Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आलेख

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?
आलेख, बाल साहित्य

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बुद्धी और ज्ञान दुनियां में बहुत महत्वपूर्ण हैं, फिर वह किसीसे भी प्राप्त हो, उसे अनुभव से प्राप्त कर आत्मसात करना होता हैं। ज्ञान एवं अनुभव ग्रहण करने वाला शिष्य और ज्ञान देने वाला या प्राप्त करवाने वाला गुरु होता हैं। ऐसा यह गुरु और शिष्य का बुद्धी, ज्ञान और अनुभव का रिश्ता होता हैं। ज्ञान तथा अनुभव लेनेवाले एवं देनेवाले की उम्र का इससे कोई संबंध नहीं होता, सिर्फ ज्ञान देनेवाला अपने विषय में निष्णात होना चाहिए, और ज्ञान लेनेवाले का देनेवाले पर विश्वास होना चाहिए। यहीं इस रिश्ते की पहली शर्त होती हैं। बच्चें की पहली गुरु का मान यह उसकी माँ का होता हैं। इसके बाद जीवन के हर मोड़ पर ज्ञान और अनुभव देनेवाले गुरु की आवश्यकता महसूस होती रहती हैं। ‘गुरुपूर्णिमा‘ यह सभी गुरुओं को आदर और श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का दिन हैं। गुरुपूर्णिमा को ‘व...
सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध
आलेख

सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध

मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) ******************** सोशल मीडिया वर्तमान में अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। यह एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां लोग अपनी रचनात्मकता और कलात्मकता का प्रयोग कर अपनी प्रतिभा को सभी के सामने रख सकते है। शायद यही कारण है कि कम समय में यह प्लेटफार्म युवाओं के दिल और दिमाग पर राज कर रहा है। सोशल मीडिया पर सक्रिय होना बुरा नहीं है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस प्लेटफार्म का प्रयोग अपने अनुसारकर रहे है। जिसके अच्छे और बुरे परिणाम हमारे सामने वीडियो वायरल होने से लेकर दरिंदगी की खौफनाक घटनाओं के रूप में सामने आ रहे हैं। खुद को जनता के बीच चर्चित करने या फिर अपने टैलेंट को दिखाने के लिए भी इसका इस्तेमाल बखूबी हो रहा है। अच्छे और बुरे परिणामों की बात करने वाद अहम सवाल यह उठता है कि क्या सोशल मीडिया बुरा है या फिर उसके उपयोग कसे का तरीका? आपका भी जवाव शायद तरीका ...
क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?
आलेख

क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** स्त्री और पुरुष उस सर्वशक्तिमान की अमूल्य भेंट है। आजतक के विकास में स्त्री और पुरुष की समान हिस्सेदारी भी है। इतना होते हुए भी हर समय यश, प्रसिद्धी, मानसन्मान, निर्णय लेने का अधिकार हमें हरस्तर पर आज पुरूषों के लिए ही दिखाई देता है। देश में हर स्तर पर महिलाओं के लिए ५० प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए परन्तु ३३ प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भी पुरूषों के अड़ियल और महिलाओं के प्रति उनके नकारात्मक द्रष्टिकोण के कारण अनेक वर्षों से लोकसभा में लंबित था। वैसे भी वर्तमान में महिला सशक्तिकरण की अनेक योजनाये कार्यरत है, परन्तु लचर मानसिकता और भ्रष्टाचार के कारण वांछित परिमाण देश में दिखाई नहीं दे रहे है। पुरुष सत्तात्मक समाज में आज भी महिलाओं को पुरूषों के बाद का ही दर्जा दिया जाता है। समानता को स्वीकार करने की मानसिकता ही दिखाई नहीं देती। मजे की बात ...
बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज
आलेख

बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** सृष्टि की रचना में सब समान है मगर हम इंसानों ने अपने हिसाब से नियम कानून बनाकर समाज की स्थापना की है। किसी भी नियम कानून व्यवस्था को इसलिए बनाया जाता है की जीवन सुचारू रूप से चल सके मगर हम इंसान ही उन नियमों कानूनों का उल्लंघन कर और उनकी आड़ में समाज में कुरीतियां पैदा कर देते है। मगर यहां यह समझना जरूरी है की कोई भी नियम जो किसी भेद विशेष को लेकर  बनाया जाए वह इंसानियत के विरुद्ध है। जो समय के साथ साथ एक विकराल रूप ले लेता हैं। प्राचीन काल से ही मर्द औरत के बीच केवल मात्र लिंगभेद को लेकर बहुत से नियम कानून औरतों के लिए बनाए गए और उन्हें सामाजिक तौर पर सदैव दबाया गया जो इंसानियत के विरुद्ध है। समय के बदलाव के साथ नारी जाति के उत्थान के लिए बहुत से शिक्षित लोग आगे आए जिन्होंने समाज द्वारा बनाई गई कुरीतियों का खंडन किया और उसे एक सामान्य जीवन जीने...
मित्रता : बच्चों के साथ
आलेख, नैतिक शिक्षा

मित्रता : बच्चों के साथ

अंजू खरबंदा दिल्ली ******************** हम पति पत्नी ने शुरू से ही आदत बनाई हुई है कि बच्चों को महीने मे दो बार बाहर डिनर के लिये लेकर जाते है। एक पंथ दो काज। इससे दो बाते होती है - पहली साथ बिताने के लिये समय मिलता है और दूसरा बच्चे बाहर घूमने के लिये यारों दोस्तों का साथ नही ढूंढते। आर्डर देते समय ये निर्णय करने मे अक्सर समय लगता कि - "आज क्या मंगाया जाये!" "इस भोजनालय की सूचि मे स्पेशल क्या है !" पर बच्चे तो बच्चे है - "आज ये नही खाना, पिछली बार भी तो यही खाया था! आज कुछ और मंगाते हैं !" कभी-कभी कोफ्त सी होने लगती व इंतजार भारी सा लगने लगता तो बच्चों को कहना पड़ता - "जल्दी निर्णय करो! देखो और लोग भी प्रतीक्षा मे खड़े हैं!" बच्चों के साथ कही जाओ तो बहुत धैर्य रखना पड़ता है । हमें देख कर ही तो बच्चे सीखते है फिर हम ही जल्दी परेशान हो जायेगे तो उसका असर सीधा बच्चों पर पड़ेगा ही! एक ...
मृत्युदंड क्यों नही
आलेख

मृत्युदंड क्यों नही

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** पता चला है कि हैदराबाद में फिर एक बेटी के साथ हैवानियत करने के बाद भी दरिंदों का मन नहीं भरा। तो उसकी लाश को ट्रक के पीछे बांधकर दूर ले जाकर जला दिया गया, तब प्रशासन क्या कर रहा था। क्या नेताओं और समाज के ठेकेदारों का कोई कर्तव्य नहीं बनता? एक तरफ तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगवाया जाता है, और दूसरी तरफ हर रोज बेटियाँ दरिंदों की हवस का शिकार बनती जा रही हैं। क्या गलती थी डॉ प्रियंका की? क्या औरत अपना जिस्म लुटाने के लिए ही बनी है? कि जिसका जब मन किया उसे अपने हवस का शिकार बना ले। क्या उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं? बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हमेशा बेटियों की गलतियां निकालते हैं कि कपड़े छोटे पहनना होगें अपना जिस्म दिखा रही होगी। फिर बताइए कि जो बच्ची मां का दूध पी रही है उसके साथ भी क्यों हैवानियत होती है उसे भी दरिंदे नहीं छोड़ते...
हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?
आलेख

हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** कर्तव्य अर्थ :- किसी भी कार्य को पूर्ण रूप देने के लिए सजीव व निर्जीव दोनों नैतिक रूप से प्रतिबद्ध हैं। तथा दोनों कर्तव्य के साथ अपनी भागीदारी का पालन करते हैं। हम जानते हैं कि कर्तव्य से किया गया कार्य हमे एक विशेष परिणाम उपलब्‍ध करवाता है। जो वर्तमान एवं भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंसान को कर्तव्य का प्रभाव केवल इंसानों में ही नजर आता है। परन्तु इस धरा पर इंसान के अलावा पशु - पक्षी और निर्जीव वस्तुएँ भी अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य अदा कर रहे हैं l यह किसी को नजर नहीं आता है l क्योकि वर्तमान में इंसान अपने स्वार्थ को पूरा करने में दिन - रात दौड़ भाग कर रहा है। उसके लिए एक पल भी किसी को समझने का नहीं है l आईए कर्तव्य को विभिन्न विश्लेषण के साथ समझने का प्रयास करते हैं। मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- मनुष्य ...
मोबाइल की लत
आलेख

मोबाइल की लत

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** मोबाइल फोन जैसे जीवन में प्रवेश कर चुका है। यह अत्यंत लाभकारी और विनाशकारी दोनों ही साबित हो रहा है। छोटे बच्चों का बचपना इस मोबाइल और इंटरनेट में कहीं गायब सा कर दिया है, जिस उम्र में बच्चे खेल कूद किताबें पढ़ना व व्यायाम अन्य लाभकारी शारीरिक और मानसिक विकास बढ़ाने वाले कार्य करते हैं उस उम्र में छोटे छोटे बच्चे भी आजकल मोबाइल में लगे रहते हैं, स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि बच्चे सारा सारा दिन मोबाइल में वीडियो गेम यूट्यूब फेसबुक इत्यादि चलाते हैं, और एक अलग ही काल्पनिक दुनिया बना लेते हैं ,जिसके कारण उनका मानसिक और शारीरिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता। यह स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि बहुत से माता-पिता तो बच्चों मेंमोबाइल की लत छुड़ाने के लिए चिकित्सक की सहायता ले रहे हैं। मोबाइल यदि हिसाब से चला जाए तो लाभकारी है किंतु इ...
उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
आलेख

उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** जिस प्रकार मानव को जीवित रहने के लिए पानी और हवा की आवश्यकता है इसी प्रकार मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है जहां कुछ लोगों पर खाने के लिए कुछ  नहीं है वहीं कुछ लोग भोजन का अनादर कर देते हैं और इतना खाना वेस्ट करते हैं जो कि बिल्कुल ही गलत है आपने शादी विवाह में देखा होगा कि लोग अपनी थाली में इतना खाना ले लेते हैं कि वह खा भी नहीं पाते और बाकी खाना फेंक देते हैं जो कि बेहद ही गलत है हमें उतना ही भोजन थाली में लेना चाहिए जितना हम खा सकें खाने को बिल्कुल भी नही छोड़ना चाहिए शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति खाने का अनादर करता है वह पाप का भागी बनता है जहां कुछ एनजीओ और संस्थाएं शादी विवाह आदि में बचे खाने को गरीब और असहाय लोगों में जिन पर खाने के लिए कुछ भी नहीं है उनको देकर पुण्य के भागी बन रहे हैं वहीं कुछ लोग खा...
रिश्ते
आलेख

रिश्ते

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रिश्ते आदमी को जन्म से ही अपने आप मिल जाते है। भले ही रिश्तों का कोई आकार प्रकार ना हो, परन्तु रिश्ते धीरे धीरे अपने आप जुड़ते जाते है और श्रृंखलाबद्ध हो जाते है। अटूट बंधनों में बंध जाते हैं। कुछ रिश्ते अचानक कोई लॉटरी खुल जाए ऐसे भाग्योदय जैसे उस लॉटरी में खुले इनाम की तरह मिल जाते है। जैसे परिवार में किसी की शादी तय होती है और वरमाला पड़ते ही अचानक कई सारे रिश्ते जुड़ जाते है। कुछ रिश्ते पुष्प जैसे होते है, खिलते जाते है, बहार लाते रहते है, महकते जाते है और हमेशा खुशबूं ही बिखेरते रहते है। गुलाब की पंखुड़ियों में अक्षरों से लिपट जाते है। कुछ रिश्ते पत्थर जैसे जडवत रहते है। अक्षरशः गले में पत्थरों की माला जैसे बोझा बन लटकते रहते है और उन्हें जबरन ढोते रहना पड़ता है। कुछ रिश्ते मन में चिडचिडाहट पैदा करने जैसे होते है। बिलकुल हैरान परेशान ...
अमरप्रेम
आलेख

अमरप्रेम

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** अमरप्रेम इस विषय पर साहित्य में, फिल्मों में और धारावाहिकों में हमें ढेर सारी सामग्री मिलती हैंI क्या अमरप्रेम यह विषय मनोवैज्ञानिक हैं? क्या अमरप्रेम की मस्तिक्ष में कोई ग्रंथि होती हैं? उम्र का इससे भले कोई संबंध ना भी हो तो भी अक्सर ख़ास कर किशोर अवस्था से इसकी शुरवात क्यों होती हैं? आगे जाकर यह किस तरह पनपता हैं या किस तरह इसका अंत होता हैं? और क्या यह परिस्थतियों पर निर्भर होता हैं? आखिर अमरप्रेम होता क्या हैं? अमरप्रेम इस शब्द का उपयोग स्त्री-पुरुषों के संबंध हेतु, विशेष कर प्रेमीयुगल हेतु और उनके अंतरंग संबंधों हेतु किया जाता हैंI ‘प्रेम मय सब जग जानीI’ कबीरदास इसके भी आगे जाकर कहते हैं, ‘ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होयI ‘सब कुछ भूलकर और भुलाकर प्रेम में डूब जाने वाले ऐसे युगलों की एक लम्बी फेहरिस्त हैंI लैला-मजनू, शिरी-फरहाद,...
सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा
आलेख

सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** दोनों का उद्देश्य समान है दोनों एक दूसरे के पूरक है। शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक शिक्षा विभिन्न क्रियाशीलनो के माध्यम से बच्चे-बच्चियों एवं युवकों के शारीरिक मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास कर उन्हें जिम्मेवार नागरिक तैयार करना है। जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विकास में सक्रिय सहयोग दे सके। शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति एवं उसके सफल कार्यवाही के लिए संसद द्वारा अनुमोदित प्रोग्राम ऑफ एक्शन में शारीरिक शिक्षा को शिक्षण को एक महत्वपूर्ण अंग बताया है। ऐसा संसार के विद्वानों का कहना है, गांधी जी ने कहा है कि शरीर जगत का एक संपूर्ण नमूना है। जो शरीर में नहीं है और जो जगत में नहीं है वह शरीर में नहीं है इसी से यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे का मह...
बाल यौन शोषण
आलेख

बाल यौन शोषण

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज और बच्चे के लिए बाल यौन शोषण कोई नयी समस्या नहीं है। ये एक वैश्विक समस्या है। ये समस्या १९७० और १९८० के दशक के बाद एक सार्वजनिक मुद्दा बन गयी है। इन वर्षों से पहले ये मुद्दा नागर समाज में दर्ज नहीं होता था। छेड़छाड़ से संबंधित मुद्दों की पहली सूचना वर्ष १९४८ में और १९२० के दशक में मिली थी। नब्बे के दशक में बाल यौन शोषण पर कोई औपचारिक अध्ययन नहीं था। जहाँ तक भारत का संबंध है, ये विषय अभी भी चर्चा के लिए वर्जित है, क्योंकि इस मुद्दे को घर की चारदिवारी के ही अन्दर रखने के लिये कहा जाता है और बाहर किसी भी कीमत पर बताने की अनुमति नहीं दी जाती। एक रुढ़िवादी समाज में जैसे कि हमारा भारतीय समाज, जहां छेड़छाड़ के मुद्दे पर लड़की अपनी माता से भी बात करने में असहज महसूस करती है। यह पूरी तरह से अकल्पनीय हो जाता है कि यदि उसे अनुचित स्थानों पर छूआ ग...
बच्चो को सही शिक्षा दे
आलेख

बच्चो को सही शिक्षा दे

संजय जैन मुंबई ******************** माँ बाप का परम कर्तव्य बनता है की वो अपने बच्चो को सही तालीम के साथ संस्कार और ज्ञान दे, ताकि आने वाले समय में उन्हें अपने पैरो पर खड़ा होने के लिए कोई परेशानियो का सामना न करना पड़े। दोस्तों आज की शिक्षा व्यवस्था हमारी आने वाली पीढ़ी को पंगु बना रही है।आज दसवीं से पहले 9वी तक के छात्रों की एग्जाम व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है, जिसके कारण शिक्षा का स्तर अब निरंतर गिरता जा रहा है। सरकार ये दबा अब जरूर कर रही है, की देश का हर नागरिक शिक्षित है परन्तु हकीकत कुछ और ही है। जो की एक भ्रहम ही पैदा करता है ? क्योकि हमने तो १ से ९ तक को सिर्फ पास करके ये बताया है, की सभी लोग कम से कम ९ तक पड़े है, भले ही उन्हें पांचवी कक्षा का ज्ञान न हो, परन्तु हमारी शिक्षा प्रणाली ने उन्हें ९वी का प्रमाण पत्र बिना कुछ किये ही प्रदान कर दिया। क्या इस तरह की व्यवस्था से द...
साहित्य ही समाज को गढ़ता है
आलेख

साहित्य ही समाज को गढ़ता है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो कभी न कभी, किसी न किसी रूप में साहित्य के किसी न किसी विधा के संपर्क में न आया हो। इतिहास से लेकर अब तक की बात करें तो भित्तिचित्र, शिलालेख, मिट्टी और काँसे के बर्तनों पर उकेरे चित्र, पत्तों पर लिखे शब्द, लोक संगीत, देववाणी, सत्संग, भजन, कीर्तन, उपदेश, गांव के चौपालों पर मंडली द्वारा गाया जाने वाला संगीत, शादी-विवाह के अवसर पर वर पक्ष को वधू पक्ष की ओर से दी जाने वाली गालियाँ, दादी नानी की कहानियाँ, चित्रकथाएँ, कॉमिक्स, कार्टून, नवीन संगीत, नृत्य, नाटक एवम अन्य कई और तरह की साहित्यिक विधाएँ जन मानस में रची बसी होती हैं। साहित्य केवल एक ख़ास वर्ग के लिए ही नहीं होता, नहीं तो आइंस्टीन और कलाम जी जैसे वैज्ञानिक संगीत के मुरीद न होते। साहित्य का हर रूप समाज को जोड़ने की कोशिश ही करता है। यह किसी दायरे में बंधा हुआ ...
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मानवता
आलेख

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मानवता

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** भारत एक धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र है। जिसमें भिन्न भिन्न प्रकार के धर्म पाए जाते हैं जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, अलग-अलग  धर्मों के अपने अलग-अलग रीति रिवाज और परंपराएं हैं। हर धर्म का अपना अलग इतिहास और पृष्ठभूमि है। सभी धर्मों के अपने त्यौहार भी अलग हैं जिन्हें वह अपनी धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं। ईश्वर ने सृष्टि मैं मानव को उच्च स्थान दिया  मानवता ही मानव का  सर्वोत्तम धर्म है मगर समय के बदलाव के साथ-साथ मानव ने कई सारे धर्म खड़े कर दिए जिसने समाज को विभिन्न भागों में विभाजित कर दिया, जो कई रंगों की तरह लुभावना है तो दूसरी ओर समाज में फैली नफरत का प्रमुख कारण है। कोई भी धर्म मानव को नफरत या अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता है मगर  मानव मानवता को भूलकर अपने बनाए हुए धर्म रीति-रिवाजों परंपराओं त्योहारों का सही महत्व तथा यथार्थ भूल जात...
भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता
आलेख

भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही विभिन्न पर्वों और त्योहारों को मनाया जाता रहा है। यदि कहां जाए कि भारतीय संस्कृति पर्व, उत्सव व त्यौहारों में बसती है, तो अतिशयोक्ति न होगी। त्योहार उत्सव पर्व हमारी संस्कृति के मेरुदंड हैं। समाज में जब-जब स्थिरता आई उसकी प्रगति अवरुद्ध हुई, तभी उन्होंने उसे गति प्रदान करने की और मनुष्य को भविष्य के प्रति आस्थावान बनाने में योगदान दिया। आज की सदी का मनुष्य इन पर्वों को रूढ़िवादिता का परिचायक मानने लगा है, उसकी दृष्टि में यह तीज त्यौहार पुरातन ता के परिचायक हैं। इनमें आस्था रखने वाला मनुष्य पिछड़ा हुआ है। पुराने विचारों का है। उसे मॉडर्न सोसाइटी का अंग नहीं माना जाता परंतु आज वास्तव में क्या ऐसा है? नहीं! भारतवर्ष में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व अपने ही देश के हैं वह सार्थक हैं। किसी भी छोटे ...
धुंध में लिपटी राजधानी
आलेख

धुंध में लिपटी राजधानी

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ********************   दीपावली के तीन दिनों बाद हमारे देश की राजधानी दिल्ली धुंध के काले आवरण से ढँक चुकी थी।दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों से प्रदूषण की दर बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार १६०० बड़े शहरों में दिल्ली प्रदूषण में सबसे आगे हैं। भारत मे दिल्ली के अलावा ग्वालियर व रायपुर में भी वायु प्रदूषण अधिक है। वायु प्रदूषण से दिल्ली में २.२ मिलियन और पचास फीसदी बच्चे फेफड़ों सम्बधी बीमारी से ग्रसित है। दिल्ली पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड ने हालात गम्भीर होते देख मेडिकल इमरजेंसी घोषित की है।आज दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर को पार करते हुए ४५० से ऊपर पहुंच गया जो कि अब तक का सबसे अधिक है। दिल्ली सरकार ने स्कूलों में कुछ दिनों तक छुट्टियां घोषित कर दी है। बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को हृदय रोग, स्ट्रोक, स्वास से सम्बन्धी पर...
हिंदी में कार्य ही, मातृभाषा की सही स्तुति होगी
आलेख

हिंदी में कार्य ही, मातृभाषा की सही स्तुति होगी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** देवनागरी लिपि में ग्यारह स्वर और तैतीस व्यंजन से बनी होती है| हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है।अंग्रेजी भाषा में ये खूबी देखने को नही मिलती।इसमें शब्दों के उच्चारण मुँह के अंगों से निकलते है।जैसे कंठ से निकलने वाले शब्द,तालू से,जीभ से जब जीभ तालू से लगती,जीभ के मूर्धा से,जीभ के दांतों से लगने पर,होठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द ।अ, आ  आदि शब्दावली से निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से बनकर निकलते है।इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है।आज भी कई स्थानों पर दुकानों के बोर्ड अंग्रेजी में टंगे होते है |हिंदी में लगाने से उनका स्टेट्स कम होता है ऐसा उनका मानना है |नौकरी व्यापार में भी यही हालत है |अंग्रेजी का होना आवश्यक |जबकि शासन हिंदी को शासकीय कार्य में प्राथमिकता देने हेतु हर साल कहता आया है|सोशल मिडिया पर हिंदी के भंडार है किंतु उसक...
हर घर एक वृद्ध को गोद ले
आलेख

हर घर एक वृद्ध को गोद ले

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** हमारे देश मे १२ करोड से ज्यादा जनसंख्या ६० वर्ष के उपर के वृद्ध लोगो की है। और सन २०२५ तक यह २५ करोड से ज्यादा होने की संभावना है। वरिष्ठ नागरिको की संख्या मे होने वाली वृद्धी को एक चरम संकट की चेतावनी ही समझी जानी चाहिये। २५ करोड़ वरिष्ठ नागरीकों का मतलब दुनिया में चीन और अमेरिका को छोड़ दिया जाय तो यह किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या से ज्यादा होगी। पश्चिमी राष्ट्रों में संयुक्त परिवारों का विघटन बहुत पाहिले ही हो चुका है। परन्तु हमारे देश में इसकी शुरवात पिछले ३० -४० वर्षो में हुई और विगत १० वर्षो में इसकी गति बहुत तेज रही है। पश्चिमी राष्ट्रों की तुलना में हमारे यहां संयुक्त परिवारों का विघटन देर से होने के कारण हमारे यहां संयुक्त परिवारों का सुख भोग चुके वृद्ध आज भी उन यादों को संजोये हुए है। वृद्धावस्था में आने वाले संकटों का सामना सभी...
मैंने एक गाँव को मरते हुए देखा है
आलेख

मैंने एक गाँव को मरते हुए देखा है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** बेगूसराय मुख्यालय से १८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवलगढ़ जो कि कालांतर में नौलागढ़ बन गया, इस त्रासदी का शिकार हुआ। अगर आप इसके इतिहास में जाएँ तो यहाँ विग्रा पाला ... के शिलालेख के साथ एक काले पत्थर टूटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जो कि इसके ऐतिहासिक धरोहर की वैभवता की कहानियाँ कहता है। आज हम आदर्श और स्मार्ट शहर की बात करते हैं लेकिन यह गाँव आज से कुछेक २० -२५ साल पहले तक एक जीता जागता सुन्दर और रमणीय गाँव था। शहर में काम करने वालों को गाँव से इतना प्रेम था क़ि लोग २ घंटे साईकिल चलाकर भी शनिवार की सुबह-सुबह गाँव पहुँच जाते और दो दिन उस ज़िंदगी को जीते थे। गाँव की चौहद्दी से बालान और बैंती नदी इसका श्रृंगार करती थी जहाँ लोग सुबह की सैर, स्नान एवं छठ के त्यौहार तक को सम्पन्न किया करते थे। कच्चे घरों की छत और दीवारों पर साग -सब्जियाँ भरी होती थीं...
प्रदूषित सांसे और जिंदगी
आलेख

प्रदूषित सांसे और जिंदगी

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** दिल्ली का प्रदूषण इतना बढ़ गया है की सांस लेना मुश्किल हो गया है। जिसके चलते दिल्ली सरकार को एहतियात के तौर पर स्कूलों में ४ नवंबर तक की छुट्टी घोषित करनी पड़ी है। ४ नवंबर से यातायात मे सम और विषम नंबर का कानून भी कुछ दिन के लिए लागू किया जा रहा है जिससे कुछ हद तक यातायात और प्रदूषण को लेकर आवाम को कुछ राहत मिल पाएगी। सवाल यह उठता है की प्रदूषण का कारण क्या है? जबकि इस साल दिवाली पर एक बड़ी संख्या में लोगों ने पटाखे नहीं जलाए। पटाखों को लेकर सख्त कानून बनाया गया है मगर फिर भी वातावरण दूषित है। वातावरण में धुंआ फैला हुआ है जो अत्यंत हानिकारक और जानलेवा साबित हो रहा है। इस बात से सरकार और आवाम ना खबर नहीं कि यह प्रदूषण खेतों में जलाए जाने वाली पराली से है। अनाज काटने के बाद जो अवशेष बच जाते हैं उसे पराली कहा जाता है जिसे बाद में जला दिया जाता है। ...
बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन? भाग-2
आलेख

बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन? भाग-2

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** प्राथमिक संस्था में छात्र/छात्राओं काठहराव होने के साथ प्रारंभिक स्तर पर जहां पुस्तक पढ़ना, ऐकिक नियम तक के सवाल करना, अंग्रेजी मे छोटे वाक्य समझने के साथ चाल-चलव अंग्रेजी समझ लेते है। पर्यावरण में अपने आसपास के वाता वरण को समझकर चिंतन करने बालसभा खेल की प्रथम पाठ शाला इतना ज्ञान प्राप्त कर लेते है। माध्यमिक में आने पर उसे नया माहौल मिलता है। जहां गुरु पूर्णिमा, शिक्षक दिवस, तुलसीदास आदि जयन्तियां मनाने के साथ नियमित उपस्थिति, सख्ती प्रार्थना, खेलकूद, बाल सभा क्रिकेट, खो-खो,कबड्डी के साथ साहित्यिक एवम सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सहभागिता करने का अवसर मिलता है। प्राथमिक में एक क्लास को एक शिक्षक ही पूरे समय पढ़ाते है जबकि माध्यमिक में पीरियड पद्धति प्रारम्भ होती है। हर पीरियड पश्चात नए शिक्षक पढ़ाने आते है यानि विषय शिक्षक, यह रोचकता प...
मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति
आलेख

मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा कह सकते है। मुद्दों के बारे में यह कि तात्कालिक विषयों को हम जब अल्पावधि में विचार कर तर्क संगत परिणिति तक पहुचाते है तब उन्हें मुद्दे कहना न्याय संगत होता है। मुद्दों को जब हम समय के अभाव में या पसंद नापसंद के धरातल पर तोलकर या अहंकारवश या और किसी कारण से अतार्किक पद्धति से परिणिति तक पहुचाने का प्रयास करते है तब मुद्दा अपना मूल रूप और क्षमता खो देता है। फिर जो बचता है वह मुद्दे को तर्क वितर्क और कुतर्क के साथ एक मजबूत अहंकार में बदल देता है। इसके बाद जो परिणाम होते है वह स्वार्थो का टकराव और अहंकार का शिखर जो स्पष्ट रूप से आचार विचार और व्यवहार में परिलक्षित होता है। मेरा अपना स्पष्ट मानना है कि कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हो इनसे अपने आप को बचाए रखना चाहिए। परिस्थितियों पर नियंत्रण नहीं हो सकने के कारण मुद्...
बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन ?
आलेख

बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन ?

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** जिन पालकों के पास थोड़ा बहुत पैसा आना शुरू होता है, वह अपने बच्चों कोअशासकीय विद्यालयों में प्रवेश करा देता है।       रेत छानने के चलने में से बारीक रेत छन जाती है व अनुपयोगी बंडे अलग रख दिये जाते है, वैसे ही अत्यंत दयनीय आर्थिक स्थिति वाले पालकों के अधिकांश बच्चे शासकीय विद्यालयों में प्रवेश लेते है। उनके प्रवेश के लिए भी शिक्षकों को काफी मशक्कत करना पढ़ती है। देखा जा रहा है झोपड़ पट्टियों,पन्नी-बोतल, लोहा-लंगर बिनने वालों, सस्ता सामान बेचने वालों, भिक्षावृत्ति करने वालों दाड़की, दानी-दस्सी करने वालों के बच्चे लगभग शासकीय विद्यालयों में पढ़ रहे है,कुल मिलाकर कहा जा सकता है यानी क्रीम निकालने के बाद बची छाछ प्रवेशित होती है,ऐसे छात्र चेलेंज के रूप में स्वीकार किये जाकर छाछ में से पुनः मंथन कर क्रीम निकालने का दुष्कर कार्य शिक्षक को करना ...