Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गद्य

मातृत्व
लघुकथा

मातृत्व

मातृत्व रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== अपनी बेच में टॉप करने के कारण आज काॅलेज के दिक्षांत समारोह में शिवांश का विशेष सम्मान होने वाला  था। परिवार  के सदस्यों को भी इस कार्यक्रम में आमन्त्रित किया गया था। शिवांश जब पाँच वर्ष का था तब मां ललिता का देहांत हो गया था। पिता संदीप ने रिश्तेदारों के दबाव में आकर अनमने मन से दूसरी शादी ‘सुजाता’ से कर ली थी। सुजाता भले ही सौतेली मां थी, लेकिन उसकी बदोलत ही आज शिवांश डाॅक्टर बन पाया था। संदीप को पी एम टी की परीक्षा की फीस भरने के लिये सुजाता ने ही मनाया था। शिवांश के माता पिता को भी आज के समारोह में सम्मान मिलना था। सुजाता सोच रही थी कि स्टेज पर बेटे शिवांश के साथ संदीप और स्वर्गीय ललिता का ही नाम पुकारा जायेगा। एकाएक उसके कानों में आ...
मां
लघुकथा

मां

मां रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" ===================================================================================================================== जंगल में अपनी मां के साथ किलोल करते हुए हिरण शावक बहुत दूर चला गया था। हिरणी जितना उसका पीछा करती, वह उतना ही आगे बढ़ता जाता। अंत में वह एक ऐसे स्थान पर पहुंच गया जहां एक शेरनी आंखें बंद कर लेटी हुई थी तथा अपने शावकों को दूध पिला रही थी तथा ममता वश उन्हें चाटे भी जा रही थी। अबोध हिरण शावक को क्या पता था कि "शेर और हिरण का कोई मिल नहीं होता,..... यदि होता भी है तो...... "बस भूख और भोजन का!" जब हर ने उसका पीछा करते-करते वहां पहुंची तो यह दृश्य देख वह आतंकित हो उठी। हिरणी को समझते देर न लगी कि "अब तो उसके बच्चे की जीवन लीला कुछ ही क्षणों में समाप्त होने वाली है!" यह सोच कर वह अंदर तक हिल गई थी। ..... "परंतु.. कर भी क्या सकती थी?" अब वह...
फर्क
लघुकथा

फर्क

फर्क रचयिता : सुषमा दुबे ===================================================================================================================== बेटी के साथ हुई ज्यादती कि रिपोर्ट लिखवाने पहुचे पिता -पुत्री से थानेदार ने उल जुलूल प्रश्न करना शुरू कर दिए। लड़की का पिता ने कई सवालों के जवाब में सर झुका लिया। फिर शुरू हुआ प्रवचन का सिलसिला, अरे आजकल कि लड़कियां मौज मस्ती के लिए लड़को से दोस्ती करती है, जब बात नहीं बनती इल्जाम लगा देती है............ कहकर एक लम्बा चौड़ा लेक्चर दे दिया। दोनों बाप-बेटी सर झुकाये उसकी बाते सुनते रहे। तभी थानेदार लड़की के पिता की और मुखातिब होकर बोला -"धिक्कार है तुम्हे जो ऐसी बेटी को जन्म दिया, इसकी जगह यदि मेरी बेटी होती तो तो मैं पुलिस थाने में आने कि जगह उसे आग लगा कर ख़त्म कर देता। अब तक चुपचाप सुनती रही लड़की ने मुहं खोला वह थानेदार से बोली -"सर एक बात पूछू...
आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”
आलेख

आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का “अन्तिम-संस्कार”

आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का "अन्तिम-संस्कार" रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" ===================================================================================================================== विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सभी धर्मो को मानने वाले लोगों का बसेरा है एवं सभी जातियों व संप्रदायों के अनुयायी यहाँ निवासरत है। भारत देश प्राचीनकाल में 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था क्योंकि यहाँ पर निवासरत समस्त लोगो में एकता और एकजुटता के प्रमुख गुण सहजता से मिलते थे। लोगो के लिये उनके संस्कार और संस्कृति व सभ्यता सबसे महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी थे। उस समय लोगों में सामजिकता और सामंजस्यता के बड़े अद्भुत नजारें देखने को मिलतें थे। उस समय की लोगों के मन में दया, प्रेम एवं परोपकार के भाव बड़ी ख़ूबसूरती से विद्यमान होते थे। सभी एकजुट होकर एक दूसरे की मदद के लिये तत्परता से आगे आते...
गीतों चलन होता अमर 
आलेख

गीतों चलन होता अमर 

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ===================== गीत  की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन  की मधुरता  कानो  में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों  की राग, संगीत  जरिए  घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टी वी, रेडियों, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान होता का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी - प्रे...
उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो
आलेख

उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो

उत्सवों के माध्याम से एकात्मकता का विकास हो रचयिता : डॉ सुरेखा भारती ===================================================================================================================== अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है सनातन धर्म में उत्सवों की एक श्रृंखला होती है। दीपावली, वसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, नववर्ष प्रतिपदा, श्रीरामनवमी जितने भी उत्सव आते हैं, उन्हे धर्म से, आध्यात्मिकता से जोड़ा गया है। इसी सच्चाई के लिए यह घोषणा की गई की मनुष्य जाति एक है। जो भौतिकवाद से जुडे़ हैं, वह नहीं कहतें कि हम एक है। क्योकि वहाँ एक-दूसरे का स्वार्थ आता हेै। जिस मंच से, जिस धरातल से यह बोला गया है कि मनुष्य जाति एक है वह आध्यात्मिक धरातल है। अध्यात्म व्यक्ति को जोडता है और भौतिकता व्यक्ति को तोडती है। आधात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है आध्यात्मिक व्यक्ति निर्लिप्त रहता है। आध्यात्मिक व्यक्ति समाज म...
निश्चिंतता
लघुकथा

निश्चिंतता

निश्चिंतता रचयिता :  कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== मनन शादी के बाद पहली बार पत्नी माला को लेकर लखनऊ से भोपाल आ रहा था। उसने पहले से किराये का घर लेकर गृहस्थी की आवश्यक सामग्री जुटा रखी थी। मकान के ऊपरी तल पर मकान मालिक सिंह दम्पती रहते थे। उनकी एक ही बेटी थी जो शादी के बाद दिल्ली में सेटल थी। मनन ने माला को शादी के पहले बता रखा था कि पापा के बिजनेस के कारण माँ और पापा भोपाल में हमारे साथ नहीं रह पायेंगे। मेरा ऑफिस रहेगा, तुम्हें दिनभर घर में अकेले ही रहना होगा। माला समझदार थी, उसने सहजता से आने वाली परिस्थिति को स्वीकार कर लिया था। फ्लाईट में बैठे मनन सोच रहा था कि संयुक्त परिवार में पली-बडी माला, दिनभर अकेले कैसे रहेगी ? वह सोच में डूबा हुआ था कि फ्लाईट भोपाल पहुँच गई। मनन ने ...
वक्त
लघुकथा

वक्त

वक्त रचयिता : माधुरी शुक्ला दसवीं कक्षा में पहुंचे पोते मनु के बदले रंग ढंग को दादा ब्रजकिशोर की बूढ़ी और अनुभवी आंखों ने मानो पढ़ और समझ लिया है। फिर कल उसे मोहल्ले के बिगड़ैल लड़कों के साथ घूमते  देख उनकी फिक्र बढ़ गई है। ब्रजकिशोर बेटे दिनेश से कह रहे हैं सिर्फ कमाने में ही मत लगा रहा कर घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान दे। मनु की फिक्र भी किया कर वह बड़ा हो रहा है और गलत संगत में भी पड़ता दिखाई देने लगा है। उनका इतना कहना था कि बहू सरिता बरस पड़ती है बाबूजी की तो पता नहीं क्यों मनु से आजकल कुछ दुश्मनी हो गई है। वह कुछ भी करे इन्हें गलत ही लगता है। यह सुन ब्रजकिशोर खामोश हो जाते हैं। जानते हैं अब कुछ बोले तो बहस हो जाएगी। इस बीच दिनेश ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगता है खूंटी पर टंगा मनु की पैंट गलती से उससे नीचे गिर जाती है। जब पैंट  टांगने लगता है तो जेब से सिगरेट का पैकेट बाहर झांकता ह...
प्रहार कर
लघुकथा

प्रहार कर

प्रहार कर रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ===================================================================================================================== कुनाल अपनी जिंदगी से इतना नाखुश था कि उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था, उसकी जिंदगी मानों थमती और चलती जा रही थी, कुनाल की जिंदगी में सबने ही दखल डाला था यहाँ तक की उसकी खुद भी जिंदगी ने उसपर दखल ऐसे दी थी कि उसने हार मानते मानते भी हार नहीं मानी थी, कुनाल के परिवार में छः सदस्य थे जिसमें कुनाल सबसे छोटा है उसके ऊपर लेकिन बोझ इस प्रकार है मानों वो परिवार में सबसे बङा हो, घर का सारा काम देखना अपने पिता की खेती का सारा काम देखता और स्वयं खेती में काम भी मेहनत से करता फसल आती बेची जाती और सारा धन घर के कामों व भाई बहन की पढ़ाई में खर्च होता है जिसपर कुनाल ने कभी भी जरा सा सोच भी नहीं किया कि आखिर मुझे भी पढ़ना है और क्या करना है सिवाय क...
पल दो पल की खुशियां
कहानी

पल दो पल की खुशियां

पल दो पल की खुशियां रचयिता : जितेंद्र शिवहरे संध्या आज पहली बार प्रभात के साथ सफ़र कर रही थी। त्यौहार के सीज़न के कारण बस वाले छोटी यात्रा करने वाले पेसेन्जर को बस में बैठा नहीं रहे थे। उस पर जो बस वाले बैठा भी लेते तो बैठने की सीट मिलना मुश्किल थी। संध्या की समस्या अभी खत्म नहीं हुयी थी। उसने देखा सड़क पर चक्काजाम की स्थिति निर्मित हो गयी है जो इस सड़क पर एक आम समस्या थी। संध्या ने विचार किया की आज स्कूल पहुंचने में वह निश्चित ही विलंब से पहुंचेगी। स्कूल के हेडमास्टर की डांट से वह भली-भांति परिचित थी। उसका विलंब से स्कूल पहुंचने का कारण अधिकतर सड़क जाम होना ही होता था। सड़क पर वाहनों के जाम की स्थिति का हवाला देते-देते वो थक गई थी। क्योंकि हेडमास्टर चिरपरिचित इस समस्या का हल संध्या को पुर्व में बहुत बार सुझा चूके थे। या तो संध्या मोपेट से स्कूल आया करे क्योंकि मोपेट से आने-जाने में सड़क...
मेरा राम मेरे साथ है
लघुकथा

मेरा राम मेरे साथ है

मेरा राम मेरे साथ है रचयिता : डॉ सुरेखा भारती शाम हो गई थी राधिका ने अपने को, थोड़ा संवारा और वह तुलसी क्यारी में दीपक लगाकर अपने पूजा घर में रामायण पढ़ने बैठ गई। यह उसका रोज का नियम जो था। अंकुर की शादी हुए दो महिने बीत गए थे। अंकुर की पसंद-नापंसद, उसके लिए क्या बनाना है, क्या नहीं, पहले उसकी चिंता रहती थी, पर यह सब तो अब बहु ही देखने लगी थी। बहु तो अच्छी है पर राधिका और अधिक अकेला पन महसूस करने लगी थी। अंकुर भी अब आते से ही पूछने लगा है, सीमा ऽ सीमा तुम कहां हो .......?, लगता था अब माँ को वह भूल गया है। पहले जरूर उसके इस बदलाव से मन में अजीब सी चुभन होती थी। पर अब अपना मन भगवान के स्मरण में लगाना सीख लिया था। रामायण पढ़ते हुए, वह श्री रामचरित्र में खो गई थी, की सहसा फूलों की सुगंध वातावरण में घूमने लगी, उसने सोचा अंकुर बहु के लिए फूल ले कर आया होगा, आज उसका जन्मदिन जो है। पर अचानक उस...
धुरी
लघुकथा

धुरी

रचयिता : माधुरी शुक्ला अरे, पूजा जल्दी करो, देर हो रही है डॉक्टर साहब निकल जायेंगे। अजय का यह स्वर कई बार गूंज चुका है। आई बस, कुछ देर और यह कहती पूजा बेटे चिंटू और सास के लिए खानपान का पूरा इंतजाम करने में जुटी है। उसे लग रहा है कि बुखार तो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा ऐसा ना हो डाॅक्टर अस्पताल में एडमिट होने को कह दे। ऐसा सोचती है तभी इस बार अजय कड़क आवाज़ में पुकारता है कितनी देर, छोड़ो यह सब बाद में देख लेना। पसीना पोंछती वह किचन से निकलती है और अजय के साथ डाॅक्टर के पास जाती है। डाॅक्टर उसकी हालत देख तुरंत एडमिट होने को कह देता है। अब अजय का चेहरा देखने लायक हो जाता है। वह डाॅक्टर से पूछता है शाम तक छुट्टी हो जाएगी ना। वह हंसते हुए कहते हैं इलाज तो शुरू होने दो पहले। अजय के सामने बूढ़ी मां और चार साल के बेटे का चेहरा घूमने लगता है। सोचता है अगर  यह एक-दो दिन अस्पताल में रह गयी तो घर ...
दहेज प्रथा: आदर्श विवाह द्वारा उन्मूलन
आलेख

दहेज प्रथा: आदर्श विवाह द्वारा उन्मूलन

रचयिता : डाॅ. संध्या जैन दहेज हमारे समाज को लगी हुई कैंसर से भी अधिक भयानक बीमारी है। यदि शीघ्र ही इस बीमारी से ग्रसित समाज को राहत नहीं दिलाई गई तो वह पतन के गड्ढे में जा गिरेगा। ऐसी कुत्सित प्रथा के पक्ष में लिखना तो ठीक वैसा ही है जैसा कि ‘अन्धे को लाठी दिखाना।’ समाज में व्याप्त इस दहेज-प्रथा ने अनके परिवारों को उजाड़ दिया है। विशेषतः निम्न और मध्यम वर्ग के परिवार इसके शिकार हुए हैं। इस दहेज की कुत्सित वृत्ति के कारण अनेक माता-पिता विवश होकर अपनी लड़की को कुरूप या वृद्ध वर के हाथों बेच देते हैं। यही नहीं वरन् लड़कियों की जिंदगी को भ्रष्ट करने में भी दहेज-प्रथा का बहुत बड़ा हाथ है। कितनी ही लड़कियाँ जीवन से हताश हो आत्म-हत्या कर लेती हैं तथा गलत कामों की ओर उन्मुख हो जाती हैं। तलाक, बाल-विवाह, अनमेल-विवाह, आर्थिक ढाँचा चरमराने पर माता-पिता द्वारा आत्म-हत्या, बहू को जिंदा जलाकर मार डालन...
लड़की
लघुकथा

लड़की

लड़की रचयिता : अविनाश अग्निहोत्री ===================================================================================================================== अपने पिता के माथे पर चिंता की गम्भीर लकीरे देख। गरिमा उससे बोली, पिताजी हमे पहले तत्काल दादी का मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवा लेना चाहिये। उसकी बात सुन उसके पिता ने कहा, बेटा अगले महीने तेरी शादी है। अभी उसकी सारी तैयारी बाकी है। अब इतनी छोटी सी जमापूंजी में ये दोनों काम एक साथ भला कैसे हो पाएंगे। तब वह बोली तो मैं अभी कहाँ बूढ़ी हुए जा रही हूँ। शादी हम कुछ माह बाद कर लेंगे। पर क्या तेरे ससुराल वाले इस बात पर राजी होंगे, पिता ने आशंकित हो पूछा। गरिमा बोली पिताजी मैं अनिमेष से बात करके देखती हूँ, वह सुलझे विचारों वाले व्यक्ति है। वे जरूर अपने परिवार को इसके लिये मना लेंगे। गरिमा की बात सुन उसके पिता सहित सारे परिवार का उदास चहरा खिल ...
पॉकेट मनी 
लघुकथा

पॉकेट मनी 

पॉकेट मनी  रचयिता : विजयसिंह चौहान मृद्धि कॉलेज क्या गई उसकी पॉकेटमनी दिन-ब- दिन छोटी पड़ने लगी, अत्यधिक  खर्च को लेकर मिथिलेश अक्सर टोकती रहती है । आज फिर समृद्धि ने उसके पापा से पॉकेट मनी बढ़ाने को लेकर 'दुलार' किया।  इस बार उसका तर्क था ....ग्रीष्म ऋतु है इसलिए कुछ ज्यादा पैसे दे देना। पिताजी ने भीआंखों ही आँखों मे नजरें घुमाई और सोचा की गाड़ी का पेट्रोल फुल टैंक है, मोबाइल का रिचार्ज भी है, ड्रेसेस तो कल परसों ही खरीद लाई थी । खैर.... बिटिया ने कहा है, तो पिताजी ने भी हा कर दी। पॉकेट मनी पाकर समृद्धि चहक रही थी, वही मिथिलेश बड़बड़ा रही थी ....बेटी को ज्यादा पैसे मत दिया करो, कुछ कंट्रोल रखो, नहीं तो नाम  निकालेगी। शाम को जब पिताजी घर लौटे तो घर के कोने में कुछ मिट्टी के सकोरे और अनाज का थैला देख उत्सुकतावश पूछा कि यह क्या है ? ...तभी मिथिलेश ने मुस्कुरा कर कहा बेटी आज अपनी पॉके...