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हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण
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हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हिंदी के लिए प्रयुक्त देवनागरी लिपि में विश्व की लगभग सभी भाषाओं की ध्वनियों केलिए पृथक ध्वनिचिह्न प्राप्त हैं। कुछ नहीं भी हैं तो हिंदी का ´विकासशीलता´ का गुण उसे अपना कर नया चिह्न दे देता है यथा, क=क़, ग=ग़, ज=ज़ आदि। चूँकि अंग्रेज़ी स्वयं में एक वैश्विक भाषा का रूप ले चुकी है तथा हिंदी के लगभग सभी पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ अंग्रेज़ी में प्राप्त हैं, प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसे मे समस्या तब आती है जब राम को Rama कृष्ण को Krishna, सुग्रीव को Sugriva, Omkara, Veda, Chanakya, Ashoka आदि लिखा जाता है तथा रामा, कृष्णा, नारदा, चाणक्या ओमकारा, वेदा, अशोका लोग बोलने भी लगे हैं। इससे मूल शब्दों के अर्थ का अनर्थ भी हो रहा है। अहिंदी भाषियों, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले प्रवासी भारतीयों, विदेशों में जन्मे भारतीय बच्चों तथा भारत म...
न जन्म सहज न मृत्यु सहज
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न जन्म सहज न मृत्यु सहज

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** पुराने समय में महिलाएं प्रसव घर पर ही करती थी। उस समय दाईया होती थी जो सुरक्षित प्रसव कराती थी। अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। न कोई ज्यादा खर्च न कोई झंझट सरलता से प्रसव हो जाता था। वर्तमान युग में प्रत्येक प्रसव अस्पताल में हो रहा है और डॉक्टर पैसा कमाने के चक्कर में साधारण प्रसव के स्थान पर आपरेशन द्वारा प्रसव कराते है। बच्चे के जन्म के साथ परिवार में खुशियां आती है और प्रसव आपरेशन द्वारा होता है तो डॉक्टर का बिल बढ़ जाता है इसलिए आपकी खुशी के साथ साथ डॉक्टर भी खुश हो जाता है। पहिले जब कोई व्यक्ति बीमार या दुर्घटना ग्रस्त होता था तो डॉक्टर यथा संभव साधनों द्वारा उसका उपचार करते थे। उनकी भावना मरीज को ठीक करने की होती थी। जब हमारा उद्देश्य सही होता है तो स्वयं भगवान आपकी मदद करने के लिए आ जाते है और अक्स...
खुद से खुद की मुलाकात
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खुद से खुद की मुलाकात

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ध्यान योग साधना से खुद को खुद के अंदर झाँककर, एक मुलाकात खुद ने खुद से की। मैं किस जगह और किस डगर पर हूं और मुझे कहां पहुंचना है? जब मैं खुद को खुद से पहचानी, तो महसूस किया मैं एक कवियत्री हूं मैं अपने भावों के द्वारा अपने विचार सबके सामने रखती हूं। मैं प्रकृति, एक दूसरे के भाव विचार, धरती, अंबर, जलवायु, हरियाली, नदी, पर्वत समन्दर से रूबरू होकर अपने भाव प्रकट करती हूं। मैं एक आर्टिस्ट हू मैं अपनी कला को प्रदर्शित कर, कविता के माध्यम से उसके अंदर तन्मय और लीन कर देती हूं, सोचने और समझने पर बाध्य कर देती हूं। अरे! मेरी कला तो इतने सालों तक छिपी हुई थी इन मंचो के द्वारा व आप सबके द्वारा पसंद करने पर मेरी कला को में प्रदर्शित कर सकी और अपने आप को पहचान सकी, की प्रभु ने भी मुझे कुछ सीखा कर भेजा है जो कला हर व्यक्ति में रह...
पितरों की शान्ति
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पितरों की शान्ति

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पिंड और प्राण का संयोग कोई विशेष लक्ष्य लिए होता है। वह पूरा होते ही वियोग निश्चित होता है। तात्पर्य यह हैं कि शरीर और आत्मा ये दोनों ही अलग है। आत्मा अविनाशी, चेतन ज्योति बिन्दु, शान्त स्वरूप होती है। शरीर हाड, मांस, रक्त से बनी भगवान की अनुपम कृति है। जिस अवचेतन में चेतनता आत्मा के संयोग से आती है। आत्मा में ८४, जन्मों के कर्मों का लेखा-जोखा जमा होता है। वह उसे जन्म मृत्यु के चक्र में पूरा करती है। इस प्रकार चार युग सतयुग त्रेता युग, द्वापर युग, कलियुग में आत्मा अपने घर ब्रह्म तत्व से स्थुल लोक पृथ्वी पर समय अनुसार आकर अपना पार्ट इस शरीर के माध्यम से सृष्टि रुपी रंगमंच पर अदा करती है। ठीक पांच हजार साल के सृष्टि चक्र में उसे चक्र लगाना होता है। अतः देह से ही सारे संबंध होते हैं। आत्मा ने देह छोड़ा वैसे ही सारे संबंध दूसरे जन्...
भेड़ियों का आतंक
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भेड़ियों का आतंक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर का पुलिस थाना, समय दिन का ही कोई.., वैसे भी पुलिस थाने तो २४ घंटे खुले रहते हैं, आखिर अपराध कोई समय देखकर थोड़े ही किए जाते हैं। पहले अपराध रात को होते थे और थाने दिन में खुलते थे, तो बड़ी परेशानी थी। पुलिस वालों को अपनी नींद हराम करनी पड़ती थी। वैसे भी हरामखोरी पुलिस की कार्यप्रणाली में रहे तो ठीक है, अब ये ये नींद में भी आ गई तो पुलिस वालों ने बगावत कर दी। इसलिए उनकी सुविधा के लिए अपराध दिन में ही होने लगे, पुलिस वालों के ऑफिस टाइम से मैच करते हुए। तो हाँ, पुलिस थाने का सीन वैसा ही, जैसा देश के हर कोने में किसी भी पुलिस स्टेशन का हो सकता है। ऑफिस के बरामदे में चार पांच कुर्सियाँ डली हुईं, उनके आगे एक कॉमन राउंड टेबल बिछी हुई। कुछ राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सा सीन है जी..। थाने की ...
आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता
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आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ********************  अच्छा शिक्षक उत्साही, मिलनसार, सहज, शिक्षार्थियों के साथ तालमेल विकसित करने में सक्षम, अपने छात्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, मिलनसार, शिक्षार्थियों में लोकप्रिय और आदर्श प्रतिमान के रूप में अपनी स्थिति के प्रति हमेशा सचेत होता है। एक अच्छे शिक्षक में कई तरह के हार्ड और सॉफ्ट स्किल्स भी होते हैं जिन्हें प्रभावी शिक्षकों को निखारना चाहिए, जैसे कि कक्षा प्रबंधन से लेकर भावनात्मक बुद्धिमत्ता तक। अपने सबसे अच्छे शिक्षक के बारे में सोचें। जब शिक्षकों के पास आवश्यक ज्ञान और कौशल होगा, तभी वे इतना बड़ा कार्य करने की स्थिति में होंगे। एक सफल या आदर्श शिक्षक वह शिक्षक होता है जिसे छात्र प्रसन्नता से याद करते हैं, अच्छी तरह से पढ़ाना जानते हैं कि प्रत्येक छात्र समझता है। यह वह शिक्षक है जो स्पष्ट रूप से, संक्षेप में और विषय पर ...
अनासक्ति भाव
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अनासक्ति भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** द्वारिकाधीश स्वयं अनासक्ति के प्रतीक हैं। प्रेमघट भरा रहा, किंतु त्यागा वृंदावन तो पीछे मुड़ कर न देखा। अंदर तक भर गया था प्रेम तो बाहर क्या देखते। हम सांसारिक प्राणी अलग हैं। माया, मोह, धन सम्पत्ति, परिवार, यश सभी ओर लोलुप दृष्टि है। जब तक सब अपने पास न हो, मन में शांति नहीं। हम सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण भौतिक सम्पन्नता पाने को। कोई अंतिम लक्ष्य नहीं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी तैयार आसक्त करने को। क्या करें, कैसे करें??? ईश्वर ने समस्या दी तो समाधान भी दिया। प्रेम व कर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं अन्यथा सृष्टि चले कैसे। जीवन की राह में परिवार, भौतिक साधनों, धन सम्पत्ति,मित्र, समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। संगति का प्रभाव बलवान है, वह चाहेपरिवार, मित्र या पुस्तकों का हो। जैसे लोगों के बी...
ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४
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ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** (चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती, श्री व जी शब्द नहीं है) संकलनकर्ता - भीष्म कुकरेती ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है। कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे। बडोला जाति ढुंगा, उदयपुर से बसे। शिल्पकार प्राचीन निवासी है। ठंठोली की सीमाओं में पूरव में रनेथ, बाड्यों, छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है), दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी, उत्तर में पाली गाँव हैं। ठंठोली की लोक कलाओं के बारे में निम्न सूचना मिली है - लोक गायन व नृत्य - आम लोग, स्त्रियां गाती हैं, गीत भी रचे जाते थे। सामूहिक व सामुदायक नाच गान सामन्य गढ़वाल की भाँती। घड़ेलों में जागर नृत्य भी होता है। बादी बादण नाच गान व स्वांग करते थे। बिजनी के हीरा बादी पारम्परिक वादी थे। कुछ लोग स्वयं स्फूर्ति...
गहरा गड़ा खूंटा
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गहरा गड़ा खूंटा

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जेंडर समानता की बात बहुत हो रही है, समान काम का वेतन अलग होना बहुत शर्म की बात इसलिए है कि मुर्मू जी राष्ट्रपति हो, सीतारामन सबसे बड़े लोकतंत्र में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था का बजेट पेश करे, हलवा भी बने, तीखे प्रश्नों के जवाब भी आत्मविश्वास से देवे। पायलेट हो, वायुसेना में विशेष भूमिका में हो, सेना के ट्रूप का पुरुषों की टुकड़ी का गणतंत्र दिवस पर नेतृत्व करते देख सारी नारियां उछलने लगे, तब ऊंचे ओहदों डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर तक मे अंतर हो तो कुछ सोचने वाली बात है। कल एक बिल्डिंग का सिक्योरिटी ठेकेदार से बात हुईं कहने लगा, मैडम इस बिल्डिंग में चालीस प्रतिशत महिला कर्मचारी है, सुरक्षा की दृष्टि से छत आदि पर ताला लगवाना बहुत जरूती है, एक हादसा होने पर मेरी एजेंसी खतरे में पड़ जाएगी। माना एक की कमाई से घर नही चलता है। आज नर्सिंग घोटाले स...
कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य
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कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ‌‌ कृष्ण जी के जीवनकाल में एक घटना घटी। नरकासुर नामक राक्षस ने १६ हजार स्त्रियों का अपहरण करके अपने महल में बंदी बनाकर रखा था। उसे कृष्ण जी ने नरकासुर को मार कर उन स्त्रियों को मुक्त कर दिया। इतने वर्षों तक राक्षस के यहां रहने के बाद उन्हें कौन स्वीकार करेगा, यह सोचकर सभी नदी में डूबकर जीवन समाप्त करने के लिए चल पड़ी। कृष्ण जी के पूछने पर उन्होंने अपने मन‌ की बात उन्हें बताई। इसपर भगवान श्रीकृष्ण जी ने उन्हें जीवन त्याग करने से रोका तथा कहा कि आप सबको मैं आश्रय दूंगा, आप मेरे साथ रहेंगी। कृष्ण जी तो बहुत सक्षम थे, उन सबके रहने के लिए महल बनवाकर उन्हें सुरक्षा प्रदान की। कृष्ण जी उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली राजा थे, उनकी सुरक्षा के घेरे में आने का किसी में साहस नहीं था। इस प्रकार वो भगवान की आश्रिता थीं, संरक्षण में थीं...
एक चेहरे पर कई चेहरे
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एक चेहरे पर कई चेहरे

माधवी तारे लंदन ******************** जब भी भारतीयों की प्रगति की बात होती है, विदेशों में बसे भारतीयों के गुणगान गाने को तत्पर रहते हैं और विदेशी लोगों को आमंत्रित करने का मौका हम ढूंढते रहते हैं। वहां रहने वाले भारतीय इस अवसर को संपन्न करवाने में हम जी जान से मदद करते हैं। लेकिन विदेशी समाज में रहकर खुद को साबित करना, अच्छे पद कर काम करना आसान नहीं होता. गलतियां ढूंढने को तैयार लोगों की घाघ नज़रों के बीच हर दिन अपने आप को प्रमाणित करना पड़ता है। कई देशों में भारतीय नर्सें काम करती हैं और उनके काम को काफी सराहा जाता है। लेकिन कई बार ऐसा भी सुनने में आता है कि आप्रवासी नर्से सारी तैयारी करके रखती हैं लेकिन उसका सारा श्रेय स्थानीय नर्सें ले जाती है, डॉक्टरों को जानबूझकर दिखाया जाता है कि स्थानीय कर्मचारी ही बेहतर हैं। अक्सर आयोजन में देखा जाता है कि आज भी हमारी गुलामगिरी की मानसिकता गई न...
अतीतजीवी
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अतीतजीवी

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम हिंदुस्तानी स्वभाव से अतीतजीवी हैं। विश्वगुरु सोने की चिड़िया तरह-तरह की शब्दो की अफीम चाट के उसी में मगन। बदलाव के लिए और भविष्य के लिए कभी तैयार नही। हाँ, अगला जन्म सुधारने को बेहद तत्पर आसान रास्तों में चलने को हमेशा तैयार गंगाजी में डुबकी लगा के स्वर्गारोहण, वाह! चरखे और अहिंसा से आज़ादी, वाह भाई वाह! हमारे सपने टूटते ही नही, नींद है कि उड़ती ही नही। अच्छे दिन आएंगे पर लाएगा कौन मोदी जी !!! आप कुछ करेंगे? नहीं वोट दिया है ना ! १५ लाख आये की नही खाते में? सरकारी नोकरी ही क्यों चाहिए !!! प्राइवेट नोकरी में काम करना पड़ता है ये तकलीफ है। हमारे यहाँ करोड़पतियों और हर तरह से सामर्थ्यवान लोगो ने भी कोविड के टीके मुफ्त सरकारी केंद्रों में ही लाइन में लग के ही लगवाए हैं। और बाते समय की कीमत की ही करेंगे ! कथनी और करनी में सर्वाधिक फर्...
जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां
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जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  ५/६ वर्ष से लेकर १२ वर्ष तक के बालक कृष्ण की रासलीला को कुतर्कों से लोगों को भ्रमित किया गया। १२/१३ वर्ष तक तो वे मथुरा चले गये, फिर कभी न लौटे। गोपियां तो गृहणियां थी, जो कृष्ण जी की मोहक मुरली के स्वर सुनकर दौड़ी आती थीं। संगीत प्रेमी वो भी‌ नन्हे बालक‌ के मुख‌ से, कौन न आतुर होगा सुनने को। एक को बीच में खड़ा करके आसपास नाचने गाने की परंपरा आज भी होली के दिनों में उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में दिखाई देती है। भारतीय शास्त्रों में गहरे दर्शन को केवल प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया गया‌ है। चैत्र की फसल आए या सावन का महिना हो, संगीत तो फूट ही पड़ता है व नर्तन गायन शुरू हो जाता है। बालक रुपी परमेश्वर धर्म संस्थापना के निमित्त धरती पर आए, तत्कालीन दिग्भ्रमित जनता के साथ खेलकूद करके, नृत्य गायन वादन करके सबको एकत्रित करते थे, ...
क्या अंतर्जातीय-अंतरर्धार्मिक विवाह सही है…?
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क्या अंतर्जातीय-अंतरर्धार्मिक विवाह सही है…?

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** ● प्यार के नाम पर देशभर में हो रहा है लव जिहाद ● नाम बदलकर लड़कियों को फंसाया जा रहा है ● अनजान लोगों पर विश्वास करना पड़ सकता है भारी ● सावधान कहीं आपकी बेटी भी धोखे का शिकार न हो जाए ! सही गलत का फैसला तो वक्त करता है, किंतु प्रेम विवाह में असली संकट अंतर्जातीय-अंतरर्धार्मिक विवाह की समस्या होती है। वर्तमान में भारत में दो तरह के विवाह होते है - पहला - (कास्ट) जाति आधारित, जिसमें जाति का बहुत महत्व होता है, दूसरा- इसमें जाति-धर्म का महत्व, गौण होता है - क्लास (श्रेणी) आधारित। दिनानूदिन एलीट क्लास आधारित विवाह बढ़ते ही जा रहे हैं। ● भारत में आमलोग जाति आधारित विवाह करते हैं और अपने को एलीट समझने वाले लोग क्लास आधारित। ● किंतु समस्या तब हो जाती है, जब कोई दोनों नाव की सवारी करने का प्रयास करता है। ● अतीत में भा...
मौसम ने करवट क्यों बदली
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मौसम ने करवट क्यों बदली

माधवी तारे लंदन ******************** भारी गर्मी में सूरज के ताप से हैरान गौरेया जैसे बेसुध हो कर गिर जाती है। वैसे ही आज इंसानों की हालत है। कुछ साल पहले का हरे-भरे बैंगलोर का मौसम खुशमिज़ाज था। वृंदावन गार्डन देखकर मन खुश हुआ था लेकिन आज वही बैंगलोर पानी की बूंद-बूंद के लिये तरस रहा है। अब इंदौर की भी हालत ऐसी ही हो रही है। पिछले ६०-६५ साल में आज जैसी गर्मी देखने को नहीं मिली है। सौ-सौ साल पुराने पेड़ सड़क के नाम पर कुरबान हो रहे हैं और नए लगाए नहीं जा रहे जबकि पूरे के पूरे पेड़ दूसरी जगह लगाने की तकनीक भी आज उपलब्ध है। फिर भी बागीचे उखाड़ कर अट्टालिकाएं रोपी जा रही हैं। इंसान भी चिड़ियों की तरह चलते-चलते ना टपके इसके लिये हरियाली चाहिये। सीमेंट कांक्रीट के रास्तों के आसपास नालियां नहीं हैं और अगर हैं तो पानी वहां से प्रवाहित हो जमीन में नहीं जाता, बह जाता है। बहुमंजिला इमारतें अपनी प्...
जीवन के लिए प्रकृति का सुरक्षित होना जरूरी
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जीवन के लिए प्रकृति का सुरक्षित होना जरूरी

डॉ. राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राजस्थान) ********************  ०५ जून को हम साल २०२४ का विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं। इस दिन पर्यावरण के प्रति आम जनता को जागरूक किया जता है। अधिक से अधिक पेड़ लगाना। पौधरोपण करना। पेड़ों के ट्री गार्ड लगाना। वन भूमि को हरी भरी करने हेतु नरेगा मजदूरों को लगाया जाता है व गड्ढे खोदकर पेड़ लगाते हैं। पेड़ की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड या तार फेंसिंग करते हैं। सभी उपस्थित लोग शपथ लेते है कि इन पेड़ों की हम नियमित देखभाल कर इन्हें संरक्षित रखेंगे। बड़ी-बड़ी बैठकों में बढ़ते प्रदूषण के प्रति चिन्ता जताई जाती है। प्रकृति का संतुलन बना रहे इस हेतु आगामी रणनीति बनाई जाती है। धरती के बढ़ते तापमान का कारण खोजते हैं। घण्टों मंथन चलता है। पर्यावरण बचाने से सम्बंधित नारे दीवारों पर लिखाये जाते हैं। विद्यालयों में निबंध वाद विवाद स्लोगन लेखन कविता लेखन जै...
युवा पीढ़ी के बदलते और बिगड़ते आयाम
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युवा पीढ़ी के बदलते और बिगड़ते आयाम

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ********************   युवा पीढ़ी किसी भी देश या समाज को बनाने या बिगाडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। युवा पीढ़ी में न सिर्फ उत्साह और उत्साह है, बल्कि नए विचारों को बनाने और बदलने की क्षमता भी है। वे कुछ करना चाहते हैं, और यदि युवा कुछ करने का मन बना लें तो कुछ भी असम्भव नहीं है। हमारे देश की लगभग 65 प्रतिशत आबादी ३५ वर्ष से कम है। भारत को हर क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए हमारे मेहनती और प्रतिभाशाली युवाओं को सही दिशा दी जा सकती है। भारत की युवा पीढ़ी उत्साहपूर्ण और उद्यमशील है और हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। युवा वर्ग कल से बहुत उम्मीद करता है। आज, अगर कोई कमी है तो उसे सही समय पर मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी उनके माता-पिता, शिक्षकों और पूरे समाज की है। स्वामी विवेकानंद ने हमेशा देश की युवाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा द...
जनहित याचिका …
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जनहित याचिका …

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जनहित याचिका क्या होती है, कौन कब कैसे लगा सकता है, ये कितने लोग जानते है, नही पता पर इतना पता जरूर है कि नॉन लीगल आदमी भी लगा सकता है व उसके सुनवाई के परिणाम स्वरूप कई अच्छे कानून बने है जिससे आम लोगो को बड़ी राहत मिली है। इंदौर में एक ऑटो मोबाइल व्यापारी एस. पी. आनंद हर जायज बात के लिए जन हित याचिका लगाते थे, उनसे मेरी मित्रता हो गई, वे मुझसे चालीस वर्ष बड़े थे, पर आम जनता की समस्याओं के प्रति मेरी रुचि देखते हुए जब भी नई याचिका लगाते मेरे घर आते व बताते कि आज ये लगाई, पिछली की सुनवाई हुई ये हुआ, ये कानून बनने का मसौदा विधि विभाग को दिया गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता था, कि सेवा करने के कितने तरीके हो सकते है, अपनी जेब का धन समय खर्च कर कोर्ट में भटकना कम बात नही होती है। वे वकील नही थे, परिवार भी पूरा व्यवसायी था। एक बार उनका ...
यत्र नारयस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता
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यत्र नारयस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** युगों-युगों से भारतीय परंपरा में स्त्री को पूजनीय बताया और माना गया। फिर क्यों बार-बार ऐसे उदाहरण है जब पुरुष ने स्त्री को एक वस्तु की भांति त्याग दिया, अपमानित किया या इस्तेमाल किया। स्त्री को नरक का द्वार तक बता दिया गया है। ऋषि गौतम ने श्राप दे दिया अहिल्या को और वो पत्थर हो गयी। अरे श्राप देना था तो इंद्र को देते जो गौतम का रूप बना कर अहिल्या के साथ व्यभिचार करता रहा। अहिल्या को तो पता भी नही था की वो इंद्र है। सूर्पनखा द्वारा प्रणय निवेदन करने पे लक्ष्मण उसकी नाक काट देते हैं। जबकि राक्षस कुल में उत्पन्न सूर्पनखा कोई गैर पारंपरिक निवेदन नही कर रही थी। इनकार कर देते नाक काटने की क्या ज़रूरत थी। रावण अशोक वाटिका में सीता को कहता है की मंदोदरी आदि सभी रानियाँ तुम्हारी अनुचरी करेंगी अगर सीता उसका वरण कर ले। एक धोबी के उलाहना देने...
यज्ञ की समिधा
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यज्ञ की समिधा

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हर व्यक्ति राजनीति की शतरंज में खुद को प्यादा समझे, या फिर चुनाव यज्ञ में समिधा। इससे ज्यादा कुछ मोल नही है भारत मे आम नागरिक का। कभी फुसला कर, कभी धमका कर, कभी डरा कर चुनाव की वैतरणी पार करनी है सब नेताओ को। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस। ये सब आधुनिक ययाति हैं जो जनता रूपी पुरु से उनका यौवन जब चाहे मांग लेंगे या छीन ही लेंगे। किसी को सत्ता का मद चढ़ गया और किसी से सत्ता छीन जाने पे भी उतर ही नही रहा। किसी का उत्तराधिकारी है ही नही और कोई अपने अयोग्य उत्तराधिकारी को सत्तासीन करने के स्वप्न देख रहा। इन सब की सोच में आम आदमी का दर्द कितना महत्व रखता है विज्ञानकर्मियों के लिए खोज का विषय है। विश्व परिप्रेक्ष्य में देखे तो, कोई मौत बेच रहा, कोई दवा बेचने में लगा है, कोई आतंक बेच रहा, कोई हथियार बेच रहा, कोई धर्म बेच रहा। इंसानियत कहाँ है ...
विद्या ददाति विनयम …
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विद्या ददाति विनयम …

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** विद्या ददाति विनयम विनयात ददाति पात्रताम पात्रत्वात धनं आप्नोति धनातधर्मम ततः सुखम। अर्थात - विद्या यानी ज्ञान हमे विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमे धन प्राप्त होता है और धन से सुख मिलता है । अगर ये श्लोक और उसका अर्थ सही है तो क्यों विद्या प्राप्त करके हम विनम्र होने के स्थान पे अभिमानी हो रहे हैं? विनम्रता से योग्यता और पात्रता आती है। तो फिर क्यों हमने अपने पात्र को उल्टा करके रख दिया और शिकायत है कि भरता ही नहीं। अरे घड़ा अगर उल्टा रख दोगे तो सारा समंदर भी उड़ेल दे तो पात्र खाली ही रहेगा। जितना धनार्जन कर लेते हैं उतना ही धर्म से दूर होते जा रहे है। यहां पे धर्म का अर्थ कर्मकांड नही अपितु इंसानियत से है। फिर सुख नही मिलता यही कहते रहते है । सुख का ताल्लुक मन की स्थिति से है भौतिकता में नही। ...
बदला
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बदला

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बरसो से से एक बहुत ही गुनी कलाकार मालिश वाला हमारे परिवार के पुरुषों की मालिश करता था। शास्त्र में कहा गया है नाई व नावन चलते-फिरते अखबार होते है, मेरा मानना है कि शास्त्र कुछ भी नही अनुभव सिद्ध संसार का एक शानदार निचोड़ है। समय काल से सब बदलता ही है मगर शास्त्र की बाते शाश्वत ही है। अति सर्वत्र वर्जयेत बदल सकते हो क्या। तो ये नाई मेरे घर आज आया, कोरोना काल मे भयानक दुर्घटना में उसका इकलौता बेटा काल धर्म को प्राप्त हुआ। दुख का पहाड़ टूट पड़ा। पर उसने दुर्घटना करने वाले लड़के पर नो लाख खर्च किये कि सज़ा तो दिलाऊंगा दोनो पति-पत्नी काम पर नही गए उदास हताश पगलाए कोर्ट पुलिस करते रहे न्याय का तो आपको पता ही है। किसी समझू ने उसे राय दी, दोनो ने नसबंदी ओपन की व ५५ की उम्र में बेटी प्राप्त की जिसका वॉकर में चलते हुए मैंने फोटो देखा। मैं तो आ...
विश्वगुरु
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विश्वगुरु

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम विश्वगुरु थे और हमारा ये स्थान हमसे कोई नही छीन सकता। हमारा दोगला चरित्र और हर मामले में स्वार्थ कि राजनीति करने की महारत हमे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। हम बातें सर्वधर्म सद्भभाव की करते है, कण-कण में भगवान की करते है लेकिन हमारा बर्ताव ठीक इसके विपरीत है। नैतिकता की बातें विश्व मे हमसे अच्छी कोई नही कर सकता, हम भाषणवीर हैं, हमारे खिलाड़ी कागजी शेर हैं, हमारे नेता हमारी ही तरह भृष्ट और दोगले चरित्र के हैं। यही सब खूबियां हमे विश्व मानचित्र पे एक ध्रुव तारे का स्थान देती है। हमारा भूतकाल बहुत समृद्ध था, उसकी बातें और सपनों से बाहर आना ही नही चाहते। हम वर्तमान में हर वो काम करने में लगे हैं जो आने वाली पीढ़ियों को कहीं का न रखे। कुल मिला कर हमारा भविष्य सिर्फ अंधकारमय हो सकता है, रोशनी की कोई किरण अगर हम दिखती भी है तो हम...
अंधेरी दुनिया …
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अंधेरी दुनिया …

अमन सिंह अलीगढ (उत्तर प्रदेश) ******************* नशा आजकल एक महाजनसंख्या की समस्या बन चुका है जिससे हर तरह के लोग प्रभावित हो रहे हैं, विशेषकर युवा वर्ग। यह समस्या समाज की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन चुकी है क्योंकि यह सिर्फ नशे के संभावित हानिकारक प्रभावों को ही नहीं लेकर आता है, बल्कि इससे अन्य सामाजिक, आर्थिक, और परिवारिक समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। नशा आमतौर पर या तो मनोरंजन के लिए या तनाव और दुख को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, इसके लाभ केवल समय के लिए होते हैं, और इसके बाद के परिणाम अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं। नशे में धुत होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि परिवारिक प्रेशर, योजनाबद्धता की कमी, सामाजिक दूरी, आदि। युवा वर्ग नशे के प्रभाव में ज्यादा प्रभावित होता है क्योंकि वे अपने जीवन की पहली स्टेज में होते हैं और उन्हें अपने आप को ढूंढने और पह...
हरावल दस्ता
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हरावल दस्ता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** जो लोग राजपूती युद्धशैली से वाकिफ हैं वो इसका अर्थ भली-भांति जानते हैं। हरावल सेना का वो दस्ता होता है जो युद्ध की भेरी बजने पे दुश्मन सेना से आमने सामने की भिड़ंत करता है। मकसद होता है सामने वाले को अधिकाधिक क्षति पहुंचाना और अपने राजा या सेनापति को सुरक्षित रखना। सर्वाधिक नुकसान भी इस अग्रिम दस्ते का ही होता है और वीरगति भी इन्ही की ज्यादा होती है। आज के भारत के परिप्रेक्ष्य में समझे तो साम्प्रदायिक दंगे, प्राकृतिक आपदा या युद्ध में सर्वाधिक हानि किनकी होती है। सड़क के किनारे या कच्ची बस्तियों में रहने वाले गरीब मजदूर वर्ग की। कभी सुना है की भूकंप में, बाढ़ में, या साम्प्रदायिक दंगे में नेताओ या धनाढ्य लोगो के परिवार तबाह हुए हो। भाई ऐसे परिवारों के बच्चे तो सेना में भी कहाँ भर्ती होते है। आज हरावल दस्ते में सिर्फ वंचित और शोषित ...