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पद्य

कारे बदरा देख झूमे मनवा
कविता

कारे बदरा देख झूमे मनवा

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उमङ-घुमङ कर कारे बदरा छाए देखो-देखो कितना जल भर लाए रिमझिम-रिमझिम देख बरखा खिल-खिल जाए मुखड़ा सबका मतवाला मयूर घूम-घूम नाचता पीहू-पीहू पपीहा भी गाता दादुर टर्र-टर्र टर्राता किसना खेत देख हर्षाता मुनिया रानी नाव बना तैराती छप-छप कर मुन्ना छीटे उङाता गरमा-गरम भुट्टा सबको अति भाता पकोड़े की खुशबू जियरा ललचाता बचपन देखो होता कितना प्यारा मेंढक देख फुदकता मुन्ने का मनवा ताल-तलैया में पानी सुहावना अमुआ की डाल पर झूला मनभावना शीतल सोंधी-सोंधी माटी की खुशबू खुशहाली छा गई देखो-देखो हरसू कभी तितली सा मन रंगों से भरता कभी चिहू-चिहू चिड़ियों सा चहकता परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
मैं बदल रहा हूं …
कविता

मैं बदल रहा हूं …

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे जाने या अंजाने में कोई गलतियां गर हुआ है उसका अफसोस है मैं उन गलतियों से बहुत कुछ सीख रहा हूं मैं हरदम परेशानी का कारण हुआ करता था अब ये गलतियां न हो पाये दोबारा इसका बेहतर विकल्प ढूंढ रहा हूं लाख आये राह में कांटे उन कांटों में भी सुंदर फूल ढूंढ रहा हूं जिम्मेदारी के बंधन में बंध जाऊ इस कदर कि मेरे अपने भी कभी न हो पाए तर-बतर मेरे उन सारी हरकतों को अब विराम कर रहा हूं दुनिया में इस प्रेम से बंधे रिश्ते का जो हमें दर्जा दिऐ हो मैं उसे बेहतर ढंग से निभा सकूं अब उसका मैं सूत्र ढूंढ रहा हूं मैं बदल रहा हूं ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
बदलते मौसम
कविता

बदलते मौसम

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** बदलते मौसम का हाल ही कुछ ऐसा है। सवाल हर बार नए से है। जवाबों का हाल ही कुछ ऐसा है। नन्ही चिरैया की चोच से गिर पड़ा है, तिनका फिर से, घरौंदे बनाने का भार ही कुछ ऐसा है। शाम को ढल जाने की फुर्सत ही कहां है। राहगीर को घर जाने की जल्दी है। घर का ख्याल ही कुछ ऐसा है। आप ही आप छाए हो ज़हन में, आपका किरदार ही कुछ ऐसा है। कागज की कश्तियां बना रहा है। अल्हड़मन फिर से, पानी का बहाव ही भी कुछ ऐसा है। दस्तूर नए से हैं, इस शहर के। हर एक मोड़ का सूरत-ए-हाल ही कुछ ऐसा है। बदलते मौसम का हाल कुछ ऐसा है। सवाल हर बार नए से हैं। जवाबों का हाल ही कुछ ऐसा है। परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी ...
प्रभु नाम महिमा
भजन

प्रभु नाम महिमा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मेरे प्रेम को मान इतना दिया प्रभु, कि मैं स्वयं को भूलता जा रहा हूं। तुम स्वामी हो मेरे, मैं सेवक तुम्हारा, इसी भाव को पोस्ता जा रहा हूं। मेरे प्रेम को ... तुम्ही ने लिखाई है, प्रभु नाम महिमा, तुम्ही ने कहा "प्रेम" भक्ति में बह जा। तेरे मार्गदर्शन में कुछ पग बढ़ाए, तो मैं राम जी की कृपा पा रहा हूं। मेरे प्रेम को ... तुम हर पल रमें हो प्रभु नाम जप में, सभी को बताते हो, बस युक्ति है ये। जिसे भा गई युक्ति, और रम गया जो, वो कलयुग में भी मुक्ति ही पा रहा यूं। मेरे प्रेम को ... प्रभु नाम महिमा को जो भक्त गाते, वे हर मंच पर हैं, बहुत मान पाते। तेरे गीत गायक का साधन हैं बनते, इसी प्रेरणा से लिखे जा रहा हूं। मेरे प्रेम को ... तुम्ही नाम महिमा के सर्वज्ञ ज्ञाता, जो हो पूर्ण अर्पित वो "मानस" लिखवाता। प्रभु नाम...
खामोशी सब कुछ कहती है
कविता

खामोशी सब कुछ कहती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बिन बोले मन की सब बातें, खामोशी कह देती। लंबे वक्त रहे खामोशी, प्राण हरण कर लेती। गलत बात को मन में रखकर, स्वतः मौन हो जाना। धीरे-धीरे खामोशी में, बिना वजह खो जाना। कभी जिंदगी में खामोशी, अजब रंग भरती है। पास बुलाती कभी किसी को, कभी दूर करती है। खामोशी के पल जीवन में, कभी रंग लाते हैं। कभी-कभी खामोशी के क्षण, सहे नहीं जाते हैं। समझदार खामोशी लख कर, सावधान हो जाते। क्यों ओढ़ी खामोशी उसका, कारण पता लगाते? मन विरुद्ध जब कुछ भी होता, रोक नहीं हम पाते। खामोशी छा जाती मन पर, शब्दहीन हो जाते। खामोशी सब कुछ कह देती, जो सुविज्ञ वह जाने। बिना कहे जो बात समझ ले, गुणी उसी को माने। बहुत बोलती है खामोशी, जाने क्या-क्या कहती? खामोशी भी अपने भीतर, दर्द छुपाये रहती। परिचय :- अंज...
विमाता (कैकेयी)
कविता

विमाता (कैकेयी)

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** विधाता के संदेश को जानती थीं नियति थी ये भी ज्ञात था ! अवांछनीय कर दी जायेंगी ममता की परिभाषा से विमुख कर दी जाएंगी! मातृत्व प्रेम से नहीं अपितु कुमाता रूप मे जानी जाएंगी! उन्हें दुत्कारा जाएगा तमाम दोषारोपण लगाए जाएंगे, राज काज से बेदखल कर दी जायेंगी! आत्मविश्वास की धनी, कर्तव्य पर अडिग, ममता की मूरत थीं, कुशल योद्धा, उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ थीं!! दो वाचनों का वरदान ले जिद पर अडी, राम को मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम बना गईं!! नारायण के पुनीत कार्य का आरम्भ बनीं, युगपत में व्याप्त घोर असंतोष का अंत कर रामराज्य लाने का स्त्रोत बनीं! राम के वनवास का कारक बनीं सम्पूर्ण जगत को राम नाम का बीज मंत्र दे गईं! अधर्म पर धर्म की विजय हो स्वयं का जीवन प्राण विहीन बना गईं!! कितने क...
पत्थर हुआ इंसान
कविता

पत्थर हुआ इंसान

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** आजकल इंसान नही रहा इंसान । हो गया है पत्थर समान। ******* प्रत्येक इंसान अपनी दुनियां में खो गया है। इसलिये शायद भावना शून्य हो गया है। ****** समाज में होनी वाली घटना का उस पर कोई असर नहीं होता है। वह तो केवल अपनी मस्ती में मस्त होता है। ****** चाहे हो जाय हत्या चाहे हो जाय बलात्कार उसके कानों पर जूं नही रेंगती। उसको तो केवल अपनी पड़ी रहती हैं। ******* दया,करुणा और सहनुभूति आजकल इंसानों में नहीं मिलती इसलिये दुनियां में अब खुशहाली नही दिखती। ****** अब इंसानियत खो चुका है इंसान। इसलिये पत्थर दिल हुआ है इंसान। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
जमीर
कविता

जमीर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मानव सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना गया है, पर उनका वो हिस्सा जहां दया होता है, जहां करुणा पाया जाता है, जो अच्छे बुरे का अनुभव करता है, जहां नैतिकता को धरता है, लाख मुसीबतें आने पर नहीं बिखरता है, जहां प्राणी मात्र के लिए प्यार होता है, सोच समझ कर आपा नहीं खोता है, जहां से सहयोग की भावनाएं निकलती है, जब मर जाती है, तब जाति, धर्म, सम्प्रदाय, ऊंच नीच की भावना, सिर्फ पाने की कामना, दूसरों से उच्च होने का घमंड, नफरत लिए हुए प्रचंड, चिकनी चुपड़ी बातों से छलने की काया, लाखों वसूल कर बताए सब कुछ है मोहमाया, तब समझिये उसे जिंदा लाश, अंदर से हो चुका है बदहवाश, कितनों भी हो वो अमीर, निश्चित ही मर चुका है उनका जमीर ... परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोष...
सीढ़ी
कविता

सीढ़ी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** सीढ़ी पर चढ़कर ढूंढ़ता हूँ बादलों में छुपे चाँद को पकड़ना चाहता हूँ चंदा मामा को बचपन में दिलों दिमाग में समाया था। लोरियों, कहानियों में रचा बसा था माँ से पूछा की चंदा मामा अपने घर कब आएंगे ये तो बस तारों के संग ही रहते है ये स्कूल भी जाते या नहीं अमावस्या को इनके स्कूल की छुट्टी होगी। तभी तो ये दिखते नहीं माँ ने आज खीर बनाई इसलिए मामा को खाने पर बुलाने के लिए सीढ़ियों पर चढ़ कर देखा मामा का घर तो बहुत दूर है। इसलिए माँ सच कहती थी चंदा मामा दूर के पोहे पकाए ..... बड़ा हो के रॉकेट से चन्द्रमा पर जाऊंगा जैसे गए थे निल आर्मस्ट्रांग तब माँ के हाथो की बनी खीर का न्यौता अवश्य दूंगा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी...
बेटियां
कविता

बेटियां

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** जमीं-ओ-आस्मां का प्यार हैं, बेटियां, चांद-ओ-सूरज का निखार हैं, बेटियां ! कण-कण में व्यापत सांसों का दिगंत, करती रहती सतत विस्तार हैं, बेटियां !! सुख-ओ-दुःख की साथी हैं, बेटियां, योग-ओ-वियोग भी पाती हैं, बेटियां ! जन्म से मृत्योपरान्त हैं अनेक रूप, भार्या-बहिन ओ माँ कहाती हैं, बेटियां !! अपने-ओ-पराये की प्रिय हैं, बेटियां घर-आंगन की लाज व दिये हैं, बेटियां ! जाती जब लांघकर एक देहरी से दूजी बाबुल की दुआओं को जिए हैं, बेटियां !! सीता-ओ-राधा-सी निर्मल हैं, बेटियां, अनुसूइया, सावित्री-सी प्रबल हैं, बेटियां ! कूद पड़े रणभूमि में, बनके दुर्गा-काली, मीरा, संवरी-सी उज्जवल हैं, बेटियां !! युगों-युगों से सृष्टि का श्रृंगार हैं, बेटियां, धरती की हर हलचल-झंकार हैं, बेटियां ! मिट जाएगा भूमंडल, ब...
बिलख रहे रस अलंकार हैं
गीत

बिलख रहे रस अलंकार हैं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बिलख रहे रस अलंकार हैं, चुप है छंद तरंग। रहे उदासी गीतों पर भी, न ग़ज़लों में उमंग।। नवगीतों का दौर चला बस, उसकी है भरमार। नव बिंबों में खोया जीवन, होती है तकरार।। कौन पहेली बूझे इसकी, बदले सभी प्रसंग। रोज़ तंज़ बस रिश्तों पर, महँगाई का नाम। नव चिंतन नव संप्रेषण भी, चले मुक्ति संग्राम।। नई सदी की नई विधा यह, नवल रूप नव रंग। भावों में भी जोश अनोखा, पैनी कटार ओज। जन-जन मोहित रचनाओं पर, करें सत्य की खोज।। डाले रुढ़ियों पर नकेल भी, करता अद्भुत जंग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्...
कुरुक्षेत्र में
कविता

कुरुक्षेत्र में

माधवी तारे लंदन ******************** अब की बार चुनावी कुरुक्षेत्र में चाकू, खंजर, तीर, तलवार खूब लड़ रहे थे आपस में कौन ज्यादा गहरा जख्म दे शब्द पीछे बैठे मुस्कुरा रहे थे जिव्हा की लेकर तेज तलवार आई थी महिलाएं भी मंच पर चतुरतर पद की गरिमा भूलकर अपनी वाणी की कला दिखाने और शब्द पीछे बैठे मुस्कुरा रहे थे कुछ सत्तांधों ने एक होकर किया भ्रमण था देश भर सिंहासन की चाह पकड़कर झूठे वादों की वर्षा करने माहौल बिगाड़ने वाले मनोरुग्णो ने चपत मुंह की खाई आखिर सत्य पीछे बैठा मुस्कुरा रहा था... पूर्वकालीन कारनामों को होना था उजागर देश भर तभी तो रामलला ने तीसरी बार कर दिया मोदी जी का बेड़ा पार सनातनता जागृत हो पीछे मुस्कुरा रही थी पक्ष-विपक्ष तो हैं लोकतंत्र की दो सुदृढ़ बाहें वैचारिक मेल-मिलाप से देश को उन्नति के पथ पर लाए फिर क्यों प्रथमग्रासे मक्षिका पतन करने उतावले...
मीठी वाणी
कविता

मीठी वाणी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम शब्द में मीठा है, प्रेम शब्द का मोल, प्रेम शब्द से सब रीझे मानव देव असुर। प्रेम शब्द है मोहिनी प्रेम शब्द है राम, प्रेम शब्द में कृष्ण बसे गोपीयो के हे भगवान, प्रेम शब्द है खींचता दौड़े आए श्याम, द्रोपदी का चीर प्रभु बढ़ा दिया तत्काल, प्रेम व्यवहार से जगत को जीत लेता इंसान, प्रेम भाव संबंध से खुशियाली घर द्वार, अतिथि आये द्वार पर देवों के समान, प्रेम शब्द से झुक जाए दुष्ट शत्रु तत्काल। प्रेम के आगे झुक गए देखो कृष्ण महान, "मीठी बोली सुक बोले सबके मन को भाय , कर्कश वाणी कौवा बोले कोई ना उसको चाह" परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मं...
हर्जाने हैं
कविता

हर्जाने हैं

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हमने भी सुनें लाखों अफसाने हैं हुस्न वालों के यहां हजारों दीवाने हैं। हराम की कमाई में कोई सरचार्ज नहीं ईमान की कमाई पे लाखों जुर्माने हैं। राह चलते बहन बेटियां सुरक्षित नही खुलवा रहे थाने की बजाय मयखाने हैं। रुलाने को आतुर दिखता है हर कोई हंसने, हंसाने की खताओं में हर्जाने हैं। साला बना है उनका मंत्री जी का खास अब झूठे मुकदमें थानेदार पे चलवाने हैं। जनता ने चुना पर जनता की नहीं सुनते ऐसे नेताओं को डंडे मार भगाने हैं। कैसे अपने दिल का हाल सुनाओगे तुम अपनों से ज्यादा तो दिखते यहां बेगाने हैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ...
अटल मेरा विश्वास है
कविता

अटल मेरा विश्वास है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** मिटे गरीबी हिन्दुस्तां से, अटल मेरा विश्वास है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। शिक्षा, स्वास्थ्य ब्रम्हास्त्र बना, बस ऋण देना इक ध्येय नहीं । हो भले अनेकों ऋण दाता, कोई मुझ सा अजेय नहीं ।। हम उनको हीं लक्षित करते, जिनका न किसी पर आस है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। नई विकास की रणनीती, है मिली सभी की सहमती। बस एक वाक्य हीं याद रहे, है ब्रह्म गांठ यह यूनिटी।। घर से लेकर सामानों तक, हो वो सब जो न पास है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। बस एक हमारा कहना है, जितनी भी मेरी बहना है। चलो एक वचन मुझको दे दो, न जुल्म किसी का सहना है।। हम पग-पग साथ तुम्हारे हैं, हाँ तबतक जबतक सांस है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। जब न था कोई हम थे, सबके...
प्यार
कविता

प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** प्यार एक सीमित रेखा तरुणाई उम्र का आकर्षण तपस्या प्रेम की भंग ना हो सब अपनी-अपनी जगह सही हौसला न हो तो प्रेम टूटा जैसे टूटता है तारा और उसी तारे को गवाह बनाते प्रेम के सपने का उदाहरण प्रेम झूल जाता वर्षो की हाँ नहीं में मगर प्रेम होता अमर क्योकि प्यार का वाउचर जो डलवा रखा दिल की चिप में उम्र भर के लिए। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में...
जम के बरसो बदरा
दोहा

जम के बरसो बदरा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जल की पहली बूँद ने, गाया मंगल गीत। कृषकों की तो बन गई, वर्षा अब मनमीत।। जमकर बरसो आज तुम, ऐ बदरा मनमीत। धरती के दिल को अभी, लो तुम प्रियवर जीत।। बचपन की बारिश सुखद, बेहद तब उल्लास। खुशबू मिट्टी की भली, सोंधेपन का वास।।। पहली बारिश जब हुई, हरियाली का दौर। आसमान के मेघ पर, किया सभी ने गौर।। खुशी दे रही है वृहद, हमको तो बरसात। मिट्टी को तो मिल गई, एक नवल सौगात।। बचपन की यादें घिरीं, मन हो गया अतीत। नहीं आज परिवेश वह, नहीं आज वे मीत।। पानी से जीवन मिला, बूँदें हैं वरदान। करता है यह नीर तो, खेतों का सम्मान।। नदी भरी,तालाब भी, मौसम है अनुकूल। दूर हो गए आज तो, गर्मी के सब शूल।। बारिश से ही गति मिले, पीने को है नीर। जल की बूँदों ने हरी, आज सभी की पीर।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २...
समय-रिश्ते-दोस्ती
कविता

समय-रिश्ते-दोस्ती

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** समय समय पवन का झोंका-सा, पल-पल बदले रूख़, साथ अग़र समय का मिले, हर क्षण सुख ही सुख। समय साथ जब छोड़ता है, पार्थ पत्थर बन जाता, जिसने समझा समय को, बन चांद वह मुस्कराता।। रिश्ते होते रिश्ते फूल से कोमल ऱखना सदा संभालकर, तोड़ न देना बिन समझे, वहम का कीच उछालकर। रिश्तों से ही धरती पर, अमन चैन सदभाव जीवंत , जो होते न ग़र रिश्ते-नाते, पशुता पसरी होती दिगंत।। दोस्ती है अगर दोस्ती सच्ची, रिश्ता भाई-भाई का फीका, मुहं न मोड़े मुश्किलों में, बताता हितकारी सलीका। श्रीकृष्ण-सुदामा-सी दोस्ती, मुमकिन कहां जग में, मुहँ पर तो मिश्री-सी वाणी, छल-छदम भरा रग में।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स...
राम ही दाता-विधाता
गीत

राम ही दाता-विधाता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** धन्य देखो भाग्य कुटिया, हैं पधारे आज राम। भक्त है शबरी प्रभो की, नित्य जपती राम नाम।। राम ही दाता विधाता, राम हैं भगवान प्रान। हैं सखा भक्तन सदा ही, राम महिमा देख जान।। राम ही संसार मेरे, राम का कर ध्यान मान। थामते हैं हाथ सबका, राम हैं अवतार भान।। दास सारा जग गुणों की, खान स्वामी राम धाम। राम ही तो आस अब हैं, पार हमको दे उतार। धर्म ही खुद राम प्रभु हैं, कर्म हैं राघव पुकार।। बढ़ गए दुख हैं धरा पर, नाथ अब तू दे उबार। हे अवध स्वामी निराले, देख वो दशरथ कुमार।। नाम उनका जापिए नर, नार साधो.आठ याम। जब कृपा होती प्रभो की, देख खुलते बंद द्वार। राम दें वरदान सुख का, राम ही हैं गंग धार।। राम तारणहार पालें, सृष्टि जानो धर्म सार। लोक नायक हैं प्रजा को, राम देते नेह हार।। राम जीवन लक्ष्य...
हां मैंने खुद को
कविता

हां मैंने खुद को

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** घर-घर रहे, हर सदस्य प्रखर रहे, यही सोच सब कुछ संभाला है, परिवार के लक्ष्यों को पाने खातिर मैंने खुद को घर से निकाला है, झिड़कने काट खाने को आतुर रिश्ते, हो चुके एक दूजे के लिए फरिश्ते, अब कौन समझाये इनको इनके खातिर ही जान संकट में डाला है, हां मैंने खुद को घर से निकाला है जी है हिस्से मेरे नफरतों का अंबार, गलत न होकर भी करना पड़ता है स्वीकार, ऐसा नहीं है कि मैं दूध का धुला हूं, जैसा भी हूं सबके सामने खुला हूं, इनके लिए हर दुख दर्द भुला हूं, किस-किस को बताऊं कि कब कब फांसी के फंदे पर मुस्कुरा कर झूला हूं, रहा होऊंगा कभी उजले तन वाला जिम्मेदारियों ने थूथन कर डाला काला है, हां मैंने खुद को घर से निकाला है त्राहिमाम हिस्से मेरे, उनके हिस्से जिंगालाला है, हां मैंने खुद को घर ...
सत्य-न्याय पग-पग प्रखर हो
कविता

सत्य-न्याय पग-पग प्रखर हो

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** सत्य-न्याय से पग-पग प्रखर हो दुआओं में मेरी खुदा ये असर हो। महके चमन प्रेम औऱ भाईचारे के छल-छदम भरा न कोई पहर हो। रखें भाव मिलजुल जीने का सभी जीवन एक-दूजे के लिये ही बसर हो। नही बड़ा कोई धर्म मानवता से यारो बन जाये अब खुदा हर बशर हो। कर न सके कैद दुनिया मे वक़्त को चलता रहा अविरल बेखौफ दहर हो। हो न कोई आंख भूलकर भी ग़मगीन छलका अश्क़ जो फूटेगा कहर हो। ये जमीं-आसमां औऱ चाँद-तारे सभी करना सदा "गोविमी" पर तुम मेहर हो। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के...
नशामुक्ति पर दोहे
दोहा

नशामुक्ति पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** करता नशा विनाश है, समझ लीजिए शाप। ख़ुद आमंत्रित कर रहे, आप आज अभिशाप।। नशा बड़ी इक पीर है, लिए अनेकों रोग। फिर भी उसको भोगते, देखो मूरख लोग।। नशा करे अवसान नित, जीवन का है अंत। फिर भी उससे हैं जुड़े, पढ़े-लिखे औ' संत।। मत खोना तुम ज़िन्दगी, जीवन सुख का योग । मदिरा, जर्दा को समझ, खड़े सामने रोग।। नशा मौत का स्वर समझ, जाग अभी तू जाग। कब तक गायेगा युँ ही, तू अविवेकी राग।। नशा आर्थिक क्षति करे, तन-मन का संहार। सँभल जाइए आप सब, वरना है अँधियार।। नशा लीलता हर खुशी, मारे सब आनंद। आप कसम ले लीजिए, नशा करेंगे बंद।। नशा नरक का द्वार है, खोलो बंदे नैन। वरना तुम पछताओगे, खोकर सारा चैन।। नशा मारकर चेतना, लाता है अविवेक। नशा धारता है नहीं, कभी इरादे नेक।। नशा व्याधि है, लत बुरी, नशा असंगत रोग। तन-म...
रोशनी
कविता

रोशनी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** अपना सूरज खुद बन जाओ। अपने मन-मंदिर में रोशनी, फैलाते चलो दिव्य रोशनी, जगमग करते चलो। अपने कर्म श्रेष्ठ करते चलो। मन सुंदर स्वच्छ बनाओ। फिर स्वत: ही मन उजाला, ही उजाला फैला जाएगा। सेवा भाव रख कर श्रेष्ठ, कर्म करते चलो जिससे, दूसरों के जीवन को सुमन, सा महका कर खुशबू फैला दें। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें ...
फादर्स डे
कविता

फादर्स डे

डॉ. सोनू चौधरी करनाल जिला- झुंझुनूं (राजस्थान) ******************** आओ सखी अंधेरे में पड़े तुमको दादाजी दिखलाऊ मैं, छत है पापा तो “नींव का पत्थर” दादाजी को बतलाऊ मैं ! आवाज़ होती पापा घर की तो दादाजी सिंह की दहाड़ हैं, रक्षक होते पापा घर के, तो दादाजी हिमालय पहाड़ हैं ! पापा घर की चार दिवारी, तो दादाजी काटों वाली बाड़ हैं, दुःख दर्दों को खाने वाली ये दोनों ऊपर नीचे की जाड़ है, इन दोनों के होते क्यों घर में सी.सी. टीवी लगवाऊ मैं! आओ सखी अंधेरे में पड़े तुमको दादाजी दिखलाऊ मैं, छत है पापा तो “नींव का पत्थर” दादाजी को बतलाऊ मैं ! खुद बिक के भी अरमां पुरे करू ऐसा इनका इरादा है, अजब रिश्ते ये गलती पर मारे कम और गिनते ज्यादा हैं ! दिल मानु पापा को तो सांसो की डोरी मेरी अमृत दादा हैं, सारे तीर्थ इनमें हैं मेरे चाहे काशी, मथुरा और काबा हैं, फिर इन दोनों को छोड़ क्यों ति...
महूं जाहूं स्कूल
आंचलिक बोली, कविता

महूं जाहूं स्कूल

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) सुन ना दाई ओ, सुन गा मोर ददा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। पेन, कापी हा, मोर संगी-साथी ए। पुस्तक मनी हा, जिनगी के थाती ए।। पढ़-लिख के चलहूं गियान के रद्दा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। गुरु जी हा सुनाही, बब्बर शेर के कहानी। पढ़बो हमन कबिता, मछली जल के रानी।। हिन्दी हवय मोर महतारी के भाखा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। जोड़-घटाव बर खुलही गणित के पिटारा। गुणा-भाग बर गिनबो पहाड़ा गिनतारा।। आकृति नापबो ता आहय खूब मजा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। जम्मों जिनिस के नाव ला अंग्रेजी म बोलबो। सतरंगी इंद्रधनुष के निसैनी बनाके चढ़बो।। सीखबो पोयम जॉनी-जॉनी यस पापा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। खेलबो खेलगढ़िया के हमन खेल। कभू कबड्डी, खो-खो, कभू रेलमरेल।। नाचा अऊ गाना म...