बिच्छू घास (कंडाळि) के दसियों उपयोग
भीष्म कुकरेती
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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साभार : डॉ. बलबीर सिंह रावत
कंडली, (Urtica dioica), बिच्छू घास, सिस्नु, सोई, एक तिरिस्क्रित पौधा, जिसकी ज़िंदा रहने की शक्ति और जिद अति शक्तिशाली है। क्योंकि यह अपने में कई पौष्टिक तत्वों को जमा करने में सक्षम है, हर उस ठंडी आबोहवा में पैदा हो जाता है जहाँ थोडा बहुत नमी हमेशा रहती है। उत्तराखंड में इसकी बहुलता है, और इसे मनुष्य भी खाते हैं, दुधारू पशुओं को भी इसके मुलायन तनों को गहथ झंगोरा, कौणी, मकई, गेहूं, जौ मंडुवे के आटे के साथ पका कर पींडा बना कर देते है।
कन्डालि में जस्ता, ताम्बा सिलिका, सेलेनियम, लौह, केल्सियम, पोटेसियम, बोरोन, फोस्फोरस खनिज, विटामिन ए, बी१ , बी२, बी३, बी५, सी, और के, होते हैं, तथा ओमेगा ३ और ६ के साथ-साथ कई अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। इसकी फोरमिक ऐसिड से युक्त, अत्यंत पीड़ा दायक, आसानी से चुभने वाले, सुईद...