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पद्य

हे सुंदर निशि
कविता

हे सुंदर निशि

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** ना धोवो मुख अपना, शीतल ज्योत्सना से। तमस की काया लिये, लगती तुम सुंदर निशि।...... थके हुए तन मन लिये, खोते जो सपनो में। गोद तुम्हारी पाकर, पाते स्फूर्ति तनो में। करते विदा रवि तुम्हे जब आते प्राची दिशि। तमस की काया लिये, लगती तुम सुंदर निशि।..... ले मलिनता पुष्पो से, देती तुम उन्हें शांति। तारो ने भी तुमसे, पाइ हैं टिम टिम कांति। सकुचा क्यों जाती हो, छाते जब नभ में शशि। तमस की काया लिए, लगती तुम सुंदर निशि।...... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ ...
धरती पर हरयाली होगी
कविता

धरती पर हरयाली होगी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तस्वीरों में वृक्ष बने हैं, दीवारों के ऊपर। काटकाट वीरान किया है, बचे नहीं हैं भू पर। अंधाधुंध कटाई जारी, कोइ नहीं रखवाला। सुंदर वन संपदा मिटाते, दुख में, ऊपर वाला। प्राणवायु जो हमको देते, जीवन के संसाधन। देते शीतल छाँव सभी को, सब फल फूल सुपावन। केवल अपने हित की खातिर, वृक्ष काटते मानव। मानवता को रखें ताक पर, बन जाते हैं दानव। अरे अभागो अब मत काटो, मिलकर इन्हें बचा लो। वृक्ष मित्र बन कर जीवन को, अपना स्वयं संभालो। वरना वह दिन दूर नहीं है, पल पल पछताओगे। प्राण दायिनी जीवन वायु, बिल्कुल ना पाओगे। बिना वृक्ष के जीवन जीना, संभव कभी ना होगा। सुखमय जीवन अगर चाहते, इन्हें बचाना होगा। आने वाली पीढ़ी को हम, कैसे समझाएंगे। नहीं रहेंगे पेड़ धरा पर, फोटो दिखलाएंगे। जब जागे तब हुआ सवेरा,...
गूँज रहीं बूँदों की सरगम
गीत

गूँज रहीं बूँदों की सरगम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में। चलो सखी झूला झूलें हम, शीतल सी बौछारों में।। छोड़ घोंसलें भीगे-भीगे, पंछी आए आँगन में। नहीं मिला दाना चुगने को, अब के देखो सावन में।। चल झरनों से बात करें हम, झम-झम करें फुहारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। धरती मिलने चली गगन से, नयनों में काजल डाले। आलिंगन को व्याकुल सरिता, प्रीति समंदर-सी पाले।। सुधि-बुधि खो कलिकाएँ बैठी, भ्रमरों की गुंजारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। मादक अधर मिलन को व्याकुल, मोहे पुरवाई प्यारी। सुलगे देह प्रीत में साजन, काम-बाण से मैं हारी।। यौवन प्रेम मगन हो नाचे, चाहत की झंकारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। परिचय :- मीना भट्ट "स...
यात्रा
कविता

यात्रा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। पीढ़ी-दर-पीढियों ने जिसे प्रताड़ित किया हो। अस्तित्व को हमेशा ही चिन्हित किया हो। असितत्व की ऐसी लड़ाई सुगम नहीं होती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। हर दिन जीने की कोशिश में आये दिन मरती। सबके लिए करते हुए भी सुनतीं हैं.... कुछ नहीं वो करती। अपने अधिकार भूला सपनों को, खुद को भूल जीती। बोझ की एक गांठ बन अपमानित हो स्त्री होने से डरती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। परम्पराओं , रीति -रिवाजों रूढिय़ों की भेंट चढ़तीं। सृजन की अधिष्ठात्री खामोशी से सिसकियां भरती। जन्मों की बेडियों को जो तोडऩे की कोशिश करती। अपमानित हो अपनों से जीवन जहर हैं पीती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। अपने स्वार्थवश समाज ने ढ़ोग रच लिया है। देकर "देवी" की कारा। अपना जीवन सुगम कर लिया है। बैठी रह...
बेटी
कविता

बेटी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** प्रेम पूजा रिश्तों का बीज होती है बेटी बड़े ही नाजों से घरों में पलती है बेटी बाबुल की हर बात को मानती है बेटी घर में माँ के संग हाथ बटाती है बेटी छोटें भाइयों को डांटती समझाती है बेटी माता-पिता का दायित्व निभाती है बेटी संजा, रंगोली, आरती को सजाती है बेटी घर में हर्ष, उत्साह, सुकून दे जाती है बेटी ससुराल जाती तो बहुत याद आती है बेटी पिया के घर रिश्तों में उर्जा भर जाती है बेटी इंसानी जिन्दगी का मूलमंत्र होती है बेटी दुनिया होती है अधूरी जब न होती है बेटी परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प...
एक राष्ट्र एक पथ
कविता

एक राष्ट्र एक पथ

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** संवेदना एक पथ, विवेचना रखो दूर स्वदेश को संभालने, कैसी है विडंबना। सांत्वना मुखर होगी, संतुलन के भार से, जरूरी है भाई साब, शीघ्र ही संवारना। सहेजकर था रखा, सराहना भाव खोया गुजरेगा वर्तमान, व्यर्थ फिर सिसकना। सरसता सरकना, सनकना पीर बना, देश मांगे सदभाव, सोचिए संभावना। सहना ही सिखा गया, संवाद फिजूल हुआ डरना स्वभाव नहीं, फिर भी डराइए। खतरों को भांपकर, कछुआ छिपाए अंग अनहोनी यादकर, हाशिये पे जाइए। तो भूलोगे पहचान, अरमान भी जलेगा दायरे में रहने का, तरीका जताइए। समय की साझेदारी, समंदर को आइना मान स्वाभिमान संग, भारत को जानिए। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्र...
वास्तविकता
कविता

वास्तविकता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** इंसानियत हैवानियत से गलबहियां डाले घूम रहा है गली गली, इंसाफ मुजरा करने को एलान करते करते चली, नैतिकता उल्टियां कर रहे हैं, करुणा और दया खास लोगों के घर सुबह शाम पानी भर रहे हैं, सहयोग नोटों के सहारे स्वसहायता खुल के कर रहे हैं, आस और विश्वास कोने में बैठकर दिन रात सिहर रहे हैं, खेलों में कुर्सियां भाग ले रहे हैं, पदकों के बजाय खुशी खुशी दाग ले रहे हैं, खुशियां पैरों तले कुचला जा रहा, बदमाशियां अश्लील गाने गा रहा, जिससे सबको आस है, कसम से वो खुद निराश है, भीड़ को फैसला करने का हो गया हक़, जिन्हें आत्मविश्वास से डट कर बोलना था वो बोलने से क्यों रहा हिचक, नोट छाप छाप कर विश्वगुरु बनना है, व्यवस्था को पता है किसके आगे कब कब अकड़ना और तनना है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ घोषण...
मेरा नाज़ुक सा दिल है
कविता

मेरा नाज़ुक सा दिल है

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, चोट इतनी ना दे मुझे, कि टुकड़ों में बिखर जाऊं, ना बना मुझको अनजान पहेली, कि फिर मैं कभी सुलझ ना पाऊं, धीरे-धीरे से दर्द दे मुझको, एक साथ सहने की हिम्मत तो नहीं, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, वक्त क्या था जब साथ थे तुम मेरे, अब घेरे रहते हैं मुझको ये अंधेरे, कुछ रहम खा कुछ तरस रख मुझ पर, प्यार ही तो किया था कोई दगा तो नहीं, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं, गम देते हो क्यों मुझको रूलाकर, क्या मिलता है मेरा दिल दुखाकर, क्यों दिया था भरोसा साथ रहने का मुझको, अब मैं कहां जाऊं ये बता तो सही, मेरा नाज़ुक सा दिल है, कोई पत्थर तो नहीं परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
बच्चों में भगवान बसते हैं
कविता

बच्चों में भगवान बसते हैं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** हर छल कपट दांव पेंच से दूर रहते अबोध बच्चे खिलखिलाकर हंसते हैं किसी के ऊपर ताने तंज़ नहीं कस्ते हैं क्योंकि बच्चों में भगवान बसते हैं बच्चे न कोई शिकायत गिले-शिकवे करते हैं वह बेटी या बेटा हूं अनजान रहते हैं ना किसी की बुराई ना गुणगान करते हैं क्योंकि बच्चों में भगवान बसते हैं नारी को मां बनने का सम्मान देते हैं पिता के गौरव और अभिमान होते हैं मत मारो कोख में वह एक नन्हीं सी जान है बच्चों मैं समाए होते भगवान होते हैं घर की चौखट चहकती है बच्चे जब हंसते हैं महकता है घर जिसमें बच्चे बसते हैं संस्कारवान बच्चे धन सम्मान सेवा के रस्ते हैं बच्चों में भगवान बसते हैं गम खुशी नहीं समझते हमेशा हंसते हैं दिल जुबां में कुछ नहीं बस हंसते हैं स्कूल जाते पीठ पर भारी बस्ते हैं तकलीफ़ नहीं बताते बस हंस्तें है...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

बबीता कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन में कभी खत्म नहीं होता है इम्तिहान एक के बाद एक आता रहता है इम्तिहान वाकई जिन्दगी भरी हुई है इम्तिहानों से। यूजी के बाद हो पीजी सेट हो या हो नेट हमें देना पड़ता है इम्तिहान वकई जिंदगी भरी है इम्तिहानों से। जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए हमें पार करनी पड़ता है हर एक इम्तिहान सच के लिए तो कभी सच सामने लाने के लिए हमें गुजरना पड़ता है इम्तिहानों से वाकई जिंदगी भरी हुई है इम्तिहानों से। परिचय :- बबीता कुमारी निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
चाँद को देखा मन बहला
ग़ज़ल

चाँद को देखा मन बहला

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** चाँद को देखा मन बहला चाँदनी में तेरा चहरा खिला कितनी अकेली रातों में खोयें न मेरी मंजिल तेरे बिना, चाँद को देखा... न कोई राहें भाती नहीं है न कोई मौसम कटती नहीं है साथ हमेशा छाया हो तेरी तुझ से बनी है तकदीर मेरी, चाँद को देखा... ग़म से भरी है राहें हमारी बिखरी हुई है ख्वाबें हमारी छावों में तेरी सजाते रहूँ मैं जन्नत्‍त मेरी तब होगी पूरी, चाँद को देखा... बगियन के फूल शरमा रहे हैं जब तुम को देखें शरमा रही हैं नूर तुम्हारी नज़रों में बोये रंगें हज़ारे दुनिया में मेरी, चाँद को देखा... परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान निवासी : करेला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
रिश्ते कारोबारों से…
कविता

रिश्ते कारोबारों से…

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** हुनर नहीं, नहीं चरित्र नहीं। नहीं भावना विचारों से। अब रिश्ते होते देखें हैं, मैंने, कारोबारों से । कितना है? क्या ओहदा है ? सबका लेखा-जोखा है। छानबीन कर बात करेंगे, घर-घर में ये सौदा है । लगते हैं दामों पर दाम, जैसे, वस्तु खरीदें बजारों से, अब रिश्ते होते देखें हैं, मैंने, कारोबारों से । इल्म नहीं, गठबंधन क्या है ? कीकर क्या चन्दन क्या है ? अब तो है बस, शानो-शौकत, आखिर, रिश्तों का मंथन क्या ? किसको वक्त है? समझौते का, कौन लड रहा मझधारों से? अब रिश्ते होते देखें हैं, मैंने, कारोबारों से ।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
दोस्त
कविता

दोस्त

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। कुछ दोस्त उसके। फरेबी चेहरों को वो जान ना पाया। मतलबी इरादों को भी भाप ना पाया। जिसने किसी ने भी चेहरा दिखाया। सच दोस्तों का उसे कभी ना नज़र आया। कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। बार-बार धोखों को नजरअंदाज करता रहा। सबको अपने जैसा समझ माफ करता रहा। सोचता था .... रब सब देखता है। फिर क्यों अच्छे लोगों की जिंदगी में बुरों को भेजता है। जिंदगी के सुख-चैन से इस तरह से आराम से खेलता है। कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। काश!!!!! वक्त रहते समझ जाता। झूठे चेहरों पे विश...
काव्य व्यथा
कविता

काव्य व्यथा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कविता की पंक्ति एक, कवि कोई लिखता है रख जेब में पेंट की, कवि भूल जाता है। धोबी घाट गया पेंट, कविता पंक्ति पाता है वो कविता की लाइन, आगे लिख जाता है। कवि अपने पेंट को, हाथ डालता जेब में भूली पर्ची पंक्ति अब, आगे लिखा पाता है। अज्ञात कवि जिक्र को, मित्र को सुनाए कवि बढ़ी पंक्ति लिखा कौन, याद नहीं आता है। कविता तो बढ़े आगे, लेखक ही अज्ञात है रचना नई पंक्ति की, फिक्र करे कवि सदा परेशान तो मित्र भी, पंक्ति रचनाकार को जाने कब याद आए, शीघ्र बताता नहीं। पहली दूसरी पंक्ति तो, कवि पहचान लाए एक शब्द भाव पूरा, बता ऐसे जाती है। कवि नाम प्यास देखी, मित्र इंतजार करे कविता चिंता फिक्र तो, कवि को सताती है। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साह...
रहने दो
कविता

रहने दो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ ख्वाब कुछ यादें मुझ में रहने दो न मिल सको तो न मिलो खुद को मुझ में ही रहने दो। बीता हुआ वक्त और बीती हुई बातें कभी लौट कर नहीं आती, मगर फिर भी उन यादों को मुझ में सिमटे रहने दो। जो भूल चुका है उसे भूलाने दो फिर भी तुम अतीत में बिखरी हुई भूली हुई यादों को मुझ ही में रहने दो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
प्रभु कार्यों का निमित बना जो
भजन

प्रभु कार्यों का निमित बना जो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** प्रभु कार्यों का निमित बना जो, प्रभु उसकी रक्षा करता है। जग दायित्व पूर्ण करवा कर, उनको जग विरक्त करता है, प्रभु कार्यों का .... है परिवार दिया ईश्वर ने, उसके सब कर्तव्य निभाओ। अच्छा बुरा करो प्रभु अर्पित, और कृतज्ञता भाव बढ़ाओ। पूर्ण समर्पित हो प्रभु को तो, माँ की तरह ध्यान धरता है। प्रभु कार्यों का .... ईश्वर की प्रेरणा से ही कुछ, भक्ती गीत सृजित होते है। जो माया में चिपके है वे, भाग्य सुलाकर खुद सोते है। जो प्रभु भक्ति ओर बढगये, उनकी भक्ति पुष्ट करता है। प्रभु कार्यों का .... ६० साल के आगे आयु, प्रभु निज सुमिरन हेतु दे रहा। कुछ तुझमे देखा है सात्विक, इसीलिए है कृपा कर रहा। जो प्रभु सुमिरन में रम जाता है, उसके साथ सदा रहता है। प्रभु कार्यों का .... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : ज...
अंधेरा अच्छा नहीं साहब
कविता

अंधेरा अच्छा नहीं साहब

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** सदियों से अंधेरे में रहे हैं, पल पल तकलीफें सहे हैं, कभी किसी से कुछ नहीं कहे हैं, हमने कभी किसी का रक्त नहीं बहाया पर पग-पग हमारे रक्त बहे हैं, हम कोई रात्रिचर जंतु जानवर तो नहीं कि अंधेरा हमें पसंद हो, हमने कभी नहीं चाहा कि किसी के साथ हमारा द्वंद्व हो, अपने हिसाब से रहने की, अपने हिसाब से चलने की, इतराने की, मचलने की, हमारी भी इच्छा रही है, पर तब हम पर जबरन अंधेरा थोपा गया था, काले विधानों के जरिए हमारे पीठ में छुरा घोंपा गया था, अंग्रेजों से आजादी आप लोग पा गये, लेकिन हम तो वहीं के वहीं रह गये, आपका छप्पन भोग जारी है अपने हिस्से अभी भी अंधियारी है, इसके लिए आपकी वहीं पुरातन सोच जिम्मेदार है, आपके सोच बता रहे हैं कि अभी भी आप मानसिक बीमार हैं, चार दिनों तक इस थोपे गये अंधेरे में रहकर देखिये, तब आप ...
मेरे दादा (पिताजी)
कविता

मेरे दादा (पिताजी)

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दादा मेरे थे, मेरी जान से प्यारे, दुनिया से निराले, सपनों में कभी आते नहीं दूर एक गाँव में उनका निवास था खलिहान खेत रोज़ जाना उन्हें भाता मजदूरों से भी प्यार जताना उन्हें आता भूखा न किसी को कभी रखते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में सूरज से पहले उठना अच्छा उन्हें लगता रंभाती हुई गायों को दुहते थे सुबह शाम सहलाते हुए लाड़ जताते बहुत ही थे छोनों को खूब दूध पिलाते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में थाली में गरम दाल व ज्वार की रोटी हर चीज़ बड़े शौक से खाते सभी जगह ऊपर से उन्हें नमक नहीं चाहिए कभी नखरे नहीं खाने में दिखाते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में दुख दर्द दास्ताँ लिए सब लोग आते थे काँधे पे हाथ रखकर समझाते सभी को कचहरी भी रोज़ लगा करके बैठते कुछ चाय नाश्ता भी कराते मेरे दादा ऐसे थे मे...
द्वार-द्वार दीप जला लो
कविता

द्वार-द्वार दीप जला लो

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** द्वार-द्वार में दीप जला लो। आगोश में आई खुशहाली।। घर-आंगन को महका लो। मिल के मना लो दीवाली।। हर सीने में प्रेम का साज लिए। हंसी खुशी का मन में राग लिए।। हर गली की दुकानें हैं सजने लगे। जगमगाते नए रंग में दिखने लगे।। टिमटिमाते बिजलियाँ फूल मालाएं, शोभा बढ़ गई है बाजारों की। आसमां से उतर आई हो जैसे, बारात चाँद-सितारों की।। चौमास कड़ी मेहनत खेतों में। आज खुशी से झूम रहे किसान।। बारहमास पेट की भूख मिटाने। धन-धान्य से भर रहे खलिहान।। अलबेलों की आतिशबाजियां, आकाश में गुंजायमान है। सर्वधर्म समभाव समाया, देखो मेरा भारत महान है।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
जय मध्यप्रदेश
कविता

जय मध्यप्रदेश

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की। चंदन जैसी सौंधी पावन, माटी मध्यप्रदेश की।। विक्रम नगरी यहाँ भोज की, बहे सुधा रस धार है। दुर्गावती अहिल्या की भी, फैली कीर्ति अपार है।। आल्हा ऊदल अमर कथाओं, और विजय संदेश की क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की बुन्देलों की इस धरती पर, गौरव है अभिमान है। रूपमती का मांडू सुंदर, अमर प्रेम पहिचान है।। खजुराहो, साँची स्तूप से, ख्याति बढ़े निज देश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। विंध्य सतपुड़ा पर्वत माला, जबलपुर धुँआधार है। तालों का भोपाल शहर है, कृषि उन्नत व्यापार है।। पशुपति नाथ सदा शिव शम्भू,नगरी है सोमेश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। पुरातत्व की अमिट धरोहर, तानसेन की तान है। करता है जयगान सकल जग, अमिट निराली ...
सफलता की ज़िद
कविता

सफलता की ज़िद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ज़िद पर आओ,तभी विजय है, नित उजियार वरो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियार करो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है हार मिलेगी, तभी जीत की राहें मिल पाएँगी और सफलता की म...
निकलेगा सूरज
कविता

निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये रात ही तो है कब तक रहेगी निकलेगा सूरज फिर तो ढलेगी ।। उम्मीदों से भरा है आसमान, आशाओं पर टिकी है धरती । ऐ दुनिया तू छल ले, कब तक छलेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। एक सोच पर ही तो नहीं है पहरा, ना ही कोई, रोक-टोक है। सोच ऊंची रही है, ऊंची रहेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। आते हैं दु:ख-दर्द मुझको परखने, और जाते है बनाकर मजबूत मुझे । देख लो ध्यान से ये आंखें ना बही है ना बहेंगी । ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। दीवार होंसलों की हिला नहीं पाए कोई, पर्वत सी अटल और वज्र सी प्रबल हो । जीगर आग जब जली हो, किस तरह बुझेगी। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढ...
अमर रहेंगे सरदार पटेल
कविता

अमर रहेंगे सरदार पटेल

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** धन्य हुई धरा गर्वित हुआ नभ, ३१ अक्टूबर पटेल अवतरित हुए जब। माँ भारती के लाल ने किया वो कमाल, आजादी का आंदोलन, बढ़कर लिया सम्हाल। खेड़ा सत्याग्रह या असहयोग आंदोलन, सरदार उपाधि पायी, बारदोली अगुवा बन। फौलादों से मजबूत इरादे, लौहपुरूष कहाये, बापू जी का साथ दिया, देश आजाद कराये। स्वतंत्र भारत में गृहमंत्री का पद पाया, सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। बांधा देश को एकता की डोर से, अमर रहेंगे पटेल आवाज आती है चहुँओर से। सबसे ऊँची मूरत आपकी देश का मान बढ़ाती है, हर भारतवासी का आपके प्रति सम्मान दर्शाती है। जन्मदिन आपका, एकता दिवस के रूप में मनाएँ, हम कृतज्ञ देशवासी आपको श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
एक श्वान की आत्मकथा “जीवित हूँ जीना चाहता हूँ”
कविता

एक श्वान की आत्मकथा “जीवित हूँ जीना चाहता हूँ”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** है अधिकार तुम पर मेरा भी मुझे दो स्वत्व धड़कन बन जीवित रहना चाहता हूँ तुम्हारे दिल में थोड़ा सा पनाह चाहता हूँ मन और आत्मा में तुम्हारे बसना चाहता हूँ मैं जीवित रहना चाहता हूँ!!!! सुख दुःख महसूस करता हूँ अकेलापन तुम्हारा बांटना चाहता हूँ अपने साथ रहने की अनुमति दो मुझे तुम्हारी घुटन, नाराजगी, शिकायतें मिटाना चाहता हूँ मैं जीवन जीना चाहता हूँ !! मैं भी पथिक हूँ उसी राह का संग संग तुम्हारे चलना चाहता हूँ वेदनाओं से सामना हो जब तुम्हारा, शीतल चाँदनी बनकर प्यार लुटाना चाहता हूँ अश्रु पूरित नेत्रों से मैं भी छुटकारा चाहता हूँ जीवन हूँ जीना चाहता हूँ!! बंधन से जकड़ा स्वप्न सा जीता हूं मैं ठिठुरन, अकड़न, सड़न, भूख से तरबतर रहता हूँ मैं घर में तुम्हारे थोड़ी सी पनाह चाहता हूँ स्वयं के...
वचनों को भी जानो भाई
कविता

वचनों को भी जानो भाई

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* जब भाषा में संंख्या पाते। तब वचनों की महिमा गाते।। जयजयजय वचन महाराजा। कम ज्यादा का बजता बाजा।। एक बहु अरू द्वि कहलाते। पर हिन्दी में दो ही आते।। दो प्रकार के होते वचना, हिन्दी में इनकी है रचना। एकवचन अरु बहु कहाते। भाषा में संख्या बतलाते।। एक वचन तो एक बताता। जैसे लड़का रोटी खाता।। बहूवचन तो बहुत बताते। जैसे लडकें रोटी खाते।। खेल खेलते कविता गाते नचते गाते खुशी मनाते।। शाला में दीदी समझाया। संख्या बोध तुरत कराया।। बच्चे ज्यादा दीदी एका। वचनों को हम गाकर सीखा।। हंसा बहिना ने बतलाया। हॅंसी-हॅंसी में हमें सिखाया।। परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है।...