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गद्य

आखिर कब तक
आलेख

आखिर कब तक

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                           बेटियों के साथ हर दिन कई घटनाएं घट रही है, आज यहां तो कल वहां। कभी रेप के बाद उन्हें जिन्दा जला दिया जाता है, कभी उनकी जीभ काट ली जाती है, हड्डियां तोड़ दी जाती हैं, उन्हें मरने पर मजबूर कर दिया जाता है। जो बेटियां मर रहीं हैं, वह बेटियां घर की रौनक, मां बाप के दिल की धड़कन और देश और समाज का हिस्सा थी, उनके हिस्से में आता है केवल मौत, और अगर मारने वालों को सजा होती भी है तो उन्हें बचाने के लिए नेता पहुंच जाते हैं फिर कुछ दिनों बाद वे वहशी दरिंदे स्वच्छन्द घूमने लगते हैं। आखिर हमारा समाज कहां जा रहा है। अभी-अभी हमने नवरात्रि मनाई है ,और कन्या पूजन भी किया है, उनका यह परिणाम कि एक बेटी को सरेआम गोली मार दी गई। आखिर कानून सबके लिए एक जैसा क्यों नहीं है? वहां भी बड़ा ,छोटा जात,...
गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ
व्यंग्य

गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   भारत ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर गोपियों का महत्व और वर्चस्व सदा से कायम रहा है और आगे भी रहेगा! सतयुग, त्रेता, द्वापरयुग से लेकर आज तक गोपियों के महत्व में कोई परिवर्तन नहीं है! पहले गोपियाँ पनघट में पानी भरते पायी जाती थीं, सावन में झूले झूलती पायी जाती थीं! बाग बगीचों में आपस में हास, परिहास, इठलाती, बलखाती पायी जाती थीं, तब नटखट नंदलाला इनको छेंड़ा करता था और ये हंसी खुशी छिंड़ जाया करती थीं! नंदलाला से छिड़ंकर ये इठलाया करती थीं! कहते हैं समय बड़ा ही परिवर्तनशील और परिवर्तन भरे दौर में इन गोपियों में भी भयंकर परिवर्तन आया है, अब गोपियों के हाथ में एंड्रायड मोबाइल है और ये गोपियाँ फेसबुक पर पायी जा रही हैं! स्वयं छिड़ने के बजाय अब तो फेसबुक पर खुलेआम, नंदलाला...
बंदिशें
कहानी

बंदिशें

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उर्मि, तंग आ गई थी। सभी ने उसका जीना हराम कर रखा था। बात-बात पर टोका-टाकी उसे पसंद नही थी। पर परिवार था कि मानने को तैयार नहीं था। कोई ना कोई बहाना निकाल ही लेता था, उसे परेशान करने का। माँ तो जब देखो समझाने बैठ जाती थी। बेटी बाहर ना जाया करो, यहाँ ना जाया करो। आजकल पहले वाला जमाना नहीं है, लोग लड़कियों को भूखी नजरों से देखते रहते हैं। यहाँ इंसानों के भेष में राक्षस घूम रहे हैं। पर तुम मेरी बात सुनती ही कहाँ हो? एक हमारा जमाना था। क्या मान-सम्मान था, गाँव में लड़कियों का? गाँव की लड़की को सारा गाँव अपनी ही लड़की समझता था। मजाल है कोई किसी लड़की को छेड़ दे। बेटी, मैं तुम्हें बताती हूँ, एक कहानी जरा ध्यान से सुनना। क्योंकि तू हमेशा मेरी बातों को हल्के में लेती है। ठीक है माँ, कहो अपनी रामकथा, उसने चिल्लाकर कहा। यही रवैया तो सुधरना है मुझें ...
विजयादशमी
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विजयादशमी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विजयादशमी पर्व प्रतीक है विजय का! अधर्म पर धर्म की विजय!! अन्याय पर न्याय की जीत!!! और सबसे बढ़कर उच्छृंखलता एवं निरंकुशता पर संयम तथा मर्यादा की विजय!!! और इसलिए विजयादशमी पर्व की प्रासंगिकता हर युग में बनी रहेगी। पिता के वचन की लाज रखने के लिए पल भर में रघुकुल के सूर्य से देदीप्यमान साम्राज्य के सिंहासन को एक तुच्छ तिनके-सा त्याग दिया और वैभव-विलास से पूर्ण राजमहल का सुविधासम्पन्न, सुखमय जीवन छोड़कर १४ वर्ष के लिए शीत, ताप, वर्षा से आचछन्न कंकरीले-पथरीले डगर वाले हिंस्र पशुओं से भरे भयावह एवं अभाव तथा आशंकाओं से ग्रस्त वन्य जीवन को स्वीकार कर लिया जानकीवल्लभ श्री राम ने!साथ चलीं धरती पुत्री सीता और जगत्- दुर्लभ भ्राता लक्ष्मण!! आज हम अपने छोटे-छोटे क्षुद्र स्वार्थों के लिए अपने मूल्यों-आदर्शों की, यहाँ तक की अपनी आत्मा और अपने राष्ट्र एवं...
आओ इस बार अपने मन के अंदर बैठे हुए रावण का अंत करें
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आओ इस बार अपने मन के अंदर बैठे हुए रावण का अंत करें

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                           हम हर वर्ष दशहरा में बुराई का प्रतीक रावण का पुतला जलाते हैं। पुतलों की ऊंचाई हर बार बड़ी और बड़ी होती जाती है। रावण का पुतला दहन कर हम अपने आप को राम के तुल्य मान लेते हैं, और खुश हो जाते हैं। आपको मालूम है कि रावण अपने बड़ी-बड़ी आंखों को दिखाकर और बड़े बड़े दांत दिखाकर जोर-जोर से हंसता है, और कहता है कि रे! मानव तुम लोग मुझे जिंदा जला नहीं सकते, इसलिए कागज का जला कर ही खुश हो जाते हो। मैं मरता कहां हूं? मैं तो हर वर्ष और अधिक शक्तिशाली होकर तुम्हारे सामने प्रकट हो जाता हूं, और तुम लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। सही भी तो है कि अगर हम अपने अंदर बैठे हुए रावण (बुराई) का अंत कर दे, तो फिर रावण के पुतले को जलाने की आवश्यकता ही नहीं होगी। आज हर मानव के मन में दानव कुण्डली मारक...
कुदरत के फैसले…
कहानी

कुदरत के फैसले…

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ********************                                                      पिछले महीने सितम्बर के आखिरी हफ्ते की बात है, मैं कुछ अनमनी, हैरान,परेशान सी थी, अपने ही लोगों से कुछ आहत थी! जीवन में यह सब नया नही था और ना पहली बार! सब कुछ चलता रहता है यही सोचकर मैं घर के छोटे-मोटे काम निबटा कर नहाई! समय लगभग दिन के एक बज चुके थे, मंदिर में दीप जलाते ही मुझे याद आया कि तुलसी का पौधा सूखने लगा होगा, इसलिए जल चढ़ाने के लिए बाहर गई! मन में संशय था कि कहीं कोई देखेगा तो क्या सोचेगा...? कि दिन के एक-दो बजे तुलसी में जल चढ़ा रही है, कितनी लापरवाह और आलसी औरत है! यूँ तो सरपट भागती दिल्ली नगरिया में किसी को किसी से कोई विशेष मतलब नहीं रहता है, फिर भी आस पड़ोस की कुछ महिलाएँ दूसरी महिलाओं की कमियाँ और खोट निकाल कर मजे लेने से पीछे नहीं हटती हैं! जो भी हो लेकिन म...
नारियाँ : अबला या सबला
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नारियाँ : अबला या सबला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                                       ये ऐसा विषय है जिस पर पूरे विश्वास से कोई कुछ भी नहीं कह सकता। क्योंकि इस परिप्रेक्ष्य में सिक्के के दोनों पहलुओं का अपना अपना मजबूत पक्ष है और किसी भी एक पक्ष को कम करके आंकना खुद को धोखा देना ही कहा जायेगा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि नारियां नित नये मुकाम पर पहुंच रही हैं। जिंदगी के हर क्षेत्र में अपने आप को न केवल सिद्ध कर रही हैं। बल्कि खूद को स्थापित कर खुद को खुद से ही चुनौती पेश कर कदम दर कदम अपने बुलंद हौसले की मिसाल भी पेश कर रही हैं।शिक्षा, कला, साहित्य, विज्ञान, सेना, खेलकूद, प्रशासन, राजनीति हर जगह अपनी मजबूत उपस्थिति का अहसास करा रही हैं। यही नहीं चूल्हा चौका से बाहर भी नारियां अपनी नेतृत्व क्षमता का भी लोहा मनवा रही हैं। इसलिए ये कहना गलत ही होगा कि नारिया...
जख्मों की टीस
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जख्मों की टीस

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************                                   नेहा महज तीस साल की है। वह हिमाचल प्रदेश के बद्दी में रहती है। वह बद्दी के एक नामी पाठशाला में शिक्षिका है। वह अक्सर कहती कि उसे छुट्टियों वाले दिन की दोपहर बहुत लम्बी लगती है जैसे कि दिन यहाँ आकर रुक सा जाता है और इन दोपहरों की चुप्पी जैसे बीहड़ की कोई झील एकदम शांत सी। आज इतवार था। इस दिन का सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं। कोई दोस्तों से मिलने जाता है तो कोई सिनेमा देखने तो कोई शॉपिंग। पर नेहा के लिये यह सबसे लंबा और बोझल दिन रहता है। वह तब भी था जब आकाश था और वह अब भी है जब आकाश नहीं। आकाश नेहा का पति एल. आई. सी. में फील्ड ऑफिसर था। उसकी मौत हो चुकी थी। वह कोशिश करती कि रविवार को भी कॉपी चेकिंग के लिए ले जाये। पर आज तो उसके सारे काम भी खतम हुए काफ़ी समय हो गया था। शाम का समय था कॉलोनी के कपल देख उस...
वनवास
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वनवास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** अवनी आज अपनी माँ से लगातार सवाल पूछ रही थी। यह अंकल कौन थे? बताओ ना माँ, आखिर कब तक तुम यूं ही घुटती रहोगी? क्या तुम्हें अपनी अवनी पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? पापा को गुजरे बीस साल हो गए। कब तक उनकी यादों में खुद को डुबोकर रखोगी? आखिर कुछ तो कहो, माँ। देखो माँ तुम्हारे चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ रही है। कल को मेरी भी शादी हो जाएगी। मुझें तुम्हारी बहुत चिंता रहती है। सुधा अंदर ही अंदर घुट रही थी कि वह अपने अतीत की छाया अपनी बेटी की जिंदगी पर नहीं पड़ने देगी। सब कुछ खत्म हो चुका था, फिर आज राजन क्यों लौट आया था, क्या पड़ी थी उसे? अवनी, माँ मैं ऑफिस जा रही हूँ, शाम को आकर बात करते हैं। उसने जाते-जाते माँ को गले लगा कर चूम लिया था। मेरी प्यारी माँ नाराज हो अब तक, अच्छा अब मैं कुछ नहीं पूछूंगी? अब तो हँस दो माँ। बेटी का मन रखने के लिए ही सह...
वही दर्द
लघुकथा

वही दर्द

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ********************                                                            मोना को आज ट्यूशन से घर आने में देर हो गई, जैसे-तैसे वह जल्दी जल्दी चलने लगी तो तेज आंधी शुरू हो गई। उसकी किताबें बिखर गई और तेज बारिश के कारण लाइट भी चली गई। वह बहुत डर गई। अंधेरा हो गया था कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, जैसे तैसे वह एक ऑटो आकर रुका, उसने कुछ कहा नहीं और ऑटो में बैठ गई। भैया तिलक नगर जाना है, जी मैडम वह सोच रही थी कि, अच्छा हुआ ऑटो मिल गया वर्ना आज तो मुश्किल हो जाती। कुछ दूर जाने के बाद ऑटो वाला सुनसान रास्ते पर ले जाने लगा। भैया आटो रोको, आप मुझे कहां ले जा रहे हो? ऑटो वाले ने शांति से कहा कि, मैडम मेन रोड से ले जाऊंगा, तो पुलिसवाले रोकेंगे और प्रश्न पूछेंगे। आपको और देर हो जाएगी।इसलिए मैं दूसरे रास्ते से ले जा रहा हूं। आप निश्चिंत रहिए मैं आपको घर तक छोड़ द...
मिलन
कहानी

मिलन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटा, तेरी डाक मेज पर रखी है। पता नहीं यह लड़का क्यों कागज काले करता रहता है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता। डाकिया भी रोज ही घर के चक्कर लगाता रहता है। कल ही तो कह रहा था, माँ जी प्रकाश को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक है। वह बहुत सुन्दर कहानी-कविताएं लिखता है। यह बहुत अच्छी बात है। अच्छा माँ जी अब मैं चलता हूँ। वह डाक में आए पत्रों को खोलकर पढ़ने लगा। ज्यादातर पत्रों में रचनाओं के प्रकाशन की सूचना थी और अति शीघ्र ही पत्रिका की प्रति भेजने का आश्वासन भी था। उसके मन को तृप्ति मिलती थी कि उसके लेखन का प्रयास सफल हो रहा हैं, चाहे धीरे-धीरे ही सही। उसने आखिरी पत्र भी खोल ही लिया।वह हैरान था यह पत्र उसे किसी मिस कविता ने एक सुंदर लेटर पैड पर लिखा था। पत्र में से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थीं। उसे मेरी रचनाएँ बहुत पसंद आई थी। खासकर कहानियाँ जो पार...
आश्रम
लघुकथा

आश्रम

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** पति के गुजर जाने के बाद राधादेवी की जिंदगी बस दोनों बेटो के घर के इर्द गिर्द गुजर रही थी। दोनों बेटो के एक शहर में रहने से जिसे जरूरत लगती माँ को बुला लेता। वो परेशान सी हो गई थी। एक दिन छोटी बहू ने जरा सी चाय गिरने पर बहुत बुरा भला कहा दुखी हो राधादेवी घर से निकल कर मंदिर मै जा कर बैठ गई। वही उन्हे एक बुजुर्ग दम्पति मिले वह दोनों आश्रम मै रह रहे थे। उनसे मिलकर राधादेवी ने एक निर्णय लिया। घर आई और अपना सामान पैक करने लगी और बोली आज से मै आश्रम में रहूँगी। बेटे आश्चर्य से बोले क्यों? माँ ने बड़े ही गंभीर स्वर में बोला बाकी दिन मै अपने सुकून और आनन्द से बिताना चाहती हूँ। तुम लोग मेरी चिंता ना करो। तुम्हारे पिताजी की पेंशन से गुजारा हो जायेगा और ऐसे भी तुम लोगों को मेरी जरूरत होती हैं तभी याद आती हूँ। और वह चली गई दोनों बेटे मुँह ताकते रह गय...
मानव माँस
लघुकथा

मानव माँस

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** गिद्ध के बच्चे जिद कर रहे थे कि उन्हें मानव माँस ही खाना है । वे बच्चे मानव माँस का स्वाद चख चुके थे। गिद्ध परेशान! कहां से लाऊँ? संयोगवश गिद्ध को मानव माँस मिल गया, एक आदमी को फांसी की सज़ा दी गई थी। गिद्ध खुश था कि अब उसके बच्चे मानव मांस खाकर, प्रसन्न हो जाएंगे। यह क्या? बच्चों ने पहला निवाला खाते ही...थू.. कहते हुए बुरा सा मुंह बना लिया। यह मानव मांस नहीं, यह तो किसी कुत्ते का मांस है। गिद्ध अवाक! उन मुंह देखता रह गया। वह उन्हें कैसे बताता वह सामूहिक बलात्कार के अपराध में सज़ा पाए मानव का माँस था। परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशि...
कर्ज
लघुकथा

कर्ज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                         आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया। सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी, खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी। अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके। तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये। सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी। विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया, पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़...
घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये
आलेख

घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                   किसी ने सच ही कहा है कि जिस घर मे बुजुर्ग सन्तुष्ट व प्रसन्नचित्त रहते हैं, वह घर धरती पर स्वर्ग के समान है, परन्तु आज आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में रिश्तों में उत्पन्न व्यवहारिकता व आपसी सामंजस्य व घटती सम्मान की भावना के कारण ऐसा स्वर्ग अब अपवाद का रूप लेता जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में अब बुजुर्गों को जीवन के अर्धशतक के नज़दीक आते आते सिर्फ अपने भविष्य के प्रति सचेत हो जाना चाहिये, कुछ नहीं पता हालात क्या मोड़ ले लें, स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत कर, स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए आशा व विश्वास से परिपूर्ण ऊर्जावान बनाये रखना होगा तभी तो बुढ़ापा खिलखिलाहट से भरा होगा, उसकी जगमगाहट अंदर तक आपको जाग्रत कर देगी। आज बच्चों की भी अपनी विवशताएँ है, कम आमदनी, बढ़ते खर्चे, चकाचैंध से भरा जीवन जीवन ज...
गोलगप्पे
कहानी

गोलगप्पे

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ********************                                  ग्यारह वर्षीय शैली अपनी सभी सहेलियों में क़द-काठी में सबसे लम्बी थी। खेलकूद प्रतियोगिताओं और पढ़ाई में सबसे होशियार परन्तु साथ ही सबसे अधिक शरारती भी। चित्रकारी और शायरी का इतना शौक़ कि गणित की कक्षा में भी बैठी हुई कापी के पिछले पन्नों पर टीचर की तस्वीर बनाकर उसके नीचे शायराना अंदाज में कुछ भी दो पंक्तियाँ और लिख देती। कक्षा के सभी छात्र शैली के द्वारा की गई चित्रकारी और शेरो-शायरी की ख़ूब सराहना करते और इसी के साथ उसकी कापी वाहवाही बटोरतीं पूरी कक्षा में घूमतीं रहती। टीचर जब कक्षा के सभी बच्चों की कापी चैक करने के लिए माँगती तो शैली भी बड़ी होशियारी से सबकी कापियों के नीचे सरका कर अपनी कापी भी रख देती। घंटी बजते ही चुपके से उसे वापस भी निकाल लेती। एक दिन की बात है कि कक्षा में टीचर ब्...
क्षितिज मिलेगा
कहानी

क्षितिज मिलेगा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************  प्रियंका, क्या मैं अंदर आ सकती हूँ, सर। प्लीज कम इन, हैव आ सीट। थैंक्स, सर। कैन आई हेल्प यू। सर, मेरा नाम प्रियंका है। पिछले सप्ताह ही आपसे जॉब के लिए बात हुई थी। ओह, यस प्रियंका, आप हमीरपुर से हैं। यस सर, आप कल ९:०० बजे से आ सकती हो, थैंक सर। मन में नई उमंग के साथ ही घर फोन मिला दिया। मम्मी मुझें जॉब मिल गई हैं, हमीरपुर में। मम्मी : प्रियंका-मुझें तो पहले ही पता था कि तुम्हें जॉब जल्दी ही मिल जाएगी। तुम बहुत काबिल हो, काबिल लोगों के मार्ग में रोड़े आ सकते हैं, बाधाए आ सकती। पर उन्हें मंज़िल अवश्य मिल जाती है। चाहे देर से ही सही,इतना कहते-कहते माँ चुप हो गई। प्रियंका : माँ- चुप क्यों हो गई? मन में कुछ हो तो, कहो ना। मन का दर्द कहने से हल्का हो जाता है। फिर मैं तो तुम्हारी बहादुर बेटी हूँ ना। कल अनिल का फोन आया था। वह कह रहा था कि उसे अ...
कन्यादान
कहानी

कन्यादान

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ********************                               उस नन्ही किलकारी से सारे घर का वातावरण संगीतमय में हो गया। उसके हाथ पैर की थिरकन, चेहरे की भाव-भंगिमा का आकर्षण किसी को भी उससे दूर ना जाने देता। पंडित जी ने यह कहते हुए उसका नाम लीना रखा- " कि उससे उसके गृह नक्षत्र बता रहे हैं कि जो इससे मिलेगा इसमें लीन हो जाएगा।" बड़े होते हो हुए उसके नाम की खूबी बखूबी उसके स्वभाव में झलक रही थी। अपने मुस्कुराहट की डोर में सभी को समेटे लीना ने सभी के अच्छे गुणों को अपने में समाहित कर रखा था। हर विद्या में पारंगत, स्वभाव से नम्र, कुशाग्र बुद्धि लीना मेरे दिखाए रास्ते का अनुसरण कर आज सफल ड्रेस डिजाइनर बन चुकी थी। उसके स्वभाव, पेंटिंग और रंगोली की ही तरह उसके ड्रेस की डिजाइन भी अनूठी होती । आज उसकी शादी का रिश्ता आने पर उसके युवा होने का पता चला। मैं हैरान सोच रहा था अ...
सखी भाग- २
कहानी

सखी भाग- २

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** मैं उन सभी रसिक एवं विज्ञ पाठकों का हृदय से आभारी हूं, जिन्होंने मेरी कहानी "सखी" को पढ़ा और पसंद किया। लेकिन कुछ पाठकों का तर्क था कि कहानी और आगे बढ़ सकती है, उसे बीच में ना छोड़ा जाए और आगे बढ़ाया जाए तो एक कोशिश की है, उसे आगे बढ़ाने की, तो प्रस्तुत है कहानी का दूसरा भाग :- विश्वास एवं सखी की बातचीत लगातार होने लगी। जिस दिन विश्वास की सखी से बात होती उस दिन विश्वास मन ही मन मुस्कुराता रहता, वह दिन भर खुश एवं प्रसन्न रहता, उसे ऐसा लगता मानो अंदर ही अंदर उसे कोई गुदगुदी कर रहा हो। उधर सखी की हालत भी ऐसी ही थी, लेकिन बातों ही बातों में विश्वास को यह महसूस हुआ कि सखी की बातों में कोई गहरा अर्थ छुपा हुआ है, सखी कुछ कहना चाहती हैं, कुछ जताना चाहती है और विश्वास उसे समझ नहीं पा रहा है। कहते हैं ना "अरथ अमित-आखर थोरे"। अतः विश्वास अब...
मां काश आप होती
संस्मरण

मां काश आप होती

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ********************                 बचपन में मां को पिता से छोटी-छोटी बात पर झगड़ते और बहस करते देखा है। मां के प्रति उस वक़्त कभी-कभी गुस्सा और अनादर का भाव आ जाता था। जैसे-जैसे बड़ा हुआ तो उनके गुस्से को समझा कि वह पिता के लिए नहीं उन परिस्थितियों के लिए था जिसमें मां हमें जो देना चाहती थी और नहीं दे पाती थी। अभाव से भरे जीवन की मजबूरी ने मां को चिड़चिड़ा बना दिया था। बड़े होते हुए मां को बहुत सी बातों के साथ समझौता करते देखा। हमें बड़े स्कूल में पढ़ाने का सपना अक्सर मैं उनकी आंखों में देखता। वो हर संभव प्रयास किया करती कि एक स्तर बरकरार रख सकें ताकि हमारी परवरिश में कोई कमी ना हो। उनके प्रयास सफल भी होते। मां का जीवन हमारे लिए साधन जुटाते गुजरा। उन्होंने ये जिम्मेदारी स्वयं उठा की और पिता से अपेक्षाएं कम कर दी। मैंने भी उनके प्रयास में उनका साथ दिय...
अंतिम निर्णय
लघुकथा

अंतिम निर्णय

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सपना के पापा की पहली बरसी थी मम्मी के कहने पर सपना वृध्दाश्रम में भोजन की व्यवस्था कराने पहुंची थी, प्रवेश करते समय सामने आफिस मे बैठे कबीर अंकल कीओर सपना की नजर पड़ी। सपना ने कहा अरे ! कबीर अंकल आप यहाँ? अंकल कहने लगे बिटिया अब तो यही अपना घर है बेटा मैं अब यहीं रहने लगा हूँ कहकर तेजी से उठकर चल दिए जैसे अपना दर्द छुपा रहे हो। सपना भी अपने काम में व्यस्त हो गयी। यहाँ की व्यस्तता के बीच सपना की नजरें लगातर कबीर अंकल पर थी जो लगातार सपना से छुपने की कोशिश में थे। वृध्दाश्रम के सभी सदस्यों के भोजन का कार्य अच्छे से सम्पन्न कराकर सपना समान गाड़ी में रखवाकर घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में उन्हें कबीर अंकल की बात याद आ गयी अब तो यही अपना घर है। सपना ने सोचना शुरू किया कि कबीर अंकल के घर पर दो बेटे और एक बेटी का हँसता खेलता प...
भीख
लघुकथा

भीख

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          कहते हैं लाचारी इंसान को कितना बेबस बना देती है। कुछ ऐसा ही मि.शर्मा को अब महसूस हो रहा है। कहने को तो चार बेटे बहुएं नाती पोतों से भरा पूरा परिवार है। मगर सब अपने अपने में मस्त हैं। महल जैसे घर में मि.शर्मा अकेले तन्हाई में सिर्फ मौत की दुआ करते रहते हैं। शरीर कमजोर है, आँखों से कम दिखाई देता है। कानों से भी कम ही सुनाई देता है। भोजन पड़ोसी दीपक के यहां से आता है। दीपक एक बेटे की तरह ही उनका ध्यान रखते हैं। उनके बच्चे भी समयानुसार देखभाल कर ही देते हैं। पति-पत्नी तीज त्योहार पर आकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं। ये सब किसी लालच में नहीं करते बल्कि अपने मां बाप की कमी के अहसास को महसूस कर मि.शर्मा में उनका अक्स दिखने और बुजुर्ग के आशीर्वाद की आकांक्षाओं के कारण करते हैं। आखिरकार मि.शर्मा...
सच्चा साथी
लघुकथा

सच्चा साथी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** "छोड़ेंगे ना हम तेरा साथ, ओ साथी मरते दम तक। रेडियो पर यह गीत सुनकर उमेश एकदम चौक गया। साथी मरते दम तक, खुद भी गुनगुनाने लगा। रीटा की आवाज सुनकर, वह थोड़ा हिचक गया और चुप हो गया। नहीं-नहीं गा लो गीत अच्छा है। आखिर मुझें आज भरोसा तो हुआ कि तुम मरते दम तक मेरा साथ नहीं छोड़ोगे, पर वह चुप था। ऑफिस पहुँचते ही, नमस्ते करने वालों की होड़ सी लग गई। लगती भी क्यूँ ना, वह अपने ऑफिस में उच्च पद पर आसीन जो था? वह अपनी कुर्सी पर लगभग पसर सा गया। उसे ऐसा लग रहा था, कुछ गीत हमारी जिंदगी में कितना ऊँचा स्थान रखते हैं। कुछ गीत हमारे लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं, कुछ सिर्फ सुख-दुख व्यक्त करने का जरिया मात्र। रीटा आज मन ही मन चहक रही थी कि उमेश ने उसका महत्व समझा तो सही, चाहे उसने अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए एक गीत का ही सहारा लिया हो। पर क्या फर्क पड...
नई पहल
लघुकथा

नई पहल

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आशा : माँ जी- आपको और पिताजी को तो मेरे काम में कोई ना कोई कमी हमेशा नजर आती है। आखिर क्या गलती है मेरी, जो आप हमेशा नाराज रहते हो? कभी तो मेरा उत्साह बढ़ाया करो। आपसे तो किसी तरह की उम्मीद रखना अपने आप को धोखा देने जैसा है।रोज-रोज की कहासुनी से, राजेश भी बहुत परेशान था। पत्नी की सुनता तो, जोरू का गुलाम कहलाता और माँ की सुनता तो, पत्नी कहती माँ के पल्लू से बंधे रहना जीवन भर। कभी मन में आता छोड़कर भाग जाऊं सब कुछ। ये खुद ही काम-धाम संभाल लेंगे। शादी से पहले सब कुछ ठीक चल रहा था। माँ कहती थी मेरी बहूँ आएगी तो मैं उसे बहूँ नहीं बेटी की तरह रखूंगी। सास को बहूँ को बेटी ही मानना चाहिए। उस समय मैं सोचा करता था, मेरे घर में आने वाली लड़की बड़ी ही भाग्यवान होगी। जो उसे ऐसा परिवार मिलेंगा।आशा का स्वभाव थोड़ा सा तुनक-मिजाज था। वह छोटी-छोटी बातों प...
हिंदी है हम
लघुकथा

हिंदी है हम

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** रानी किसी काम के लिए पोस्ट ऑफ़िस गई। उसने देखा एक महिला वहां की कर्मचारी से इंग्लिश में बात कर रही थी। दूसरी तरफ रानी सोच रही थी। अपने ही देश भारत में रहकर भी कुछ लोगों को हिंदी बोलने में शर्म आती है। उस महिला को कोई फॉर्म भरना था लेकिन वह भर नहीं पा रही थी। वह रानी के पास आई और इंग्लिश में बोली, कैन यू फील माय फॉर्म...? रानी को भी अच्छी इंग्लिश आती थी लेकिन वह विनम्रता से बोली, जी जरूर भर दूंगी लेकिन मैं हिंदी में भरना पसंद करूंगी। वह महिला बोली जैसा आप चाहें। रानी ने लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह नहीं करते हुए गर्व से अपनी मातृभाषा में फार्म भरकर उस महिला को थमा दिया। परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय...