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पद्य

मीठी मनवार
कविता

मीठी मनवार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ की देखो मीठी मनहार बचपन से करती वह प्यार। पुचकार पुचकार माँ दुध पिलाती, जिद्दी पर माँ उसे सहलाती, अपने हाथ माँ सीर पर घुमाती, मीठा मीठा लाड़ लडाती, रोने पर माँ दुखी होजाती, कही नजर ना इसे लग जाये, अपने आँचल से उसे छुपाती, राई लून से नजर उतारे, काला टीका उसे लगावे, मीठी मनवार करे देखो लाड़। पलना झुले देखो लाल। पैरो पर माँ उसे लेटाती बडी हिफाजत से उसे नहलाती, नैनो मे कही नीर ना ढल जाये देखो कैसे उसे बचाती। माँ तो बस माँ होती हैं, मीठी मनहार से उसे सुलाती। मीठी मीठी लोरी गाती, पलने मै माँ उसे सुलाती। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जब...
ओ मेघ अब तो बरस जा
कविता

ओ मेघ अब तो बरस जा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** सूखी धरा तरसे हरियाली जाती आबिया लाएगी संदेशा माटी की गंध का होगा कब अहसास हमें गर्म पत्थरों की दिल कब होंगे ठंडे घनघोर घटाओं को देख नाचते मोर के पग भी अब थक चुके मेंढक को हो रहा टर्राने का भ्रम ओ मेघ अब तो बरस जा। छतरियां ,बरसाती भूली गांव -शहर का रास्ता उन्होंने घरों में जैसे रख लिया हो व्रत नदियाँ झरनो के हो गये कंठ सूखे कलकल के वे गीत भूले नेह में भर गया अब तो पानी ओ मेघ अब तो बरस जा। हले खेत हो जैसे अनशन पर बादलों की गड़गड़ाहट बिजलियों की चमक से डर जाता था कभी प्रेयसी का दिल ठंडी हवाओं से उठ जाता था घुंघट मुस्कुराते चेहरे होने लगे अब मायूस ओ मेघ अब तो बरस जा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य...
थोड़ा अलग हूँ
कविता

थोड़ा अलग हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हाँ मैं थोड़ा हट कर हूँ, क्युकी थोड़ा अलग हूँ! अंदर से टूटे होकर भी चेहरे पर मुस्कान लिए फिरती हूँ, लाखों अनसुलझे सवाल हैं पर मौन हो सब गुनती हूं थोड़ा तो सबसे अलग हूँ!! थोड़ा उलझी सी हूँ, सपनों की उमंग आज भी लिए फिरती हूँ उनको पूरा करने की जिद की तमन्ना रखती हूँ थोड़ा अलग हूँ!! बेपरवाह लोगों की परवाह करती हूँ आज तक जो ना समझ पाए लोग उनको समझने की कोशिश करती हूँ अपमान बार बार किए लोगों का भी सम्मान करती हूँ, रिश्तों में श्रद्धा रखती हूँ शायद इसीलिये थोड़ा तो अलग हूँ!! जीवों से प्यार करती हूँ उनकी परवाह करती हूँ , लोग अक्सर पूछते हैं ये बोलते तो नहीं फिर कैसे इनकी जरूरतें पूरा कर पाती हूँ?? इनकी मासूमियत में लाखों सवाल जवाब छिपे हैं इनके प्रति दुत्कार और तिरस्कार के, जिनको ...
मैं भी कभी ज़ुबान थी
कविता

मैं भी कभी ज़ुबान थी

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं भी कभी ज़ुबान थी ज़बान की ज़ुबान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी सच बोलने को तरस गयी सच का कभी विधान थी उसूलों का मैं ही बयान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी क्या आज ये सब हो गया माया में मोह फँस गया छल-कपट में धँस गयी मैं मैं बेशक़ीमत गुमान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी हर यक़ीन की जान थी पुरखों की आन-बान थी अद्भुत ही मेरी शान थी गूँगों की मैं पहचान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी दिमाग़ की तरंग थी दिलों की मैं उमंग थी जज़्बों का मैं ही रंग थी जवानी की अनंग थी जिह्वा की भाषा थी ग़रीब की आशा थी नेताओं का सम्मान थी विश्वास और मान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी ज़बान मेरी मात थी वो ही सही सौग़ात थी इज़्ज़त उसी से थी मेरी उसकी भी इज़्ज़त मैं ही थी मैं भी कभी ज़ुबान थी इन्सान का ईमान थी मुझसे जुड़ा समाज था मुहब्बत का पैग़ाम थी मुझसे बदल...
योग भगाये रोग
दोहा

योग भगाये रोग

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** योग भगाता रोग है, काया हो आदित्य। स्वास्थ्य रहे हरदम खरा, मिले ताज़गी नित्य।। योग कला है, ज्ञान है, ऋषियों का संदेश। तन-मन की हर पीर को, करे दूर, हर क्लेश।। योग साधना मानकर, पाते हम बल-वेग। गति-मति में हो श्रेष्ठता, मिले खुशी का नेग।। दीर्घ आयु मिलती सदा, अपनाते जो ध्यान। योग करो, ताक़त गहो, पाओ नित सम्मान।। योग कह रहा नित्य यह, लेना शाकाहार। तभी मिलेगा हर कदम, जीवन में उजियार।। भारत चिंतन में प्रखर, देता उर-आलोक। योग-ध्यान से बंधुवर, पास न आता शोक।। योग दिवस मंगल रचे, अखिल विश्व में मान। योगासन हर मुद्रा, पाती है यशगान।। योग साधना दिव्य है, रामदेव जी संत। जिन ने भारत से किया, सकल रुग्णता अंत।। योग नया विश्वास है, चोखी है इक आस। जो जीवन-आनंद दे, रचे नया मधुमास।। योग-ध्यान से नेह कर, गा...
हर मुश्किल से हाथ मिलाता है पिता
कविता

हर मुश्किल से हाथ मिलाता है पिता

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** भुला जमाने भर के ज़ख्म मुस्काता है पिता खुद के लिए कब कुछ यहां बनाता है पिता रह न जाये ख्बाब अधूरे पूरा करने के लिए देखो हर मुश्किल से हाथ मिलाता है पिता लगाना न इल्जाम निस्वार्थ त्याग पर उसके दाना-दाना घर-परिवार हित कमाता है पिता भीड़ भरी दुनियां में जाए न भटक संतति कदम -कदम हरपल खुद को जगाता है पिता मचलता कहां मन नित नये शौक के लिए जरूरतों की खातिर हस-हस मिटाता है पिता लादे हुए है बोझ बेसुमार जबाबदेहियों का भाई--मित्र--पुत्र-पति भी कहलाता है पिता मान लूं भगवान भी तो मान कम पड़ जायेगा "गोविमी" बन बरगद शीतल इठलाता है पिता परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सरकार मज़े में है ….!
कविता, हास्य

सरकार मज़े में है ….!

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** फूल मज़े में है खार मज़े में है झुठ्ठों का कारोबार मज़े में है। जिसे पहन कर भागे थे वह बाबा की सलवार मज़े में है । बढ़े हैं चोर उचक्के जबसे रहता थानेदार मज़े में है। औने-पौने फसल खरीदी कर व्यापारी व व्यापार मज़े में है सौ का ठर्रा पी के सो जाता है रहता पल्लेदार मज़े में है। मध्यम वर्ग का लहू पी कर रहती है ये सरकार मज़े में है। जनता को चूना लगाकर नेताओं का रोजगार मज़े में है। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मा...
पिता
कविता

पिता

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** परिवार का आधार स्तंभ हैं पिता, परिवार का मुखिया हैं पिता, पिता हैं परिवार की बरगद-सी छांव, पिता ढाल हैं, पिता आदर्श हैं। पिता हैं दिये की बाती, जब तक हैं पिता तब तक, जगमगाता हैं परिवार, घर की रौनक हैं पिता, पिता हो चाहे बीमार, परिवार-जनों की खुशी-खातिर, अपने दुख-दर्द छुपाता हैं। कभी-कभी गम के घूंट, अकेले ही पीता हैं। अंतस में हो चाहे तिमिर, अधरों पर लिए मुस्कान, सुगंधित पुष्प-सी महक, महकाता हैं पिता, पिता परिवार का मान हैं। स्वाभिमान हैं। परिवार का ताज-सरताज हैं। पिता हैं परिवार का दिव्य-प्रकाश, अपने कर्तव्य पूर्ण कर, पिता दिये की बाती सम प्रज्ज्वलित हो, प्रकाश फैलाता। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
पिता होना आसान नहीं होता
कविता

पिता होना आसान नहीं होता

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गगन चूमती इमारत का, नींव का पत्थर होना आसान नहीं होता।। कि अपने मुस्कुराते अधरों से, हलाहल पीना आसान नहीं होता।। रात को शीतल चांद, दिन को सूरज सा तपना आसान नहीं होता। कि इस मायावी जग में, निस्वार्थ प्रेम करना आसान नहीं होता ।। अपने खून पसीने से एक कोरी किताब लिखना आसान नहीं होता।। कि साध कर भागते समय को, गीता बाँचना आसान नहीं होता।। निर्मल कोमल हृदय को सक्ता का, आवरण ओढ़ना आसान नहीं होता। कि घर बाहर की जिम्मेदारियों को, कांधे ढोना आसान नहीं होता।। नर्म नर्म कलियों को सहेज, ओक में भरना आसान नहीं होता । कि लड़खड़ाते कदमों को, एक सही दिशा देना आसान नहीं होता।। जीवन के खेल में, जीतकर भी हारना आसान नहीं होता। बैठ कर जमीन पर दिन में तारे देखना आसान नहीं होता।। फटे हाल घिसे जूते लिए, कड़ी धूप में चलना...
साजन कब आओगे?
कविता

साजन कब आओगे?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कब आओगे साजन मेरे, तुमको प्यार बुलाता? बिना तुम्हारे मेरे जी में, पलभर चैन न आता। बारिश में आने की कह कर, मुझको समझाया था। नहीं भूलता प्यार तुम्हारा, जो तुमसे पाया था। पेड़ों पर झूलों में सखियाँ, साथ पिया के झूलें। मुझको तो तेरी बाहों के, झूले कभी न भूलें। बारिश बीती, जाड़ा आया, पर तू लौट न आया। विरह व्यथा में डूबे मन को, मैंने यह समझाया। तेरे इंतजार में साजन, आँखें भी पथराईं। जाड़ा बीता बिना तुम्हारे, पलकें झपक न पाईं। पवन बसंती चली सुहानी, मेरा मन हर्षाया। तेरे बिना मोर, कोयल का, स्वर संगीत न भाया। ज्येष्ठ मास के लंबे दिन भी, मेरी पीर बढ़ाते। विरह अग्नि पर, गर्मी के दिन, लगता बदन जलाते। कब आओगे सजन मेंरे, पाती लिख बतला दो? अब बारिश आने वाली है, प्यार मेघ बरसा दो। परिचय :- अंजनी कुमार ...
मार पड़ी महँगाई की
गीत

मार पड़ी महँगाई की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मार पड़ी महँगाई की है, नहीं सूझती बात। मिली आज की दौर की हमें, आँसू ही सौग़ात।। रोते बच्चे मिले बटर भी, कुछ रोटी के साथ। पल्लू से आँसू पोंछे माँ, पर मारे-दो हाथ।। छूट गया काम क्या करे अब, खाओ सूखा भात। रोज़ गालियाँ देता पति भी, आती उसे न लाज। कटे जीवनी कैसे उसकी, करे न कोई काज।। पीने दारू बेचें जेवर, रोती बस दिन-रात। घूरे के भी दिन आते हैं, उर रखती बस आस। काम मिलेगा कल फिर उसको, पूरा है विश्वास।। तगड़ा नेटवर्क उसका भी, देगी सबको मात। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्या...
ये महकती खुशबू
कविता

ये महकती खुशबू

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सिर्फ फूल ही नहीं देते खुशबू फल भी देते, आज भी देते हैं कल भी देते हैं, यहीं नहीं रिश्ते भी महकते हैं, संत, गुरू, पीर, फरिश्ते महकते हैं, आचार व्यवहार महकते हैं, सबसे ज्यादा विचार महकते हैं, पता नहीं किसी को महसूस होता है या नहीं पर हर वो संत, गुरू, महापुरुष, जिन्होंने गरीब, प्रताड़ित, वंचितों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने का प्रयास किया, समता,समानता, बंधुता का विचार लाया, सबके मन मस्तिष्क में गहरा छाया, बुद्ध की महक पूरे विश्व में छाया है, जिसने सत्य अहिंसा शांति का मार्ग बताया है, वहीं खुशबू हमने महसूस किया महामना ज्योति बा फुले में, शिक्षा की देवी सावित्री बाई फुले में, तभी आज झूल पा रहे शिक्षा के झूले में, कबीर, रैदास, नानक, पेरियार, गुरू घासीदास, नारायणा गुरू, और भीम न...
मिटे बालश्रम
कविता

मिटे बालश्रम

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** बचपन बका जीवन पढ़ने खेलने कुदने खानेपीने मौजमस्त हंसी खुशी का जीवन बाॅंध पीठ पर पोथी विद्यालय का सुनहरा पढ़ने का प्यारा दिन शिक्षा अर्जित के दिन मजबूरी में बच्चों का बीत रहा सुहावना दिन वंचित विद्या से मासूम मेहनत में जुटा बचपन अथकपरिश्रम में बचपन शिक्षा के बिन उदासीन मेहनत में इन बच्चों का बीत रहा सुनहरा बचपन बालश्रम है देखो नबचपन क्यों है जबकि आंखे बंद श्राप गरीबी का ऐसा लगा बाल मजदूरी बढ़ता बचपन चूल्हा जलाने, रोटी कमाने भूख पेट की सबकी मिटाने सर्दी गर्मी आंधी तूफानों में कमाता बोझ उठाता बचपन परिवार की दीन दशा पर सुधार का सपना है बनता शिक्षादीक्षा करता है दफ़न पढ़ाईलिखाई बिन बीतता मासूम बच्चों का बचपन बेबस भी और लाचार भी जाने कितने मासूम बचपन जन-जन जागरूकता लाये बचपनसे शिक्षित हो जीवन मिटाओ बच...
राजनीति
कविता

राजनीति

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चमचों ने कहा चमचे से कुछ चमक-दमक दमकी ही नहीं? पीतल को घिसा खूब मगर ! सोना बनकर वह उभरा ही नहीं। लोहे मे लोहा मिलने से सोना नहीं बनता है भाई। सोने की परख जौहरी जाने, नकली जौहरी नहीं पहचाने। कंचन की परख तुम कर लेते, लोहा भी सोना बन जाता, गंगाजल में जल मिलकर के, पवित्र गंगाजल वह हो जाता। कोई नहीं पहचान सका उसको, गंगा की तरह वह पूज्य हुआ। राजनीति की भाषा तुम समझो, सोचो समझो तुम पहचानो, समय को जिसने पहचाना, हुआ समय भी देखो बलिहारी। रंग से राजा बन बैठा, कसौटी पर खड़ा उतरा भाई। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मा...
थोड़ा खुश हो लेते हैं
कविता

थोड़ा खुश हो लेते हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** चलो आज से थोड़ा थोड़ा खुश होते हैं, मन की दहलीज पर नई उम्मीदें सजाते हैं! बाहरी दुनिया से क्यूँ आस लगाना खुद से खुद में उमंग भरते हैं!! जितने भी घाव मिले अब तक मरहम बन दवा उनकी ढूंढते हैं , सूकून मिले अब दिल को दर्द का दामन छोड़ देते हैं!! कल तक झुठलाया था जिन राहों को पथरीली समझ कर, आज उन्हीं राहों से रूबरू होते हैं!! दुःस्वप्न था जो दुःखद था, अब मुस्कराहटों से नाता जोड़ लेते हैं !! हर एक जीव में रब है, खुदा है, ईश् और ईश्वर भी है, इंसान बन, इनकी तकलीफों को कुछ कम करते हैं इनके मासूम, निःस्वार्थ प्रेम में अपने आप को सराबोर करते हैं प्रभु की अनमोल भेट है ये प्रकृति ये जीव, ये जीवन इनमे खुशियां बांट स्वयं में बसे परमात्मा से मुलाकात करते हैं! चलो आज थोड़ा खुश होते हैं!! ...
पिता का प्यार
कविता

पिता का प्यार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जिंदगी का तजुर्बा एक पिता समझते बेटे उनके हम पिता कहते हाथ पकड़कर स्कूल ले जाते घर आते वो साथ ले आते भटक न जाय बचपन अनुशासन की डोर बांधकर बचपन में नियंत्रण पिता रखते गोद में बैठे हम हंसते या रोते पिता अपने प्यार में सन्तान को हँसते हंसते दुःख भरी जिंदगी बिल्कुल नहीं कहते धैर्य संयम की डोर बांधकर सशक्त करते पिता हंसते हंसते मस्त रहने के तजुर्बे में पिरोते पिता सुनाते खट्टे मीठे अनुभव हम दुबले या मोटे उपदेश पिता के नही लगते खोटे एक पिता ही है दुखी रहकर चाहत पूरी करते हम उन्हें पिता कहते परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सेवानिवृति की सुहानी बेला
कविता

सेवानिवृति की सुहानी बेला

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सेवानिवृत्ति की सुहानी बेला आयी। मन में अपार खुशियां छायी। तरूणावस्था में शिक्षक-पद पाया। सतत शिक्षा दे कर्तव्य पथ निभाया। छात्र-छात्राओं के अंतस अज्ञान मिटाया। ज्ञान-दीप से ज्ञान-ज्योति जलायी। शिक्षक बन शिक्षक कहलाया। अपना कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी से निभाया। अपार खुशियों-सम मिठाई खायी। बाधाएं पार करते हुए विजय पायी। बच्चों की अठखेलियां याद आयी। बीमारी में भी कर्तव्य-गीत गायी। छात्र-छात्राओं के उर उच्च स्थान पायी। शिक्षक-रूप में बनी छात्राओं की माई। छात्र-छात्राओं के जीवन में प्रकाश फैलाया। छात्र-छात्राओं की नींव पक्की करवाई। अब स्वयं से बात करने का समय निकाल पाई। स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो पाई। प्रभु से जुड़ने का समय निकाल पाई। खुद को योग से जोड़ पाई। परिचय :- श्रीमती संगीता स...
सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है
कविता

सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जीवन के हर पथ पर मिलते है कांटे जाने कितने रंजो गम को इसमे बाँटे भूल ना जाना जीवन की ये कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है निश्चित ही आयेगा जग मे गम का मेला लड़ना ही पडता है सबको यहाँ अकेला क्या होगा आगे-2 किसने यहाँ जानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है क्या होगा आगे क्यों सोच रहा है बन्दे कर्म कर फल की इच्छा मत कर बन्दे बहती रग-रग मे जैसे खूँ की रवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आज को जी ले कल किसने देखा है कर्म से बदल जाती हाथो की रेखा है वर्तमान को जीना सिखाती जवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आओ मिलकर हम एक नया आयाम दे संघर्ष से जगत को एक नया पैगाम दे पग-पग पर लिखनी रोज नई कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी ज...
रिश्तों के जज्बात
कविता

रिश्तों के जज्बात

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी होता है या नहीं पर मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है, आपको विश्वास हो या न हो क्या फर्क पड़ता है। आखिर ये कैसा रिश्ता है किस जन्म का संबंध है, संबंध है भी या नहीं ये मैं कह भी नहीं सकता। क्योंकि पूर्वजन्म के रिश्तों का मैं न हूं कोई ज्ञाता। पर आज रिश्ता है हमारा उससे जिसे देखा तक नहीं तो जान पहचान का तो प्रश्न ही नहीं। फिर भी वो जानी पहचानी लगती है इतनी छोटी होकर भी नानी दादी सी लगती है। वो चाहे जितनी दूर है हम आमने सामने मिलेंगे या नहीं ये तो कहना मुश्किल है। पर वो आसपास है घर के आंगन में फुदकती लगती है, हंसाती और रुलाती है, बेवजह सिर खाती है। अपने छोटे होने का लाभ उठाने का मौका भी वो कहाँ छोड़ती है, अपने अधिकारों का जी भरकर प्रयोग करती है। हमसे अपने रिश्ते बताती है जाने क...
बेटी की विदाई
कविता

बेटी की विदाई

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** लड़वण प्यारी लाड़ली, निरख रही घर आंगन को। प्रणय विदा की वेला में, ढांढस बंधातीं बाबुल को। मां कैसे घर को भूलूंगी, और कैसे तेरे आंचल को। अनुज अंक में बिलखती, छाती भर कर भाभी को। विकल हृदय मयूरी सी, तोड़े अंसुवन बांधों को। क्रंदन करती याद में, रह रह आती यादों को। भरी अंजुरी अक्षत ले, बैठी देहरी पूजन को। झर- झर बरसी आंखें, नयन लजाते सावन को। मां भूल मत जाना प्रातः, पानी अर्पण तुलसी को। बिखेर देना छत पर, मुठ्ठी भर दाना चिड़िया को। मां दवा समय पर लेना, बस स्वस्थ रखना खुद को। भूल जाएं कोई काम धाम, तो लड़ना मत पापा को। भाभी मेरी ख़ास सहेली, संग रखना याद भूलाने को। कभी डांटना मत गुस्से से, बिगड़ा काम सिखाने को। भाभी खुशियों की चादर में, तू बांधे रखना सब को। अब अपना करने मैं चली, किसी ...
शूलों से भरा प्रेम पथ
गीत

शूलों से भरा प्रेम पथ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** है शूलों से भरा प्रेम-पथ, मनुज-स्वार्थ के खम्भ गड़े। कुछ भौतिक लाभों के कारण, कौरव पांडव देख लड़े।। क्रोध घृणा जग मध्य बढ़ा है, प्रेम सुधा का काम नहीं। त्याग समर्पण को भूले सब, समरसता का नाम नहीं।। अवरोधों को पार करो सब, छोटे हों या बहुत बडे़।। धर्म-कर्म करता ना कोई, गीता का भी ज्ञान नहीं। मोहन की मुरली के जैसी, मधुरिम कोई तान नहीं।। बहु बाधित सुख शांति हुई है, नाते हुए चिकने घड़े।। तप्त हुई वसुधा पापों से, दानव हर पल घात करें। भूल भावना सहयोगों की, राग-द्वेष की बात करें। आवाहन करते खुशियों का, दो मोती प्रभु सीप जड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
भक्त प्रेम
कविता

भक्त प्रेम

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** भक्त "प्रेम" ये पूछ रहा है, अवधवासियों क्या कर डाला। मंदिर भव्य बनाया जिनमे, उनको क्यों पीड़ा दे डाला। भक्त प्रेम... मंदिर से पर्यटन बढ़ेगा, सीधा लाभ तुम्ही को होगा। सभी क्षेत्र व्यापार बढ़ेगा, बच्चो को घर द्वार मिलेगा। पर जब आत्मा कोसेगी तो, प्रतिपाल हृदय चुभेगा भाला। भक्त प्रेम... दस वर्षों का काम न देखा, नहीं दिखी तुझे ईमानदारी। कारसेवकों के दोषी ने फैला भ्रम मति है मारी। जिसदिन हनुमत कुपित हो गए, नहीं गले उतरेगा निवाला। भक्त प्रेम... दस सालों के सत्ता भूखे, तुम्हे नोचने को व्याकुल है। जो भारत की प्रगति कर रहा, उसे हटाने को एक जुट हैं। बच्चे, पोते जब पूछें तो, बतलाना क्यों किया घोटाला। भक्त प्रेम... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ह...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पत्थरों और भ्रम वाले मायाजालों की शरण से मुकम्मल निकल हम प्रकृति की शरण में जा सकते हैं, अवास्तविक को गंवा कर वास्तविक को पा सकते हैं, इसके लिए हमें जाना होगा नतमस्तक हो पर्यावरण की शरण में, हम लोग भुलाये बैठे हैं स्वर्ग नरक और जीवन मरण में, हमारे सांसों की आपूर्ति किसके भरोसे है, चमत्कारियों के एजेंट अब तक हमें सिर्फ नोचे हैं, हम किस कदर अंधविश्वास में डूबे हैं, पाखंडों से अभी तक नहीं ऊबे हैं, पेड़ हमारी जीवन रेखा है, पग पग पर उसी को देखा है, प्रकृति हमारी संस्कृति जीवन और सार है, हर जीव के प्राणों का आधार है, कौन है और क्या है जो हमें कुछ वापस देता है, सब कुछ सहकर भी हमें हमारा अमूल्य जीवन देता है, तो कृतज्ञता हमें किसी चमत्कारी पर नहीं पर्यावरण पर को देना है, वर्ना क्या किसी से छीने हैं और ...
आओ धरती का श्रृंगार करें
कविता

आओ धरती का श्रृंगार करें

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** कब तक जंगल काटोगे? चंद सिक्कों के लालच में। कब तक जहर बाँटोगे? चंद रूपयों के लालच में।। काट रहे हो हरियाली, बना रहे हो बंजर धरती। अन्न कहाँ से पाओगे? बिन पानी खेती परती।। तुम्हारे घर भी जलेंगे, उस सूरज की तपिश में। तुम्हारे श्वांस भी रुकेंगे, जीवन की खलिश में।। क्या तेरे दर आँच न आएगी? तेरा मकां भी है इसी शहर में। ढह जाएगा तेरा भी घर, उस कुदरत के कहर में।। तप रही है सारी धरती, तप रहा सारा आकाश। समय रहते हों सचेत, वरना होगा महाविनाश।। जब तरु ही न रहेंगे भू पर, वर्षा कहाँ से आएगी ? बिन छाया, बिन पानी, धरती तब थर्रायेगी।। आओ धरती का श्रृंगार करें, मिलकर पेड़ लगाएँ हम। हरी-भरी हो धरा हमारी, जीवन सफल बनाएँ हम।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -...
यशोधरा
कविता

यशोधरा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बुद्ध को अमरत्व मिला, श्री विष्णु के अवतार बने, यशोधरा की बीथी बिसर गई विरह, वेदना, एकाकीपन, पीड़ा ही अर्जित कर पाईं!! प्रश्नो का अंबार लगा, क्यों तुम हमको छोड़ गए लिया था सात वचनों का बंधन इतनी आसानी से तोड़ गए! स्वयं पर विश्वास नहीं क्या बाधा मुझको समझ गए!! जब जूझ रहे थे अंतर्मन से कुछ तो बतलाया होता, इन प्राचीरों में, यूँ ही अकेला छोड़ गए!! नही विस्तृत कर पाई उन स्मृतियों को जो साथ तुम्हारे बीती थी उन सभी सुनहरे सपनों को अग्नि में सुलगते छोड़ गए!! देह का बोझ ढोना हुआ दुष्कर, सारी आशाएं कुम्हलाईं ! मृत्यु भी ना वर पाऊँ राहुल को पीछे छोड़ गए!! किस से बांटू वेदनाओं को कैसे उसको मैं बहलाऊं विरान, सिसकती इन दीवारों पर कोई संदेश छोड़ के नहीं गए!! मुक्ति पथ पर निकले थे, तुम समाधिस्थ हु...