नाले में बहती है
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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आस्था के नाम पर
कब तक दूध बहाओगे,
भूख से तड़पते नौनिहालों को
क्या कभी नहीं दूध पिलाओगे,
दूध जो बह जाती है नालियों में,
करुण रुदन की शोर दब जाती है
जयकारों और तालियों में,
तब नजर आती है मुझे
बहती हुई डिग्रियां और तालीम,
जो चीख-चीख कर पूछती है
क्यों आस्था के चक्कर में
बहाते हुए क्षीर उन
मासूमों की नजरों में
महसूस होने लगता है वो जालिम,
हां मैं भी मानता हूं कि
मजहब नहीं सिखाता
आपस में बैर रखना,
मगर लोग क्यों चाहते हैं
पाखंडों में डूबे रहना,
आंखों में नीर लिए
निहारे जा रहा हूं
जीवनदायिनी क्षीर को बहते हुए
नालियों में, नालियों में।
परिचय :- राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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