मातृभाषा हिन्दी और हम
रामसाय श्रीवास "राम"
किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़)
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हिंद देश का वासी हूॅं मैं,
हिन्दी मेरी भाषा है।
इसका मान बढ़े नित जग में,
यह मेरी अभिलाषा है।।
रक्त बूॅंद बनकर मेरी यह,
रग रग में बहती हर पल।
ज्यों जल की धारा बहती है,
नदियों में करती कल-कल।।
तृषित जनों को सिंचित करती,
जीवन की यह आशा है
इसका मान बढ़े नित जग में,
यह मेरी अभिलाषा है
जननी जन्मभूमि सी प्यारी,
मातृभाषा है यह श्रेष्ठ।
एक यही हो भाषा सबकी,
हो इसका उपयोग यथेष्ठ।।
वर्षों की मेहनत से इसको,
हमने खूब तराशा है
इसका मान बढ़े नित जग में,
यह मेरी अभिलाषा है
हिन्दी प्राण है हिन्दुतां की,
इसके बिन मृतप्राय सभी।
इसका कर्ज चुका ना सकते,
हम सारे ताउम्र कभी।।
शांत इसी को पढ़कर होती,
मन की सब जिज्ञासा है
इसका मान बढ़े नित जग में,
यह मेरी अभिलाषा है
हिन्दी हिंदुस्तान का झंडा,
विश्व गगन ...