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गद्य

शाकाहार – सर्वोत्तम
आलेख

शाकाहार – सर्वोत्तम

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आम के फल का स्वाद नहीं ले सकता। इसी प्रकार बीज रूप में जैसा आहार लिया जाता है, वैसे ही भाव-विचार और आचार होते हैं। आहार दो प्रकार के है- शाकाहार और मांसाहार। शाकाहार अहिंसामूलक है, तो मांसाहार हिंसामूलक। शाकाहार स्वास्थ्यप्रद है, तो मांसाहार रोगों का घर, शाकाहार मानवीय और सौन्दर्यपरक आहार है तो मांसाहार आसुरी और विकृतिपरक, in ७७ सात्विक है तो मांसाहार कालकूटविष, शाकाहार प्रकाश की ओर ले जाता है तो की गौरव गरिमा है। शाकाहार ही मानव के अन्दर संतोष, सादगी, सदाचार, स्नेह, सहानुभूति और समरसता जैसे चारित्रिक गुणों का विकास कर सकता है, मांसाहार कदापि नहीं। शाकाहारी का मन जितना संवेदनशील होता है मांसाहारी का नहीं हो सकता। शाकाहार का तात्पर्य है चारों ओर स्नेह और वि वास का वातावरण बनाकर प्रकृति के कण-कण को सह अस्तित्व की भावना स...
वो प्यारी सी मुस्कान लिए
लघुकथा, सत्यकथा

वो प्यारी सी मुस्कान लिए

स्वप्निल जैन छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के कुछ दिन बाद की बात है, मैं अपनी दुकान पर बैठा था, तभी कुछ ९-१० साल की उम्र के आस-पास की वो प्यारी सी मुस्कान लिए दिल में कुछ अरमान लिए हाथों में सिर्फ हां सिर्फ दो गुब्बारे लिए मेरे पास आई। मैंने पूछा हां बेटा बोलो, वो बिटिया बोली भैया मेरे गुब्बारे खरीद लो, मुझे जरूरत नही थी बलून की पर वो मासूम सी बच्ची निरास स्वर में उम्मीदों से बोली थी, उस समय तो मै सोच में पड़ गया कि इस बच्ची को क्या कहूँ। फिर आखिर मैंने उससे पूछ ही लिया बेटा क्या आप पढ़ाई भी करते हो, वो बोली नहीं मुझे खाने के लिये गुब्बारे बेचने जाना होता है, उस मासूम की इतनी बातें सुनते ही मेरा हृदय पसीज सा गया मैंने एक पल भी देर ना कि और उस बच्ची के दोनों गुब्बारे खरीद लिये, उसका चेहरा मंद-मंद खिल सा गया। वो प्यारी सी मुस्कान लिए कुछ बोली, भैया यदि आपके पा...
धूलगढ़ बना फूलगढ़
कहानी

धूलगढ़ बना फूलगढ़

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** धूल से भरा हुआ एक गॉंव था जिसमें चारों तरफ धूल ही धूल दिखाई देती थी। इस गॉंव की जमीन बंजर स्वभाव की थी।जिस कारण गॉंव में बहुत कम जमीन पर ही खेती होती थी और अधिकांश जमीन का हिस्सा खाली पड़ा रहता था। दूर- दूर तक केवल बड़े-बड़े खाली मैदान दिखाई पड़ते थे जिनमें धूल उड़ती रहती थी। गॉंव के लोग बहुत गरीब थे क्योंकि वो केवल इस बंजर भूमि में उतना ही अनाज पैदा कर पाते थे जितना उनका पेट भर सके। यहॉं के बच्चे भी गॉंव के प्राथमिक विद्यालय में पॉंचवीं कक्षा तक ही पढ पाते थे क्योंकि गरीबी के कारण कोई भी अपने बच्चों को शहर पढ़ने नहीं भेज पाता था। लंगोटिलाल और उसकी पत्नी लुंगीदेवी ने निश्चय कर लिया कि उन्हें कुछ भी करना पड़े परन्तु वो दोनों अपने बेटे गम्छासिंह को इतना पढ़ाएंगे की वो पढ लिखकर इस गॉंव की जमीन को सुधार सके। गम्छासिंह चौथी कक्षा ‌मे...
पारो
कहानी

पारो

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ********************  किसी स्टेशन पर रेलगाड़ी रुकी हुई थी, एक लड़का चाय की आवाज जोर-जोर लगाता हुआ आया, मैनें उससे एक चाय ली, चाय के पैसे देते हुए उससे स्टेशन का नाम पूंछा और चाय की चुस्की लेते हुए पारो (काल्पनिक नाम) के बारे सोचने लगा, वह बहुत ही सुंदर और अच्छे स्वभाव की लड़की थी, बचपन से कोलेज तक हम दोनों साथ में पढ़े थे, हम दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे, में उससे बहुत प्यार करता था, मगर हम दोनों कभी एक दूसरे से प्यार का इज़हार करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। मेरी कोलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद मै आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हो गया, ट्रेनिंग के दौरान छुट्टी ना मिलने के कारण मै काफ़ी समय तक गांव नहीं आ पाया, ट्रेनिंग के बाद मेरी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में कर दी गई। एक दिन गांव से ख़त आया दादी की तबियत ठीक नहीं रहती और तु...
वसंत पर सरस्वती पूजा क्यों?
आलेख

वसंत पर सरस्वती पूजा क्यों?

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                     बसंत पंचमी हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार में से एक है। वसंत ऋतु के आगमन पर उत्सव मनाने का यह दिन वसंत पंचमी है। एक पौराणिक कथा है, कि जब ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी, तो उन्होंने देखा कि पूरी सृष्टि मूक है। यहां कोई बात नहीं कर रहा है, फिर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, और एक सुंदर स्त्री चार भुजाओं के साथ प्रकट हुई। उसके एक हाथ में वीणा थी। जब उन्होंनेे वीणा बजाई, तब उसकी आवाज इतनी मधुर थी, कि सृष्टि में स्वर आ गया। ब्रह्मा जी ने इस देवी को सरस्वती का नाम दिया। उसके बाद से इस दिन को वसंत पंचमी के तौर पर मनाया जाता है। मॉ सरस्वती ज्ञान की देवी है, इसकी वजह से मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व माना गया है। मां की पूजा करने से ज्ञान का विस्तार होता है, साथ ही साथ ...
स्वर की मधुरता
लघुकथा

स्वर की मधुरता

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १० साल की आरिया काफी समय बाद आज अपने कमरे की खिड़की से, अस्ताचलगामी सूर्य की लालिमा से रक्ताभ हुए आकाश में पंख पसारे पक्षियों की चहचहाहट को केवल महसूस कर पा रही थी। ४ महीने पहले "कनेक्टिव टिशु डिसऑर्डर" नाम की बीमारी ने उसकी सुनने की क्षमता को छीन लिया था। आरिया मतलब मेलोडी माने स्वर की मधुरता। ४ साल की उम्र से ही आरिया का संगीत में रुझान था। जब उसकी उंगलियां गिटार पर चलती और खनकती आवाज़ में वो कोई गाना गाती तो लोग अपनी सुध बुध भूल जाते। संगीत के प्रति उसका लगाव धीरे-धीरे उसका जुनून बनने लगा था, उसका सपना था कि एक दिन वह एक मशहूर सिंगर बनेगी। लेकिन आज पक्षियों के कलरव ने उसे आशा की नई किरण दी थी। धीरे-धीरे आरिया में आत्मविश्वास बढ़ने लगा, क्या हुआ अगर वो सुन नहीं सकती थी, उसने संगीत को महसूस करना शुरू कर ...
संकट में आते मानव परिवार
निबंध

संकट में आते मानव परिवार

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** जनसंख्या नियंत्रण करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसे नियंत्रित करने के लिए हमारी सरकार और अनेक सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं लगातार प्रयास कर रही है। इनके प्रयासों का परिणाम समाज में देखा भी जा सकता है। लेकिन जनसंख्या नियंत्रण को ज्यादा प्राथमिकता शिक्षित वर्ग ने दी है। इससे भी अधिक प्राथमिकता भारत की उच्च जातियों ने दी है। शिक्षित वर्ग और उच्च जातियों ने अपने परिवार को एक दम से सीमित कर दिया है। प्रायः देखा जाए तो उच्च जातियों में आजकल दो सन्तान पैदा करने का प्रचलन चल रहा है जिससे एक लडका और एक लड़की। अधिकतर परिवार तो प्रथम लडका होने पर दूसरी संतान के बारे में सोचते ही नहीं है। जनसंख्या नियंत्रण के हिसाब से ये सब उत्तम है परन्तु कभी सोचा है इसका इन परिवारों पर असर क्या होगा? इसके दो असर होंगे। प्रथम अनुकूल असर जनसंख्या निय...
सुंदर
लघुकथा

सुंदर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** पार्टी में रंग बिरंगे परिधानों में गहरे श्रंगार करे दादी की सहेलियों को देख आशू ने अपनी साधारण सी दिख रही दादी से कहा, "दादी, आपकी सब सहेलियां कितनी सुंदर लग रही हैं, आप उतनी सुंदर नहीं हैं।" अपने आठ वर्षीय पोते की बात सुन कपिला मुस्कुरा दी, कैसे वह इस बच्चे को बताए कि ये सब गाढ़े श्रंगार करके अपनी असली उम्र को छिपाने का प्रयास कर रही हैं। उसी रात में आशू के साथ टहलते समय ठंड से ठिठुरती एक गरीब वृद्धा को देख कपिला ने अपना शॉल कंधे से उतारकर उसको उढ़ा दिया। वृद्धा अत्यंत प्रसन्न होकर बोली, "बेटी, तू बहुत सुंदर है।" आशू ने अपनी दादी के चेहरे की ओर देखा, उसे अपनी दादी बहुत सुंदर लग रही थीं। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद वि...
नेहानुबन्ध
लघुकथा

नेहानुबन्ध

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम की लंबी उम्र बहुधा उसकी निस्वार्थता पर निर्भर करती हैं। मधु जब अपने बाबुल का अंगना छोड़ पी की देहरी आई तो मन मे एक दृढ़ संकल्प तो था पर एक अनजान सा भय मिश्रित आनंद भी था। बचपन से सौतली माँ के कठोर सानिध्य में पली मधु ने कष्टो व दुखो को बहुत नजदीक से देखा था। बात बात पर पिटना, भूखे ही सो जाना आदि की तो मधु को खूब आदत थी। पर कितनी भी कठोर क्यों न हो, मधु अपनी मां को हृदय से चाहती थी। ससुराल में तो धन दौलत वैभव सब कुछ मधु को मिल गया था। पर मधु माँ को नही भूल पाई थी। ससुराल में सिर्फ उसके ससुर और पति बस दो ही लोग थे। विवाह के लगभग एक साल बाद मधु के पिताजी यकायक चल बसे। घर का सारा काम मधु से करवाने वाली मां पर मानो वज्रपात पड गया। दुकान बंद हो गई और कुछ ही दिनों में खाने के लाले पड़ने लगे। मां को रह-रह कर अपनी सौत...
पितृ देव
लघुकथा

पितृ देव

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तुम सो रही क्या? एक हट्टा-कट्टा कद्दावर पुरुष श्वेत वस्त्रधारी, लम्बी श्वेत कपसीली दाढ़ी और सिर में बड़े-बड़े सफेद बाल, निर्मल छवि देख विनीता अचकचाकर उठ बैठी। उस महापुरुष के मुखमंडल पर ऋषि-मुनियों की तरह आभा झलक रही थी। विनीता चरण स्पर्ष करते हुए बोली-बाबा आप यहां ! बाहर कोई नही है क्या? बाबा जी आप यहां आने का कष्ट क्यों किये। मै वहीं आ जाती। नही बेटी-मुझे तुमसे ही मिलना था इसलिए मैं उधर गया ही नही। सीधे यहीं चला आया। अच्छा ! कहिए ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ। बेटी ! मैं बस यही कहने आया हूँ कि अब पितृ पक्ष आ गया है। लोग श्राद्ध के बहाने अनेकों तरह के दिखावे और भुलावे में आ जाते हैं। कम से कम पांच-सात पंडितों को आमंत्रित करेंगे। घर परिवार या दोस्तों को बुलाएंगे। एक वृहद भोज का आयोजन होगा। ऐसा लगेगा जैसे कोई जलस...
धोखा
लघुकथा

धोखा

महिमा शुक्ल इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रमा और राज साथ ही पढ़ते थे, रमा उसकी लच्छेदार बातों पर खूब हँसती जल्द ही बीस साला प्यार के गिरफ्त में आ गए दोनों। कस्मे-वादों की फेहरिस्त भी बना ली दोनों ने। रमा ने उसे अपना सब कुछ मान लिया, राज पर ऐतबार उसे इतना कि एक दिन घर से चुपचाप उसके साथ चल दी, सब कुछ छोड़-छाड़ कर अपना अशियाना सजाने के लिए। प्यार में डूबे दोनों ने रजत के एक दोस्त के यहॉँ पनाह ली। सपनों में खोयी रमा को अपना घर बनाने की तमन्ना थी, दो दिन बाद ही रमा बोली अब आगे? चलें कहीं और? नौकरी करनी होगी वरना कैसे चलेगा काम? रजत ने लापरवाही से कहा क्या जल्दी है? अभी आराम से रहो रमा ने फिर पूछा "पैसे कहाँ से आएंगे जो मैं लायी थी वो ख़त्म हो गए" अब रजत झटके से तुरंत बोला ये है ना सुरेश ये देगा। रमा को शंका होने लगी अरे तो चुकाओगे कैसे? रजत ने धीरे से कहा तुम चुकाओ...
दया भावना
लघुकथा

दया भावना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कड़ाके की ठंड में लोग घरों में दुबके बैठे थे गली मोहल्ले में इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। एकाएक सड़क पर भजन गाने की आवाज सुन मेरे नव वर्ष के पोते ने खिड़की से झांक कर देखा उसे भजन गाने वाला एक भिकारी दिखाई दिया जिसके तन पर केवल एक फटा कंबल और कंधे पर एक झोला लटका दिख रहा था। वह दुनिया से बेखबर अपने में मस्त भजन गाता चला जा रहा था ना किसी से आशा ना ही मन में कोई इच्छा थी। हम सब अपने सुबह के कामों में व्यस्त थे पोते ने उसे अपने घर के आंगन में बुलाया और बिठा कर दो क्या हुआ दादी के पास आकर बोला दादी दादी बाहर एक भिखारी बैठा है क्या मैं उसे अपना छोटा कंबल ओढ़ने के लिए दे दूं। उसके पास फटा कंबल है थारी बोली तुम्हारा कमल बहुत छोटा है तो मेरा बड़ा कंबल उसे दे दो पोता ध्रुव मां से बोला मां उसे कुछ खाने को दोगी क्या...। बेचारा ...
नीरू की जिद
लघुकथा

नीरू की जिद

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** इस बार अर्धवार्षिक परीक्षा में नम्बर क्या कम आया कि नीरू पूरी तरह से जिद पर उतारू हो गई। कहने लगी कि मुझे तो दीदी वाला ही रूम चाहिए। दूसरे रूम में बाहर के शोर शराबे में पढ़ाई नहीं हो पाती। मुझे तो यही वाला रूम चाहिए। चारू प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है उसे किसी तरह का व्यवधान न हो इसलिए एकान्त कमरा दे दिया गया था। बार-बार समझाने के बाद भी जब नीरू नहीं मान रही थी तो नंदिता को अचानक उसकी और भी पुराने जिदें याद आने लगीं। सोचने लगी- इसे बार-बार हर बार दीदी की ही चीजें क्यों चाहिए? खीझ भरे मन में अनायास ही अतीत के पन्ने पलटने शुरू हो गए। जब अपने जन्म दिन पर उसने फ्राक के लिए जिद कर लिया था। बोलने लगी थी माँ मुझे भी अपने जन्म दिन में दीदी जैसी ही फ्राक चाहिए। नहीं बेटा! तुम्हारे लिए उससे भी अच्छी फ्राक आएगी। दीदी की ...
जो मुझे भा गई
लघुकथा

जो मुझे भा गई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दो वर्ष पश्चात घर जा रहा हूँ। टेक्सी में बैठे-बैठे पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। सौंदर्य प्रतियोगिता पर नज़र पड़ते ही मुझे बहन के ब्याह का नज़ारा याद आ गया। बहन की वह परी सी सहेली मानो आकाश से उतर कर आई हो। सितारों जड़ी झक श्वेत साड़ी व लम्बे लहराते बालों में बिखरी मोगरे की लड़िया। नाम मात्र के गहने कह रहे थे... मोहताज नहीं जेवर का जिसे खूबी ख़ुदा ने दी। उसका पूरी जिम्मेदारी से माँ का हाथ बटाना मैं आज तक नहीं भुला नहीं पाया। इसी बीच माँ पापा ने कई रिश्ते सुझाए। बहन से उस सुंदरी के बारे में कई बार पूछा। विदेश में रह रही बहन उसका पता नहीं लगा पाई। चाय की तलब लगने पर टेक्सी रुकवाई। रेस्तरां में लगा कि मोगरे की खुशबू फैल रही है। सामने टेबल पर श्वेत पौशाक में पीठ किए बैठी एक युवती बैठी है। हाँ, बस लम्बी चोटी ही लहराती दिखी। ज्यों ही वह पलटी म...
विश्वास
लघुकथा

विश्वास

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** रूपल का कॉलेज में ग्रेजुएशन का अंतिम साल था। परीक्षा शुरू होने के पहले सभी सहेलियों ने अंतिम पार्टी रखी थी। ग्रेजुएशन के बाद क्या करना है, फिर कब और कहां मुलाकात होगी, यही वार्तालाप चल रही थी। सीमा बीच में बोल पड़ी...अरे रूपल जी ...रंजन जीजू आई मीन रंजन बाबू का क्या होगा.. हमें भी तो बताओ। रंजन कॉलेज का सबसे होनहार व अनुशासित लड़का था। वह रूपल की सादगी व सुन्दरता पर मरता था। जब पहली बार रूपल कॉलेज ज्वॉइन किया था तो रूपल के पिता महेश बाबू ने रूपल से बस इतना ही कहा था की, बेटा तुम्हारे साथ मेरी लाज भी कॉलेज जा रही है। मेरी लाज अब तुम्हारे हाथों में हैं, यह हमेशा महसूस करना। मुझे पूरा विश्वास है मेरी बेटी मेरा शीश नहीं झुकने देगी। रूपल ने रंजन के बारे में केवल अपनी मां को बताया था। महेश बाबू घर के आंगन में चा...
नजीर
लघुकथा

नजीर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद्रकांत पांडे, जिसे बबलू पांडे........"भैया जी" कहकर पुकारता था। टीवी के हर चैनल पर सब उसके खूंखार अपराधी हत्यारे होने का सबूत दे रहे थे। जबकि....बार-बार उसकी आंखों के सामने चंद्रकांत पांडे का चेहरा सामने आ रहा था जब उसने आखिरी बार उसे देखा था। उसके चेहरे और आंखों में इतनी मायूसियत थी। वह खूंखार अपराधी जिसे मीडिया आंतकवादी भगोड़े का नाम दे रही थी जिस पर दो लाख का इनाम पुलिस रख चुकी थी। उसकी जिंदगी का सच यह था जिसे हर पार्टी उसे अपने साथ मिलना चाहती थी क्योंकि वह उनके लिए वोट इकट्ठी करने का माध्यम है और हर पार्टी एक से एक लालच देकर उसे अपनी तरफ करना चाहती थी उसको अपने हाथ की कठपुतली बनाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी नें कैसे मोहरा बनाकर आज एक खूंखार अपराधी घोषित कर दिया था। आज वह हार गया था। क्योंकि हर तरफ से ...
बटवारा
लघुकथा

बटवारा

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** घर भर में कोहराम मचा था, तारा जी सीढ़ी से गिर गई थी, सिर पर भारी चोट लगी थी, डाक्टर ने बताया कि शायद दिमाग की कोई नस फट गई थी, जो उन्हें यूं अचानक दुनिया को छोड़ अलविदा कहना पड़ा। यूं तो तारा जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी थी, तीन बेटे थे, सभी की शादी हो चुकी थी और सभी अपने अपने परिवार में मस्त थे। लेकिन तारा जी का यूं अचानक जाना उनके पति राधेश्याम जी पर पहाड़ टूटने जैसा था, क्योंकि राधेश्याम जी थोड़े से अस्वस्थ रहते थे, और उन्हें हर पल तारा जी के साथ की जरूरत महसूस होती थी, असल में यही वह उम्र होती है, जिसमें हमें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और जीवन साथी की जैसे आदत सी हो जाती है, इसी समय पर आकर हम जीवनसाथी का सही मायनों में अर्थ समझ पाते हैं, और फिर पूरी ज़िंदगी तो जिम्मेदारियों में निकलती ही है, ...
योग्यता पर भरोसा
लघुकथा

योग्यता पर भरोसा

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************  रोज की तरह दूर से आती मधुर संगीत की कर्णप्रिय ध्वनि आज माधवी को बिल्कुल नहीं भा रही थी ... पता नहीं लोग २४ घंटे क्यों संगीत सुनते रहते हैं?... उसके बेटे का चयन जो नहीं हुआ था-संगीत प्रतियोगिता में... योग्यता की कोई कद्र ही नहीं है... उसे चुन लिया जिसे संगीत की कोई समझ नहीं... बड़े बाप का बेटा जो ठहरा... एक कड़वाहट-सी उसके भीतर घुलकर उसके शरीर को कसैला बना रही थी... तभी महरी की आवाज ने उसे चौंका दिया- "बीबी जी हमार बचवा का एडमिसन बड़े सकूल में हो गया है ! वो मोहल्ला के सकूल वालों ने तो भरतीच नी किया था...पर मेरे को उसकी योग्यता पे भरोसा था..."कहकर अपने ‌काम में लग गई, लेकिन अनजाने ही माधवी को योग्यता पर भरोसा रखने का संदेश दे गई। अब माधवी का मन हल्का हो गया था। उसे अब वह संगीत की ध्वनि ‌पुनः मधुर लगने ‌‌लगी ...
आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में
लघुकथा

आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** अपनी पचासवीं लघु कथा पुस्तक के विमोचन की ख़ुशी में मैं प्रकृति की गोद में अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजस्थान से कश्मीर गई। सुबह की ठंडी-ठंडी हवाएँ मन को सहला रही थी व तन को रह-रह कर सुकून दे रही थी। हाथ में चाय का कप था। हल्की-हल्की बारिश की बूँदे भी थी जो बरस कर भी दिखाई नहीं दे रही थी। इतना मनोरम दृश्य किसी सूटकेस में भर करके मन सहेजकर रख लेना चाहता था। पलकें अकिंचन भाव से अनिमेष हो चुकी थी मानों पर्वत-शृंखलाएँ चिरनिद्रा में सो रही है बिलकुल शांत। इसी बीच एक कुत्ते के बच्चे की आवाज़ें आई। उसने मेरी मंत्रमुग्ध तंद्रा को भंग कर दिया था इसलिए मैं रौद्र भाव से उसकी ओर गई। मेरे आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब मैंने उसे एक छोटे से बालक के हाथ में देखा। दोनों में मासूमियत कूट-कूट कर भरी थी उतनी ही उनके चेहरे पर दरिद्रता भ...
अधिकार
लघुकथा

अधिकार

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता का रो-रो कर बुरा हाल था।पति को खो देने की पीड़ा ने उसे तोड़ कर रख दिया था। अभी शादी को कुछ ही साल हुए थे। दो छोटे-छोटे फूल से बच्चे थे। जो रोज पापा का इंतजार कर रहे थे। मम्मी, पापा कब आएंगे? उनके मासूम सवालों के जवाब उसके पास नहीं थे। देखते ही देखते साल गुजर गया था। पर उसकी आँखों के आँसू सूख नहीं रहे थे। वह बुरी तरह से टूट गई थी। उसे अपने बच्चों का भविष्य अन्धकार में लग रहा था। कहने को पति का भरा-पूरा परिवार था। जेठ, देवर सभी थे। पर भाई के मरने के बाद, उसे कोई भी सहारा देने को तैयार नहीं था। उन्हें उसकी चिंता नहीं थी। पूरा परिवार ज़ायदाद के पीछे था। उन्होंने उसका हिस्सा भी हड़प लिया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर, उसे घर से बाहर कर दिया था। वह अपनी माँ के घर पर ही निराशा में दिन तोड़ रही थी। माँ भी अपनी बढ़ती उम्र से परेशान ...
पिता
लघुकथा

पिता

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** एक पुरुष के दो बच्चे थे। वह पुरुष रोजाना अपने बच्चों के उठने से पहले काम पर चला जाता और शाम को बच्चों के सो जाने के बाद घर आता। बच्चों की मां उन बच्चों के पूरा दिन काम करती। उनके लिए खाना बनाती, स्कूल भेजती, उनके वस्त्र बदलवाती और उनको पढ़ाई करवा कर उन्हे सुला देती। बच्चों ने कभी अपने पिता को नहीं देखा था। बच्चों का बचपन बीता। बच्चे बढे होने लगे। एक दिन बच्चों ने अपनी मां से कहा कि मां हम दोनो ने आपको अपने साथ काम करते, समय बिताते देखा है। पिता जी को कभी भी नही देखा। ऐसे में तो उनके बिना भी हम बड़े हो सकते हैं। उनका हमारे जीवन में क्या कोई काम है? मां को उस दिन आश्चर्य हुआ और एहसास हुआ कि बच्चे तो अनजान है पिता के उनके जीवन में योगदान के। मां ने बच्चों को अपने पास बिठाया और समझाने लगी। कि तुम्हारे पिता अपना पूरा समय तुम्हारा जीव...
डोर पतंग की
लघुकथा

डोर पतंग की

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** चेतन गुस्से से भरा, नाश्ते को बिना मुंह से लगाए, लंच बॉक्स छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। वीणा के दिल पर जैसे कोई हथौड़ा मार गया हो। ऐसा वाकया अक्सर ही होता था, जब चेतन उसके करे काम में कोई-न-कोई नुस्क निकाल, अपना दंभ साकार कर लेता था। वीणा को चेतन के जीवन में आए मात्र छह महीने हुए थे, पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब वह किसी न किसी बात पर न चिल्लाया हो। वीणा से अब उसका उग्र स्वभाव बर्दाश्त के बाहर हो गया था। अभी तक वह यही सोचकर चुप रही कि शायद चेतन का व्यवहार बदल जाएगा, पर ऐसा कुछ न होने पर उसका धैर्य जवाब देने लगा। अंततः वीणा ने तय कर लिया कि अपनी मां को हर दिन की एक-एक बात बताएगी। वह चेतन को छोड़ने तक का मन बना चुकी थी। मकर संक्रान्ति का पावन पर्व था। वीणा ने देखा कि चेतन हाथ में कई रंगीन पतंगें और चरखी लेकर सीधे छत पर चला ग...
रिटायरमेंट
लघुकथा

रिटायरमेंट

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रिटायरमेंट के बाद खुद से सम्मुख होने का मौका मिला। जिंदगी बेफिक्री से उनके कंधे पर सर रख कर थकान मिटा रही थी... रिटायरमेंट के बाद मंडवारिया जी एक दम फ्री हो गए थे। बच्चों की शादियां कर दी थीं। बस एक सपना था कि रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों से पत्नी को विदेश की सैर करवानी है। सो टिकट ऑनलाइन बुक करवाया। स्विट्ज़रलैंड में होटल बुक करवाया। बच्चों को पहले ही खबर कर दी थी। बच्चे खुश थे कि पापा अब तो अपनी जिंदगी मम्मी के साथ खुल कर जिएं। आखिर वो दिन भी आ गया। पहली बार हवाई जहाज में सफर करने का मौका मिला। नौकरी के दौरान जिम्मेदारी के बोझ ने कभी जिंदगी को खुल के जीने का मौका ही नहीं दिया। कभी होम लोन, कभी बच्चों की पढ़ाई तो कभी बच्चों की शादी की चिंता। पत्नी की दबी हुई आकांक्षाए मन में घुटती रहीं। कभी कोई शिकायत नहीं की। बस पति,...
हिंदी की वैश्विक चमक
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हिंदी की वैश्विक चमक

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक भाषा के रूप में हिंदी हमारी पहचान है हमारे, जीवन मूल्यों संस्कृति संस्कार, का संप्रेषक परिचायक है हिंदी विश्व की सहज सरल वैज्ञानिक, भाषा है हिंदी अधिक बोले जाने वाली ज्ञान प्राचीन सभ्यता आधुनिक प्रगति के बीच सेतु है। वंदेमातरम की शान है। हिंदी, देश का मान है, हिंदी संविधान का गौरव हिंदी है भारत की आत्म-चेतना हिंदी है। राष्ट्रीय भाषा भारत की पहचान हिंदी, आदर्षों की मिसाल है हमारी हिंदी, सूर और मीरा की तान भी हिंदी है। हमारे वक्ताओं की शक्ति है। फूलों के खुशबुओं-सी महक है हमारी हिंदी और संपूर्ण देश में छाई है।हिंदी हमारे साहित्य पुराणों की आत्मा में बसी है। हिंदी देव नागरिक लिपि भी हिंदी है। मां की बोली से प्रथम संवेदना में हिंदी ही है परंन्तु अंग्रेजी पूरे देश में छाई है, हिंदी देश की राष्ट भाषा होने के पश्चात हर जगह अग्रेजी का वर...
विश्व हिंदी दिवस
आलेख

विश्व हिंदी दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  हिंदी की लोकप्रियता को लेकर समूचे विश्व में १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी प्रेमियों के लिए इस दिवस का विशेष महत्व है। २०१८ की जानकारी के अनुसार विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा हिंदी लगभग ७० करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। जबकि १.१२ अरब के साथ अग्रेंजी शीर्ष पर है। चीनी भाषा १.१० अरब, स्पेनिश भाषा ६१.२९ करोड़, अरबी भाषा ४२.२ करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने के साथ क्रमशः दूसरे, चौथे और पाँचवें। स्थान पर है। २०१७ में प्रकाशित पुस्तक 'एथनोलाग' के अनुसार दुनिया भर में २८ ऐसी भाषाएँ है, जिन्हें ५ करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं। यह पुस्तक दुनिया में मौजूद भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित हुई थी। भारत को बहुभाषाओं का धनी देश मानने के बावजूद भारत की मूल भाषा हिंदी ही मानी जाती है। ...