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गद्य

उसकी छवि
कहानी

उसकी छवि

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** सुबह चाय लेते समय मैंने उससे फोन पर बात करते हुए पूछ लिया। क्या चल रहा है आजकल? उसने दबी हुई आवाज में मुझसे कहा कि जीवन है बस जीये जा रहे है। मैंने उस आवाज को समझ लिया और उससे समस्या जानना चाहा पर वह समस्या बता नही पा रहा था। मुझे जल्द से जल्द तैयार होकर ऑफिस जाना था इसलिए मैंने ज्यादा जोर न देते हुए कुछ समय बात करके फोन काट दिया। मैं व्यस्त हो गया। ऑफिस जाने की जल्दी में मैं अपना मोबाइल जो बार बार बज रहा था। उसे उठा नही पाया। मैंने जब मोबाइल उठाया शायद उस समय काफी देर हो चुकी थी। मैंने जब मोबाइल देखा उसमें रवि के चार मिस्ड कॉल थे। उस नम्बर पर जब कॉल किया तो किसी सज्जन व्यक्ति ने उसका मोबाइल उठाया। मुझे जैसे ही पता चला रवि इस दुनिया में नही रहा। मेरे पैरों तले जमीन सरक गई। मैं अपना काम छोड़ उस जगह पर पहुँचा जह...
शिक्षा
कहानी

शिक्षा

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  "वाह भगवान आपने मेरी अर्जी सुन ली। इसलिए शुक्रिया अदा करता हूं।" बहू, आज कुछ मीठा बना लेना भोजन में।' बाबूजी प्रार्थना तो भगवान ने मेरी सुनी है। रोज पीछे पड़ती थी। डिग्री बहुत सी हो या फिर अकल तेज तर्राट हो। "अरे बेटा जो हुआ अच्छा हुआ ना।" दर्शन भी नयी नौकरी पा कर बहुत खुश थे। आज कम्पनी जाॅईन कर घर लौटे थे। आते ही आदेश देते जा रहे थे...... हमने कम्पनी के पास ही, पाॅश काॅलोनी में फ्लेट ले लिया है‌। हां वहां आरज़ू नाम का लड़का है। उसे पेकिंग का काम सौंप दिया है। उससे काम करवा लेना, और जरा फ्लेट के नल पाइप बिजली तथा रसोई घर की व्यवस्था में सुधार चाहिए तो देखने चलना है, तैयार रहना। दर्शना देवी सी मूक हो दर्शन को देख रही थी। दो दिन में कितना बदल गया है। कितना आत्म विश्वास आ गया है सारे व्यक्तित्व में! चेहरा भी रौबदार हो गया है। हा...
मोह-माया की दुनिया
व्यंग्य

मोह-माया की दुनिया

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** बात सुबह के आठ साढ़े आठ बजे की है जब मैं बालकनी में बैठीं हुई चाय और बिस्किट का मज़ा लेते हुएँ, साथ में ही अखबार के पन्नों को पलट रही थी। ओर सोच रही थी की आखिरकार हमारें देश के नागरिक कब मोह माया की दुनिया से बाहर निकलेगें। कब वर्तमान में जीवन जीएगे कब वास्तविकता का समाना करेंगे। और कब देश का विकास होगा। तभी अचानक मेरी नज़र नीचें सड़क पर पड़ी। ओर मैंने देखा की शर्मा चाचाजी चलते-चलते अचानक रूक गये। मगर मैं कहा रूकने वाली थी, मैं तो तुरंत बोल पडीं। ...अरे चाचाजी क्या हुआ आप चलते-चलते अचानक क्यों रूक गयें, क्या कुछ भुल गये बाजार से लाना। चाचाजी बोलें... अरें नहीं बेटा कुछ भुला नही... बल्कि मैं तो बहुत जल्दी में हूँ, मुझे जल्दी घर जाना है। ठीक है चाचाजी, मुझे क्षमा कर दीजिए, आप जल्दी में है ओर मैंने आपको बीच में टोक दिया। कोई बात...
जियो तो ऐसे जियो
आलेख

जियो तो ऐसे जियो

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान, रिश्तो के प्रति समर्पित, धीर-गंभीर प्रवृत्ति, कर्तव्यनिष्ठ, जीवन को संजीदगी से जीने वाले, अल्प आयु में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करने वाले व्यक्तियों में प्रायः अपरिभाषित रूप या अनचाहे रूप से छुपी हुई एक आत्मग्लानि, शिकायत, मलाल, वेदनाा, संताप, अवसाद, व्यथा रहती है कि उन्होंने अल्प आयु में अपने कर्तव्यों को स्वीकार कर, उनका निर्वहन करना प्रारंभ कर दिया वह पूर्णतः दूसरों के लिए जीते रहे इस कारण वे अपने जीवन को पूर्णतः अपने तरीके से नहीं जी पाएl जीवन का उन्मुक्त आनंद नहीं ले पाए l कर्तव्य के पालन में उन्होंने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया l अतः वे लोग कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, रिश्तो के प्रति ईमानदार रहते हुए, उन्हें निभाते भी हैं और घुटते भी रहते हैं l उन्हें लगता है कि यह कर्तव्य, यह आ...
अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?
आलेख

अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** फिल्म अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला अब हमारे बीच नही हैं। ऐसा लिखने और कह सकने के लिए दिल अब भी गवाही नही दे रहा, पर लिखना तो पड़ेगा ही मानना तो पड़ेगा ही..! व्यस्तता के बीच जैसे ही मैने मोबाइल ऑन किया एक प्रतिभाशाली सुंदर, सुडौल, उम्मीदों से भरे एक दमकते-चमकते सितारे के असमय चले जाने की खबरों से मन दहल गया। आंखे सजल हो उठीं। मन मे न जाने कितनी तरह की बातें उमड़-घुमड़ कर चल रही हैं। गत वर्ष सुशांत सिंह राजपूत के असमय काल के गाल में समाहित हो जाने की खबरों ने हम सबको झकझोर के रख दिया और अब सिद्धार्थ के इस तरह से काल कंलवित हो जाना बेहद निराशा जनक है। हमने सुना था और शायद सच भी है कि फिल्म उद्योग के लिए वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना कर रखने वाली मुंबई मायानगरी सच मे मायावी होती जा रही है। यहां अब प्रतिभावान कलाकारों की मौत एक ...
यह भी देश भक्ति
लघुकथा

यह भी देश भक्ति

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "मामीजी बुरा नहीं मानना, ये लीजिए।" "क्या है? इसमें मीना।" "मामीजी ! ये आप की लाई हुई पोलिथिन की थैलियाँ हैं। हमारे शिमला में पोलिथिन बैन है। आप शिमला के बाजारमें घूमने गये थे न ! कहीं भी आपको पोलिथिन की थैली में सामान नहीं मिला होगा। हँसकर- लीजिए "तेरा तुझको अर्पण "। वापिस अपने शहर भोपाल ले जाए।" "पर बाजार में कहीं-कहीं पोलिथिन उड़ती दिखी।" वे भी सैलनियों द्वारा लाई गई हैं। हम शिमला वासी अपने सुंदर शहर की सुंदरता और पर्यावरण रक्षा के लिये बड़े सजग हैं। बुरा नहीं मानना, पोलिथिन थैलियाँ वापस ले जाए।" शर्मिदगी से मेरा सिर झुक गया। भान्जी के यहाँ शादी में गये थे हम। सारे उपहार पोलिथिन थैलियों में ले गये थे, साज-सज्जा के साथ।भोपाल में तो, सब्जी तक अमानक पोलिथिन थैलियों में मिलती है। सुविधाभोगी मैं भी कब कपड़े का थैला ले...
मन से जीत का मार्ग
आलेख

मन से जीत का मार्ग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  एक कहावत है 'हौंसलों से उड़ान होती है, पँखों से नहीं'। यह महज कहावत भर नहीं है। अगर सिर्फ कहावत भर होती तो आज अरुणिमा सिन्हा, सुधा चंद्रन, दशरथ माँझी और हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ही नहीं बहुत सारे अनगिनत लोग सुर्खियों के बहुत दूर गुमनामी में खेत गये होते। मैं अपना स्वयं का उदाहरण देकर स्पष्ट कर दूँ कि जब २५.०५.२०२१ को जब मैं पक्षाघात का शिकार हुआ तब चारों ओर सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं दिखता था। शायद ही आप सभी विश्वास कर पायें। कि यें अँधेरा नर्सिंग होम पहुँचने तक ही था, लेकिन नर्सिंग होम के अंदर कदम रखते ही मुझे अपनी दशा पर हंसी इस कदर छाई, कि वहां का स्टाफ, मरीज और उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। फिर भी मुझे जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ ...
मिथिला की लोककला और संस्कृति
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मिथिला की लोककला और संस्कृति

प्रीति कुमारी शेक सराय (नई दिल्ली) ******************** भारतीय दर्शन मनुष्य जीवन को एक उत्सव के रूप में देखता है। ऐसा उत्सव जो इस ब्रह्माण्ड में जीवन की पूर्णता को प्रकाशित करता है। इस उत्सव को मनाने के लिए ही संस्कृति का निर्माण हुआ है। और इस संस्कृति की प्राण धाराएं हैं-लोक-कलाएं। जीवन-उत्सव को नृत्य, चित्रकला, कथा, लोक-रंजन की विविध विधाओं के माध्यम से प्रकट करने के पीछे मनुष्य की यही आत्यंतिक भावना है कि वो सृष्टि के रंगमंच पर अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर सकें। मिथिला चित्रकला इसी दिशा में एक जीवंत कला-यात्रा के रूप में सामने आती है। इसमें चटकीले रंगों, सजीव चित्रों और विस्तृत रूप-आकृतियों से संस्कृति की सम्पन्नता का दर्शन होता है। यूँ तो यह बिहार और नेपाल के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक लोक कला है पर अपने उत्स-भाव की ऊर्जा के सहारे सिर्फ देश के अलग-अलग क्षेत्रों में ही नहीं बल...
अधूरा प्यार
लघुकथा

अधूरा प्यार

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** रिमझिम बारिश में झूमती हुई सत्रह-अठारह की उम्र की एक बाला शायद उन्नीस बरस की उम्र में पहुँचे केशव के सपनों की रानी है। कभी अपने पैरों से पानी को उछालती तो कभी अपने दोनों हाथों को फैलाकर, बारिश की बूँदों का अपने चेहरे पर अहसास करते हुए मुस्कुराती हुई घूमती। दूर एक पेड़ के नीचे केशव खड़ा होकर उसे देख रहा है। उसका खुशी से झूमना, मुस्कुराना बच्चों की तरह कूदना उसे भा गया था। वो उस बाला को एक टक देख रहा है तभी अचानक बारिश तेज होने लगी बिजलियाँ कड़कने लगी। बिजली की चमक और बादलों की गड़गड़ाहट से वह भयभीत हो गई और उसी जगह पहुँच गई जहाँ केशव खड़ा था। थरथराते हुए होंठ व काँपती हुई लड़की को देख केशव उससे कुछ कहना चाहता था। कुछ मिनटों के बाद ही वह उससे बात करने लगा। वह जानता है कि बातों बातों में उसका ध्यान कपकपाहट से परिवर्तित ह...
पेड़ की पीड़ा
लघुकथा

पेड़ की पीड़ा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर आठ-दस दिन बाद शासकीय कार्य से जीप द्वारा उधर से निकलना होता था सड़क कच्ची व पथरिली थी, सड़क की दोनों और विराट विराना वन था मैं समीप से गुजरती अजीब सा सन्नाटा लगता एक दिन उसवनके समीप से गुजरते हुए मुझे कुछ ठोकने टकराने की आवाज सुनाई दी मैंने वहां चालक से पूछा तो मैं भी कुछ सुनाई दे रहा है वह बोला हां कुछ ठोकने की आवाज सुनाई दे रही है जैसी कोई पेड़ काट रहा हो मेरी धड़कन बढ़ गई थोड़ा अंदर जाकर देखा पेड़ को काटा जा रहा था पेड़ पर लगे आघात मुझे आहत कर रहे थे। आंखों से आंसू बहाता आकाश तपती धरती को ताकता मानो कह रहा है सुन रही हो रुदन कटते पेड़ का जो कभी मुझे छूने का यत्न कर रहा था, तुम्हारे द्वारा भेजा गया तुम्हारा सन्देश सुनाने के लिए मेरे पास आ रहा था किन्तु हाय रे मानव की लालसा स्वार्थी मानव ने उसे ऊपर चढ़ते ही नीचे गिरा दिया तुम्...
रक्षाबंधन
लघुकथा

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** मेघा बड़ी जतन से रेशम के धागे लिए ब्रश से झाड़ रही थी! उसके पास ही तरह-तरह के छोटे-छोटे रंगीन नग-स्टोन, गोंद-कैंची रखे हुए थे! लक्ष्य परेशान था कि मांँ क्या कर रही हैं? कहीं यह राखी तो नहीं बना रहीं... !?! पर उसने स्वयं ही मांँ के दोनों भाइयों को बाजार से राखी खरीदकर पोस्ट कर दिया था। तो अब भला मांँ राखी किसके लिए बना रही हैं!?! उसकी प्रश्न सूचक हैरान दृष्टि देख मेघा ने कहा... जितेंद्र के लिए राखी बना रही हूंँ। बिल्कुल विस्मित होकर लक्ष्य बोला अरे! वह तो मुझसे भी छोटा बच्चा है मांँ! फिर उसके लिए राखी आप क्यों बना रही हैं? मेघा ने कहा- हांँ, उम्र में वह मेरे बच्चों से भी छोटा है। पर जब मेरा पूरा परिवार कोरोना महामारी की चपेट में आया मौत से जूझ रहा था और बिस्तर से उठने की स्थिति में भी नहीं था तब इसी शहर में रहने के बावजूद कोई भी हमारा रिश्...
रिश्तों की डोर
लघुकथा

रिश्तों की डोर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य घटना पर आधारित लघुकथा जीवन में कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। समान कार्य क्षेत्र के अनेक आभासी दुनियां के लोगों से संपर्क होता रहता है। जिनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो वास्तविक रिश्तों के अहसास से कम नहीं है। मेरे वर्तमान जीवन में इनकी संख्या भी काफी है, जो देश के विभिन्न प्राँतों से हैं। एक दिन की बात है कि आभासी दुनिया की मेरी एक बहन का फोन आया, उसकी बातचीत में एक अजीब सी भावुकता और व्याकुलता थी। बहुत पूछने पर उसनें अपने मन की दुविधा बयान करते हुए कहा कि मैं समझती थी कि आप सिर्फ़ मेरे भैया है, मगर आप तो बहुत सारी बहनों/भाइयों के भी भैया हैं। तो मैंने कहा इसमें समस्या क्या है? उसने लगभग बीच में ही मेरी बात काटते हुए कुछ यूँ बोली, जैसे उसे डर सा महसूस हुआ कि कहीं मै न...
अब तो सुधर जाओ मियां
व्यंग्य

अब तो सुधर जाओ मियां

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की खबर पर जैसे ही दृष्टि पड़ी तो बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ हम तो पहले से ही जानते थे कि यही होना है नहीं होता तो जरूर आश्चर्य होता मियां। एक कहावत तो तुम ने सुनी होगी? हमारे मालवा में बहुत बोली जाती हैं कि "जो दूसरा वास्ते खाड़ा खोदें, उज उनी खाड़ा में सबका पेला पड़े।" मतलब कहने का यह पड़ रिया है कि अब तो सुधर जाओ मियां। आज अफगानिस्तान की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। तालिबानियों ने सरकार का तख्ता पलट कर राष्ट्रपति को भागने को मजबूर कर दिया।‌ महिलाओं और बच्चियों की दुर्गति हो रही है। यहां तक कि अफगानिस्तान का नाम भी बदल दिया है और पड़ोसी देशों के पास समर्थन के अलावा कोई चारा नहीं। परिस्थितियां बद से बदतर हो रही है फिर भी भारत में रहने में तुमको डर लगता है मियां जबकि भारत संव...
बुढ़ापे की लाठी
लघुकथा

बुढ़ापे की लाठी

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** आपके बच्चो ने क्या किया है अरे पता मेरे तो दोनों बेटों इंजिनियर बन गए हैं, सवाल मेरे दोस्त ने जब मुझसे कहा तो उसके चेहरे अजब सा घमंड और मुस्कान थी, और मुझे हीन भावना से देख रहा था‌। पर कल जब वो मुझे मिला तो वह कुछ परेशानियां था मेने पूछा क्यों दोस्त क्या बात है इस तरह उदास क्यों बैठे हो ? मेरी बात सुनकर वो बोला अरे दोस्त क्या बताऊं तुम्हे तो पता ही मैंने अपने दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए बैंक से कर्जा लिया था अब मेरे दोनों बच्चे जब इंजीनियर बन गए तो वह कर्जा चुकाने को तैयार नहीं है मुझे कहते हैं कि कर्जा तो आप का कर्जा हमने नहीं दिया है। आज बैंक इस आए कि अगर आप कर्जा नहीं चुकाएंगे तो आपका घर नीलाम कर दिया जाएगा बस इसी चिंता में हूं मैं कर्जा कैसे चुकाऊं कर्जा नहीं चुकाऊंगा तो घर विराम हो जाएगा वह मेरे रहने की जगह भी नहीं...
तुम्हारे पत्र
कहानी

तुम्हारे पत्र

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गगन का मन आज बहुत उदास था। वह कई साल बाद इस महानगर में लौट रहा था। इस नगर से उसके जीवन की बहुत सी यादें जुड़ी थी। वक्त कैसे गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता? गाड़ी बहुत तेज गति से दौड़ रही थी। एक के बाद एक स्टेशन पीछे छूटता जा रहा था। गाड़ी को भी आज अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दी थी। हर स्टेशन पर गाड़ी कुछ देर रुकती। वह मन ही मन सोच रहा था। इतना अधिक भीड़-भड़ाका, धक्का-मुक्की तो सिर्फ भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में ही संभव है। ऐसा नजारा और कहीं देखने को नहीं मिल सकता। गाड़ी फिर अगले स्टेशन के लिए धीरे-धीरे चल पड़ी। पर जल्दी ही गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली। हर स्टेशन से कई अजनबी चेहरे गाड़ी में चढ़ते और उतरते। भारत ही संसार का सबसे अनोखा देश है। जहां पर इतनी विभिन्नता पाई जाती हैं। यहाँ पर हर तरह का मौसम पाया जाता हैं। प्राकृतिक सौंदर्य तो द...
नमामि गंगे
आलेख

नमामि गंगे

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जलवायु परिवर्तन और दुनियाभर में गहराते जल संकट के बीच विकास की नई कहानी वही देश लिखेगा जो पानी का धनी होगा। तात्पर्य यह कि आज जो देश जितना पानी बचायेगा, वह भविष्य में उतनी ही बड़ी शक्ति के रुप में उभरेगा। यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट के अनुसार एक समय ऐसा आयेगा जब दुनिया के लोगो के पास पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। इस समस्या को भारत गहराई से समझ रहा है। इस दिशा में तेजी से चल रही पहल प्रशंसनीय है, फिर भी जन भागीदारी से ही सभी प्रयास सफल सिद्ध होंगे। तभी जल शक्ति मंत्रालय का गठन की पहल मील का पत्थर साबित होगी। देश के घर घर में स्वच्छ पानी पहुंचाने की व्यवस्था में सक्रिय नमामि गंगे परियोजना, के जरिए गंगा के पुनरुद्धार के साथ साथ अन्य नदियों की सफाई कार्य अत्यंत आवश्यक कार्य है। नया साल नई उम्मीदों का खजाना लेकर आया है, ...
अपने विवेक का इस्तेमाल करें
कथा

अपने विवेक का इस्तेमाल करें

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** राधा बहुत ही सुशील एवं गुणवान कन्या थी जब वह रघुवीर जी के घर उनके छोटे बेटे की वधु बनकर आई थी। लोग उसकी तारीफ करते ना थकते थे। कोई उससे गुणवंती कहता तो कोई सुकन्या। दोनों बहुओं की तुलना होने लगती कि जैसी बड़ी बहू है वैसी ही छोटी भी। हर कोई रघुवीर जी को यही कहता कि उन्हें जो बहुएँ मिली है लाखो में एक है। ऐसी बहुएँ तो सिर्फ किस्मत वालों को मिलती है। बड़ी बहू के चाल चलन व व्यवहार देखकर राधा भी हर व्यक्ति का बराबर सम्मान करती थी चाहे उसके परिवार के हो या कोई अनजान व्यक्ति। दोनों के पति भी बिल्कुल उन्हीं की तरह थे। ऐसा लगता था मानो दोनों के उनकी पत्नियों से पूरे छत्तीस के छत्तीस गुण मिलते हो। अनगिनत संपत्ति खेत-खलियान, धन-दौलत सबकुछ होने के बावजूद वह कभी किसी से गलत व्यवहार या हीन भावना नही रखता था। अहंकार उससे कोसों ...
क्या वाकई दूर बैठी हैं बहनें?
कहानी

क्या वाकई दूर बैठी हैं बहनें?

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** आजकल आवागमन के इतने सुगम साधन होने के बावजूद भी बहने अपने मायके नहीं आ पाती वो इसलिए कि अब उनका खुद का घर परिवार बच्चे संभालने होते हैं आज के परिवेश में स्थितियां भी बदल गई प्यार और अपनत्व ने भी उस डोर से किनारा कर लिया ननद ने भाभी को फोन करके पूछा कि भाभी मैंने जो राखी भेजी थी मिल गई क्या आप लोगों को भाभी ने कहा नहीं दीदी अभी तक तो नहीं मिली ननद बोली ठीक है भाभी कल तक देख लो अगर नहीं मिली तो मैं खुद आ जाऊंगी राखी लेकर अगले दिन भाभी ने खुद फोन किया और कहा कि हां दीदी आपकी राखी मिल गई है बहुत अच्छी है धन्यवाद दीदी ... ननद ने फोन रखा और आंखों में आसूं लेकर सोचने लगी कि भाभी मैंने तो अभी राखी भेजी ही नहीं और आपको मिल भी गई रिश्तों को सिमटने और फिर टूटने से बचाएं क्योंकि यह रिश्ते हमारे जीवन के फूल हैं जिन्हे ईश्वर ने हमारे लिए ख...
ईश्वर के नाम पत्र
व्यंग्य

ईश्वर के नाम पत्र

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी लिखता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत। क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल/कुटिया/धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं, कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए। कारण कि अब पत्र लिखना भी छूट...
अपना ईमान कायम रखें
लघुकथा

अपना ईमान कायम रखें

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** नैतिक शिक्षा हमें हर प्रकार के नैतिक ज्ञान से परिपूर्ण करती है। नैतिकता जीवन में जब मुसीबतें आती है तो अपना होंसला कायम रखने का जज्बा प्रदान करती है। बात उन दिनों की है जब हरि नाम का एक गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी से परेशान था। उसने परिश्रम करने में कोई कमी नही रखी लेकिन उसकी मेहनत सामने ना आ सकी। लंबे समय के बाद वह और उसकी मेहनत एक धनी व्यक्ति की नज़रों में आ गयी। उसने हरि को अपने घर पर आने के लिए कहा। हरि दूसरे ही दिन उस व्यक्ति के घर पहुँच गया। उसने हरि को अपने खेत खलिहानों की निगरानी एवं मजदूरों से काम करवाने का उसे काम दे दिया। हरि बड़ा खुश था। उसने कभी ये उम्मीद ही नही की थी कि उसे इस प्रकार काम भी मिल पायेगा। बड़ी शिद्दत व ईमानदारी से वह अपना काम करता था। मालिक की नज़र में उसने अविश्वसनीय स्थान पा लिया था। अब वह...
आर्यावर्त के सूर्य
कविता, संस्मरण, स्मृति

आर्यावर्त के सूर्य

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे आर्यावर्त के सूर्य! तुम्हें क्या दीया दिखाऊँ!! हे मानवता के दिव्य उज्ज्वल रूप! बलिहारी जाऊँ। दीन-हीन-पीड़ितों के हित लहराय तुझ हिय में प्रखर कैसी अप्रतिम उत्कट सहानुभूति का अगाध सागर! सादा जीवन जीया औ सदा ही रखे उच्च विचार! अपनी कथनी करनी से दिखाय सदा उच्च संस्कार!! साहस, संघर्ष, पौरुष के साकार रूप रहे सदा तुम! सदा ही किये चुनौतियों मुश्किलों का सामना तुम!! जीवन के पथ पर अनवरत चलते अनथक राही तुम! सतत् प्रेरणा के शुभ स्रोत बने परम उत्साही तुम!! बालकाल से ही जीया अभावों का दूभर जीवन! खेलने-खाने की उम्र से ही करन लगे चिंतन-मनन!! मांँ की ममता से भी वंचित, हा महज आठ की वय में! झेला विमाता का दुर्व्यवहार औ पिता का धिक्कार!! कैशोर वय में ही आ पड़ा तेरे कोमल कंधों पर : पूरे परिवार-पाल-पोस के दायित्व...
मेरा पहला सावन
कहानी

मेरा पहला सावन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। वह पिछले दो दिनों से उदास थी। माँ भी बेटी के कारण परेशान थी। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। क्यों बेटी, क्या बात है? झुमरी की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे। यह आंसू खुशी के थे। वह शर्माते-शर्माते बोली, माँ उनकी बहुत याद आ रही हैं। माँ झुमरी की बात सुनकर हँसे बिना ना रह सकी। क्या सचमुच झुमरी? झुमरी आगे कुछ ना बोल सकी। वह चुपचाप दौड़तीं हुई अपने कमरे में चली गई। उसने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। माँ बहुत हैरान थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि उसकी बेटी पागल हो गई हैं। इतने समय बाद अपने घर आई है। पर उसका मन कहीं----। फिर वह खुद के ही माथे पर हाथ मारकर हँस पड़ी। झुमरी शादी के बाद से बहुत खुश रहती थीं। यहाँ आने का तो नाम तक नहीं लेती थीं। ऐसा भी क्या, पति मोह! वह झुमरी के कमरे के पास जाकर खड़ी हो गई। वह उ...
मित्र एक हो पर नेक हो
लघुकथा

मित्र एक हो पर नेक हो

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** किसी गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। एक का नाम जय दूसरे का धीरेन्द्र था । दोनों ही अपने काम को बखूबी करते थे। पूरे गाँव में दोनों के चर्चे थे। एक समय ऐसा आया जब दोनों अपनी शिक्षा के लिए साथ साथ शहर में रहने लगे। शहर में रहते हुए उन्हें मात्र कुछ महीने ही हुए थे कि धीरेन्द्र गलत संगत में पड़ गया। उसे कुछ गलत आदतों ने घेर लिया था। वह अपनी आदतों के कारण घर से पढ़ाई के नाम पर लाया हुआ पैसा अपनी गलत आदतों में खर्च कर देता था। जब इस बात की भनक जय को लगी तब उसने वीरेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु जिन लतों ने धीरेन्द्र को घेर रखा था वो उसका पीछा छोड़ने का नाम नही ले रही थी। अब तो धीरेन्द्र जय के सामने कभी सिगरेट तो कभी शराब पीकर आने लगा, नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि अब वह जय की जेब से पैसे भी चुराने लगा। जय ने लाख क...
बीस साल बाद
कहानी

बीस साल बाद

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** "बीजी, देखो मेरा करनू घर लौट रहा है पूरे बीस साल बाद। मैंने एक ही नजर में पहचान लिया। जरा भी नहीं बदला है। सुलेखा-सुचित्रा, तुम भी देखो। "खुशी से उछलती कूदती अखबार हाथ में लिए सावित्री अंदर भागी। "सवि पुत्तर, कौन करनू? तू किसके लौटने की खुशी में पागल हो रही है। यहां तो कोई करनू नहीं है। "बीजी ने आश्चर्य से पूछा। "देखो, वहीं करनू जो बीस साल पहले गुम हो गया था। "कहते हुए सावित्री ने अखबार बीजी के सामने फैला दिया और अंगुली से इशारा कर करनू का चित्र दिखाने लगी। उसकी आंखों में उमड़ी खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी या कि बाहर आने को मचल रही थी। उसने बीजी के सामने से अखबार उठाया और करनू के चित्र को पागलों की तरह चूमने लगी। ये सब देख कर बीजी के दिल में घंटियां सी बजने लगीं। वे फौरन समझ गई कि सावित्री क्या कहना चाह रही है। करनू के मिलने के का...
आईना
लघुकथा

आईना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत दिनों से कमरे में पड़े आईने को देखा ही नहीं था। शायद वह बुला रहा है, मन विचलित हुआ। धीरे से उसे उठाया ऊपर धूल की परत जमी थी। साड़ी के पल्लू से ही धूल साफ की। "अचानक अतीत ने मुस्कराते हुए हाथ पकड़ लिया।" अरे! अभी कुछ जिन्दगी बाकी है। आईना तो देख लिया करो। "खुश हो ना ! "हां हां, सब चित्र सामने है, वो देखो कहते, मैंने कार स्टार्ट करती मधु की ओर संकेत किया।' आई ! 'मैं दोस्त के साथ घूमने जा रही हूं, दस बजे तक लौट आऊंगी।" कार से जाती हुई मधु को मैंने दरवाजे की आड़ से देख लिया था। बीए एल एल बी कर रही मधु राष्ट्रीय खिलाड़ी, स्व. निर्णय की धनी तथा बड़ी समझदार पोती का मुझे गर्व था। उसकी हर हरकतें मेरी जिन्दगी से मिली जुली थी। फर्क इतना ही था उसे उसकी प्रत्येक ख्वाइश पूरी करने के अवसर थे, आधुनिक साधन उपलब्ध थे समाज की हर गतिविधि से वह पर...