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पद्य

चलो खुलकर मुस्कुराते हैं
कविता

चलो खुलकर मुस्कुराते हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुस्कुरा लो यार तलब न दबाओ, हर एक क्षण खुश नजर आओ, इसके फायदे एक नहीं अनेक है, महत्व इसका बहुत ही विशेष है, सोचो हमने कब कब मुस्कुराया है, हमें हर पल उन्होंने सिर्फ जलाया है, पर हम निराश नहीं हैं, उदास भी नहीं हैं, क्योंकि उपलब्धि की वो कील मेरे बाप ने ठोंके है, विषमताओं का प्रवाह सिर्फ उसने रोके है, वरना मुस्कुराने के पहले गिड़गिड़ाना होता था, हर देहरी पर सर झुकाना होता था, बाबा साहेब ने हर मिथक तोड़ा, अपने पैरों पर खड़ा कर हमें छोड़ा, हम अब शिक्षा की अलख जगा रहे हैं, इत्मीनान से यदि मुस्कुरा रहे हैं, तो इसका कारण सिर्फ बाबा भीमराव है, स्वतंत्र अस्तित्व की ओर जिनका झुकाव है, पुरखों का अहसास सोच भी सिहर जाते हैं, हर पग की कठिनाइयां जो बताते हैं, तो चलो खुलकर मुस्कुराते हैं, हमा...
श्वासें हुई उदास
गीत

श्वासें हुई उदास

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फटे-पुराने कपड़े उनके, धूमिल उनकी आस। जीवन कुंठित है अभाव में, खोया है विश्वास।। अवसादों की बहुतायत है, रूठा है शृंगार। अंग-अंग में काँटे चुभते, तन-मन पर अंगार।। मन विचलित है तप्त धरा है, कौन बुझाये प्यास। चीर रही उर पिक की वाणी, काॅंपे कोमल गात। रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल, अटल यही बस बात।। साधन बिन मौन हुआ उर, करें लोग परिहास। आग धधकती लाक्षागृह में, विस्फोटक सामान। अंतर्मन भी विचलित तपता, कोई नहीं निदान। श्रापित होता जीवन सारा, श्वासें हुई उदास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत...
शरद पूर्णिमा
हाइकू

शरद पूर्णिमा

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** श्री राधा कृष्ण महारास रचावे बृंदावन में! गोपियों संग खेले नाच नाचवे बृंदावन में! माता अमृत, महाखीर बनावे वृंदावन में! भोग लगा के, अन्नपूर्णा ख़िलावे वृन्दावन में! पूजा उत्सव खूब मैया को भावे वृंदावन में! शरद ऋतु, चंदा चकोरी भावे, बृंदावन में! करत लीला, श्याम राधा संग बृंदावन में! खेले चंद्रमा चंचल किरणों से, वृंदावन में।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
अस्तित्व की स्मृतियाँ
कविता

अस्तित्व की स्मृतियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्तित्व की स्मृतियाँ कभी व्यथित मन को सूकून दे ने वाली थपकियाँ भी बन जाती हैं कभी किसी कोने मे खुद की पहचान बनाने के लिए संघर्षरत रहतीं हैं!! वक़्त के बेरहम घाव पर मरहम बन जाती हैं समय मिले तो कभी सुनना मेरे अस्तित्व की स्मृतियाँ ! अगर कभी गुम हो जाए अचानक ये स्मृतियाँ तो ढूंढ लेना फ़ूलों की मीठी खुशबू में ओस की चमकती किरनों में नीले अम्बर में सूकून से उड़ते परिंदों में किसी जीव की करुणामयी पुकार में, किसी जीव की मुस्कराती आँखों में!! फिर भी ना ढूँढ पाओ तो ढूँढ़ना चिता की अग्नि में समाई हुई, यहीं मिलूंगी, यही से समझना है जीवन जीने की परिभाषा, थाम सको तो थाम लेना मेरी थोड़ी सी स्मृतियाँ!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म :...
क्या रावण मर गया बता दो?
कविता

क्या रावण मर गया बता दो?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर उसे जलाया सबने, ठोक रहे निज छाती। क्या रावण मर गया बता दो, लाज नहीं क्यों आती? पुतला एक विशाल बनाकर, दस सिर उसे लगाए। राम बने बालक ने पल में, लंकाधीश जलाए। रावण जला, गिरा धरती पर, खड़ा हुआ पल भर में। मुझे जलाने से क्या होगा, रावण हैं घर-घर में? जिसने मुझे जलाया उस पर, प्रकरण हैं थाने में। छेड़ चुका कई बार बच्चियाँ, सकुचाता आने में। राम बने बालक से पूछा, क्यों कर मुझे जलाया? देखे नहीं आचरण खुद के, मुझे जलाने आया। हो गंभीर बताया उसने, मिलकर तुझे जलाते। दोष ढाँक लेते सब अपने, पापी तुझे बताते। दोषारोपण करें और पर, दोष न देखें अपने। मुझे जला, अच्छे बनने के, खूब देखते सपने। गुस्से में रावण झल्लाया, मैं सीता हर लाया। मेरी पुष्प वाटिका में पर, फिर भी कष्ट न पाया। पावनत...
वियोग की पीड़ा में श्रृंगार
कविता

वियोग की पीड़ा में श्रृंगार

शिवम यादव ''आशा'' ग्राम अन्तापुर (कानपुर) ******************** श्रृंगार का अंदाज था। वियोग का भाव। बिछड़ने का डर था, संयोग का अभाव। मिलन का ख्वाब था, बातों का लोभ था। दृश्य ऐसा अपनाया, मिट गई सुंदर काया। संयोग पर हस्ते, वियोग पर रोते। अस्थाई प्रेम पर वचन सुनाते, वियोग होने पर रोते ही जाते। वियोग और संयोग-संयोग से होता है, वियोग खुद संयोग से रोता है। रोद्र भरे मन से निर्वेद की ओर चले, श्रृंगार ऐसा करें अद्भुत सबको लगे। .परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह : ...
खाली आसमान
गीत

खाली आसमान

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान खाली है लेकिन, धरती फिर भी डोले। बढ़ती जाती बैचेनी भी, हौले -हौले बोले।। चले चांद की तानाशाही, चुप रहते सब तारे। रोती चाँदनी मुँह छिपाकर, पीती आँसू खारे।। डरते धरती के जुगनू भी, कौन राज़ अब खोले। जादू है जंतर -मंतर का, उड़ें हवा गुब्बारे। ताना बाना बस सपनों का, झूठे होते नारे।। जेब काटते सभी टैक्स भी, नित्य बदलते चोले। भूखे बैठे रहते घर में, बाहर जल के लाले। शिलान्यास की राजनीति में, खोटों के दिल काले।। त्रास दे रहे अपने भाई, दिखने के बस भोले। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवान...
बार-बार जल जाने को
कविता

बार-बार जल जाने को

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** बार-बार जल जाने को बार-बार मर जाने को बार-बार मिट जाने को प्रतिवर्ष आ जाता है रावण अन्याय और अत्याचार असत पूर्ण दुर्व्यवहार का होकर प्रतीक और कटु और कटुतर बनकर लेकिन, रावण ही नहीं आता है बारम्बार! आते राम भी हैं बारम्बार कलेवर बदल बदल कर। अन्याय के ध्वंस हित अत्याचार के विध्वंस हित रुक नहीं पाते हैं राम वह भी आते हैं प्रतिवर्ष रूप, वेश भूषा बदल-बदल कर हम पहचान नहीं पाते हैं पर, वह आते अवश्य हैं। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति...
बेरोजगार चालीसा
दोहा

बेरोजगार चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** नमो-नमो बेरोजगार युवाओं। तुम्हारो दर्द न कोई जानों।। नमो नमो बेरोजगार युवाओं। ऐसे ही तुम बेगार रह जाओ।। हमने समझा तुम सब बेकार हो। पर तुम तो सबसे घातक प्रहार हो।। जब से तुम घर से बाहर निकले हो। उस दिन से घर की है रोशनी भागी।। पूरी दिन-रात तुम मेहनत करते हो। कर पढ़ाई-लिखाई परीक्षा देते हो।। फिर भी न होत है तुम्हरी भलाई। दूर न जात हैं ये बेरोजगारी बलाई।। बेरोजगार चालीसा जब कोई भी गावे। ऐसा लगे सबके कान में ठेपी घुस जावे।। तुम्हरे हाथ में है पूरी देश दुनिया। पर तुम्हरा दर्द न कोई सुनत है।। बेरोजगारी वंदना जो नीत गावे। जीवन में वो कभी हार न पावे।। हैं हथियार ये दोनों हाथ तुम्हारा। जब चाहों तुम किस्मत अजमाना।। जो नहीं माने रोब तुम्हारा। तो दिन देखी तिन तैसी।। जब कभी तुम आवाज उठाते। लाठी...
बंद करो अब जयकार
कविता

बंद करो अब जयकार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** असत्य पर सत्य की विजय का, पर्व है दशहरा, छूपा निज ह्रदय में रावण कहते गर्व है दशहरा। जन-जन का अंर्तमन लगता, दशानन जैसा ही, क्षण-क्षण पर छल-कपट करते रावण वैसा ही। जला रहे सिर्फ़ पुतले असली रावण तो जिंदा है, देख मनुज का दोगलापन लगे रावण शर्मिंदा है। सत्य खड़ा पहरेदारी में, कैसे संभव होगा न्याय, पाखंडी पग-पग प्रतिष्ठित, कैद हैं लाखों बेगुनाह। कथनी-करनी का अंतर, स्पष्ठ दिखे कण-कण में, बगुले-सा लिया रूप धर, विष भरा है तन-तन में। निज ह्रदय बैठे रावण की बंद करो अब जयकार, सत्य न्याय ईमान धर्म से, करो सुरभित ये संसार। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
चाहे जितनी पीड़ा दे दो
कविता

चाहे जितनी पीड़ा दे दो

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो। नैनों नीर भरा रहता मैं, तुम इतना कैसे हँसती हो। कल तक उर में समा रही थी, आज नदी सी निकल पड़ी हो। मैं पर्वत सा रुका वहीं हूँ, तुम सागर से पहुँच मिली हो। बस एकम अब ध्येय तुम्हारा, एक ही इच्छा बस बाकी है.. 'कुछ अतीत की बात रहे ना, वर्तमान ही बस साथी है।' जुड़े न तुम सँग नाम हमारा... षडयन्त्रों को यों रचती हो। चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो।। मैं गीतों के फूल बिछाऊँ, काँटो के तुम तानें रखती। मैं वाणी मधुरस बरसाता, चुभी-बात से तुम हो डसती। कोयल की जब ‌ तान सुनाऊँ, तुम दादुर के ढोल बजाओ! मेरे सम्मुख हर विरोध में कुटिल भाव से फिर मुस्काओ! लाज नहीं अब रही हमारी, क्या कहती हो, क्या करती हो? चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, ...
सफ़र
कविता

सफ़र

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती चलती हैं पतवार के सहारे सागर मचलता हैं लहरों के सहारे दर्दे दिल रोता हे अतीत के सहारे कहां खोजे हम किनारा समन्दर में पत्थरों की फिसलन के मारैं। दरख्तो के सायों का हुजुम चलता हैं साथ-साथ पगडंडी के सफ़र मे कांटे जो हैं साथ आसमां से झांकता आफ़ताब हंस रहा था हम पर कह रहा था मानों मुड़ हो अब निकले हों सफ़र पर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्री...
हुआ क्या … ?
कविता

हुआ क्या … ?

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** खुली आँख थी या कि तुम सो रहे थे, कहीं उड़ गया था तुम्हारा सुआ क्या ? घटना घटी देखकर पूछते हो ! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? निजी स्वार्थ में इस तरह रंँग गए हो, किसी दूसरे रंग में जी न पाए। सदा दूसरों को दिया कष्ट तुमने, सुखी जिन्दगी को समझ भी न पाए।। कपट लोभ लालच छुपाया सभी से, बताते सभी को बताती बुआ क्या? बहाने बना कर उलट पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? नशे के विकट जोश में होश खोकर, स्वयं को स्वयंभू गुणागार माना। परम वैभवी दिव्यता छोड़ बैठे, दुराचार को ही सदाचार जाना।। अकड़ में तने ही रहे हिमशिखर से, तुम्हारे अहम ने कभी नभ छुआ क्या? तुम्हें सब पता है मगर पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? विषय की विकारी मनोरम्यता में, रमे तो किसी की ...
आवाज
कविता

आवाज

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सशक्त बनो शक्तिशाली बनो, लक्ष्मीबाई तलवार की धार बनो एक हाथ में पुस्तक हो, दूसरे मे तलवार सा हथियार भी हो। यह वक्त न बहस, मोमबत्ती का, यह समय हे हाथो मे हथियारो का, अब क्लास लगा दो बालिकाओ की, अब दे दो छूट महिलाओं को, बालिकाओ को उन किशोरीयो की, अपनी सुरक्षा और मान सम्मान की। तलवार सीखे, वह बंदूक सीखे, वह अत्याचारीयो पर वह भारी बने, तन और मन से शक्तिशाली बने। फांसी के फंदो पर झूला दो उन्हें, जो अत्याचार करे जो जुल्म करे। कोई भी धर्म मजहब का हो, कोई भी रिश्ते नाते हो। ना छोडो अत्याचारो को इन राक्षस दानव दुष्टो को, नही दया दिखाओ इन दानवो पर भूखे ही मरने दो इन राक्षसो को, यह हर महिलाओ की आवाज भी है, यह हर बालिकाओ की ललकार भी है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन...
बहुमूल्य योगदान
कविता

बहुमूल्य योगदान

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बड़े गुस्से से वो निकले थे पूरे लाव लश्कर के साथ उस मतदाता के हाथ पांव तोड़ने, तभी चुनावों की तारीखों का एलान हो गया, त्वरित नेताजी परेशान हो गया, अब वो उसी लाव लश्कर के साथ घूम रहे हैं हाथ पांव जोड़ते, चंद घंटे पहले की अकड़ छोड़ते, ये किस्सा गिरती हुई नैतिकता का पूरा हाल बता गया, और सब जान गए कि मौकापरस्त राजनीति का ये खूबसूरत दौर है नया, तो अब नेताजी घर-घर जा सही काम का भरोसा दिलाएंगे, गिर पैरों पर गिड़गिड़ाएंगे, पिला चार पेटी, खिला दो बोटी, फिर अपनी ईमानदार छवि के दम पर वहीं सीट फिर से जीत लाएंगे, तथा देश की उन्नति में अपना बहुमूल्य योगदान दे पाएंगे, हमें भरपूर भरोसा है कि यह नेता संविधान को खत्म होने से बचाएंगे, और वोटरों के घर वहीं पुराने गरीबी व भुखमरी के दिन ला पाएंगे। ...
शक्ति का त्यौहार
गीतिका, छंद

शक्ति का त्यौहार

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द शक्ति का त्यौहार है हम शक्ति का संचय करें। शक्ति के अस्तित्व को हम भक्ति से अक्षय करें।। लक्ष्य क्या उपलक्ष्य क्या है हम प्रथम यह तय करें। ध्यान रखकर शुभ-अशुभ का पन्थ का निर्णय करें।। साधना का एक ही यह मूल है निश्चय करें। कर्म को निष्काम सेवा मानकर तन्मय करें।। बात अनुभव सिद्ध गहरी है न कुछ संशय करें। धर्म की बस धारणा हर कर्म है निर्भय करें।। आइए स्वागत सहित संसार से परिचय करें। तामसी व्यवहार‌ को सब दम्भ तज विनिमय करें।। द्वेष त्यागें शुभ हृदय अनुराग का आलय करें। आपसी सम्बन्ध गाढ़े और करुणामय करें।। आइए करबद्ध परहित के लिए अनुनय करें। पुण्य को बोएँ परस्पर पापियों का क्षय करें।। देश दुर्गुण से बचे अच्छाइयांँ अतिशय करें। विश्व का कल्याण करते "प्राण"‌ ज्योतिर्मय करें।। प...
मत जाना तुम कभी छोड़ कर
गीत

मत जाना तुम कभी छोड़ कर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ। तुम ही तुम हो इस जीवन में,त याद तुम्हें बस करता हूँ।। प्रिये सामने जब तुम रहती, मन पुलकित हो जाता है। लेता है यौवन अँगडाई, माधव फिर प्रिय आता है।। प्रेम सुमन पल पल खिल जाते, भौरों सा मैं ठगता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। नेह डोर तुमसे बाँधी है, जन्म जन्म का बंधन है । साथ कभी छूटे ना अब ये, प्रेम ईश का वंदन है ।। मेरे हिय में तुम बसती हो, नाम सदा ही जपता हूँ । मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। रूप अनूप बड़ा मनमोहन, तन में आग लगाता है । आलिंगन को तरस रहा मन, हमें बहुत तडपाता है।। चंचल चितवन नैन देख कर, ठंडी आहें भरता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। परिचय :- मीना...
देवी-वंदना
मुक्तक

देवी-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अम्बे मैया करूँ वंदना, शांति-सुखों का वर दे। भटक रहा मैं जाने कब से, मुझको अब तू दर दे। जीवन में अब खुशहाली हो, हरियाली हो, मंगल हो, मैं बन जाऊँ सच्चा मानव, मेरे सिर कर धर दे।। सद् विवेक अब रहे नित्य ही, जीवन सुमन खिलें। कभी न विपदा आये मुझ पर, कंटक नहीं मिलें। मैं तो तेरा लाल लाडला, अम्बे करो दया तुम, पर्वत जो भी हैं राहों में, वे सब आज हिलें।। सुखद चेतना के पल पाऊँ, कभी नहीं क्षय हो। हे अम्बे माँ ! सच तू देना, करुणा की लय हो। कभी कपट मैं ना लिपटूँ मैं, लोभ से दूरी पाऊँ, सदा मनुजता के पथ जाऊँ, माँ तेरी जय हो।। करूँ कामना शुभ की नित ही, मंगल को सहलाऊँ। गरिमा से माता में रह लूँ, सब पर प्यार लुटाऊँ। इस जग में अब तो हे माता!, तेरा ही शासन है, मन की पावनता से महकूँ, गंगा रोज़ नहाऊँ।। मानव दीन हो गया म...
मॉं कुष्मांडा
स्तुति

मॉं कुष्मांडा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** नवरात्र चतुर्थ दिवस, मॉं कुष्मांडा आती हो, भक्तों को हर्षाती हो, जय हो कुष्मांडा। गंभीर रोगों से मुक्त कराती हो, ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचाती हो, राग,द्वेष,दुख की देवी हो, भक्तों को देती हो सहारा। तेरे दर्शन पाकर, खुल जाता किस्मत का ताला, भय दूर करती हो माता, सृष्टि की रचना तुम ही तो करती हो। मंद मुस्कान से ही की, समस्त ब्रह्मांड की रचना, जीवन समृद्ध-सुखी बनाती हो, भक्त करे मॉं तेरा पूजन अर्जन। गुड़हल पुष्प अर्पित करें, मालपुआ का भोग लगावे, हाथ जोड़ संगीता सूर्यप्रकाश, शीश झुकावे वंदन, अभिनंदन प्रणाम करें बारम्बार। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
डर यहां है
कविता

डर यहां है

सीताराम सिंह रावत अजमेर (राजस्थान) ******************** मुझे डर लगता है लिखने से, बोलने से, प्रदर्शनों में जाने से। क्यों लगता है? इसके जवाब कई हैं- ट्रॉलिंग, मार-पिटाई, देशद्रोही का समाजिक टैग, रिश्तेदारों के तानों का, विवाह न हो पाने का, दोस्तों से दूर हो जाने का। झूठे मुकदमे में पुलिस, सीबीआई, या ईडी द्वारा फंसाए जाने का, फिर उस मुकदमे को लड़ने के लिए कर्ज लेने का, या बिना धन के जेल में सड़ने का। अदालतों की तारीखों से, उनके निर्णय से, मीडिया की चीखों से, मृत्यु के खौफ से। मुझे डर लगता है हर उस व्यक्ति से, जो भले उस विचारधारा से दूर हो, लेकिन धार्मिक हो, और मेरे लिखने, बोलने से मेरी मॉब लिंचिंग कर देगा। इस डर के कारण यह लिखते हुए भी हाथ कांप रहे हैं, कि मुझे डर लगता है आज़ाद भारत में बोलने से, लिखने से- आजादी के पचहत्तर व...
औरत नदी होती है
कविता

औरत नदी होती है

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** औरत नदी होती है, जो बहती रहती है। वात्सल्य से पूरित, स्नेह में परिपूर्ण हो। पहाड़ों से ढलानों में, घाटियों से मैदानों में। असंख्य पत्थरों को, भावों से ठेलती हुई। पिता से पति तक, उतार चढ़ावों से गुजरती पहुंचती है ज्वार भाटे सी, सागर तक बहती हुई। बचपन की वर्जनाएं वह भूलती नहीं है। "शोभा नहीं देती तेरी यह मुंह फाड़ू हंसी", अगले घर जायेगी, तू लड़की है। बालपन से किशोरी होने तक, कितनी ही बार सुनती है। अदब से रहना सीख ले, तेरे संग बंधी है घर की इज्जत। जैसे यह घर उसका नहीं, पिता का घर, माता का घर, जहां उसका जन्म हुआ, वो उसका ठिकाना नहीं है। समझती है वो सत्य को, वो तो सृष्टि की सृजक है, उसे तो पराएं घर जाना है। पहाड़ों से जंगलों में बहकर, मिलना है सागर के खारेपन में। खपाकर जीवन को फिर से, वाष्प बनकर...
सत के लिए ही लड़ना
भजन

सत के लिए ही लड़ना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मन को ही मार करके तन को खुवार करके जीवन में आगे बढ़ना सत के लिए ही लड़ना धर्म की ध्वज के लिए खुद को अर्पित करना असत्य से कभी डरना सत के लिए ही लड़ना मानव में समभाव जगे सदाचरण का भाव जगे लोकहित काज करना सत के लिए ही लड़ना शक्ति व साधना संग मे जगत के बिखरे रंग मे उम्मीद से आगे बढ़ना सत के लिए ही लड़ना उदवेलित मन में आश जीवन में दिव्य प्रकाश धर्म को नहीं है छलना सत के लिए ही लड़ना एक आश एक विश्वास जग में सब कुछ खास उस पर विश्वास करना सत के लिए ही लड़ना परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा रूचि : काव्य लेखन, आ...
हे महागौरी माता
स्तुति

हे महागौरी माता

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** हे महागौरी माता, चार भुजा धारिणी माँ, वृषभ की सवारी करती, अभय मुद्रा धारिणी, दाहिने भुजा त्रिशूल, बाएँ मे डमरू,वर धारिणी, तेरी महिमा है अपरम्पार, तू सबको देती आशीर्वाद। श्वेतांबर धारण करतीं, गौर वर्ण से प्रसिद्ध है तू, भगवान शिव की तू अर्धांगिनी से जानी जाती माँ तू, धवल चाँदनी की छाया में, माँ तुम्हारा स्थान है अनमोल, शांति, सौम्यता का प्रतीक, तू करती है सबका कल्याण। माँ तेरे मस्तक पर सजा है, चंद्रमा की तेज आभा, दुष्टों का नाश करती, देती भक्तों को जीवन की राह, कमल पर बैठी है तू, सौम्य और नीरस तेरा है शैली, भक्तों के दिल में बसी, तेरा अद्भुत अलौकिक चमत्कार। शक्ति और भक्ति का संगम तू है साक्षात स्वरूप माँ, हर दुख-दर्द को मिटाती तू है, सच्ची आस्था का धूप माँ, तेरे चरणों की धूल से माँ, मिलता मन मस्ति...
ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है
ग़ज़ल

ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन ज़िंदा हूॅं जी रहा मेरी मंज़िल क़रीब है। आ जाए कब बुलावा सफ़र ये अजीब है।। ऐसी गुज़ारी उम्र की गुमनाम हो गए। अपना न कोई दोस्त न कोई रक़ीब है।। नफ़रत उगल रहा है जबाॅं से जो रात दिन। कैसे कहूॅं उसे कि वो अच्छा नजीब है।। लाशों का ढेर देख के आता नहीं तरस। होता है क़त्ल-ए-आम तो हॅंसता मुहीब है।। कैसा फ़क़ीर है ये जो घूमे विमान से। किस्मत हो सबकी ऐसी की फिर भी ग़रीब है।। आवाज जो उठाते थे ख़ामोश हो गए। दरबारी बन गया जो वो अच्छा अदीब है।। जिसको मैं ढूॅंढता रहा दुनिया की भीड़ में। वो पास है न दूर ये कैसा नसीब है।। जैसा करेगा जो वहाॅं वैसा भरेगा वो। मैदान-ए-हश्र सबका ख़ुदा ही हसीब है।। जन्नत निज़ाम उसकी है जो है रसूल का। ...
जगदंबा स्तुति
स्तुति

जगदंबा स्तुति

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सदा प्रसन्ना मां जगदंबा मम ह्रदय तुम वास करो। लेकर खड़ग त्रिशूल हाथ में मम शत्रुदल संहार करो। चड-मुंड के मुंड धारण कर्ता मम संकट का भी हरण करो। तंत्र विद्या की प्रारंभा देवी शत्रु तंत्र, मंत्र, यंत्र का शमन करो। चौसठ योगिनी संगी कर्ता मम योग विद्या उत्थान करो। रक्तबीज का रक्त पान कर्ता मम शत्रुदल रुधिर पान करो। भैरव के संग नृत्य कर्ता मम शत्रुदल अटहा्स कर ध्वंस करो। जय जय जय मां जगदंबा काली मम ह्रदय तुम सदैव वास करो। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...