रक्तदान
प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे
बीड, (महाराष्ट्र)
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कॉलेज के कैंपस में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था। उसमें श्रेयस ने भी अपनी स्वेच्छा से रक्तदान किया। उसके दस साल बाद एक सड़क दुर्घटना में श्रेयस का अॅक्सीडेंट हो गया। गहरी चोट लगने से बहुत रक्त स्त्राव हो गया था। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। उसकी हालत देखकर 'उसे रक्त देना पड़ेगा। जल्दी से रक्त का प्रबंध करो।' ऐसा डॉक्टर ने कहा।
रक्त देने के लिए माता-पिता और कई रिश्तेदार तैयार हो गए पर श्रेयस की दीदी ने उसका रक्तदान का प्रमाणपत्र रक्तपेढ़ी में दिखाया और जल्द ही रक्त का प्रबंध हो गया। दूसरे दिन श्रेयस जब होश में आया तब उसकी दीदी ने कहा- "भैया, तेरे रक्तदान ने आज तुझे ही जीवन दान मिला है।"
हास्य करते हुए श्रेयस ने कहा- "मुझे कहां मालूम था कि, आगे चलकर मुझे ही जीवनदान मिलने वाला है। पर, आज मैं यह समझ गया हूं...