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कहानी

वह गाड़ी वाली लड़की
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वह गाड़ी वाली लड़की

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीना जी, आज आप बहुत उदास लग रही है। क्या कोई खास कारण है? आपका हँसता हुआ चेहरा, आज मुरझाया हुआ क्यों लग रहा है? मैंने आपको इससे पहले कभी इतना उदास नहीं देखा। क्या आप मुझें अपनी परेशानी बता सकती हैं? अरे, सुरेश जी आप तो यूँ ही इतने परेशान हो रहे हैं। मेरे चेहरे पर लंबे सफर की थकान है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। थोड़ा आराम कर लूँगी। फिर सब ठीक हो जाएगा। क्या हम शाम को मिल सकते हैं, सुरेश जी? जी जरूर, आपकी हर फरमाइश सिर-आंखों पर। अच्छा मैं चलता हूँ, फिर मिलेंगे। वह सुरेश को जाते हुए देखती रही, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया। सुरेश वर्षों से मेरे साथ हैं। यह साथ करीब-करीब बीस साल पुराना है। जब हम कॉलेज में पढ़ते थे। सुरेश हमेशा से ही मस्ती में रहता हैं। उसे तो सिर्फ मजाक करने का बहाना चाहिए। मुझें नहीं लगता वह कभी गंभीर भी होता हैं। म...
आदमी से गधा बेहतर
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आदमी से गधा बेहतर

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** ‘गाढवे, तुम वास्तव में गधे ही हो।' साहब ने भले ही क्रोध में यह कहाँ पर राजाभाऊ गाढवे बिलकुल शांत ही थे। साहब पर उनकों कतई गुस्सा नहीं आया, बल्कि उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘धन्यवाद सर !‘ अब साहब ज्यादा ही नाराज हो गए। उन्हें लगा गाढवे उनका मजाक उड़ा रहें हैं। ‘गाढवे .....गाढवे, अरे मैं तुम्हें साफ़ साफ़ गधा कह रहा हूँ। धन्यवाद क्या दे रहे हो मुझे ?‘ ‘फिर क्या देना चाहिए सर आपको ? ‘ राजाभाऊ ने फिर विनम्रता से कहाँ। वह बिलकुल शांत थे। ‘कुछ भी नहीं।‘ साहब का पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था ।‘ मुझे कुछ देने की जरूरत नहीं है । तुम अपना काम ठीक से किया करो ।इतनी मेहरबानी तो कर सकते हो मेरे ऊपर ? ‘ ‘यस सर ।‘ राजाभाऊ गाढवे को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनकी गलती कहाँ हुई ? और साहब के इतना नाराज होने की वजह क्या हैं ? उन्होंने चुपचाप साहब के साम...
हजार मुंह का रावण …!!
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हजार मुंह का रावण …!!

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** “ठहरो !“ डायनासोर से भी कई गुना बड़ा और भारी भीमकाय भ्रष्टाचार दौड़-दौड़ते बड़ी मुश्किल से ठहर पाया I फिर भी वह बहुत आगे तक आ ही गया था I उसके पावों में लाखों अश्वों का बल आ गया था और अनेक हाथियों के पेट से भी बड़ा भारी उसके पेट का आकार हो गया था, इसलिए उसने खुद को सम्हालने में बड़ा समय लियाI ठहरने के बाद वहीँ खड़े-खड़े बड़े कष्ट से उसने अपनी गर्दन घुमा कर थोडा पीछे की ओर देखा और पाया कि लोकतंत्र उसके पीछे-पीछे दौड़ा चला आ रहा थाI भ्रष्टाचार ने यह भी देखा कि लोकतंत्र के पीछे-पीछे लोकतंत्र के प्रहरी आम मतदाताओं की भी बहुत बड़ी भीड़ चली आ रही थी I लोकतंत्र हांफते हांफते भ्रष्टाचार के पास आकर रुका I “अरे ! कब से आवाज लगा रहां हूँ ? ठहरने का नाम ही नहीं ले रहा? “थोडा ठहर जा !“ लोकतंत्र ने तनिक नाराजी भरे स्वर में कहाँ ! भ्रष्टाचार अपने भीमकाय शरीर क...
रंगबिरंगी
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रंगबिरंगी

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** मंच पर से वक्ता बोल रहा था। अचानक वह बोलते बोलते रुक गया। सबसे अंतिम पंक्ति की ओर उसने टेढ़ी नजरों से देखा, एक क्षण देखता रहा और फिर विषय से हट कर बोला, “मुझे ऐसा लगता हैं कि अंतिम पंक्ति में बैठे हुए चारों सज्जन अगर मेरी बात शांति से सुने तो बेहतर होगा, इससे वें भी मेरी बात ठीक से समझ सकेंगे और दूसरों को भी कोई परेशानी नहीं होगी और वें सब भी शांति से मेरी बात सुन सकेंगे। आखिर हम लोग सेवानिवृत्ति के पश्चात् आने वाली समस्याओं पर ही तो चर्चा कर रहें हैं, और यह सबके भले के लिए ही तो हैं।“ वें चारों सकपका गए, फिर मुस्करा दिए और गर्दन हिला कर शांति से भाषण सुनने का वक्ता को आश्वासन दिया। वक्ता फिर से विषय पर बोलने लगा। परन्तु उन चारों की हरकते बदस्तूर जारी थी। इन अभिन्न मित्रों की शरारती चौकड़ी अनेक वर्षों के उपरान्त एकत्रित हुई थी और जिगरी दोस्त...
मृत्यु का सुख
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मृत्यु का सुख

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** ताराबाई के शरीर से प्राण निकले और आखिरकार इस भवसागर से उसको मुक्ति मिल गई। अब ताराबाई के शरीर से प्राण निकले जरुर पर उसकी आत्मा का क्या? भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं, ‘जो मरता हैं वह शरीर। आत्मा कभी नहीं मरती। और प्रत्येक शरीर में एक अदद आत्मा भी तो होती ही हैं। अर्थात जिसे मृत्यु के मुख में जाना होता हैं वह शरीर और जिसका मृत्यु कुछ भी नहीं बिगाड सकती वह अजरामर आत्मा। इसीलिए हम सब को हमेशा यहीं बताया जाता हैं कि आत्मा हर जन्म में हमेशा शरीर रूपी कपडे बदलती रहती हैं और यह कि आत्मा अमर होती हैं । अब सवाल यह कि ताराबाई की मृत्यु के बाद ताराबाई का शरीर छोड़ने वाली और ताराबाई की अमर कहलाने वाली आत्मा अभी तक कहाँ भटक रही होगी? ज़रा ठहरिए। कहाँ भटकेगी? अभी तो इसी घर में, नहीं-नहीं इसी कमरें में भटक रहीं होगी? अभी तो ताराबाई की मृत देह जम...
बस एक रात की बात
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बस एक रात की बात

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** साक्षी सड़क के किनारे बने चबूतरे पर बैठी लगातार इधर-उधर देख रही थी, पता नहीं वह किसका इंतजार कर रही थी? पप्पू लगातार उसे देख रहा था, उसे देखकर पप्पू को अतीत की कुछ यादें स्मरण हो आई, जब पप्पू सोलह साल का था, वह घर से भागकर मुंबई जैसे शहर में आ गया था। उसके पास कोई ठोर ठिकाना नहीं था। उसे चारों तरफ इंसान ही इंसान दिखाई दे रहे थे। दिन हो या रात उसे भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी। वह मन ही मन में सोच रहा था, क्या यहाँ रात भी नहीं होती? रात को भी दिन से अधिक चकाचौंध रहती है। पर उसने सुन रखा था कि महानगरों में रात को भी लोग काम करते हैं। उनके के लिए दिन और रात एक समान होते है। पर हमारे गाँव में तो आठ बजे रात हो जाती है। पूरे गाँव में सन्नाटा पसर जाता है। आदमी तक दिखाई नहीं देता। वह अक्सर रात को घर से बाहर निकलने से घबराता था। वैसे भी उसे दाद...
प्रतिज्ञा
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प्रतिज्ञा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** शालिनी घर लौट रही थी। उसकी आँखे नम थी। कितनी खुश थी वह अपनी शादी को लेकर। पर यह शादी उसके जी का जंजाल बन गई थी।रोज का झगड़ा, हाथा-पाई तंग आ गई थी इससे। उसके सारे सपने बिखर गए थे। वह पढ़ाई में कितनी अच्छी थी। सारा कॉलेज उसकी प्रतिभा को लोहा मानता था। किसी विषय पर वाद- विवाद हो। उसे सबसे पहले चुना जाता था। यह सब गुण उसे अपने पापा से ही मिले थे। प्रतिदिन उसे दो घंटे अखबार पढ़ना अनिवार्य था। ध्यान लगाना उसके पूरे परिवार की दिनचर्या में शामिल था। प्रतिदिन अखबार पढ़ना, शुरू में उसे बोर करता था। उसका मन नहीं चाहता था। राजनीतिक खबरें उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। वह राजनीतिक विषय पर कुछ भी बोलने से कतराती थी। पर पापा को राजनीति की खबरें बहुत पसन्द थीं। रोज दफ्तर से आते एक कप चाय पीते और चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता। फिर तो समझो गए तीन-चार घंटे,...
क्षतिपूर्ति
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क्षतिपूर्ति

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीतू ऐसा क्या हो गया हैं? जो नौबत यहाँ तक पहुँच गई है। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी, तुम्हारे साथ ऐसा हो सकता है। पति-पत्नी में कहा-सुनी होना कोई बड़ी बात नहीं है। हर घर में ऐसी स्थिति बन जाती है। इसका मतलब यह नहीं है कि एक-दूसरे को छोड़ने को तैयार हो जाओ। तुम तो पढ़ी-लिखी हो, फिर तुमने समझदारी से काम क्यों नहीं लिया? पति-पत्नी दोनों को ही कुछ बातों को नकार देना चाहिए। इससे रिश्तों में दरार पड़ने से बच जाती है। माँ कहे जा रही थी। गीतू चुपचाप सुन रही थी। आखिर कब तक अपने संबंधों में दरार पड़ने से बचाती। मैं तो हमेशा ही सतर्क रहती थी। झगड़े की हर वजह को उसी समय नकार देती थी। ताकि झगड़ा किसी बड़े कलह का कारण ना बन जाए। वह अपनी माँ की इकलौती संतान थी। पिता जी माँ को अकेला छोड़ कर जा चुके थे। किसी नाचने वाली के चक्कर में। जब मै दस वर्ष की हुई ...
स्वाभिमान
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स्वाभिमान

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                           सीमा एक पढ़ी-लिखी बेटी थी, वह एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती थी। स्कूल के बच्चों की चहेती टीचर थी। बच्चे उसे बहुत प्यार करते थे। माता-पिता ने बहुत अच्छा लड़का देखकर उसकी शादी कर दी। माता-पिता को अपने बेटी पर पूर्ण विश्वास था, कि वह अपने ससुराल में सबका दिल जीत लेगी, और कुछ ऐसा काम नहीं करेगी, जिससे उसके स्वाभिमानको चोट पहुंचे। वह बहुत जल्दी अपने ससुराल में घुल मिल गयी। सब उसे प्यार करते थे, केवल छोटी नंनद को छोड़कर। नंनद रानी हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती, और ऐसा कार्य करती जिसेसे उसके अहम को ठेंस लगता, लेकिन वह परिवार में एका बना रहे, इसलिए रानी की बातों का बुरा नहीं मानती, हंसकर टाल देती थी। सीमा समझदार थी, वह जानती थी कि परिवार में रिश्तों को बनाए रखने के...
जिम्मेदारी
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जिम्मेदारी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** घर पर खुशियों का माहौल था। सभी ओर से बधाई मिल रही थी। रमेश और सुरेश ने अपनी माँ का नाम रोशन कर दिया था। उनकी सफलता का श्रेय उनकी माँ को जाता था। आरती देवी स्वभाव से बड़ी ही शान्त थी। वह बच्चों की सफलता का श्रेय उनकी मेहनत को ही देती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। बच्चे अपनी सफलता पर बेहद खुश थे। प्रतिदिन माँ के चरण छू कर अपने काम शुरू करते थे। आरती भी खुद को धन्य समझती थी।बिना पिता के बच्चे का पालन-पोषण करना कौन सा आसान काम था?वह अपने मालिक जय सिंह का धन्यवाद करती नहीं थकती थी। जयसिंह बड़े आदमी थे। उनका भरा-पूरा परिवार था। सुंदर पत्नी, बाल-बच्चे। वह कई कारखानों के मालिक थे। वह कमजोर तथा गरीबो की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहते थे। आरती का पति भी इनके कारखाने में काम करता था। उसने कभी पति का सुख नहीं देखा था। अपने घर पर भी घोर गरीबी देखी थी।...
किस्मत से समझोता
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किस्मत से समझोता

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                               आज सुबह उठते ही नितिशा के हाथों की हरी चूड़ियाँ खनखना गईं। चूड़ियों को देख उसे याद आया कि कल उसकी शादी है। न जाने क्यूँ उसे बार-बार लग रहा था कि मम्मी से कह दे कि उसे शादी नहीं करनी है। नितिशा ने उसकी सहेली शुचि को फोन लगा कर कहा। शुचि ने समझाया कि टेंशन न ले। हर लड़की को शादी से पहले टेंशन होता ही है। नितिशा के पापा न होने से सारा भार उसकी मम्मी के कंधे पर था। शायद नितिशा को टेंशन मम्मी को छोड़ सीधे अमरीका जाना था। और आज नितिशा शादी का जोड़ा पहन अपने ससुराल जाने को भारी मन से तैयार थी। वह अपना सब कुछ छोड़ एक अनजान आदमी के साथ उसके घर में, उसके घर को अपना घर कहने, उसकी माँ को अपनी माँ जैसा आदर देने जा रही थी। जाते जाते उसने माँ की तरफ देखा तो माँ ने समझाया बेटा यही जीवन की रीत है। हर लड़की को शादी कर पराया होन...
बंदिशें
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बंदिशें

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उर्मि, तंग आ गई थी। सभी ने उसका जीना हराम कर रखा था। बात-बात पर टोका-टाकी उसे पसंद नही थी। पर परिवार था कि मानने को तैयार नहीं था। कोई ना कोई बहाना निकाल ही लेता था, उसे परेशान करने का। माँ तो जब देखो समझाने बैठ जाती थी। बेटी बाहर ना जाया करो, यहाँ ना जाया करो। आजकल पहले वाला जमाना नहीं है, लोग लड़कियों को भूखी नजरों से देखते रहते हैं। यहाँ इंसानों के भेष में राक्षस घूम रहे हैं। पर तुम मेरी बात सुनती ही कहाँ हो? एक हमारा जमाना था। क्या मान-सम्मान था, गाँव में लड़कियों का? गाँव की लड़की को सारा गाँव अपनी ही लड़की समझता था। मजाल है कोई किसी लड़की को छेड़ दे। बेटी, मैं तुम्हें बताती हूँ, एक कहानी जरा ध्यान से सुनना। क्योंकि तू हमेशा मेरी बातों को हल्के में लेती है। ठीक है माँ, कहो अपनी रामकथा, उसने चिल्लाकर कहा। यही रवैया तो सुधरना है मुझें ...
कुदरत के फैसले…
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कुदरत के फैसले…

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ********************                                                      पिछले महीने सितम्बर के आखिरी हफ्ते की बात है, मैं कुछ अनमनी, हैरान,परेशान सी थी, अपने ही लोगों से कुछ आहत थी! जीवन में यह सब नया नही था और ना पहली बार! सब कुछ चलता रहता है यही सोचकर मैं घर के छोटे-मोटे काम निबटा कर नहाई! समय लगभग दिन के एक बज चुके थे, मंदिर में दीप जलाते ही मुझे याद आया कि तुलसी का पौधा सूखने लगा होगा, इसलिए जल चढ़ाने के लिए बाहर गई! मन में संशय था कि कहीं कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...? कि दिन के एक-दो बजे तुलसी में जल चढ़ा रही है, कितनी लापरवाह और आलसी औरत है! यूँ तो सरपट भागती दिल्ली नगरिया में किसी को किसी से कोई विशेष मतलब नहीं रहता है, फिर भी आस पड़ोस की कुछ महिलाएँ दूसरी महिलाओं की कमियाँ और खोट निकाल कर मजे लेने से पीछे नहीं हटती हैं! जो भी हो लेकिन म...
जख्मों की टीस
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जख्मों की टीस

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                                   नेहा महज तीस साल की है। वह हिमाचल प्रदेश के बद्दी में रहती है। वह बद्दी के एक नामी पाठशाला में शिक्षिका है। वह अक्सर कहती कि उसे छुट्टियों वाले दिन की दोपहर बहुत लम्बी लगती है जैसे कि दिन यहाँ आकर रुक सा जाता है और इन दोपहरों की चुप्पी जैसे बीहड़ की कोई झील एकदम शांत सी। आज इतवार था। इस दिन का सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं। कोई दोस्तों से मिलने जाता है तो कोई सिनेमा देखने तो कोई शॉपिंग। पर नेहा के लिये यह सबसे लंबा और बोझल दिन रहता है। वह तब भी था जब आकाश था और वह अब भी है जब आकाश नहीं। आकाश नेहा का पति एल. आई. सी. में फील्ड ऑफिसर था। उसकी मौत हो चुकी थी। वह कोशिश करती कि रविवार को भी कॉपी चेकिंग के लिए ले जाये। पर आज तो उसके सारे काम भी खतम हुए काफ़ी समय हो गया था। शाम का समय था कॉलोनी के कपल देख उस...
वनवास
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वनवास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** अवनी आज अपनी माँ से लगातार सवाल पूछ रही थी। यह अंकल कौन थे? बताओ ना माँ, आखिर कब तक तुम यूं ही घुटती रहोगी? क्या तुम्हें अपनी अवनी पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? पापा को गुजरे बीस साल हो गए। कब तक उनकी यादों में खुद को डुबोकर रखोगी? आखिर कुछ तो कहो, माँ। देखो माँ तुम्हारे चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ रही है। कल को मेरी भी शादी हो जाएगी। मुझें तुम्हारी बहुत चिंता रहती है। सुधा अंदर ही अंदर घुट रही थी कि वह अपने अतीत की छाया अपनी बेटी की जिंदगी पर नहीं पड़ने देगी। सब कुछ खत्म हो चुका था, फिर आज राजन क्यों लौट आया था, क्या पड़ी थी उसे? अवनी, माँ मैं ऑफिस जा रही हूँ, शाम को आकर बात करते हैं। उसने जाते-जाते माँ को गले लगा कर चूम लिया था। मेरी प्यारी माँ नाराज हो अब तक, अच्छा अब मैं कुछ नहीं पूछूंगी? अब तो हँस दो माँ। बेटी का मन रखने के लिए ही सह...
मिलन
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मिलन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटा, तेरी डाक मेज पर रखी है। पता नहीं यह लड़का क्यों कागज काले करता रहता है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता। डाकिया भी रोज ही घर के चक्कर लगाता रहता है। कल ही तो कह रहा था, माँ जी प्रकाश को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक है। वह बहुत सुन्दर कहानी-कविताएं लिखता है। यह बहुत अच्छी बात है। अच्छा माँ जी अब मैं चलता हूँ। वह डाक में आए पत्रों को खोलकर पढ़ने लगा। ज्यादातर पत्रों में रचनाओं के प्रकाशन की सूचना थी और अति शीघ्र ही पत्रिका की प्रति भेजने का आश्वासन भी था। उसके मन को तृप्ति मिलती थी कि उसके लेखन का प्रयास सफल हो रहा हैं, चाहे धीरे-धीरे ही सही। उसने आखिरी पत्र भी खोल ही लिया।वह हैरान था यह पत्र उसे किसी मिस कविता ने एक सुंदर लेटर पैड पर लिखा था। पत्र में से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थीं। उसे मेरी रचनाएँ बहुत पसंद आई थी। खासकर कहानियाँ जो पार...
गोलगप्पे
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गोलगप्पे

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ********************                                  ग्यारह वर्षीय शैली अपनी सभी सहेलियों में क़द-काठी में सबसे लम्बी थी। खेलकूद प्रतियोगिताओं और पढ़ाई में सबसे होशियार परन्तु साथ ही सबसे अधिक शरारती भी। चित्रकारी और शायरी का इतना शौक़ कि गणित की कक्षा में भी बैठी हुई कापी के पिछले पन्नों पर टीचर की तस्वीर बनाकर उसके नीचे शायराना अंदाज में कुछ भी दो पंक्तियाँ और लिख देती। कक्षा के सभी छात्र शैली के द्वारा की गई चित्रकारी और शेरो-शायरी की ख़ूब सराहना करते और इसी के साथ उसकी कापी वाहवाही बटोरतीं पूरी कक्षा में घूमतीं रहती। टीचर जब कक्षा के सभी बच्चों की कापी चैक करने के लिए माँगती तो शैली भी बड़ी होशियारी से सबकी कापियों के नीचे सरका कर अपनी कापी भी रख देती। घंटी बजते ही चुपके से उसे वापस भी निकाल लेती। एक दिन की बात है कि कक्षा में टीचर ब्...
क्षितिज मिलेगा
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क्षितिज मिलेगा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************  प्रियंका, क्या मैं अंदर आ सकती हूँ, सर। प्लीज कम इन, हैव आ सीट। थैंक्स, सर। कैन आई हेल्प यू। सर, मेरा नाम प्रियंका है। पिछले सप्ताह ही आपसे जॉब के लिए बात हुई थी। ओह, यस प्रियंका, आप हमीरपुर से हैं। यस सर, आप कल ९:०० बजे से आ सकती हो, थैंक सर। मन में नई उमंग के साथ ही घर फोन मिला दिया। मम्मी मुझें जॉब मिल गई हैं, हमीरपुर में। मम्मी : प्रियंका-मुझें तो पहले ही पता था कि तुम्हें जॉब जल्दी ही मिल जाएगी। तुम बहुत काबिल हो, काबिल लोगों के मार्ग में रोड़े आ सकते हैं, बाधाए आ सकती। पर उन्हें मंज़िल अवश्य मिल जाती है। चाहे देर से ही सही,इतना कहते-कहते माँ चुप हो गई। प्रियंका : माँ- चुप क्यों हो गई? मन में कुछ हो तो, कहो ना। मन का दर्द कहने से हल्का हो जाता है। फिर मैं तो तुम्हारी बहादुर बेटी हूँ ना। कल अनिल का फोन आया था। वह कह रहा था कि उसे अ...
कन्यादान
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कन्यादान

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ********************                               उस नन्ही किलकारी से सारे घर का वातावरण संगीतमय में हो गया। उसके हाथ पैर की थिरकन, चेहरे की भाव-भंगिमा का आकर्षण किसी को भी उससे दूर ना जाने देता। पंडित जी ने यह कहते हुए उसका नाम लीना रखा- " कि उससे उसके गृह नक्षत्र बता रहे हैं कि जो इससे मिलेगा इसमें लीन हो जाएगा।" बड़े होते हो हुए उसके नाम की खूबी बखूबी उसके स्वभाव में झलक रही थी। अपने मुस्कुराहट की डोर में सभी को समेटे लीना ने सभी के अच्छे गुणों को अपने में समाहित कर रखा था। हर विद्या में पारंगत, स्वभाव से नम्र, कुशाग्र बुद्धि लीना मेरे दिखाए रास्ते का अनुसरण कर आज सफल ड्रेस डिजाइनर बन चुकी थी। उसके स्वभाव, पेंटिंग और रंगोली की ही तरह उसके ड्रेस की डिजाइन भी अनूठी होती । आज उसकी शादी का रिश्ता आने पर उसके युवा होने का पता चला। मैं हैरान सोच रहा था अ...
सखी भाग- २
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सखी भाग- २

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** मैं उन सभी रसिक एवं विज्ञ पाठकों का हृदय से आभारी हूं, जिन्होंने मेरी कहानी "सखी" को पढ़ा और पसंद किया। लेकिन कुछ पाठकों का तर्क था कि कहानी और आगे बढ़ सकती है, उसे बीच में ना छोड़ा जाए और आगे बढ़ाया जाए तो एक कोशिश की है, उसे आगे बढ़ाने की, तो प्रस्तुत है कहानी का दूसरा भाग :- विश्वास एवं सखी की बातचीत लगातार होने लगी। जिस दिन विश्वास की सखी से बात होती उस दिन विश्वास मन ही मन मुस्कुराता रहता, वह दिन भर खुश एवं प्रसन्न रहता, उसे ऐसा लगता मानो अंदर ही अंदर उसे कोई गुदगुदी कर रहा हो। उधर सखी की हालत भी ऐसी ही थी, लेकिन बातों ही बातों में विश्वास को यह महसूस हुआ कि सखी की बातों में कोई गहरा अर्थ छुपा हुआ है, सखी कुछ कहना चाहती हैं, कुछ जताना चाहती है और विश्वास उसे समझ नहीं पा रहा है। कहते हैं ना "अरथ अमित-आखर थोरे"। अतः विश्वास अब...
सखी
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सखी

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कहते हैं तीन चीजें ईश्वर एक साथ कभी नहीं देता- १ सुंदरता/ रूप- रंग २ सादगी/ सरलता/सहजता/विनम्रता और ३ तीव्र मस्तिष्क/ मति/ पढ़ने में तेज। अगर किसी के जीवन में यह तीन चीजें हो तो उस पर तथा उससे जुड़े हुए लोगों पर ईश्वर की असीम कृपा होती है। आज की कहानी ऐसी ही एक लड़की की है, जिसका नाम है- सखी। सखी एक छोटे से शहर में रहने वाली एक सुंदर, सुशील और विनम्र लड़की है। उसकी सुंदरता की बात करें तो चंद्रमा के समान मुख वाली एवं शीतलता लिए हुए, हिरनी सी आंखों वाली एवं चंचलता लिए हुए, गज गामिनी एवं हथिनी सी गंभीरता लिए हुए। सादगी की प्रतिमूर्ति, अहंकार रहित, लेश मात्र भी घमंड नहीं, ना पढ़ाई का और न ही अपने रूप रंग का। मानो विनम्रता शब्द उसके लिए ही बना हो, वाणी शहद सी मीठी और मुस्कान जीवन रस का संचार कर दे। अत्यंत संकोची एवं शर्मिली, लेकि...
जिंदा मुर्दा बाप
कहानी

जिंदा मुर्दा बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। हर ओर तर्पण श्राद्ध की गूँज है। अचानक मेरे मन में एक सत्य घटना घूम गई। रमन (काल्पनिक नाम) ने कुछ समय पहले मुझसे एक सत्य घटना का जिक्र किया था। रमन के घर से थोड़ी ही दूर एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। बाप रिटायर हो चुका था। दो बेटे एक ही मकान के अलग अलग हिस्सों में अपने परिवार के साथ रहते थे। पिता छोटे बेटे के साथ रहते थे। क्योंकि बड़ा बेटा शराबी था। देखने में सब कुछ सामान्य दिखता था। दोनों भाईयों में बोलचाल तक बंद थी। अचानक एक दिन पिताजी मोहल्ले में अपने पड़ोसी से अपनी करूण कहानी कहने लगे। हुआ यूँ कि दोनों बेटों ने उनके जीवित रहते हुए ही उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर एक दूसरा मकान, जो पिताजी ने नौकरी के दौरान लिया था, उसे अपने नाम कराने की साजिश लेखपाल से मिलकर रच डाली। संयोग ही था क...
धूप-छाँव
कहानी

धूप-छाँव

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************              घड़ी में शाम के चार बजे थे। रमेश अपने कॉर्पोरेट के आलिशान ऑफिस में बैठा था। तभी चपरासी चाय लेकर उसकी मेज पर रख गया। चाय के प्याले को हाथ में लिये रमेश अपने सम्पूर्ण कार्यकाल को याद करने लगा। उसका बहुराष्ट्रीय कंपनी का वो पहला दिन जहाँ सारे विदेशी कर्मचारी थे और वो अकेला हिंदुस्तानी। उसे हर दिन एक नई तकलीफ का सामना करना पड़ता था। वो विदेशी इसके साथ कार्यस्थल पर राजनीति खेलते थे। जब सारे साथ जाते तो उसे हीन नजरों से देखते थे ये सोचकर कि उसे उनकी भाषा समझ में आ भी रही है या नहीं? खाने की मेज पर बैठते तो उसको टकटकी लगाकर देखते कि वो चाकू, छुरी से खा पायेगा कि नहीं? इत्यादि इत्यादि। इन सारी तकलीफों के कारण रमेश को असंख्य बार हिंदुस्तानी कंपनी में काम करने की इच्छा हुई। उसके एक वरिष्ठ पदाधिकारी को उसकी तकलीफों का अंदाजा था। उसने...
मिस सीमा
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मिस सीमा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************                                          प्रदीप, तुम क्या समझते हो? मैं सीमा की चाल नहीं समझ रही हूँ। आखिर बात क्या हैं नीना दीदी? खुलकर कहो जो कहना चाहती हो।पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो? नहीं प्रदीप ये कोई पहेली नहीं है। ये पूरी तरह सत्य हैं। तुम्हारी मिस सीमा, आजकल मेरे लाड़ले अवि पर डोरे डाल रही हैं। ये आप क्या कह रहीं हो दीदी? क्या सबूत हैं तुम्हारे पास? तुम्हें भी सबूत चाहिए, जबकि तुम मिस सीमा के व्यक्तित्व के बारे में अच्छी तरह जानते हो। हाँ, जानता हूँ वह एक स्मार्ट औरत हैं, बेहद चालाक। वह अपनी नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती। पर आजकल उसकी हालात ठीक नहीं है। वह कर्ज में डूबी हुई हैं। यही तो मैं तुम्हें बताने का प्रयास कर रही हूँ। वह हमारे अवि,पर अपने रूप का जादू बिखेर रही हैं। वह अच्छी तरह जानती है कि वह करोड़ो का मालिक है। वह इसी क...
अनोखा बंधन
कहानी

अनोखा बंधन

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** प्रस्तावना:- व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में कई लोगों से मिलता है, जुुुड़ता है, बिछड़ता है, लेकिन इस भीड़ मेे कुछ लोगों से ऐसे मिलता है और जुुुड़ता है, जैसे जनम-जनम का साथ हो। सामने वाला कब, कहाँ और कैसे उसके इतने निकट आ जाता है कि कुछ पता ही नहीं चलता। कोई कहता है, कि यह पूर्व जन्म का अधूरा कर्ज है, जो मनुष्य इस जनम में पूरा करता है और कोई कहता है कि कुछ रिश्ते और कुछ फर्ज पूर्वजन्म मे अधूरे रह जाते हैं, उन रिश्तो का प्रभाव इतना गहरा होता है, कि मानव को उन रिश्तो की पूर्णता एवं उस फर्ज की प्रतिपूर्ति हेतु इस जन्म में आना पड़ता है। प्रकृति उन्हें मिलाती है, वे उन रिश्तो से भागने की कितनी भी कोशिश क्यों न करे, पर प्रकृति किसी न किसी बहाने उन्हें बार-बार सामने खड़ा कर देती है। हालांकि व्यक्ति इन रिश्तो को कभी परिभाषित नहीं कर पाता है लेक...