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भूलन द मेज़ : फिल्म समीक्षा
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भूलन द मेज़ : फिल्म समीक्षा

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** मुझे इस छत्तीसगढ़ी फिल्म का, बहुत दिनों से इंतजार था, २७ मई को रिलीज़ होनें के बाद, मुझे इस फिल्म को देखने की उत्सुकता और भी बढ़ गई, हां और मेरें परीक्षा होतें ही मैंने भिलाई के मुक्ता सिनेमा में देख ही लिया। भूलन द मेज़, पहली ऐसी छत्तीसगढ़ी फिल्म है जो राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नामित हुई और गत वर्ष उपराष्ट्रपति, श्री एम वेंकैया नायडू जी के कर कमलों द्वारा भूलन द मेज़ को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा भी गया। छत्तीसगढ़ नई फिल्म नीति के तहत इस फिल्म को एक करोड़ रूपये का अनुदान राशि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिया जाएगा। यह फिल्म संजीव बख्शी के उपन्यास 'भूलन कांदा' पर आधारित है, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी वरिष्ठ निबंधकार के सानिध्य और दादी की दुलार ने उन्हें लेखक बनने प्रेरित किया, मैं तो कहूंगा की उन्हें साहित्य प्रेम विरासत में मिली थी।...
कबीर सिंह
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कबीर सिंह

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" फिल्म की वास्तविक कहानी:-शुरुआत से फिल्म एक सीन के साथ शुरू होती है जहां एक आदमी और औरत बिस्तर पर सो रहे हैं और पीछे से समुद्र की तेज़ लहरों की आवाज़ आ रही है। इन्हीं लहरों की आवाज़ के साथ हम कबीर सिंह की तूफानी ज़िंदगी में एंट्री लेते हैं। वो एक मेडिकल सर्जन है और फुटबॉल चैंपियन है। लेकिन अंदर ही अंदर कई समस्याओं से घुट रहा है जिनमें बेतहाशा गुस्सा एक है। कबीर सिंह की नज़रें जैसे ही प्रीति (कियारा आडवाणी) पर पड़ती हैं, वो बागी बन जाता है , ऐसा बागी जिसके पास अब एक मक़सद भी है। एक शरमाई सी सहमी सी लड़की, प्रीति भी कबीर को अपने दिल की बात बताती है लेकिन उनका रिश्ता ज़्यादा दिन तक नहीं चलता है। इसके बाद कबीर खुद को तबाही के रास्ते पर ले चलता है। शराब, नशा और सेक्स, हर चीज़ उसे उसके दुख से दूर ले जाने की कोशिश...