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गद्य

सफेद दाग़
कहानी

सफेद दाग़

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** दीपक ने आज भी कुछ नहीं कहा। हमेशा की तरह वह आज भी हंसता और हंसाता रहा। शाम के चार कब बजे पता ही नही चला। स्कूल की छुट्टी का समय हो चूका था। अवन्तिका बुझे मन से अपना सामान समटने लगी। मगर वह निराश नहीं थी। उसे विश्वास था कि दीपक आज अपने दिल की बात बता देगा। वह अवन्तिका से मिला भी किन्तु उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। दीपक ने अभी छः माह पुर्व ही स्कूल ज्वाइन किया था। यहां तीस से अधिक शिक्षकों का स्टाॅफ था। दीपक को अनुभव और पद के अनुरूप अपनी लाॅबी की शिक्षकों में सम्मिलित होने हेतु आमंत्रण मिला। दीपक इसके लिये कतई तैयार नहीं था। वह मिलनसार था। उसकी प्रत्येक गुट में घुसपैठ थी। सभी शिक्षक उसे पसंद करते। उससे किसी शिक्षक का कभी मनमुटाव नहीं हुआ। दीपक सर्वप्रिय था। अवन्तिका के साथ भेदभाव का व्यवहार देखकर दीपक को अप्रसन्नता हुई। अवन्तिका अपने सफेद दाग़ छ...
मीडिया कितना कारगर
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मीडिया कितना कारगर

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** कोलाहल भरे वातावरण में जहां दूरदर्शन और मोबाइल की वजह से परिवार में वार्ता लाप, दादा-दादी के किस्से और कहानियों के साथ अच्छे-बुरे की सीख और समझ से परे आज की नई पीढ़ी होती जा रही है। बच्चों के लिए तो विभिन्न प्रकार के खेल मोबाइल पर चल रहे है उसमे बच्चे रम रहे है। मोबा इल पर जानलेवा खेल खेलकर पूरे विश्व मे कई बच्चे आत्महत्या कर चुके है या अपराध की ओर उन्मुख हो गए। कई परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के बावजूद मोबाइल के लिए लड़के-लड़कियां लालायित रहते है। छोटे से लेकर बड़े बच्चों का मोबाइल आप बन्द नही करवा सकते, मोबाइल की मांग पूरी करना ही पड़ेगी ! आपका मोबाइल बच्चों को देना ही पड़ेगा ! नही तो बच्चे चिढ़-चिढ़े होकर अत्यधिक आक्रोश व्यक्त करने लगते है, खाना नही खाएंगे, आपका कोई काम नही करेंगे, समान उठा-उठाकर फेंकेंगे, यहां तक कि वे गुस्से ...
कोरोना
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कोरोना

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** कोरोना रो_कोना। आने दो स्वागत करो। जी भर भर स्वागत करो। जनता मेरे देश की जनता। स्वदेश का नारा लगा लगा कर स्वदेश को नहीं पहचान पा रही जनता। कितना अपने आप को धोखा देना है। क्या इस शिक्षित युग में अब भी हमारी जनता को अंगुली पकड़कर चलना सिखाना होगा। आजादी के बाद इतने वर्षो में कम से कम हर नागरिक इतना तो शिक्षित हो ही गया होगा की उसे स्वयं के भले बुरे का ज्ञान होने लगा होगा। घर परिवार की परिस्थितियों से निपटने की क्षमता यदि है तो कुछ देश के लिए योगदान भी समझ में आता होगा। हम हर पहलू से सोचे तो सोच यहीं निकल रही है कि हम सब ठीकरे दूसरे के माथे ही फोड़ेंगे। किसी भी दल की सरकार हो। उसमें कितने भी कपट छल वाले लोग भरे हो, हमारी समझ कहां जाती है। यदि हम प्रधानमंत्री के पद तक के दावेदार चुन सकते हैं तो हम इतनी बुद्धि तो रखते ही है कि हम...
नसीबो का नसीबा
लघुकथा

नसीबो का नसीबा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** लाला जी, थके हारे घर पहुंचे थे। क्या ....बना नसीबो की शादी का लड़के वालों ने हां कि नहीं। या इस बार भी जन्मपत्री नहीं मिली का बहाना कहकर मना कर दिया है। इससे पहले लाला जी को कितने ही रिश्ते मना कर चुके थे। जब भी रिश्ते की बात चलती तब सिर्फ एक ही बात निकलती कि आप इसी गांव के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। आजादी के बाद कितने ही लोगों की जिंदगी इस एक शब्द पर थम गई थी कि आप यहां के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। घर-बाहर तो छूटा ही, काम धंधा भी छूट गया। ऊपर से जिनकी बेटियां थी उसकी शादी करने के लिए कितने सवालों से गुजरना पड़ता था। कुछ यही हो रहा था। नसीबो के साथ ....जिस किसी रिश्ते की बात चल रही थी वही मना कर देता था कि पाकिस्तान से आए हैं वहां से आने वाली किसी भी लड़की को छोड़ा नहीं था, और यह ऐसी सोच थी जिसके लिए कोई भी...
होली और शर्त
लघुकथा

होली और शर्त

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** होली के दिन सभी मित्र होली मिलन के लिए रमेश के घर गए। मित्रों ने सबसे पहले बुजुर्गों के चरणों में गुलाल लगाकर बड़ों का आशीर्वाद लेकर होली का प्रारंभ किया। अब मित्रों ने आपस में गुलाल लगाकर एक दूसरे को गले लगाया इतने में मां होली का स्वादिष्ट पकवान ले आई, क्या बात है हम लोग त्योहारों का इंतजार करते हैं, पकवान के लिए.... बात करते-करते रमेश के मित्र की निगाह सामने वाले बालकनी में पड़ी, वहां सुंदर लड़की खड़ी थी। सभी मित्र रमेश से शर्त लगाते हैं की यदि तुमने उस लड़की को होली खिला दी तो आज तेरे जन्मदिन की पार्टी हमारी तरफ से। रमेश बोलता है, "अरे क्या बात कर रहे हो तुम लोग, मोहल्ले में किसी से बात नहीं करती वह और गुस्से वाली लड़की है। मित्रों ने रमेश को उकसाया कि तू कुछ नहीं कर सकता। रमेश दौड़ता हुआ गया, रमेश की धड़कने तेज थी डर लग रहा था। वह...
प्रेम का अंतिम आभास
लघुकथा

प्रेम का अंतिम आभास

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** भोले और उसके ससुर जी का ३६ का आंकड़ा था। जबसे भोले की शादी हुई थी तब से ही उसकी सास ससुर से नहीं बनी। सास तो फिर भी मान जाती थी किंतु ससुर जी नहीं मानते थे। शायद वह मुंह के बहुत बड़बोले थे। और दिल के साफ भोले इस बात को कभी समझ नहीं पाया। किंतु कभी कबार उनकी अच्छी बातों से भोले को लगता था कि व्यक्ति तो वह अच्छे है। किंतु अपने बहु बेटों का सारा गुस्सा मुझ पर ही निकाल देते थे। कुछ दिन पहले एक शादी के दौरान भोले और ससुर जी का एक बहुत ही अच्छा रिश्ता बन गया पहली बार भोले ने उनके साथ कुछ खाया और अच्छा बोल बोले। पहली बार उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा मेरे साथ एक फोटो खिंचवा लो। एक बड़बोले इंसान को गलत समझ लेना भोले कि बहुत बड़ी भूल थी। अभी कुछ दिन पहले ही भोले को पता पड़ा कि ससुर जी किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती हैं जहां डॉक्टरों ...
पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती
कविता, व्यंग्य

पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** ।।हजल।। करी पत्नी से भी यूँ बेतकल्लुफ दोस्ती मैंने। कहा उसने गधा मुझको कहा उसको गधी मैंने।। बहुत बेले हैं पापङ तेरी खातिर जिंदगी मैंने। कभी लेने गया तेल और कभी बेचा है घी मैने।। सरे बाजार चप्पल लात जूते से हुआ स्वागत। समझकर हिजँङा महिला की सारी खेंच ली मैंने।। तेरे गम में बढाकर मूँछ दाढी कुछ ही दिन पहले। बना रक्खा था अपने आपको सरदारजी मैने।। कभी खाना पकाता हूँ कभी बच्चे खिलाता हूँ। क्लर्की उसने पाई घर में कर ली नौकरी मैने।। मेरा पैसा तुम्हारा रूप अक्सर काम आया है। रकीबों को जलाया है कभी तुमने कभी मैंने।। रफीकों की तरह पेश आता है अपने रकीबों से। नहीं देखा कहीं "हीरा" के जैसा आदमी मैने।। . परिचय :-  डाॅ. राधेश्याम गोयल, प्रचलित नाम डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद...
गांव
कहानी

गांव

अभिषेक श्रीवास्तव जबलपुर म.प्र. ******************** गर्मी के मौसम में दोपहर के २.३० बज रहे थे, धूप सर पर थी, गांव के आंगन में नीम का पेड़ था, जिसके झड़ने वाले पत्तों से घर के छप्पर आधे से ढंक गए थे, और बीच बीच में गर्म लू चलने के कारण कुछ पत्ते लुढकते हुए, नीचे घर के आंगन में गिर जाते थे, तो कुछ पेड़ से टूटकर छप्पर पर गिरते थे। घर की दहलान पर चारपाई डाले बांई करवट लिए सुरेश सो रहा था, बीच-बीच में दो चार मख्खी, भन-भन की आवाज उसके कानों में सुना जाती थी, जिससे उसकी नींद टूटती और वह दाहिने हाथ से मख्खीयों को भगाकर फिर से सो जाता था। ऐसा ही कुछ समय से चलते हुए उसकी माॅं जो कि दहलान में चारपाई से कुछ दूर बैठे देख रही थी और हाथों में पीतल की बड़ी थाल में गेंहू लिए उसमे से कंकड अलग करती जा रही थी जब उससे न रहा गया तो उसने खिसिया के आवाज लगाई, ‘२ घंटे से सो रहा है उठ और खेत जाकर बाबा को रोटी देकर...
स्वर-संगीत
आलेख

स्वर-संगीत

अभिषेक श्रीवास्तव जबलपुर म.प्र. ******************** संगीत संगीत है शक्ति ईश्वर की, हर स्वर में बसे हैं राम। रागी जो सुनाये रागनी, रोगी को मिले आराम।। संगीत एक ऐसी शक्ति है जो कि हर किसी के मन को हरने में सक्षम है, हां सभी की पसंद अलग अलग हो सकती है। संगीत प्रकृति के कण कण में बसा हुआ है, चलती हुई मंद पवन, कल कल करके गिरते हुए झरने , बरसात में पानी की बूंदों के गिरने की आवाज, बादलों की गड़गड़ाहट एक तरह से सभी संगीत के अलग-अलग स्वर हैं जो कि प्रकृति के संगीत का परिचय देते हैं। सांसारिक संगीत को भी कई भागों में बांटा गया है, शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, प्रांतीय संगीत, भक्ति संगीत इत्यादि। संगीत को जानने वाले संगीतज्ञों ने तो संगीत का आनंद लिया ही है किन्तु इसके अलावा वे वर्ग जो कि संगीत को नहीं जानते हैं वे भी संगीत सुनकर उसमें खो जाते हैं। वैसे संगीत को जानना या ना जानना मायने नहीं रखता ...
कोयल की कॅूक
लघुकथा

कोयल की कॅूक

डॉ. सुरेखा भारती *************** दीदी sss ......ओ दीदी ! आंगन में झाडू लगा रही मुन्नी, आवाज लगी रही थी। अब इसको क्या हो गया..... मैंने झल्लाते हुए अन्दर से ही बोला, क्या है? क्यो चिल्ला रही हो..? दीदी बाहर तो आओ sss ..... मैं बाहर आंगन में पहुंची, देखा मुन्नी दीवार के एक कौने मैं चुपचाप खड़ी है। ‘देखो...देखो कोयल कॅूक रही है.....’। उसे देखकर मैं ने भी सहसा कोयल की बोली सुनने का प्रयत्न किया। दूर कही कोयल बोल रही थी, कुछ पल के लिए मुझे भी अच्छा लगा। थोडी देर मुन्नी उसकी आवाज सुनती रही। कोयल की बोली बंद हो गई। उसने मेरी तरफ देखा और कहने लगी - दीदी, गाँव में हमारे आंगन में बड़ा सा आम का पेड़ था। इन दिनों कोयल उस पर बैठ कर कॅूकती थी, मैं भी उसके जैसी आवाज निकालकर उसे चिढ़ाती थी, फिर वह चूप हो जाती, फिर थोडी बाद कूँकती थी। अब शहर में आ गए हैं, अब कहाँ कोयल की कूक सनाई देती है। मेरा सारा दिन तो इस...
आते जाते खू़बसूरत
यात्रा वृतांत

आते जाते खू़बसूरत

राजेश गुप्ता तिबड़ी रोड, गुरदासपुर ********************                दिल्ली एक उस शरारती बच्चे-सी है जो कभी चैन से न बैठता है और न ही किसी को बैठने देता है। दिल्ली अपने वेग से ही चलती है और अपने वेग से ही उठती है, बैठती है, न कोई इसे थाम सका है और न ही कोई शायद इसे थाम सकेगा। यह विचित्र-बहाव से बहने वाली नदी की तरह है जिस तरह एक चँचल बच्चा जिस के पास ऊर्जा का असीम भंडार होता है जिस से वह उत्प्रेरक होता है। उसी प्रकार दिल्ली भी असीम ऊर्जावान है उसके पास भी असीम कार्य करने की, दौड़ने-भागने की क्षमता है। वहां के दिन-रात एक ही जैसे हैं, हालाँकि रात को वह कुछ शांत होती है परन्तु रुकती याँ थमती वह तब भी नहीं है, यह उसकी विशेषता है। मैं अपनी पत्‍‌नी के साथ लगभग रात दस बजे के आस-पास घर से निकला क्योंकि मुझे ग्यारह बजे की गाड़ी पकड़नी थी। मैं और मेरी पत्‍‌नी कैब में आपस में आनन्दपूर्वक बातें कर...
आखिरी सफर
लघुकथा

आखिरी सफर

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** मंजुला के पार्थिव शरीर को देखकर कोई कह नहीं सकता कितना संघर्ष से भरा जीवन रहा होगा उसका। चेहरे पर वही सौम्यता और शांति थी। किरण टकटकी लगाए मंजुला के बेजान शरीर को देख रही थी। आंखों से रिमझिम रिमझिम बरस रही थी। अतीत की यादें आ जा रही थी। मंजुला और किरण बचपन की सहेलियां थी। जीवन के उतार-चढ़ाव सुख-दुख की भागीदार। एक दूसरे की सीक्रेट डायरी जैसी। जिसमें इंसान अपने अंदर के सब विचार खोल देता है। आज मंजुला का अंतिम सफर था किरण को अकेला महसूस हो रहा था। अब किससे वह अपने दिल की बात कह पाएगी। कुछ देर में मंजुला का शरीर भी नहीं रहेगा। आने जाने वाले सभी लोग मंजुला के जीवन पर चर्चा कर रहे थे। बेहद शांत मधुर सादगी वाली थी मंजुला। हर हाल में खुश रहने वाली ईश्वर पर भरोसा करने वाली इस तरह की कई बातें रिश्तेदार और अन्य आने जाने वाले कर रहे थे। किरण ही जानती थी कि ...
बसंत पंचमी
आलेख

बसंत पंचमी

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** बसंत पंचमी, माघी पंचमी, श्री पंचमी..... मां वागेश्वरी, सरस्वती अवतरण दिवस। बसंत पंचमी का पर्व अपने आप में एक सुखद अनुभूति है। बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती अवतरित हुई, इसलिए यह बहुत पावन दिन माना जाता है, क्योकि ज्ञान की देवी शारदे को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन पर प्रसन्न होकर वरदान दिया था की, बसंती पंचमी के दिन तुम्हारी पूजा की जायेगी। श्रीहरि की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीव-जंतु, मनुष्य योनि की रचना की पर उन्हें पूर्णतः संतुष्टि नहीं थी। फिर से श्रीहरि की अनुमति से ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल की बूंद धरती में समाहित होते ही कम्पन हुआ और वृक्षो के बीच से एक स्त्री शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। यह मां वीणा पाणी थी और दिन माघ शुक्ल पंचमी थी, जो हम बसंत पंचमी के रुप में मनाते है। भारत वर्ष के अलावा नेपाल औ...
ज़िन्दगी की हकीकत
व्यंग्य

ज़िन्दगी की हकीकत

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** असमंजस में कट रही है जिंदगी खुदपे करूं यकीन या दुनिया को गलत समझूं। बड़ी बेरहम है दुनिया समझ नही आता मैं खुदको बचाऊँ या गैरो का साथ दूं। हर दिन हो रहा है गुनाह हाथों से मेरे में खुदको आजकल बड़ा समझने लगा हूँ। क्या हक है मुझे किसी का दिल दुखाने का क्या मेरे अंदर इंसानियत नही है। अकेला था तो खुश था शामिल हुए कुछ और तो ज़िम्मेदारी का सफर शुरू हुआ। जितनी भी ली सुविधा उतनी हुई दुविधा क्या इरादे मेरे नेक नही थे या में काबिल नही था। बड़े यकीन के साथ निकलता हूँ घर से की आऊंगा लेकर सबका सामान। उम्मीदों और ख्वाइशों से भरा पड़ा है मेरा मकान नही देखना उनको मेरी थकान। आजमाने चला हूँ मै उनको आजकल जो पीठ पीछे मुझे कुछ मानते ही नही। और तारीफें कर रहे है वो मेरी जमाने भर में जो मुझे कभी जानते ही नही। क्या दुनिया है ये जिसको देखो वो अपन...
बाल श्रम
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बाल श्रम

अक्षुण्ण बोहरे ग्वालियर, मध्यप्रदेश ******************** वर्तमान में हमारे देश में बाल श्रम जैसी कुप्रथा, सामाजिक कुरीति एवं बुराई विकराल मुँह लेकर खड़ी है। बाल अवस्था में गरीबी एवं शिक्षा के अभाव में लाखों बच्चे इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। आज हमारे देश के कई पिछड़े राज्यों में बाल श्रम से प्रभावित बच्चों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, और यह ज्वलंत एवं गंभीर समस्या दिनोंदिन उग्र होती जा रही है। भारत के संविधान १९५० के २४वें अनुच्छेद के अनुसार १४ वर्ष से कम आयु के बच्चों का कारखानों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों, होटलों, फैक्ट्रियों, ढाबों, दिहाड़ी मजदूर एवं घरेलू नौकरों के रूप में कार्य करना बाल श्रम के अन्तर्गत आता है। चाइल्ड लेबर (निषेध एवं विनियमन) एक्ट १९८६ के अनुसार १४ वर्ष से कम आयु के बच्चों से मजदूरी का कार्य कराना गैर कानूनी होकर दण्डनीय माना गया है। किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) बा...
खूबसूरत चेहरे
लघुकथा

खूबसूरत चेहरे

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर म. प्र. ******************** मूवी देखकर लौट रही दिव्या ने अपना टू-व्हीलर स्टार्ट करने के पहले दुपट्टे से मुंह इस तरह लपेटा कि बस उसकी आंखें ही शेष बची थीं उस पर गागिल चढ़ा लिया। मनीषा पीछे की सीट पर बैठते हुए बोली तुम भी यार... क्योंं पडी रहती हो इस झंझट में, मुझे देखो मैं तो कभी चेहरा नहीं ढ़क सकती, फिर भी क्या तुम्हें मेरे चेहरे की चमक कम दिखती है? "अभी अभी तू छपाक देखकर लौट रही है फिर भी ऐसे सवाल करती है" "मुझे किसी का डर नहीं न ही मैंने कोई ग़लत काम किया है" पर चेहरा तो खूबसूरत है, कहते हुए दिव्या ने गाड़ी बढ़ा दी। ओह..... तभी मै सोचूं खूबसूरत चेहरे आजकल दिखाई क्यों नहीं देते। . परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्श...
लोहड़ी मकर संक्रांति  का सामाजिक पहलू
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लोहड़ी मकर संक्रांति का सामाजिक पहलू

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** भारतीय संस्कृति में त्योहारों का अपना एक विशेष महत्व है। जिनको धार्मिक नजर से देखा जाता है परंतु हर त्यौहार को मनाने का सबसे बड़ा सामाजिक कारण समाज को बांधना और जोड़ना है।  यदि हम किसी भी त्योहार को सामाजिक दृष्टि से देखें तो एक दूसरे से गले मिलना ,साथ बैठना ,मिलकर उत्साह से खुशी मनाना तथा नाचना गाना ,खाना-पीना यह सभी हर त्यौहार का हिस्सा होते हैं। भारत जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है इसमें भिन्न-भिन्न तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। लोहड़ी का त्यौहार  देशभर में  मनाया जाता है। लोहड़ी  मकर संक्रांति पोंगल इत्यादि अलग-अलग नामों से यह त्यौहार भिन्न-भिन्न राज्य और धर्म के हिसाब से  मनाया जाता है। यूं तो  लोहड़ी मकर संक्रांत का महत्व सर्दी के खत्म होने और सूर्य के स्थान बदलने  का  सूचक माना जाता है। संक्रांति के दिन बहुत से लोग सूर्य की पूजा कर पवित्र न...
शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह
आलेख

शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** अनूठा, अकल्पनीय, अनुकरणीय, असीम सम्भावनाओं को जन्म देने वाला अनन्त विचारों को प्रकाश पुंज की तरह समेटने वाला आयोजन दिनांक २० दिसम्बर २०१९ को संध्या समय धनौरा जिला सिवनी के लिए इंदौर से मैं डॉ. विनोद वर्मा अपने ६ साथियों संजीव खत्री, तोलाराम तंवर, पवनसिंह नकुम, कैलाश परमार, माखनलाल परमार, अशोक राठौर के साथ कार से रवाना हुआ। दि.२१ को प्रातः काल पहुंचे। जहाँ विद्यालक्ष्य फाउंडेशन धनौरा के तत्वावधान में राष्ट्रस्तरीय शिक्षक संगोष्ठी और शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन होने जा रहा था। इस आयोजन में जिला कलेक्टर, अपर कलेक्टर, सीईओ जिला पंचायत सिवनी के साथ शिक्षा विभाग का महकमा संयुक्त संचालक श्री तिवारी जी, जिला शिक्षा अधिकारी श्री बघेल जी,जिले के सभी विकास खण्ड शिक्षाधिकारी,सभी खण्ड स्रोत समन्वयक ने अधिकांश समय अपनी उपस्थिति देकर इस आयो...
इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि
आलेख

इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** एक हजारवें स्थापना दिवस पर विशेष संतो और शूरमाओं की मातृभूमि राजस्थान राज्य के बाड़मेर जिले में स्थित गढ़ सिवाणा शहर की स्थापना विक्रमी संवत १०७७ में पौष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिधि को वीर नारायण परमार ने की थी! आगामी 1 जनवरी २०२० को इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना के एक हजार वर्ष पूर्ण हो रहे है! इस अवसर पर जानते है सिवाना शहर के इतिहास और विशिष्टता को! गढ़ सिवाणा का ऐतिहासिक दुर्ग राजपुताना के प्राचीन दुर्गो में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। ये दुर्ग राजस्थान के उस चुनिन्दा दुर्गों में शुमार है जहाँ दो बार जौहर हुए है! वहीं यह शहर प्राचीन काल से ही कई महान तपस्वी विभूतियों की तपोभूमि रही हैं। कस्बे के मध्यभाग में स्थित गुरू समाधी मंदिर हजारों श्रद्धालुओं के श्रद्धा का केंद्र हैं। राजस्थान का मिनी माउंट हल्देश्वर तीर्थ अत्यंत रमणीय स...
सीख
लघुकथा

सीख

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** हर समय उलाहनों की बारिश करती रहती थी सासू मां। 'हमारे समय में बहुत सख्ती थी, अब देखो निर्लज्लता से घूमती है बहुएं'! हर समय अपनी बराबरी बहुओं से करते रहना। रामलाल जी परेशान थे, अपनी पत्नी की आदतों को। कभी स्वयं ससुराल में नहीं रही वह। रामलाल जी के बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। बड़ी बहन और ननिहाल वालों ने शिक्षा दी, बड़ा किया। शादी के बाद पिता गांव में ही रहे और अपनी नवोढ़ा को लेकर रामलाल जी दूसरे शहर चले गये। बच्चों की पढ़ाई नौकरी मे तबादला इसके कारण कभी कभी पिता के पास बच्चों को ले जाते फिर अकेले रह जाते पिता। गांव में अकेले रहते थे। लोग कहते चले जाओ बहू के पास लेकिन अनुभवी आंख एक बार में ही अपनी बहू को जान गई थी। वह अपने बेटे को दुखी नहीं देख सकते थे। रामलाल जी की किस्मत अच्छी थी। चार बहूएं गुणी पढ़ी लिखी। सम्म...
संचार क्रांति
आलेख, नैतिक शिक्षा

संचार क्रांति

मंजर आलम रामपुर डेहरू, मधेपुरा ******************** संचार क्रांति के इस दौर में शायद ही कुछ लोग ऐसे हों जिनके पास सेलफोन न हो। निश्चय ही मोबाइल बहुत उपयोगी है और हर किसी की जरूरत भी। कहाँ गए वह दिन जब परदेश गए किसी अपनों की खबर पाने को डाकिए का इंतज़ार करना पड़ता था ताकि वह आए तो उनका पत्र साथ लाए। उस पत्र में लिखे संदेश की इतनी महत्ता होती कि एक ही खत को बार बार पढ़ा जाता मानो वह अब भी नया ही हो। अब तो पल पल की खबरें घर बैठे बिठाए मिल रही हैं। “कर लो दुनिया मुट्ठी में" अब स्लोगन नहीं, हकीकत है। एनड्रॉयड मोबाइल ने तो लोगों के जीवन में इतना बदलाव ला दिया है कि समय बिताने के लिए अब किसी की कमी नहीं खलती। टेलीविजन, अखबार सब कुछ एक ही क्लिक पर मिल जाता है मानो दुनिया अंगुलियों के ईशारे पर हों। अब तो घर परिवार के लोगों के बीच मिल बैठकर बातचीत करने के लिए भी समय कम ही निकलता है। सहपाठियों...
गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?
आलेख, बाल साहित्य

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बुद्धी और ज्ञान दुनियां में बहुत महत्वपूर्ण हैं, फिर वह किसीसे भी प्राप्त हो, उसे अनुभव से प्राप्त कर आत्मसात करना होता हैं। ज्ञान एवं अनुभव ग्रहण करने वाला शिष्य और ज्ञान देने वाला या प्राप्त करवाने वाला गुरु होता हैं। ऐसा यह गुरु और शिष्य का बुद्धी, ज्ञान और अनुभव का रिश्ता होता हैं। ज्ञान तथा अनुभव लेनेवाले एवं देनेवाले की उम्र का इससे कोई संबंध नहीं होता, सिर्फ ज्ञान देनेवाला अपने विषय में निष्णात होना चाहिए, और ज्ञान लेनेवाले का देनेवाले पर विश्वास होना चाहिए। यहीं इस रिश्ते की पहली शर्त होती हैं। बच्चें की पहली गुरु का मान यह उसकी माँ का होता हैं। इसके बाद जीवन के हर मोड़ पर ज्ञान और अनुभव देनेवाले गुरु की आवश्यकता महसूस होती रहती हैं। ‘गुरुपूर्णिमा‘ यह सभी गुरुओं को आदर और श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का दिन हैं। गुरुपूर्णिमा को ‘व...
रौनक
लघुकथा

रौनक

कुमुद दुबे इंदौर म.प्र. ******************** आँफिस से लौटे साठे जी, घर मे कदम रखते ही पत्नी शोभा से बोले शोभा ! मैं कुछ दिनों से देख रहा हूॅ अपनी कालोनी के अतुल जी के यहाँ, जहाँ हमेशा सन्नाटा छाया रहता था, आजकल रौनक बनी हुयी है। देर रात तक घर की लाईटें जलती रहती हैं और लोगों का आना जाना भी लगा रहता है। क्या बात है? शोभा बोली! मैने उनकी पडोसन माला से पूछा था, वह बता रही थी-अतुल जी के माता पिता साथ ही रहते थे। दम्पती बहुत ही मिलनसार, व्यवहारिक और काॅलोनी के लोगों की किसी भी प्रकार की परेशानी हो सहायता के लिये सदा तत्पर! बच्चे बडे बूढे सभी के चहेते रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद अधिकांशतः समय अपने गाँव में ही व्यतीत कर रहे हैं! फिलहाल कुछ दिनों के लिये आये हुये हैं। . लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३...
चाय की चुस्की
कहानी

चाय की चुस्की

राजेश गुप्ता तिबड़ी रोड, गुरदासपुर ********************   चाय के प्यालों की भाप ने सम्पूर्ण कमरे में एक अलग ही तरह का वातावरण निर्मित कर दिया है। कमरे के चारों तरफ मध्यवर्गीय चाय की महक आ रही है।दोस्तों की महफिल सजी है। “छोटे-छोटे शहरों में बसे लोगों की एक अजीब-सी दास्तान है, रहते तो ये छोटे शहरों में हैं परन्तु सपने इनके बहुत बड़े-बड़े होते हैं ”एक दोस्त ने कहा। “छोटे शहरों में रह कर बड़े-बड़े काम कर जाना कोई आसान बात नहीं होती “फिर दूसरे दोस्त ने बात आगे बढ़ाई। “बड़े-बड़े सपनों वाले छोटे शहरों के नागरिक साधनों और संपर्कों की कमी के कारण पिछड़ जाते हैं, चाहे वो शिक्षा हो, कारोबार हो या फिर कला का कोई भी क्षेत्र, वे प्राय: योग्य होने के बावजूद भी पिछड़ जाते हैं भूमंडलीकरण के इस विस्तारवादी दौर में हर कोई उन्नति करना चाहता है “पहले दोस्त ने फिर कहा। “कला के पक्ष से देखें तो प्रत्त्येक कल...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मैं बिलासपुर स्टेशन से इंदौर आई। जैसे ही मैं स्टेशन पर ट्रेन से नीचे उतरी। एक बूढ़ा व्यक्ति जिसकी कमर झुकी हुई थी, आंखों में मोटे ग्लास का चश्मा था, मुंह में झुर्रियां पड़ गई थीं, वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। मेरे पास जल्दी-जल्दी आया और बोला मैडम आपको कहां जाना है? मैं आपको छोड़ देता हूं, और मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरा सूटकेस लेकर चलने लगा मैं उसके पीछे-पीछे चलने लगी, जब मैं उसके रिक्शे में बैठी तो उसने रिक्शा खींचना शुरू किया, कुछ ही दूर जाकर उसका श्वास फूलने लगा। वह पसीना पसीना हो गया मैं तुरंत उसके से उतर गई और सौ का नोट उसके हाथ में रख दिया। बड़ी हिम्मत करके मैने पूछ ही लिया, कि बाबा आप बूढ़े हो गए हो, और आपकी उम्र रिक्शा चलाने की नहीं आराम करने की है। तुम्हें इस उम्र में रिक्शा में रिक्शा नहीं चलाना चाहिए। क्या करूं मेडम...