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व्यंग्य

दिवाली का दिवालियापन
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दिवाली का दिवालियापन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली आ रही है। वैसे दिवाली का क्रेज़ बच्चों में था। अब उन्हें पहनने के लिए नए कपड़े, फोड़ने के लिए पटाखे, और चलाने के लिए फुलझड़ियां चाहिए। खाने के लिए दूध, मावे और चीनी की मिठाई चाहिए। अब तो दिवाली आते ही ग्रीन ट्रिब्यूनल वालों का रोना शुरू हो जाता है। एक्यूआई इंडेक्स एकदम सेंसेक्स की तरह उछलने लगता है। सुप्रीम कोर्ट हरकत में आ जाता है। पटाखे और फुलझड़ियां बेचारे गोदामों में घुटन में जीने को मजबूर हो रहे हैं। उधर आदमी एक्यूआई के बढ़ने की सूचना के साथ ही घुटन महसूस करने लगता है। प्रदूषण का धुआँ ठंडे बस्ते में बैठ जाता है। अब दिवाली के एक महीने पहले और बाद तक जो भी प्रदूषण होगा, उसमें दोषारोपण पराली पर नहीं, वह जले या न जले, दोषारोपण तो पटाखों पर ही होगा। आम आदमी को टैक्स स्लैब में छूट ...
भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश
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भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आइए, आज मैं आपको एक ऐसी रेसिपी बताने जा रहा हूँ, जो एक सीक्रेट फॉर्मूला है, बिल्कुल कोला कंपनी के सीक्रेट फॉर्मूला की तरह। मजाल है कि पेपर लीक की तरह यह लीक हो जाए। इसका नाम है "भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश"। यह एक ऐसा च्यवनप्राश है जिसे आप किसी भी उम्र के पड़ाव में इस्तेमाल कर सकते हैं, जब आपको नेता बनने का कीड़ा कुलबुलाने लगे। लेकिन अगर आप देखते हैं कि आपके पूत के पांव पालने में ही नेताओं की दुम की तरह हिलते हैं, बच्चे के चेहरे पर भ्रष्ट नेता की तरह कुटिल मुस्कान है, और बच्चा हर सेकंड में मगरमच्छी आँसू बहाता है, तो समझ जाइए कि यह बच्चा आपके सात पीढ़ियों का नाम डुबोने के लिए भ्रष्ट नेता बनने के लिए अवतरित हुआ है। यदि आप बचपन से ही ऐसे बच्चे को यह च्यवनप्राश चटाएंगे, तो निश्चित ही ...
मुझे भी वायरल होना है
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मुझे भी वायरल होना है

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं परेशान, थका-हारा देवाधिदेव, पतिदेव, अभी बिस्तर पर उल्टे मुँह पड़ा ही था कि न जाने कहाँ से नींद ने मुझे आगोश में ले लिया और मुझे सपना भी आया। जी हाँ, वैसे तो नींद के खर्राटों की आवाज़ से डरकर सपने पास आते ही नहीं, जब घरवाले पास नहीं आते तो सपनों की क्या मजाल। खैर, सपना भी अच्छा था, हकीकत से कोई ताल्लुक नहीं रखता था। मैं सेलिब्रिटी बन गया था, जी हाँ, एक बहुत बड़ी सेलिब्रिटी। रातों-रात स्टार बनने वाली सेलिब्रिटी, अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर छपने वाली सेलिब्रिटी, चमचमाती गाड़ी के खुले दरवाजे से सटकर पोज़ देने वाली सेलिब्रिटी, मैगज़ीन के पेज थ्री में छपने वाली सेलिब्रिटी, पपराज़ी की शिकार सेलिब्रिटी। जी हाँ, मेरा एक शॉर्ट वीडियो, जिसे रील कहते हैं, वायरल हो गया। यह रील भी कोई मेरी तुच्छ ब...
छोटी दिवाली
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छोटी दिवाली

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दीवाली दो होती हैं - बड़ी दीवाली और छोटी दीवाली। कब से दीवाली को इस तरह विभाजित किया गया है, इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन मुझे लगता है इसका भी कोई राजनीतिक कारण होगा। शायद एक मांग उठी होगी जैसे पाकिस्तान देश से अलग हुआ था, वैसे ही। लेकिन गनीमत ये रही कि छोटी दीवाली ने अपना नाम नहीं बदला, जबकि छोटे भारत ने अपना नाम बदलकर पाकिस्तान कर लिया। मैंने देखा है कि बड़ा जो होता है, वह अपनी तानाशाही गाहे-बगाहे चला ही लेता है, छोटे को छोटेपन का अहसास ही बड़ा ही कराता है, चाहे छोटे के दो-चार छोटे और क्यों न हो गए हों। अब पाकिस्तान चाहे अपने आकाओं के इशारे पर नंगा नाच दिखाए, लेकिन हम भारतवासी तो भारत को पाकिस्तान का बाप ही मानते हैं! छोटी दीवाली भी अपनी शिकायत लेकर पहुँची कि मुझे छोटी कहकर सब चिढ़...
राजनीति का जलेबीकरण
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राजनीति का जलेबीकरण

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली की सजावट बाज़ार में जोर पकड़ रही है। हलवाई की दुकान पर खड़ा हूं। पत्नी ने १ किलो जलेबी लाने के लिए कहा है। पता नहीं पिछले दस दिनों से उसकी ज़ुबान पर भी जलेबी चढ़ी हुई है। पहले तो कभी इस मिठाई का नाम भी नहीं लिया कभी। काजू कतली से नीचे बात ही नहीं होती थी। हमने तो सोचा था कि दूध-जलेबी की स्वाद जो गांवों में मिलता था, वो कहीं बचपन में ही छूट गया। अब ताज्नीति के धुरंधर बात भी कर रहे हैं तो जलेबी की ही..दूध की कोई नहीं कर रहा.. ..अभी दूध की बात करें तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए.. । हमारा तो बचपन ही जबेली कहने से जलेबी कहने के बीच का सफ़र है बस ...। गरीबों की दिवाली भी जलेबी से ही मनती थी। उनकी लक्ष्मी पूजा में अगर दो जलेबियाँ मिल जाए, तो कहते फिरते थे, "इस बार दिवाली अच्छी र...
घूंघट के पट खोल
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घूंघट के पट खोल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं कुछ अति मित्रताप्रेमी किस्म का बंदा हूँ, जल्दी से फेसबुक पर अपने ५ के का टारगेट रीच करना चाहता हूँ, ताकि मेरा पेज भी पब्लिक फिगर बन जाए। सच पूछो तो कुछ सेलिब्रिटी जैसी फीलिंग आती है, शायद मेरी ये भावना फेसबुक के खोजी कुत्ते ने सूंघ ली है। फेसबुक की कृत्रिम बुद्धीमता भी आजकल लोगों की फीलिंग के सूंघ-सूंघ कर पहचान रहा है। फीलिंग के साथ खिलवाड़ करने से पहले सूंघना पड़ता है कि फीलिंग क्या है, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए। पहले तो मुझे टैग करवाने में बड़ा मज़ा आता था, तो रोज़ मेरे टैगवीर दोस्त मुझे दस-दस तस्वीरों के साथ टैग कर देते थे। पूरी टाइम लाइन इन टैग वीरों के सुहागरात, वर्षगाँठ, सत्य, असत्य विचार, देवी-देवताओं राक्षसों गंदार्भ किन्नरों के फोटो से भरी रहती थी। फिर कहीं से मुझे पता ल...
अब तो दरश दिखा जा
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अब तो दरश दिखा जा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** हे लौह पथ गामिनी, अब तो दरश दिखाओ। देखो मेरी स्थिति पर तरस खाओ। पिछली बार तो मैं खुद था जो एक शांत प्रेमी की तरह घंटों तुम्हारा इंतज़ार करता रहा, बहुत इंतज़ार के बाद आखिर तुम आयी ..इठलाती हुई। तुमने एक नज़र मिलाकर भी मेरी तरफ देखना मुनासिब नहीं समझा। मैं भी तुम्हारे हज़ारों आशिकों की भीड़ में कुछ पुराने घायल प्रेमी की तरह "लैला लैला" चिल्लाए तुम्हारे पीछे दौड़ता रहा। वो तो शुक्र है एक मेरे ही जैसे दिलजले का जिसने हाथ पकड़ कर मुझे चढ़ा लिया। लेकिन आज तो मैं मेरे अतिथि को छोड़ने आया हूँ, इस अतिथि ने पिछले १० दिन से मुझे पकड़ रखा है। आज बड़ी मुश्किल से इनका जाने का मन हुआ है। घर से चला था, तुम्हारे ऑफिशियल समय से आधा घंटा लेट चला था, अभी आधा घंटा और हो गया है लेकिन तुम्हारे दर्शन मुझे इस ...
प्यार की नौटंकी
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प्यार की नौटंकी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ज़िंदगी में सब कुछ तेजी से बदल रहा है। इतनी तेजी से तो मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में मूवी भी नहीं बदल रही है। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है, तो वह है प्यार! जी हां, प्यार जिसे आप प्रेम, अनुराग, आसक्ति, मोह, स्नेह, रति, प्रीति, अनुरंजन, लगाव, अनुरक्त, इश्क़, मोहब्बत, स्नेहसिक्त, प्रेमभाव, राग, नेह, उल्फ़त, चाहत, वफ़ा, रफ़ाक़त और दिल्लगी जैसे साहित्यिक नामों से या हालात-ए-सूरत की असली शब्दावली से निकले शब्द जैसे प्रेम का पेंडेमिक, मोहब्बत का मीज़ल्स, प्यार का पीलिया, चाहत का चिकनगुनिया, आकर्षण का ऐंठन, रूमानी रूबेला, स्नेह का स्वाइन फ्लू, दिल का डेंगू, मोह का मलेरिया, दिल्लगी का दस्त, प्रीत की पथरी, मजनूं का मस्तिष्क ज्वर, माशूका का मतिभ्रम, लगाव का लूज मोशन, चाहत का चेचक, इश्क़ का बुखार, साजन ...
हिंदी माता
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हिंदी माता

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ओपीडी में बैठा था कि एक मक्कार मानस नुमा, झूठ-प्रपंच शिरोमणि, मेरे दूर के रिश्तेदार और एक फ्रॉड संस्था में उच्च पद पर काबिज एक महाशय चैंबर में आ धमके। सुबह-सुबह आयी इस पनौती से आज दिन भर का ओपीडी प्रभावित होने की आशंका से ही मन खिन्न सा हो गया। क्या करें? दूर के रिश्तेदार से वैसे मैं दूरी बनाकर चलता हूँ, दूर के रिश्तेदार और सड़क पर सांड कब पटखनी दे दे, कह नहीं सकते। कई बार अपनी पटखनी दिला भी चुका हूँ। खैर, आशा के विपरीत आज तो महाशय एक आमंत्रण कार्ड साथ में लेकर आये। आमंत्रण था ‘चौदह सितम्बर’ को ‘हिंदी दिवस’ पर वो भी मुख्य अतिथि के रूप में। न जाने कैसे उन्हें पता लग गया था कि मैं आजकल हिंदी में लिखने लग गया हूँ। लेकिन हिंदी में लिखने मात्र से ही मैं हिंदी का खेवनहार तो नहीं बन गया। मुझे ...
टेंशन नहीं होने की टेंशन
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टेंशन नहीं होने की टेंशन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज का दिन भाई ऐसा तो कभी सोचा नहीं, दिन भर सब कुछ बढ़िया चल रहा है- घर भी, बाहर भी, बच्चे सेटल्ड, कोई अनुचित डिमांड कहीं से नहीं। लाइफ स्मूथ जैसे हाईवे पर चल रही सौ की स्पीड में कार। क्या हुआ आज मेरे दिन को, इतना बढ़िया दिन ! आज बीवी से भी कोई खटपट नहीं, घर पे काम वाली भी समय पर आ गई, वरना उसका गुस्सा मुझ पर ही निकलता। बेटे का भी कोई फोन नहीं आया। बेटे के फोन का मतलब, जैसे एटीएम मशीन में कार्ड लगाना होता है। मरीज भी बिना कोई उलझन भरे प्रश्न किए, चुपचाप मेरे बताए निर्देशों का पालन करते नजर आ रहे हैं। क्या बात है, आज स्टाफ भी समय पर आ गया। स्वीपर ने सफाई भी बढ़िया कर दी है। ओपीडी भी फुल है। शाम तक मेरे को थोड़ी सी घबराहट होने लगी। ये क्या हो रहा है आज? टेंशन क्यूँ नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता...
माखन लीला
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माखन लीला

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** जन्माष्टमी पर कान्हा और उनकी माखन लीला बड़ी याद आती है। यूँ तो कृष्ण भगवान् का तो पूरा जीवन ही लीलामय है, लेकिन मुझे हमेशा सबसे ज्यादा आकर्षित किया है तो उनकी माखन लीला ने। “मुख माखन लिपटा दिखे, कान्हा पकड़े कान। बाल रूप में सज रहे, कैसे श्री भगवान।“ यूं तो बचपन में माताजी हमें भी कान्हा बना के ही रखती थीं। सुबह सुबह ही यसुदा मैया की तरह माथे पर चौड़ा सा कला टीका लगा देती थी। हम दिन भर मोहल्ले की गलियन की धुल फांकते शाम को घर पहुँचते तो माताजी को अपना लगाया काला टीका कहीं नजर नहीं आता था। नख से शिख तक कृष्ण वर्ण के बन कर माताजी के सामने उपस्थित होते थे। गाय चराने तो नहीं जाते थे, हां दिन भर रेंदा-पेंदा धनसुख मनसुख की टोलियां हमारी भी थी जो गली के कुत्तों को चराते डोलते थे। मक्खन हमें भी ...
बाढ़ पर्यटन
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बाढ़ पर्यटन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर की एक पॉश कॉलोनी, दिन का समय, एक बहुमंजिली ईमारत के बहु कक्षीय फ्लैट में वातानुकूलित वातावरण में एक पार्टी चल रही है। ये बहुत कुछ नाईट पार्टियों की तरह ही है बस दिन में इनका नाम किट्टी पार्टी हो जाता है। कुछ किटटीयाँ मेरा मतलब संभ्रांत महिलाएं सजी धजी काया के साथ और टॉपिंग के रूप लिपस्टिक क्रीम पाउडर धारण कर, अपने वॉलेट में पति के क्रेडिट कार्ड और पति की जेब से सेंध लगाकर निकाली हुई धनराशी के साथ एकत्रित होती हैं। हंसी-ठिठोली के माहौल में, एक किट्टी जो उस दिन पार्टी में नहीं आयी, उसकी टीन टप्पड उखाड़ने का काम रहता है। उन्हीं में एक महिला जिनके हाव-भाव से और जिस तरह से उन्हें भाव दिया जा रहा था, साफ नजर आ रहा था कि यह कोई बहुत ही शक्तिशाली महिला है, किट्टी पार्टी की सदस्य नहीं लेकिन जिसके घर पार्टी है...
थम के बरस ओ जरा जम के बरस
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थम के बरस ओ जरा जम के बरस

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जब मौसम विज्ञान इतना अपडेट नहीं था तब बारिश भी इतनी चतुर सुजान नहीं थी और सुनिश्चित समय पर आरंभ हो जाती थी। आज मौसम विभाग के तरक्की का दौर है बारिश को लेकर जितने भी अटकलें मौसम विभाग लगाता है करीब-करीब सभी अटकलें केवल अटकलें ही रह जाती हैं। आज बारिश के ये हालात हो चलें कि मौसम विभाग जहां अतिबारिश बताता है वहां सूखा पड़ जाता है। और जहां सूखे की आशंकाएं जताई जाती हैं वहां बाढ़ आ जाती है। अब बारिश बहुत होशियार और चालाक हो चुकी है पूरी तरह भारतीय नेताओं के जैसे जब आप घर से बाहर हों तभी बारिश होती है जब आपके पास छाता न हो जब आपके पास रेनकोट न हो तभी बारिश होती है। आदमी को भिगोकर अपने होने का सबूत देती है। इस वर्ष बारिश किसी घोटाले की तरह आई और किसी जांच दल की तरह चुपचाप जा रही है। बचपन में जब रात को तेज बारिश हो रही होती थी त...
पेपर लीक : शिक्षा और राजनीति का नया धंधा
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पेपर लीक : शिक्षा और राजनीति का नया धंधा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** अखबारों और टीवी न्यूज़ में आजकल एक खबर बहुत ज्यादा लीक कर रही है - पेपर लीक का मामला। यूं तो आए दिन कोई न कोई परीक्षा का पेपर लीक होता रहती है। जब लोकतंत्र की गाडी के पहियों पर चढ़े टायर ही लीक हो रहे हैं तो पेपर लीक होना कोई बड़ी बात तो है नहीं । अब ये लीक के मामले ही हैं जो अखवारो की हैडलाइन बनती है, सरकार को भी दो-चार जांच आयोग बिठाने का अवसर मिलता है, सत्ता पार्टी और विपक्ष पार्टियों को एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने का अवसर मिलता है, विरोधी पार्टियों पर दो चार सी बी आई के छापे और इ डी के छापे पडवाकर उन्हें हड्काने का मौका मिलता है, कुल मिलकर आने वाले चुनावों के लिए मुद्दों की फसल बुआई हो जाती है। नेता लोग कहते हैं, लोकतंत्र की चुनरी में ये लीक के दाग अच्छे हैं, इन्हें छुडाना नहीं है, लीक के दागों क...
कल आज और कल
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कल आज और कल

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** केवल आनंद के लिए लिखा गया किसी की धार्मिक भावना आहत करने का मकसद नहीं है। सभी लोग फुरसत में हैं, भक्ति, मेडीटेशन सब यथाशक्ति कर रहे हैं। मैं भी कर रहा हूँ बार-बार सुने हुए सुंदरकांड में आज कुछ नए-नए अर्थ निकल के आये, नई-नई प्रेरणाएं मिली। आज के परिप्रेक्ष्य में ... समस्याएं आज भी सुरसा की तरह बड़ी होती जाती है आपको उनसे दुगुनी शक्ति से सामना करना होता है। लोग पहले भी सबूत मांगते थे आज भी मांगते हैं, नही तो हनुमान को रामजी मुद्रिका क्यों देते, और सीताजी चूड़ामणि उतार के क्यों देती। केजरीवाल और कांग्रेस को सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट के सबूत मांगते देखा है। लोग पहले भी विश्वास नही करते थे आसानी से अब भी नही करते, सीताजी को हनुमानजी की क्षमता पे संदेह हुआ तो कनक भूधराकार शरीर दिखाना पड़ा तब विश्वास हुआ। जनता आज भी मोदीजी पे विश्वास कहा...
महंगाई की मनमानी
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महंगाई की मनमानी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** तीन दिन पहले की बात है। मुझे चाय पीने की इच्छा हुई और मैं रसोई में गया। मध्यम वर्ग वालों की रसोई होती ही कितनी है, बस एक आदमी मुश्किल से खड़ा हो पाता है। मैं चाय बनाने की कोशिश कर ही रहा था कि मैंने देखा कि एक मृगनयनी चुपचाप अंदर दाखिल हुई। उसे बेधड़क अन्दर घुसते देख मैंने आदतन कहा कि आंटी जी आप कौन? आंटी जी संबोधन सुनते ही वह बिदक गई और बोली- मरघिल्ले ! एक पैर केले के छिलके पर और दूसरा कब्र में लटका है और मुझे आंटी कह रहा है? अरे! आप हो कौन जो मेरी रसोई में घुसकर मुझे ही गरियाने लगी? मैं नई-नवेली जीएसटी हूँ। अभी मैंने सोलह वसंत भी पार नहीं किए और तुम मुझे आंटी कह रहे हो। उसने ठसक के साथ उत्तर दिया। ठीक है कि तुम जीएसटी हो पर मेरी रसोई में क्यों घुस रही हो? मैंने तो तुम्हें नहीं बुलाया? कैसे नही बुलाया? तुमने मुझे खुल्ला न्यौता दिया है।...
चंद्रयान और चांदी
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चंद्रयान और चांदी

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** चंद्रयान ३ की सफलता के बाद भारत भर में खुशियां छाई हैं, सुदूर चांद तक इसकी ऊंचाई है। पूरे देश में बहुत ही जोश-खरोश से जश्न मनाया गया, मिठाईयां बांटी गई तो कहीं पटाखे फोड़े गए, सबने अपने अपने ढंग से और पूरे मन से इस चंद्र पर्व को मनाया। न वर्ग गत और न ही दलगत राजनीति इसमें आड़े आई, सब तरफ बस खुशी छाई। अभी पूरा सप्ताह हमारा चंद्रमय हो गया। मन में इतना उत्साह था की क्या बताएं। जो बचपन से चंदा मामा आसमान पर टांका हुआ था, लगा जैसे अचानक हमारे हाथ आ गया। कितनी गर्मी, सर्दी, बरसातें, देख ली आसमान में ताकते हुए, कभी किसी सुंदरी का सुंदर चेहरा न दिखा तो चांद को देख लिया, भारतीय उत्सव प्रियता का एक अदद बिंदु चांद करवा चौथ वाली बहुओं का झीनी जाली से देखा जाने वाला चांद जो अपने पति की लंबी उम्र की कामना में कई उपवास खुलवाता है और ...
भूकंप… बाबू और बाबूगिरी…
व्यंग्य

भूकंप… बाबू और बाबूगिरी…

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ********************  मेरा देश, महान देश है, भरत चक्रवर्ती के नाम पर बना भारत। राजा थे चक्रवर्ती राजा, रिद्धि-सिद्धि उनके यहां स्थाई निवास करती थी, सुवासित बहती हवाएं, बाग-बगीचे महलों, हवेलियों में हर वक्त मुक्त रुप बहती थीं। पक्षियों के कलरव, कोकिल कंठी कोयलों के गान, सर उठाए खुला आसमान और सुंदर वितान। परिचारिकाएं और परिचारक रात दिन उनकी सेवा में रत फूले नहीं समाते थे, हर वक्त खुशी के गीत गाते थे। बागों में लहराती तितलियां, गुंजायमान भंवरे, खिले फूलों की सुवासित सुरभि में देश डूबा हुआ रहता था, सुंदर परिवेश, इंद्र के सारे वैभव विद्यमान चौबीसों घंटे आनंद स्नान। जैसी नीव होती है उसी अनुरूप महल तामीर होते हैं, कालांतर में देश वैसा ही हुआ जैसा जन्मना शाही था। सारे विश्व की आंखें हम पर गड़ी रही। जो आया हम बांहे पसारे उसके स्वागत में वसुधैव कुटुंब...
आदमी और कुत्ता
व्यंग्य

आदमी और कुत्ता

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ********************  मेरे एक मित्र ने नया मकान बनवाया, अक्सर वे मुझसे बड़े भाई की हैसियत से सलाह ले लिया करते हैं। बड़े भाई लोग दो तरह के होते हैं, एक वह जो शहर को सम्हाले रखते हैं और उनकी भाईगिरी के चर्चे थानों से लेकर बाजारों तक और बड़े क्लब, मॉल, थिएटर, होटलों से लेकर, बाजारों के। व्यापारिक संगठनों, रेहड़ी संगठन, ऑटो रिक्शा संघ, ट्रक ऑनर एसोसिएशन, भू माफियाओं, कैसिनो, और तमाम तरह के जरायम पेशा धंधों चोर, गिरहकटियों, उठाईगिरों आदि जिन्हें की सभी को अब संगठित शक्ल दे दी गई है, इन सभी जगह के छोटे-छोटे भाईयों के ऊपर बड़े भाई के कंधे हैं उसी पर रखकर ये छुटभैय्ये अपने निशाने साधते रहते हैं, ये बड़े मजबूत कंधे सबका बोझ सम्हाले हुए रहते हैं और ये सभी उन्हें कभी दशहरा की पांवधोक के बहाने, तो कभी ईद की ईदी के नाम, कभी दीपावली की मिठाई के नाते, तो क...
ये परोपकार कमाने वाले
व्यंग्य

ये परोपकार कमाने वाले

सुरेश सौरभ लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) ********************  हाथ दिया वह रूक गये। ‘कोई सवारी नहीं मिल रही आज लिए चलो बाबू जी! मेरे विनयपूर्वक आग्रह को वे टाल न सके। आफिस के सहकर्मी जो ठहरे। मसाला भरा मुंह पीछे घुमाकर बैठने का इशारा किया। मैं उनके पीछे बाइक पर लद लिया। अभी चन्द दूरी ही चले होंगे..पिच पिच.पिच..गला खंगालकर बोले-नई गाड़ी है। डबल सवारी नहीं बैठाता, हां कभी-कभी हल्की-फुल्की डाल लेता हूं। और ट्रिपलिंग तो कभी नहीं?..हां हां बिलकुल नहीं... बाइक पर कभी भी तीन नहीं बैठना चहिए।... अब बैठ लिया तो क्या कहें, रपट पड़े तो हर गंगा वाला मेरा हाल था। साथ यह भी खयाल था कि मेरे पचास किलो वजन पर बेचारे ने तरस खाया है। अपने गन्तव्य पर पहुंच कर उन्हें ऐसे सलामी दी, जैसे बड़ी मुसीबत झेल, बेचारे ने दुश्मन का बार्डर पार करा के लाया हो मुझे। कई दिन बाद मैं बस अड्डे पर, आफिस जाने के लिए...
स्थानीय निकायों के दस्ते
व्यंग्य, हास्य

स्थानीय निकायों के दस्ते

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** प्लास्टिक बंदी का दौर आया है स्थानीय निकायों ने बाजारों में रेड करने के क्षेत्र वाईस दस्ते बनाए है पर लगता है माल सुताई मौसम आया है कार्रवाई में भाई भतीजावाद समाया है अपनों पर कार्रवाई नहीं करने का मन बनाया है कुछ जातिवाद को प्रथा भी अपनाई है मलाई की चाहत भी दिखलाई है दस्ते ने अपनी दादागिरी दिखलाई है स्थानीय निकाय के अन्य विभागों से भी भीड़ कर्मचारियों की साथ लाई है पुलिस बनकर कार्रवाई की राह अपनाई है फैक्ट्रियों पर से नजर बिल्कुल हटाई है छोटे दुकानदारों पर सख्ती दिखाई है माल सूतो नीति अपनाई है हफ़्ता खोरी की नीति चलाई है दस्ते वालों समझो पीएम तक खबर पहुंचाई है मन की बात से बात बतलाई है। अब तुम पर कार्रवाई की नौबत आई है संभल जाओ वक्त की दुहाई है परिचय :- किशन सनमुखदास...
राष्ट्रीय पशु बनाम कुत्ता शालाएँ
व्यंग्य

राष्ट्रीय पशु बनाम कुत्ता शालाएँ

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** आज कुत्तों की सभा चल रही थी, जिसमें सभी नस्ल के, सभी उम्र के कुुत्ते शामिल थे। एक वयोवृद्ध कुत्ता सभा को संबोधित कर रहा था, बाकी सभी श्रोता की मुद्रा में थे। बीच सभा में एक नेतानुमा, गली का नौजवान कुत्ता उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- क्या आप लोगों को मालूम है, गाय को "राष्ट्रीय पशु " घोषित करने की तैयारी चल रही है? वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- हमें इससे क्या? बनने दो। नेतानुमा गली का कुत्ता बोला- क्या हमारी कोई औकात नहीं? हमें क्यों नहीं राष्ट्रीय पशु बनातें? अब तों सभा में शोर मच गया, सभी गली के कुत्ते के पक्ष में बोलने लगे। वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- मूर्खो! चुप हो जाओं। गाय को पूरा भारत "माता "कहता है। उसे पूजा जाता है। दूध के साथ ही उसका मूत्र और गोबर दिव्य माना जाता है, और हम सब जगह गंदगी फैलाते रहते हैं। हमारी और गायों की...
लक्ष्मी उवाच
व्यंग्य

लक्ष्मी उवाच

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ********************                             "सुनो विष्णु, तुम्हारे पांव दबाते सदियां निकल गई। मेरे हाथ दुखने लगे हैं। आखिर कोई तो सीमा होगी। कब तक दबाऊंगी? मैं तुम्हारे पांव के आगे की दुनिया देख ही नहीं पाती।" भगवान विष्णु चौंक कर शेषनाग की शैय्या से एकदम उछल कर बैठ गये। उन्होंने लक्ष्मी को छूकर देखा। उनकी बातों से बगावत की बू आ रही थी। विस्मय से पूछा- "क्या हुआ भगवती? आज मुझे नाम लेकर पुकार रही हो। अभी तक तो प्राणेश्वर या जगदीश्वर कहकर बुलातीं थीं। आज सीधे नाम पर आ गई। और यह क्या कह रही हो कि चरण नहीं दबाओगी। क्यों? पृथ्वीलोक का चक्कर लगा कर आ रही हो?" "मुझसे क्यों पूछते हो विष्णु? तुम तो तीनों लोकों के अन्तर्यामी और स्वामी हो। मेरे मन में हाहाकार मचा है। क्या तुम मेरा मन नहीं पढ़ सकते? आखिर कब तक सोते रहोगे। बहुत सो लिए, अब नहीं सोने दूंगी। स्...
मोह-माया की दुनिया
व्यंग्य

मोह-माया की दुनिया

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** बात सुबह के आठ साढ़े आठ बजे की है जब मैं बालकनी में बैठीं हुई चाय और बिस्किट का मज़ा लेते हुएँ, साथ में ही अखबार के पन्नों को पलट रही थी। ओर सोच रही थी की आखिरकार हमारें देश के नागरिक कब मोह माया की दुनिया से बाहर निकलेगें। कब वर्तमान में जीवन जीएगे कब वास्तविकता का समाना करेंगे। और कब देश का विकास होगा। तभी अचानक मेरी नज़र नीचें सड़क पर पड़ी। ओर मैंने देखा की शर्मा चाचाजी चलते-चलते अचानक रूक गये। मगर मैं कहा रूकने वाली थी, मैं तो तुरंत बोल पडीं। ...अरे चाचाजी क्या हुआ आप चलते-चलते अचानक क्यों रूक गयें, क्या कुछ भुल गये बाजार से लाना। चाचाजी बोलें... अरें नहीं बेटा कुछ भुला नही... बल्कि मैं तो बहुत जल्दी में हूँ, मुझे जल्दी घर जाना है। ठीक है चाचाजी, मुझे क्षमा कर दीजिए, आप जल्दी में है ओर मैंने आपको बीच में टोक दिया। कोई बात...
अब तो सुधर जाओ मियां
व्यंग्य

अब तो सुधर जाओ मियां

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की खबर पर जैसे ही दृष्टि पड़ी तो बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ हम तो पहले से ही जानते थे कि यही होना है नहीं होता तो जरूर आश्चर्य होता मियां। एक कहावत तो तुम ने सुनी होगी? हमारे मालवा में बहुत बोली जाती हैं कि "जो दूसरा वास्ते खाड़ा खोदें, उज उनी खाड़ा में सबका पेला पड़े।" मतलब कहने का यह पड़ रिया है कि अब तो सुधर जाओ मियां। आज अफगानिस्तान की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। तालिबानियों ने सरकार का तख्ता पलट कर राष्ट्रपति को भागने को मजबूर कर दिया।‌ महिलाओं और बच्चियों की दुर्गति हो रही है। यहां तक कि अफगानिस्तान का नाम भी बदल दिया है और पड़ोसी देशों के पास समर्थन के अलावा कोई चारा नहीं। परिस्थितियां बद से बदतर हो रही है फिर भी भारत में रहने में तुमको डर लगता है मियां जबकि भारत संव...