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गद्य

दोस्त की पहचान
लघुकथा

दोस्त की पहचान

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) राम और श्याम दोनो बहुत ही गहरे मित्र थे .  उनकी मित्रता बचपन की थी, साथ खेले और साथ ही बड़े हुए . बारवीं की  परिक्षा खत्म हो चुकी थी .  विध्यालय की शिक्षा के पश्चात अब आगे विश्व विध्यालय में जाने का समय था .  अन्य विधायर्थियों की भातिं ये दोनों मित्र भी इसी चिंता में थे कि आगे क्या और कैसे किया जाए  . राम जहां  पढ़ाई में ठीक सा था तो श्याम सदैव कक्षा में अवल  स्थान प्राप्त करता था .   दोनो के परिवारों में रहन -सहन  की भी अन्तर था .  परन्तु इन सब अन्तर के बावजूद दोनों में अटूट मित्रता रही .  विध्यालय के परिणीम स्वरूप दोनों को अलग अलग विश्व विध्यालय में दाखिला मिला .  वह दोनो ही अपनी अपनी दिन चर्या और पढ़ाई में व्यस्त हो गए . अब वह कभी-कभार ही मिल पाते और  पिछले समय को याद करते . फिर एक दिन राम ने अपने जन्मदिन की पार्टि रखी और अपने सभी नए पूराने दोस्तो ते अम...
बर्ताव
लघुकथा

बर्ताव

अविनाश अग्निहोत्री इंदौर म.प्र. ******************** राजेश के ड्राइवर पिता को जब उसके मालिक के बच्चे भी नाम से ही पुकारते।तो यह बात राजेश को बड़ी बुरी लगती।वो सोचता कि आज भले वो गरीब है।पर एक दिन उसके पास भी यही शानो शौकत होगी।तब उसके पिता के नाम को भी सब अदब से लिया करेंगे।उसके बाल मन का ये विचार बड़ा होते होते दृढ़ संकल्प बन गया।और अपनी अच्छी पढ़ाई और आरक्षण के फायदे के चलते,आज वो भी एक बड़ा अधिकारी बन चुका है।अब उसके पास भी रसूख के साथ वो सब है।जिसकी कभी बचपन मे उसने कल्पना की थी।आज उसके साथ उसके पूरे परिवार को भी उसकी इस तरक्की पर नाज है।पर अब वो भी अपने पिता की उम्र के, अपने ड्राइवर व माली आदि नोकरो को उनका नाम लेकर ही पुकारता है।और जरा जरा सी भूलो पर सबके सामने उन्हें फटकारने में अपनी शान समझता है।जो आज उसके नोकरो के बच्चों को भी वैसे ही बुरा लगता है।जैसे कभी उसे लगता था।पर आज शायद रा...
हिचकिचाहट
लघुकथा

हिचकिचाहट

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) संजय और नीलम रिश्ते में यूं तो एक दूसरे के कुछ नही लगते थे, पर एक ही बिरदारी से थे . बस इसी नाते आपस में जान पहचान थी . फिर एक बार किसी करीबी रिश्तेदार के यंहा, उनके बेटे की शादि में नीलम का जाना हुआ . इतफाक से वंहा संजय भी आया हुआ था . शादि से पहले की भी कई रस्में होती है, जैसे महंदी, सगन इत्यादि .  बाहर से आने वाले सभी अतिथी तीन , चार दिन का प्रोग्राम बना कर आए हुए थे . नीलम और संजय भी चार दिन के लिए दिल्ली से जयपूर पहुंचे थे . एक ही शहर के होने के बावजूद भी कभी दोनों का आमना सामना नही हुआ, पर यहां शादि के इन चार दिनों में वह एक दूसरे के बेहद करीब आ गए . दोनों को यूं लग रहा था जैसे वह एक दूसरे को बहुत पहले से जानते और समझते है .  चार दिन का समय अच्छे से गुजर गया . वक्त का पता ही नही चला फिर वापसी की उड़ान भरने का समय आ गया . दोनो ने एक दूसरे का नम्बर लेत...
एक पौधा बगिया का
लघुकथा

एक पौधा बगिया का

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज सुबह बहुत दिनों के बाद परिवार के सभी सदस्य बागीचे में साथ बैठकर धुप सेंक रहे थे ... तभी बबली भी बिस्तर से उठकर अपने बाबूजी की गोद में आ बैठी .... हंसी ठिठोलियों का दौर चल रहा था की बबली को देख काकी बोल उठी ... अरे बबली अब उठी हो सोकर ... इतनी देर कोई सोता है भला ... कल ससुराल जाओगी तो वंहा यह सब नहीं चलने वाला ... दादी ने भी काकी की बात का समर्थन किया ... मै नहीं जाउंगी कोई ससुराल-वसुराल, यहीं रहूंगी अपने माँ-बाबूजी के पास ... आप सब के बिना मै वहां कैसे रहूंगी ... क्या आप मेरे बिना रह सकते हैं ... संसार की रीत है ये सबको जाना होता है रुंआसी होकर काकी बोल पड़ी ... तभी बाबूजी ने बबली से कहा अरे बबली तुमने जो पौधा पीपल के नीचे लगाया था उसे खाद पानी दिया या नहीं चलो देखें क्या हाल है उसके और दोनों पौधे के पास जा पहुंचे और ...
वो नहीं आई
लघुकथा

वो नहीं आई

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) उस दिन अनु बिल्कुल निढाल सा हो गया था जबकि इतनी खूबसूरत शाम का सुहाना सा मौसम था जिसे देखकर किसी का भी मन मोह जाता और खुद को वहाँ रोके बिना नहीं जा पा रहा था लेकिन अनु अब भी एक टक उसी राह पर अपनी नजरें गढाए हुए बैठा था, जिस तरफ कोमल सिसकती हुई तेज कदमों से चली गई थी, हल्की हल्की बूँदें फ़ुहार नुमा आसमान से गिर रहीं थी जो बूँदें अब पानी बनकर अनु के बालों से खेलती हुई उसके रेगिस्तान की तरह सूखे और लालमा से भरे हुए गालों पर दस्तक देने ही वाली थी कि अनु ने एकदम से हाथ से पानी को हटाया और नदी के पानी की तरफ़ देखकर फ़िर से पिछली मुद्रा में लीन हो गया,क्योंकि अनु को भरोसा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास था कि कोमल मुझे छोड़कर नहीं जा सकती और फ़िर इस स्थिति में तो बिल्कुल भी नहीं कि जब मैं उससे कह चुका हूँ, कि कोमल तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी पूर...
गरुण पुराण के अनुसार दूसरे का घर तोड़ने वाले व्यक्ति को नरक में भी जगह नहीं मिलती
आलेख

गरुण पुराण के अनुसार दूसरे का घर तोड़ने वाले व्यक्ति को नरक में भी जगह नहीं मिलती

********** अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गरुण पुराण के हिसाब से दूसरों का परिवार खराब करने वाले व्यक्तियों को नर्क में भी स्थान नहीं मिलता ऐसे व्यक्ति मृत्यु पश्चात भी प्रेत योनि को प्राप्त होते  हैं और दरबदर भटकते रहते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं होता मिट्टी के घड़े और परिवार की कीमत उसे बनाने वाले को पता होती है तोड़ने वाले को नहीं इसलिए सदैव हर किसी व्यक्ति के घर को टूटने से बचाना चाहिए ना कि उसे तोड़ने का प्रयास करना चाहिए कुछ ईर्ष्या वान व्यक्ति अपने दुख से नहीं दूसरे के सुख से परेशान होते हैं यह वह व्यक्ति होते हैं जो पूरी जिंदगी सब कुछ होते हुए भी बेचैन रहते हैं क्योंकि उन्हें इस बात से परेशानी होती है कि सामने वाला व्यक्ति सुखी जीवन किस प्रकार व्यतीत कर रहा है ऐसे व्यक्ति अच्छा खासा कमाते हुए भी ना तो जीवन भर कुछ जोड़ पाते हैंऔर ना ही पारिवारिक सुख प्राप्त कर पाते हैं ...
पहचान
लघुकथा

पहचान

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) सुहासनी  प्रातः चार बजे ही उठ गई  .  आज उन्हे मां का नाम लिखवाने पेहोवा जो जाना था . महीना भर हुआ मां का स्वर्गवास हुए .   यूं तो कई रातों से वह ठीक से सो नही पा रही थी .   उसका अपनी मां से रिश्ता ही बहुत गहरा था .  मगर संसार का अपना नियम है .  एक वक्त पर  अनचाहे वो व्यक्ति भी चला जाता है , जिसके बिना आपको लगता है जीना मुशिकल है .  पापा और मोहन जो उसके मामा का लड़का है ने पेहोवा जो कुूरूक्षेत्र के नजदीक है,  साथ जाना था .  सुहासनी नहा धोह कर तैयार हो पापा के साथ पेहोवा के लिए निकल पड़ी .  मोहन का घर रास्ते में पडता था , तो उसे ऱास्ते से ही ले लिया . "आदमी चला जाता है और रस्में रह जाती है " सुहासनी ने  भराई हुई आवाज में कहा . मैं तो जाना नही चाहता था , पापा बोले .  हमारे यहां ऐसा कोई रिवाज नही है .  हां मगर पंडित जी ने कहा जाना चाहिए .  पंडित जी जिन्हे मां ...
राजा की तीन रानी
कहानी

राजा की तीन रानी

*********** विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर बरसो पुरानी बात है, बहिरामपुर रियासत में एक तेजस्वी राजा हुए। आसमान से पाताल लोक तक उनका डंका बजता था। उनकी तीन रानियां थी जो क्रमशः आकाश लोक की भाग्यसुंदरी,पाताललोक की घटोत्कपाली व मृत्युलोक की तेजस्विनी। तीनों बड़े प्रेम से रहती और राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राज कार्य मे हाथ बंटाती। राज्य में अमन-चैन तो था ही, राज्य तीव्र प्रगति पथ पर था। हर क्षेत्र में उसकी धाक जम गई थी। आसपास के राजाओं से वह अति बलशाली बन गया था। व्यक्ति जब प्रत्येक कार्य मे हर क्षेत्र में प्रगति करता है तो उसमें दम्भ नही आना चाहिए बल्कि अपनत्व और कर्तव्य की बढ़ोतरी होना चाहिए। राजा अब बदमिजाज से होने लगे थे। बात-बात पर गुस्सा व अभिमान प्रदर्शित करने लगते। एक रात स्वर्गलोक की अप्सरा भाग्यसुंदरी कुछ परेशान सी लग रही थी। राजा ने परेशानी को नज़र अंदाज़ कर महल की छत पर चन्द्र...
कनागत
लघुकथा

कनागत

********** वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) आज राम चरण अपनी उम्र को दरकिनार करते हुए।अकेले ही बनारस के घाट तक पहुंचे। बनारस के पास ही गांव में रहते थे। घर में कोई नहीं था। जो उनकी कद्र करें! सभी अपनी-अपनी भागा दौड़ी में लगे हुए थे। किसी को फुर्सत ही नहीं। यही सोच अकेले ७९ वर्ष की उम्र में हिम्मत धरकर निकल पड़े। घाट पर जाकर देखा तो जेब से रुपए कहीं नदारद हो चुके थे। कुर्ते की जेब में सिर्फ कुछ चिल्लर ही खनक रही थी। वह परेशान होकर इधर-उधर देखने लगे।तभी वहां एक भिखारन आई बोली- "बाबा श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं, कुछ दान पुण्य कर दो! रामचरण बोले- "बेटा मैं भी यही सोच कर आया था।कि अपने माता-पिता का श्राद्ध कर लू,घर में किसी को फुर्सत ही नहीं, मगर मेरे रुपए गिर गए हैं!,समझ नहीं आ रहा क्या करूं घबराई हुई सी आवाज में वह बोले,"कोई बात नहीं बाबा मुझे तो रोज मिलता रहता है। आप यहीं बैठो मैं आती हूं। करते हुए वह...
विदाई
लघुकथा

विदाई

********** रुचिता नीमा आज आसमान फिर से लालिमा लिये था, बादल किसी भी क्षण बरसने को उत्सुक थे।।। शायद उन्हें भी दर्द हो रहा था सलोनी के अपने माँ , पापा से दूर होने का कहते है विदाई बेटी की होती है, पर यहाँ तो उसकी माँ की विदाई हो गई थी। सलोनी अपने माता पिता की बहुत लाडली सन्तान थी, बचपन से नाज़ो से पली। फिर उसकी शादी भी उसके पिता ने घर के नजदीक ही एक अच्छा लड़का देखकर कर दी कि बेटी को कभी नजरों से दूर नही करेंगे। समीर भी उसे बहुत प्यार से रखता था, सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन एक दिन सलोनी की मम्मी को उनके मायके से फोन आया कि सलोनी की नानी बहुत बीमार है, और उनके मामाजी ने नानी जी की बीमारी को देखते हुए अपना ट्रांसफर दूर करवा लिया है, ताकि बीमार नानी की सेवा नही करनी पड़े। लेकिन एक बेटी से माँ का दर्द नही देख गया तो सलोनी की मम्मी को अपना घर छोड़कर उनके मायके कलकत्ता जाकर रहना पड़ रहा है। ...
देहाड़ी
लघुकथा

देहाड़ी

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) हथौड़ की चोट से सारा महौल्ला गूंज रहा था .  तपती दोपहर में गोपाल देहाड़ी पर  लगा हआ था . एक पुराना घर गिरा कर नई तीन मंजीला ईमारत बनाई जा रही थी . गोपाल और उसके साथी अब्दुल को इस पुराने ढांचे को तोड़ने का काम मिला था . गोपाल को कुछ हल्का सा बुखार भी था पर वह आराम नही कर सकता था . आखिर गरीब का घर दिन भर की देहाड़ी से ही तो चलता है .  बुखार की वजह से तेज चमकता सूरज आज उसे परेशान कर रहा था  वरना ये तो उस जैसे मजदूर का रोज का काम है . अब्दुल ने गोपाल के सुखे होंठ और बहते पसीने को देख कहा भाई" थोड़ी देर आराम कर लो,  पानी पी रोटी खा कुछ देर लेट जाओ यहीं कहीं छाया में" . मै तो कर ही रहा हूं काम और कौन सा आज ही ढह जाएगा ये ढांचा और कल नई ईमारत खड़ी हो जाएगी .   जान नही प्यारी क्या ? ठेकेदार के आने में अभी वक्त है . गोपाल हांफ रहा था .   सो अब्दुल  की बात सुन छाया ...
हिन्दी हमारी जीवनशैली एवं हमें हमारी मां की तरह प्यारी है
आलेख

हिन्दी हमारी जीवनशैली एवं हमें हमारी मां की तरह प्यारी है

शिवांकित तिवारी "शिवा" रीवा मध्य प्रदेश ******************** हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि यह हमारे अल्फाजों को समेट,हमारी बातों को सरलता एवं सुगमता से कहने का विशेष माध्यम हैं। हिन्दी बिल्कुल हमारी की तरह ही हमसे जुड़ाव रखती है और हम भी मां हिन्दी के बिना अपने अस्तित्व की कभी कल्पना नहीं कर सकते। क्योंकि मां के बिना बेटे की कल्पना बिल्कुल असम्भव है। जब भी हम हिन्दी भाषा में बात कर रहे होते है,तो हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपनी बोली में अपनेपन एवं आत्मीयता के भावों में बंधकर बात रहे है। हिन्दी का हमारी जीवनशैली में अहम योगदान है,क्योंकि और सभी भाषाओं का उपयोग हम अपने गांवों में,अपनी मांओं से या अन्यत्र लोंगो से नहीं कर सकते क्योंकि वो उतने पढ़े लिखे नहीं होते और ना ही वो हमारी और किसी भाषा के बारे में अच्छी तरह परिचित होते है,लेकिन हमारी हिन्दी भाषा से सब विशेष रूप से परिचित होते ...
संकल्प
कहानी

संकल्प

********** रचयिता : कुमुद दुबे श्रेया, पति शुभम के साथ कुछ दिन पहले ही सुरभी के पडौस में रहने आयी थी। सुरभी के मिलनसार स्वभाव के कारण उसे श्रेया के साथ घुलने -मिलने में समय नहीं लगा। सुरभी के पति राकेश रिटायर पुलिस ऑफिसर थे। ड्रायवर की सुविधा समाप्त होने के बाद सुरभी और राकेश घर से बाहर आना-जाना आँटो से ही करते थे। श्रेया कार चलाना जानती थी, अतःउसकी सहायता से सुरभी के भी बाहर के काम और आसान होने लगे थे। श्रेया के ससुर जी के अचानक बीमार होने से शुभम उन्हें माँ माला के साथ गाँव से इलाज के लिये लेकर आया। डाॅक्टर की सलाह पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पडा। ससुर जी को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई परन्तु कुछ दिन फाॅलोअप के लिये शहर में ही रुकने की सलाह दी गई। औपचारिकता के नाते सुरभी उनके स्वास्थ के हाल लेने श्रेया के घर गई। बातचीत बीच में ही रोककर श्रेया सुरभी से कहने लगी आँ...
अधुरापन
लघुकथा

अधुरापन

*********** रचियता : केशी गुप्ता झील के किनारे नीला बैठी हुई पानी की  कल कल की मधुर आवाज का आंनद ले रही थी कि तभी पिछे से बंटी ने आवाज दी , नीला अब अंदर आ जाओ सूरज ढल चुका है और ठंड भी बड़ गई है . नीला और बटीं चार दिन के लिए नैनीताल घुमने आए थे.  नैनी झील के पास ही होटल बुक किया था .  बंटी की आवाज सुन नीला उछी और उसका हाथ थामें होटल की ओर चल दी .  नीला और बंटी आज भी ये समझ नही पा रहे थे कि ऐसी क्या बात है दोनों के बीच जिसने उनहे चाहे अनचाहे अक दूसरे के इतने करीब कर दिया है कि उन्हे इब समाज की परवाह नही रही . नीला शादि के 20 साल गुजर जाने के बाद भी प्रमोद के साथ ऱिश्ता जोड़ नही पाई थी .  उसके और प्रमोद के बीच एक अजीब सी खामोशी थी , जिसने कभी उन्हे करीब होने नही दिया . कारण प्रमोद ही था शुरू से ही वह हर छोटी बात पर नीला से खफा हो कई कई महीन बात नही करता था . धीरे धीरे नीला उस सबकी आदि हो गई...
उसे कीर्ति तो मिली पर यश नही….
आत्मकथा

उसे कीर्ति तो मिली पर यश नही….

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" नोट :-- यहां "मैं"शब्द का उपयोग उस शिक्षक के लिए किया गया है,जिसको कीर्ति तो बहुत मिली पर यश नही। "जीते जी तो नही पर मरने के बाद सिर्फ तारीफे ही होती है, वो लोग भी तारीफों के पुल बांधते है, जो 'मुंह मे राम और बगल में छुरी' रखकर चलते है।" एक शिक्षक के घर 4 बेटों और 2 बेटियों ने जन्म लिया बेहद ईमानदार, सामाजिक शोषण का शिकार होते रहे व्यक्ति ने सिर्फ कर्तव्य पथ पर ईमानदारी से चलना प्रारम्भ किया। किराए पर घोड़ा लेकर घुटने-घटने कीचड़ को पार कर ५ किलोमीटर का रास्ता तय करना, बच्चों को पढ़ाना और वापस घर की बाट पकड़ना। ठंड और गर्मी में २४ इंची सायकिल का उपयोग करना। गोकलपुर, किशनगंज, क्षिप्राखटवाड़ी, बरोदा, तकीपुरा, बड़ौली, चमनचौराहा पर अध्यापन। ईमानदारी पूर्वक जीवन यापन के बावजूद जब बेटे की पढ़ाई पर व्यय का मौका आया तो 'वेतन अत्यंत कम' बेटे का स्वप्न चकनाच...
हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य
कविता, व्यंग्य

हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य

********* रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . .लेखिका परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दु...
सांस्कृतिक प्रशिक्षण में हिंदी विरोध
आलेख, स्मृति

सांस्कृतिक प्रशिक्षण में हिंदी विरोध

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" २००७ में मुझे शासन स्तर (डाइट प्राचार्य श्री अनिल जी चतुर्वेदी और डीईओ-श्रीमती माया मालवीय इंदौर) से भारतीय सांस्कृ तिक प्रशिक्षण लेने केंद्रीय सांस्कृतिक स्रोत प्रशिक्षण  (सीसीआरटी.) हैदराबाद भेजा गया। २१ दिनी प्रशि क्षण में हमने निर्मल पेंटिंग, मुखौटे बनाना और बुटीक प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, मलयालम, उड़िया, कन्नड़ भाषा के प्राध्यापकों के व्याख्यान सुने।        प्रारंभिक दिवस हमने उपसंचालक सीसीआरटी श्री पी.एन.बालन द्वारा सभी प्रशिक्षणार्थियों से पूछा कि यहां प्रशिक्षण अंग्रेजी में होगा तो हिंदी भाषी राज्यों के समस्त प्रशिक्षणार्थियों के साथ मैने भी अपना स्वर मिलाते हुए कहा-"श्रीमान हम हिंदी भाषी, विदेशी भाषा मे प्रशिक्षण ले यह उचित है क्या ? तब पी.एन.बालन बोले यहां वो लोग भी है जो हिंदी नही जानते या हिंदी कम आती है। तो हमने...
आदर्श संस्कार शाला एक अनूठा संस्थान
संस्मरण

आदर्श संस्कार शाला एक अनूठा संस्थान

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" मथुरा : आदर्श संस्कार शाला एक सुसंस्कारित समुह हैं। जहाँ संस्कार और नवाचार को प्रथम पायदान हांसिल है।मानवीय मूल्यों पर कार्यरत संस्था "आदर्श युवा समिति" की विशेष कार्य परियोजना "आदर्श संस्कार शाला" द्वारा १ सितंबर २०१९ को आर. सी.ए. गर्ल्स डिग्री कॉलेज मथुरा उत्तरप्रदेश में "संस्कार शिक्षा रत्न"अवार्ड से देश के १७ राज्यों के नामचीन नवाचारी शिक्षाविदों का बहुमान किया गया। संस्था समन्वयक श्रद्धेय दीपक गोस्वामी जी एक धूमकेतु की तरह सभी विद्वतजनों का अभिवादन कर रहे थे वहीं सारी व्यव स्थाओं के हर एंगल पर अपना ध्यान भी दे रहे थे। उनका कार्य के प्रति समर्पणऔर एकाग्रता के साथ असाधारण सा व्यक्तित्व हमे काफ़ी प्रभावित कर रहा था। प्रातः ९-३० पर हाल मुकाम हमने उपस्थिति दर्ज करवाई। साहित्य प्राप्त किया और स्थान ग्रहण किया द्वितीय पंक्ति में।नियत समय पर कार्यक्रम...
मोहब्बत बड़ी ‘फालतू’ चीज है
व्यंग्य

मोहब्बत बड़ी ‘फालतू’ चीज है

======================= रचयिता : आशीष तिवारी "निर्मल" सन् १९७८ में फिल्म आई थी 'त्रिशूल' जिस पर साहिर लुधियानवी साब द्वारा लिखा हुआ एवं लता जी किशोर कुमार जी के युगल स्वर में गाया हुआ एक गीत 'मोहब्बत बड़े काम की चीज है' काफी लोकप्रिय हुआ था। शायद...!ऐसा संभव रहा होगा कि उन दशकों में मोहब्बत बड़े काम की चीज रही होगी तभी तो यह गीत लिखा गया था। मोहब्बत करके लैला-मजनूं,शीरी-फरहाद बिना सोशल मीडिया में वायरल हुए ही लोकप्रिय हो गए और उनकी मोहब्बत 'ट्रेंड' पर रही। उनके किस्से कहानियों को सुनते-सुनते मोहब्बत करने की सनातनी परम्परा तभी से चली आ रही है। एक दौर ऐसा भी आया जब मोहब्बत करना मतलब पीएचडी करने जैसा होता था भोली भाली सूरत जिस पर मन ही मन मर मिटे होते थे उसका नाम और पता,पता करते-करते उसकी शादी का कार्ड घर आ जाता था, और आशिक को तभी पता चलता था कि उसकी लैला का नाम 'लक्ष्मीरनिया' था जो अब किसी...
शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार
आलेख

शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" छात्रों को पूरे समय व्यस्त रखा जाएगा तो वे निश्चित रूप से सफलता पाएंगे। व्यस्त रखने के पूर्व इन बातों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। १ - छात्रों के साथ मित्रवत भाव नवाचार का पहला पद है। २ - प्रत्येक जाति,धर्म,गरीब-अमीर,दादा बहादुर हो या सीधा सा प्राणी सब छात्रों के साथ एकत्व भाव । उनकी गलती पर दंड की बजाय पुरस्कार दीजिये- वो चाहे जिस अनुसार हो यथा- उनसे गीत,कविता,भजन, कहानी सुविचार, पहेली,कहावत,चुटकुले सुनकर ।              या -डांस (नृत्य) करवाकर -मस्ती के साथ दंड-बैठक लगवाकर. -मैदान में दौड़ लगवाकर। -कोई चित्र बनवाकर -आसपास के वातावरण की जानकारी लेकर। -छात्र के मकान में खिड़की-दरवाज़े की बात पूछकर।              या -टॉफी-बिस्किट देकर ।  बच्चों में इस पहल का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मैंने इन गतिविधियों का उपयोग किया है। ३ - "विनोद ...
काना
कहानी

काना

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" (बहुत साल पहले की घटना पर आधारित) इंदौर। कालानी नगर से चंदन नगर होते हुए फूटी कोठी, हवा बंगला, केट, राजेन्द्र नगर के लिए रास्ते निकलते है। बहुत दिनों पहले हमें अक्सर ये जानकारियां मिलती रहती कि अमुक बुजुर्ग ने दर्दनाक हादसे के बाद दिव्यांग हो जाने पर भी भीख मांगने की बजाय कमाई करके पेट भरने को महत्व दिया। मातेश्वरी देवी ने तूफान में घरपरिवार उजड़ जाने के बाद भी हिम्मत नही हारी, वो आज भी जिंदा है और दान-धर्म करके अपना जीवन यापन कर रही है। धन बहुत है पर परिवार में सिर्फ और सिर्फ वो अकेली है। सुरेश बंजरिया की लघु फ़िल्म-"सच्ची सहायता शनि साधक की" में एक दिव्यांग ने आर्थिक मदद लेने से इनकार कर दिया। नेवरी गांव में तो जैसे महिला पर पहाड़ टूट पड़ा। पूरे परिवार को आसमानी बिजली ने लील लिया। ऐसी ही एक दुखियारी की कहानी को ला रहा हूँ....शीर...
तोहफा
लघुकथा

तोहफा

==================== रचयिता : माधुरी शुक्ला राहुल को दादी बहुत प्यार करती है। वह भी दादी का खूब ख्याल रखता है पापा-मम्मी से भी ज्यादा। दादी उसे जब भी अपने जमाने की बातें सुनातीं तो उसमें पक्की सहेली सरला का जिक्र जरूर आता। उनके बारे में बात करते वक्त दादी के चेहरे पर खुशी तैर जाया करती थी। पहले सरला दादी उनके यहां आ जाया करती थी पर अब बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य की खराबी के चलते काफी समय से उनका आना नहीं हुआ। आज दादी का जन्मदिन है। सब उन्हें शुभकामनाएं और तोहफे दे रहे हैं। राहुल ने कुछ अलग करने की ठान रखी है। वह शाम को दादी को पहले मंदिर फिर सरला दादी के घर ले जाता है। दोनों को खूब खुश देखकर उसे लगता है जन्मदिन पर दादी के लिए इससे बड़ा तोहफा शायद ही दूसरा कोई होता। फिर दादी भी तो बार-बार यही कह रही है सरला से मिलकर आज मेरा दिन सार्थक हो गया। लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति...
ऑन लाइन खरीदी का बहिष्कार 
आलेख

ऑन लाइन खरीदी का बहिष्कार 

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" समसामयिक विषय पर आलेख विदेशों की तर्ज पर भारत में भी ऑन लाइन खरीदी का दौर चल पड़ा है। विदेशों में बच्चे बड़े होकर मम्-डेड से अलग अपनी जिंदगी जीना शुरू कर देते है।कभी-कभी आपस मे कहीं मिल जाये तो दोपहर का खाना(लंच) या रात्रि भोज (डिनर)के लिए एक दूसरे को आमंत्रित करते है,हमारा पड़ोसी कौन ? हमारे रिश्तेदार कौन ये विदेशों में(अपवाद छोड़कर) नही होता। जबकि माता-पिता, भाई-बहन,काका-काकी,भैया-भाभी साथ-साथ रहकर प्रेम और अपनत्व के साथ जीवन जीते है। वहीं मेरे मामा के लड़के की लड़की की सास की भुआ की बेटी की सास की ननंद है,मेरी बेटी की ननद की ननद की भुआ की काकी की जिठानी की बड़ी बहन के बेटे का साला है ये! कितने लम्बे-चौड़े रिश्ते हम भारतीय पालते है। अरे साहब रिश्ते तो रिश्ते पड़ोसी के रिश्तेदारों से भी हम रिश्ते पाल लेते है।शहरों में पूरी कालोनी वाल...
दो रास्ते
लघुकथा

दो रास्ते

========================== रचयिता : विजयसिंह चौहान सोलह १७ बरस की उम्र में बंधन और रेखा की नजरें मिली थी। उनदिनों गर्मी की छुट्टियों के मायने , मौज मस्ती और अल्हड़पन के बीच रोटा- पानी खेलते-खेलते बंधन के दिलो-दिमाग में प्यार की रेखा कब उभर आई, पता ही ना चला । आसमानी कलर की फ्रॉक में गहरे फूल रेखा पर खूब जचते थे। प्रेम की कोपल परवान चढ़ रही थी वही इजहार न कर पाने के कारण दोनों का घरोंदा कहीं और बस गया । पुराना समय था इसलिए कुछ इजहार करना दोनों के लिए नामुमकिन सा था । मन मसोसकर सुनहरी यादें दोनों के दिलों में  धड़कती रही। घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश में २० सावन कैसे गुजर गए मालूम ही ना चला मगर आज भी बारिश की बूंद झरते बालों की याद मैं भिगो दिया करती है। सोशल मीडिया ने जैसे-तैसे मुलाकात करा दी। आभासी दुनिया (मोबाइल ) से वास्तविक धरातल परआने में भी दोनों को बरसो लग गए काफी समय बाद दिलों...
मल्टियों के असल मालिक कौन ….?
आलेख

मल्टियों के असल मालिक कौन ….?

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" समसामयिक विषय पर आधारित देश मे मल्टियों पर मल्टियाँ तानी जा रही है। यही स्थिति हमारे मध्यप्रदेश और औद्योगिक राजधानी-इंदौर में भी बनती जा रही है। १ बीएचके, २ बीएचके के अतिरिक्त रो हाउस, बंगलो, अपना घर आदि-आदि नाम से लगा तार सीमेंट कंक्रीट के जंगल तैयार किये जा रहे है जहां मानव निवास करेंगे। प्रतिदिन समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए जा रहे है। सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। फोन कॉल के द्वारा भी लोगों को साइट पर बुलाया जाकर उन्हें घुमाया जा रहा है। विभिन्न प्रकार के ऑफर चल रहे है। पुरस्कारों के लालच दिए जा रहे है। फटाफट लोन दिए जाने के लिए अनेकों बैंक के साथ लोन प्रोवाइड करवाने वाली संस्थाएं भी अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रयास को आतुर दिखाई दे रहे है। वर्तमान में लोगों को ऐसा भी लगने लगा है कि भविष्य में पता नही हम मकान य...