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लघुकथा

देहाड़ी
लघुकथा

देहाड़ी

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) हथौड़ की चोट से सारा महौल्ला गूंज रहा था .  तपती दोपहर में गोपाल देहाड़ी पर  लगा हआ था . एक पुराना घर गिरा कर नई तीन मंजीला ईमारत बनाई जा रही थी . गोपाल और उसके साथी अब्दुल को इस पुराने ढांचे को तोड़ने का काम मिला था . गोपाल को कुछ हल्का सा बुखार भी था पर वह आराम नही कर सकता था . आखिर गरीब का घर दिन भर की देहाड़ी से ही तो चलता है .  बुखार की वजह से तेज चमकता सूरज आज उसे परेशान कर रहा था  वरना ये तो उस जैसे मजदूर का रोज का काम है . अब्दुल ने गोपाल के सुखे होंठ और बहते पसीने को देख कहा भाई" थोड़ी देर आराम कर लो,  पानी पी रोटी खा कुछ देर लेट जाओ यहीं कहीं छाया में" . मै तो कर ही रहा हूं काम और कौन सा आज ही ढह जाएगा ये ढांचा और कल नई ईमारत खड़ी हो जाएगी .   जान नही प्यारी क्या ? ठेकेदार के आने में अभी वक्त है . गोपाल हांफ रहा था .   सो अब्दुल  की बात सुन छाया ...
अधुरापन
लघुकथा

अधुरापन

*********** रचियता : केशी गुप्ता झील के किनारे नीला बैठी हुई पानी की  कल कल की मधुर आवाज का आंनद ले रही थी कि तभी पिछे से बंटी ने आवाज दी , नीला अब अंदर आ जाओ सूरज ढल चुका है और ठंड भी बड़ गई है . नीला और बटीं चार दिन के लिए नैनीताल घुमने आए थे.  नैनी झील के पास ही होटल बुक किया था .  बंटी की आवाज सुन नीला उछी और उसका हाथ थामें होटल की ओर चल दी .  नीला और बंटी आज भी ये समझ नही पा रहे थे कि ऐसी क्या बात है दोनों के बीच जिसने उनहे चाहे अनचाहे अक दूसरे के इतने करीब कर दिया है कि उन्हे इब समाज की परवाह नही रही . नीला शादि के 20 साल गुजर जाने के बाद भी प्रमोद के साथ ऱिश्ता जोड़ नही पाई थी .  उसके और प्रमोद के बीच एक अजीब सी खामोशी थी , जिसने कभी उन्हे करीब होने नही दिया . कारण प्रमोद ही था शुरू से ही वह हर छोटी बात पर नीला से खफा हो कई कई महीन बात नही करता था . धीरे धीरे नीला उस सबकी आदि हो गई...
तोहफा
लघुकथा

तोहफा

==================== रचयिता : माधुरी शुक्ला राहुल को दादी बहुत प्यार करती है। वह भी दादी का खूब ख्याल रखता है पापा-मम्मी से भी ज्यादा। दादी उसे जब भी अपने जमाने की बातें सुनातीं तो उसमें पक्की सहेली सरला का जिक्र जरूर आता। उनके बारे में बात करते वक्त दादी के चेहरे पर खुशी तैर जाया करती थी। पहले सरला दादी उनके यहां आ जाया करती थी पर अब बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य की खराबी के चलते काफी समय से उनका आना नहीं हुआ। आज दादी का जन्मदिन है। सब उन्हें शुभकामनाएं और तोहफे दे रहे हैं। राहुल ने कुछ अलग करने की ठान रखी है। वह शाम को दादी को पहले मंदिर फिर सरला दादी के घर ले जाता है। दोनों को खूब खुश देखकर उसे लगता है जन्मदिन पर दादी के लिए इससे बड़ा तोहफा शायद ही दूसरा कोई होता। फिर दादी भी तो बार-बार यही कह रही है सरला से मिलकर आज मेरा दिन सार्थक हो गया। लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति...
दो रास्ते
लघुकथा

दो रास्ते

========================== रचयिता : विजयसिंह चौहान सोलह १७ बरस की उम्र में बंधन और रेखा की नजरें मिली थी। उनदिनों गर्मी की छुट्टियों के मायने , मौज मस्ती और अल्हड़पन के बीच रोटा- पानी खेलते-खेलते बंधन के दिलो-दिमाग में प्यार की रेखा कब उभर आई, पता ही ना चला । आसमानी कलर की फ्रॉक में गहरे फूल रेखा पर खूब जचते थे। प्रेम की कोपल परवान चढ़ रही थी वही इजहार न कर पाने के कारण दोनों का घरोंदा कहीं और बस गया । पुराना समय था इसलिए कुछ इजहार करना दोनों के लिए नामुमकिन सा था । मन मसोसकर सुनहरी यादें दोनों के दिलों में  धड़कती रही। घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश में २० सावन कैसे गुजर गए मालूम ही ना चला मगर आज भी बारिश की बूंद झरते बालों की याद मैं भिगो दिया करती है। सोशल मीडिया ने जैसे-तैसे मुलाकात करा दी। आभासी दुनिया (मोबाइल ) से वास्तविक धरातल परआने में भी दोनों को बरसो लग गए काफी समय बाद दिलों...
अब की कैसी राखी
लघुकथा

अब की कैसी राखी

======================= रचयिता : डॉ. सुरेखा भारती विवेक को राखी बांधते हुए, प्रिया के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शादी के ग्यारह साल बाद पहली राखी पर वह अपने भाई के हाथों में, अपने मायके आकर राखी बांध रही थी। राखी का त्यौहार इतना सूना हो जाएगा यह उसने सोचा भी नहीं था। शादी बाद पहली बार, आने के एक महिने पहले से उसने क्या-क्या सोच कर रखा था, माॅ के लिए, छोटे भैया के लिए, पापा के लिए। अपनी बड़ी बहनों से गिप्ट और माॅ के गोदी में सिर रख कर बहुत सारी बातें। कितनी ही यादें ताजा होकर उसके हृदय को सावन की बूँदों की तरह भिगा जाती, वह पुलकित हो जाती। अभी राखी को पन्द्रह दिन ही तो बाकि थे कि भैया का फोन आया पापा की तबीयत ठीक नहीं तुम देखने चली आओ। उसने कहा- ‘आ तो रही हूँ राखी पर, तब मिलना हो ही जाएगा।’ मम्मी, कमर में फेक्चर होने के बाद अब तो उठने-बैठने लगी है, पर मुझे दुःख है कि मैं उन्हें दे...
पहला अधिकार
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पहला अधिकार

===================== रचयिता : कुमुद दुबे ड्राईंग रुम में फोन की घंटी बजी, बेटी सिया ने झट से फोन उठाया, आशीष का फोन था। सिया ने आवाज लगाई मम्मा  ....मामा का फोन है। अमिता रसोई में थी, फटाफट हाथ धोये और  सिया से रिसिवर लेकर सीधे बोलना शुरु कर दिया भैया कल आ रहे हो ना? आशीष बोला हाँ आ रहा हूँ ! पर, यह बताने के लिये फोन लगाया कि मुझे आते-आते शाम हो जायेगी तुम लोग मेरा खाने पर इन्तजार मत करना। मैं रमा दीदी से राखी बंधवाकर आऊँगा। तुझे तो पता ही है, रमा दीदी खाना खाये बगैर आने नहीं देगी।  क्षणिक  चुप्पी के बाद "ओके भैया'' कहते हुये अमिता ने रिसिवर रखा और रसोई में जाने लगी। पीछे-पीछे सिया आयी और प्रश्न करने लगी; मम्मा, मामा कल आ रहे हैं ना? अमिता ने हामी भरी। सिया बोली- वाह.., फिर तो कल मामा की पसंद की खीर जरूर बनेगी। अमिता बोली- खीर तो तेरे लिये भी बना दूँगी, पर भैया रमा दीदी ...
मानव धर्म
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मानव धर्म

============================== रचयिता : रीतु देवी देखते-देखते बाढ का पानी पूरे गाँव में प्रवेश कर गया है। कयी घरें भी डूब गये हैं। सुगिया का घर भी डूब गया है। सुगिया रमा के घर में काम करती है। बदहवास होकर सुगिया रमा के घर आती है। "मालकिन! हमलोग कैसे रहेंगे? हमलोग प्रकृति की इस लीला के प्रकोप से बचने के लिए कहाँ जाए? सुगिया रमा से बोली। "तुम मेरे यहाँ आ जाओ। ईश्वर सब ठीक कर देंगे। रमा सुगिया को सांत्वना देते हुए बोली। नहीं! चमार, डोम जाति सब इस घर में नहीं रहेंगे। हमारा ब्राह्मण धर्म नष्ट हो जाएगा।" रमा का पति रवि ने मना किया। फिर भी रमा सुगिया को बच्चों सहित घर में शरण देती है। "मैं मानव धर्म का पालन करूँगी। इस विपत्ति की घड़ी में सुगिया के साथ रहूँगी। आप भी अपना सोच बदले। "रमा बोली। रवि नाराज होकर वहाँ से चला जाता है। लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, ...
तलाश
लघुकथा

तलाश

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक" ४ बज गई ..... सभी सहेलियाँ एकता के घर पहूँच गई थीं ,,,,, आशा :- अरे अन्नू ,,,,, शीला नहीं आई ,,,, हाँ, आशा भाभी, वो अपनी बेटी के घर गई है। सुधा :- अरे कुछ समय पहले ही तो गई थी ,,,,,, पूरे २० दिन में आई थी। क्या करे बैचारी, खुशी ढूंढती रहती है। गहरी सांस लेते हुऐ रमा ने कहा। मैं नहीं मानती ,,, अरे घर हमारा है ,,, तो हम क्यों छोड़े अपना घर ,,,,,,, भाई पूरी ज़िंदगी का निचोड़ है ये आज ,,,,,, अब तो सुख भोगने के दिन है। कल कि आई लड़की के लिए तुम क्यों अपना घर छोड़ती हो ,,,,, यहाँ तो शीला ही गलत है, बेटा हमारा है, फिर क्यों हम किसी ओर से उम्मीद रखें ----- बड़े आत्म विश्वास के साथ आशा ने कहा था ,,,,,,, बैग में कपड़े रखते हुए आशा को ये सारी बातें याद आ रही थी ,,,,,,, अब समझ में आ रहा था कि ,,,,, भरा-पूरा...
आईना
लघुकथा

आईना

======================================== रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी "भैया प्लीज़ रुक जा ना| मैं अकेला मम्मी-पापा को कैसे सम्हालूँगा? मेरी इंजीनियरिंग का भी आखिरी साल है| प्लीज भैया| "बेरंग चेहरा, आंसुओं को बहने से रोकती हुई ऑंखें, और सूखा कंठ - ऐसी ही स्थिति हो गई थी अखिल की| बहुत डरता था अपने बड़े भाई निखिल से, पर आज जैसे-तैसे हिम्मत करके भैया और भाभी को रोकने की नाकाम कोशिश कर रहा था| पर निखिल और नमिता अपना मन बना चुके थे| उन्हें तो केवल अपने होने वाले बच्चे का भविष्य दिख रहा था| इसीलिये सीधे ना कहते हुए, गलतफहमियों की इमारतें खड़ी करके अलग होने का रास्ता चुन लिया था दोनो ने| निखिल बहुत सुविधाओं में पला था वहीं अखिल जन्म से ही अभावों का चेहरा देख चुका था| इसीलिए अंतर था दोनों की सोच और नीयत में| 'अब तक मैंने सम्हाला, अब तू देख अक्खी ' कहते हुई निखिल ने अपने कदम बढ़ा...
समाज सेवा
लघुकथा

समाज सेवा

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सारा हॉल लोगो से भरा हुआ था। भ्रांत परिवारों की महिलाओं द्वारा समाजिक उत्सव मनाया जा रहा था।पीछे किसी प्रतिष्ठित संस्था का बेनर लगा था।पूरे हॉल में रौनक बिखरी पड़ी थी। उच्च परिवार की कुछ महिलाये स्टेज पर जमकर नाच रही थी।डोनेशन देकर बने अधिकारी लोग आगे की पंगतियो में विराजमान थे। अपनी महिला को चार दिवारी में कैद कर समाज सेवा के नाम पर भ्रांत महिलाओ के अंग प्रदर्शन की झांकी खुले आम देखी जा रही थी। अधिकारी लोगो के सामने वह महिलाये अपने आप को किसी समाजसेवी संस्था की सदस्य होने पर गर्व महसूस कर रही थी। लेकिन अधिकारियों के लिए मात्र एक मनोरंजन का माध्यम था। ओर ऐसा कार्यक्रम हर मौके पर होना चाहिए यही उनका धेय था।उसमे से एक अधिकारी ने तिरछी नजरो से पास बैठे अधिकारी की ओर देखकर कुटिल मुस्कान बिखेरी। परिचय :- नाम : वन्दना प...
आश
लघुकथा

आश

============================== रचयिता : रीतु देवी चाची जोर, जोर से रोए जा रही थी, "अब मैं किसके सहारे रहूँगी? जीवन का अंतिम आश का धागा भी टूट गया। मंगला ग्वालिन लड़की को भगाकर ले गया। अब दिल्ली से कभी नहीं आएगा।" "हमलोग आपके साथ हैं। आपकी हर मुसीबतों को हंँसते-हँसते सुलझा देंगे। मंगला आपका सच्चा लाल है, अवश्य आएगा। पड़ोस की औरते चाची की आँसू पोछते हुए बोली। रो-रोकर चाची आँखें फुला ली। आपस में सभी औरते बात कर रही थी,  बेचारी चाची, किस्मत में ही हर्ष के क्षण विधाता नहीं लिखे हैं। मंगला जब छ: महीने का था तब ही पति का स्वर्गवास कैंसर बीमारी से हो गया। वह खुद को बहुत मुश्किल से संभालकर मंगला का पालन-पोषण की थी। मंगला चाचाजी की जीने की आश था, वह भी छोड़कर बिन कहे लड़की के साथ भाग गया।" "हाँ बहन, आज के बच्चे माता-पिता के ममता, प्यार को महत्व नहीं देते।" पड़ोस की सुषमा बहन बोली। लेखीका परिचय :-...
समीकरण
लघुकथा

समीकरण

================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "मां, मैं भी कॉलेज जाऊंगी, मैं आगे पढ़ना चाहती हूं" बेटी ने अपना निर्णय सुना दिया । "नहीं, जितना पढ़ना था, पढ़ चुकीं" मां ने कहा । "इसे कौन सा डॉक्टर या इंजीनियर बनना है, शादी के बाद, चूल्हा ही तो फूंकना है, उस के लिए १२ वीं तक कि पढ़ाई काफी है", भैया ने अपनी समझदारी झाड़ी, जो सोफे पर मां के पास ही बैठा था। "क्यों, मैं इंजीनयर क्यों नहीं बन सकती? मैं ने गणित विषय लिया है। मुझे पढ़ने-लिखने का बहुत शौक है" बेटी ने रुआंसे से स्वर में कहा। "और आप लोग हैं कि मुझे पढ़ने देना ही नहीं चाहते। मां तो पुरानी पीढ़ी की हैं, उन का ऐसा सोचना स्वभाविक है, भैया, पर तू  तो नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है, फिर भी तू उन्हीं के पक्ष का समर्थन करता है? यदि हर घर में तेरे जैसे भाई रहे तो हो चुका "नारी शिक्षा" का कार्यक्रम पूरा" बिटिया रो पड़ी थी।       "न...
सिर्फ हम
लघुकथा

सिर्फ हम

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर आज उमा जीवन के अंतिम पड़ाव के साथ आश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। कल ही उसका चश्मा टूट चुका था। दो दिनों से अपनी समस्या को आश्रम संचालक को बयां कर चुकी थी। किसी के पास इतना समय नही था। कि उसकी समस्या का समाधान करें। कमजोर आँखों से वह उठी। धुंधलाई नजरो से अपने जर्जर शरीर को संभालते हुए बाहर आई। अभी कुमुद ने देखा की बिना चश्मे से उमा को देखने मे परेशानी हो रही हैं, तभी कुमुद ने आगे हाथ बढ़कर उसको सहारा दिया। ओर मुस्कुराती हुई "बोली उमा अब  यहाँ किसकी आस रखती हो  हमारा यहाँ कोई नही है, जब तक हम यहाँ है, हमे ही एक दूसरे का साथ  देना होगा। कहकर अपने को उम्र से कम समझकर उसका हाथ थाम दोनों बिना दाँतो के एक प्यारा सा ठहाका लगा उठी। दोनों को मुस्कुराहट बहुत ही प्यारी ओर सलोनी लग रही थी। परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर...
सुरभि
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सुरभि

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका बहुत भीनी खुशबू आ रही है, मां आपने फिर क्यारी में कोई महकने वाले फूलों की कलम लगाई है। घर की दहलीज पर कदम रखते ही बिटिया सुरभि ने अपनी मां की क्यारी में लगे पुष्पों को निहारा। सुरभी आते ही बस दौड़ पड़ी तुम बगीचे में। चलो आओ घर के अंदर। मां बेटी बहुत दिनों के बाद मिली थी। पहले बेटे पढ़ने जाते थे,अब बेटियां भी पढ़ने के लिए की साल बाहर रहती है तो घर आना जाना कम होता है। सुरभी अपनी पढ़ाई के दौरान छुट्टियों में आई थी। कुछ दिन रहकर सुरभि अपनी महक बिखकाकर फिर लौट गई। मां हर पौधे को जतन से रखती, उसे हर पौधा अपने बच्चों सा लगता और पौधै भी जैसे मां को देख झूमते। पढ़ाई पूरी हुई, सुरभि के लिए लड़का पसंद किया गया। आपसी रजामंदी पर शादी हो गई। लेकिन सास, ससुर जेठानी, पति सभी का व्यवहार सुरभि के नाजुक मन सा कहां था, वह तो सब जैसे...
एक पहल ऐसी भी
लघुकथा

एक पहल ऐसी भी

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे सचिन  का ट्रांसफर पूना हो गया था। एक नये बने काम्प्लेक्स के केम्पस में सचिन ने फ्लेट ले लिया था। जिसमें स्विमिंग पुल, पार्क, बच्चों के लिये प्ले ग्राउंड, झूले, फिसलपट्टी, कम्यूनिटी हाॅल, सभी कुछ आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थी। सचिन की पत्नि सुचिता और छः साल का बेटा प्रमेय बहुत खुश थे। रोजाना शाम सभी बच्चे पार्क में एकत्रित होकर खेलते। बच्चों की मम्मियों में भी आपसी परिचय अच्छा हो गया था। सुचिता को बचपन से ही पेड़-पौधों से बहुत लगाव था। साथ ही स्वच्छ वातावरण में रहने की वह आदि थी। शाम के समय पार्क में छोटे-बडे़ सभी बच्चे  इकट्ठे होते थे। कुछ बच्चों की मम्मियां बच्चों के खाने-पीने की सामग्री भी अपने साथ लेकर आने लगी थीं। बच्चे प्ले एरिया में कागज व फलों के छिलके फेंक देते! तो सुचिता को यह पसन्द नहीं आता। उसने एक-दो...
सूखा सावन
लघुकथा

सूखा सावन

=========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान आंगन में लगा आम का पेड़ पूरी कॉलोनी में एकमात्र फलदार, छायादार वृक्ष जिसकी छांव में आज भी मां - बाबूजी कुर्सी डालकर हरियाली का आनंद लेते हैं। फ़ल के समय लटालूम आम ना केवल इंसानों को बल्कि परिंदों को भी तृप्त करता है। अल सुबह मिट्ठू, दिनभर गौरैया और कोयल की कूक से आँगन चहक उठता.... तो कभी, गिलहरी की अठखेलियां देख मन का सावन झूम उठता। हरा भरा आंगन अब सड़क चौड़ीकरण की जद में आ गया। कल ही विकास के नाम पर रंगोली डाली थी और कुल्हाड़ी, आरी वृक्ष के नीचे रख गए थे ....सरकारी मुलाजिम। रात भर से पक्षियों का उपवास है, पक्षियों के चहकने और अठखेलियो पर विराम लग चुका, यही नही बादल का एक झुण्ड पड़ोस के मोहल्ले से गुजर गया। अबकी बार लगता है, मां-बाबूजी सूखा सावन देखेंगे, अपने आंगन। लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन...
पानी की महामारी
लघुकथा

पानी की महामारी

========================================================== रचयिता : श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शहर में पानी के लिए त्राहि-त्राहि हो रही थी सप्ताह में एक दिन नल आते थे लोग मीलों दूर लंबी कतार बनाकर पानी के लिए भागते नजर आते थे। वह बड़े घर की बहू थी नौकर चाकर ठाट बाट सब कुछ था, महलनुमा घर के पिछवाड़े में गहरा कुआं था जिससे पाइपलाइन जोड़कर घर के सभी नलों में पानी आता था उन्हें पानी की कमी कभी न होती किंतु इस बार तो उसके कुएं से भी लोग पानी ले जाने लगे, धीरे धीरे वह भी सूख गया। अब तो पाइप सेभी पानी नहीं चढ़ता उन्हें भी पानी की परेशानी होने लगी किंतु अब तो गजब हो गया जिसे कुएं से पानी खींचना आता था वह नौकर बीमार पड़ गया। तीन दिन बाद हालात ये थे कि घर में केवल दो लोटे पानी बचा था, मालकिन ने दो दिन का निर्जला व्रत रख लिया, क्योंकि बच्चों को पानी बचाना जरूरी था किंतु वह भी खत्म हो गया। सड़क प...
वार्तालाप
लघुकथा

वार्तालाप

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सड़क की पगडंडियों से गुजरता अनुपम गर्मी की तपिश से परेशान हो रहा था। सरकारी स्कूल की नौकरी ऐसी थी। कि गाँव की पाठशाला का भार उसी के जिम्मे आ गया था। गर्मी में स्कूल की छुट्टियां होने के बावजूद भी कोई ना कोई काम से उसे जाना ही पड़ता। आज उसे नए नियमों से स्कूल की भर्तियों को लेकर प्रारूप तैयार करना था। इसी सिलसिले को दिमाग में रखते हुए, वह धूल भरे गुबार से गुजर रहा था। तभी जोरो से आँधी शुरू हो गई। वह सिर छुपाने के लिए जगह की तलाश कर रहा था। तभी उसे वहाँ एक सूखा सा बंजर पेड़ दिखाई दिया। वह उसी पेड़ के नीचे थोड़ी देर के लिए रुका तो ऊपर से उस पर कुछ बूंदे पानी की गिरी। उसने देखा आसमान तो साफ है। फिर यह पानी की बूंद कहां से गिरी। उसने ऊपर नजर उठा कर देखा। तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। वह आँधी के रुकने का इंतजार कर रहा था। ...
बेटे का खत माँ के नाम
लघुकथा

बेटे का खत माँ के नाम

============================== रचयिता : अर्चना मंडलोई थैक्यू माँ ....      ओह! माँ तुम पास हो गई। कितनी खुश हो तुम आज मेरा रिजल्ट देखकर। टीचर जी ने तुम्हें मिठाई खिलाते हुए बधाई दी तो तुम रो ही पडी थी। मैं पास खडा, ये सब देख रहा था, और मन ही मन ईश्वर को शुक्रिया कह रहा था - यहाँ धरती पर तुम जैसी माँ जो मिली है, मुझे संभालने के लिए। मुझे पता है, माँ मैं उन आम बच्चों में शामिल नहीं हूँ, जिसे दुनिया नार्मल कहती है। और तुम भी दुनिया की तमाम माँ के समान ही हो। पर माँ मेरे साथ तुम भी खास हो गई हो। मैं जानता हूँ माँ हर रोज तुम मेरे स्कूल के गेट पर छुट्टी होने के समय से पहले ही खडी रहती हो। दौडते भागते बच्चों को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए, मैं जानता हूँ उन बच्चों में तुम मुझे खोजती हो। वैसे तो माँ तुमने कभी किसी से मेरी तुलना नहीं की, फिर भी मेरी क्लास के टापर्स बच्चों की तुम खुशामद करती हो औ...
फ़र्ज़
लघुकथा

फ़र्ज़

========================================================= रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी करीब बारह वर्ष की थी गुड़िया।  दादाजी के सभी पोते और पोतियों में सबसे लाड़ली थी वो। "चलो गुड़िया, आज "बड़े-घर" जाना है हमको, बड़ी दादी के पास। उनकी तबियत ठीक नहीं है। "ऐसा कहते हुए दादाजी ने गुड़िया को लाल कपडे में लिपटी हुई एक किताब थमा दी और कहा "इसका एक पाठ बड़ी दादी को पढ़ कर सुनाना है तुम्हें, अब चलो।" "बड़े-घर" में एक चारपाई पर बड़ी दादी लेटी हुई थीं। गाँव के डाक्साब (डॉक्टर) भी बैठे थे। पूरा परिवार बड़ी दादी के पास इकठ्ठा हो चुका था। दादाजी के इशारा करते ही गुड़िया ने किताब खोली और दादाजी के कहे अनुसार उसका अट्ठारहवाँ पाठ पढ़ना शुरू कर दिया। पाठ पूरा होते ही बड़ी दादी ने अपना कंपकपाता हाथ गुड़िया के सिर पर फेरा और आशीर्वचन देते हुए चिर-निद्रा में सो गयी। ये वृतांत गुड़िया के कोमल मन पर गहराई से अं...
सेवाराम जी
लघुकथा

सेवाराम जी

=========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान सेवाराम जी यथा नाम तथा गुण वाले सेवाराम जी, अपनी सेवा कार्यों के कारण जात-समाज और मोहल्ले में इसी नाम से जाने जाते हैं। उनका मूल नाम तो दशरथ जी है, बड़ा दिल और तन-मन-धन से हर किसी के लिए मदद को हर पल तैयार! शायद इसीलिए लोग प्यार से उन्हें सेवाराम जी पुकारते हैं। हर दम समाज को नई दिशा दिखाने के पक्षधर सेवाराम जी ने नुक्ता प्रथा, दहेज प्रथा और अब मामेरा प्रथा बंद कराने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़े हैं। नई दिशा की ओर, आपकी पहल कल भी देखने को मिली जब इंदौर वाली ब्यान जी भर्ती थी तो उनकी कुशलक्षेम पूछने के लिए सेवाराम जी अपने साथ घर से ५ खंड का टिफिन जिसमें रोटी के फूलके, दो तरह की सब्जी, अचार, पापड कतरन और थरमस में झोलियां भर कर मिलने पहुंच गए। अस्पताल में काफी लोग थे वे सब सेवाराम जी का या व्यवहार देख मन ही मन प्रशंसा क...
भाग्य की गति
लघुकथा

भाग्य की गति

भाग्य की गति =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका बहुत मिन्नते की थी उसने --- कोई अपना बच्चा मुझे गोद दे दो ---- बाहर से बच्चा लाने के लिए सासू मां तैयार नही थी! घर का बच्चा गोद रखने से घर के संस्कार  आयेंगे ! घर का खून, गोत्र, रिश्ता सब रहेंगे! सासू मां का कहना था! वह सबको मनाती रही! जेठ, देवर, भाई बहन, ननंद कोई भी न माने! जेठ को पांच बच्चे थे, उसमे एक शरीर से अशक्त! न बोल सकता न चल सकता! जेठ  उसे देने को तैयार हुए! उसमे भी उसने हामी भर दी पर बच्चे की स्थिति नही थी की बदली वाली नौकरी मे उसे हर बार परिवर्तन कराया जाये! बात जमी नही! समय  आगे बढता गया! अचानक  उसके पति को दिल का दौरा पड़ा और वह दफ्तर मे ही चल बसे! घर की दूरी ,पास मे कोई नही! एक भोजन बनाने वाला और  उसका तीन साल का बेटा! बस तभी से महीने भर मे वह  उसका बेटा हो गया और  उसे नाम, संस्कार...
रायचंद
लघुकथा

रायचंद

रायचंद  =========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान पिछले दिनों मां के पेट में दर्द की शिकायत को लेकर काकू-अन्नू अस्पताल पहुंचे। चिकित्सीय परीक्षण करने के बाद, चिकित्सक ने सलाह दी कि पेट में १ गेंद के बराबर गठान है, हमे भय है कि, कहीं गठान में कैंसर के जीवाणु ना हो! मशीनी परीक्षण की पुष्टि दो अन्य चिकित्सकों में भी कर दी। अब मां की शल्यक्रिया के लिए मन सहमत हो चुका था।  उधर अस्पताल में मां से मिलने वाले लोगों का जमावड़ा लगने लगा। मंजू जीजी कह रही थी कि, अस्पताल वाले लूटते हैं, आप तो अन्य पद्धति से इलाज कराओ! शोभा आंटी ने भौहे चढ़ाते हुए कहा...भला,  यह कोई उम्र है मां की? जो ऑपरेशन झेलेगी? कूना भैया ने राय दी, कि इन गांठो का इलाज लेजर पद्धति से भी हो सकता है! वही राजू बेन ने तो गंडे डोरे और ताबीज का सुझाव दे डाला। जितने लोग उतनी बातें ....  माँ, सभी के सुझाव के ...
👓दो चश्मे👓
लघुकथा

👓दो चश्मे👓

👓दो चश्मे👓 ================================================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख 'कुंद-कुंद' में हमारी साहित्यिक संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था। मेरे काव्य पाठ की भी वीडियो रिकॉर्डिंग हुई थी। कार्यक्रम के समापन पर अपने एक मित्र के साथ उनकी बाइक पर बैठकर घर लौटा। ज्यों ही मैंने सांध्यकालीन पत्र पढ़ने के लिए चश्मा खोजा तो वह कहीं नहीं मिला। बार-बार सभी जेबों और झोले को टटोला किन्तु व्यर्थ! पत्नी उलाहनापूर्वक कहने लगी, "आप चश्मे का ध्यान कब रखते हैं! "पुत्र ने दिलासा के स्वरों में कहा, " पापा, आपका जन्मदिन दो दिन बाद ही है। मैं अपनी ओर से आपको चश्मा भेंट करूँगा। मेरे साथ चलना कल ही आपकी आँखों की जांच करवाने के बाद चश्मा बनवा दूंगा। "पत्नी के चश्मे से मैंने मोबाइल देखा। वाट्सअप में प्रेषित वीडियो में उसी खोए हुए चश्मे में मेरा काव्य पाठ...
माँ तुम
लघुकथा

माँ तुम

माँ तुम रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर ============================================ चुनाव के प्रचार प्रसार का जुलूस गॉव के कोने से गुजर रहा था। जुलूस की आवाजें सुनकर,काम से लौट रही माँ का हाथ छूटाकर भूरी आवाज़ की दिशा में भागी। सात साल की भूरी देखे ही देखते माँ की आँखों से ओझल हो गई। भूरी जब उस भीड़ में फस गई तो उसकी आँखों मे भय कॉप रहा था। वह बैचेन निगाहों से माँ को ढूंढने लगी। तभी एक व्यक्ति  भूरी को अकेला पा कर उसे फुसलाने की कोशिश करने लगा। इधर माँ चिंतित नज़रो से चारो ओर भूरी को ढूंढ रही थी। उसे भूरी कही भी नजर नही आई। तभी उसकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी वह भूरी का हाथ थामे उसे कुछ कह रहा था। लॉस्पिकर की आवाज में वह कुछ सुन ना सकी। भीड़ को चीरते हुए वह उस व्यक्ति तक पहुँची ओर जोर से उसके गाल पर तमाचा मारा वह उसके मन्तव्य को समझ चुकी थी। डरी सहमी भूरी माँ को देखते ही किसी कोमल फूल की तरह खिल उठी...