साहित्य और समाज
आज की अतिथि सम्पादक
माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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साहित्य की समाज में कल और आज की भूमिका देखी जाये तो बहुत ज्यादा फर्क आया है। एक पंक्ति ऐसी होती थी की पूरे देश में राष्ट्र प्रेम की लहर दौड़ जाती थी और आज एक पंक्ति ऐसी स्थिति पैदा करती है कि शर्मिंदगी से नजरें झुक जाती है।
ऐ मेरे वतन के लोगों।
और
मुन्नी बदनाम हुई।
कहां से कहां आ गये हम। क्या यही सब युवाओं के बीच, बच्चों के बीच परोसा जाना चाहिए।
साहित्य समाज को बहुत कुछ देता है!
साहित्य अपने मनोभावो को व्यक्त करने का, मनुष्य के लिये सबसे अच्छा साधन है!
कुछ संदेश कुछ शिक्षा -
साहित्य से देश की सभ्यता देश की संस्कृति की पहचान होती है हमारा देश जग मे सभ्यता और संस्कृति के लिये विख्यात है !
विगत कुछ समय से बहुत ही निम्न स्तर के लेखन ने समाज को, देश को अलग ही जगह ला खड़ा किया है !
साहि...