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पद्य

मौसम के तेवर
गीत

मौसम के तेवर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बदले हैं मौसम के तेवर, गुम वसंत के रंग। संदेहों की कुसुमित बगिया, तंत्र पिये है भंग।। लोभ मोह की काल कोठरी, टूटी हर दीवार। बेटे रहते अब विदेश में, उर सिरजे अंगार।। रोज़ बुढ़ापा घुटने टेके, कटती आस पतंग। पॉलीथिन में लुप्त हो गई, मृत नदिया की धार। नयी सदी की बात नयी है, हुई जीवनी भार।। दहक रहे दिन रातें सूनी, बदले सारे ढंग। बहुमंजिल इन इमारतों में, टोटे पड़ते धूप। झोपड़ियों की हवा छीनकर, एसी सोते भूप।। मकड़ी के जाले सपनों पर, टूट रहा हर अंग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिल...
गुरु चालीसा
गीत

गुरु चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** जय जय जय शिक्षा के दाता। कृपा करो आशीष प्रदाता।। तुम सागर हों गुरु ज्ञान के। सबको देते हों ज्ञान अपार।। बुद्धि विवेक जो भी चाहें। गुरु सेवा में ध्यान लगाए।। गुरु मंत्र जो कोई भी जपता। जीवन में सफल सदा रहता।। अनपढ़ को भी ज्ञान देकर। तुम बना देते हो यू विद्वान।। तुम पर हैं हम सबको गुमान। तुम ही करते हों ज्ञान प्रदान।। अनपढ़ को जो विद्वान बना दे। धर्म कर्म का पूरा पाठ पढ़ा दे।। भक्ति भाव का दीपक जलाते। नेक धर्म करने कि शिक्षा देते।। अंधकार को तुम दूर भगाते। ज्ञान कि ज्योति हों जलाते।। सही गलत का पहचान सिखाते। शिक्षा प्राप्ति का संकल्प दिलाते।। हैं धरती पे तुम्हारे कई अवतार। समय-समय पर करते हों प्रचार।। बन चाणक तुम राष्ट्र बनाते। चंद्रगुप्त को राज दिलाते।। महामूर्ख कालीदास जैसे को। ...
डर कितना है
कविता

डर कितना है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खोजो-खोजो सब कोई बंधु अपने अंदर डर कितना है, जिंदा रहकर डरे हो कितना डरकर गए हो मर कितना है, डर अंदर की कमजोरी है, अनदेखे को श्रेय देना क्यों मजबूरी है, किसने तुम्हें कब कब बचाया है, किसने भीरू बना जब तब डराया है, डरना ही है तो प्रकृति से डरो, उनसे छेड़छाड़ खिलवाड़ मत करो, डर का अंजाम भयानक होता है, मत सोचो ये अचानक होता है, आपके भीतर खौफ धीरे-धीरे भरा जाता है, डराने कोई और नहीं आता है, बचपन में घर परिवार द्वारा, फिर सामाजिक संसार द्वारा, कहीं धन के घमंडियों द्वारा, कहीं धर्म के पाखंडियों द्वारा, ये डर लूट जाने पर मजबूर करता है, अनाम चमत्कारियों से गुहार कर, मन मस्तिष्क गुलामी की ओर जाता है, फिर कुछ धूर्त अपने इशारे पर नचाता है, डर से हमें दूर हमारी एकाग्रता और ध्यान कर सकता है, सोच व ज्ञान ...
शब्दों के रणवीर
गीत

शब्दों के रणवीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** लगा रहे जयकारे केवल, शब्दों के रणवीर। गीत हुए हैं चारण सारे, अब क्या करे कबीर।। फुदक-फुदक ये बजा रहे हैं,वाह वाह की झाँझ। लिपटे हैं पति-सी सत्ता से, ज्यों हो सौतन बाँझ।। मगरमच्छ-से आँसू इनके, पल-पल हुए अधीर।। चुन-चुन कर ये मार रहे हैं, पत्थर वाले फूल। रीति नीति के काटें बोते, पथ पर ऊल-जलूल।। तमगों के चाहत में डोले, इनका सर्प ज़मीर।। छल-छंदों में लिप्त मिला है,लालकिले का फर्ज। चढ़ा हुआ भाटों के सिर भी, इसी दुर्ग का मर्ज।। रोज माॅबलिंचिंग कर ढोंगी, करते पेश नज़ीर।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
नारी उत्पीड़न
कविता

नारी उत्पीड़न

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** भारत के गाँव, शहर, गली-गली में, नारी पर अत्याचार हो रहा है माधव। चीख, पुकार रही बेबस, असहाय स्त्री, कहाँ हो लाज बचाने वाले प्रभु राघव? कोई रावण बन अपहरण कर रहा है, फिर से अग्नि परीक्षा दिलाने सीता को। कोई दुशासन बन चीर हरण कर रहा है, लज्जित करने द्रौपदी की अस्मिता को।। सरकार खामोश बैठी है राजसिंहासन, न्याय की आँखों में काली पट्टी बंधी है। जनता मोमबत्ती जलाकर शोकाकुल, पीड़िता इंसाफ की गुहार लगा रही है।। युग अंधा है या फिर हम सब अंधे हैं, कलियुग में राक्षसों का मचा हाहाकार। फिर से किसी देवता को आना पड़ेगा? क्या कोई नहीं जो रोक सके बलात्कार? परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री श...
कोरे आश्वासन
कविता

कोरे आश्वासन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कानों को मधुर लगती ध्वनियाँ मंदिर की घंटी, पायल कोयल की कूंक हो या सुबह उठने के लिए माँ की मीठी पुकार। कानों के लिए वाणी की मिठासता बन जाती मोहपाश सा बंधन या उसी तरह भी लगती है जैसे प्रेमी-युगल की मीठी बातों से भरा हो प्यार का सम्मोहन। कानों को न सुहाती तेज कर्कस कोलाहल भरी आवाजें ला देती कानों में बहरापन तभी तो उनके कानों तक समस्याओं के बोल पहुँच नही पाते या फिर हो सकता दिए जाने वाले कोरे आश्वासन हमारे कान सुन नहीं पाते हो। तब ऐसा लगता है मानों विकास के पथ पर लगा हो जंग या प्रदूषण से कानों में जमा हो गया हो मैल। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभा...
आया माखन चोर कन्हैया
कविता

आया माखन चोर कन्हैया

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आया माखन चोर कन्हैया, गली-गली, गांव-गांव, शहर-शहर में मच गया शोर, लेकर आया जन्माष्टमी की भोंर, आया माखन चोर कन्हैया, सुनो सब गोर से मथुरा, गोकुल, वृंदावन, ब्रज में सब, जगह ढोल-मंजीरे बज उठे। द्वार-द्वार, नगर-नगर सब लोग, उमंग उत्साह संग नृत्य करें, गायन करें आया माखन चोर कन्हैया, अधरों पर मुस्कान लिए, अधरों पर धर बांसुरी बजाएं, मधुर धुन सुनाएं, सकल भारतवासी, सुन सुध-बुध खो कान्हा छवि निहारें, आया माखन चोर कन्हैया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा स...
राधा का आधार
कविता

राधा का आधार

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** राधा का आधार धरा पर, होंठो पे मुस्कान है राधा को राधेय बना दे ऐसी जिसकी शान है सृष्टि का महानायक जो कर्म का पाठ पढ़ाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है अद्धभुत है लीला, सबको विभोर कर जाता है गोकुल मे निश्चिंल प्रेम का अलख जगाता है नारायण है जो नर रूप मे नित लीला रचाता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है रावण मारे सियापति राम बनकर हरे धरा का ताप कंस मर्दन किया श्याम बनकर धरती के मिटे पाप कभी राम कभी श्याम बन, इस धरा पर आता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है प्रेम का बीज बोकर जग मे, प्रेम का महत्व बताया प्रेम-प्रेम प्रकृति मे कैसे? प्रेम का भेद समझाया जग कल्याण के लिए प्रेम की महिमा बताता है जीवन को कैसे जीना हर पल हमें सीखाता है जीवन के गूढ रहस्य को सहजता से समझाया कुरुक्षेत्र म...
विकृत मानसिकता का सही दंड
कविता

विकृत मानसिकता का सही दंड

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हर नारी दुर्गा बन जाए, तो ही उसकी लाज बचेगी। डी जी को दे भेंट चूड़ियां, तो ही उनकी नींद खुलेगी। हर नारी ... नारी को सबला करदो मां, कोई दुष्ट सता ना पाए। यदि दस राक्षस उसे घेर लें, चंडी बन वो उन्हें मिटाए। तुम प्रेरणा करो नारी को, चाकू ले वो तभी चलेगी। हर नारी ... शासन गुंडों का रक्षक है, उससे कोई आस नहीं है। महिला के आभूषण लुटते, पुलिस तंत्र को लाज नहीं है। तुम्ही क्रुद्ध होगी जब मैया, तब दुष्टों की जाति मिटेगी। हर नारी ... जो कुदृष्टि डाले नारी पर, किन्नर उसे बना दो मैय्या। नवरातो में चंडी बनकर, दुष्टों को संघारो मैय्या। रुद्र रूप में आओ मैय्या, तब नारी की लाज बचेगी। हर नारी ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना ...
रणचंडी
कविता

रणचंडी

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उठो देश की बेटी अब कब रणचंडी बनोगी। कब तक बनकर घर की लक्ष्मी ओरों पर उपकार करोगी। कब तक दुराचारों को सह कर अबला बनोगी। दया,ममता तो रखती हो मगर अपने लिए मान- सम्मान कब रखोगी। कब तक घर की चारदिवारी में रहकर सबके कटू वचन सुनोगी। घर-घर में रहते है दरिंदे कब तुम उनके लिए अब रणचंडी बनोगी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
हाथ काट लो हत्यारों के
कविता

हाथ काट लो हत्यारों के

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जोर जबरदस्ती बेटी सँग, जो करते वे पापी। जो विरोध ना करें पाप का, वे पक्के संतापी। भरा विकार हृदय में जिनके, भरी गंदगी मन में। ऐसे पापी अधम काम ही, करते हैं जीवन में। है दिमाग में विकृति जिनके, वे हैं पापाचारी। औरों को पीड़ा पहुँचाना, है उनकी बीमारी। नर पिशाच शैतान सड़क पर, खुला तांडव करते। शील हरण करके बहनों का, भय अंतस में भरते। बीच राह बेटी की अस्मत, लूट रहे हत्यारे। घटना देख बोल ना पाते, हम कितने बेचारे? कब तक जुल्म सहेगी बेटी, कोई तो बतलाओ? खून गर्म,जिंदा दिल बालो, जरा शर्म तो खाओ। खून जल गया है हम सब का, कायरता है मन में। मौत हो गई है हम सब की, बचा न कुछ जीवन में। कायर बन, जीवन जीने से, अच्छा है मर जाना। पाप देखने से अच्छा है, कालकूट बिष खाना। माता-पिता अधर्मी...
हे! गिरिधर गोपाल
गीत

हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम, प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। अंधकार की बन आई है, बेवफ़ाओं की महफिल। शकुनि फेंक रहा नित पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। अब राधाएँ डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, पीड़ा का मेला है। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला है।। प्रीति-नेह को अर्थ दिलाने, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। गौमाता की हुई दुर्दशा, भटक रहीं राहों में। दूध-दही, जंगल, नदियाँ, गिरि, बिलख रहे आहों में। आकर अब तो प्रक...
झूले सावन के
कविता

झूले सावन के

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन के झूलों को देख फूहरो का मन मचला झूलने के लिए हिलते हुए झूले पर सवार फूहरो को बादल ने आकर झौंका दिया फूहारे मचल उठी झूला भीग गया। बेचारा बादल फूहारो को अठखेलियां करते देखता रहा झूले की डोर पकड़े। जल की बूंदें गा रही सावन गीत ठंडी बयार संग भाग रहीं फूहारे वृक्ष से लिपटी लताओं को भिगोतै मन ही मन मुस्कुरा रही थीं लताओं के भी मन भाया अन्दाज। मुस्कुराने का कोई युगल आया और बूंदों को धरा पर गिरा युगल भुले स्वयं को झूलते-झूलते। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निम...
गुरु बिना ज्ञान विवेक ना होए
कविता

गुरु बिना ज्ञान विवेक ना होए

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु अमृत है गुरु विष का प्याला भी है। गुरु मीठा है गुरु कड़वा है, गुरु संस्कार हे गुरु संस्कृति है। गुरु ज्ञान है गुरु विवेक है। गुरु वर्तमान भूत और भविष्य है। गुरु बुद्धि है गुरु चित् है। गुरु चित्र है गुरु चरित्र है। गुरु जीवन की सीढी है। गुरु दर्पण है गुरु निश्चल है। गुरु मान है गुरु सम्मान है। गुरु ब्रह्मा विष्णु और महेश है। गुरु व्यापक गुरु अनन्त है। गुरु सूर्य है गुरु चंद्र है। गुरु तीर है गुरु माखन है। गुरू धैर्य है गुरु साहस है। गुरु प्रकाश है गुरु किरण के जीवन में गुरू अवतार मै कृष्णा भाभी के समान (गुरु) शिक्षका है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्...
उठो बेटियां साहसी बनो
कविता

उठो बेटियां साहसी बनो

ऐश्वर्या साहू महासमुंद (छत्तीसगढ़) ******************** उठो बेटियां साहसी बनो तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। बहुत हुई ये मासूमियत अब, अपने स्वाभिमान की रक्षा करने झांसी की रानी बननी होगी। कौन तुम्हे हर पल बचाने आयेंगे, घात लगाये यहां तो हर कदम पर राक्षस है बैठा, बहुत हुई माता सती का रूप, दुष्टो का संहार करने अब माँ काली का रूप धरनी होगी। उठो बेटियां साहसी बनो, तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। जो करें अपमानित तुम्हारे आबरू को उसे अपनी ताकत का पहचान कराने, अब उसका विनाश करना होगा। अब खुद को सवारना बहुत हुआ, सवारना अब दुनिया को होगा। उठो बेटियां साहसी बनो, तुम्हे स्वयं की रक्षा करनी होंगी। दुसरो पर ना विश्वास कर तु, कर विश्वास अपने बाजुओ पर अब स्वयं की रक्षा करनी होगी। बहुत हुआ चूल्हा चौका, दुष्टो को अब सबक सिखाने, भाला तलवार पकड़नी होगी। हमें स्वयं को इस द...
परीक्षार्थी का दर्द
कविता

परीक्षार्थी का दर्द

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** ए ईश्वर दे कुछ तरकीब ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न वक्त बचा हैं अब इतना कि इसका सिलेबस पूरा कर लूं, न तरकीब पता हैं कोई ऐसा जो परीक्षा मैं पास कर लूं, न किताबे पढ़ने का जी करता नाहीं इसको छोड़ने का, न याद रहा अब वो सब भी, जो अब तक हमने पढ़ा था, ए ईश्वर दे कुछ कर ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। एक तो रहता दबाव मां बापू के देखें सपनों का, दूजा तनाव रहता हैं पड़ोसियों के ताने सुनने का, तिजा तो पहले से ही होता बेरोजगारी के धब्बे का, इन दबावों के कारण पूरा दिमाग हैंग हों जाता हैं, ए ईश्वर कल देना शक्ति इतना,जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न जाने कल क्या होगा, जब परिक्षा हाल में बैठुंगा, पता नहीं परिक्षा कक्ष में भी, सब कुछ याद रख पाऊंगा, पेपर मिलने पर पता नहीं कि कितने प्रश्न हल कर पाऊंगा, जल्दी करने के चक्कर मे...
मेरी जिंदगी
कविता

मेरी जिंदगी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी जिंदगी एक सुहाना सफर हैं, मेरी जिंदगी ही जीवन-संगीत हैं, मेरी खुशी मेरे परिवार की खुशी, खुशी से ही मेरा मीठा मुंह होता। खुशी की मिठाई, खाना ही हैं मेरे लिए सर्वोपरि, मेरी जिंदगी सुख में एक गीत हैं, दुख में भी एक संगीत हैं। जिंदगी एक मीत हैं, जिंदगी से करो प्रीत, यही हैं सच्ची जीत, गीत गुनगुनाने की रीत। जिंदगी तो बहती सुर सरिता, जिंदगी सप्त सुरों से सजी, सुंदर महफिल हैं, जिंदगी का संगीत, सुरों का साज हैं। यही तो जिंदगी का ताज हैं। जिसने जिंदगी के संगीत को समझा, जिसने जीवन के सप्त सुर को गुनगुनाया। वहीं तो दुख के सुर को सुख-सुर में, परिवर्तन कर जीवन को, गीत और संगीत से सजा पाया। जिंदगी के ढोल को सुर-संगीतमय बजा पाया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया न...
भाई के अरमान हैं
गीत

भाई के अरमान हैं

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नेह मंगलमय हुआ है, राखियाँ शुभगान हैं। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। हो गया मौसम सुनहरा, चेतना उल्लास में। आन रिश्तों को मिली है, पर्व है विश्वास में।। आ रहा है याद बचपन, आ रहा सब ध्यान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। प्रीति हर्षित हो रही है, रीति है नव आस में। नीतियाँ संदेश देतीँ, धर्म है अहसास में।। भावनाएंँ हैं चरम पर, दिव्यता सम्मान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। पल बड़े भावुक हैं आये, प्रेम पर अति वेग में। सूत के बदले सुरक्षा, मिल रही है नेग में।। बंध ऐसा बँध गया जो, जा बँधा है आन में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। डाक ने तो साथ देकर, मार दीं सब दूरियाँ। नेह पर हावी नहीं हैं, आज तो मजबूरियाँ।। है समर्पण और निष्ठा, आज हर अनुमान में। दे रहीं बहनें...
एक थी स्त्री
कविता

एक थी स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दुःखद घटनाओं की शिकार बहनों बेटियों को समर्पित ... तड़पती रही अकेली सुनसान राहों में, सिसकियाँ अनसुनी कर लोग गुजरते रहे ! धरती माँ की गोद में खुन से लतफत छिपने की जगह ढूंढती हुई रही!! जली थी जीवन भर बेशरम नजरों की अग्नि में, डरती आई थी सदैव गलियों और सड़कों पर चलने में, बेआबरू होती रही बार-बार हर बार !! पैदा हुई तो हर तरफ शोर हुआ ये तो लक्ष्मी आई है, ये दुर्गा का रूप है, ये बरकत लेकर आई है ! कुछ दुआएं देते कुछ माता-पिता पर बोझ बताते !! हुनर से नहीं कपड़ों से व्याख्या की गई उसके चरित्र की, उसके उन्नतिशील विचारो से चरित्रहीनता का प्रमाणपत्र दिया गया, वो तो देवी का रूप थी ना ...??? किसी की बेटी किसी की पत्नि किसी की बहन, मित्र भी थी ! किसी के घर का चिराग थी! किसी का अभिमान, किस...
आंतरिक गुलाम
कविता

आंतरिक गुलाम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आजाद हुए हम गौरो से मगर अभी नही हुए औरों से। जीत चुके हैं हम औरों से मगर हारे हुए हैं अभी अपने विचारों से। छोटे को बड़ा, बड़े को छोटा समझना अभी छोड़ा नहीं। जाति-पाति के कठोर नियमों से मुख भी अभी मोड नहीं। क्षितिज से आर जीवन से पार अभी कुछ देखा नही । धर्म कर्म के नाम पर शोषण अभी तक छोड़ा नही। जीवन के तराजू पर कभी खुद को तोला नही। महोबत के नाम पर जिस्म का शोषण अभी तक छोड़ा नही। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...
सावन
कविता

सावन

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेघ आच्छादित नभ क्षितिज तक, झर- झर बरसती काली घटाएं, मन विकल करती शीतल बूंदें, हिय को झकझोरती चंचल पुरवाई। यह सावन भी बड़ा बेदर्दी है, खेलता है कभी पलकों से, अल्हड़ फुहारें जला देती है तन से मन तक उदासी की अगन। भरी बरसात में दहन उठता है अलाव उनकी यादों का, नीम की डाल पर तड़प रहा है झूला आंगन में, मेरे साजन का। हुई थी बात कल रात सैनिक से, बाढ़ राहत शिविर में लगा हूं, बोलें थे बड़े रुआंसे होकर... यह सावन बड़ा बेइमान है। बरसते हैं बादल जी भरकर, प्रति वर्ष सजीले सावन में, बहती है यौवन से परिपूर्ण नदी, लेकिन मिटती नहीं मन की प्यास। अधूरी रह गई गत वर्ष की भांति, इस वर्ष भी चाह झूला झूलने की चल पड़ी गांव के पोखर पर चादर, आत्मा फिर भी प्यासी की प्यासी। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्य...
बरसात की बूंदे
कविता

बरसात की बूंदे

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** बरसात की धीमे से गिरती बूँदें, मानो धरती को एक प्रेम पत्र लिखा जा रहा हो। मैं और तुम, इस अमृतमयी प्रभात के साक्षी, जहां हर बूँद में छिपी एक कहानी, एक गीत। वह बूँद जो तुम्हारी पलकों पर ठहरी, वो रूपक बन गया जीवन के संघर्षों का। मेरी बातें, तुम्हारे शब्द, मानो व्यंजना बन जोड़ रही हो दो आत्माओं को। क्या देख रहे हो इस पानी का चंचल नाच? इसकी मासूम नादानी और अठखेलियों को , जैसे तुम्हारी मुस्कान में खिल रहा है है खुशी का अप्रतिम सौन्दर्य। बरसात का यह मौसम, ये रिमझिम फुहारें, साक्षी हैं हमारी प्रेम कथा के, जिसमें हर शब्द, हर वाक्य बुन रहा है है आशाओं का परिधान। मैं और तुम, इस बारिश में भीगते हुए, नये सपने, नयी आशाएँ, नयी उम्मीदें बुनते हुए। जैसे नव वर्षा की बूँदें, लिख रहीं हों ह...
जय आदिवासी
कविता

जय आदिवासी

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** हम आदिवासी जल जंगल जमीन हमारे प्राण प्यारे।। आदिवासी संस्कृति प्रकृति पूजक शुभ मंगल पूज्य जंगल।। तीर कमान हर आदिवासी करे अभिमान पहचान अतुल्य।। मानव सभ्यता सहेजे सृस्टि पर आदिवासी अमिट अविनाशी।। प्रकृति संरक्षण करता रहा अदम्य सहासी जय आदिवासी।। प्रकृति धर्म समझा आदिवासी अंतस्थ मर्म जय भौमिया।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
राखी में तो प्रीति है
दोहा

राखी में तो प्रीति है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो प्रीति है, सच्चाई का गीत। बहना-भाई हर्ष में, पावनता की जीत।। नेह निष्कपट भावना, मंगलमय सम्बंध। फैली है चहुँओर अब, मलयानिली सुगंध।। राखी तो सुधिगान है, बचपन की हर याद। कर रहता खाली अगर, भाई को अवसाद।। बहना-भाई दूर यदि, डाक निभाती साथ। शोभित होते हैं सदा, क़िस्मत वाले हाथ।। युगों-युगों से चल रहा, संस्कारों का पर्व। कौन नहीं जो चेतना, पर करता नहिं गर्व।। नहीं सहोदर देश में, पर आया संदेश। बहना के आशीष ने, दूर किया है क्लेश।। दुनिया की सब दौलतें, खो देतीं है मोल। जब भी राखी बोलती, अधर खोल दो बोल।। राखी रक्षा का वचन, प्रेम और विश्वास। दुआ, कामना, भावना, दृढ़ता वाली आस।। धर्म कहे रिश्ता सदा, रहे निभाता रीति। सूत कहे मैं हूँ लिए, शुभता की नव नीति।। सभी दिशाओं ने किया, राखी का यशगान...
कहाँ है आजादी
हास्य

कहाँ है आजादी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये कैसी आज़ादी है? जहां हमें तो कोई आज़ादी ही नहीं है, कदम-कदम पर अंकुश है नियमों की बंदिशें, कानूनों का डर है अपराध, हिंसा की न छूट है साम्प्रदायिक दंगा फैलाने की भी कहाँ आज़ादी है? लूटमार, हत्या, बलात्कार की बात क्या करें भ्रष्टाचार, बेईमानी और धोखाधड़ी की भी तो तनिक न छूट है। सब कहते हैं देश शहीदों की शहादत से मिला है, तो भला इसमें मेरा क्या दोष है? उन्हें शहीद होने का कीड़ा कुलबुलाया था पर शहीद होकर भला क्या पाया था, कौन याद करता है आज उन्हें ईमानदारी से कोई तो बताए हमें। वे सब सिर्फ़ औपचारिकता वश ही याद किए जाते, बहुत हुआ तो पुतला बनाकर खड़े कर दिए जाते हैं सौ दो सो मीटर जगह घेरने के अलावा सिर्फ धूल-धक्कड़ से नहाते हैं , जाड़ा, गर्मी, बरसात सहकर हर समय तने रहते हैं, हमें लगता वे अभी तक श...