Sunday, December 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

संस्मरण

पिता
संस्मरण

पिता

ममता रथ रायपुर ******************** हम सभी ने नारियल देखा है, ऊपर से सख्त पर अंदर से नरम और मुलायम, एक पिता भी ऐसे ही होते हैं, ऊपर से सख्त और कठोर पर अंदर से नरम। ज्यादातर हम मां के बारे में ही लिखते हैं पर पिता के बारे में लिखना भूल जाते हैं। पिता के द्वारा अपने परिवार, रिश्तेदार और समाज के लिए किया गया संघर्ष कोई नहीं जानता। हर दुख और कठिनाई को सहकर भी हमें खुश रखने की कोशिश करते हैं वो पिता ही होते हैं। ‌‌पिता का ह्रदय बहुत बड़ा होता है वह हर गलती को सरलता से माफ कर देते हैं। मां की लोरी सुनकर हम बड़े होते है और जीवन की कठोर राह में अपने ऊंगली पकड़कर चलाने वाले पिता ही होते हैं। वो पिता ही होते हैं जो जिंदगी की ठोकर लगने पर दर्द को सहना सिखाते हैं। पिता जीवन भर अपनी सारी इच्छाओं को मारकर हमारे उज्जवल भविष्य के लिए संघर्ष करते रहते हैं। मां का आंचल अगर ठंडी छांव हमे देती है तो उस आं...
मेरी साइकिल, मेरा भविष्य
संस्मरण

मेरी साइकिल, मेरा भविष्य

डॉ.आभा माथुर उन्नाव (कानपुर) ******************** मैंने जिस शहर में बचपन व्यतीत किया वहाँ पर उन दिनों इण्टरमीडिएट तक ही विद्यालय थे। आगे की शिक्षा के लिये या तो प्राइवेट विद्यार्थी के तौर पर परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती थी या छात्रावास में रह कर अध्ययन करना होता था। मेरी बड़ी बहनों ने प्राइवेट बी.ए. किया था, शायद मैं भी वही करती परन्तु हाई स्कूल और इण्टरमीडियेट में मेरे अंक बहुत अच्छे होने के कारण यह निश्चय किया गया कि मुझे किसी संस्था से बी.ए. करवाया जाये। लखनऊ में मेरी एक बहन रहती थीं अत: लखनऊ में मेरी शिक्षा जारी रखने का निश्चय हुआ। लखनऊ जा कर वि.वि. में प्रवेश तो ले लिया पर बहन के घर से वि.वि. बहुत दूर था। पहले दो किलोमीटर तक रिक्शा से दूरी तय करने के बाद दो बसें बदलनी पड़ती थीं तब जा कर वि.वि. पहुँचा जा सकता था। इस सब में बहुत समय नष्ट होता था अतः साइकिल लेने का निश्चय किया गया। सा...
सावन
संस्मरण

सावन

मनीषा शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन स्वभाव से ही मस्ती भरा है। जब भी आता था रौनक छा जाती थी। सब खुश हो जाते थे, पर लोगों की तरह यह सावन का महीना भी कितना बदल गया है। सावन ने गीत, झूले, मस्ती, फुवारे, हरियाली, मेल-मिलाप व्रत-त्योहार सब को छोड़ दिया और एक व्यस्त एकल परिवार की तरह गुमसुम सा हो गया है। मुझे आज भी याद है जब हम छोटे थे तो सावन के महीने का बड़ी बेसब्री से से इंतजार करते थे।सावन के आते ही गांव की बहने और बुआएं अपने मायके आ जाती थी। पेड़ों पर झूले पड़ जाया करते थे। मंदिर में प्रतिदिन भजन कीर्तन होते थे और अखंड रामायण पाठ का भी आयोजन किया जाता था। सोमवार के दिन सुबह-सुबह सभी लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली हाथ में लेकर शिवालयों की ओर निकल पड़ती थी। गांव की लड़कियां और औरतें इकट्ठी होकर झूला झूलने जाती थी और आंगन में सावन के गीत गूंजते थे। बच्चे पानी से ...
आदर्श संस्कार शाला एक अनूठा संस्थान
संस्मरण

आदर्श संस्कार शाला एक अनूठा संस्थान

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" मथुरा : आदर्श संस्कार शाला एक सुसंस्कारित समुह हैं। जहाँ संस्कार और नवाचार को प्रथम पायदान हांसिल है।मानवीय मूल्यों पर कार्यरत संस्था "आदर्श युवा समिति" की विशेष कार्य परियोजना "आदर्श संस्कार शाला" द्वारा १ सितंबर २०१९ को आर. सी.ए. गर्ल्स डिग्री कॉलेज मथुरा उत्तरप्रदेश में "संस्कार शिक्षा रत्न"अवार्ड से देश के १७ राज्यों के नामचीन नवाचारी शिक्षाविदों का बहुमान किया गया। संस्था समन्वयक श्रद्धेय दीपक गोस्वामी जी एक धूमकेतु की तरह सभी विद्वतजनों का अभिवादन कर रहे थे वहीं सारी व्यव स्थाओं के हर एंगल पर अपना ध्यान भी दे रहे थे। उनका कार्य के प्रति समर्पणऔर एकाग्रता के साथ असाधारण सा व्यक्तित्व हमे काफ़ी प्रभावित कर रहा था। प्रातः ९-३० पर हाल मुकाम हमने उपस्थिति दर्ज करवाई। साहित्य प्राप्त किया और स्थान ग्रहण किया द्वितीय पंक्ति में।नियत समय पर कार्यक्रम...
श्रद्धांजलि
कविता, संस्मरण

श्रद्धांजलि

============================= रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर "रचना" देकर श्रद्धाँजलि, दी सु-षमा को शमा धरती माँ है बहुत उदास, पर है आकाश भी उदास | खो दिया है आज उसको , देती थी जो सबको आस | भारत माँ का थी अभिमान, देश की थी आन और बान | सीता चरित्र ,नारी की शान, करते सब जिसका सम्मान | दहाड़ती जब  शेरनी  सी , हो सदन में खलबली सी | वो बोलतीं बेबाक थीं जब , सब देखते अवाक् थे  तब | ज्ञान की  भंडार थी  वो , संस्कृति का मान थी जो | वक्तव्य भिन्न भाषाओं में , करती विदेश जाती थीं तो है नभ रो रहा,धरा भी रो रही , बिटिया तो चिर निद्रा सो रही| अब तो नदियां सी हैं बह रहीं , यहाँ-वहाँ नयनों से हर कहीं | करते हम सलाम उनको , देकर सब सम्मान उनको | ह्रदय से सुमन अर्पित कर, हार्दिक श्रद्धाँजलि उनको | लेखिका परिचय :- नाम - डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी - झाबुआ, (म...
तुमको ना भूल पाएंगे….
संस्मरण

तुमको ना भूल पाएंगे….

====================== रचयिता : सुषमा दुबे मैं ही नहीं पूरा देश स्तब्ध है उनके यूं अचानक छोड़कर चले जाने से। देश की आन, बान, शान, आशा, उमंग, आदर्श सरस्वती पुत्री...... सुषमा चली गई। अपने साथ ले गई एक विचारधारा जिस पर हर भारतीय महिला को नाज है। हर महिला उनके जैसी बनना चाहती है, मुझे लगता है हर महिला को अपने स्तर पर उनके जैसा मुखर, शक्ति स्वरूपा और दमदार बनने की कोशिश करना चाहिए, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वे हमारे बीच सदा रहेगी एक आदर्श भारतीय नारी की मिसाल बनकर। सौम्य, शालीन किंतु मुखर। हमेशा मुस्कुराती, तेज चाल से चलती। संसद में जब भाषण देती टीवी से नजरें हटाने का मन ही नहीं करता। हमेशा भारतीय परिधान में लिपटी, माथे पर बड़ी सी हिंदी, साड़ी पर जैकेट पहने परंपरा और सादगी की प्रतिमूर्ति किंतु सबसे जुदा अंदाज। जब बोलती थी अच्छे अच्छों के छक्के छूट जाते थे, आवाज़ में एक ...
संयुक्त परिवार
मेरे विचार, संस्कार, संस्मरण, स्मृति

संयुक्त परिवार

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" पांच भाई एक पुश्तैनी मकान में साथ रहते थे। जिसका पुनर्निर्माण १८००/ ठेके पर ठेकेदार ने किया था। एक बरामद, एक हाल, एक छोटा कमरा, एक दादी का कमरा, किचन, पानी की टँकी, एक शौचालय, एक बाथरूम, खुला बाड़ा, दक्षिण मुखी मकान के पूर्व में गलियारा था, ऊपर मंजिल कमरा एक था बस। पर पेड़-पौधे जगह अभाव में नही लग पाये। इसके पहले जो पुराना घर जब था उसमें बरामदा, बड़ा हाल,खोली और बाड़ा, एक टॉयलेट। बाड़े में शहतूत, कडिंग (विलायती इमली) और मीठी बोर का झाड़ यानी पेड़ पौधे लगे हुए थे। चार भाइयों की शादी हो गई थी, परिवार में माता-पिता, ४ जोड़े, दादी व एक छोटा पांचवे नम्बर का भाई, कुल जमा १२ सदस्यों का संयुक्त परिवार। संघर्षरत परिवार के पास एक सायकल के अलावा कोई वाहन नही। मांगलिक आयोजनों में बस से आना-जाना। एक रात रुकना ही, क्योंकि वाहन सुविधा नामम...