सोचूँ तेरे प्यार को
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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सभी ढूँढ़ते रूप रंग को,
मैं सादे व्यवहार को।
साज-शृंगार मुझे न भाए,
सोचूँ तेरे प्यार को।।
बहुत अधिक सुखकारी लगती,
प्रिय, अमृत बोली तेरी।
जैसे स्वाती की बूँदों से,
चू रही घर की ओरी।।
पपीहा जब अलाप लगाए,
तड़पूँ सुखद विहार को।
साज शृंगार मुझे न भाए,
सोचूँ तेरे प्यार को।।
सूरत जैसे धूप शिशिर की,
खिली-खिली सरसों आए।
जैसे कासों के खेतों में,
'सूप', कर्ण सँजों पाएँ।।
लहराते आँचल में देखूँ
सहज गोमती धार को।
साज शृंगार मुझे न भाए,
सोचूँ तेरे प्यार को।।
गहरी-सिन्दूरी आँखों में,
सँझवती लाली छाए।
जैसे पलकों की छोरों पर,
मदिर-नींद चली आए।।
गगन फैलती काली रेखा...
खुलते-केश बयार को।
साँझ शृंगार मुझे न भाए,
सोचूँ तेरे प्यार को।।
बँसवार-लचकती बाहों में,
हरा हुआ तना महके।
बनफूल-बहकती साँसो में,
हिय...