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गद्य

ख़ामोश होती हरियाली
संस्मरण

ख़ामोश होती हरियाली

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बात कुछ पुरानी है, लेकिन आज जब "वटवृक्ष दे वरदान" अभियान में लोग जुड़कर वृक्ष का आभार मानकर "बरगद रोपेंगे" कहते संकल्प ले रहे हैं, तब मुझे याद आया। हमारा घर अच्छी पाॅश काॅलोनी में था। घर के पीछे बहुत सुंदर बगीचा था। उसके बीच होलकर राज घराने का सुन्दर बंगला था।वही राधा कृष्ण का मंदिर था। लोग उसे कृष्ण मंदिर कहते थे। इसलिए उस काॅलोनी का नाम भी कृष्ण नगर था। पूरा बगीचा पीपल, नीम, आम, निबू, बरगद, गुलमोहर, जैसे वृक्षों से सज्जित था। तुलसी के पौधे तो सारे बगीचे में लगे हुए थे। बादाम तथा चिकु के पेड़ तो हमारे घर की छत पर झांकते थे। "प्रकृति से सिर्फ मनुष्य को ही नहीं, बल्कि पृथ्वी के हर जीव को जीवन मिलता है।" यह बात इस स्थान को देखकर सिद्ध हो रहीं थीं, क्योंकि बग़ीचे में मोर, गाय, गौरैया, तोते आदि का निवास था। मौसम के अनुसार उद्यान खुबसू...
युवा पीढ़ी
लघुकथा

युवा पीढ़ी

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर दिन की तरह आज भी बागीचा ठंडी मंद हवा, खिले फूलों की खुशबू, बच्चों की हँसी-ठिठौली और बड़ों की चर्चा-परिचर्चा से गुलज़ार था। इन सबके बीच दो युवाओं की टैक्नालॉजी और कैरियर की उर्जा से भरी बातें बरबस ही ध्यान आकर्षित करती थी। वो दोनों बागीचे के चक्कर लगाते हुए रोज ही किसी न किसी मुद्दे पर ज्ञानवर्धक बातचीत किया करते थे। आज एक बुजुर्ग व्यक्ति बागीचे में आए। उन्हें पहले इस बागीचे में कभी नहीं देखा था। उनके हाथ में कुछ समस्या थी जिसे वो एक बॉल को बार-बार फेंक कर व्यायाम के सहारे दूर करने का प्रयास कर रहे थे। परन्तु उनके साथ एक दिक्कत और थी। बॉल फेंकने के बाद धीरे-धीरे चलकर और झुक कर बॉल उठा पाने में बहुत समय लग रहा था। सब लोग रोज की तरह ही अपनी गतिविधियों में व्यस्त थे। पर अचानक एक सुखद परिवर्तन हो गया था। वो दोनों युवा एक निश्चित दू...
पहले बात को समझना चाहिए
संस्मरण

पहले बात को समझना चाहिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पहले बात को समझना चाहिए एक वाक्या वो यूँ था- बाबूजी ने साहब के बंगले पर जाकर बाहर खड़े नौकर से पूछा साहब कहाँ है ? उसने कहा "गए" यानि उसका मतलब था की साहब मीटिंग में बाहर गए। बाबूजी ने ऑफिस में कह दिया की साहब गए इस तरह उड़ती-उड़ती खबर ने जोर पकड़ लिया। खैर, कोई माला, सूखी तुलसी, टॉवेल आदि लेकर साहब के घर के सामने पेड़ की छाया में बैठ गए। घर पर रोने की आवाज भी नहीं आरही थी। सब ने खिड़की में से झाँक कर देखा। साहब के घर में कोई लेटा हुआ है और उस पर सफ़ेद चादर ढंकी हुई थी। सब घर के अंदर गए और साथ लाए फूलो को उनके ऊपर डाल दिया। वजन के कारण सोये हुए आदमी की आँखे खुल गई। मालूम हुआ की वो तो साहब के भाई थे जो उनसे मिलने बाहर गावं से रात को आये थे। सब लोग असमझ में थे की बाबूजी को नौकर ने बात समझे बगैर सही तरीके से नहीं की। इसमें बाबूजी का कसूर...
लेखक की आत्मा
व्यंग्य

लेखक की आत्मा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पसीने से तर-बतर, लस्त पस्त से यमराज भगवान विष्णु को प्रणाम कर नतमुख खड़े हो गए। "वत्स यम, आज इतने थके और उदास क्यों लग रहे हो?" "भगवान, इस सेवक को अब आप सेवामुक्त करें। बहुत दौड़ लिया। अब नहीं दौड़ा जाता"- कहते कहते यमराज का कंठ अवरुद्ध हो गया। "ऐसी भी क्या बात है यम? जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तुम अपना काम पूरी निष्ठा और लगन से कर रहे हो। अब क्या हो गया?इतने घबराए और निराश क्यो हो? सेवा समाप्त करने से समस्या का हल नहीं निकल पाएगा।" पांव पकड़ लिए यमराज ने। "निश्चिंत होकर कहो क्या कष्ट है? संकोच मत करो।" यमराज ने हिम्मत जुटाई। करबद्ध हो बोले- "भगवन्, आपने मुझे एक वृद्ध लेखक की आत्मा लेने भेजा था।" "हां हमें याद है। परिवार वाले उससे तंग आ चुके हैं। उम्र भी पिचानवें साल है। बहू बेटे रोज मंदिर में दीपक जलाकर प्रार्थना करते है...
खुशी से मिली नई खुशी
संस्मरण

खुशी से मिली नई खुशी

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ********************  घटना अप्रैल २०१९ की है मुंबई के अपर वर्ली इलाके मे स्थित आवासीय इमारत लोढा वर्ल्ड टॉवर्स मे जैनों के बारहवें तीर्थंकर, भगवान वासूपुज्य स्वामी के हमारे नए मंदिर का अंजनशलाका प्रतिष्ठा समारोह था, मंदिर में प्रभु की प्रतिमाओं का प्राण प्रतिष्ठा का समारोह था। यह चार दिवसीय कार्यक्रम बहुत धूमधाम से संपन्न हुआ। इस अंजन शलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में होने वाले धार्मिक कार्यक्रम में मैं और मेरे पति मंगल प्रभात लोढ़ा जी ने परंपरा अनुसार प्रभु के माता-पिता का पात्र निभाया। हमारी बड़ी पोती यशवी उस प्रतिष्ठा समारोह में प्रियंवदा दासी का पात्र निभा रही थी। इसी दौरान यशवी से उसके दादाजी बोले- ‘यशवी, मैं और आपकी दादी प्रतिष्ठा महोत्सव में राजा रानी, प्रभु के माता-पिता का पात्र निभा रहे हैं, तो आप राजकुमारी यानी भगवान की बहन का पात्र निभा लो।" तो, उ...
रेडियो की बात निराली
आलेख

रेडियो की बात निराली

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गीत की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन की मधुरता कानो में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों की राग, संगीत जरिए घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टीवी, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका-सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस...
उदास फूल
कहानी

उदास फूल

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** वह मुझे देख रहा था और मैं उसे... लेकिन... लेकिन... हम दोनों में से किसी ने भी कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं की। ये माजरा करीब आधे घंटे तक यू ही चलता रहा। आखिरकर...मैं समझ गया कि गलती मेरी ही थी क्योंकि उसको अपना जीवन समाप्त किए पूरे बारह महीने हो चुके थे, सो कैसे बोलता और मैं तो एक जिंदा इंसान था पूछना तो मुझे चाहिए था। फिर एकाएक स्मरण हो आया कि किससे पूछूं वह तो बोलता ही नहीं था। उसको एक दुकानदार नए वर्ष की नई तारीख को तोड़कर लाया था और नए वर्ष की नई तारीख को ही बाहर फेंका गया था। भाग्यवश...मै भी उसी दिन उस दुकान पर पहुंच गया। वह फूल मुझे उदास भाव से अपनी आंखों से देख रहा था। मानो कह रहा हो जब मैं डाली पर था तब सुंदर लग रहा था, वहां मेरी इज्जत थी, लोग मुझे बड़े आदर से देखते थे, हर रोज मुझे पानी दिया जाता था और वही लोग आज मुझे अपने पैरों क...
विरासत
लघुकथा

विरासत

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** आज स्कूल में निबंध प्रतियोगिता रखी गईं थी। विषय था आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं और क्यों? समाप्ति के पश्चात निर्णायक महोदया सभी निबंधों को पढ़ बहुत प्रसन्न हुईं। बच्चों ने क्या बनना हैं और क्यों बहोत ही अच्छे तरीके से उदाहरण के साथ लिखा था। ज्यादातर बच्चों ने विदेश जाकर डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर बनना ही लिखा था और कारण भी करीब करीब एक जैसे ही थे। परन्तु भैरवी और रेवा का निबंध पढ़ कर दिल खुश हो गया था। भैरवी को भरतनाट्यम कीे नृत्यॉगना बनने की चाह थी क्यूंकि उसे अपनी दादी की भारतीय नृत्य की विरासत को आगे बढ़ाने की इच्छा थी और रेवा को भारतीय योग गुरु बनने की चाह। उसे भारत की योग पद्धति की विरासत का विश्व भर में परचम लहराना था। दोनों की वजह पढ़कर निर्णयक महोदया ने उनको प्रथम पुरस्कार दिया और बच्चों को अपने देश की विरासत कोे सहेजने का संद...
गृहस्थाश्रम में पत्नी
आलेख

गृहस्थाश्रम में पत्नी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** मनुष्य ब्रह्मचर्याश्रम के बाद विवाह संस्कार करके गृहस्थाश्रम मेंं प्रवेश करता है, गृहस्थी के लिए पत्नी मात्र कामपूर्ति के उद्देश्य से नहीं है, अपितु यह मानव को सभ्य सुसंस्कृत व संस्कारवान बनाती है। यदि यह विवाह संस्कार नहीं होता तो मानव समाज में-माँ, बहन, बेटी आदि पहचानने की शक्ति नहीं होती। सृष्टिकर्ता के दांए स्कंध से पुरुष और बांए स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति होने के कारण स्त्री को वामांगी कहा जाता है, अतेव शादी के बाद उसे पति के बांई ओर बैठाने की परंपरा है। धर्मग्रंथों में पत्नी को पति का आधा अंग कहा जाता है उसमें भी उसे वामांगी कहा जाता है, अर्थात वह पति का बांंयां भाग है, शरीर विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान ने भी पुरुष के दांए व स्त्री के बांए भाग को शुभ माना है। मनुष्य के शरीर का वांया हिस्सा खासतौर पर मस्तिष्क की रचनात्मकता का प...
मन की हरीतिमा
लघुकथा

मन की हरीतिमा

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीरू मेरे पास ये रिश्तेदारी निभाने का बिल्कुल वक्त नहीं है। तुम तुम्हारे हिसाब से देख लो। ये कहते हुए हेमंत कम्पनी जाने के लिए निकल गया। नीरू अपने घर के लॉन में आकर कुर्सी पर बैठ गई। उसकी स्मृति में अतीत की पुरानी यादें घूमने लगी। रीता दी कितने हँसमुख और अच्छे स्वभाव की हैं। मुझे तो कभी लगा ही नहीं कि वो मेरी ननद है। हमेशा बड़ी बहन की तरह ही स्नेह दिया। जीजाजी के बीमार होने पर आज रीता दीदी ने फोन पर थोड़े से पैसे और थोड़ी सी सहायता माँगी है। हेमंत ने काम की व्यस्तता के कारण जाने से मना कर दिया। नीरू की आँखें नम हो चली थी। उसने संयत होकर लॉन के दूसरी तरफ देखा तो माली दादा पौधों में पानी और खाद दे रहे थे। पौधों से बातें करना तो उनकी पुरानी आदत थी ही। लहलहाती हरियाली देखकर नीरू के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तैर गई। उसने शाम की ...
कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है
आलेख

कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर संघन जंगल है। शुद्ध आबोहवा है। इतनी प्राकृतिक संपदा निःशुल्क प्रकृति देती आई है। किंतु कोरोना की आपदा इंसानों पर आगई है। जिससे वो जूझता जा रहा है। वही प्रकृति कई तरह के जीव-जंतु का पोषण कर रही है, साथ ही प्रकृति की आबो हवा निर्मल होगई है। स्वच्छता हर स्थान पर नजर आने लगी है। पृथ्वी के रहवासी संक्रमण से जूझ रहे है, ये संक्रमण को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित अभी तक सुनने पढ़ने में नहीं आया संक्रमण की चेन तोड़ने की बात सभी करते मगर संक्रमण के आँकड़े घटते बढ़ते हर जगह दिखाई देते है। अनलॉक प्रक्रिया भी इसी कारण से बढ़ाई जाती होगी। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्व रहते ही है। शाकाहारी भोजन को विदेश...
सोच हमारी संस्कृति पर भारी
व्यंग्य

सोच हमारी संस्कृति पर भारी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** हमारा देश बहुत कमाल का देश है। हमारी एक ख़ासियत है कि जो कुछ स्वदेशी है हमने उससे हमेशा नफरत की है और जो कुछ विदेशी है उसे बेइन्तहां प्यार करते हैं। हमें तो बेहूदगी और बेशर्मी भी प्यारी है, बस शर्त यह है कि वे विदेशी हों। अपने देश की तो सादगी भी वाहियात लगती है। हमारे यहाँ महान ऋषि-मुनि हुए, हमें वे फूटी आँख नहीं सुहाते, हम उनसे नफ़रत करते हैं। नैतिकता, भाईचारा, अपनापन, बड़ों का आदर, नारियों का सम्मान ये सारी सीख हमारे पूर्वजों की देन है। लेकिन हम इन सारी अच्छाइयों को दकियानूसी समझकर नफ़रत करते हैं और पूरा ध्यान रखते हैं कि कहीं हमारे बच्चे ये बहियात बातें सीख न जाएँ? हम कितनी उच्चकोटि की निम्न मानसिकता से ग्रस्त हैं कि 'लिव इन रिलेशन' और 'समलैंगिकता' जैसी वाहियात विचारधारा को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन करते हैं। संस्कृत और हिंदी भा...
बेजुबान
लघुकथा

बेजुबान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटी, काजल तुम बहुत उदास रहने लगी हो। बेटी अब तुम इस घर में कुछ ही दिन की मेहमान हो, बस बीस दिन और। तुम हमेशा-हमेशा के लिए पराई हो जाओगी। माँ, बोले जा रही थी। पर काजल एकदम चुप्पी साधे बैठी थी। वह माँ की बातों से पूरी तरह अनजान थी। अच्छा बेटी, समझदार बनो। उदासी से काम नहीं चलेगा। वह काजल के सिर पर हाथ फेर कर कमरे से बाहर चली गई। जबसे काजल का रिश्ता हुआ है, उसे फुर्सत ही कहाँ थी? शादी से जुड़े कामों में वह बहुत बिजी रहती थी। वह अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। एक-एक समान अपनी पसंद का खरीद रही थीं। चाहें कपड़े हो, आभूषण हो या जरूरत की वस्तुएं। सभी चीजों का चुनाव वह बड़ी तन्मयता से कर रही थीं। हर माँ को इसी तरह की चिंता होती है। तो वह इसमें नया क्या कर रही थी? वह खुद से कह रही थी। वह बीच-बीच में थोड़ा आराम भी कर लि...
मेरे जीवन साथी
पत्र

मेरे जीवन साथी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जीवन साथी, हृदय की गहराईयों में तुम्हारे अहसास की खुशबू समेटे आखिरकार अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा हूँ। यह सही है कि मुझे गुस्सा कुछ अधिक ही आता है, मैं समझता भी हू्ँ, पर क्या करूँ तुम साथ होती तो शायद कुछ बदलाव हो भी जाता, पर ये नापाक पाक के समझ में कहाँ आता है? पाकिस्तान सिर्फ़ हमारे मुल्क का ही नहीं कहीं न कहीं हम दोनों का भी दुश्मन है। वह तो बस जैसे इसी ताक में रहता है कि इधर हम अपनी महरानी के पास पहुंचे और वो बार्डर पर कुछ न कुछ बघेड़ा खड़ा कर दे। हमारा दुर्भाग्य देखो कि जब जब लम्बी छुट्टियां मिली भी, ये नापाक पाक कबाब में हड्डी बन ही जाता है। मगर तुम निराश मत हो, मैं भी अपनी टुकड़ी के साथ सालों की नाक में दम करता रहता हूँ।खैर...छोड़ो। मैं कह नहीं पा रहा हू्ँ फिर भी कोशिश कर रहा हू्ँ। ये अलग बात...
नई नौकरी
लघुकथा

नई नौकरी

संजय डागा हातोद- इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सेठजी ! कुछ काम दे दो ना, जिस फेक्ट्री मे काम करने जाता था, लाॅकडाउन की वजह से बंद पड़ी है, हरिया ने बंद शटर के बाहर बैठे सेठ घनश्यामदास से विनती करते हुऐ कहा। अरे ! अभी काहे का काम अभी तो हमारी भी दुकानदारी बंद पड़ी है, देख रहा है, हमारी दुकान भी तो बंद पड़ी है, पर सेठ कुछ भी छोटा-मोटा काम दे दो ताकि पेट भरने लायक कुछ जुगाड़ हो जाऐ, हरिया ने कातर और निराश होकर कहा! मैने एक बार बोल दिया ना अभी कुछ काम नही है, चल जा यहाँ से....! हरिया जाने लगा की सेठ को कुछ याद आया, उसने हरिया को आवाज देकर बुलाया, सुन ! एक काम के लिऐ तुझे रख लेता हूँ, जैसे ही पुलिस की गाड़ी आऐ तु दुकान की शटर गिरा देना और पुलिस की गाड़ी नजर से दूर हो जाने पर वापस शटर उठा दिया करना, हरिया खुश हो गया, उसे आज एक नया जाॅब मिल गया था।। परिचय :- संजय डागा निवास...
प्रिय डायरी
कविता, संस्मरण, स्मृति

प्रिय डायरी

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय डायरी, आज तुम फिर मेरे हाथ आ गईं। अच्छा हुआ !! अब मैं तुमसे ढेर सारी बातें करूंगी। इसलिए कि आज मेरे पापा की द्वितीय पुण्य तिथि है। सुबह से बहुत याद आ रही है उनकी। तुम्हारे माध्यम से मैं अपने पापा से ही बातें करूंगी। पापा, सुनोगे न मेरी बातें। आज के दिन २०१९ में लगभग ११ बजे भैया ने जब मुझे फोन किया तो मैं सिहर सी गई। पिछले चार पांच दिन से मुझे नींद नहीं आ रही थी। एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। आपने फोन उठाना भी बंद कर दिया था। चिंता लगने लगी थी। जरा सी बात करके फोन रख देते थे तो भी मन को शांति मिल जाती थी। दो सेकंड बात करके आप फोन मम्मी को पकड़ा देते थे। जैसे ही भैया ने दीदी बोला, उसका गला रूंध हुआ था। बोल ही नहीं पाया। बोला, दीदी, पापा चले गए। कैसे, क्या, कब इन सब सवालों के जवाब न मैं पूछने की स्थिति में थी, ना वह जवाब द...
मासूम सपने
कहानी

मासूम सपने

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये कहानी है सपनों की नगरी कहे जाने वाले, मुंबई जैसे महानगर की एक, नाले के पास बसी छोटी सी बस्ती में रहने वाले, १३ साल के लड़के साहेब की। जो कूड़े के ढेर से ओर गन्दे नालों से कूड़ा बीनने का काम करता है! इस उम्मीद में की इस कूड़े के ढेर में या नाले में कही कुछ सिक्के मिल जाये जो उसके खाली पेट को थोड़ा सा भर सके। "मैं हूँ उस बस्ती के पास ही बनी एक २५ मंजिला बिल्डिंग में रहने वाली एक वर्किंग वीमेन जो अपने ऑफिस आते-जाते समय अक्सर उस बच्चे को देखती हूँ!!!" उसको देख कर लगता ही नहीं की उसका वो गंदगी में कुछ ढूंढने का काम उस पर भारी है, अपने कंधे पर वो टाट की बोरी लेकर, बेफिक्र हो, इस अंदाज में घूमता है, मानो कहीं का बादशाह हो। छोटी छोटी मगर, एक अजीब सी चमक ओर गहराई लिए उसकी वो आँखें, ऐसी थी मानो दुनिया भर की समझदारी उनमें भरी हो!! उसके ...
उसका नाम कला है
कहानी

उसका नाम कला है

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** राजस्थान के एक छोटेसे गाव में उसका जन्म हुआ। पर उसके माता पिता ने निश्चय कर लिया कि, वह अपनी बेटी को कम से कम हाईस्कूल तक तो जरूर पढा़येंगे। बगल के गांव मे एक स्कूल था, माँ सुबह जल्दी उठकर, घर के सारे काम निपटाकर बच्ची को स्कूल लेकर जाने लगी। ज्यों-ज्यों कला बढी़ होती गई, नाम के अनुरूप, वह कई कार्यों मे दक्ष होती गयी। चित्रकारी, सिलाई, कशीदा, मेंहदी लगाना, रंगोली मांड़ना तथा साथ ही घर के कार्य में मां का हाथ बंटाने लगी। सुरत और सीरत दोनों ही सुंदर। और जब हाईस्कूल में दसवीं में वह पुरे स्कूल में अव्वल आयी तो अगल-बगल के गांवो तक उसकी चर्चा होने लगी। माँ-बाप को अब उसके विवाह की चिंता सताने लगी। कला आगे पढ़ना चाहती थी, पर गांव मे कॉलेज नहीं होने से उसे अपनी पढाई छोड़ देनी पडी़। पर उसे जहाँ से ज्ञान मिलता, वह उसे प्राप्त करती। जनवरी २०१६ ...
स्वाभिमान
लघुकथा

स्वाभिमान

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** मीता भाभी ये क्या कर रही हो आप। ये खाने का पैकेट कार के पास मत रखो। जानवर सब फैलाकर गंदगी करेंगे। आजकल तो स्वच्छता का कितना प्रचार प्रसार हो रहा है। पड़ोस की सरला भाभी बालकनी में खड़ी होकर बोले जा रही थी। मीता पैकेट रखकर चुपचाप अंदर आ गई और कमरे के पर्दे की ओट में खड़ी होकर इंतज़ार करने लगी। अभी रात के नौ बजने में दस मिनट बाकी थे। कुछ ही देर में वो नवयुवती आई जिसके कपड़ों से माँगकर न खा पाने की और चेहरे से बेरोजगारी और भूख की मजबूरी साफ दिखाई दे रही थी। उसने इधर उधर देखा और जल्दी से खाने का पैकेट उठाकर अपने बैग में डालकर चली गयी। उसके जाने के बाद मीता बिखरे हुए अन्न कण उठाकर पानी डाल रही थी कि उसका ध्यान सरला भाभी की बालकनी पर चला गया। सरला भाभी की झुकी गर्दन और निगाह न मिला पाने पर ध्यान न देकर मीता ये सोच रही थी कि स्वाभिमा...
विश्वास
लघुकथा

विश्वास

विनय मोहन 'खारवन' जगाधरी (हरियाणा) ******************** सड़क पर भीड़ जमा थी। वो मदारी तमाशा दिखा कर मजमा लगाए हुए था। मैं भी टाइम पास के लिए वहाँ खड़ा होके तमाशे का व मदारी की मजाकिया लहजे में बात करने के अंदाज का आनंद लेने लगा। मदारी दो पोल के बीच रस्सी बांध कर उस पर बैलैंस बना कर चलने लगा। फिर अचानक रस्सी पर वो अपने छोटे से बच्चे को लेकर भी चलने लगा। सभी सांस रोके इस प्रदर्शन को देख रहे थे। वो जब ठीक ठाक नीचे उतर गया, तब सबकी जान में जान आई। नीचे उतर कर वो बोला की क्या ये सब वो दुबारा भी कर सकता है। सभी बोले बिलकुल कर सकते हो। हमें तुम पर पूरा विश्वास है। मदारी बोला ठीक है दोस्तों, अगर आपको मुझ पर इतना विश्वास है तो कोई भी भाई अपना छोटा बच्चा मुझे दे दे। मैं उसको लेकर रस्सी पर चलूंगा। सभी ने अपने छोटे बच्चों को अपने पीछे छुपाना शुरू कर दिया। कोई आवाज़ नही आई। मदारी बोला अरे दोस्तों आपको त...
अपना कर्म सुधारों भाई, जीवन की यही सच्ची भलाई
कहानी

अपना कर्म सुधारों भाई, जीवन की यही सच्ची भलाई

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** लोग कहते है कि सतनाम कहो पाप कट जायेगा, राम नाम कहो पाप कट जायेगा, गंगा में नहा लो पाप कट जायेगा। इसलिए मैं मानता हूँ कि पाप, तुम करो ही मत। कभी हो गया तो हो गया, आगे अब गलती न करो। गलती तो इंसान से ही होती है, दिवार से नहीं। अत: गलती से बचने के लिये गलती का रास्ता छोड़ना है, यह नहीं कि कोई मंत्र-वंत्र जपकर उसको काटने की बात करनी है। कोई मंत्र-वंत्र जपने की आवश्यकता नहीं है कि जिससे आपका पाप कट जाए। सब कुछ सामने आता है। समझ है अपने कर्म को सुधार करने की, इसी में ही मानव समाज की भला है। मानव को समाज में रहकर जीवन जीने की कला सीखना चाहिए। सदाचार व नैतिकता पर आधारित मार्मिक कहानी का अंश राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पावन पटल पर रखने का प्रयास है। इसी आशा और विश्वास के साथ पाठकगण सहर्ष अपनाएंगे और इसके अध्ययन मनन से सच...
वनिता
आलेख

वनिता

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे नारी !! तुम्हें भय कैसा आँखों मे अश्रु और माथे पर ये लकीरें...?? तुम्हें दुख किस बात का है...?? ऐसी कौन सी पीड़ा है जो तुम्हें अंदर ही अंदर खाये जा रही...?? मैं क्या कहूँ कैसे कहूँ, मुझसे कुछ कहा भी नहीं जा रहा। मैं इस युग में खुद का अस्त्तित्व मिटते देख रही हूँ। मैं अबला जैसे नामों से पुकारी जा रहीं हूँ। मेरे हाथों में सजी ये हरी लाल चूड़ियाँ कमज़ोर एवं नकारे इंसान के लिए प्रयुक्त होने लगी हैं। और पैरों में सजे ये पायल बेड़ियों का रूप ले चुके हैं। मेरे अपने भी मुझे भार समझ बैठे हैं। उन्हें लगता है मैं कमजोर हूँ, मैं कुछ नहीं कर सकती। तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ। मुझे लगता है मेरा होना सच में ही व्यर्थं है। तुम्हीं बताओं मैं कैसे बतलाऊँ उन्हें अपनी महत्ता...?? लेखिका- हे देवी, आप बिलकुल भी परेशान न हो औ...
निदान
लघुकथा

निदान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** मम्मी, आप इतनी चिंता क्यों कर रही हो? बेटी चिंता क्यों ना करूँ? मम्मी क्या चिंता करने से मेरी शादी हो जाएगी? बेटी, कह तो तुम ठीक रही हो, पर क्या करूँ, माँ हूँ ना? माँ, हो तभी तो कह रही हूँ। तुम चिंता मत करो। जिया की माँ, कहाँ खोई हुई हो? आओ बहन, बैठो। बस बेटी की चिंता खाए जा रही हैं। क्या हुआ एकाएक जिया की चिंता? हाँ, बहन तुम्हारी बेटी नहीं है ना। तुम्हें क्या पता बेटी की चिंता क्या होती हैं? हाँ, बहन, तुम ठीक कह रही हो। बेटों की तो कोई चिंता ही नहीं होती। मैंने अपने बेटे को खूब पढ़ा-लिखा दिया हैं। पिछले दो साल से मेरा बेटा सरकारी नौकरी के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। हमारे पास जमीन-जायजाद भी नहीं है। मैंने तो सारी जिंदगी इस कच्चे मकान में निकाल दी। आगे वह कुछ ना कह सकी। बहन, चिंता ना करो, तुम्हारा बेटा सुमित,बहुत मेहनती हैं। उसे...
एकांतवास
लघुकथा

एकांतवास

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** वृद्धाश्रम में आज कोरोना की जांच करने के लिए सरकारी अस्पताल से डॉक्टर और नर्स आये हुए थे सभी वृद्धजन कतार में खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे ... बाबा आपका नाम क्या है ... नर्स सभी के नाम पूछती जाती... व आधार कार्ड देखने के बाद उन्हें सुई (कोरोना का टीका) लगा देती... दिन भर यही क्रम चलता रहा शाम के ५ बज चुके थे डॉक्टर और नर्स जाने के लिए सामान समेटने लगे.... तभी कमर झुकाये लाठी के सहारे चलते हुए एक बूढी अम्मा आई और नर्स से पूछा- मैंने सूना है की एकांतवास (कोरेन्टाइन) में रहने से कोरोना पास नहीं आता है... ? नर्स बोली- जी सही कहा आपने ... बूढी अम्मा पलटकर जाने लगी तभी नर्स ने कहा अम्मा सुई (टीका) तो लगवाती जाओ ...!! अम्मा ने पलटकर देखा और धीरे से बुदबुदाई ... मुझे नहीं लगवाना टीका वीका २० बरस से मैं अपने परिवार स...
सनक हिम्मत और अनुभव
आलेख

सनक हिम्मत और अनुभव

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** सनक-हिम्मतऔर अनुभव ये जीवन की तरक्की के तीन महत्वपूर्ण सूत्र हैं। सनक आपसे वो भी करवा लेता है, जो आप नहीं कर सकते थे। अथवा ये मानते थे कि ये काम मेरी क्षमता से बाहर है और मुझसे कभी नहीं होगा। असंभव को भी संभव कर के दिखाना ये जुनून का काम है। एक विश्वविजयी सम्राट ने कभी अगर ये कहा है था कि मेरे शब्दकोष में असंभव जैसा कोई शब्द ही नहीं तो ये उसका जुनून ही था जो उसे भीतर से दुनिया को मुठ्ठी में करने का आत्मबल प्रदान कर रहा था। हिम्मत आपसे वो करवाती है, जो आप करना चाहते हैं। जीवन में कुछ बड़ा करने का अथवा कुछ अलग करने का स्वप्न लगभग हर कोई देखता है मगर हौसले के अभाव में उनका वह महान स्वप्न भी केवल दिवास्वप्न बनकर रह जाता है। जीवन में कुछ बड़ा करने के सपने देखना भी अच्छी बात है मगर उन सपनों को साकार करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहना उससे भी अ...