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गद्य

मानव-मूल्य
लघुकथा

मानव-मूल्य

********* डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) वह चित्रकार अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति को निहार रहा था। चित्र में गांधीजी के तीनों बंदरों  को विकासवाद के सिद्दांत के अनुसार बढ़ते क्रम में मानव बनाकर दिखाया गया था। उसके एक मित्र ने कक्ष में प्रवेश किया और चित्रकार को उस चित्र को निहारते देख उत्सुकता से पूछा, "यह क्या बनाया है?" चित्रकार ने मित्र का मुस्कुरा कर स्वागत किया फिर ठंडे, गर्वमिश्रित और दार्शनिक स्वर में उत्तर दिया, "इस तस्वीर में ये तीनों प्रकृति के साथ विकास करते हुए बंदर से इंसान बन गये हैं, अब इनमें इंसानों जैसी बुद्धि आ गयी है। ‘कहाँ’ चुप रहना है, ‘क्या’ नहीं सुनना है और ‘क्या’ नहीं देखना है, यह समझ आ गयी है। अच्छाई और बुराई की परख - पूर्वज बंदरों को ‘इस अदरक’ का स्वाद कहाँ मालूम था?" आँखें बंद कर कहते हुए चित्रकार की आवाज़ में बात के अंत तक दार्शनिकता और बढ़ गयी थी। "ओह! ...
कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?
आलेख

कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?

********* विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. हमारे देश मे तामिलनाडू राज्य मे हिंदी भाषा के लिये कुछ असंवेदनशीलता देखने को मिलती है और वैसा हमे प्रत्यक्ष अनुभव भी होता है परंतु यह भी सच हैं कि, तामिलनाडू राज्य मे उनकी मातृभाषा के लिये गौरव, सन्मान और अभिमान और आत्मीयता भी उन्हें अनुभव होती है I राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे मे तामिल जनता से और राज्य के राज्यकर्ताओ से अन्य भारतीयो का कितना भी मतभेद हो परंतु एक राष्ट्रभक्त होने के नाते हमे निश्चित ही तामिलों की भावनाओ का आदर भी करना चाहिये, और मातृभाषा के प्रती उनके लगाव के कारण हमे गौरवान्वित भी होना चाहियेI हमे इस हेतू निश्चित ही संतुष्ट भी होना चाहिये कि एक राज्य की भाषा (तमिल) को, संस्कृती को और अस्मिता को सहेजकर और सुरक्षित रखने के लिये वहां के लोग जी जान से जुटे है और भावनिक दृष्टी से अपनी मातृभाषा से भी जुडे हुए है परंतु राष्ट्रभाषा हिंद...
उड़नखटोला
लघुकथा

उड़नखटोला

********** नीरजा कृष्णा पटना 'ये रूपा अभी तक बिस्तर तोड़ रही है, नौ बज रहा है। इस तरह पड़े रह कर तो ये लड़की कभी भी जिम्मेदारी नहीं सीख पाएगी' ना चाहते हुए भी आनन्द बाबू की आवाज़ काफ़ी तल्ख हो गई। 'ज़रा धीमे बोलिए ना! बच्ची है, सब सीख जाएगी! कितनी प्यारी सुन्दर हैं अपनी रूपा! देख लेना, एक दिन कोई राजकुमार आकर मेरी फूल सी बच्ची को उड़नखटोले पर बैठा कर ले जाएगा" अब तो सहनशक्ति जवाब दे गई उनकी, "शीला! कौन से जमाने में रह रही हो? अब ना कोई राजकुमार आएगा, ना कोई उड़नखटोला आएगा, बेटा बेटी सब बराबर होते है, अच्छी शिक्षा दो, हर क्षेत्र में यथासंभव काबिल बनाओ...यही आज के युग की माँग है।" पति की बातें सुन कर वो बहुत सोच में पड़ गई .... 'क्या सचमुच उनकी प्यारी गुड़िया के लिए कोई राजकुमार उड़नखटोले पर नहीं आएगा? क्या सचमुच उनकी रूपा के असीम रूप का कोई मूल्य नहीं है? सोचते सोचते उनको ध्यान आ गया पडौस...
वेणी वाली दुर्गा
लघुकथा

वेणी वाली दुर्गा

********** स्वाति जोशी पुणे देवी मंदिर के आहते में सजी छोटी सी दुकान पर स्मिता सामान ले रही थी। हार, फूल, नारियल,धूप, कपूर, प्रसाद सब ले लिया था, तभी वहाँ रखी लाल रंग की जरी बाॅर्डर की साडी पर उसकी नज़र पडी, कुछ कहने के लिये मुडी, तो देखा पति सतीश दुकान के बाहर कुछ दूरी पर मोबाईल में सिर गडाये खडा था। वहीं से आवाज़ देकर स्मिता ने पूछा, 'ये साडी भी ले लूं देवी माँ के लिये?' 'हाँ,हाँ ले लो’ सतीश ने सिर हिला कर सहमति दी। 'ये औरतें भी ना... एक तो नवरात्रि में भीड़-भाड़ में इनके साथ मंदिर चलो, और फिर, 'ये भी ले लूंँ?, वो भी ले लूँ?''... सतीश मन ही मन बुदबुदाया..मगर पत्नी से कुछ भी कहने के बजाय, हाँ कहना उसे ज्यादा आसान लगा। वैसे भी मंदिर में चारों तरफ लोग ही लोग थे, जहां जगह मिली वहाँ छोटी छोटी दुकानें भी लगा रखी थीं हार- फूल, नारियल वालों ने, कमाई का सीज़न था उनका! उपर से बारिश की चिक-चिक......
सड़क का गढ्ढा
व्यंग्य

सड़क का गढ्ढा

********** जितेंद्र शिवहरे महू (इंदौर) मुख्य बाजार की सड़क से गुजरना हुआ। वहीं कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ जमा थी। सड़क के इर्द-गिर्द बहुत से लोग खड़े थे। सभी की आखें नीचे सड़क पर थी। मुझे भी उत्सुकता हुई। मैंने वहां भीड़ के नजदीक जाकर देखा। सड़क के बीचों-बीच एक गहरा गढ्ढा हो गया था। राहगीर जैसे-तैसे बचते बचाते निकल रहे थे। दो पहिया वाहन तो गढ्ढे के आसपास से निकल जाते मगर चार पहिया वाहन युं ही सड़क की दोनों ओर पंक्ति बध्द खड़े थे। चार पहिया वाहन स्वामियों को अमिट विश्वास था कि कोई न कोई उस गढ्ढे को भरने अवश्य आयेगा। तब वे आराम से निकल जायेंगे। इसलिए वे निश्चिंत होकर अपनी-अपनी कार में बैठे थे। कुछ लोग गाड़ी से नीचे उतर कर सड़क किनारे भुट्टें की दुकानों पर टूट पड़े थे। मैंने साहस कर कहा- "अरे भाई कोई म्यूनिसिपल ऑफिस को फोन करो। वहां से कोई आयेगा तब ही पेंच वर्क शुरू होगा।" मेरी बात वहां सुन...
कैलाश विजयवर्गीय एवं चिंटू वर्मा विश्व बुक ऑफ रेकॉर्ड लंदन द्वारा सम्मानित
आलेख

कैलाश विजयवर्गीय एवं चिंटू वर्मा विश्व बुक ऑफ रेकॉर्ड लंदन द्वारा सम्मानित

*********** विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर बात उन दिनों की है जब धार्मिक गतिविधियों के प्रचार - प्रसार की शुरुआत को कोई ५,६ साल ही हुए थे। उस काल मे चुनिंदा जगह नवरात्रि में गरबे, भजन, कवि गोष्ठियां,कवि सम्मेलन, आर्केस्ट्रा आदि होना प्रारम्भ हुए थे। ऐसे वक्त में नगर के एक उदीय मान बालक जिसकी उम्र लगभग १७ वर्ष थी ने हिम्म त जुटाई और अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर अति प्राचीन देवी माता मंदिर पर प्रथम भजन संध्या का आयोजन किया, जिसमे एक सशक्त राजनेता ने उस भजन संध्या में अपनी युवा संगीत मंडली के साथ भजनों की शुरुआत की। छोटा सा मंच ओटले पर बना हुआ, वही माता एवम बहनों की अपार भीड़, पुरुषों का भी भारी जनसमूह इस भजन संध्या में भजनों की बयार का आनन्द लेने उप स्थित था। रात्रि ३ बजे तक भजन संध्या में माता के भजनों एवं राष्ट्रीय गीतों के साथ "मां तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, प्यारी-प्यारी है ...
कक्षा दसवीं के बाद सही विषय का चुनाव
आलेख

कक्षा दसवीं के बाद सही विषय का चुनाव

************ पूर्वा परमार राऊ, इंदौर अक्सर हमारे मित्र या परिचित हमसे पूछते हैं कि क्या दसवीं के बाद मैं अर्ट्स का चुनाव करूं या गणित ? क्या मैं इंजीनियर बनूं या डॉक्टर? क्या मै गायक बनकर पैसे कमा सकता हूं? क्या नृत्य मेरी आजीविका का साधन बन सकता है? ऐसे असमंजस से हर कोई गुजरता है। तो ऐसे में सही विषय का चुनाव आपके लिए आगे के रास्ते खोलता है और आपको अपने पसंदीदा नौकरी या व्यसाय चुनने में मदद करता है। इस स्तिथि में सबसे अहम भूमिका माता पिता की होती है। ज़रूरी यह है कि पालक अपने बच्चों से चर्चा करें उनका मत जानें क्युकिं ऐसे समय में जब हम दसवी की परीक्षा दे रहें हैं, हमें समझ नहीं आता कि हम किस ओर आगे बढ़ें? अब ऐसे वक्त में हमें यानि विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को क्या करना चाहिए? आप जानें कि आपके बालक कि रुचि किस विषय में है। उसके बाद उस दिशा में पढ़ रहे या कार्य कर रहे रिश्तेदा...
दोस्त की पहचान
लघुकथा

दोस्त की पहचान

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) राम और श्याम दोनो बहुत ही गहरे मित्र थे .  उनकी मित्रता बचपन की थी, साथ खेले और साथ ही बड़े हुए . बारवीं की  परिक्षा खत्म हो चुकी थी .  विध्यालय की शिक्षा के पश्चात अब आगे विश्व विध्यालय में जाने का समय था .  अन्य विधायर्थियों की भातिं ये दोनों मित्र भी इसी चिंता में थे कि आगे क्या और कैसे किया जाए  . राम जहां  पढ़ाई में ठीक सा था तो श्याम सदैव कक्षा में अवल  स्थान प्राप्त करता था .   दोनो के परिवारों में रहन -सहन  की भी अन्तर था .  परन्तु इन सब अन्तर के बावजूद दोनों में अटूट मित्रता रही .  विध्यालय के परिणीम स्वरूप दोनों को अलग अलग विश्व विध्यालय में दाखिला मिला .  वह दोनो ही अपनी अपनी दिन चर्या और पढ़ाई में व्यस्त हो गए . अब वह कभी-कभार ही मिल पाते और  पिछले समय को याद करते . फिर एक दिन राम ने अपने जन्मदिन की पार्टि रखी और अपने सभी नए पूराने दोस्तो ते अम...
बर्ताव
लघुकथा

बर्ताव

अविनाश अग्निहोत्री इंदौर म.प्र. ******************** राजेश के ड्राइवर पिता को जब उसके मालिक के बच्चे भी नाम से ही पुकारते।तो यह बात राजेश को बड़ी बुरी लगती।वो सोचता कि आज भले वो गरीब है।पर एक दिन उसके पास भी यही शानो शौकत होगी।तब उसके पिता के नाम को भी सब अदब से लिया करेंगे।उसके बाल मन का ये विचार बड़ा होते होते दृढ़ संकल्प बन गया।और अपनी अच्छी पढ़ाई और आरक्षण के फायदे के चलते,आज वो भी एक बड़ा अधिकारी बन चुका है।अब उसके पास भी रसूख के साथ वो सब है।जिसकी कभी बचपन मे उसने कल्पना की थी।आज उसके साथ उसके पूरे परिवार को भी उसकी इस तरक्की पर नाज है।पर अब वो भी अपने पिता की उम्र के, अपने ड्राइवर व माली आदि नोकरो को उनका नाम लेकर ही पुकारता है।और जरा जरा सी भूलो पर सबके सामने उन्हें फटकारने में अपनी शान समझता है।जो आज उसके नोकरो के बच्चों को भी वैसे ही बुरा लगता है।जैसे कभी उसे लगता था।पर आज शायद रा...
हिचकिचाहट
लघुकथा

हिचकिचाहट

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) संजय और नीलम रिश्ते में यूं तो एक दूसरे के कुछ नही लगते थे, पर एक ही बिरदारी से थे . बस इसी नाते आपस में जान पहचान थी . फिर एक बार किसी करीबी रिश्तेदार के यंहा, उनके बेटे की शादि में नीलम का जाना हुआ . इतफाक से वंहा संजय भी आया हुआ था . शादि से पहले की भी कई रस्में होती है, जैसे महंदी, सगन इत्यादि .  बाहर से आने वाले सभी अतिथी तीन , चार दिन का प्रोग्राम बना कर आए हुए थे . नीलम और संजय भी चार दिन के लिए दिल्ली से जयपूर पहुंचे थे . एक ही शहर के होने के बावजूद भी कभी दोनों का आमना सामना नही हुआ, पर यहां शादि के इन चार दिनों में वह एक दूसरे के बेहद करीब आ गए . दोनों को यूं लग रहा था जैसे वह एक दूसरे को बहुत पहले से जानते और समझते है .  चार दिन का समय अच्छे से गुजर गया . वक्त का पता ही नही चला फिर वापसी की उड़ान भरने का समय आ गया . दोनो ने एक दूसरे का नम्बर लेत...
एक पौधा बगिया का
लघुकथा

एक पौधा बगिया का

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज सुबह बहुत दिनों के बाद परिवार के सभी सदस्य बागीचे में साथ बैठकर धुप सेंक रहे थे ... तभी बबली भी बिस्तर से उठकर अपने बाबूजी की गोद में आ बैठी .... हंसी ठिठोलियों का दौर चल रहा था की बबली को देख काकी बोल उठी ... अरे बबली अब उठी हो सोकर ... इतनी देर कोई सोता है भला ... कल ससुराल जाओगी तो वंहा यह सब नहीं चलने वाला ... दादी ने भी काकी की बात का समर्थन किया ... मै नहीं जाउंगी कोई ससुराल-वसुराल, यहीं रहूंगी अपने माँ-बाबूजी के पास ... आप सब के बिना मै वहां कैसे रहूंगी ... क्या आप मेरे बिना रह सकते हैं ... संसार की रीत है ये सबको जाना होता है रुंआसी होकर काकी बोल पड़ी ... तभी बाबूजी ने बबली से कहा अरे बबली तुमने जो पौधा पीपल के नीचे लगाया था उसे खाद पानी दिया या नहीं चलो देखें क्या हाल है उसके और दोनों पौधे के पास जा पहुंचे और ...
वो नहीं आई
लघुकथा

वो नहीं आई

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) उस दिन अनु बिल्कुल निढाल सा हो गया था जबकि इतनी खूबसूरत शाम का सुहाना सा मौसम था जिसे देखकर किसी का भी मन मोह जाता और खुद को वहाँ रोके बिना नहीं जा पा रहा था लेकिन अनु अब भी एक टक उसी राह पर अपनी नजरें गढाए हुए बैठा था, जिस तरफ कोमल सिसकती हुई तेज कदमों से चली गई थी, हल्की हल्की बूँदें फ़ुहार नुमा आसमान से गिर रहीं थी जो बूँदें अब पानी बनकर अनु के बालों से खेलती हुई उसके रेगिस्तान की तरह सूखे और लालमा से भरे हुए गालों पर दस्तक देने ही वाली थी कि अनु ने एकदम से हाथ से पानी को हटाया और नदी के पानी की तरफ़ देखकर फ़िर से पिछली मुद्रा में लीन हो गया,क्योंकि अनु को भरोसा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास था कि कोमल मुझे छोड़कर नहीं जा सकती और फ़िर इस स्थिति में तो बिल्कुल भी नहीं कि जब मैं उससे कह चुका हूँ, कि कोमल तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी पूर...
गरुण पुराण के अनुसार दूसरे का घर तोड़ने वाले व्यक्ति को नरक में भी जगह नहीं मिलती
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गरुण पुराण के अनुसार दूसरे का घर तोड़ने वाले व्यक्ति को नरक में भी जगह नहीं मिलती

********** अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गरुण पुराण के हिसाब से दूसरों का परिवार खराब करने वाले व्यक्तियों को नर्क में भी स्थान नहीं मिलता ऐसे व्यक्ति मृत्यु पश्चात भी प्रेत योनि को प्राप्त होते  हैं और दरबदर भटकते रहते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं होता मिट्टी के घड़े और परिवार की कीमत उसे बनाने वाले को पता होती है तोड़ने वाले को नहीं इसलिए सदैव हर किसी व्यक्ति के घर को टूटने से बचाना चाहिए ना कि उसे तोड़ने का प्रयास करना चाहिए कुछ ईर्ष्या वान व्यक्ति अपने दुख से नहीं दूसरे के सुख से परेशान होते हैं यह वह व्यक्ति होते हैं जो पूरी जिंदगी सब कुछ होते हुए भी बेचैन रहते हैं क्योंकि उन्हें इस बात से परेशानी होती है कि सामने वाला व्यक्ति सुखी जीवन किस प्रकार व्यतीत कर रहा है ऐसे व्यक्ति अच्छा खासा कमाते हुए भी ना तो जीवन भर कुछ जोड़ पाते हैंऔर ना ही पारिवारिक सुख प्राप्त कर पाते हैं ...
पहचान
लघुकथा

पहचान

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) सुहासनी  प्रातः चार बजे ही उठ गई  .  आज उन्हे मां का नाम लिखवाने पेहोवा जो जाना था . महीना भर हुआ मां का स्वर्गवास हुए .   यूं तो कई रातों से वह ठीक से सो नही पा रही थी .   उसका अपनी मां से रिश्ता ही बहुत गहरा था .  मगर संसार का अपना नियम है .  एक वक्त पर  अनचाहे वो व्यक्ति भी चला जाता है , जिसके बिना आपको लगता है जीना मुशिकल है .  पापा और मोहन जो उसके मामा का लड़का है ने पेहोवा जो कुूरूक्षेत्र के नजदीक है,  साथ जाना था .  सुहासनी नहा धोह कर तैयार हो पापा के साथ पेहोवा के लिए निकल पड़ी .  मोहन का घर रास्ते में पडता था , तो उसे ऱास्ते से ही ले लिया . "आदमी चला जाता है और रस्में रह जाती है " सुहासनी ने  भराई हुई आवाज में कहा . मैं तो जाना नही चाहता था , पापा बोले .  हमारे यहां ऐसा कोई रिवाज नही है .  हां मगर पंडित जी ने कहा जाना चाहिए .  पंडित जी जिन्हे मां ...
राजा की तीन रानी
कहानी

राजा की तीन रानी

*********** विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर बरसो पुरानी बात है, बहिरामपुर रियासत में एक तेजस्वी राजा हुए। आसमान से पाताल लोक तक उनका डंका बजता था। उनकी तीन रानियां थी जो क्रमशः आकाश लोक की भाग्यसुंदरी,पाताललोक की घटोत्कपाली व मृत्युलोक की तेजस्विनी। तीनों बड़े प्रेम से रहती और राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राज कार्य मे हाथ बंटाती। राज्य में अमन-चैन तो था ही, राज्य तीव्र प्रगति पथ पर था। हर क्षेत्र में उसकी धाक जम गई थी। आसपास के राजाओं से वह अति बलशाली बन गया था। व्यक्ति जब प्रत्येक कार्य मे हर क्षेत्र में प्रगति करता है तो उसमें दम्भ नही आना चाहिए बल्कि अपनत्व और कर्तव्य की बढ़ोतरी होना चाहिए। राजा अब बदमिजाज से होने लगे थे। बात-बात पर गुस्सा व अभिमान प्रदर्शित करने लगते। एक रात स्वर्गलोक की अप्सरा भाग्यसुंदरी कुछ परेशान सी लग रही थी। राजा ने परेशानी को नज़र अंदाज़ कर महल की छत पर चन्द्र...
कनागत
लघुकथा

कनागत

********** वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) आज राम चरण अपनी उम्र को दरकिनार करते हुए।अकेले ही बनारस के घाट तक पहुंचे। बनारस के पास ही गांव में रहते थे। घर में कोई नहीं था। जो उनकी कद्र करें! सभी अपनी-अपनी भागा दौड़ी में लगे हुए थे। किसी को फुर्सत ही नहीं। यही सोच अकेले ७९ वर्ष की उम्र में हिम्मत धरकर निकल पड़े। घाट पर जाकर देखा तो जेब से रुपए कहीं नदारद हो चुके थे। कुर्ते की जेब में सिर्फ कुछ चिल्लर ही खनक रही थी। वह परेशान होकर इधर-उधर देखने लगे।तभी वहां एक भिखारन आई बोली- "बाबा श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं, कुछ दान पुण्य कर दो! रामचरण बोले- "बेटा मैं भी यही सोच कर आया था।कि अपने माता-पिता का श्राद्ध कर लू,घर में किसी को फुर्सत ही नहीं, मगर मेरे रुपए गिर गए हैं!,समझ नहीं आ रहा क्या करूं घबराई हुई सी आवाज में वह बोले,"कोई बात नहीं बाबा मुझे तो रोज मिलता रहता है। आप यहीं बैठो मैं आती हूं। करते हुए वह...
विदाई
लघुकथा

विदाई

********** रुचिता नीमा आज आसमान फिर से लालिमा लिये था, बादल किसी भी क्षण बरसने को उत्सुक थे।।। शायद उन्हें भी दर्द हो रहा था सलोनी के अपने माँ , पापा से दूर होने का कहते है विदाई बेटी की होती है, पर यहाँ तो उसकी माँ की विदाई हो गई थी। सलोनी अपने माता पिता की बहुत लाडली सन्तान थी, बचपन से नाज़ो से पली। फिर उसकी शादी भी उसके पिता ने घर के नजदीक ही एक अच्छा लड़का देखकर कर दी कि बेटी को कभी नजरों से दूर नही करेंगे। समीर भी उसे बहुत प्यार से रखता था, सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन एक दिन सलोनी की मम्मी को उनके मायके से फोन आया कि सलोनी की नानी बहुत बीमार है, और उनके मामाजी ने नानी जी की बीमारी को देखते हुए अपना ट्रांसफर दूर करवा लिया है, ताकि बीमार नानी की सेवा नही करनी पड़े। लेकिन एक बेटी से माँ का दर्द नही देख गया तो सलोनी की मम्मी को अपना घर छोड़कर उनके मायके कलकत्ता जाकर रहना पड़ रहा है। ...
देहाड़ी
लघुकथा

देहाड़ी

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) हथौड़ की चोट से सारा महौल्ला गूंज रहा था .  तपती दोपहर में गोपाल देहाड़ी पर  लगा हआ था . एक पुराना घर गिरा कर नई तीन मंजीला ईमारत बनाई जा रही थी . गोपाल और उसके साथी अब्दुल को इस पुराने ढांचे को तोड़ने का काम मिला था . गोपाल को कुछ हल्का सा बुखार भी था पर वह आराम नही कर सकता था . आखिर गरीब का घर दिन भर की देहाड़ी से ही तो चलता है .  बुखार की वजह से तेज चमकता सूरज आज उसे परेशान कर रहा था  वरना ये तो उस जैसे मजदूर का रोज का काम है . अब्दुल ने गोपाल के सुखे होंठ और बहते पसीने को देख कहा भाई" थोड़ी देर आराम कर लो,  पानी पी रोटी खा कुछ देर लेट जाओ यहीं कहीं छाया में" . मै तो कर ही रहा हूं काम और कौन सा आज ही ढह जाएगा ये ढांचा और कल नई ईमारत खड़ी हो जाएगी .   जान नही प्यारी क्या ? ठेकेदार के आने में अभी वक्त है . गोपाल हांफ रहा था .   सो अब्दुल  की बात सुन छाया ...
हिन्दी हमारी जीवनशैली एवं हमें हमारी मां की तरह प्यारी है
आलेख

हिन्दी हमारी जीवनशैली एवं हमें हमारी मां की तरह प्यारी है

शिवांकित तिवारी "शिवा" रीवा मध्य प्रदेश ******************** हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि यह हमारे अल्फाजों को समेट,हमारी बातों को सरलता एवं सुगमता से कहने का विशेष माध्यम हैं। हिन्दी बिल्कुल हमारी की तरह ही हमसे जुड़ाव रखती है और हम भी मां हिन्दी के बिना अपने अस्तित्व की कभी कल्पना नहीं कर सकते। क्योंकि मां के बिना बेटे की कल्पना बिल्कुल असम्भव है। जब भी हम हिन्दी भाषा में बात कर रहे होते है,तो हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपनी बोली में अपनेपन एवं आत्मीयता के भावों में बंधकर बात रहे है। हिन्दी का हमारी जीवनशैली में अहम योगदान है,क्योंकि और सभी भाषाओं का उपयोग हम अपने गांवों में,अपनी मांओं से या अन्यत्र लोंगो से नहीं कर सकते क्योंकि वो उतने पढ़े लिखे नहीं होते और ना ही वो हमारी और किसी भाषा के बारे में अच्छी तरह परिचित होते है,लेकिन हमारी हिन्दी भाषा से सब विशेष रूप से परिचित होते ...
संकल्प
कहानी

संकल्प

********** रचयिता : कुमुद दुबे श्रेया, पति शुभम के साथ कुछ दिन पहले ही सुरभी के पडौस में रहने आयी थी। सुरभी के मिलनसार स्वभाव के कारण उसे श्रेया के साथ घुलने -मिलने में समय नहीं लगा। सुरभी के पति राकेश रिटायर पुलिस ऑफिसर थे। ड्रायवर की सुविधा समाप्त होने के बाद सुरभी और राकेश घर से बाहर आना-जाना आँटो से ही करते थे। श्रेया कार चलाना जानती थी, अतःउसकी सहायता से सुरभी के भी बाहर के काम और आसान होने लगे थे। श्रेया के ससुर जी के अचानक बीमार होने से शुभम उन्हें माँ माला के साथ गाँव से इलाज के लिये लेकर आया। डाॅक्टर की सलाह पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पडा। ससुर जी को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई परन्तु कुछ दिन फाॅलोअप के लिये शहर में ही रुकने की सलाह दी गई। औपचारिकता के नाते सुरभी उनके स्वास्थ के हाल लेने श्रेया के घर गई। बातचीत बीच में ही रोककर श्रेया सुरभी से कहने लगी आँ...
अधुरापन
लघुकथा

अधुरापन

*********** रचियता : केशी गुप्ता झील के किनारे नीला बैठी हुई पानी की  कल कल की मधुर आवाज का आंनद ले रही थी कि तभी पिछे से बंटी ने आवाज दी , नीला अब अंदर आ जाओ सूरज ढल चुका है और ठंड भी बड़ गई है . नीला और बटीं चार दिन के लिए नैनीताल घुमने आए थे.  नैनी झील के पास ही होटल बुक किया था .  बंटी की आवाज सुन नीला उछी और उसका हाथ थामें होटल की ओर चल दी .  नीला और बंटी आज भी ये समझ नही पा रहे थे कि ऐसी क्या बात है दोनों के बीच जिसने उनहे चाहे अनचाहे अक दूसरे के इतने करीब कर दिया है कि उन्हे इब समाज की परवाह नही रही . नीला शादि के 20 साल गुजर जाने के बाद भी प्रमोद के साथ ऱिश्ता जोड़ नही पाई थी .  उसके और प्रमोद के बीच एक अजीब सी खामोशी थी , जिसने कभी उन्हे करीब होने नही दिया . कारण प्रमोद ही था शुरू से ही वह हर छोटी बात पर नीला से खफा हो कई कई महीन बात नही करता था . धीरे धीरे नीला उस सबकी आदि हो गई...
उसे कीर्ति तो मिली पर यश नही….
आत्मकथा

उसे कीर्ति तो मिली पर यश नही….

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" नोट :-- यहां "मैं"शब्द का उपयोग उस शिक्षक के लिए किया गया है,जिसको कीर्ति तो बहुत मिली पर यश नही। "जीते जी तो नही पर मरने के बाद सिर्फ तारीफे ही होती है, वो लोग भी तारीफों के पुल बांधते है, जो 'मुंह मे राम और बगल में छुरी' रखकर चलते है।" एक शिक्षक के घर 4 बेटों और 2 बेटियों ने जन्म लिया बेहद ईमानदार, सामाजिक शोषण का शिकार होते रहे व्यक्ति ने सिर्फ कर्तव्य पथ पर ईमानदारी से चलना प्रारम्भ किया। किराए पर घोड़ा लेकर घुटने-घटने कीचड़ को पार कर ५ किलोमीटर का रास्ता तय करना, बच्चों को पढ़ाना और वापस घर की बाट पकड़ना। ठंड और गर्मी में २४ इंची सायकिल का उपयोग करना। गोकलपुर, किशनगंज, क्षिप्राखटवाड़ी, बरोदा, तकीपुरा, बड़ौली, चमनचौराहा पर अध्यापन। ईमानदारी पूर्वक जीवन यापन के बावजूद जब बेटे की पढ़ाई पर व्यय का मौका आया तो 'वेतन अत्यंत कम' बेटे का स्वप्न चकनाच...
हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य
कविता, व्यंग्य

हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य

********* रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . .लेखिका परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दु...
सांस्कृतिक प्रशिक्षण में हिंदी विरोध
आलेख, स्मृति

सांस्कृतिक प्रशिक्षण में हिंदी विरोध

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" २००७ में मुझे शासन स्तर (डाइट प्राचार्य श्री अनिल जी चतुर्वेदी और डीईओ-श्रीमती माया मालवीय इंदौर) से भारतीय सांस्कृ तिक प्रशिक्षण लेने केंद्रीय सांस्कृतिक स्रोत प्रशिक्षण  (सीसीआरटी.) हैदराबाद भेजा गया। २१ दिनी प्रशि क्षण में हमने निर्मल पेंटिंग, मुखौटे बनाना और बुटीक प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, मलयालम, उड़िया, कन्नड़ भाषा के प्राध्यापकों के व्याख्यान सुने।        प्रारंभिक दिवस हमने उपसंचालक सीसीआरटी श्री पी.एन.बालन द्वारा सभी प्रशिक्षणार्थियों से पूछा कि यहां प्रशिक्षण अंग्रेजी में होगा तो हिंदी भाषी राज्यों के समस्त प्रशिक्षणार्थियों के साथ मैने भी अपना स्वर मिलाते हुए कहा-"श्रीमान हम हिंदी भाषी, विदेशी भाषा मे प्रशिक्षण ले यह उचित है क्या ? तब पी.एन.बालन बोले यहां वो लोग भी है जो हिंदी नही जानते या हिंदी कम आती है। तो हमने...
आदर्श संस्कार शाला एक अनूठा संस्थान
संस्मरण

आदर्श संस्कार शाला एक अनूठा संस्थान

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" मथुरा : आदर्श संस्कार शाला एक सुसंस्कारित समुह हैं। जहाँ संस्कार और नवाचार को प्रथम पायदान हांसिल है।मानवीय मूल्यों पर कार्यरत संस्था "आदर्श युवा समिति" की विशेष कार्य परियोजना "आदर्श संस्कार शाला" द्वारा १ सितंबर २०१९ को आर. सी.ए. गर्ल्स डिग्री कॉलेज मथुरा उत्तरप्रदेश में "संस्कार शिक्षा रत्न"अवार्ड से देश के १७ राज्यों के नामचीन नवाचारी शिक्षाविदों का बहुमान किया गया। संस्था समन्वयक श्रद्धेय दीपक गोस्वामी जी एक धूमकेतु की तरह सभी विद्वतजनों का अभिवादन कर रहे थे वहीं सारी व्यव स्थाओं के हर एंगल पर अपना ध्यान भी दे रहे थे। उनका कार्य के प्रति समर्पणऔर एकाग्रता के साथ असाधारण सा व्यक्तित्व हमे काफ़ी प्रभावित कर रहा था। प्रातः ९-३० पर हाल मुकाम हमने उपस्थिति दर्ज करवाई। साहित्य प्राप्त किया और स्थान ग्रहण किया द्वितीय पंक्ति में।नियत समय पर कार्यक्रम...