Friday, April 11राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

“आत्मकथा” एक जीव की
कविता

“आत्मकथा” एक जीव की

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बोलना चाहता हूँ, समझाना चाहता हूं, रोकना चाहता हूँ, मत करो क्रूर आघात और इतनी घृणा महसूस करता हूँ दर्द, घुटन, और अकेलेपन की तड़प तिल-तिल दम तोड़ते, नित प्रतिदिन होता तिरस्कार, पढ़ पाए जो कोई तो इन आँखों में, बिना शब्दों के दर्द बयां होते हैं अहंकार, द्वेष, घृणा से परे एक सुन्दर दुनिया है मेरी मत रौंदो मेरे अस्तित्व को, बहुत कुछ अनकहे ही सीखा जाता हूँ इन्सानियत को जाति, रूप, रंग में मत करो बंटवारा मेरा प्यार से गले लगा कर तो देखो, जान दे दूंगा तुम्हारे प्यार की कीमत चुका कर सृष्टि की अनमोल रचना हैं हम, कैसे हो सकते हैं नफ़रत के काबिल, नहीं समझ पाता "रोटी" की कीमत, नहीं जानता दुनियादारी और व्यापार ईश्वर ने इंसान बनाया, जीवों से प्रकृति को संवारा अद्भुत चित्रकारी कर ईन जीवों पर, अप्रतिम ...
माँ हो गई विलीन
कविता

माँ हो गई विलीन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब तक जीवित थी मोबाइल पर अपनों के कैसे हो से हाल चाल पूछा करती उसे अकेलापन महसूस नही होता अपनों से बात करके नजदीकी का अहसास कर लेती वो पढ़ी लिखी थी इसलिए लॉकडाउन की परिभाषा समझती थी। सबकी सुखद कामना आशीर्वाद के संग हमेशा करती माँ आरती में रखे कपूर की तरह मायने रखती जिसके बिना आरती अधूरी आरती की पंक्तियां अधूरी माँ का हँसता चेहरा सदा मन मस्तिष्क पर रहते हुए हर पल याद आता माँ दरवाजे पर खड़ी होकर अपनों की राह निहारती अब चौखट सूनी सी जिस पर ताला लगा ये बताता माँ के पास ही चाभी थी जिससे वो मुझ जैसे ताले पर विश्वास रखती की घर में सुरक्षित है। संक्रमण काल मे जीवन को निगलने वाला वायरस माँ को निगल गया सारी शक्तियां, आस्था, विश्वास, रिश्तें अशक्त हो गए इन पर विश्वास था वो भी बेजान हो गए यादों का पिटारा ...
सावन
कविता

सावन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** सावन की झड़ी संग नाचे मेरा मन। बदरा भी ढोल बजाए। आराधना के तीज त्यौहार लेकर, मेरे महादेव चौमासे पर आये। देख नजारे नयना से मौसम का, मन भी कितना भाये।। सावन, खुद महादेव को जल चढ़ाने आये। बदरा भी ढोल बजाये।। सावन की घटा संग नाचे मयूर मन। झरते, झरने हरियाली भी मन को रिझाये।। बरसे सावन की घटायें। नाचे मन मयूर संग। सावन की हरियाली तीज पर, पेड़ों की डाली भी, झूम कर झुक-झुक जायें। हरियाली की चुनरी से श्रृंगार कर, धरा को घुंघट उढायें। बरसे सावन की घटाएं।। जिसे देख नाचे मेरा मन। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
भारत की विरासत
कविता

भारत की विरासत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** धरती पर प्रथम आगमन, हिमालय पर शिवधाम है यहीं पुण्य सलिला गंगा, गंगोत्री इसका नाम है। ब्रह्मा और मनु का भारत, ध्रुव प्रह्लाद की संतान हैं आदिकाल से इस धरती का, मानव इतिहास सनातन है। कश्मीर से कन्याकुमारी, है भारत की प्राचीन धरोहर यह भारत की पुरा संपदा, रचे प्रकृति ने दृश्य मनोहर। हेमकुंड और मानसरोवर, सब भारत के प्राण हैं पर्वत श्रंखला की घनी घाटियाँ, पंजाब हमारी शान है। पाँच नदी का संगम है, लहराता उत्ताल तिरंगा अपने भारत का गौरव, है भारत का भाल तिरंगा। अमृतसर में अमृत छलके, वाणी से गुरु नानक की पूरब में जगनाथ विराजे, गुजरात धरा सोमनाथ की। वास्तुकला, प्रस्तर प्रतिमा, महलों का राजघराना है वीरों की शक्ति का दर्पण, अपना राजपूताना है। कृष्णातट श्री शैल के दर्शन, शिवपुराण महाभारत में वर्णित प्रकट मल्ल...
तू मेरा जहां…!
कविता

तू मेरा जहां…!

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां..., एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां...। तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। "एक तू मेरी जां..., बस तू धड़कन..., सिर्फ तू है जहां...।" तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। तू मेरा जहां...।। दुआं मैं करूं, जुदां मेरी जां, सिर्फ तू है, जहां से, जी ना सकूं, बिन तेरे जहां, लग जा गले, प्यार से। जो तू नही, तो मैं नही, जो तू नही, तो मैं नही, आज तू कहां..., कल तू वहां..., दिल-ए-जवां..., तू मेरा जहां...। "एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां...।" तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। तू मेरा जहां...।। सुना ऐ जहां, तू जानले, मेरे हमसफर, तू देर ना ...
हेल के मारे बेल हो गए
कविता

हेल के मारे बेल हो गए

नंदन पंडित इटियाथोक, गोण्डा (उत्तर प्रदेश) ******************** मँहगाई का ओढ़ लबादा तेल हो गए सखी, साजना हेल के मारे बेल हो गए झाँक रही हैं दालें ऊँची दूकानों से छोड़े कीमत-बाण सब्जियाँ उद्यानों से बहुत नाज़ मुफ़लिस करते थे नून-तेल पर नमक-तेल के आज स्वप्न से मेल हो गए खटकाते-खटकाते दरकारों की साँकल अरमानों ने दोनों हाथ कर लिए घायल कर लेती थी पद-रज भ्रमण ज्यों-त्यों करके अली, पहुँच से दूर बहुत अब रेल हो गए जेब, जरूरत में रहती है पकड़ा-पकड़ी एक जाल से छूटे दूजी बुनती मकड़ी सेठों का पट्टा गर्दन में कसता जाता बढ़ते-बढ़ते दुर्दिन फिंगर नेल हो गए परिचय :-  नंदन पंडित निवासी : इटियाथोक, गोण्डा (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
सावन सोमवार
भजन

सावन सोमवार

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सावन सोमवार आया। संग शिव भोला धरा पर आया। सकल भूवासी मन हर्ष छाया। सारी धरा भक्ति भाव भाया। सभी भक्त प्रति सोमवार। भांग, धतूरा, आंकड़ा, बेलपत्र, शमीपत्र अरू पुष्प, चंदन, अक्षत चढावै भोले को प्रसन्न। कर मनोवांछित फल पावै। सबहि भारत भूवासी उमंग। संग स्व उर भक्ति भाव भरि। ऐसे भक्ति करे मानो सबहि। भक्त सुधबुध खो शिव भक्ति। समा शिवमय हो गए, ऐसो लगे। ज्यों परमपिता परमात्मा अरू। प्रति आत्मा मिलन हो एक ज्योतिरबिन्दु प्रकाशपुंज आभा समस्त भू लोक पर आलौकिक प्रकाश किरणें व्याप्त करी। जगमग कर दिव्य प्रकाशमय। धरा करि शिव भोले। आशीर्वाद देने धरा पर। अवतरित हुए। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचि...
वतन के रिश्ते
कविता

वतन के रिश्ते

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बरसात की तेज बौछारें भी दिखती चकाचक चांदी जैसी धूप भी चमके। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। छोटे बड़े रास्ते राजमार्ग पगडंडी तक कुंदरा कुटिया घर कोठी महलों तक छात्र किसान व्यापारी पंडित विद्वान सब के हृदय ज्ञान भंडार भरा महान सदा बिना भूख परोसे आतुर जमके। पेट से भूखा व्यक्ति कभी न खटके। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। अपने सर्वश्रेष्ठ दिखाने में मिले घात कोच शिक्षक प्रशिक्षु हृदय की बात हर क्षेत्र विभाग सुना ज्ञान मत बांट अति होशियारी दिखाते ही पड़े डांट कुछ प्रतिभा दिखने से पहले खिसके होनी अनहोनी के फेरों में पढ़ पढ़के। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। टेलीपैथी गुण कहीं पनपता जाता जितना भी कर जाओ सब...
दर्द का गीत
गीत

दर्द का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रोदन करती आज दिशाएं, मौसम पर पहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। बढ़ता जाता दर्द नित्य ही, संतापों का मेला कहने को है भीड़,हक़ीक़त, में हर एक अकेला रौनक तो अब शेष रही ना, बादल भी ठहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। मायूसी है, बढ़ी हताशा, शुष्क हुआ हर मुखड़ा जिसका भी खींचा नक़ाब, वह क्रोधित होकर उखड़ा ग़म, पीड़ा सँग व्यथा-वेदना के ध्वज नित फहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं ।। नए तंत्र ने हमको लूटा, कौन सुने फरियादें रोज़ाना हो रही खोखली, ईमां की बुनियादें कौन सुनेगा,किसे सुनाएं, यहां सभी बहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे है वो घाव बहुत गहरे हैं ।। बदल रहीं नित परिभाषाएं, सबका नव चिंतन है हर इक की है पृथक मान्यता, पोषित हु...
हिन्दू जागो और हिंदुत्व जगाओ
कविता

हिन्दू जागो और हिंदुत्व जगाओ

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हिन्दू जागो और हिंदुत्व जगाओ सोया हुआ स्वाभिमान जगाओ। कब तक दुष्टता का जहर पिओगे खोया हुआ अब सम्मान जगाओ। जनजन जागो हिन्दू भाई जागो सनातन धर्म का झंडा फहराओ। कब तक धर्म का अपमान सहोगे भरतवंश का अब यह देश बचाओ। राष्ट्र-धर्म का अब कर्तव्य जगाओ न्याय-धर्म का अब हुँकार लगाओ। कब तक अनीति का भेंट चढ़ोगे पावन मिट्टी का उपकार चुकाओ। शंख-नाद का अब हुंकार लगाओ। शिव-तांडव का अब नर्तन दिखाओ कब तक तुम बहरे और गूंगे रहोगे दिव्य दृष्टि और दिव्य रूप दिखाओ। इंसानियत की अब अस्मिता बचाओ जाति धर्म का अब दीवार गिराओ। कब तक नफरतों की बलि चढ़ोगे दुष्ट-दानवों की अब बलि चढ़ाओ। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
गुरु वंदना
स्तुति

गुरु वंदना

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्रीगुरु चरण वंदन करूँ करबद्ध करी गुण गाउँ देऊ बुद्धि बल सकल ज्ञान तव सेवक मैं हूँ नादान मुझ पर कृपा करो गुरु कुमार्ग पर कभी ना जाऊँ न्याय सत्य पालन करूँ पितुमात का मान बढ़ाऊं मुझको कोई नहीं चाहत सुख औरों का मेरी दौलत अश्रु पराए मैं पोछूँ सर्वदा दीनों पर लुटाऊं मैं खुशियां विश्वास आधार हो सबका संसार हो सुन्दर स्वर्ग सा कोई ना हो बीमार लाचार स्वप्न सारे हो जाए साकार परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
माँ चरणों में प्रभु का वास
गीत, भजन

माँ चरणों में प्रभु का वास

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज:- मैं पल दो पल का..... ) तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा पर प्रभु दर्शन नहीं मिल पाये है। किये थे पूर्व जन्म में अच्छे कर्म। इसलिए मनुष्य जन्म तुम पाये हो।। तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा..। तुझसे पहले कितने भक्तगण यहाँ आकर देखो चले गये। पर वो भी शायद प्रभु के दर्शन बिना ही यहाँ से लौट गये। वो भी मनुष्य पर्याय को पाये है तू भी मनुष्य गति को पाये हो। पर लगता तुम्हारी श्रध्दा में कुछ तो कमी जरूर रही होगी।। तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा...। एक दिन एक भविष्य वाणी को सुनकर तू ह्रदय घात को सह गया। तेरी आत्मा उन शब्दो को सुनकर अंदर ही अंदर से हिल गई। तू यहाँ वहाँ क्यों भटक रहा हे अज्ञानी मानव तू सुन। तेरी ही घर में प्रभु है और तू यहाँ वहाँ उन्हें खोज रहा।। तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा...।। कहते है माँ के च...
गुरूब्रम्हपद को  नमन
कविता, स्तुति

गुरूब्रम्हपद को नमन

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** अमन चैन शांति का जब पाठ पढ़ाते हैं, हमारी संस्कृति सभ्यता संस्कारों परम्पराओं का भारतीयता लिए मातृभाषा शब्दों में उभर कर ब्रह्मा विष्णु महेश का सार्थक स्वरूप हर भारतीयों में नज़र आती हैं। गुरू की महिमा गुरू ही जाने, गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूं पाय बलिहारी गुरु आपकी जो गोविंद दियो बताए, जाने प्रतिभा लक्ष्य साधकर समर्पित एकलव्य ने परिभाषा किया गुरूचरणों में, अमृततुल्य निस्वार्थ अपनी प्रतिभा से गुरूपद निखार दिया जनमानस में भारतीयता लिए नज़र आतीं हैं। प्रलोभन निस्वार्थ भाव से जो भारतीयता में मिलती हैं समर्पण भाव सृष्टिकर्ता ईश्वर के प्रति एकरूपता विश्व में कहीं नहीं मिलती तभी तो भारतीयता गुरूचरणों में पथप्रदर्शक बनकर के आ जाती हैं। सदीयों से जिन्दगी सुख दुःख का मेला है महापुरुषों ने हम...
पितृ दिवस प्रतियोगिता
कविता

पितृ दिवस प्रतियोगिता

डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** पितृ दिवस पर, बेटा पिता के पास आया. साथ में नया शर्ट पैंट लाया. अपने हाथों से, उनका मुह धुलाया. पिता मन ही मन हर्षाया. आज सूरज, पश्चिम में कैसे निकल आया. पिता अबाक् था, उसी घर में रहने बाला बेटा. बरसों बाद उनके पास था. पिता ने उसके चेहरे पर, प्रश्न वाचक दृष्टि दौड़ाई. आज पितृ दिवस है, उसने यह बात बताई. बोला जल्दी से कपड़े पहनो, मुझे देर हो रही है. तुम्हारे साथ सेल्फी लेनी है. आफिस में प्रतियोगिता चल रही है, तुम्हे फोटो में खूब मुस्कुराना है. दूसरों के पिता से, ज्यादा खुश हो यह दिखाना है. प्रतियोगिता में जिसका पिता, ज्यादा खुश नजर आयेगा. पितृ दिवस की प्रतियोगिता में, वही पहला पुरस्कार पायेगा. परिचय :-  डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" निवासी : शाहजहाँपुर (उत्तर प्र...
जीवन के नित संघर्षों में
कविता

जीवन के नित संघर्षों में

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ सपने थे जो टूट गए, कुछ अपने थे जो रूठ गए। जीवन के नित संघर्षों में, हम कांच सरीखा टूट गए। जब बिखरे तो ऐसे बिखरे, फिर एक कभी भी हो न सके। माला के मोती मंहगे थे, हम पक्का धागा हो न सके। जब वक्त हुआ की हार बनूं, मैं भी उनका श्रृंगार बनूं। कच्चे धागे को तोड़ दिया, वो सारे मोती लूट गए। कालचक्र के घड़ी की सुइयां, कुछ ऐसे ही चलती है। गिरगिट तो बदनाम है केवल, दुनियां रंग बदलती है। जिसको चाहा उसको खोया, हंसना चाहा हरदम रोया। रिश्ते नाते बने भी ऐसे, चंद क्षणों में टूट गए। हम रात जगे और दिन जागे, जितना जागे उतना भागे। हम समय का पीछा कर न सके, हम पीछे वो हरदम आगे। जो चाहा था वो नहीं मिला, जो वक्त ने चाहा वही मिला। पाने खोने की विरहन में, आंखों से आंसू छूट गए। कुछ जीत मिली, कुछ हार मिली, पर...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का तानाबाना, चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मैला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना, मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत, जीने की जिजीविषा, और संघर्षों का झमेला। सीख कसौटी मीठी घुड़की, आंगन में मिलती, जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार, बहन भाई का युद्ध और दादा दादी की माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन, संबंधों में नैतिकता, परिवार सद् काव्य शाला। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र :...
जीना सीखो
कविता

जीना सीखो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अपने लिए न सही दूसरों के लिए जीना सीखो। गम से भरे चेहरों को ज़रा खिलखिलाना सीखो। मोहब्बत में तो हर कोई मुस्कुराता है दिल टूट जाने पर भी ज़रा जीना सीखो। अपनो ने दगा दे दिया तो क्या हुआ ? गैरों को अपना बनाकर गले लगाना सीखो। मिट्टी हुए जीवन के संजोये हुए ख्वाब तो क्या हुआ ? उस मिट्टी को ही अपने सीने से लगाकर अपना बनाना सीखो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
अकल्पित असीमित
भजन, स्तुति

अकल्पित असीमित

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** प्रभु नाम महिमा अकल्पित असीमित, इसे तो जगत को बताना पड़ेगा। कवि इसको लिपिबद्ध करते रहेंगे, और गायक को फिर इसको गाना पड़ेगा। प्रभु नाम ... प्रभु नाम पावन है गंगा के जल सा, तू लग नाम जप में,और डुबकी लगा ले। तू जग कार्यो के संग सुमिरन में लग जा, और जग के नियंता की करुणा को पा ले। अगर जग की माया में चिपका रहा तो, तुझे भोग योनि में आना पड़ेगा। प्रभु नाम... तुझे श्रेष्ठतम योनि ईश्वर ने भेजा, तो तू श्रेष्ठ कर्मो से प्रभु को रिझा ले। प्रभु नाम सुमिरन है मुक्ति का साधन, तू रम राम सुमिरन में, मुक्ति को पा ले। अगर प्रभु कृपा को गँवायेगा तू तो, नहीं ज्ञात किस योनि जाना पड़ेगा। प्रभु नाम... अनैतिक तरीके से धन यदि कमाया, तो धन, गाड़ी, बंगला तो तेरा बनेगा। मगर तेरे बच्चे पले गलत धन से, तो कोई नहीं योग्य कर्मठ बनेगा। अभी...
सावन मनभावन
कविता

सावन मनभावन

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सावन तेरे संग-संग धरा पे निखरे अनेकों रंग हरितिमा के कालीन पर मेघ शिशु अठखेलियां करते तितलियों संग उड़ते छुपते,करते कभी अट्टहास वर्षा बूंदों से नहाए पल्लव सूरज रश्मियों से पा गरमाहट मंद सुगंध हवा के संग हाथ हिला करते अभिवादन राग मल्हार गाते भंवरे कोकिल गान कानों में पसरे घनघोर शोर लिए मोर हरषे बहुरंगी बादल उमड़े क्षण भर में रुप बदले.. भयानक रूप बना सबको डराए गड़गड़ ध्वनि से सब थर्राए अगले ही क्षण वर्षा की झड़ी लगाए देख कृषक मन ही मन हर्षाए सावन की है महिमा निराली हर जीव जंतु की चाल हो जाए मतवाली नेह संचार हृदय में होता वियोग में प्रेमी युगल छुप कर रोता हर कोई सावन की बाट है जोहता सबसे तेरा नाता है सबको तू भाता है मन में मधु उपजाता है इसीलिये तू मधुमास कहलाता है। सतरंगी इंद्रधनुष का हार...
बादल
कविता

बादल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उमड़ घुमड़ घटागहराती उपवन के तरु लहराए मेरी बगिया के आंगन में तुम आते आतेसकुचाऐ। बादलों की बौछार देती निमंत्रण बार-बार हरित पणृ और पुष्पा भी करते प्रतिक्षा बार बार।। मादक सुगंध माटी ने बिखराई झरना, झिले झूम झूम कर करते तेरी अगुवाई।। जैन कहते प्रकृति भरमाई।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
इकु किसानु कै पीरा
आंचलिक बोली, कविता

इकु किसानु कै पीरा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बदरा रूठि गईल हे धनियाँ कैसे के होई रोपनियाँ ना। बेहनु खेतवा माहीं झुराइलि कैसे के होई रोपनियाँ ना।। जेठु महीना जसु तपा असाढ़ी यैसिनि मा के हौ गोड़ु काढ़ी बरसतु भिनुसरहिनु ते अगिया कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... तालि-तलैइया मा दर्रौ फाटयि झुलसी घांसि दूबिउ नाहीं जागतु लागतु सावनु झूरौ झूरौ कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... सावनु-भादौउं जौ सूखा-सूखा चिरई-चुनुंगा सबै रहिहैं भूखा कहिजा बदरा काहे रूठल कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... लखि-लखि बदरा कोयलरि कूकैयि उपरा तकि-तकि जियरा हूकैयि अँसुवा ते भीजल मोरु बदनियाँ कैसी के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... उमड़ि-घुमड़ि काहे ललचावतु आतुरि हुयि सबै रहिया जोहारतु झूमिके बरसौउ भलु सेवनियाँ जमके होई रोपनियाँ ना।...
गुरु-महिमा
दोहा

गुरु-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु सूरज है, चाँद है, गुरु तो है संवेग। अपने शिष्यों को सदा, देता जो शुभ नेग।। ज्ञान, मान, नव शान दे, दिखलाए जो राह। शिष्यों का निर्माण कर, पाता है गुरु वाह।। गुरु देता है शिष्य को, सत्य संग आलोक। बने शिष्य उल्लासमय, तजकर सारा शोक।। गुरु करके नित त्याग को, बनता सदा महान। गुरु से सदा समाज को, मिलती चोखी शान।। गुरु के प्रखर प्रताप से, रोशन होता देश। गुरु-वंदन नित ही करो, ले साधक का वेश।। गुुरु तो नित उजियार है, मारे जो अँधियार। गुरुकृपा से दिव्य हो, शिष्यों का संसार।। गुरु जीवन का सार है, गुरु जीवन का गीत। गुरु से तो हर शिष्य को, मिलती है नित जीत।। गुरु आशा, विश्वास है, गुरु है नव उत्साह। हर युग में गुरु को मिली, वाह-वाह अरु वाह।। गुरु ईश्वर का रूप है, गुरु विस्तृत आकाश। जो बिन गुरु रहता...
अमूल्य निधि
कविता

अमूल्य निधि

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है, स्वाभिमान का रूप संजोए, सनातन संस्कृति जीवन की विधि है। पेड़ पौधे,नदी और पर्वत, पशु पक्षी पूज्यनीय यहां हैं, ऋतुओं को सम्मान मिला है भारतीय संस्कृति अखंड यहां है l मात पिता, ज्येष्ठ का आदर, गुरु ईश्वर तुल्य यहां है, नारी देवी, अतिथि देवो भव, संस्कार की पहचान यहां है l अभिमान करें अपनी धरती पर, इंद्रधनुष से पर्व हमारे, उदारता, सदाचार, समर्पण, रग रग में शिष्टाचार यहां है l जो विरासत मिली है हमको, वो हमारी अमूल्य निधि है l परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प...
जब अरमान फलेगा तो
ग़ज़ल

जब अरमान फलेगा तो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** जब अरमान फलेगा तो। मन के साथ चलेगा तो। आँखें जी भर सो लेगी, सूरज, शाम ढलेगा तो। पत्थर भी कतरा-कतरा, आख़िरकार गलेगा तो। रिश्ता गिरकर संभलेगा, गर व्यवहार पलेगा तो। होगा सब पर हक सच का झूठा हाथ मलेगा तो। मिलकर, मिल न पायेगा, मौका दूर टलेगा तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
हे कैलाशपति
कविता, भजन, स्तुति

हे कैलाशपति

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** हे कैलाशपति ! हे गिरिजापति ! हम भक्त हैं तेरे, भोले भाले हे जगतपति! हे गौरीपति ! तुम सगरे जग से हो निराले हे देवाधिदेव ! महेश हो तुम तेरी महिमा को पार न पावे त्रिलोक के स्वामी हो तुम लंगड़ा, गिरि पर चढ जावे तेरी भक्ति की शक्ति से स्वामी असंभव सब संभव हो जावे हे योगी महा ! हे अन्तर्यामी ! तुम से प्रलय में, लय हो जावे हे त्रिशूल धारी ! डमरू निनाद कर भक्ति की डगर, आज बता दे हे विषपायी! गंगा को बहा कर पावनता की लहर, अब जगा दे। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्त...