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गद्य

धनुआ क माई
लघुकथा

धनुआ क माई

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** मेरे पड़ोस के ही गांव सोना का पूरा में कल्लू सेठ अपनी धर्मपत्नी के साथ रहा करते थे जिनको एक लड़का धनंजय नाम का था घर और गांव के लोग उसे धनुआ कह कर बुलाते। कुछ दिन के बाद कल्लू का एक्सीडेंट हो गया वो बचाया नहीं जा सका धनुआ और उसकी मां पर तो वज्रपात ही हो गया। स्थानीय लोगों द्वारा सरकार से पैरवी करा कर धनुआ की मां को ३००००० लाख रु. की सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से मिल गए। अनुदान पा कर मां बेटा बहुत खुश हुए अब जैसे तैसे गाड़ी चलने लगी इसके अतिरिक्त इनके पास आयका अन्य स्रोत नहीं था गरीब की औरत पूरे गांव की भौजाई भौजाई.... गांव के लोगों की राय से धनुआ का नाम एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में लिखवा दिया गया अब पैसों की आवश्यकता महसूस होने लगी गांव के कुछ लोग धनुआ की मां को भऊजी पांव लगी कहने लगे धनुआ की मां चीढ़ती थी धीरे-धीरे सब को आश...
दावत
कहानी

दावत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे गाँव में एक बूढ़े बाबा थे जिनका नाम बनी सिंह था। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तब में सिर्फ दस साल का था। लोग उनकें बारे में बहुत भला बुरा कहते थे और वास्तव में वे थे भी बहुत बूरे। उनके बारे में एक बात तो प्रचलित थीं कि जब उनका परिवार साजे में रहता था तो वही अपने सभी भाईयों में मुखिया थे और उनके भाई उन पर आंख बंद कर के विश्वास करते थे। एक दिन सभी भाईयों ने मिलकर छ: बिघा जमीन खरीदी और बेनामा कराने सभी भाईयों ने बनीं सिंह जो मुखिया थे उन्हें तहसील भेज दिया और कोई भी भाई उनके साथ नहीं गया।बनी सिंह ने बिना किसी को बताए तीन बिघा जमीन अपने नाम करा ली और घर आकर कह दिया कि मैं पिता जी के नाम बेनामा करा आया। सभी ने कहा चलो अच्छा है, आखिर छ: बिघा जमीन खरीद ली चलो बच्चों के काम आएगी। दिन धीरे-धीरे बितते चले गए, ये तीन भाई थे, एक दिन बीच...
सार्थक उपासना
लघुकथा

सार्थक उपासना

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** सार्थक उपासना वही है जिसके साथ अच्छे कर्म भी जुड़े हों। पूजा-उपचार बाह्य क्रियाएँ हैं | श्रेष्ठ कर्म को उपासना मान लिया जाय तो वह उपासना सार्थक हो जाती है | एक समय की बात है जब दो लोग साथ-साथ रहते थे | एक दिन गाँव की पाठशाला में अध्यापन करने वाले शिक्षक ने उनके सामने दो समान पत्थर रखे गए | उनके द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रिया का इंतजार था | पहले आदमी ने अपने सामने रखे पत्थर को देखा और हाथ जोड़कर खड़ा रहा | कुछ क्षण मन को रोककर आँखें बंद कीं और ध्यान करने लगा | पत्थर अपनी प्रकृति के अनुसार अचेत पड़ा रहा | दूसरे आदमी ने ध्यान से पत्थर को निहारा और चंद क्षण सोचकर फिर अपनी आँखें खोलीं, मन को उत्साहित किया और फिर छेनी, हथौड़ी लेकर पत्थर को तराशने लगा | वह अपने काम में मगन हो गया, उसे इतनी लगन लग गयी कि समय कैसे गुजर रहा था उसे कुछ पत...
सुंदर अहसास
कहानी

सुंदर अहसास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** विनीता रिक्शा में नए घर की तरफ जा रही थी। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था किसी की निगाहें उसका पीछा कर रही है। वह भी चाहती थी कि एक बार पलट कर देख लें। पर पता नहीं क्यों उसका मन नहीं मान रहा था? वह रिक्शा वाले से बोली, भैया थोड़ा जल्दी करो। मौसम खराब हो रहा है। ऐसा लग रहा है कोई तूफान आने वाला है। नहीं-नहीं, यह बस तेज हवाएं हैं। आप यहां पर नई है ना। इसलिए यहाँ के मौसम से अनजान हैं। यहाँ, मौसम पल-पल बदलता है। मेरा मतलब यह नहीं था। मैडम पहाडों में तो इस तरह की तेज हवाएं चलती रहती हैं। कभी-कभी तेज हवाओं के साथ तेज बौछारें भी हो जाती हैं। तभी तो यहाँ पर दूर-दूर से लोग घूमने आते हैं। इस शानदार मौसम का आनंद लेते हैं। विनीता, को वह रिक्शावाला कम, गाइड ज्यादा लग रहा था। वह पूरे रास्ते उसे पहाड़ियों के बारे में ही बताता रहा था। उसका सफर भी आराम ...
हिन्दी कविता में आम आदमी
आलेख

हिन्दी कविता में आम आदमी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** हिन्दी कविता ने बहुधर्मिता की विसात पर हमेशा ही अपनी ज़मीन इख्तियार की है। इस बात की पुष्टि हर युग के कवियों द्वारा की गई कृत्यों से प्रतीत होती रही है। हिंदी कविता ने रामधारी सिंह दिनकर की क्षमता का उपयोग कर के राष्ट्र आह्वान का मार्ग प्रशस्त किया और साथ ही साथ आम आदमियों की दिक्कतों और रोज़मर्रा की समस्याओं को भी बेहद गंभीरता से उजागर किया है। अगर कोई साहित्य उस वर्ग की बात नहीं कर पाता जो मूक और बधिर है तो फिर साहित्य को अपने नज़रिये को बदलने की महती आवश्यकता होती है। रामधारी सिंह दिनकर सरीखे कवियों ने अपनी लेखनी में जनमानस की विपरीत परिस्थितियों का सजीव चित्रण ही नहीं किया बल्कि धनाढ्य और रसूखदारों पर करारा प्रहार भी किया और यह प्रश्न अक्षुण्ण रखा कि गरीबी और लाचारी के लिए क्या गरीब स्वयं जिम्मेदार है या फिर वह वर्ग भी जिमीदार है ज...
नीम की मौत
कहानी

नीम की मौत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** आपने बहुत से पेड़ों को घरों में, मोहल्लों में और सड़कों के किनारे खड़े अवश्य देखा होगा। प्रत्येक पेड़ का अपना कुछ न कुछ महत्व होता है। इस कहानी में मैने एक मोहल्ले में खड़े नीम के पेड़ के माध्यम से पेड़ों के महत्व को बताने का प्रयास किया है। गांव सलगवां के राघव मोहल्ले में एक विशाल नीम का पेड़ था। इसके अलावा पूरे गांव में कोई पेड़ न था। उसकी बनावट एक छाते कि तरह थी। लोग गर्मियों में उसकी छाया का आनंद लेते थे। बरसात में भी लोग उसके नीचे खड़े हो जाते थे और वह लोगों को विशाल गोवर्धन पर्वत की तरह ही बरसात से बचाता। लोग उसके नीचे रोज पत्ते भी खेला करते थे। मोहल्ले के बच्चे भी अपने दैमिक खेल उसके नीचे खेलते थे। कुछ बुजुर्ग उसकी टहनियों से दातुन करते थे। इस प्रकार बच्चे, बड़े और बुजुर्ग लोगों को वह कुछ न कुछ देता था। ये लोग पेड़ को पसंद ...
रूहानी बातें
संस्मरण

रूहानी बातें

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** "मैंने घोसले तोड़ दिए हैं अपनी मन्नत के। तुम्हें जाते देख रोई है आत्मा बहुत। आंखों में दर्द की रेखाएं वक्त बेवक्त उभर आती हैं, लालिमा के साथ। दर्द की ये इंतेहा ही मेरे प्यार की इम्तिहा है। हम तुम पर इस तरह फना हुए जैसे तुम हवा में धुलकर सांसों में समा गए जाते हो। ये हमारी बातें हैं। ये हमारा प्रेम है। मैं घंटों अपने आप में तुमसे बातें करती हूं। तुमको सोचती हूं। तुमको जीती हूं। ये सूनापन ये बेचैनी हर बार मुझे तुम्हारी ही तरफ मोड़ देती है। तुम मुझ में खत्म ही नहीं होते हो। सभी की नजरों से परे मैं एक दूसरे में खोए हम खिलखिलाते हैं, रोते हैं, एक दूसरे के साथ होते हैं" आज फिर तेज़ बबंडर आया और अपने साथ सब कुछ उजाड़ कर मुझे दूर किसी बियावन में छोड़ गया। जहां दूर दूर तक मुझमें तुम्हारा इंतजार करती मैं और तुम मुझमें मुझसे अंजान मेरे अ...
कर्म-मार्ग की स्थिरता
संस्मरण

कर्म-मार्ग की स्थिरता

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** सामान्य जीवन यापन करना मूल सिद्धांतों, को बनाए रखते हुए अपने लक्ष्य पर स्थिर रहना, कर्म मार्ग में कभी प्रमाद न करना, पारंपरिक शिक्षा को महत्व देना, वेद, आयुर्वेद व ज्योतिष, कर्मकांड, पर अपनी प्रबल ज्ञान शक्ति से आस्था बनाए रखते हुए, पुत्रों को सुशिक्षित करना, इन सभी जीवन जीवन चर्या को जीने वाले व्यक्ति थे पंडित जीवानंद जोशी वैद्य। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के जनपद चंपावत के दुर्गम क्षेत्र में "दुन्या" गांव में अठारह सितंबर उन्नीस सौ इकत्तीस प्रातः नौ बजकर सत्तावन मिनट पर जन्मे पंडित श्री जीवानंद जोशी "वैद्य" जी का जीवन संघर्ष की एक ज्ञानवर्धक पुस्तक के रूप में है। चार भाई-बहनों में सबसे वरिष्ठ पंडित वैद्य जी की आयु जब बारह वर्ष की थी, तो उनकी माता श्री की मृत्यु हो गई थी जब मां की मृत्यु हुई थी उस समय सबसे छोटा बालक मात्र ढाई वर...
अमर सपूत महाराणा प्रताप
कविता, संस्मरण

अमर सपूत महाराणा प्रताप

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** राजपूती शान हैं राणा! देश का अभिमान हैं राणा!! मुगलों के समक्ष नग सम अटल! चित्तौड़-आन रक्षक थे राणा!! राणा भरे जब-जब हुंकार! समर में गूंँज उठे टंकार!! भयभीत मुगल कांँप उठे थे! राणा के शौर्य कि जयकार!! हल्दीघाटी विकट संग्राम! टकराया असि सँ असि का जाम!! अरिदल शीघ्र हुए भू-लुंठित! पर चेतक पहुंँचा परमधाम!! गिरि-सा साहस था राणा का! चेतक भी अद्भुत राणा का!! इतिहास- अमर जिसका उत्सर्ग! स्वामी -भक्त अश्व राणा का!! जंगलों की खाक थी छानी! घास की रोटी पड़ी खानी!! पर गुलामी नहीं स्वीकार! यशोगाथा जग की जुबानी!! मरुभूमि हो गई रे निहाल! पाकर राणा-सा वीर लाल!! स्वाभिमानी औ पराक्रमी! गौरव तिलक भारत के भाल!! आज स्वार्थ का ऐसा चलन! राष्ट्र हित नित हो रहा दहन!! दिव्य चरित स्मरण कर भारत! राणा का देश-हित-स्व-हवन!! परिचय...
ख़ामोश होती हरियाली
संस्मरण

ख़ामोश होती हरियाली

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बात कुछ पुरानी है, लेकिन आज जब "वटवृक्ष दे वरदान" अभियान में लोग जुड़कर वृक्ष का आभार मानकर "बरगद रोपेंगे" कहते संकल्प ले रहे हैं, तब मुझे याद आया। हमारा घर अच्छी पाॅश काॅलोनी में था। घर के पीछे बहुत सुंदर बगीचा था। उसके बीच होलकर राज घराने का सुन्दर बंगला था।वही राधा कृष्ण का मंदिर था। लोग उसे कृष्ण मंदिर कहते थे। इसलिए उस काॅलोनी का नाम भी कृष्ण नगर था। पूरा बगीचा पीपल, नीम, आम, निबू, बरगद, गुलमोहर, जैसे वृक्षों से सज्जित था। तुलसी के पौधे तो सारे बगीचे में लगे हुए थे। बादाम तथा चिकु के पेड़ तो हमारे घर की छत पर झांकते थे। "प्रकृति से सिर्फ मनुष्य को ही नहीं, बल्कि पृथ्वी के हर जीव को जीवन मिलता है।" यह बात इस स्थान को देखकर सिद्ध हो रहीं थीं, क्योंकि बग़ीचे में मोर, गाय, गौरैया, तोते आदि का निवास था। मौसम के अनुसार उद्यान खुबसू...
युवा पीढ़ी
लघुकथा

युवा पीढ़ी

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर दिन की तरह आज भी बागीचा ठंडी मंद हवा, खिले फूलों की खुशबू, बच्चों की हँसी-ठिठौली और बड़ों की चर्चा-परिचर्चा से गुलज़ार था। इन सबके बीच दो युवाओं की टैक्नालॉजी और कैरियर की उर्जा से भरी बातें बरबस ही ध्यान आकर्षित करती थी। वो दोनों बागीचे के चक्कर लगाते हुए रोज ही किसी न किसी मुद्दे पर ज्ञानवर्धक बातचीत किया करते थे। आज एक बुजुर्ग व्यक्ति बागीचे में आए। उन्हें पहले इस बागीचे में कभी नहीं देखा था। उनके हाथ में कुछ समस्या थी जिसे वो एक बॉल को बार-बार फेंक कर व्यायाम के सहारे दूर करने का प्रयास कर रहे थे। परन्तु उनके साथ एक दिक्कत और थी। बॉल फेंकने के बाद धीरे-धीरे चलकर और झुक कर बॉल उठा पाने में बहुत समय लग रहा था। सब लोग रोज की तरह ही अपनी गतिविधियों में व्यस्त थे। पर अचानक एक सुखद परिवर्तन हो गया था। वो दोनों युवा एक निश्चित दू...
पहले बात को समझना चाहिए
संस्मरण

पहले बात को समझना चाहिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पहले बात को समझना चाहिए एक वाक्या वो यूँ था- बाबूजी ने साहब के बंगले पर जाकर बाहर खड़े नौकर से पूछा साहब कहाँ है ? उसने कहा "गए" यानि उसका मतलब था की साहब मीटिंग में बाहर गए। बाबूजी ने ऑफिस में कह दिया की साहब गए इस तरह उड़ती-उड़ती खबर ने जोर पकड़ लिया। खैर, कोई माला, सूखी तुलसी, टॉवेल आदि लेकर साहब के घर के सामने पेड़ की छाया में बैठ गए। घर पर रोने की आवाज भी नहीं आरही थी। सब ने खिड़की में से झाँक कर देखा। साहब के घर में कोई लेटा हुआ है और उस पर सफ़ेद चादर ढंकी हुई थी। सब घर के अंदर गए और साथ लाए फूलो को उनके ऊपर डाल दिया। वजन के कारण सोये हुए आदमी की आँखे खुल गई। मालूम हुआ की वो तो साहब के भाई थे जो उनसे मिलने बाहर गावं से रात को आये थे। सब लोग असमझ में थे की बाबूजी को नौकर ने बात समझे बगैर सही तरीके से नहीं की। इसमें बाबूजी का कसूर...
लेखक की आत्मा
व्यंग्य

लेखक की आत्मा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पसीने से तर-बतर, लस्त पस्त से यमराज भगवान विष्णु को प्रणाम कर नतमुख खड़े हो गए। "वत्स यम, आज इतने थके और उदास क्यों लग रहे हो?" "भगवान, इस सेवक को अब आप सेवामुक्त करें। बहुत दौड़ लिया। अब नहीं दौड़ा जाता"- कहते कहते यमराज का कंठ अवरुद्ध हो गया। "ऐसी भी क्या बात है यम? जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तुम अपना काम पूरी निष्ठा और लगन से कर रहे हो। अब क्या हो गया?इतने घबराए और निराश क्यो हो? सेवा समाप्त करने से समस्या का हल नहीं निकल पाएगा।" पांव पकड़ लिए यमराज ने। "निश्चिंत होकर कहो क्या कष्ट है? संकोच मत करो।" यमराज ने हिम्मत जुटाई। करबद्ध हो बोले- "भगवन्, आपने मुझे एक वृद्ध लेखक की आत्मा लेने भेजा था।" "हां हमें याद है। परिवार वाले उससे तंग आ चुके हैं। उम्र भी पिचानवें साल है। बहू बेटे रोज मंदिर में दीपक जलाकर प्रार्थना करते है...
खुशी से मिली नई खुशी
संस्मरण

खुशी से मिली नई खुशी

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ********************  घटना अप्रैल २०१९ की है मुंबई के अपर वर्ली इलाके मे स्थित आवासीय इमारत लोढा वर्ल्ड टॉवर्स मे जैनों के बारहवें तीर्थंकर, भगवान वासूपुज्य स्वामी के हमारे नए मंदिर का अंजनशलाका प्रतिष्ठा समारोह था, मंदिर में प्रभु की प्रतिमाओं का प्राण प्रतिष्ठा का समारोह था। यह चार दिवसीय कार्यक्रम बहुत धूमधाम से संपन्न हुआ। इस अंजन शलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में होने वाले धार्मिक कार्यक्रम में मैं और मेरे पति मंगल प्रभात लोढ़ा जी ने परंपरा अनुसार प्रभु के माता-पिता का पात्र निभाया। हमारी बड़ी पोती यशवी उस प्रतिष्ठा समारोह में प्रियंवदा दासी का पात्र निभा रही थी। इसी दौरान यशवी से उसके दादाजी बोले- ‘यशवी, मैं और आपकी दादी प्रतिष्ठा महोत्सव में राजा रानी, प्रभु के माता-पिता का पात्र निभा रहे हैं, तो आप राजकुमारी यानी भगवान की बहन का पात्र निभा लो।" तो, उ...
रेडियो की बात निराली
आलेख

रेडियो की बात निराली

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गीत की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन की मधुरता कानो में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों की राग, संगीत जरिए घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टीवी, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका-सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस...
उदास फूल
कहानी

उदास फूल

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** वह मुझे देख रहा था और मैं उसे... लेकिन... लेकिन... हम दोनों में से किसी ने भी कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं की। ये माजरा करीब आधे घंटे तक यू ही चलता रहा। आखिरकर...मैं समझ गया कि गलती मेरी ही थी क्योंकि उसको अपना जीवन समाप्त किए पूरे बारह महीने हो चुके थे, सो कैसे बोलता और मैं तो एक जिंदा इंसान था पूछना तो मुझे चाहिए था। फिर एकाएक स्मरण हो आया कि किससे पूछूं वह तो बोलता ही नहीं था। उसको एक दुकानदार नए वर्ष की नई तारीख को तोड़कर लाया था और नए वर्ष की नई तारीख को ही बाहर फेंका गया था। भाग्यवश...मै भी उसी दिन उस दुकान पर पहुंच गया। वह फूल मुझे उदास भाव से अपनी आंखों से देख रहा था। मानो कह रहा हो जब मैं डाली पर था तब सुंदर लग रहा था, वहां मेरी इज्जत थी, लोग मुझे बड़े आदर से देखते थे, हर रोज मुझे पानी दिया जाता था और वही लोग आज मुझे अपने पैरों क...
विरासत
लघुकथा

विरासत

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** आज स्कूल में निबंध प्रतियोगिता रखी गईं थी। विषय था आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं और क्यों? समाप्ति के पश्चात निर्णायक महोदया सभी निबंधों को पढ़ बहुत प्रसन्न हुईं। बच्चों ने क्या बनना हैं और क्यों बहोत ही अच्छे तरीके से उदाहरण के साथ लिखा था। ज्यादातर बच्चों ने विदेश जाकर डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर बनना ही लिखा था और कारण भी करीब करीब एक जैसे ही थे। परन्तु भैरवी और रेवा का निबंध पढ़ कर दिल खुश हो गया था। भैरवी को भरतनाट्यम कीे नृत्यॉगना बनने की चाह थी क्यूंकि उसे अपनी दादी की भारतीय नृत्य की विरासत को आगे बढ़ाने की इच्छा थी और रेवा को भारतीय योग गुरु बनने की चाह। उसे भारत की योग पद्धति की विरासत का विश्व भर में परचम लहराना था। दोनों की वजह पढ़कर निर्णयक महोदया ने उनको प्रथम पुरस्कार दिया और बच्चों को अपने देश की विरासत कोे सहेजने का संद...
गृहस्थाश्रम में पत्नी
आलेख

गृहस्थाश्रम में पत्नी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** मनुष्य ब्रह्मचर्याश्रम के बाद विवाह संस्कार करके गृहस्थाश्रम मेंं प्रवेश करता है, गृहस्थी के लिए पत्नी मात्र कामपूर्ति के उद्देश्य से नहीं है, अपितु यह मानव को सभ्य सुसंस्कृत व संस्कारवान बनाती है। यदि यह विवाह संस्कार नहीं होता तो मानव समाज में-माँ, बहन, बेटी आदि पहचानने की शक्ति नहीं होती। सृष्टिकर्ता के दांए स्कंध से पुरुष और बांए स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति होने के कारण स्त्री को वामांगी कहा जाता है, अतेव शादी के बाद उसे पति के बांई ओर बैठाने की परंपरा है। धर्मग्रंथों में पत्नी को पति का आधा अंग कहा जाता है उसमें भी उसे वामांगी कहा जाता है, अर्थात वह पति का बांंयां भाग है, शरीर विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान ने भी पुरुष के दांए व स्त्री के बांए भाग को शुभ माना है। मनुष्य के शरीर का वांया हिस्सा खासतौर पर मस्तिष्क की रचनात्मकता का प...
मन की हरीतिमा
लघुकथा

मन की हरीतिमा

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीरू मेरे पास ये रिश्तेदारी निभाने का बिल्कुल वक्त नहीं है। तुम तुम्हारे हिसाब से देख लो। ये कहते हुए हेमंत कम्पनी जाने के लिए निकल गया। नीरू अपने घर के लॉन में आकर कुर्सी पर बैठ गई। उसकी स्मृति में अतीत की पुरानी यादें घूमने लगी। रीता दी कितने हँसमुख और अच्छे स्वभाव की हैं। मुझे तो कभी लगा ही नहीं कि वो मेरी ननद है। हमेशा बड़ी बहन की तरह ही स्नेह दिया। जीजाजी के बीमार होने पर आज रीता दीदी ने फोन पर थोड़े से पैसे और थोड़ी सी सहायता माँगी है। हेमंत ने काम की व्यस्तता के कारण जाने से मना कर दिया। नीरू की आँखें नम हो चली थी। उसने संयत होकर लॉन के दूसरी तरफ देखा तो माली दादा पौधों में पानी और खाद दे रहे थे। पौधों से बातें करना तो उनकी पुरानी आदत थी ही। लहलहाती हरियाली देखकर नीरू के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तैर गई। उसने शाम की ...
कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है
आलेख

कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर संघन जंगल है। शुद्ध आबोहवा है। इतनी प्राकृतिक संपदा निःशुल्क प्रकृति देती आई है। किंतु कोरोना की आपदा इंसानों पर आगई है। जिससे वो जूझता जा रहा है। वही प्रकृति कई तरह के जीव-जंतु का पोषण कर रही है, साथ ही प्रकृति की आबो हवा निर्मल होगई है। स्वच्छता हर स्थान पर नजर आने लगी है। पृथ्वी के रहवासी संक्रमण से जूझ रहे है, ये संक्रमण को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित अभी तक सुनने पढ़ने में नहीं आया संक्रमण की चेन तोड़ने की बात सभी करते मगर संक्रमण के आँकड़े घटते बढ़ते हर जगह दिखाई देते है। अनलॉक प्रक्रिया भी इसी कारण से बढ़ाई जाती होगी। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्व रहते ही है। शाकाहारी भोजन को विदेश...
सोच हमारी संस्कृति पर भारी
व्यंग्य

सोच हमारी संस्कृति पर भारी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** हमारा देश बहुत कमाल का देश है। हमारी एक ख़ासियत है कि जो कुछ स्वदेशी है हमने उससे हमेशा नफरत की है और जो कुछ विदेशी है उसे बेइन्तहां प्यार करते हैं। हमें तो बेहूदगी और बेशर्मी भी प्यारी है, बस शर्त यह है कि वे विदेशी हों। अपने देश की तो सादगी भी वाहियात लगती है। हमारे यहाँ महान ऋषि-मुनि हुए, हमें वे फूटी आँख नहीं सुहाते, हम उनसे नफ़रत करते हैं। नैतिकता, भाईचारा, अपनापन, बड़ों का आदर, नारियों का सम्मान ये सारी सीख हमारे पूर्वजों की देन है। लेकिन हम इन सारी अच्छाइयों को दकियानूसी समझकर नफ़रत करते हैं और पूरा ध्यान रखते हैं कि कहीं हमारे बच्चे ये बहियात बातें सीख न जाएँ? हम कितनी उच्चकोटि की निम्न मानसिकता से ग्रस्त हैं कि 'लिव इन रिलेशन' और 'समलैंगिकता' जैसी वाहियात विचारधारा को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन करते हैं। संस्कृत और हिंदी भा...
बेजुबान
लघुकथा

बेजुबान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटी, काजल तुम बहुत उदास रहने लगी हो। बेटी अब तुम इस घर में कुछ ही दिन की मेहमान हो, बस बीस दिन और। तुम हमेशा-हमेशा के लिए पराई हो जाओगी। माँ, बोले जा रही थी। पर काजल एकदम चुप्पी साधे बैठी थी। वह माँ की बातों से पूरी तरह अनजान थी। अच्छा बेटी, समझदार बनो। उदासी से काम नहीं चलेगा। वह काजल के सिर पर हाथ फेर कर कमरे से बाहर चली गई। जबसे काजल का रिश्ता हुआ है, उसे फुर्सत ही कहाँ थी? शादी से जुड़े कामों में वह बहुत बिजी रहती थी। वह अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। एक-एक समान अपनी पसंद का खरीद रही थीं। चाहें कपड़े हो, आभूषण हो या जरूरत की वस्तुएं। सभी चीजों का चुनाव वह बड़ी तन्मयता से कर रही थीं। हर माँ को इसी तरह की चिंता होती है। तो वह इसमें नया क्या कर रही थी? वह खुद से कह रही थी। वह बीच-बीच में थोड़ा आराम भी कर लि...
मेरे जीवन साथी
पत्र

मेरे जीवन साथी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जीवन साथी, हृदय की गहराईयों में तुम्हारे अहसास की खुशबू समेटे आखिरकार अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा हूँ। यह सही है कि मुझे गुस्सा कुछ अधिक ही आता है, मैं समझता भी हू्ँ, पर क्या करूँ तुम साथ होती तो शायद कुछ बदलाव हो भी जाता, पर ये नापाक पाक के समझ में कहाँ आता है? पाकिस्तान सिर्फ़ हमारे मुल्क का ही नहीं कहीं न कहीं हम दोनों का भी दुश्मन है। वह तो बस जैसे इसी ताक में रहता है कि इधर हम अपनी महरानी के पास पहुंचे और वो बार्डर पर कुछ न कुछ बघेड़ा खड़ा कर दे। हमारा दुर्भाग्य देखो कि जब जब लम्बी छुट्टियां मिली भी, ये नापाक पाक कबाब में हड्डी बन ही जाता है। मगर तुम निराश मत हो, मैं भी अपनी टुकड़ी के साथ सालों की नाक में दम करता रहता हूँ।खैर...छोड़ो। मैं कह नहीं पा रहा हू्ँ फिर भी कोशिश कर रहा हू्ँ। ये अलग बात...
नई नौकरी
लघुकथा

नई नौकरी

संजय डागा हातोद- इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सेठजी ! कुछ काम दे दो ना, जिस फेक्ट्री मे काम करने जाता था, लाॅकडाउन की वजह से बंद पड़ी है, हरिया ने बंद शटर के बाहर बैठे सेठ घनश्यामदास से विनती करते हुऐ कहा। अरे ! अभी काहे का काम अभी तो हमारी भी दुकानदारी बंद पड़ी है, देख रहा है, हमारी दुकान भी तो बंद पड़ी है, पर सेठ कुछ भी छोटा-मोटा काम दे दो ताकि पेट भरने लायक कुछ जुगाड़ हो जाऐ, हरिया ने कातर और निराश होकर कहा! मैने एक बार बोल दिया ना अभी कुछ काम नही है, चल जा यहाँ से....! हरिया जाने लगा की सेठ को कुछ याद आया, उसने हरिया को आवाज देकर बुलाया, सुन ! एक काम के लिऐ तुझे रख लेता हूँ, जैसे ही पुलिस की गाड़ी आऐ तु दुकान की शटर गिरा देना और पुलिस की गाड़ी नजर से दूर हो जाने पर वापस शटर उठा दिया करना, हरिया खुश हो गया, उसे आज एक नया जाॅब मिल गया था।। परिचय :- संजय डागा निवास...
प्रिय डायरी
कविता, संस्मरण, स्मृति

प्रिय डायरी

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय डायरी, आज तुम फिर मेरे हाथ आ गईं। अच्छा हुआ !! अब मैं तुमसे ढेर सारी बातें करूंगी। इसलिए कि आज मेरे पापा की द्वितीय पुण्य तिथि है। सुबह से बहुत याद आ रही है उनकी। तुम्हारे माध्यम से मैं अपने पापा से ही बातें करूंगी। पापा, सुनोगे न मेरी बातें। आज के दिन २०१९ में लगभग ११ बजे भैया ने जब मुझे फोन किया तो मैं सिहर सी गई। पिछले चार पांच दिन से मुझे नींद नहीं आ रही थी। एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। आपने फोन उठाना भी बंद कर दिया था। चिंता लगने लगी थी। जरा सी बात करके फोन रख देते थे तो भी मन को शांति मिल जाती थी। दो सेकंड बात करके आप फोन मम्मी को पकड़ा देते थे। जैसे ही भैया ने दीदी बोला, उसका गला रूंध हुआ था। बोल ही नहीं पाया। बोला, दीदी, पापा चले गए। कैसे, क्या, कब इन सब सवालों के जवाब न मैं पूछने की स्थिति में थी, ना वह जवाब द...