुंज। उद्योग जगत क़े अमूल्य रत्न थे, ये दानवीर रतन टाटा, मानवार्थ रहते थे सदैव समर्पित, भुला व्यापार में घाटा। भारतीय उद्योग जगत का जग ने, लोहा माना था सहर्ष, सूई से लेकर हवाई जहाज तक, भारत ने किया उत्कर्ष। पायी शिक्षा स्नातक रतन ने, कार्नेल विश्वविद्यालय से, पचास मिलियन डालर दान की, रख भाव हिमालय से। कम मूल्य पर "टाटा नैनो" लाए, हो उठे उपभोक्ता मगन कर्मपथ पर चलकर ही बनता, स्वर्णिम सबका जीवन। अविवाहित रहना रतन जी का, हर मन को खल गया, शायद किसी की यादों में ही, जीवन सारा निकल गया। पदम् विभूषण, पद्म भूषण से, अलंकृत थे रतन टाटा, नैस्कॉम ग्लोबल लीडरशिप से, शोभित रहे रतन टाटा। नों अक्ट...
आज के आज
कविता

आज के आज

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** देखता हूं आज का काम आज, बेवजह पाल के नहीं रखा हूं रिवाज, हाड़तोड़ मेहनत दिन भर की करता हूं, देखता हूं आज को कल पर नहीं विचरता हूं, दुनिया के लोग कहते हैं 'कल किसने देखा', मुझे कल को देखने की जरूरत भी नहीं, तभी चैन की नींद सो पाता हूं, ज्यादा लंबा दिमाग नहीं लगाता हूं, यदि नींद ही नहीं होगी, तो बन सकता हूं रोगी, अतः मुझे रोग नहीं पालना, आज का आज कल पर नहीं डालना, कल के बारे में सोचने के लिए दुनिया में भरे हैं और लोग, चिंता से उबर नहीं पाते भले ही खाएं छप्पन भोग, न किसी देवता से आस न किसी काले जादू का डर, क्योंकि हमें फुरसत नहीं दिन भर, काम कर अपनी उमर बढ़ाता हूं, बचत,निवेश और टैक्स चोरी की संभावित झंझट में नहीं आता हूं, मरने का डर नहीं तभी तो जीना आता है, डरपोक दिन में कई कई ब...
धर्मयुद्ध
कविता

धर्मयुद्ध

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** धर्मयुद्ध के महासंग्राम में सत्य सदा अजेय रहा। रणभेरी बजेगी, अब धर्म युद्ध का घोष करो। खुद को तुम निर्दोष करो। जो धर्म के साथ खड़ा रहा वह योद्धा रहा। रण में अब कूद पड़ो। शंखनाद करो, तुम प्राचीरों से धर्म युद्ध अविलंब करो। कौन कहता है, महाभारत का युद्ध था। वह तो सिर्फ धर्मयुद्ध का जयघोष रहा। धर्म युद्ध अब सज रहा, सारथी मार्ग प्रशस्त करो। कारण जो भी हो, सच के साथ कृष्ण सदा खड़ा रहा। इतिहास कहता है, धर्म युद्ध में सत्य का प्रहार रहा। चाहे विजय मिले या हर मिले, सत्य कर्म का युद्ध रहे। चाहे वीरगति मिले या विजय मिले, धर्म रक्षा के लिए तू अब क्यों बैठा है। धर्म के साथ जो न रहा, वह धर्म युद्ध के विरुद्ध रहा। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्व...
आदर्श
कविता

आदर्श

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आदर्श युवा की पहचान जैसे अब कम दिखाई देती बुरे व्यवसनो की बेड़ियों ने शायद जकड़ रखा हो। युवा समाज का उत्थान करना चाहे तो क्या और कैसे करें कोई नही बताता। युवा को तलाश है जागरूकता के तरकश की जिसमे पड़े तीर को भी इंतजार है व्यवसन रूपी राक्षस को मारने का कोई तो आएगा युवाओं को आदर्श का पाठ पढ़ाने जो व्यवसन मुक्त कर समाज के युवाओं का उत्थान कर सकें। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर...
ज्ञान एवं अज्ञानता
कविता

ज्ञान एवं अज्ञानता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** ज्ञानी-अज्ञानी में केवल एक मात्रा का अन्तर है जो मनुष्य के साथ निरंतर है ज्ञानी मृत्यु की वास्तविकता को सहज रूप मे लेता है अज्ञानी संसारी होता है मृत्यु पर क्रंदन करता है! ज्ञान रोने के कारण को मिटा देता है अज्ञान नित नए रोने के कारणों में उलझता जाता है , ज्ञानी हर परिस्थिति में प्रसन्नचित्त होता है वो जानता है समझता है, जो कुछ भी छूट रहा वो मेरा नहीं इस जनम में कुछ भी "मेरा-तेरा" नहीं एक अखंड सत्य है आत्मा का आना जाना परिवर्तन, शाश्वत सत्य है, समझता है! संसारी रूदन करता है, जो कुछ मिला वो उसे अपना अधिकार समझ, स्वयं के परिणामों के फलस्वरुप प्राप्त किया, यही समझता है, जो कुछ छूट रहा उस पर अपना ही प्रभुत्व मान रुदन करता है, यही ज्ञानी-अज्ञानी में भेद का कारण होता है यही अशांति क...
कंचन मृग छलता है अब भी
गीत

कंचन मृग छलता है अब भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
करवा चौथ
गीत

करवा चौथ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** करवा चौथ सुहाना व्रत है, जिसमें जीवन-नूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। करवा चौथ पे भाव समर्पित, व्रत सुहाग की खातिर। अंतर्मन में पावनता है, पातिव्रत जगजाहिर।। चंदा देखे से व्रत पूरा, पति-कर जल-दस्तूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथेकी, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बजती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, क...
रोज़ रात की नींद चुरावे
कही-मुकरी

रोज़ रात की नींद चुरावे

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** १ रोज़ रात की नींद चुरावे, आंख लगे आंखों में आवे। लगता जैसे कोई अपना, क्या सखि साजन? ना सखि सपना।। २ बिन काटे मज़ा नही आए, काटें तो नैना भर आए। समझ ना आये उसका राज, क्या सखि साजन? ना सखी प्याज।। ३ बढ़ाए जग में सदा सम्मान, कर सकता न कोई अपमान। लगे उसके बिन जीवन व्यर्थ, क्या सखि साजन? ना सखी अर्थ।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं,...
जब भावों में जीते हो
कविता

जब भावों में जीते हो

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब भावों में जीते हो तो जीवंत हो, हृदय में हो जब विचार में जीते हो मूर्छा में हो, मस्तिष्क में हो। हृदय और बुद्धि एक नही हृदय आपका स्वभाव है उसका अनुभव सत्य का अनुभव है उसकी सुनना ही वास्तविक धर्म है जब बुद्धि में जीते हो बुद्धि से निर्णय लेते हो तब अस्तित्व की अनंत संभावनाओं से चूक जाते हो बुद्धि का और प्रेम का कोई संबंध ही नहीं. बुद्धिमान, चालाक और चतुर प्रेम कर ही नही सकते वे प्रेमी हो ही नही सकते उनके लिए प्रेम व्यर्थ है वे बुद्धि के तल पे जीते हैं लाभ और हानि के गणित में पड़ते हैं और प्रेम से चूक जाते हैं उनके लिए भावजगत संवेदना का जगत निर्मूल्य है महत्वहीन है। वे एक नीरसता भरे जीवन में अकेली पड़ गई आत्माए हैं जो मृत मुर्दा वस्तुओ के लोभ से ग्रसित हैं वे मरणासन्न हैं, य...
सही मैं हमेशा से हूं
कविता

सही मैं हमेशा से हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुझे बचपन से छोड़ दिया गया था अपनों से दूर गैरों के घर, मजबूरन हो रहा था मेरा बसर, मेरे ही पिता का दिया वे भी खा रहे थे, पर मुझे हरामखोर कह नित गरिया रहे थे, खैर मुझे सहना ही था, उन्हीं के साये में रहना ही था, दूसरों के घर रहना खाना मेरी गलती नहीं थी, बड़ा हुआ तो देखा हालात बदला हुआ, भावनाएं अभी था मचला हुआ, लगना पड़ा घर को संभालना, सभी सदस्यों को काम कर पालना, विवाह, बच्चे के बाद भी कोई सुख नहीं देखे, नहीं चिंता गांव समाज को लेके, पढ़ा लिखा था तो मिला नौकरी, करने लगा सरकारी चाकरी, न कोई बुराई न कोई लत था, बताओ मैं कहां गलत था, संपूर्ण परिवार को खुद संभाला, सबने अलग कर घर से निकाला, बराबर होती रही बुराई, किसी को याद न रहा मेहनत और कमाई, आई रिश्तों में दरार और गफ़लत था, आप ह...
वाचाल सफर
कविता

वाचाल सफर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौन रास्तो का वाचल सफर किनारे झाड़ियों के झुरमुट का अथकार ठिठुरती देह को न अलाव हैं न ठहराव खुली किताब है जिंदगी अपनों के लिये कारवां के ठहराव का प्रश्न नहीं उठता। चलते राहें कदम को रोकना, टोकना नामुमकिन है पर रास्तों के मोड़ चिर निद्रा से जगाकर अतीत की गहराईयों में ले जाते हैं कोई नहीं जानता, न जानना चाहता है न सोचना की सत्य क्या है पुनः समानांतर राह पर आकर झंझावावातो के चकृवातो में फंस जाता है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से ध...
लाठी
कविता

लाठी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** बाल कविता कुत्ता पीछे पड़ा दिखा धरती पर पटक जड़ी लाठी। प्राण बचा कर कुत्ता भागा लेकिन खड़ी पड़ी लाठी।। झुकती नहीं टूट जाती है अक्सर बहुत कड़ी लाठी। टुकड़े-टुकड़े हो जाती है कहते रहो लड़ी लाठी।। जब से टूट गई दादा की लकड़ी की तगड़ी लाठी। दादीजी मोटू से बोली ले आ नई छड़ी लाठी।। छोटू-मोटू दोनों भाई लेने चले बड़ी लाठी। धीरे-धीरे चले देखते कहाँ मिले कुबड़ी-लाठी।। बाँसों का बाजार लगा था,बिकती जहांँ छड़ी लाठी। एक परखने को हाथों में मोटू ने पकड़ी लाठी।। उन्हीं लाठियों में लोहे से देखी मूँठ जड़ी लाठी। छोटू बोला यह खरीद लो मोटू तुम तगड़ी लाठी।। छोटी नहीं मिलेगी मोटू ले लो यही बड़ी लाठी। दादा जी के लिए सहारा होती है कुबड़ी-लाठी। लाठी लेकर घर जब पहुँचे कर दी द्वार खड़ी लाठी। दादा खुश हो गए दे...
विराम
दोहा

विराम

हेमलता भारद्वाज "डाली" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो विराम करते नहीं, योगी वही महान। नित विकास के दिन वही, होते स्वर्ण समान।। मन उदास हो तो कभी, करना नहीं विराम। मन पसंद धुन को सुने, देख नयनाभिराम।। जो पथिक लेता कभी, पथ में नहीं विराम। तो सुलक्ष्य के साथ ही, मिले सफलता धाम।। जो विराम कर लिया कभी, होता वहीं प्रमाद। फिर विकास होता नहीं, मिलता नहीं प्रसाद।। परिचय : हेमलता भारद्वाज "डाली" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : योग प्रशिक्षिका, कवियित्री एवं लेखिका रुचि : संगीत, नृत्य, खेल, चित्रकारी और लेख कविताएँ लिखना। साहित्यिक : "वर्णावली छंदमय ग्रंथ"- (साझा संकलन), आगामी साझा संकलन- "छंदमय वृहद व्याकरण", आलेख एवं कविताएँ अखबारों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
ऐ ! चौथ के चांद
कविता

ऐ ! चौथ के चांद

निरूपमा त्रिवेदी "नीर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐ ! चौथ के चांद तुम आना हर साल लाना आशीष साथ करूं मैं पूजन उपवास दमके बिंदिया मेरे भाल लगाके मेहंदी अपने हाथ सजा के टीका भी माथ पहन के नथ सुहाग ओढ़कर चुनरिया लाल खनकाऊं चूड़ियां हाथ पहनूं पायल बिछिया पांव मंगलसूत्र रहे सदा साथ नैनन लगा कजरा केश सजाऊं गजरा पिया का पाऊं संग प्रीत का घुले रंग गले में बाहों का हार मिले सजना का प्यार रहे मेरा सुहाग अमर सजाऊं मांग सदा सिंदूर परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी "नीर" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...