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लघुकथा

वक्त
लघुकथा

वक्त

वक्त रचयिता : माधुरी शुक्ला दसवीं कक्षा में पहुंचे पोते मनु के बदले रंग ढंग को दादा ब्रजकिशोर की बूढ़ी और अनुभवी आंखों ने मानो पढ़ और समझ लिया है। फिर कल उसे मोहल्ले के बिगड़ैल लड़कों के साथ घूमते  देख उनकी फिक्र बढ़ गई है। ब्रजकिशोर बेटे दिनेश से कह रहे हैं सिर्फ कमाने में ही मत लगा रहा कर घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान दे। मनु की फिक्र भी किया कर वह बड़ा हो रहा है और गलत संगत में भी पड़ता दिखाई देने लगा है। उनका इतना कहना था कि बहू सरिता बरस पड़ती है बाबूजी की तो पता नहीं क्यों मनु से आजकल कुछ दुश्मनी हो गई है। वह कुछ भी करे इन्हें गलत ही लगता है। यह सुन ब्रजकिशोर खामोश हो जाते हैं। जानते हैं अब कुछ बोले तो बहस हो जाएगी। इस बीच दिनेश ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगता है खूंटी पर टंगा मनु की पैंट गलती से उससे नीचे गिर जाती है। जब पैंट  टांगने लगता है तो जेब से सिगरेट का पैकेट बाहर झांकता ह...
प्रहार कर
लघुकथा

प्रहार कर

प्रहार कर रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ===================================================================================================================== कुनाल अपनी जिंदगी से इतना नाखुश था कि उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था, उसकी जिंदगी मानों थमती और चलती जा रही थी, कुनाल की जिंदगी में सबने ही दखल डाला था यहाँ तक की उसकी खुद भी जिंदगी ने उसपर दखल ऐसे दी थी कि उसने हार मानते मानते भी हार नहीं मानी थी, कुनाल के परिवार में छः सदस्य थे जिसमें कुनाल सबसे छोटा है उसके ऊपर लेकिन बोझ इस प्रकार है मानों वो परिवार में सबसे बङा हो, घर का सारा काम देखना अपने पिता की खेती का सारा काम देखता और स्वयं खेती में काम भी मेहनत से करता फसल आती बेची जाती और सारा धन घर के कामों व भाई बहन की पढ़ाई में खर्च होता है जिसपर कुनाल ने कभी भी जरा सा सोच भी नहीं किया कि आखिर मुझे भी पढ़ना है और क्या करना है सिवाय क...
मेरा राम मेरे साथ है
लघुकथा

मेरा राम मेरे साथ है

मेरा राम मेरे साथ है रचयिता : डॉ सुरेखा भारती शाम हो गई थी राधिका ने अपने को, थोड़ा संवारा और वह तुलसी क्यारी में दीपक लगाकर अपने पूजा घर में रामायण पढ़ने बैठ गई। यह उसका रोज का नियम जो था। अंकुर की शादी हुए दो महिने बीत गए थे। अंकुर की पसंद-नापंसद, उसके लिए क्या बनाना है, क्या नहीं, पहले उसकी चिंता रहती थी, पर यह सब तो अब बहु ही देखने लगी थी। बहु तो अच्छी है पर राधिका और अधिक अकेला पन महसूस करने लगी थी। अंकुर भी अब आते से ही पूछने लगा है, सीमा ऽ सीमा तुम कहां हो .......?, लगता था अब माँ को वह भूल गया है। पहले जरूर उसके इस बदलाव से मन में अजीब सी चुभन होती थी। पर अब अपना मन भगवान के स्मरण में लगाना सीख लिया था। रामायण पढ़ते हुए, वह श्री रामचरित्र में खो गई थी, की सहसा फूलों की सुगंध वातावरण में घूमने लगी, उसने सोचा अंकुर बहु के लिए फूल ले कर आया होगा, आज उसका जन्मदिन जो है। पर अचानक उस...
धुरी
लघुकथा

धुरी

रचयिता : माधुरी शुक्ला अरे, पूजा जल्दी करो, देर हो रही है डॉक्टर साहब निकल जायेंगे। अजय का यह स्वर कई बार गूंज चुका है। आई बस, कुछ देर और यह कहती पूजा बेटे चिंटू और सास के लिए खानपान का पूरा इंतजाम करने में जुटी है। उसे लग रहा है कि बुखार तो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा ऐसा ना हो डाॅक्टर अस्पताल में एडमिट होने को कह दे। ऐसा सोचती है तभी इस बार अजय कड़क आवाज़ में पुकारता है कितनी देर, छोड़ो यह सब बाद में देख लेना। पसीना पोंछती वह किचन से निकलती है और अजय के साथ डाॅक्टर के पास जाती है। डाॅक्टर उसकी हालत देख तुरंत एडमिट होने को कह देता है। अब अजय का चेहरा देखने लायक हो जाता है। वह डाॅक्टर से पूछता है शाम तक छुट्टी हो जाएगी ना। वह हंसते हुए कहते हैं इलाज तो शुरू होने दो पहले। अजय के सामने बूढ़ी मां और चार साल के बेटे का चेहरा घूमने लगता है। सोचता है अगर  यह एक-दो दिन अस्पताल में रह गयी तो घर ...
लड़की
लघुकथा

लड़की

लड़की रचयिता : अविनाश अग्निहोत्री ===================================================================================================================== अपने पिता के माथे पर चिंता की गम्भीर लकीरे देख। गरिमा उससे बोली, पिताजी हमे पहले तत्काल दादी का मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवा लेना चाहिये। उसकी बात सुन उसके पिता ने कहा, बेटा अगले महीने तेरी शादी है। अभी उसकी सारी तैयारी बाकी है। अब इतनी छोटी सी जमापूंजी में ये दोनों काम एक साथ भला कैसे हो पाएंगे। तब वह बोली तो मैं अभी कहाँ बूढ़ी हुए जा रही हूँ। शादी हम कुछ माह बाद कर लेंगे। पर क्या तेरे ससुराल वाले इस बात पर राजी होंगे, पिता ने आशंकित हो पूछा। गरिमा बोली पिताजी मैं अनिमेष से बात करके देखती हूँ, वह सुलझे विचारों वाले व्यक्ति है। वे जरूर अपने परिवार को इसके लिये मना लेंगे। गरिमा की बात सुन उसके पिता सहित सारे परिवार का उदास चहरा खिल ...
पॉकेट मनी 
लघुकथा

पॉकेट मनी 

पॉकेट मनी  रचयिता : विजयसिंह चौहान मृद्धि कॉलेज क्या गई उसकी पॉकेटमनी दिन-ब- दिन छोटी पड़ने लगी, अत्यधिक  खर्च को लेकर मिथिलेश अक्सर टोकती रहती है । आज फिर समृद्धि ने उसके पापा से पॉकेट मनी बढ़ाने को लेकर 'दुलार' किया।  इस बार उसका तर्क था ....ग्रीष्म ऋतु है इसलिए कुछ ज्यादा पैसे दे देना। पिताजी ने भीआंखों ही आँखों मे नजरें घुमाई और सोचा की गाड़ी का पेट्रोल फुल टैंक है, मोबाइल का रिचार्ज भी है, ड्रेसेस तो कल परसों ही खरीद लाई थी । खैर.... बिटिया ने कहा है, तो पिताजी ने भी हा कर दी। पॉकेट मनी पाकर समृद्धि चहक रही थी, वही मिथिलेश बड़बड़ा रही थी ....बेटी को ज्यादा पैसे मत दिया करो, कुछ कंट्रोल रखो, नहीं तो नाम  निकालेगी। शाम को जब पिताजी घर लौटे तो घर के कोने में कुछ मिट्टी के सकोरे और अनाज का थैला देख उत्सुकतावश पूछा कि यह क्या है ? ...तभी मिथिलेश ने मुस्कुरा कर कहा बेटी आज अपनी पॉके...