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पद्य

भ्रम टूट गया
कविता

भ्रम टूट गया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हुआ दोस्त, जो भ्रम टूट गया साथ होने का तेरा वादा, जो अब छूट गया ।। तुझे बादशाही मुबारक तेरे शहर की, मुझे मेरे गांव का मुसाफिर ही रहने दे।। अच्छा हुआ चलन नहीं रहा अब किसी के विश्वास का खुद के खुदा को आखिर किसी की कोई तलाश कहा।। दोस्ती के लिए तेरा अक्सर, मेरे घर आना, जाना, हम प्याला वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ किताबी बातों की तरह छूट गया।। आज ठोकर खाई है तब जाकर कहीं आज मतलबी दुनिया की ये, दोस्ती समझ आई ।। हमने तो कोशिश की थी रंग जमाने की यारी में, तेरे विचारों की भी कहीं बहुत गहरी खाई थी शायद।। दोस्ती के लिए, कहां रहा गया वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही, मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र ल...
कालांतर
कविता

कालांतर

माधवी तारे लंदन ******************** बड़ी हुई तब एक दिन पूछा अपनी माँ से मैंने, कितनी पीड़ा सह ली तूने देकर हमको छह बहनें? धीरे से तब बोली माता पुरुषों की तब चलती ज्यादा, थी औरत तो केवल अबला कौन सुनता उनकी भला? कालचक्र का घूमता पहिया बदलता गया सारी दुनिया, कुल दीपक की बढ़ती चाह ने नारी मन का छल किया। वंश की वृद्धि, मुक्ति की इच्छा सर पर चढ़ बलवान हुई , तब जबरन भ्रूण हत्या समाज मन पर छाती गई। बुझाकर ज्योति की पवित्र बाती दीपक की लौ जलने लगी, मातृत्व प्राप्ति की सारी खुशियाँ आंसुओं में बहने लगी। अमौलिक कन्या रत्न की कमी जन अनुपात बिगाड़ गई, मानवीयता पाशवी वृत्ति के आगे शर्मसार होती ही गई। नफरत भरी आँधी से सूज्ञ नरों की नींद खुली, भ्रूण हत्या को जाकर तब से अक्षम्य गुनाह श्रेणी मिली। परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश...
बाजारवाद के चंगुल में
कविता

बाजारवाद के चंगुल में

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** ऑक्टोपस की कँटीली भुजाओं सरिस जकड़ रहा है सबको व्यापक बाजारवाद जन साधारण की औकात एक वस्तु जैसी है कुछ विशेष जन वस्तु समुच्चय ज्यों हैं हम स्वेच्छा से बिक भी नहीं सकते हम स्वेच्छा से खरीद भी नहीं सकते पूँजीपति रूपी नियंता चला रहा है पूरा बाजार जाने-अनजाने हम सौ-सौ बार बिक रहे हैं किसी और की मर्जी से हम हँसते या रोते दिख रहे हैं आँसू बेचकर भी कई मालामाल हैं हँसी बेचकर भी कई बेमिसाल हैं सब कुछ बिकाऊ है सबके खरीददार हैं इस अंतहीन भयानक पतन के दौर में किसी के भी शुद्ध या बुद्ध होने की आशा न करें सत्य यह है कि- हमारी इच्छाएँ भी नहीं हैं हमारी बल्कि, कठपुतली बनी हुई हैं बाजारवाद के नरभक्षी चंगुल में। परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवा...
मन खुशी से झूम उठा
छंद

मन खुशी से झूम उठा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** लावड़ी छंद आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा। शीत गुलाबी लगी कॅंपाने, अम्बर में है तेज घटा।। बिन बरसात बरसता बादल, चली हवा है पुरवाई। मौसम के इस परिवर्तन से, हुई सभी को कठिनाई।। चिंतित हैं हलधर बेचारे, अन्न अभी है पड़ा कटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा द्वार खड़ा ऋतुराज अभी है, आने को दस्तक देता। पुष्प बांण से वेध हृदय का, सारे संकट हर लेता।। करें प्रतीक्षा गुलशन सारे, उसमें सब का ध्यान बॅंटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा नाच रहा मन मोर हृदय में, कैसी यह शुभ बेला है। खेत और खलिहान भरे हैं, ज्यों खुशियों का मेला है।। लाभ किसी को हुआ अधिक है, और किसी का तनिक घटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा अद्भुत है ईश्वर की लीला, देख चकित सब होते ...
प्रेम विवाह
कविता

प्रेम विवाह

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** आदर्श और संस्कारों की धज्जियां तुम नहीं उड़ाओ बेटी, नहीं तो अपने जिस्म के ३५ टुकड़े, शौक से तुम करवाओ बेटी। तुम क्यों भरोसा करती हो, इन छँलियों और मक्कारो पर, वेश बदलकर आता है रावण सीता को छलने को। मां-बाप की आत्मा को, जब भी तुम दुखाओगी। औलाद कभी सफल नहीं होगी जग में प्रेम विवाहो से। आधुनिकता की चमक में खो गया है इंसान, मर्यादा और आचरण खूंटी पर दीया टांग। फिल्मों की है बेशर्मी से बिगड़ा है इंसान, हीरो-हीरोइन अच्छे लगे क्या आचरण और व्यवहार। माना फैसला आपका, पर चूक न जाए सावधान? जीवन जब धिक्कारता यह गुंडे और बदमाश, नारी तू नारायणी तू है हीरे की खान, जौहरी ही पहचानता, हीरे का हे दाम संस्कार और संस्कृति नई पीढ़ी के लिए अनमोल, इसको तुम मिटाओगे तो आगे की पीढ़ी, क्या जानेगी मोल। परिचय ...
दुहाई
कविता

दुहाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह रचना भारत-पाक युद्ध के समय सा ७ जुलाई १९६७ को रचनाकार द्वारा लिखी गई है। गीदड़ों की शामत आई जानबूझकर ज्वाला भड़काई पिघल चुका हिमालय अब तो बूंद-बूंद दे रही दुहाई। जागो हिंद के वासी जागो पाक की आई कुर्बानी गंगा-यमुना की धारा में युवान आज मचल उठा है सतलुज का सीना अंतरमन अब डोल उठा है। उसे लगा गंगा काजल आएगा बनकर मेरा सेवक गंगा-जमुना के वीरों ने किया खान को बेबस। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर ...
तेरे चरणों की धूल पाकर मां
कविता

तेरे चरणों की धूल पाकर मां

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** मां तूने मुझे जन्म नहीं दिया संसार में लाकर जो अमृतपान कराया में धन्य हो गया तेरे चरणों की धूल पाकर मां, इस खूबसूरत दुनिया में अमर हो गया। परिस्थितियां चाहे जैसी भी रही मां तूने मुझे जन्म दिया धूप छांव से बचाकर एक नैक इंसान बनाया, मर्यादा में जीना सिखलाया। संसारिक जीवनशैली में परिवर्तन लाकर ईश्वर में आस्था का पाठ पढ़ाकर जीवन दान मां दिया तेरे चरणों की धूल पाकर मैं अमर हो गया। परमसत्य है मां, ईश्वर का स्वरूप है मां, तेरी छवि सबसे है निराली मां, मां सरस्वती शारदा का रूप, अन्नपूर्णा का रूप, जगत जननी तू कहलाई मां, क्या नहीं कहलाई मां निस्वार्थ भाव सार्थक प्रयास, जिज्ञासाओं का गगन प्रतिक व सकारात्मक सोच प्रेरणा देती रही हैं मां तेरे तेरे चरणों की धूल पाकर मैं अमर हो गया। ...
टूटी सब आशाऐं अब तो
गीत

टूटी सब आशाऐं अब तो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं मंजिल की क्या करें शिकायत, राहें भी अनजान रही हैं।। दुर्गम पथ हैं जीवन के सब, धूल-धूसरित भी राह़े हैं। ग्रहण लगा है सूरज को अब, छलती अपनो की बाहें हैं।। सासें नित्य हलाहल पीत़ी, घातें भी तूफान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं। आहत गीत छंद हैं आहत, हृदय-कुंज में पतझड़ छाया। संकट में माँ का आँचल है, कैसी कलियुग की है माया।। अमावस्य की कालरात्रि है, राहें भी सुनसान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं। पश्चिम की इस आंधी में तो नगर गाँव सारे खोये हैं। रक्षक खुद भक्षक बनते हैं, बीज बबूल नित्य बोये हैं।। मर्यादा को भूल गए सब, चालें ही संधान रही हैं। टूटी सब आशाऐं अब तो, कुंठाएँ बलवान रही हैं।। परिचय :-...
आई शिशिर ऋतु
कविता

आई शिशिर ऋतु

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब शरद ने ली विदाई मस्त शिशिर ऋतु आई पर्णो ने भी ली अंगड़ाई शाखाएँ देखो हैं इतराई ठिठुरन अंग अंग कँपाएँ ऊनी मफ़लर, शाल भाए गुनगुनी धूप में हैं सुस्ताए या रजाई में दुबक जाएँ दिन छोटे, लंबी होती रात ठंडी से कटकटाते हैं दाँत आ जाती है मकरसंक्रांत तिल गुड़ खाने की सौगात गरम चाय व गाजर हलवा केसर दूध, कॉफी व कहवा गोभी, मटर, टमाटर जलवा गुड़ की राब, पीता कलवा दो मासों की होती बहार शिशिर है जाने को तैयार बुलाती रंग बिरंगी फ़ुहार बसंत बहना! खुले हैं द्वार परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
नव सृजन
भजन, स्तुति

नव सृजन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मानवता की सेवा में लग, तू भी अपना भाग्य जगा ले। ईश्वर है करुणा का सागर, तू भी उसकी करुणा पा ले। मानवता की सेवा... ईश्वर ने करुणा कर मानव तन, मुक्ति के हेतु दिया है। पर माया के दल-दल में, फंसकर हमने दुरपयोग किया है। जो जग माया में उलझे हैं, उनको तू प्रभु धाम दिखा दे मानवता की... जिनको प्रभुका धाम भा गया, प्रभु भक्ति में रम जाएंगे। सुमिरन होने लगा नाम का, तो माया से बच जाएंगे। तीर्थाटन का स्वाद चखाने, को जीवन उद्देश्य बना ले। मानवता की... जिसको प्रभु सम्पन्न बनाता, वो धन का उपयोग करेगा, नहीं बढ़े पग सन्मार्ग पर, तो धन का दुलयोग करेगा तू सन्मार्ग दिखाकर उसको, उसके धन को धन्य बना ले। मानवता की... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि म...
मैं स्त्री हूं
कविता

मैं स्त्री हूं

नंदिता माजी शर्मा (तितली) मुंबई, (महाराष्ट्र) ******************** मैं स्त्री हूं, प्रायः घर की देवी भी कहलाती हूं, कहीं प्रताड़ित, तो कहीं पूजी जाती हूं, कहीं मेरा मान सम्मान किया जाता है, कहीं मुझे कोख में ही मार दिया जाता है, कभी बड़े चाव से सोलह शृंगार करते है, कभी भरी सभा में वस्त्र भी हरते है, कभी वंश वृद्धि के लिए सर माथे बिठाते हैं, कभी रहन सहन पर बेबात ही उंगली उठाते है, देख चोंचले समाज के, आ जाता है रोष मुझे, पूछती हूं दर्पण से, क्यों लगा यह दोष मुझे, क्यों मर्यादा की बेड़ी ने, स्त्रियों को ही जकड़ा है, मान की जंजीरों ने पुरुषों को कब पकड़ा है, जिद्दी, अड़ियल, ढीठ, चाहे जो कह लो मुझे, देवी की संज्ञा न दो, बस स्त्री ही रहने दो मुझे। परिचय :- नंदिता माजी शर्मा (तितली) सम्प्रति : प्रोपराइटर- कर्मा लाजिस्टिक्स निवासी : मुंब...
मेला बचपन वाला
कविता

मेला बचपन वाला

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** बचपन वाला मेला याद आता है पैदल चल कर जाना नदियों को देखना दिल को भाता था... झूला-झूलना तब खास था बचपन की यादो में मेला सबको याद है... गक्कड़ भरता का स्वाद माँ के हाथों का लाजवाब गुड़ की जलेबी... टिक्की, भल्ले का स्वाद गन्ना लाना छील-छील कर दिनभर खाना अब बस यादों में याद है... धूल का मेला में फवार था लेकिन मस्तियां का अंबार था माँ भी कपड़े, कॉकरी जनरल स्टोर्स में व्यस्त... हम भी दोस्तो के साथ मौत का कुआँ जादू में हाथी को गायब करना आर्केस्टा, कव्वाली, नोटंकी का शोर ऐसे ना जाने कितने प्रोग्राम थे... बचपन मे हमारे मेला ही त्यौहार था खिलौने की वैरायटी और नई-नई गाड़ी आंखों को सुकून देते थे... जहाँ लगता था मेला अब वहाँ बिल्डिंगे है तनी हर जगह के मेला की एक अपनी पहचान है... लेकिन बच्चे अ...
गुरु बाबा के गुण गाबो
आंचलिक बोली, कविता

गुरु बाबा के गुण गाबो

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता चलना झंडा फहराबो... गुरुबाबा के गुण गाबो... मानवता संदेश खातिर धाम गिरौधपुरी जाबो... मनखे मनखे सब्बो ऐके समान हे ... सब्बो समान हे ...बाबा ... सब्बो समान हे ... मानुस काया के तो इही ह पहचान हे ... इही ह पहचान हे ...बाबा... इही ह पहचान हे ... ऐके ही खून अउ ऐके ही तो चाम हे.. एक ही चाम हे.. बाबा... एक ही चाम हे.. . चलना नवा बिहान लाबो... चलना तीरथ धाम जाबो.. मानवता संदेश खातिर धाम गिरौधपुरी जाबो... सच के रद्दा बतैइया गुरु घासीदास बाबा हे.. घासीदास संत हे...बाबा... घासीदास संत हे.. जीव हतिया रोकैइया बाबा मांहगू के लाला हे.. मांहगू के लाला हे... बाबा... घासीदास बाबा हे.. सतनाम के संदेश बगरैइया अमरौतिन के दुलरवा हे.. अमरौतिन के दुलरवा हे...बाबा... घासीदास बा...
नवा साल के अगोरा
आंचलिक बोली, कविता

नवा साल के अगोरा

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता सगा बरोबर सब रददा देखत हे, नवा जिनगी शुरु करें बर अगोरा करत हे, जम्मो जन नवा साल के आगोरा करत हे.! नोनी बाबु नवा साल बर पिकनिक मनाये के तैयारी करत हे, नवा जोड़ी शादी के बंधन में बंधे के अगोरा करत हे.! नवा साल सबके जीवन में मंगल हो, हर गांव में नचई-गुदई अउ सत्संग के तैयारी चलत हे.! नवा साल मा प्रेमी-प्रेमिका अपन प्रेम के इजहार करें बर अगोरा करत हे, नवा साल मा सब अपन जीवन मा परिवर्तन करें के अगोरा करत हे.! जम्मो जन नवा साल अगोरा करत हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
अंतिम छोर
कविता

अंतिम छोर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बाबुल के नैनो की प्यारी आज चढ़ी है बलिवेदी पर लालची मानव तू धिक्कार मन में संजोकर पी का प्यार। मजबूरी है नाम जिसका वह बेटी कहलाती है। सह, शक्कर अनेक ताने सताई जाती है बार-बार। मन में संजोकर पी का प्यार।। बाबुल का घर आंगन छोड़। अंग अंग लाल चुनरिया ओढ़ मुड़ मुड़कर देखती घर आंगन का अंतिम छोर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं...
सोचो कितना अच्छा होता
कविता

सोचो कितना अच्छा होता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बादल ने बूंदें बरसाता हो धरती अँगड़ाई ले देखकर शरमाकर ओढ़ ले झट से हरी चुनरिया फूलों वाली चहुँ ओर लहराए चूनर ये हर खेत तरु डाली डाली सोचो कितना अच्छा होता उखड़े कभी न साँसें धरा की प्राणवायु वायु से पूरित हो रक्षाकवच हरियाली का हो दरकती दरारें दूर हो सभी पौधारोपण चहुँ ओर हो जगतजननी खुशियाँ पाती सोचो कितना अच्छा होता देख हरे भरे वन जंगल रिमझिम बरखा आती हो धन धान्य फल फूलों से आँचल भू का भर देती हो जुही चमेली चम्पा नाचे मोर पपीहा कोयल गए सोचो कितना अच्छा होता एक ही छत बिन दीवारों के मात पिता व भाई बहन हो पड़ोसियों से गुफ़्तगू हो सब अच्छे सब अच्छा हो बैर ईर्ष्या स्वार्थ नहीं हो व्यसन की बात नहीं हो सोचो कितना अच्छा होता विश्वबन्धुता व भाईचारा वसुधैव कुटुम्बकम हो यूक्रेन रूस से झगड़े न हो हिरोशिमा नागास...
उत्तम राह दिखाते
कविता

उत्तम राह दिखाते

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सब कुछ नहीं जानता कोई, इस दुनिया में आकर। ज्ञानवान विद्वान बनें सब, गुरु से शिक्षा पाकर। चरण शरण जो गुरु की जाते, शिक्षा दीक्षा पाते। बन जाते विद्वान वहीं नर, जीवन सफल बनाते। गुरुकुल हैं शिक्षा के मंदिर, विद्या बुद्धि प्रदाता। विद्या मंदिर में जो आता, वह विद्वान कहाता। पा आशीष ज्ञान निज गुरु से, आगे बढ़ता जाता। मिल जाती जब कृपा ईश की, पंगु शिखर चढ़ जाता। वेद पुराण उपनिषद गीता, सबको ज्ञान सिखाते। ज्ञानवान विद्वान सभी जन, उत्तम राह दिखाते। वाणी और नियम संयम से, जीवन को महकायें। विद्वानों की शरण प्राप्त कर, ज्ञानवान बन जायें। अहंकार ना रहे तनिक भी, मन मानस के अंदर। अहंकार से दूर रहे जो, बनता वही सिकंदर। सही समय पर समुचित बोले, वह विद्वान कहाता। जो उद्धार करे जन जन का, सारे जग को ...
मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
कविता

मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे, अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे, तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया, दूर जाकर इस दिल से मेरे, बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे, जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे, तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे, अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे, लेकर आया था संदेशा घर पर, उस थाने का थानेदार मेरे, कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें, जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने, बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती, अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे, तूने एक बार अपना घर नहीं समझा, मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे, इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने, किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए, मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर, घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए, तू जीत रही है हर बार मुझसे, मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए, सामान तो उठवा ल...
कोयल गीत
गीत

कोयल गीत

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है। रंग-बिरंगी तितली देखो, इठलाती इतराती है।। बूढ़े बरगद की हम सबको, शीतल-शीतल छाँव मिले। गाँवों के खेतों को देखें, मन में सुरभित पुष्प खिले।। मंद-मंद बहती पुरवैया, गीत प्रीति के गाती है। अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है।। अमराई मधुरस छलकाती, उपवन से सरगम निकले। निर्मल जल से प्यास बुझाते, हर दुख को हैं यों निगले।। प्रेम रत्न की खान वहाँ पर, मोती नेह लुटाती है। अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है।। इन्द्रधनुष की छटा निराली संध्या भी रहे सजीली। झिलमिल रात बड़ी प्यारी है, माटी होती गर्वीली।। सच्चाई की सौगातें हैं, सोंधी मिट्टी भाती है। अलि कलियों को चूम रहे हैं, कोयल गीत सुनाती है।। स्वाभिमान है दंभ नहीं है, मृदु ...
बातें फूलो की
कविता

बातें फूलो की

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूलों का ये कहना दिल की बातें दिल में ही रखना छीन ले जाता कोई खुशबू हमसे बस इसी बात का तो रोना । फूल बिन सेहरा गजरा के उदास हुए जाने क्या औंस ने कह दिया खुशबू उतनी ही बची फूलों की इतनी सी बात पर तितली-भोरे फूलों के अब खास हुए। उड़ा ना पवन खुशबुओं को इस तरह मोहब्बत रूठ जाएगी बेमौसम के पतझड़ की तरह कुछ याद रहेगी कुछ दिल से टकरायेगी बसेगी वो दिल में तुम्हारी यादों को महकायेगी| खुशबू भी रूठ जाती फूलों से जब कांटों की पहरेदारी बनती दगाबाज की तरह तोड़ लेता दिलबर खिले फूलों को मोहब्बत को मनाने की तरह। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाच...
मैंने  प्रेम  नही माँगा है
कविता

मैंने प्रेम नही माँगा है

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** मैंने प्रेम नही माँगा है केवल पीड़ा माँगी है। देखो न करके तुम मुझसे मेरा ये अधिकार न छीनो। चाहे जिसको खुशियाँ दे दो चाहे जिस पर प्रेम लुटा दो। चाहे जिसकी राहों में तुम अपने सुंदर नयन बिछा दो। मेरी आँखें शुष्क हो गई इनमें कोई क्या ठहरेगा, चाहे जिसकी आँखों में तुम अपने सारे स्वप्न सजा दो। मै केवल पीड़ा का आदी मेरा ये संसार न छीनो। देखो न करके तुम मुझसे मेरा ये अधिकार न छीनो। जिनका हृदय कोमल होता उनको कब अनुरक्ति मिली है। दर्द मिला है घाव मिले हैं उनको सिर्फ विरक्ति मिली है। मौन साधना नित्य कर्म है चाहे जितनी पीड़ा हो, अधर खोल कर कहने की उनको कब अभिव्यक्ति मिली है। प्रेम के बदले पीड़ा लेना मेरा ये व्यापार न छीनो। देखो न करके तुम मुझसे मेरा ये अधिकार न छीनो। क्षणभंगुर न प्रीति मिल...
लिए दिए पर मिलता है भाई
कविता

लिए दिए पर मिलता है भाई

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** सुशासन समागम में सीएम ने यह बात बिना हिचक के उठाई हकीकत धरातल पर आई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई सीएम ने ब्यूरोक्रेसी को फिर आईनासूरत दिखाई अफसरों ने मुझे अच्छी पिक्चर दिखाई असलियत में वैसा नहीं है भाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई मोटिवेशनल स्पीकर की तरह बोले एक्शन ऑन द स्पॉट करता हूं भाई झूठे पिक्चर मत दिखाओ भाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई जनता जागृत है इलेक्शन आग्रत है छवि ईमानदार बनाना है भाई नहीं खाने दूंगा हरे गुलाबी की मलाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई अफसरों से पूछताछ करते रहता हूं भाई संतोष नहीं हुआ तो करता हूं कार्यवाही कर दो अब भ्रष्टाचार को सख़्त मनाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निव...
शीत ऋतु
कविता

शीत ऋतु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जुताई खेती किसानी की जाती हैं। पूस की रात में कैसे नील गायें, हलकु की फसल चट कर जाती हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? फसलों को ठंडी रातों में सींचते हैं। आशाओं पर तुहिन पाला पड़ कर, खेतों में लहलहाते सपने सूखते है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? वादी के ठिकानों में अडिग खड़े है। मां भारती की सरहद पर खदानों में, वीर हिम शिखरों पर मौत से अडे़ है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जो राणा के रणवीर लौहा पीटते हैं। स्वच्छंद गगन के नीचे श्रम स्वेद से, भूखे शरद के पेट में घन ठोकते हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जिस श्रमिक की हड्डियां अकड़ती है। ईंट पत्थरों से भरी तगारि लेकर, आसन्न प्रसव मजदूरिन सीढ़ी चढ़ती है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? चौराहे पगडंडी पर ...
हम रहे देखते कुछ दूर तक
ग़ज़ल

हम रहे देखते कुछ दूर तक

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हम रहे देखते कुछ दूर तक जाते लेकिन। रह गया फ़ासिला ज़द उनकी जताते लेक़िन। नाम पूछा नहीं इस देखने की हसरत में, बढ़ गया काफ़िला हाथों को हिलाते लेक़िन। पेंच उनसे कभी बातों का लड़ाया होगा, ज़िंदगी कट गयी रिश्तों को निभाते लेक़िन। दूरियाँ सोचती है हमसे तो ये राह भली, राह चलती रही बोझों को उठाते लेक़िन। रात ढ़लती गई फिर चाँद ने छुपना चाहा, आसमाँ रह गया तारों को जगाते लेकिन। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
युवाओं का दर्द
कविता

युवाओं का दर्द

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** इन नौजवानों को देख लो जरा समझ जाओ ना इनकी तकलीफ रहते हरदम परेशान बेचारे समझो ना इनकी बेचैनी तुम गहराई में छुपे अश्रुओं को देखो तुम खाम का ही बोलते हो दर्द नहीं होता इन्हें उतर जाओ नैनों में इनके एक बार दुख की परछाई को झांक लो जरा तुम इनकी हंसी के पीछे छुपे गम जानो तड़पते मन को मरहम लगा दो पूछकर जिम्मेदारियों का वजन इन पर बहुत कभी तो उठा लो तुम भार इनका संभले, सुलझे लगे भले ही तुम्हें ये गहराई में जा इनकी उलझ न जाना तुम वक्त से पहले हो जवां उठा लेते जिम्मेदारियां बेरोजगारी छीन लेती बचपन की हठखेलियां खंडूस बोल दे ताने ना वार करो तुम समझो गहराई, नरमी, मासूमियत इनकी बना लो पहचान संग इनके तुम समझ पीड़ा देख दर्द मिटा दो ना परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेख...