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पद्य

नाले में बहती है
कविता

नाले में बहती है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आस्था के नाम पर कब तक दूध बहाओगे, भूख से तड़पते नौनिहालों को क्या कभी नहीं दूध पिलाओगे, दूध जो बह जाती है नालियों में, करुण रुदन की शोर दब जाती है जयकारों और तालियों में, तब नजर आती है मुझे बहती हुई डिग्रियां और तालीम, जो चीख-चीख कर पूछती है क्यों आस्था के चक्कर में बहाते हुए क्षीर उन मासूमों की नजरों में महसूस होने लगता है वो जालिम, हां मैं भी मानता हूं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, मगर लोग क्यों चाहते हैं पाखंडों में डूबे रहना, आंखों में नीर लिए निहारे जा रहा हूं जीवनदायिनी क्षीर को बहते हुए नालियों में, नालियों में। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
रंग बिरंगा उपहार
हास्य

रंग बिरंगा उपहार

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी-अभी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का फोन मेरे पास आया मैंने बड़ी इज्जत से फोन उठाया प्यार से फरमाया क्या हाल है भाया जल्दी बोलो फोन क्यों मिलाया? शहबाज शरीफ तो जैसे रो पड़े क्या बताऊं जनाब हमारे देश की हालत आप से छिपी है क्या? और क्या बताऊं? लोग भूखों मरने लगे हैं दुनिया भीख देने को तैयार नहीं है आपका पुराना दोस्त कटोरा खान सिर पर चढ़ता जा रहा है, कटोरा संस्कृति हमारी नस -नस में ढकेल चुका है हमने भी उसका अनुसरण किया पर औंधे मुंह गिर पड़ा। अब मेरा हाल इधर खाई उधर कुंए जैसी है भाई लंदन में मजे कर रहा है भतीजी यहां नाक में दम किए है सारी समस्या की जड़ मुझे बता रही हैं। कुछ समझ में नहीं आता अब आप ही कोई राह दिखाइए मेरा ही नहीं पाकिस्तान का भी बेड़ा गर्क होने से बचाइए। मैं ...
आ गया बसंत है
कविता

आ गया बसंत है

शैलेश यादव "शैल" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** विटपों के पुराने पत्ते जब मिलने लगे धूल, वसुधा भर के वृक्षों में जब लगने लगे फूल, आम की मंजरी जन जन का मन मोहने लगे, सेमर पलाश वन लाल सुमनों से सोहने लगे, तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है। कलघोष सुमधुर कंठों‌ से जब प्रिय बोलने लगे, अपनी मधुरता को मनुज के मन में घोलने लगे, सहजन का तरु जब श्वेत पुष्पों से भर रहा हो, बरगद जब कूचों को लाल लाल कर रहा हो, तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है । बैरों के वृक्षों में भी जब लालिमा छा गई हो, जामुन के वृक्ष में भी जब नई पत्ती आ गई‌ हो, जब कटहल के छोटे फल वृक्ष में लटक रहे हों, जब अपने पराए सब यहाॅं-वहाॅं भटक रहे हों, तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है। महुए में भी छाई एक अलग ही मुस्कान हो, सुमनोहर सुगंध से भरा जब सारा वितान हो, जब चारों तरफ खुशियों की छाई बहार हो, ...
ठौर कहां
कविता

ठौर कहां

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** समंदर के सैलाब का है साहिल यादों के सैलाब का साहिल कहां आसमां ठौर मेहताब आफताब का चमकते सितारों का ठौर कहां। नदियों के कल-कल में स्वर हैं जल में पडती किरणों के प्रतिबिंब का ठौर कहां शून्य आकाश में उड़ते पक्षी की फुनगी है ठौर वृक्ष से गिरे पत्ते का ठौर है कहां। सूरज की किरणों का ठौर है धरती आकाश, धरती के क्षितिज का ठौर कहां। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तम...
आलिंगन
कविता

आलिंगन

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** होता जब आलिंगन तब, प्रेम से जीवन लेता जन्म ! नव शिशु की धड़कन सुन हुआ मधुर सा आलिंगन।। प्रेम से भरा स्पर्श हमें प्राप्त, आलिंगन से ही हुआ सदैव। जैसे धरती और गगन के, आलिंगन से बहती हैं पवन।। स्नेह से भरे आलिंगन ही, हमें सहानभूति प्रदान करता। हम बचपन की दहलीज में, आलिंगन की भाषा प्रेम समझते।। भटकते नहीं है फिर यह कदम जब मिल जाता प्रेम का आलिंगन। जब बढ़े ज्ञान की ओर कदम होता परम आत्मा से आलिंगन।। प्रेम, दया, क्षमा से भरा हृदय सत्य का करता सुंदर आलिंगन।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
मातृभाषा दिवस
कविता

मातृभाषा दिवस

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** माता होती है सबको प्यारी, भाषा होती है सबकी न्यारी। हर क्षेत्र की होती अलग भाषा, मातृभाषा होती सबकी दुलारी। संपूर्ण विश्व में प्रायः हर जगह, मातृभाषा में वार्तालाप होता है। माता से भी अधिक महत्व देते, अपनेपन का एहसास होता है। शैशवावस्था से सुनते जिसको, प्रेम प्रगाढ़ता बढ़ती ही जाती है। उम्र दराज होते होते मातृभाषा, तन मन में सबके बस जाती है। स्वाभिमान का प्रतीक वो बनती, क्षेत्रीयता का प्रतिनिधित्व करती। दिवस विशेष क्या है उसके लिए, सदा ही 'सक्षम' चहेती बनी रहती। परिचय :- गायत्री ठाकुर "सक्षम" निवासी : नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
माँ केवल माँ जैसी होती
कविता

माँ केवल माँ जैसी होती

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** चाहता हूँ वक्त को, मुट्ठी में अपने बंद कर लूँ, ज़िंदगी की दौड़ में अब, माँ न मेरी दौड़ पाती। *** जंग लड़ती ही रही माँ, ज़िंदगी भर ज़िंदगी से, वक्त ने धोखा दिया है, ज़िंदगी के साथ मिलकर। **** माता ने फिर भाँप लिया है, बेटे की नादानी को, किंतु न बेटा समझ सका है, कुर्बानी अपने माँ की। **** माँ को अपने छोड़ गया है, बेटा एक अनाथालय में, वर्षों पहले उस बच्चे को, उसी जगह से गोद लिया था। ***** माँ - बापू को छोड़ अनाथालय में, बेटा भागा है, शायद उसके तीर्थाटन की, ट्रेन छूटने वाली है। ***** पढ़ी- लिखी वह नहीं किंतु बेटे का मन पढ़ लेती है, जाने कब, किन स्कूलों में, माँ ने ये भाषा सीखी? ***** माँ केवल माँ जैसी होती, गुरु, ईश्वर सब पीछे हैं, जग में ऐसा बैंक नहीं, जो उसके ऋण को चुका सके। ***** परिचय :- डॉ. अवधेश कुमा...
मुकतदी बनते हैं हालात
ग़ज़ल

मुकतदी बनते हैं हालात

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** मुकतदी बनते हैं हालात ग़म इमामत करते हैं, हर रोज फरिश्ते टूटी झोपड़ी की जियारत करते हैं। पहन के कीमती लिवास कुछ लोग दिखाबत करते हैं, जर्रे-जर्रे में है खुदा तभी तो हम कहीं भी इबादत करते हैं। अमीरे शहर खुश हैं अब बादशाहत पे अपनी, हमको नाज़ है घर में हमारे बच्चे शरारत करते हैं। जो बदल सकते नहीं हालात तो जुल्म करना छोड़ दो, फिर ये न कहना इंकलाबी लोग बगावत करते हैं। तेरी मनमानी से गिरा सकते नहीं हम अपने हद को, पारखी लोग पारखी नजर कब कोयले की तिजारत करते हैं। मुफलिसी में नहीं जलते कितने घरों के चूल्हे, शाहरुख मेरी कौम में ऐसे लोग भी सदारत करते हैं। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मानवता देखो शरमाई
कविता

मानवता देखो शरमाई

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता का छेद, जात पात का भेद, कभी ना बुर पाई, वोट बैंक की रोटी सेके जात पात के चूल्हे पर, मानवता में घृणा पैदा कर, छेद और भेद बुद्धि में भर देवें, आज का मानव शिक्षित और समझदार ! छेद और भेद का फर्क है समझे, वह हे पढ़ा लिखा इंसान। छेद और भेद की परिभाषा है देखो उसके पास, कम पढ़े (अनपढ़) और बुद्धिहीन करते जाति भेद की बात, आदर्श राम तो शबरी और केवट को गले लगाते, प्रेम के साथ, विभीषण का भेद नहीं लेते हैं श्री राम, राम-राज्य में छेद करें, देखो मंथरा दासी बात, वन जाते श्री राम प्रभु छेद भेद की नही बात। राजनीति में चलती है छेद-भेद की बात, भारत में सब मिलजूल कर रहते हे हर पंथ, छेद-भेद की बात तो अशोभनीय देती अपने मुहँ, वसुदेव कुटुंबकम् का भाव रहा हरदम, जात पात का जहर क्यों? घोलो मानव तन, जह...
आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी
छंद

आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** वसन्ततिलका- उक्ता वसंततिलका तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण , जगण , दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) ॐ स सूर्याय नम : आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी। आओ प्रभास भरके, तम हे निवारी।। मुक्ता सुमाल पहिरे, गल है सुहाता। प्रद्योत राशि बिखरे, जब हो प्रभाता।। संपतिवान करते, रवि हैं दयालू। पूजो सदा प्रबल को, यह हैं कृपालू।। बाधा सभी निपट के, सुख शांति देती। स्वामी सुकर्म कहते, पहले शुभेती।। आराधना सुखद है रविवार द्यौ की। शीघ्राति पूर्ण करते, फल देत लौ की।। प्रातः सुकाल चित में, इनको बिठाना। सच्ची लगी लगन से, इनको बुलाना।। संपूर्ण व्योम चलते, थकते नहीं हैं। उत्पन्न अन्न करते, डिगते नहीं हैं।। नक्षत्र में प्रथम हैं, बहु हैं प्रतापी । सारंग सूर्य जग के, कर लो मिलाप...
संबोधन बदले
मुक्तक

संबोधन बदले

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना कोई संबोधन बदले ना बदली मेरी भाषा। बदल गई चेंजिंग कर तेरे मन में मेरी परिभाषा। बदल गए संदर्भ जगत के बादली बरखा की बहली बही बयार बन झंझावात पर मेरे मन की झंकार ना बदली। पीर जगत की ओढली मैंने किसी शुन्य तरुवर के नीचे भावों के उद्योग वही है सोपानोपरचढ़ते चढ़ते। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
क्यूँकि मैं नारी हूॅ
कविता

क्यूँकि मैं नारी हूॅ

नीलेश व्यास इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** इन्दौर मे महिला प्रोफेसर के प्रति किये गए जघन्य अपराध, से उपजी मेरी कविता ”क्यूँकि मैं नारी हूॅ, क्या मेरे दर्द बस मेरे ही है, क्या समाज, क्या नेता, क्या संविधान का चैथा स्तंभ, सब चुप है, सब मौन खड़े है, आँखे भी सब मोड़ लिये है, मुझे सताया मुझे रुलाया और मुझे यूँ जला दिया, नारी उत्थान के कानुन, राष्ट्रपति सिंहासन तक दिये, मेरे नाम के सम्मान झेलते और आश्रम भी खोलते, क्या तुमको लज्जा आती नही, क्यूँ गली, चैराहे से नशा करते, यूँ सरेराह मुझे छेड़ते, यूँ तेज चलाते वाहनों से कभी हाॅर्न मारकर कभी कट मारकर वो नालायकी कर जाते है, कभी विरोध किया तो कार से घसीटी ओर जला दी जाती हूँ, मेरे प्रति घृणा लिये, क्यूँ ये लोग तुम्हे दिखते नही, कितना सहूँ, ओर किससे कहूँ, भेदभाव का, जातिवाद का दंश झेलती, लगता है मैं सबला नही, ...
प्राण प्रणीत “शिवलहरी”
श्लोक

प्राण प्रणीत “शिवलहरी”

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** श्लोक १ ===== जय नन्दीश नदीश निधीश्वर नीर निशीश नटीश प्रभो। चिर चण्डीश फणीश शशीधर शीश शिरीश शिखीश प्रभो।। प्रिय पिण्डीश पतीशपतीश्वर वीर यतीश व्रतीश प्रभो। मम संघात निपात हराहर घातक पातक प्राण प्रभो।।१।। श्लोक २ ====== नव नीतीश क्षितीश सतीश्वर धीर सतीश सतीश प्रभो। कलि कालीश कलीश कवीश्वर कीश करीश कटीश प्रभो।। पद पाणीश परीश कपीश्वर ईश घटीश गतीश प्रभो। हर संघात निपात हराहर घातक पातक प्राण प्रभो।।२।। श्लोक ३ ===== शशिमौलीश मनीष मतीश्वर मूल मुनीश महीश प्रभो। जय गौरीश गिरीश गतीश्वर हीश हरीश तरीश प्रभो।। जय देवीश दिवीश दिगीश्वर द्वीश दिगीश दृगीश प्रभो। हर संघात निपात हराहर घातक पातक प्राण प्रभो।।३।। श्लोक ४ ===== जय वारीश जिगीषु तमीश्वर वेदि विधीश विधीश प्रभो। जय भृङ्गीश सुधीश बलीश्वर चित्त...
अकादमिक आत्महत्या
कविता

अकादमिक आत्महत्या

नवनीत सेमवाल सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) ******************** हे! अतिमानव नहीं समाधान आत्महत्या का तुम्हारा कदम सपना टूटे नहीं टूटना तुम मिलेगी काया बड़ा है भरम। विफल हो रहें कृतसंकल्प में सृजन करें अद्भुत आशा क्षणिकावेश में लिया जो निर्णय आलम कहेगा तुमको हताशा। आत्मघाती न समझे कुछ भी होती वेदना एक ही बार सुन परितापी हृतपीड़ा से परिजन मरते बारम्बार। सहानुभूति के तुम अभिलाषी मार्गी से पूछना हर एक बार पीछे छोड़ दो अतीतगत को सुखद बने जीवन का सार। यदि हो केंद्रित धीर अवस्था प्रदीप्त करेगा लक्ष्य तुम्हारा अन्तर्ज्वाला को बाधित रखना निजता में तू कुल का है तारा।। परिचय :-  नवनीत सेमवाल निवास : सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
दुलार तो लीजिए
कविता

दुलार तो लीजिए

वीरेन्द्र कुमार साहू मंदिरपारा, सूरजपुर (छत्तीसगढ़) ******************** मैं कब से यही पड़ा हूं, सिरहाने के नीचे जमीन पर जरा नजरों से उठा तो लीजिए। चांद कब का ठहरा है, सरोवर में कुमुदनी के बीच में जरा हाथो से रास्ता बना तो दीजिए। देखिए तो वो तारा जरा मधीम हो चला है जरा धूल को हटा तो दीजिए। कुछ परिंदे भूखे ही लौट जाते हैं दरवाजे से थोड़े और दाने बिखेर तो दीजिए। कब तक कोई निराश जीवन काटेगा, जरा बाहों में भर कर दुलार तो लीजिए।। परिचय :- वीरेन्द्र कुमार साहू निवास : भैयाथान रोड, मंदिरपारा, जिला सूरजपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी...
साहस
छंद

साहस

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** ताँका छंद यह जीवन एक संघर्ष सदा जीत मिलेगी जो लड़ता सदैव हिय रखे साहस युद्ध क्षेत्र में मजबूत इरादे पार लगा दें हर एक बाधा से सपने साकार हों लक्ष्य मिलता मजबूत इरादे जिनके होते साहस से बढ़ते मंजिल पा जाने को सत्कर्म करो नित आगे बढ़ना मंजिल मिले सफलता मिलती खुशियों का संसार स्वेद की बूंदे मुस्कान बिखेरती हरियाली हो जीवन लहराता महकता चमन परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कान्हा तुमने बुलाया
भजन

कान्हा तुमने बुलाया

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** कान्हा तुमने बुलाया, तो हम आ गये। दरस पाके तेरा, सब मगन हो गए। कान्हा ... तुम बुलाते जिन्हें वे ही आ पाते हैं, शेष माया के दलदल में फंस जाते हैं। तुमने सुमिरन के मित दिया मानव का तन, लाभ उसका नहीं सब उठा पाते हैं कुछ हैं आते स्वयं, बंध के आते हैं कुछ, आये कैसे भी हों, भाग्य तो जग गए। कान्हा तुमने ... यों ही करके कृपा, तुम बुलाते रहो, पूर्ण आस्था से हम, दर पे आते रहें। तुम तो करुणा के मोती, लुटाते सदा, हम भी दर आके झोली फैलाते रहें। जिनने देखी तुम्हारी सलोनी छवि, राह के थे जो कंकण, रतन हो गए। कान्हा तुमने ... तुम दयालु हो, सक्षम हो, दाता भी हो, किसकी क्या चाह है, इसके ज्ञाता भी हो, अपने भक्तों के हर, हित के रक्षक हो तुम, उनके दोषों और पापों, के भक्षक हो तुम। घोर पापी भी तेरी, शरण आ गए, तेरी दृष्ट...
कालो के काल महाकाल
भजन, स्तुति

कालो के काल महाकाल

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** कालो के काल महाकाल शिव भोला महान महाकाल महिमा अपरंपार। आज महाशिवरात्रि आई। संग अपने अति उल्लास उमंग लाई। भारत-भू पर शिव भोले अवतरित हुए। हम सब भारतीयों के उर अपार हर्षाए। जन-जन के घट-घट में शिव समाए। हर भक्त शिव भोले। ओम नमः शिवाय की रट लगावे। सबही भक्त भोर से रात्रि तक। शिव भोले का जाप करें। शिव भोले भक्तों का कष्ट हरे। हर पल शिव भोले को सम्मुख पावे। सकल भारत वायुमंडल शिवमय बनावै। मंदिर-मंदिर, घर-घर घंटा-घंटी ध्वनि बाजे। शिव भजन-कीर्तन कर्णप्रिय मन भावे। भांग, धतूरा, आंकड़ा, बेलपत्र। दूध भक्त चढ़ावे। शिव भोले भक्तों के लिए संदेशा लाए। सभी भक्त अपने अंतस भरे। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। विकार तज विकारमुक्त पावन। जीवन बना, शिव भोले को पावे। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश ...
देवों के देव
भजन

देवों के देव

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देवों के देव तुम कहलाए, हे शिव भोले भंडारी। फूल पत्ते में आप खुश हो जाते, पुजा करे नर-नारी।। आज आपकी पावन है त्यौहार, जाते हैं सभी शिव के द्वार। कष्ट निवारण दु:ख हर्ता वो, खुशियां मिले हजार।। ब्रम्हां विष्णु तेरी महिमा गाए, तन-मन में बसे रहो तुम हरदम। क्या कहे भोलेनाथ जी, आप हो सत्यम शिवम् सुन्दरम।। शिव की शक्ति शिव की भक्ती , शिव की महिमा अपार। शिव ही करेंगे हम सभी, का सुन्दर बेड़ा पार।। जय हो जय हो शिव शंकर, जय हो भोलेनाथ की। चल रें कांवरिया शिव के, नगरिया जय हो बाबा अमरनाथ की।। कहाॅ॑ मिलेगा मथुरा कांशी, कहॉ॑ वृंदावन तीरथ धाम। घट-घट में तो शंकर भोले जी विराजे, शीश झुकाकर डोमू कर लो सादर प्रणाम।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्त...
चल-चल
कविता

चल-चल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जब मैंने शुरू किया अपनी ओर से कुछ हलचल, तुरंत लोगों ने कहना शुरू किया यहां से चल चल, हां बिल्कुल चलना तो है, इस सड़ांध भरे माहौल से निकलना तो है, अभी तक हमें कोई और चलाता था, पल पल हमारे अहम को चोट पहुंचाता था, ले दे के चलके कुछ आगे आ पाये हैं, कुछ अपनों को सच्चा इतिहास बता पाये हैं, तुम्हारी अगुवाई में अब तक केवल लानत, मनालत, जहालत ही झेलते आये हैं, खुद से खुद को ढंग से नहीं मिला पाये हैं, अब खुद को जान रहे हैं तब भी तुम्हें परेशानी है, ये तुम्हारी सोची समझी साजिश है नहीं कोई अनायास वाली नादानी है, अब जब तक अपनों के अंदर न आ पाये आग, अपने जब तक न जाये जाग, तब तक आप बोलते रहो चल चल, हम अपने हक़ हुक़ूक़ के लिए चलते रहेंगे पल पल, तो जागृति पहल जारी है, ये हमारे भविष्य के लिए तैयारी है। ...
काश! मैं भी स्कूल जा पाती…
कविता

काश! मैं भी स्कूल जा पाती…

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** स्कूल जाते हम उम्र बच्चों को, अपलक निहारती बर्तन माँजती मुनिया, मन ही मन ये सोचे, काश! मैं भी स्कूल जा पाती ... होते जो मेरे अम्मा-बाबा, न होती आज ये लाचारी। मैं भी जा पाती स्कूल, लिए किताबें पहने ड्रेस प्यारी। रोज नया कुछ सीख जाती, सखियों से भी मिल पाती। मन लगाकर मैं पढ़ती, आगे-आगे मैं बढ़ती। पढ़-लिखकर कुछ बन जाती, जीवन बेहतर कर पाती। मिलता जो मुझको मौका, अंबर को भी छू जाती। काश! मैं भी स्कूल जा पाती... परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
हे शिव परमेश्वर
भजन, स्तुति

हे शिव परमेश्वर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी हे शिव परमेश्वर प्रभु अर्ध नारीश्वर अखिलेश्वर स्वयम्भू माँ काली समाई है धारे सर्प आभूषण अवतारे नीलकंठ विषपान करके ये संसार उद्धारे हैं भिक्षापात्र हाथ थामे अन्नपूर्णा माँ के द्वारे भक्तन कल्याण हेतु त्रयम्बक ठाड़े हैं त्रिलोकी त्रिनेत्री देवा स्वीकारते भोले सेवा हर हर महादेव रामजी पुकारे है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी म...
हे! औघड़दानी
भजन, स्तुति

हे! औघड़दानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** औघड़दानी, हे त्रिपुरारी, तुम भगवन् स्वमेव। पशुपति हो तुम, करुणा मूरत, हे देवों के देव।। तुम फलदायी, सबके स्वामी, तुम हो दयानिधान। जीवन महके हर पल मेरा, दो ऐसा वरदान।। आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता, शिव, शंकर महादेव। नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम, हो देवों के देव।। तुम हो स्वामी,अंतर्यामी, केशों में है गंगा। ध्यान धरा जिसने भी स्वामी, उसका मन हो चंगा।। तुम अविनाशी, काम के हंता, हर संकट हर लेव। भोलेबाबा, करूं वंदना, हे देवों के देव।। उमासंग तुम हर पल शोभित, अर्ध्दनारीश कहाते। हो फक्खड़ तुम, भूत-प्रेत सँग, नित शुभकर्म रचाते।। परम संत तुम, ज्ञानी, तपसी, नाव पार कर देव। महाप्रलय ना लाना स्वामी, हे देवों के देव।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्ष...
सरस्वती वंदना
भजन, स्तुति

सरस्वती वंदना

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** वंदन करूं..... मात सरास्वती तेरी महिमा का गुणगान करूं। वंदन करूं...... गुण पूरित वेद पुराण पति, तेरी महिमा का मैं बखान करूं। वंदन करूं..... हे बागेश्वरी माता कमलासिनी रज तेरी सर माथ धरूं। शोभा निज वृहद विसद हो माता, जब भी तेरा ध्यान करूं। करुणा की देवी ज्ञान मई, तेरा हरक्षण सम्मान करूं। वंदन करूं....... तेरी ही कृति हूं हे मां भारती तुझसे ही नित पूरित हूं। तेरी ही वाणी है ये माता, मैं बस तुझको ध्याती हूं। मन व्याकुल जब भी हो माता, ब्यूहल सी तेरी राह तकूं। वंदन करूं..... मात सरास्वती तेरी महिमा का गुणगान करूं। वंदन करूं..... परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हमारा भी जमाना था
कविता

हमारा भी जमाना था

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीढ़ी देखे चरम बदलाव, चिंता बिन अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। बिन शर्म संकोच बचपन में, पैदल साइकल जो हुआ। दूर-पास विचार नहीं संग, मां पिता गुरु ईश दुआ। चला करते पीढ़ी के रिश्ते, चाचा मामा बहन बुआ। ढपोरशंख पदवी से दूर, प्रतिशत उच्च अंक छुआ। बिना शरम इगो पुस्तकों का, क्रय विक्रय ठिकाना था। परिवार सहयोग में कितनी, लाइन में लग जाना था। अपनी पीढ़ी चरम बदलाव, बिन चिंता अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। प्रभु प्रलोभन मिठाई का, कम मेहनत विनय करते। पढ़ाई खर्च का बोझ वहन, कभी उजागर ना करते। सिलवटी ड्रेस सस्ते खेल से, जमकर खुशियां पा लेते। कंचा भौंरा पिट्टुल कौंडी, लूडो चेस चला करते। जरा सी पॉकेट मनी बचे, अन्य शौक भी पाना था। घर का मुरमुरा चूड़ा भेल, अपना शौक पुराना था। अपनी पी...