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जियो तो ऐसे जियो
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जियो तो ऐसे जियो

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान, रिश्तो के प्रति समर्पित, धीर-गंभीर प्रवृत्ति, कर्तव्यनिष्ठ, जीवन को संजीदगी से जीने वाले, अल्प आयु में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करने वाले व्यक्तियों में प्रायः अपरिभाषित रूप या अनचाहे रूप से छुपी हुई एक आत्मग्लानि, शिकायत, मलाल, वेदनाा, संताप, अवसाद, व्यथा रहती है कि उन्होंने अल्प आयु में अपने कर्तव्यों को स्वीकार कर, उनका निर्वहन करना प्रारंभ कर दिया वह पूर्णतः दूसरों के लिए जीते रहे इस कारण वे अपने जीवन को पूर्णतः अपने तरीके से नहीं जी पाएl जीवन का उन्मुक्त आनंद नहीं ले पाए l कर्तव्य के पालन में उन्होंने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया l अतः वे लोग कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, रिश्तो के प्रति ईमानदार रहते हुए, उन्हें निभाते भी हैं और घुटते भी रहते हैं l उन्हें लगता है कि यह कर्तव्य, यह आ...
अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?
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अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** फिल्म अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला अब हमारे बीच नही हैं। ऐसा लिखने और कह सकने के लिए दिल अब भी गवाही नही दे रहा, पर लिखना तो पड़ेगा ही मानना तो पड़ेगा ही..! व्यस्तता के बीच जैसे ही मैने मोबाइल ऑन किया एक प्रतिभाशाली सुंदर, सुडौल, उम्मीदों से भरे एक दमकते-चमकते सितारे के असमय चले जाने की खबरों से मन दहल गया। आंखे सजल हो उठीं। मन मे न जाने कितनी तरह की बातें उमड़-घुमड़ कर चल रही हैं। गत वर्ष सुशांत सिंह राजपूत के असमय काल के गाल में समाहित हो जाने की खबरों ने हम सबको झकझोर के रख दिया और अब सिद्धार्थ के इस तरह से काल कंलवित हो जाना बेहद निराशा जनक है। हमने सुना था और शायद सच भी है कि फिल्म उद्योग के लिए वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना कर रखने वाली मुंबई मायानगरी सच मे मायावी होती जा रही है। यहां अब प्रतिभावान कलाकारों की मौत एक ...
मन से जीत का मार्ग
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मन से जीत का मार्ग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  एक कहावत है 'हौंसलों से उड़ान होती है, पँखों से नहीं'। यह महज कहावत भर नहीं है। अगर सिर्फ कहावत भर होती तो आज अरुणिमा सिन्हा, सुधा चंद्रन, दशरथ माँझी और हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ही नहीं बहुत सारे अनगिनत लोग सुर्खियों के बहुत दूर गुमनामी में खेत गये होते। मैं अपना स्वयं का उदाहरण देकर स्पष्ट कर दूँ कि जब २५.०५.२०२१ को जब मैं पक्षाघात का शिकार हुआ तब चारों ओर सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं दिखता था। शायद ही आप सभी विश्वास कर पायें। कि यें अँधेरा नर्सिंग होम पहुँचने तक ही था, लेकिन नर्सिंग होम के अंदर कदम रखते ही मुझे अपनी दशा पर हंसी इस कदर छाई, कि वहां का स्टाफ, मरीज और उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। फिर भी मुझे जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ ...
मिथिला की लोककला और संस्कृति
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मिथिला की लोककला और संस्कृति

प्रीति कुमारी शेक सराय (नई दिल्ली) ******************** भारतीय दर्शन मनुष्य जीवन को एक उत्सव के रूप में देखता है। ऐसा उत्सव जो इस ब्रह्माण्ड में जीवन की पूर्णता को प्रकाशित करता है। इस उत्सव को मनाने के लिए ही संस्कृति का निर्माण हुआ है। और इस संस्कृति की प्राण धाराएं हैं-लोक-कलाएं। जीवन-उत्सव को नृत्य, चित्रकला, कथा, लोक-रंजन की विविध विधाओं के माध्यम से प्रकट करने के पीछे मनुष्य की यही आत्यंतिक भावना है कि वो सृष्टि के रंगमंच पर अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर सकें। मिथिला चित्रकला इसी दिशा में एक जीवंत कला-यात्रा के रूप में सामने आती है। इसमें चटकीले रंगों, सजीव चित्रों और विस्तृत रूप-आकृतियों से संस्कृति की सम्पन्नता का दर्शन होता है। यूँ तो यह बिहार और नेपाल के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक लोक कला है पर अपने उत्स-भाव की ऊर्जा के सहारे सिर्फ देश के अलग-अलग क्षेत्रों में ही नहीं बल...
नमामि गंगे
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नमामि गंगे

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जलवायु परिवर्तन और दुनियाभर में गहराते जल संकट के बीच विकास की नई कहानी वही देश लिखेगा जो पानी का धनी होगा। तात्पर्य यह कि आज जो देश जितना पानी बचायेगा, वह भविष्य में उतनी ही बड़ी शक्ति के रुप में उभरेगा। यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट के अनुसार एक समय ऐसा आयेगा जब दुनिया के लोगो के पास पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। इस समस्या को भारत गहराई से समझ रहा है। इस दिशा में तेजी से चल रही पहल प्रशंसनीय है, फिर भी जन भागीदारी से ही सभी प्रयास सफल सिद्ध होंगे। तभी जल शक्ति मंत्रालय का गठन की पहल मील का पत्थर साबित होगी। देश के घर घर में स्वच्छ पानी पहुंचाने की व्यवस्था में सक्रिय नमामि गंगे परियोजना, के जरिए गंगा के पुनरुद्धार के साथ साथ अन्य नदियों की सफाई कार्य अत्यंत आवश्यक कार्य है। नया साल नई उम्मीदों का खजाना लेकर आया है, ...
गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा
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गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानव जीवन में "गुरु" का महत्व वो स्थान रखता है। जिसके बिना मानव के महत्व और असितत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तभी "मां" को प्रथम गुरु कहा गया है। जीवन में हम जिस व्यक्तिव से कुछ सीखते हैं वो हमारे लिए गुरु तुल्य है। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता है। मिट्टी को, जो छूकर मूर्तिमान कर जाता है । बाँध क्षितिज रेखाओं में, नये आयाम बनाता हैं। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता हैं। ज्ञान को, जो विज्ञान तक ले जाता है। विद्या के दीप से , ज्ञान की जोत जलाता है। अंधविश्वास के, समंदर को चीर, नवीन तर्क के, साहिल तक ले जाता है। मानवता की पहचान से, जो परम ब्रह्म तक ले जाता है। सत्य -असत्य, साकार को आकार कर जाता है। जीवन-मरण, भेद-अभेद के भेद बताया हैं। वह प्रकाश-पुंज , ईश्वर के बाद गुरु कहलाता है। कल आषाढ...
बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या
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बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** पैसा- हमेशा एक चिंता का विषय बना रहता है, परंतु यही वह आधार भी होता है, जो हमारे जीवन के बुनियाद को निर्धारित करता है। यह हमारे लिए केवल एक सपना ही नहीं, बल्कि भारत में हर नागरिक का अपना एक अधिकार भी होता है। बेरोजगार की कमी भारत के प्रमुख मुद्दों में से एक है और जब तक इस मुद्दे का कोई स्पष्ट उपाय नहीं मिल जाता, तब तक इस पर पूर्ण रूप से विचार करने की आवश्यकता बनी रहेगी । बेरोजगारी- भारत की एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसे समझना बहुत जरूरी है। वैसे तो भारत, मानव संसाधन के मामले में बहुत समृद्ध है, परंतु फिर भी हम वर्षों से बेरोजगारी की स्थिति में जीते आ रहे हैं। जो लोग पूरी तरह से बेरोजगार हैं ; उनका जीवन बहुत दयनीय है। जब तक यह बेरोजगारी की समस्या समाप्त नहीं हो जाती, तब तक हम अपने देश को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते ।...
प्रयास ही श्रेष्ठ पूजा है
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प्रयास ही श्रेष्ठ पूजा है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ********************  हमारे देश का सुप्रसिद्ध शास्त्र "योगवाशिष्ठ रामायण" उद्यम के विषय में क्या कहता है तुमने सुना है? "यदि मनुष्य ने ठीक-ठीक तथा सच्चे ह्रदय से प्रयास किया हो, तो इस संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं है। किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा से प्रेरित होकर यदि कोई सच्चा प्रयास करें, तो उसे निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। मनुष्य अपने जीवन में कुछ पाने की इच्छा करें, उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहे, तो देर-सबेर वह अवश्य सफल होगा। परंतु उसे अपने मार्ग पर अटल भाव के साथ आत्मसात करते हुए बेहिचक चलना होगा।" इस जगत में बहुत से लोग अभाव तथा निर्धनता की गहराई से निकलकर सौभाग्य के शिखर पर पहुंच गए। केवल अपने भाग्य पर ही निरर्थक विश्वास रखने वालों ने नहीं, अपितु अपने उद्यम पर निर्भर रहने वाले बुद्धिमान लोगों ने ही कठिन तथा संक...
स्वामी है चाकर नही
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स्वामी है चाकर नही

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत की हजारो वर्षो से यह मान्यता रही है कि प्रकृति के संतुलन को कायम रखा जाय । यह मनुष्य व प्रकृति दोनों के लिए बहुत अच्छा है। परंतु वर्तमान में तरक्की के नाम पर जिस ढंग से प्रकृति का शोषण हो रहा है, इस सन्तुलन को अस्वाभाविक रूप से तोड़ा जा रहा है उससे ये लगता है कि लोभग्रस्त सभ्यता उसे रहने नही देगी। पूर्व में हम प्रकृति को माँ का दर्जा देते थे परंतु अब वैसा नही है अब प्रकृति केवल उपभोग का साधन बना दी गई है। ये भी सही है कि जब प्रकृति अपने पर आती है तो वो किसी का लिहाज नही करती। प्रकृति को मात्र विज्ञान के जरिये समझना मानव की भूल है उसे धर्म के साथ जोड़ कर भी समझना होगा और ये सनातन धर्म ने किया भी है। परंतु पश्चिम के दृष्टिकोण ने प्रकृति को केवल साधन समझने की भूल की है, प्रकृति को उन्होंने कभी माँ या मित्र नही माना। सनातन मत के ...
पद का मद
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पद का मद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  'मद' अर्थात 'घमंड' जी हाँ ! जिसका फलक विस्तृत भी है और विशाल भी।सामान्यतः देखने में आता है कि पदों पर पहुंचकर लोग खुद को शहंशाह समझने लगते हैं, पद के मद में इतना चूर हो जाते है कि अच्छे, बुरे, अपने, पराये का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं।वे इतने गुरुर में जीते हैं कि वे ये भूल जाते हैं कि पदों पर रहकर पद की गरिमा बनाए रखने से व्यक्ति की गरिमा पद से हटने के बाद भी बनी रहती है। लेकिन पद का अहंकार कुछ ऐसा होता है कि लोग खुद का खुदा समझ बैठते हैं। ऐसे लोगों को सम्मान केवल पद पर रहते हुए ही मिलता है, लेकिन दिल से उन्हें सम्मान कोई नहीं देता। जो देते भी हैं, वे विवश होते हैं अपने स्वार्थ या भयवश और चाटुकारों की फौज उनका महिमामंडन और अपना हित साधती रहती है। ऐसे में पद के मद में चूर व्यक्ति इसी को अपनी छवि, अधिकार ,कर...
एक पल
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एक पल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में, भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते, परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बिर मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और खुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी। उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता। बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय खुशी ...
कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….
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कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** आज पूरा विश्व कोरोना जैसी विशाल महामारी से लड़ रहा है। और यह बड़े दुख की बात है कि, इसके चलते भारत में सभी लोगों का जीवन बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पिछले १ वर्ष से सभी लोगों में निराशा और चिंता का स्तर पहले से और अधिक बढ़ता हुआ ही पाया गया है। और इसी चिंता और निराशा के कारण, कई किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, उनमें "आत्म-हत्या" जैसे विचार भी पनपने लगे है। भारत में किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, वे सभी इस महामारी से अत्यंत दुखी एवं ग्रसित हो चुके है। उनके इस निराशा के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे :- १. ऋण का भुगतान कर पाने में असमर्थ होना २. अनियमित मौसम की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान पहुँचना ३. सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं का उपलब्ध न होना ४. सरकार के नीतियों में बढ़ती असमानता ५. स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दे ६. व्य...
पाश्चात्य संस्कृति में माता-पिता का स्थान
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पाश्चात्य संस्कृति में माता-पिता का स्थान

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** आँखों से निकलकर झुर्रिवाले गालों से होकर टपकते हुए आँसू, कपकपाते होंठ और मन में दर्दभरे एक जलजले ने उसकी अंतरात्मा को मानो हिला कर रख दिया हो। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसने उसके पालन पोषण में कोई कमी रखी या उसने कोई गलती कर दी। पूरा एक दिन उसे अनाथ आश्रम में आए हुए हो चुका था। अपनी उम्र के सत्तर बरस पार कर चुका है वो। एक फैक्टरी में काम करने वाला एक मजदूर है रघुराम और एक पुत्र का पिता बनने पर खुशी मना रहा है। उसने अपने पुत्र को सूरज नाम दिया ये सोचकर कि वह उसका नाम रोशन करेगा। परिवारजन एवं उसके साथी उसे बधाईयाँ दे रहे है। रघुराम अपने पुत्र के लिए बड़ा आदमी बनाने के सपने देखने लगा। दिन रात काम में लगा रहता समय बीतता चला गया सूरज ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली अब वह अब कॉलेज में प्रवेश की तैयारी कर रहा है। र...
हिन्दी कविता में आम आदमी
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हिन्दी कविता में आम आदमी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** हिन्दी कविता ने बहुधर्मिता की विसात पर हमेशा ही अपनी ज़मीन इख्तियार की है। इस बात की पुष्टि हर युग के कवियों द्वारा की गई कृत्यों से प्रतीत होती रही है। हिंदी कविता ने रामधारी सिंह दिनकर की क्षमता का उपयोग कर के राष्ट्र आह्वान का मार्ग प्रशस्त किया और साथ ही साथ आम आदमियों की दिक्कतों और रोज़मर्रा की समस्याओं को भी बेहद गंभीरता से उजागर किया है। अगर कोई साहित्य उस वर्ग की बात नहीं कर पाता जो मूक और बधिर है तो फिर साहित्य को अपने नज़रिये को बदलने की महती आवश्यकता होती है। रामधारी सिंह दिनकर सरीखे कवियों ने अपनी लेखनी में जनमानस की विपरीत परिस्थितियों का सजीव चित्रण ही नहीं किया बल्कि धनाढ्य और रसूखदारों पर करारा प्रहार भी किया और यह प्रश्न अक्षुण्ण रखा कि गरीबी और लाचारी के लिए क्या गरीब स्वयं जिम्मेदार है या फिर वह वर्ग भी जिमीदार है ज...
रेडियो की बात निराली
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रेडियो की बात निराली

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गीत की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन की मधुरता कानो में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों की राग, संगीत जरिए घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टीवी, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका-सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस...
गृहस्थाश्रम में पत्नी
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गृहस्थाश्रम में पत्नी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** मनुष्य ब्रह्मचर्याश्रम के बाद विवाह संस्कार करके गृहस्थाश्रम मेंं प्रवेश करता है, गृहस्थी के लिए पत्नी मात्र कामपूर्ति के उद्देश्य से नहीं है, अपितु यह मानव को सभ्य सुसंस्कृत व संस्कारवान बनाती है। यदि यह विवाह संस्कार नहीं होता तो मानव समाज में-माँ, बहन, बेटी आदि पहचानने की शक्ति नहीं होती। सृष्टिकर्ता के दांए स्कंध से पुरुष और बांए स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति होने के कारण स्त्री को वामांगी कहा जाता है, अतेव शादी के बाद उसे पति के बांई ओर बैठाने की परंपरा है। धर्मग्रंथों में पत्नी को पति का आधा अंग कहा जाता है उसमें भी उसे वामांगी कहा जाता है, अर्थात वह पति का बांंयां भाग है, शरीर विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान ने भी पुरुष के दांए व स्त्री के बांए भाग को शुभ माना है। मनुष्य के शरीर का वांया हिस्सा खासतौर पर मस्तिष्क की रचनात्मकता का प...
कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है
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कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर संघन जंगल है। शुद्ध आबोहवा है। इतनी प्राकृतिक संपदा निःशुल्क प्रकृति देती आई है। किंतु कोरोना की आपदा इंसानों पर आगई है। जिससे वो जूझता जा रहा है। वही प्रकृति कई तरह के जीव-जंतु का पोषण कर रही है, साथ ही प्रकृति की आबो हवा निर्मल होगई है। स्वच्छता हर स्थान पर नजर आने लगी है। पृथ्वी के रहवासी संक्रमण से जूझ रहे है, ये संक्रमण को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित अभी तक सुनने पढ़ने में नहीं आया संक्रमण की चेन तोड़ने की बात सभी करते मगर संक्रमण के आँकड़े घटते बढ़ते हर जगह दिखाई देते है। अनलॉक प्रक्रिया भी इसी कारण से बढ़ाई जाती होगी। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्व रहते ही है। शाकाहारी भोजन को विदेश...
वनिता
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वनिता

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे नारी !! तुम्हें भय कैसा आँखों मे अश्रु और माथे पर ये लकीरें...?? तुम्हें दुख किस बात का है...?? ऐसी कौन सी पीड़ा है जो तुम्हें अंदर ही अंदर खाये जा रही...?? मैं क्या कहूँ कैसे कहूँ, मुझसे कुछ कहा भी नहीं जा रहा। मैं इस युग में खुद का अस्त्तित्व मिटते देख रही हूँ। मैं अबला जैसे नामों से पुकारी जा रहीं हूँ। मेरे हाथों में सजी ये हरी लाल चूड़ियाँ कमज़ोर एवं नकारे इंसान के लिए प्रयुक्त होने लगी हैं। और पैरों में सजे ये पायल बेड़ियों का रूप ले चुके हैं। मेरे अपने भी मुझे भार समझ बैठे हैं। उन्हें लगता है मैं कमजोर हूँ, मैं कुछ नहीं कर सकती। तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ। मुझे लगता है मेरा होना सच में ही व्यर्थं है। तुम्हीं बताओं मैं कैसे बतलाऊँ उन्हें अपनी महत्ता...?? लेखिका- हे देवी, आप बिलकुल भी परेशान न हो औ...
सनक हिम्मत और अनुभव
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सनक हिम्मत और अनुभव

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** सनक-हिम्मतऔर अनुभव ये जीवन की तरक्की के तीन महत्वपूर्ण सूत्र हैं। सनक आपसे वो भी करवा लेता है, जो आप नहीं कर सकते थे। अथवा ये मानते थे कि ये काम मेरी क्षमता से बाहर है और मुझसे कभी नहीं होगा। असंभव को भी संभव कर के दिखाना ये जुनून का काम है। एक विश्वविजयी सम्राट ने कभी अगर ये कहा है था कि मेरे शब्दकोष में असंभव जैसा कोई शब्द ही नहीं तो ये उसका जुनून ही था जो उसे भीतर से दुनिया को मुठ्ठी में करने का आत्मबल प्रदान कर रहा था। हिम्मत आपसे वो करवाती है, जो आप करना चाहते हैं। जीवन में कुछ बड़ा करने का अथवा कुछ अलग करने का स्वप्न लगभग हर कोई देखता है मगर हौसले के अभाव में उनका वह महान स्वप्न भी केवल दिवास्वप्न बनकर रह जाता है। जीवन में कुछ बड़ा करने के सपने देखना भी अच्छी बात है मगर उन सपनों को साकार करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहना उससे भी अ...
अक्षय तृतीया
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अक्षय तृतीया

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन जो दान पुण्य किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है, ऐसी मान्यता है, कि इस दिन को शुभ माना जाता है क्योंकि इस दिन मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए गृह प्रवेश से लेकर शादी तक अक्षय तृतीया को करना चाहते हैं। अक्षय तृतीया के दिन आज भी गांव में बाल विवाह करने की प्रथा है। बाल विवाह करने और करवाने वालों को भले ही दंड मिलता है, परंतु इसके बावजूद भी अक्षय तृतीया के दिन बहुत सी शादियां होती हैं। यह एक कुरीति है, क्योंकि १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चे नाबालिक समझे जाते हैं, और इस उम्र में लड़कियों की शादी के करने के किसकी पढ़ाई रुक जाती है और उसका शरीर भी गर्भधारण करने के लिए भी तैयार नहीं होता। कम उम्र में शादी होने से ना ही रुतबा होता है, न ही शक्ति ...
जगदगुरु आदि शंकराचार्य जन्म जयंती विशेष
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जगदगुरु आदि शंकराचार्य जन्म जयंती विशेष

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) **********************                             भारतवर्ष सदैव से एक अलौकिक राष्ट्र रहा, जहां अपने महापुरुषों का स्मरण करने की परंपरा रही है। अनेक सन्तों, वैज्ञानिक, क्रांतिकारियों की जन्मभूमि होने के कारण भारत विश्व मे आध्यात्म का केंद्र ही नही रहा अपितु अपनी भूमिका को भारत ने विश्वगुरु बनकर सदैव निभाया भी है। आज से लगभग १२३० वर्ष पूर्व एक निर्धन ब्राह्मण परिवार जो केरल के कलाड़ी ग्राम में निवास करता था, शिवगुरु व सुभद्रा दोनों पति पत्नी अनन्य शिव भक्त थे। अपनी संतान न होने के कारण वे अत्यंत व्यथित थे, अपने इष्ट से सदैव ही सन्तान प्राप्ति का आशीष मांगते। एक दिन महादेव ने इस परिवार को आशीष दिया, घर में बालक का जन्म हुआ। महादेव के आशीष से पुत्र प्राप्ति होने के कारण इस बालक का नाम शंकर रखा गया। शंकर बचपन से ही जिज्ञासु, ज्ञान अर्जन को समर्पित र...
मां के लिए … बेटियां कभी पराई नहीं होती…
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मां के लिए … बेटियां कभी पराई नहीं होती…

वंदना गोपाल शर्मा "शैली" भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** मां कभी धूप सी... तो कभी छांव सी होती है... मां के लिए बेटियां कभी पराई नहीं होती है! बहुत डांटती थी मां बचपन में, तब धूप सी लगती थी! जैसे धूप का विटामिन ई मजबूती प्रदान करता है, सहनशीलता भी बढ़ाता है और ज्यादा लाड़ बिगाड़ता है मानों शुगर बढ़ाता है। अधिकांशतः मांएं कहती है- "बिटिया...! तुम्हें दूसरे घर जाना है, समायोजन भी सीखना है, कभी तुम्हारे लिए रसोईघर में सब्जी न बचे तो आचार या दही से खा लेना पर शोर न मचाना बच्चों की तरह... मेरे सामने सब चलेगा पर वहां नहीं, क्योंकि मैं जन्मदात्री हूं और सासुमां धर्म की मां होगी।" वगैरह-वगैरह...! कितना सीखाती थी मां। बचपन में कभी एहसास नहीं हुआ कि मुझे अकेला छोड़ा हो, जरूर मेरे जन्म पर भी सबसे पहले मां ही खुश हुई होगी, हम भाई-बहनों की परवरिश और प्यार में कभी भेदभाव नही कीया। वो हमारी छ...
मां से भी कोई माफ़ी मांगता है भला?
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मां से भी कोई माफ़ी मांगता है भला?

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************                             मां तो वो होती है जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है, जो कभी नहीं रूठती, रूठती भी है तो तुरंत मान जाती है। मां की बातें हमेशा इतनी एक सी होती है कि लगभग रट चुकी होती है। खाना ठीक से खाओ, क्या हुआ क्यों नहीं खा रहे, तबीयत ठीक नहीं है क्या, कहां जा रहे, किसके साथ जा रहे, कब आवोगे, शाम को जल्दी आ जाना, दोस्तों के फोन नंबर देते जाओ, गाड़ी धीरे चलाना, जल्दी सो-जल्दी उठो, कपड़े ढ़ंग से पहनो, बाल दाढ़ी कटवा लो, बाहर का खाना ज्यादा मत खाओ, अच्छे दोस्त बनावो, उफ़!!! इस सूची का कोई अंत नहीं। इन सारी हिदायतों के लगातार प्रसारण से हम मां को लेकर लापरवाह हो जाते हैं। ये सारी बातें मां के सामने तो बुरी लगती है, पर जब हम अकेले होते हैं यहीं बातें बहुत याद आती है। हमें अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम मां की बातों को गंभीरता से नह...
भगवान कृष्ण-वाद्य कला
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भगवान कृष्ण-वाद्य कला

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************                       भगवान कृष्ण के जान से जुडी कथाएं है उनमें से एक यह भी है जब देवकी ने श्री कृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्री कृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्री कृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। पूजा हेतु सभी प्रकार के फलाहार, दूध, मक्खन, दही, पंचामृत, धनिया मेवे की पंजीरी, विभिन्न प्रकार के हलवे, अक्षत, चंदन, रोली, गंगाजल, तुलसीदल, मिश्री तथा अन्य भोग सामग्री से भगवान का भोग लगाया जाता है। जन्माष्टमी पर्व पर नई पोशाख, मोर पंख, पारिजात के फूलों का भी महत्त्व है ऐसी मान्यता है जन्माष्टमी के व्रत का विधि पूर्वक पूजन क...
बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं
आलेख

बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ’यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो, तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रही हों, तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो’? इसी संदर्भ में मुजफ्फरपुर के जनाब आदित्य रहबर लिखते हैं, यदि इसका जवाब हां है तो मुझे आपसे कुछ नही कहना है, क्योंकि आपके अंदर की संवेदना मर चुकी है और जिसके अंदर संवेदना न हो, वह कुछ भी हो लेकिन मनुष्य तो कत्तई नहीं हो सकता है। आज कोरोना महामारी ने जिस तरह से हमारे देश में तबाही मचा रखी है, उसमें किसी की मृत्यु,किसी की पीड़ा पर आपको दुःख नहीं हो रहा है, तो निश्चित ही आप अमानवीय हो रहे हैं। जब देश में चारों ओर कोहराम मचा है, प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग (जो एक दि...