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पद्य

बुजुर्ग खंडहर
कविता

बुजुर्ग खंडहर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खड़ी इमारत के बुजुर्ग खंडहर की दृढ़ सोपान कहानी कहती हैं अतीत की मानों कह रही हो अरे नवयुवक तुम क्यों, तुम क्यों तन कर चलते हो बुजुर्गो के चरणों का स्पर्श तो मेरे तन पर है। वर्तमान की अटालिका में वह सुख कहां जो बुजुर्गो ने मुझपर बैठकर लुटा था। तुम्हारी हर पीढ़ी को इन आंखों ने देखा हैं इस अटालिका का ध्वस्त होना भी देखुगी मैं दृढ़ हूं, मजबूत हूं, नारी की भांति मूझे नहीं उकेरा तो मैं अटल हूं। क्योंकि मानव की नियति दुसरे को कुरेदना है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से ...
कैसे बचेगा पर्यावरण
कविता

कैसे बचेगा पर्यावरण

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** फिर से, पर्यावरण दिवस आया है, पर्यावरण बचाने की मुहिम चली है। पेड़ लगाने की जैसे होड़ लगी है। सबने पेड़ लगाए हैं, फोटो भी खिंचवाए हैं। कर्मचारी भी शासन का आदेश बजाए हैं। स्टेटस लगा वाहवाही भी पाए हैं। सोशल मीडिया में पोस्ट तुम्हारे ही छाए हैं। पोस्ट तुम्हारी अमर रहेगी, पेड़ मर जायेगें । चार दिनों में ही इन्हें, जानवर चर जायेगें। पेड़ लगाकर पर्यावरण प्रेमी कहलाते हो। इन्हें बचाना भी जरूरी है, जान नहीं पाते हो। एक पेड़ की रक्षा, तुम कर नहीं पाते हो। जंगल बचाने की योजनाएँ बनाते हो। जिम्मेदार नागरिक का फर्ज निभाओ तुम, पेड़ लगाओ और इन्हें बचाओ तुम । वृक्षों के अनगिन फायदे, सबको गिनाओ तुम। पर्यावरण के प्रति वास्तविक जागरूकता लाओ तुम। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ...
खतरा किससे है
कविता

खतरा किससे है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* दुनिया को खतरा है किससे धर्म से या विज्ञान से नहीं खतरा है आदमी के भीतर बैठे शैतान से जो दूषित कर देता है हर संस्थान, हर संगठन, हर धर्म आदमी को डर है किससे दुनिया से या भगवान से नहीं वो डरता है अपने भीतर के अज्ञान से जो उसे बना देती है भीड़ जाति का, धर्म का, विचारधारा और राजनीति का जीवन को बचाना चाहिए किससे जानवर से या इंसान से नहीं बचाना चाहिए अपने भीतर के झूठे गुमान से जो बना देती है इंसान को संकीर्ण, क्रूर और मतलबी. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पू...
प्रेम
गीत

प्रेम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुज़ारें प्रेम से जीवन, नफ़रती सोच को छोड़ें। हम अपने सोच की शैली अभी से, आज से मोड़ें।। अँधियारे को रोककर, सद्भावों का गान करें। मानव बनकर मानवता का नित ही हम सम्मान करें।। अपनेपन की बाँहें डालें, नव चेतन मुस्काए। दुनिया में बस अच्छे लोगों को ही हम अपनाएँ।। जो दीवारें खड़ी बीच में आज गिरा दें। अपने जीवन की शैली को आज फिरा दें।। लड़ें नहिं,मत ही झगड़ें, कुछ भी नहीं मिलेगा। किंचित नहीं नेह के आँगन में फिर फूल खिलेगा।। देखें हम पीछे मुड़कर के, क्या-क्या नहीं गँवाया। तुमने नहिं, नहिं मैंने लड़कर कुछ भी तो है पाया ।। जो फैलाती हैं कटुता ताक़तें, उनको तो छोड़ें।। गुज़ारें प्रेम से जीवन, नफ़रती सोच को छोड़ें। हम अपने सोच की शैली अभी से, आज से मोड़ें।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : ...
पूर्वजन्म का नव अनुबंध
कविता

पूर्वजन्म का नव अनुबंध

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी हो सकता है बिल्कुल हो सकता है और यकीनन होता ही है। हमें खुद इसका अहसास भी होता है जीवन का कोई भी पहर हो जाति, धर्म, उम्र या लिंग कुछ हो बोध करा ही देता है हमें पूर्वजन्म के आत्मिक संबंधों का और जगा देता है भाव उसके साथ रिश्तों का। जाने कितने जन्मों बाद जोड़ देता है हमें उससे जिसे हम आप जानते पहचानते तक नहीं कभी मिले तक नहीं, शायद मिलेंगे भी नहीं न नाम का पता, न शक्ल सूरत का कोई चित्र न दूर दर तक कोई रिश्ता, न कोई संपर्क- संबंध। फिर भी अपनत्व का भाव अंकुरित हो जाता है और बन जाता है एक रिश्ता जिसे हम आप निभाते हैं बड़ी शिद्दत से और अटूट विश्वास करने लगते हैं पिछले किसी जन्म के रिश्ते से जोड़ संपूर्ण विश्वास के साथ निभाने लगी जाते हैं इस जन्म में भी पूर्व जन्म की तरह ...
गर्मी का हाहाकार
कविता

गर्मी का हाहाकार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** नौतपा में सूरज उगल रहा आग अंगार। दुनिया में चारों तरफ मचा है हाहाकार।। गर्म हवाएँ बहती हैं, कहते हैं इसको लू। अब छाँव चाहे छाँव, रवि का है जादू।। व्याकुल हैं कर्म पुरुष मजदूर और किसान। रोटी के लिए मेहनत करते लगा जी-जान।। गाड़ियों के टायर में हो रहा बम विस्फोट। अग्नि की वर्षा से निरीह जन हुए अमोक।। झुलस गए पेड़-पौधे, सूखे सभी जल स्रोत। जलीय जीव दुखी, जो थे आनंद ओत-प्रोत।। गोरे जीव-जंतु हो गए काजल समान काले। रसहीन सबके कंठ, जीवन अमृत के लाले।। प्यास से तड़प रहे अमीर-गरीब राहगीर। भौतिक साधनों के पहने महंगी जंजीर।। पेड़ लगता नहीं कोई, छाया सभी चाहते हैं? एक वृक्ष है दस पुत्र समान सभी कहते हैं।। जागो! सभी को बनना है पर्यावरण मित्र। सुखद, शांतिपूर्ण होगा भविष्य का चित्र।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगे...
सदा इंसानियत जिंदा ऱखना
कविता

सदा इंसानियत जिंदा ऱखना

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** लाख सोचे कोई बुरा हमारा पर, भूलकर भी न अपशब्द बकना। इंसान की हो औलाद अगर, तुम तो सदा इंसानियत जिंदा रखना।। माना कि-दुनिया है मतलबी यह, फ़िर भी परमार्थ पथ कुछ चलना। खिलना बनक़े कुसुम करुणामयी, सदा सुवास-सा पल-पल पलना।। ऱखना निष्छल सदा अंतर्मन चंचल, जीवन यह धूप छांव-सा है। नही कोई अपना-पराया यहां पर, सब कुछ लगता ख़्वाब-सा है।। इस धरा का, इस धरा पर ही, सब कुछ ही धरा रह जाना है। आज यहां, कल होंगे कहां हम, नही पता कोई ठौर-ठिकाना है।। कहलाता श्रेष्ठ मानव-धर्म यह, करना सबका समादर सम्मान। बना मनुज भूतल पर ईश्वर वह, रोम-रोम रमे जिसके इंसान।। आता मनुज ख़ाली हाथ धरा पर, जायेगा भी लेकर खाली हाथ। जीते-जी के हैं यह कुटुंब-कबीले, श्मशान में जलता न कोई साथ।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा ...
हो जाता प्रभु को प्यारा
कविता

हो जाता प्रभु को प्यारा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** घर में पाला है तोता कब जगता है, कब सोता? जरा छेड़ दे गर कोई, क्रोधित पल भर में होता। मिर्च शौक से खाता है, राम-राम वह गाता है। कोई आ जाए घर में, दुल्हन-सा शर्माता है। पिंजरे में ही रहता है, मिट्ठू मिट्ठू कहता है। अम्मा गुस्सा हो जाती, बिन बोले सब सहता है। लंबी पूँछ, नहीं छोटी, खाता खूब दूध रोटी। पकड़ चोंच से लेता है, झट से गुड़िया की चोटी। पके आम जब घर आते, तोता राम खूब खाते। कोई अगर छीन ले तो, मिट्ठू जमकर चिल्लाते। पिंजरा ही जीवन सारा, धानी रंग लगता न्यारा। राम-राम रटते रटते, हो जाता प्रभु को प्यारा। जब तोता मर जाता है, सब घर शोक मनाता है, बच्चे रोते,तोते बिन, घर सूना हो जाता है। कभी न पिंजरे में पालें, छत पर ही दाना डालें। भरें सकोरों में पानी, देख-देख खुशियाँ पा ले...
कुछ कर गुजर
कविता

कुछ कर गुजर

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आसमाँ नापना हो गर, तो कुछ कर गुजर। रसातल चीरना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। पर्वत लाँघना हो गर, तो कुछ कर गुजर। सागर पार उतरना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। मुकाम पाना हो गर, तो कुछ कर गुजर। अनवरत बढ़ना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। प्रेम-सद्भाव लाना हो गर, तो कुछ कर गुजर। दुश्मनी मिटाना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। समता लाना हो गर, तो कुछ कर गुजर। एकमत होना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। मंजिल की चाहत में, कुछ कर गुजर। निपटना हो आफ़त से, तो कुछ कर गुजर।। आपस में दूरियाँ मिटाकर, कुछ कर गुजर। कंधे से कंधा मिलाकर, कुछ कर गुजर।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
उड़ान
कविता

उड़ान

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** तोड़ सारी जंजीरों को मै एकदिन को उड़जाऊंगी सपनों से भरे है पंख मेरे, मै पंख अपने फैलाऊंगी रित-रिवाज कैसी है ये। कैदखाने जैसी है ये।। फिर-भी दूर आसमान में अपनी जगह बनाऊंगी परम्पराओं से बंधे है पैर मै फिर भी पंख फैलाऊंगी तोड़ सारी जंजीरों को मै एकदिन को उड़जाऊंगी सपनों से भरे है पंख मेरे, मैं पंख अपने फैलाऊंगी परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
जमाना आजकल
कविता

जमाना आजकल

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जमाना जैसा था कल वैसा आज है। कभी नही बदलेगा in शायद हमसे नाराज हैं। ******* जमाना हम से मिलकर बनता है। जब हम सुधरेंगे तो जमाना बदलता है। ******* जमाने को दोष मत दीजिए झाकिए अपने गिरेवान में। सब कुछ पता लग जायेगा देखकर अपने गिरेबान में। ******* जमाने को किसी की परवाह नही है। यह बात सौ प्रतिशत सही है। ******** अगर बदलना चाहते हो जमाने को तो बदलाव स्वयं से करो। टांग खींचना लोगों की बंद कर अच्छे काम करो। ******* आजकल हर आदमी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अपने दुख से नहीं बल्कि दूसरो की खुशी से ग्रस्त हैं। ******** परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी क...
गृहणियां
कविता

गृहणियां

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अजीब सी होती हैं गृहणियां, समाज शास्त्र पढ़े बिना संबन्धों को तिनके-तिनके जोड़ती है ये गृहणियां मनोविज्ञान पढ़े बिना ही सभी की उलझने सुलझाती हैं ये गृहणियां होम साइंस ना हो पढ़ा कभी ,फिर भी पाक कला में निपुण होती हैं गृहणियां, दूध में साइटृक एसिड डाल पनीर बनाती, सोडा बाइ कार्बोनेट से स्वादिष्ट, स्पंजी केक बनाती, नित नए प्रयोग कर कर, सोडियम क्लोराइड का सही नाप तोल समझाती, खुद को वैज्ञानिक कभी नहीं समझ पाती ये गृहणियां , मसालों के नाम पर आयुर्वेदिक ख़ज़ाना भी हैं रखती, गमला, मिट्टी में, तुलसी, गिलोय, पारिजात , बो बोकर रसोईघर में ही औषधि बनाती, फिर भी कुछ नहीं करती ये गृहणियां सुन्दर रंगोली बनाती, चित्रकारिता में निपुण, ढोलक की थाप पर नृत्य और संगीत के मीठे सुर छेड़ती खुद को केवल ह...
झूठ की आकुलता
कविता

झूठ की आकुलता

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** ज़ुबान लड़खडाने लगी झूठ बड़बडाने लगा बहुत दिया तुम्हारा साथ अब तो छोडो मेरा हाथ आजिज़ आ गया हूँ थू-थू हो रही है चहूँ ओर मेरी भी तुम्हारे साथ अब छोड़ दो मेरा हाथ छोड़ दो मेरा हाथ तुम्हारी हो न हो पर मेरी तो सीमा है करने की बर्दाश्त तुम्हारी तो जायेगी किन्तु मेरी तो ख़त्म हो जायेगी साख अब छोड़ दो मेरा हाथ अब छोड़ दो मेरा साथ नही छोड़ोगे तो मैं छोड़ दूँगा चला जाऊँगा साथ सच के खोल दूँगा तुम्हारी सारी पोल-पट्टी बचा लूँगा अपनी साख तुम्हारी हो न हो किन्तु मेरी तो कुछ इज़्ज़त है मेरी सच्चाई तो जानते हैं सब करेंगे यक़ीन मुझ पर और मेरी हर बात पर यह धमकी मत समझना बख़्श दो मेरी गरिमा और छोड़ दो मेरा हाथ छोड़ दो मेरा साथ अब बहुत हो चुका बस बहुत हो चुका अब छोड दो मेरा...
असो कसो बायरो चले है
आंचलिक बोली, कविता

असो कसो बायरो चले है

नेहा शर्मा "स्नेह" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (मालवी कविता) मनक ना कांपे, पेड़ ठिठुराये, जन जनावर दुबका पड्या, हरा छोड़ और उम्बी सेके, कुल्फी के हाथ नी लगई रिया, असो कसो बायरो चले है। नेता राग नी सुनइ पई रिया है, चिल्लई के सबको गलो बैठी गयो, विपक्ष का साथ वि आग सेके, माहौल चुनाव को ठंडो पड़ी गयो, असो कसो बायरो चले है। प्रेमी छोरा भी धुप में निकले, डरे नी डुंडा घरवाला ना से, पण आवारा ढोर सेटर नी पेने, आग बले असा इतराना से, असो कसो बायरो चले है। बच्चा ना स्कूल नी जाये, ठण्ड में उठी ने कोण नहाये, उठाये बिठाये पाछा सोई जाये, जद स्कूल बी सरकार बंद कराये, असो कसो बायरो चले है। उनके जिनके रोज निकलनो, उनके मौसम से कई मतलब नी, बायरो चले के लू तापे, उनका जीवन में चेन कइ नी, जिनके जिम्मेदारी है सगळा दिन बराबर होये, माँ, मजदूर अने पिता...
गर्मियों की छुट्टी
कविता

गर्मियों की छुट्टी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब बच्चों की टोली और हाथों में आमों की गुत्थियां, नजर आ जाता है जब आती गर्मियों की छुट्टियां, एक वो समय था जब हम छोटे थे, घरवालों की नजरों में सदा खोटे थे, तब छुट्टियां होते दो महीने का, मस्तियां हर जगह होती फर्क नहीं नानी या अपना घर होने का, पेड़ों की छांव में पूरा वक्त बिताते, खेलना छोड़ तब कुछ नहीं भाते, गर्मियों की छुट्टियां अब कितना सिमट गया, प्रशासन लाता है अब कई सारे चोंचले नया, टी वी मोबाईल समर कैंप, कौशल विकास, रोक रहा नेचुरल विकास, नन्हे दिमागों पर बोझ डालना कितना है सही, क्या धूप और गर्मी का तनिक ख्याल नहीं, खैर ग्रीष्म कालीन छुट्टियां लाता है उमंग, बस छुट्टी ही छुट्टी बालमन में नहीं घमंड। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं ...
मृत्यु मेरी दोस्त
कविता

मृत्यु मेरी दोस्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे मृत्यु! तू इतना इतराती क्यों है? आखिर बेवकूफ बनाती क्यों है? आ जाने की धमकी देकर डराती क्यों है? तेरा सच मुझे पता है तुझे आना नहीं होता है तू तो हरदम सिर पर सवार रहती है सिर्फ डराती, धमकाती है पर अफसोस खुद बड़ी असमंजस में रहती है। तो सुन तू इतना हैरान परेशान न हो तू स्वतंत्र है जो करना है कर आने की धमकी देकर मुझे मत डरा तुझे अब, कहां आना है तू तो हमारे जन्म के साथ ही सुषुप्तावस्था में हमारे आसपास ही है बड़े असमंजस में समय काट रही है। उहापोह से बाहर निकल जो करना है खुशी मन से कर अपना कर्तव्य पूरा कर और खुश रहा करो मैं तुझसे डरता नहीं हूं, इसलिए बेवजह समय जाया न कर, डरने का कोई कारण भी तो नहीं है। आखिर मुझे जाना तो तेरे ही साथ है फिर भला मुझसे डरने का मतलब ही क्या है? अच्छा है जब त...
पिता
कविता

पिता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पापा बताओं ना, कुछ पिता के बारे में। कोई छंद राग, अपनी कहानी के बारे में। क्या आपके पापा भी करते थे, इतना ही प्यार जितना, भर छाती आप उड़ेलते हो दोनों हाथों से। क्या उनके भी रहती थी, शिकन माथे पर और झलकती थी, चिंता आंखों से। ठगी गई थी अल्हड़ जवानी उनकी भी, ऐसे ही अबोध बच्चों के लिए। अधूरे लगते थे आंखों के सपने, घर परिवार अपनों के लिए। उनकी भी अथक भाग-दौड़, जीजिविषा और संघर्ष मय, कसक भरी कहानी रही होगी। हृदय के किसी कोने में, कुछ बचपन की, कुछ जवानी की इच्छाएं सिसकियां भरी होगी। चाहे होंगे आपके पापा भी, आपकी तरह दुनिया की हर खुशी, अपनों के दामन में महका देना। उनके कंधे भी झुकें होंगे हमेशा, ज़िम्मेदारियों से बोझिल हो, खुशियों को सहारा देना। उनकी भी मुस्कराहटों में, साफ़ झलकती होगी कसक, बड...
मैने सोचा इश्क करू
कविता

मैने सोचा इश्क करू

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** इश्क करने के लिये सोचना नही पड़ता। वो स्वयं ही हो जाता हैं। मन किसी की यादों में खो जाता है। ****** इश्क कोई काम नहीं जो इसे सोच कर करें। दिल जिस पर आ जाये उसी से इश्क का इजहार करे। ****** इश्क करे तो इजहार जरूर करे। एक तरफा प्यार कभी परवान नही होता। ****** सुंदर चेहरा देखकर इश्क न करें। सूरत के साथ सीरत की भी जांच करें। ****** कोई आपकी सूरत से इश्क करते है कोई आपकी दौलत से इश्क करते है। इस दुनियां में सच्चे प्रेमी बहुत कम ही मिलते हैं। ****** परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
आठ से साठ
कविता

आठ से साठ

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** वक्त कब कैसे बीतता जीवनभर मन सोचता आठ वर्ष का बचपना खेलकूद से जी भरता कब जगते, खाते, सोते घरेलू नुस्खे उपजते खेलते कूदते बचपना बाल्यकाल में झगड़ते कब आया यौवनावस्था नही पता कैसे मस्त रहते बड़े बुजुर्ग गलतियों पर अक्सर वे कान पकड़ते आंख के इशारे से डरते चुप्प रहते मगर हंसते छोटीबड़ी बातें सुनते हंसते मुस्कुराते रहते कुर्सी में आगे बैठते बड़े पीछे कर देते पहले बुजुर्गवर्ग बैठते बचपना नही समझते हम अलमस्त हंसते युवावस्था, इन्हें समझते दिनप्रतिदिन यूं ही बीतते यौवनास्था से प्रौढ़ावस्था जिम्मेवारी में रहते रहते दुःखसुख स्वतः सुलझते सवारी थे ध्यान नही देते जन्मदिन आते बुलाते जाते तालियां बजाते हरदम अपने जीवन के खुशियों के दिन भूलते बस जीवन के दिन कटे जो हमे छोटे बच्चे कहते उम्र समय कैसे बीते ...
कैसा मुकद्दर हुआ
ग़ज़ल

कैसा मुकद्दर हुआ

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** मुद्दतों आसमां गलतफहमी में तर हुआ दिल मेरा जलता रहा कैसा मुकद्दर हुआ I मैं दरिया हूँ, दरिया ही सही, दरिया तो हूँ ? यहाँ तो कतरा भी सोचता है समुंदर हुआ I इस कदर उदास दर-बदर भटकते हो बताओ कैसा मोहब्बत का सफर हुआ I चलने दो ये तूफ़ान तुम दिल ही में अब क्या हो गया जो ये किसी का घर हुआ I आग का दरिया सब पार करके आया है इक गुमनाम मुसाफिर भी पार डगर हुआ I हर शख़्स के हाथों में है जहर का खंजर शहर में अब न जाने कैसा बवंडर हुआ I जहां को जीतना तो बहुत आसान था दिल जीतने वाला कहाँ सिकंदर हुआ I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
अंगूर सुता
गीत

अंगूर सुता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल। जीवन नरक करे यह मदिरा, पीना तुम मत भूल।। जितना पैसा रोज कमाते, खर्च करें भरतार। बिक जाते हैं बड़े-बड़ों के, महल अटारी द्वार। मिलते काँटे ही काटें क्यों, बोते पेड़ वबूल। बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल। जर्जर होती नश्वर काया, होते हैं बदनाम। ठप्प काम धंधे हो जाते, रहे हाथ बस जाम।। घर मे कलह नित्य ही होती, सपने मिलते धूल। बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल।। मादकता में खोता जीवन, चखता जो है स्वाद। फिर आसव का चक्कर हरदम, लाता है उन्माद।। मधुशाला अभिशाप सुनो यह, होता जीवन शूल। बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्...
सौ जन्म भी कुर्बान जिसकी मुस्कान पर
कविता

सौ जन्म भी कुर्बान जिसकी मुस्कान पर

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** सौ जन्म भी कुर्बान जिसकी मुस्कान पर। उसने कभी मुझको, गले लगकर नहीं देखा। खामोश लब हैं, और हम कुछ कह नहीं सकते। उसने अभी तक हाल ए दिल मंज़र नहीं देखा। रोता हूं मैं भी अक्सर, खामोश रात को। उसने कभी भी गौर से बिस्तर नहीं देखा। जिसके भी मन में आया, ज़ख्म देता ही गया। मैंने भी जान बूझकर खंजर नहीं देखा। उसके लबों पे हर तलक मुस्कान ही रहे। मैंने स्वयं का हाल ए दिल बंजर नहीं देखा। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहसील मऊरानीपुर झांसी उत्तर प्रदेश शिक्षा : बी.एस.सी., डी.एल.एड., एम.ए (राजनीतिक विज्ञान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
अपनों को जगाने
कविता

अपनों को जगाने

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अपनों को जगाने, निम्न परिस्थितियों से ऊपर उठाने, अपनी बात कलमबद्ध करने खातिर सही अल्फ़ाज़ खोजना पड़ता है, जिस तरह हलधर को अन्न उपजाने अपनी कृषि भूमि जोतना पड़ता है, विभिन्न बेशकीमती धातुओं को पाने धरती का गर्भ खोदना पड़ता है, हां प्रयोग कर सकता हूं अपनी रचनाओं में क्लिष्ट शब्द, समझ न पाने पर मेरे कौम के लोग बेवजह हो सकते हैं स्तब्ध, तभी तो लिखता हूं आसान भाषा में, पढ़ कर कर सके सुधार इस अभिलाषा में, तो मित्रों लगा हुआ हूं अपने अभियान में, चमत्कार,पाखंड छोड़ सब विश्वास करने लगे वास्तविक विज्ञान में, बहकावे के जद में आकर क्यों सुनना पड़े दुष्प्रचार, वास्तविकता को सोचे समझे लेने खुद के हक़ अधिकार। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि स...
नियति
कविता

नियति

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जो कल सब कुछ यही छूटना है, उसे आज अपने हाथों छोड़ देना एक कला है ! उसी में ब्रह्म है, मोक्ष है और पूर्णता है !! भीड़ में उलझा अशांत मन, उस पीड़ा की अनुभूति भी नहीं कर पाता, जो मुक्ति के लिए बेचैन है, पानी के बुलबुले सा बनता बिगड़ता इंसानी जीवन, समझ नहीं पाता ! जब स्वयं के भीतर ही नहीं जाना दूसरी उलझनों में क्या पाओगे ! इस जीवन को एक उपलब्धि जानो कर्तव्य कर्म है, प्रेम सृजन, स्वयं के हृदय के मौन को पहचानो !! जिस दिन तुम मौन में उतर एकाकी हो जाओगे, उस दिन एक हाथ अपने हाथ मे महसूस करोगे, वो दूर नहीं तुमसे, बस तुम पास जा नहीं पाते उसके, तुम भीड़ में इस कदर बे हुए हो, देख नहीं पाते उसको! स्वयं में छिपे हुए परब्रह्म को पहचानो , वह ब्रह्म जो सभी वर्णनों, संकल्पनाओं से परे है! अंत ...
बृज का उलाहना कान्हा को
भजन, स्तुति

बृज का उलाहना कान्हा को

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कान्हा, तुम गये तो लौट न आए राह तकें गोकुल, वृंदावन नंदलाल को तरसे हर मन नंदगांव, बरसाना व्याकुल गउएं मुरली सुनने को आतुर घर से न निकलें, टेर लगाएं। बोलीं राधा - आए कन्हैया धरती पर अपना कर्तव्य निभाने को उनका सारा जग अपना तुम पहचान न पाए कान्हा को। जिस धरती ने उन्हें पुकारा दौड़ वहीं कान्हा आए पूतना, तृणावर्त, बकासुर वध कर बृज के रक्षक कहलाए। बृज की मइया, बृज की गइयां बृज के गोप, बृज की गोपियां बृज में कान्हा रास रचाएं बृज ने गीत भक्ति के गाए बहा स्नेह की निर्मल धारा तम का बंधन काटा सारा। बढ़ा कंस का अत्याचार मथुरा की धरती करे पुकार प्रलोभन प्रवृत्ति, राक्षसी बल अनाचार का प्रचंड प्रसार आर्तनाद सुन पहुंचे कान्हा मथुरा की धरा को पहचाना। हुई राक्षसों की भारी‌ हार मिटा कंस, किया उद्धार ...