पीली-पीली सरसों फूली
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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भटकी बयार राहें भूली, कुंजन-कलिन बहारों में।
पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।।
कभी कुहासों में पालों की, बूँदे टप-टप गिरती हैं
कभी सुबह सूरज की किरणें, साक सुनहला करती हैं
आलू हरे-भरे खेतों से, हरियाली महकी जाए
चमकीली अलसी पुष्पों से, रँग लतरी में भर आए
लहराते अरहर को देखो, बांगर-खेत खदारों में।
पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।।
शिशिर झूम के हवा उठाए, तृण-तृण में कंपन आए
चना-मटर अरु बरसीमों की, खेती सुख से लहराए
गेहूंँ के उठते सुगन्ध से, आस जगे सबके मन की
गन्ने के खेतों में देखो, पोर-पोर बरसे रस की
गाजर मूली लहसुन लहके, छोटे-छोटे क्यारों में ।
पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।।
धुंँधले-बादल बैठन चाहें, धरती की अकवारी में
टप-टप बूँदे बरसन चाहें अमवा अरु महुआरी में
सू...