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गद्य

लापरवाही
लघुकथा

लापरवाही

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** रमा आज बहुत परेशान है। भारत वर्ष ही नहीं विश्व के कई देश कोरोना के शिकार हैं। जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस समस्या से पीड़ित है। इसको दूर करने के अनेक प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु अभी कोरोना समाप्त करने में सफलता नहीं प्राप्त हो पाई है, फिर भी उसके बच्चे उसकी चिंता करने पर खूब हँसी उड़ा रहे हैं। आखिर वह झल्ला कर बोल पड़ी, "बच्चों तुम समझते क्यों नहीं? अत्यंत आवश्यक कार्य के अतिरिक्त बाहर न जाने की अपील प्रधानमंत्री, डॉक्टर एवं प्रशासन सभी कर रहे हैं जिससे सड़कों पर भीड़ कम हो और इसके कीटाणु फैलने न पायें। मस्ती, घूमने-फिरने से कभी रोका तो नहीं मैंने, ये सब तो कुछ दिनों बाद फिर हो सकता है किन्तु लापरवाही में अपनी प्राण संकट में डालना कहाँ की समझदारी या बहादुरी है। दोस्तों से फोन पर बात कर लो। कुछ दिन नहीं मिलोगे तो क्या बिगड़ जाएगा?" कुछ देर सँभल क...
नवरात्रि उत्सव
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नवरात्रि उत्सव

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** हमारे क्षेत्र का नवरात्रि का उत्सव श्रद्धा, आस्था और उपासना के रंग में सरोबार रहता है। मध्यप्रदेश में देवास जिले में एक छोटा सा हमारा गाँव मोखापीपल्या है। वहाँ की कुलदेवी माँ अम्बा है। हम अम्बे माता कहते है। नवरात्रि के नौ दिन वहाँ धूप होती हैं जिसे ज्योत धूप कहते है। नवमी शाम और दशहरा की सुबह धाया पाठ की बैठक होती हैं। धाया पाठ नवरात्रि के नौ दिन होने के बाद भगवान की विदाई को कहते है। इसे संस्कृत में उत्तरार्ध कहते हैं। परिवार में सात पीढ़ी का वरदान है, ईश्वर आप के द्वारे आयेंगे। ऐसी मान्यता है कि ये जोड़ी के रूप में आते हैं, जिन्हे भीलट और कवाजा नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर दो पाटों को पूजा जाता हैं जिन्हें थानक कहते हैं। इनकी सवारी किसी व्यक्ति पर आती है। सभी भक्ति भाव भेंट द्वारा उन्हें संतुष्ट करते हैं। बहुत ही श्रद्धामय वातावरण ह...
गुरु तेगबहादुर, कश्मीर और सेना (२४ नवंबर बलिदान दिवस विशेष)
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गुरु तेगबहादुर, कश्मीर और सेना (२४ नवंबर बलिदान दिवस विशेष)

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) **********************                                               सनातन धर्म की रक्षा में गुरुओं के बलिदानों का विशेष स्थान है, उनके पराक्रम व बलिदानों से बहुत हद तक सनातन धर्म की रक्षा सुनिश्चित हुई। औरंगजेब का शासन था, उसके दरबार में एक कश्मीरी पंडित प्रतिदिन उसे गीता के श्लोक सुनाता था, एक बार उसकी तबियत खराब थी, उसने अपने पुत्र को दरबार में श्लोक पढ़ने भेजा। किन्तु वह उसे बताना भूल गया था कि कौनसे श्लोक दरबार में नही पढ़ना। पुत्र ने औरंगजेब को गीता के सारे श्लोक अर्थ सहित पढ़कर सुनाए। गीता के श्लोकों को सुनकर औरंगजेब बोखला गया वह इस्लाम को ही सर्वश्रेष्ठ मानता था गीता के श्लोकों से उसका यह भ्रम टूट गया था और उसे यह आभास हो गया था कि सनातन धर्म मैं ऐसे कई ग्रंथ व धार्मिक साहित्य है जो हिंदुओं को अपने धर्म पर अडिग रहने के लिए प्रेरित करता है। यह ज...
जिम्मेदारी
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जिम्मेदारी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** घर पर खुशियों का माहौल था। सभी ओर से बधाई मिल रही थी। रमेश और सुरेश ने अपनी माँ का नाम रोशन कर दिया था। उनकी सफलता का श्रेय उनकी माँ को जाता था। आरती देवी स्वभाव से बड़ी ही शान्त थी। वह बच्चों की सफलता का श्रेय उनकी मेहनत को ही देती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। बच्चे अपनी सफलता पर बेहद खुश थे। प्रतिदिन माँ के चरण छू कर अपने काम शुरू करते थे। आरती भी खुद को धन्य समझती थी।बिना पिता के बच्चे का पालन-पोषण करना कौन सा आसान काम था?वह अपने मालिक जय सिंह का धन्यवाद करती नहीं थकती थी। जयसिंह बड़े आदमी थे। उनका भरा-पूरा परिवार था। सुंदर पत्नी, बाल-बच्चे। वह कई कारखानों के मालिक थे। वह कमजोर तथा गरीबो की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहते थे। आरती का पति भी इनके कारखाने में काम करता था। उसने कभी पति का सुख नहीं देखा था। अपने घर पर भी घोर गरीबी देखी थी।...
किस्मत से समझोता
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किस्मत से समझोता

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                               आज सुबह उठते ही नितिशा के हाथों की हरी चूड़ियाँ खनखना गईं। चूड़ियों को देख उसे याद आया कि कल उसकी शादी है। न जाने क्यूँ उसे बार-बार लग रहा था कि मम्मी से कह दे कि उसे शादी नहीं करनी है। नितिशा ने उसकी सहेली शुचि को फोन लगा कर कहा। शुचि ने समझाया कि टेंशन न ले। हर लड़की को शादी से पहले टेंशन होता ही है। नितिशा के पापा न होने से सारा भार उसकी मम्मी के कंधे पर था। शायद नितिशा को टेंशन मम्मी को छोड़ सीधे अमरीका जाना था। और आज नितिशा शादी का जोड़ा पहन अपने ससुराल जाने को भारी मन से तैयार थी। वह अपना सब कुछ छोड़ एक अनजान आदमी के साथ उसके घर में, उसके घर को अपना घर कहने, उसकी माँ को अपनी माँ जैसा आदर देने जा रही थी। जाते जाते उसने माँ की तरफ देखा तो माँ ने समझाया बेटा यही जीवन की रीत है। हर लड़की को शादी कर पराया होन...
महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें
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महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ जहां कहीं एकता अखंडित, जहां प्रेम का स्वर है। देश-देश में वहां खड़ा, भारत जीवित भास्वर है।। कविवर श्रेष्ठ दिनकर जी की पंक्तियां 'एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है।' सम्पूर्ण विश्व में भारत का एक अनुपम और अनूठा स्थान है, तो इसका बहुत सा श्रेय यहां की कालजई सभ्यता व संस्कृति का है, को प्राकृतिक रूप से हम सभी में विद्यमान है। प्रकृति की ही देन सारा विश्व है। भारत प्राकृतिक एवं भौगोलिक सुन्दरता को दृष्टि से विश्व का अनोखा और अद्भुत राष्ट्र है। लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष में त्योहार, रीति-रिवाजों, लोक प्रथाओं, सामाजिक मान्यताओं, मनोविनोद के साधनों की बहुलता व विविधता से हमारा भारतीय समाज ओत प्रोत है। किसी भी समाज या राष्ट्र के परिष्कार की सुदीर्घ परंपरा होती है। उस परंपरा में प्रचलित उन्नत, उदात्त व उत्तम विचारों की श्र...
बाय-बाय ट्रम्प
व्यंग्य

बाय-बाय ट्रम्प

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ! एक दम सही पढ़ा आपने दुनिया के सर्व शक्तिशाली शख्स का तमगा अपनी छाती पर लादकर बाइडेन अब व्हाइट हाउस की गद्दी में बैठने जा रहे हैं। सर्वशक्तिशाली देशों की सूची में ओहदा रखने वाले अमेरिका को नया राष्ट्रपति बाइडेन के रूप में मिल गया है। वैसे अमेरिका के नये राष्ट्रपति के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं होंगी जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इसका सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका ही हुआ है, अमेरिका जैसे देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लाखों लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में देखना यह भी होगा कि इन सभी हालातों से बाइडेन कैसे निबटते हैं। बहरहाल उगते सूरज को सलाम करने की हमारी सनातनी परम्परा रही है और आगे भी रहेगी। हमारे हिन्दुस्तान में उगते सूरज को सलाम करने के लिए इस समय देश की महनीय कुर्सी पर दो गुजराती भाऊ बैठे हैं और गुजराती भाऊ बिजनेस औ...
नैतिकता-अनैतिकता
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नैतिकता-अनैतिकता

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** “बना-बना के दुनिया फिर से मिटाई जाती है जरुर हम में ही कोई कमी पाई जाती है!" नैतिकता क्या होती हैं और अनैतिकता क्या होती हैं? यह प्रश्न अक्सर अनेकों को संभ्रमित करता रहता हैं। नैतिकता के मापदंड क्या होते हैं? रोजमर्रा के व्यवहार में उसका क्या महत्व होता हैं? व्यवहार में कहाँ तक हम इन बातों का विचार कर सकते हैं? या इन बातों का कितना महत्व होना चाहियें या नैतिकता को हम कितना सहन कर सकते हैं? या अनैतिकता हमें कितना प्रभावित या परेशान कर सकती हैं? समाज में व्यक्ति की एक दूसरे से नैतिकता की कितनी और क्या अपेक्षाएं रहती हैं? या नैतिकता और अनैतिकता की ओर देखने का हर एक का द्रष्टिकोण कैसा होना चाहियें? धर्म, संस्कार, प्रथा और परम्पराएं इनका नैतिकता से क्या सम्बन्ध हैं? नैतिकता सिर्फ धर्म पालन के लिए ही होती हैं क्या? नैतिकता का मूल्यमापन कैसे हो? औ...
शोर
लघुकथा

शोर

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   बाहर हर तरफ सन्नाटे का राज था और बुजुर्ग दद्दा के मन के अंदर बहुत शोर तथा कोलाहल था। "राज ...बे ..टा। जरा ...इधर आना, जरुरी काम है।" खाँसते-खाँसते दद्दा ने वाक्य पूरा किया। दद्दा ने पास आए पोते राज के कान में कुछ कहा। उनके झुर्रियों भरे चेहरे पर जड़ी वीरान आँखें राज को याचना की दृष्टि से देखने लगी। शशीन्द्र रोज आफिस जाने से पहले और आने के बाद अपने अठ्ठानवे वर्षीय बीमार पिता को कमरे में देखने आता था। बीच-बीच में उन्हें जरुरत की चीजें मुहैया कराने का काम बीवी और बच्चों के जिम्मे कर रखा था। आज शाम जब शशीन्द्र दद्दा से मिलने आया, उसे बीड़ी की दुर्गंध का भान हुआ। उसने पलंग के सिरहाने जाकर लठकते तकिये को ठीक किया। कोई वस्तु नीचे गिरी, ऐसा लगा उसे। "राज। ओ... रा..ज। कहाँ हो तुम? एक मिनिट के अंदर दद्दू के कमरे में आ ज...
आखिर कब तक
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आखिर कब तक

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                           बेटियों के साथ हर दिन कई घटनाएं घट रही है, आज यहां तो कल वहां। कभी रेप के बाद उन्हें जिन्दा जला दिया जाता है, कभी उनकी जीभ काट ली जाती है, हड्डियां तोड़ दी जाती हैं, उन्हें मरने पर मजबूर कर दिया जाता है। जो बेटियां मर रहीं हैं, वह बेटियां घर की रौनक, मां बाप के दिल की धड़कन और देश और समाज का हिस्सा थी, उनके हिस्से में आता है केवल मौत, और अगर मारने वालों को सजा होती भी है तो उन्हें बचाने के लिए नेता पहुंच जाते हैं फिर कुछ दिनों बाद वे वहशी दरिंदे स्वच्छन्द घूमने लगते हैं। आखिर हमारा समाज कहां जा रहा है। अभी-अभी हमने नवरात्रि मनाई है ,और कन्या पूजन भी किया है, उनका यह परिणाम कि एक बेटी को सरेआम गोली मार दी गई। आखिर कानून सबके लिए एक जैसा क्यों नहीं है? वहां भी बड़ा ,छोटा जात,...
गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ
व्यंग्य

गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   भारत ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर गोपियों का महत्व और वर्चस्व सदा से कायम रहा है और आगे भी रहेगा! सतयुग, त्रेता, द्वापरयुग से लेकर आज तक गोपियों के महत्व में कोई परिवर्तन नहीं है! पहले गोपियाँ पनघट में पानी भरते पायी जाती थीं, सावन में झूले झूलती पायी जाती थीं! बाग बगीचों में आपस में हास, परिहास, इठलाती, बलखाती पायी जाती थीं, तब नटखट नंदलाला इनको छेंड़ा करता था और ये हंसी खुशी छिंड़ जाया करती थीं! नंदलाला से छिड़ंकर ये इठलाया करती थीं! कहते हैं समय बड़ा ही परिवर्तनशील और परिवर्तन भरे दौर में इन गोपियों में भी भयंकर परिवर्तन आया है, अब गोपियों के हाथ में एंड्रायड मोबाइल है और ये गोपियाँ फेसबुक पर पायी जा रही हैं! स्वयं छिड़ने के बजाय अब तो फेसबुक पर खुलेआम, नंदलाला...
बंदिशें
कहानी

बंदिशें

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उर्मि, तंग आ गई थी। सभी ने उसका जीना हराम कर रखा था। बात-बात पर टोका-टाकी उसे पसंद नही थी। पर परिवार था कि मानने को तैयार नहीं था। कोई ना कोई बहाना निकाल ही लेता था, उसे परेशान करने का। माँ तो जब देखो समझाने बैठ जाती थी। बेटी बाहर ना जाया करो, यहाँ ना जाया करो। आजकल पहले वाला जमाना नहीं है, लोग लड़कियों को भूखी नजरों से देखते रहते हैं। यहाँ इंसानों के भेष में राक्षस घूम रहे हैं। पर तुम मेरी बात सुनती ही कहाँ हो? एक हमारा जमाना था। क्या मान-सम्मान था, गाँव में लड़कियों का? गाँव की लड़की को सारा गाँव अपनी ही लड़की समझता था। मजाल है कोई किसी लड़की को छेड़ दे। बेटी, मैं तुम्हें बताती हूँ, एक कहानी जरा ध्यान से सुनना। क्योंकि तू हमेशा मेरी बातों को हल्के में लेती है। ठीक है माँ, कहो अपनी रामकथा, उसने चिल्लाकर कहा। यही रवैया तो सुधरना है मुझें ...
विजयादशमी
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विजयादशमी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विजयादशमी पर्व प्रतीक है विजय का! अधर्म पर धर्म की विजय!! अन्याय पर न्याय की जीत!!! और सबसे बढ़कर उच्छृंखलता एवं निरंकुशता पर संयम तथा मर्यादा की विजय!!! और इसलिए विजयादशमी पर्व की प्रासंगिकता हर युग में बनी रहेगी। पिता के वचन की लाज रखने के लिए पल भर में रघुकुल के सूर्य से देदीप्यमान साम्राज्य के सिंहासन को एक तुच्छ तिनके-सा त्याग दिया और वैभव-विलास से पूर्ण राजमहल का सुविधासम्पन्न, सुखमय जीवन छोड़कर १४ वर्ष के लिए शीत, ताप, वर्षा से आचछन्न कंकरीले-पथरीले डगर वाले हिंस्र पशुओं से भरे भयावह एवं अभाव तथा आशंकाओं से ग्रस्त वन्य जीवन को स्वीकार कर लिया जानकीवल्लभ श्री राम ने!साथ चलीं धरती पुत्री सीता और जगत्- दुर्लभ भ्राता लक्ष्मण!! आज हम अपने छोटे-छोटे क्षुद्र स्वार्थों के लिए अपने मूल्यों-आदर्शों की, यहाँ तक की अपनी आत्मा और अपने राष्ट्र एवं...
आओ इस बार अपने मन के अंदर बैठे हुए रावण का अंत करें
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आओ इस बार अपने मन के अंदर बैठे हुए रावण का अंत करें

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                           हम हर वर्ष दशहरा में बुराई का प्रतीक रावण का पुतला जलाते हैं। पुतलों की ऊंचाई हर बार बड़ी और बड़ी होती जाती है। रावण का पुतला दहन कर हम अपने आप को राम के तुल्य मान लेते हैं, और खुश हो जाते हैं। आपको मालूम है कि रावण अपने बड़ी-बड़ी आंखों को दिखाकर और बड़े बड़े दांत दिखाकर जोर-जोर से हंसता है, और कहता है कि रे! मानव तुम लोग मुझे जिंदा जला नहीं सकते, इसलिए कागज का जला कर ही खुश हो जाते हो। मैं मरता कहां हूं? मैं तो हर वर्ष और अधिक शक्तिशाली होकर तुम्हारे सामने प्रकट हो जाता हूं, और तुम लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। सही भी तो है कि अगर हम अपने अंदर बैठे हुए रावण (बुराई) का अंत कर दे, तो फिर रावण के पुतले को जलाने की आवश्यकता ही नहीं होगी। आज हर मानव के मन में दानव कुण्डली मारक...
कुदरत के फैसले…
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कुदरत के फैसले…

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ********************                                                      पिछले महीने सितम्बर के आखिरी हफ्ते की बात है, मैं कुछ अनमनी, हैरान,परेशान सी थी, अपने ही लोगों से कुछ आहत थी! जीवन में यह सब नया नही था और ना पहली बार! सब कुछ चलता रहता है यही सोचकर मैं घर के छोटे-मोटे काम निबटा कर नहाई! समय लगभग दिन के एक बज चुके थे, मंदिर में दीप जलाते ही मुझे याद आया कि तुलसी का पौधा सूखने लगा होगा, इसलिए जल चढ़ाने के लिए बाहर गई! मन में संशय था कि कहीं कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...? कि दिन के एक-दो बजे तुलसी में जल चढ़ा रही है, कितनी लापरवाह और आलसी औरत है! यूँ तो सरपट भागती दिल्ली नगरिया में किसी को किसी से कोई विशेष मतलब नहीं रहता है, फिर भी आस पड़ोस की कुछ महिलाएँ दूसरी महिलाओं की कमियाँ और खोट निकाल कर मजे लेने से पीछे नहीं हटती हैं! जो भी हो लेकिन म...
नारियाँ : अबला या सबला
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नारियाँ : अबला या सबला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                                       ये ऐसा विषय है जिस पर पूरे विश्वास से कोई कुछ भी नहीं कह सकता। क्योंकि इस परिप्रेक्ष्य में सिक्के के दोनों पहलुओं का अपना अपना मजबूत पक्ष है और किसी भी एक पक्ष को कम करके आंकना खुद को धोखा देना ही कहा जायेगा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि नारियां नित नये मुकाम पर पहुंच रही हैं। जिंदगी के हर क्षेत्र में अपने आप को न केवल सिद्ध कर रही हैं। बल्कि खूद को स्थापित कर खुद को खुद से ही चुनौती पेश कर कदम दर कदम अपने बुलंद हौसले की मिसाल भी पेश कर रही हैं।शिक्षा, कला, साहित्य, विज्ञान, सेना, खेलकूद, प्रशासन, राजनीति हर जगह अपनी मजबूत उपस्थिति का अहसास करा रही हैं। यही नहीं चूल्हा चौका से बाहर भी नारियां अपनी नेतृत्व क्षमता का भी लोहा मनवा रही हैं। इसलिए ये कहना गलत ही होगा कि नारिया...
जख्मों की टीस
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जख्मों की टीस

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                                   नेहा महज तीस साल की है। वह हिमाचल प्रदेश के बद्दी में रहती है। वह बद्दी के एक नामी पाठशाला में शिक्षिका है। वह अक्सर कहती कि उसे छुट्टियों वाले दिन की दोपहर बहुत लम्बी लगती है जैसे कि दिन यहाँ आकर रुक सा जाता है और इन दोपहरों की चुप्पी जैसे बीहड़ की कोई झील एकदम शांत सी। आज इतवार था। इस दिन का सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं। कोई दोस्तों से मिलने जाता है तो कोई सिनेमा देखने तो कोई शॉपिंग। पर नेहा के लिये यह सबसे लंबा और बोझल दिन रहता है। वह तब भी था जब आकाश था और वह अब भी है जब आकाश नहीं। आकाश नेहा का पति एल. आई. सी. में फील्ड ऑफिसर था। उसकी मौत हो चुकी थी। वह कोशिश करती कि रविवार को भी कॉपी चेकिंग के लिए ले जाये। पर आज तो उसके सारे काम भी खतम हुए काफ़ी समय हो गया था। शाम का समय था कॉलोनी के कपल देख उस...
वनवास
कहानी

वनवास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** अवनी आज अपनी माँ से लगातार सवाल पूछ रही थी। यह अंकल कौन थे? बताओ ना माँ, आखिर कब तक तुम यूं ही घुटती रहोगी? क्या तुम्हें अपनी अवनी पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? पापा को गुजरे बीस साल हो गए। कब तक उनकी यादों में खुद को डुबोकर रखोगी? आखिर कुछ तो कहो, माँ। देखो माँ तुम्हारे चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ रही है। कल को मेरी भी शादी हो जाएगी। मुझें तुम्हारी बहुत चिंता रहती है। सुधा अंदर ही अंदर घुट रही थी कि वह अपने अतीत की छाया अपनी बेटी की जिंदगी पर नहीं पड़ने देगी। सब कुछ खत्म हो चुका था, फिर आज राजन क्यों लौट आया था, क्या पड़ी थी उसे? अवनी, माँ मैं ऑफिस जा रही हूँ, शाम को आकर बात करते हैं। उसने जाते-जाते माँ को गले लगा कर चूम लिया था। मेरी प्यारी माँ नाराज हो अब तक, अच्छा अब मैं कुछ नहीं पूछूंगी? अब तो हँस दो माँ। बेटी का मन रखने के लिए ही सह...
वही दर्द
लघुकथा

वही दर्द

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                            मोना को आज ट्यूशन से घर आने में देर हो गई, जैसे-तैसे वह जल्दी जल्दी चलने लगी तो तेज आंधी शुरू हो गई। उसकी किताबें बिखर गई और तेज बारिश के कारण लाइट भी चली गई। वह बहुत डर गई। अंधेरा हो गया था कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, जैसे तैसे वह एक ऑटो आकर रुका, उसने कुछ कहा नहीं और ऑटो में बैठ गई। भैया तिलक नगर जाना है, जी मैडम वह सोच रही थी कि, अच्छा हुआ ऑटो मिल गया वर्ना आज तो मुश्किल हो जाती। कुछ दूर जाने के बाद ऑटो वाला सुनसान रास्ते पर ले जाने लगा। भैया आटो रोको, आप मुझे कहां ले जा रहे हो? ऑटो वाले ने शांति से कहा कि, मैडम मेन रोड से ले जाऊंगा, तो पुलिसवाले रोकेंगे और प्रश्न पूछेंगे। आपको और देर हो जाएगी।इसलिए मैं दूसरे रास्ते से ले जा रहा हूं। आप निश्चिंत रहिए मैं आपको घर तक छोड़ द...
मिलन
कहानी

मिलन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटा, तेरी डाक मेज पर रखी है। पता नहीं यह लड़का क्यों कागज काले करता रहता है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता। डाकिया भी रोज ही घर के चक्कर लगाता रहता है। कल ही तो कह रहा था, माँ जी प्रकाश को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक है। वह बहुत सुन्दर कहानी-कविताएं लिखता है। यह बहुत अच्छी बात है। अच्छा माँ जी अब मैं चलता हूँ। वह डाक में आए पत्रों को खोलकर पढ़ने लगा। ज्यादातर पत्रों में रचनाओं के प्रकाशन की सूचना थी और अति शीघ्र ही पत्रिका की प्रति भेजने का आश्वासन भी था। उसके मन को तृप्ति मिलती थी कि उसके लेखन का प्रयास सफल हो रहा हैं, चाहे धीरे-धीरे ही सही। उसने आखिरी पत्र भी खोल ही लिया।वह हैरान था यह पत्र उसे किसी मिस कविता ने एक सुंदर लेटर पैड पर लिखा था। पत्र में से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थीं। उसे मेरी रचनाएँ बहुत पसंद आई थी। खासकर कहानियाँ जो पार...
आश्रम
लघुकथा

आश्रम

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** पति के गुजर जाने के बाद राधादेवी की जिंदगी बस दोनों बेटो के घर के इर्द गिर्द गुजर रही थी। दोनों बेटो के एक शहर में रहने से जिसे जरूरत लगती माँ को बुला लेता। वो परेशान सी हो गई थी। एक दिन छोटी बहू ने जरा सी चाय गिरने पर बहुत बुरा भला कहा दुखी हो राधादेवी घर से निकल कर मंदिर मै जा कर बैठ गई। वही उन्हे एक बुजुर्ग दम्पति मिले वह दोनों आश्रम मै रह रहे थे। उनसे मिलकर राधादेवी ने एक निर्णय लिया। घर आई और अपना सामान पैक करने लगी और बोली आज से मै आश्रम में रहूँगी। बेटे आश्चर्य से बोले क्यों? माँ ने बड़े ही गंभीर स्वर में बोला बाकी दिन मै अपने सुकून और आनन्द से बिताना चाहती हूँ। तुम लोग मेरी चिंता ना करो। तुम्हारे पिताजी की पेंशन से गुजारा हो जायेगा और ऐसे भी तुम लोगों को मेरी जरूरत होती हैं तभी याद आती हूँ। और वह चली गई दोनों बेटे मुँह ताकते रह गय...
मानव माँस
लघुकथा

मानव माँस

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** गिद्ध के बच्चे जिद कर रहे थे कि उन्हें मानव माँस ही खाना है । वे बच्चे मानव माँस का स्वाद चख चुके थे। गिद्ध परेशान! कहां से लाऊँ? संयोगवश गिद्ध को मानव माँस मिल गया, एक आदमी को फांसी की सज़ा दी गई थी। गिद्ध खुश था कि अब उसके बच्चे मानव मांस खाकर, प्रसन्न हो जाएंगे। यह क्या? बच्चों ने पहला निवाला खाते ही...थू.. कहते हुए बुरा सा मुंह बना लिया। यह मानव मांस नहीं, यह तो किसी कुत्ते का मांस है। गिद्ध अवाक! उन मुंह देखता रह गया। वह उन्हें कैसे बताता वह सामूहिक बलात्कार के अपराध में सज़ा पाए मानव का माँस था। परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशि...
कर्ज
लघुकथा

कर्ज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                         आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया। सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी, खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी। अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके। तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये। सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी। विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया, पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़...
घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये
आलेख

घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                   किसी ने सच ही कहा है कि जिस घर मे बुजुर्ग सन्तुष्ट व प्रसन्नचित्त रहते हैं, वह घर धरती पर स्वर्ग के समान है, परन्तु आज आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में रिश्तों में उत्पन्न व्यवहारिकता व आपसी सामंजस्य व घटती सम्मान की भावना के कारण ऐसा स्वर्ग अब अपवाद का रूप लेता जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में अब बुजुर्गों को जीवन के अर्धशतक के नज़दीक आते आते सिर्फ अपने भविष्य के प्रति सचेत हो जाना चाहिये, कुछ नहीं पता हालात क्या मोड़ ले लें, स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत कर, स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए आशा व विश्वास से परिपूर्ण ऊर्जावान बनाये रखना होगा तभी तो बुढ़ापा खिलखिलाहट से भरा होगा, उसकी जगमगाहट अंदर तक आपको जाग्रत कर देगी। आज बच्चों की भी अपनी विवशताएँ है, कम आमदनी, बढ़ते खर्चे, चकाचैंध से भरा जीवन जीवन ज...
गोलगप्पे
कहानी

गोलगप्पे

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ********************                                  ग्यारह वर्षीय शैली अपनी सभी सहेलियों में क़द-काठी में सबसे लम्बी थी। खेलकूद प्रतियोगिताओं और पढ़ाई में सबसे होशियार परन्तु साथ ही सबसे अधिक शरारती भी। चित्रकारी और शायरी का इतना शौक़ कि गणित की कक्षा में भी बैठी हुई कापी के पिछले पन्नों पर टीचर की तस्वीर बनाकर उसके नीचे शायराना अंदाज में कुछ भी दो पंक्तियाँ और लिख देती। कक्षा के सभी छात्र शैली के द्वारा की गई चित्रकारी और शेरो-शायरी की ख़ूब सराहना करते और इसी के साथ उसकी कापी वाहवाही बटोरतीं पूरी कक्षा में घूमतीं रहती। टीचर जब कक्षा के सभी बच्चों की कापी चैक करने के लिए माँगती तो शैली भी बड़ी होशियारी से सबकी कापियों के नीचे सरका कर अपनी कापी भी रख देती। घंटी बजते ही चुपके से उसे वापस भी निकाल लेती। एक दिन की बात है कि कक्षा में टीचर ब्...