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पद्य

मिलकर नीर बचाना होगा
कविता

मिलकर नीर बचाना होगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर नीर बचाना होगा, वरना पछताओगे। वसुधा छोड़ नीर पाने को, और कहाँ जाओगे। नित धरती का दोहन करके, इसको व्यर्थ बहाते। कमी दीखती जब पानी की, तब क्यों तुम पछताते। रखें सहेज सदा पानी को, इसकी कीमत जाने। पानी है हम सबका जीवन, कीमत भी पहचाने। धीरे-धीरे कभी इस तरह, होगी गर पानी की। प्यासे, बिना नीर आएगी, याद तुम्हें नानी की। जितनी पड़े जरूरत हमको, इतना पानी ले लें। वरना सूख जाएंगी पल में, सबकी जीवन बेलें। पानी है अनमोल खजाना, मिलकर ऐसे सहेजें। मानव कर प्रयत्न पी लेगा, कहां जानवर भेजें। दिन दूनी और रात चौगुनी, गर्मी बढ़ती जाती। जलस्तर घट रहा निरंतर, धरती सूखी जाती। पशु पक्षी बेचैन भटकते, जहां नीर पाते हैं। बाजी लगा जान की अपनी, वहीं चले जाते हैं। अब गर्मी तन बदन जलाती, पीड़ा सही न...
हनुमत्कृपा
छंद

हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** अगर पाया झुका तू सिर, तो हनुमत रीझ जाएंगे। तेरी भक्ति का फल परिवार, कुल सब लोग पाएंगे। अगर पाया झुका .... बहुत ही सरल है हनुमत, तुझे बस शरण आना है। मिटाकर भाव कर्ता का, निमित बस बनते जा है। तेरी कष्टों से रक्षा कर, लाज अपनी बचाएंगे। अगर पाया झुका ... विभीषण ने किया सहयोग, तो स्वामी से मिलवाया। ज्यों ही आया शरण मे, तो तुरत लंकेश बनवाया। जो गुण धारण को आतुर हो, उसे खुद सा बनाएंगे। अगर पाया झुका .... समर्पण और सेवा भाव के, पर्याय हैं हनुमत। पकड़ पाए कोई चरणों को, तो हो जाते हैं सहमत। जो भी निष्काम भक्ति, कर सके, मुक्ति दिलाएंगे। अगर पाया झुका ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
डॉ. भीमराव अम्बेडकर
कविता

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बुद्धि से तेज विचारों से श्रेष्ठ ज्ञान में ज्ञानी सहनशीलता की मिशाल जला दी जिसने अलख ज्ञान की आओ करें नमन उस महान ज्ञानी को किताब, कलम को बना ढाल छा गए जो महान करोड़ों दिलों पर जिसका राज रख नारी को संग दिला कर महिलाओं को शिक्षा का अधिकार बने नारी रक्षक गरीबों वंचितों को दिया उठा समानता का पढ़ाया पाठ सहकर कठोर यातनाएं रख शिक्षा को आगे आम से बने खास लिख दिया जिसने संविधान कहलाए वे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर नमन मातृभूमि के लाल को। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड स...
हर पल नयी लगती है तू
कविता

हर पल नयी लगती है तू

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** हर पल कुछ नये से सुहाती रहती है तू नये सिरे से दिल को यूँही लुभाती है तू नयी नवेली दुल्हन जैसी सजती है तू नया कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा देती है तू... लड़ने की प्रेरणा बनकर खड़ी है तू दुनियादारी के मायने समझाती है तू व्यस्त रहने के फायदे सिखाती है तू व्यवहार से वास्ता भी जताती है तू... बुराई से भी कभी-कभी टकराती है तू हौसला-अफजाई की मशक्कत करती है तू डटकर चलना भी बताती रहती है तू हमसफर बनके चलना जानती है तू... खुद का अन्दाज बनाने को उकसाती है तू औरों के लिए जीने का अवसर देती है तू विधाता की भेंट खुशनुमा रहती है तू जिन्दगी हर पल नयी उम्मीद जगाती है तू... परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्य...
मतलबी
कविता

मतलबी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैंने जहां देखा, मैंने तहा देखा। लोग मुझसे जुड़े बस मतलब के लिए, न मेरे विचारों के लिए न मेरे लिए। जो भी मुझसे मुस्काया किसी न किसी, मतलब के लिए फरेब के लिए। न की अपनेपन के लिए हसीन आंखों ने मुझे भी तका पर न प्रेम के लिए न वफ़ा के लिए बस एक चलते-फिरते हमसफर के लिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
बनी पाँव में बेड़ी पायल
गीत

बनी पाँव में बेड़ी पायल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बनी पाँव में बेड़ी पायल, अब सिंदूर उदास। सभा मध्य रो रही द्रोपदी बस कान्हा ही आस।। पाँचों पति हो मौन देखते, चीर हरण का घात। दुष्ट दुशासन भूल चुका है, परिणामों की बात।। सभा मौन बैठी है सारी, टूटा है विश्वास। नारी को संपत्ति समझ कर, खेला चौसर दाँव। धर्मराज भी सबकुछ हारे, बचा नहीं हैं ठाँव।। बलि चढ़ती सब अधिकारों की, बस आँसू हैं पास। लक्ष्मण रेखा लाँघी सीता, हरण हुआ तत्काल। सदियों से है पीड़ा सहती, लिखा यही बस भाल।। देवी चंडी दुर्गा मानें, फिर क्यों देते त्रास। संस्कारों को भूल गये सब, खोयी है पहचान। लूट रहे हैं सतत उसे ही, करते नित अपमान।। सभी युगों की यही कहानी, बीते दिन अरु मास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सु...
गाँव
दोहा

गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगें, लगतें नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ह...
जकड़न
कविता

जकड़न

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ बंधा है, पांव बंधा है और बंधा मस्तिष्क, चुन सकते नहीं प्रेयसी कैसे लड़ाएं इश्क़, हाथ काम तो कर रहे पर किसी और का, पांव थिरक जा रहा किसी के रोकने से, मस्तिष्क दूसरों के डाले डाटा अनुसार चल रहा है, दरअसल यह मानसिक गुलामी के जकड़न का असर है, समाज और समाज के लोगों से दूर रहने का असर है, जिस हथियार के दम पर नौकरी पाया, रुतबा पाया, उसे भूल धुर विरोधी को गले लगाया, सालों साल लोगों को बहकाया, तो समाज की चिंता अब क्यों? अब कोई तवज्जो दे तो क्यों? मनन जरूर कीजिए। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
वर्ण पिरामिड
कविता

वर्ण पिरामिड

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ण पिरामिड ॐ शिव ओंकार निराकार परमेश्वर त्रयम्बकेश्वर करो विश्व उद्धार हे शंभू त्रिचक्षु संकटी भू कल्याण कुरु बजादो डमरू करो तांडव शुरू ओ रुद्र शंकर विश्वेशर ओंकारेश्वर महाकालेश्वर आओ परमेश्वर परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
एक नन्हीं परी
कविता

एक नन्हीं परी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीले बादलों के रथ पे सवार झिलमिल तारों की पीछे है कतार चाँद की चांदनी दे रही बिदाई रिमझिम बूंदों ने शहनाई बजाई एक नन्हीं परी आँगन में उतरी उषा की लाल किरणें ज्यों बिखरी महके कनेर जुही चंपा हरसिंगार हर द्वारे झूमते देखो वंदनवार चाची ने रंगीली रंगोली सजाई ढोलक की थाप पे सोहर गवाई आरती भुआ ने खूब उतारी दादी ने काजल की बिंदी लगाई ठुमक ठुमक कर चलने लगी गुड़िया सजने अब लगी ख्वाबो की दुनिया तोड़ हदे सारी भरो ऊँची उड़ान माँ और बाबा ने कर दिया ऐलान गुड़िया ने सोची अंतरिक्ष की सैर या जा विदेश मनाऊँ अपनी खैर बाबा ने बोला पंख हमने दिए राहे मिल जाएगी पर ज़रा होले होले बुलन्द हौंसलें संजोए दिल में सात सुर गुंजाती पैजनियाँ ख़ामोश जय हिंद सेना में सरहद पे जा डटी नहीं हूँ बेटे से कम मैं...
संयम से हम
कविता

संयम से हम

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** संयम का हथौड़ा और अपनी विवेक की छैनी के साथ करते रहे कार्य बहुत बड़ा परिवर्तन भी ला सकते हम और आप।। जरा से धैर्य की हो बात तराश सकते हैं स्वयं को हम किसी हीरे की तरह ईश्वर से प्रदत्त हैं ये गुण संयम से हैं हम और आप।। हमको ज़रूरत संयम की अपने कर्म के हथौड़े से किया जब समय पर वार असंभव नहीं रहा कुछ भी जीवन में आया हर्ष अपार ।। हुए जो संयमित हम जीवन में उपकृत होंगे ईश्वर के समक्ष होंगे उस अनुकंपा के अधिकारी संयम से ही हम और आप ।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
कुछ लोग दीवाने होते हैं
कविता

कुछ लोग दीवाने होते हैं

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ लोग दीवाने होते हैं विरले अन्जाने होते हैं राष्ट्र -धर्म के लिए जिन्हें नव-राह बनाने होते हैं उनको धन की कुछ चाह नहीं कुछ जीवन की परवाह नहीं पा सका न कोई थाह कभी सागर मस्ताने होते हैं सारा जग उनका अपना है पर स्वदेश पहला सपना है मातृभूमि-भाषा पे मिटकर कुछ अलख जगाने होते हैं छोड़ दिया घर-बार जिन्होंने पाया सबका प्यार उन्होंने कुल-वंश में नहीं बधें जो- अभिनव-पहचाने होते हैं नींद नहीं जिनको प्यारी है बस-करने की तैयारी है सबसे प्रिय सबसे अलग- कुछ मन में ठाने होते हैं चलते रहते नई राहों पर रोते हैं जग की ऑहों पर सुख-दुःख में जिनके कर्म- सदा - पहचाने होते हैं ना सोचें क्या राह कठिन है ना जानें क्या बात कठिन है देश-राह में चलने वाले- अद्भुत सैलाने होते हैं परिचय :-  बृजेश आनन्द राय नि...
हाला
कविता

हाला

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कौन फ़िज़ा में घोल रहा, गरल भरा ये प्याला यूँ। नस-नस में क्यूँ दौड़ रही, मधुशाला की ये हाला यूँ? घर का दिया ही बुझने लगा, करके घर को काला यूँ। उसको पिला दे साक़ी ज़रा-सी, छोड़ के मेरे वाला यूँ॥ आँख में आकर बैठ गया, मदिरा का ये नाला यूँ। फूट रहा न जाने कब से, अश्रु का ये छाला क्यूँ? झुलस रहा है उपवन मेरा, फूल सुगंधित मतवाला यूँ। गंध लगे दुर्गंध उसी को, जब जाता मदिरा में डाला यूँ॥ वेशबदलकर कौन यहाँ, आया ओढ़ दुशाला यूँ। उजली चादर मैली करने, बुनता कोई जाला क्यूँ? यौवन की मादकता से, रोई गुल की माला क्यूँ ? चूर नशे में सोच किसी की, बली चढ़ी कोई बाला क्यूँ? अच्छी बातें नहीं सुहाती, बुरी को जाता पाला क्यूँ? नशे ने किया है नाश सभी का, नशे को सबने न टाला क्यूँ? परिचय :-  ललिता शर्म...
तू कापुरुषों का पूत नहीं
कविता

तू कापुरुषों का पूत नहीं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** चलने से पहले तय कर ले, दुर्गम पथ है अँधियारों का। हे वीर व्रती ! तब बढ़ा चरण, होगा रण भीषण वारों का।। यह भी तय है तू जीतेगा, शासन होगा उजियारों का। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। नदियाँ लावे की बहती थीं, जिनकी शुचि रक्त शिराओं में। जो हर युग में गणनीय रहे, धू-धू करती ज्वालाओं में।। तू उन अमरों का अमर पूत, आर्यों की अमर निशानी है। तेरी नस-नस में तप्त रक्त, पानीदारों का पानी है।। हे सूर्य अंश अब दिखा कला, कर सिद्ध शौर्य टंकारों का। दुनिया बोलेगी जयकारे, दिल दहल उठेगा रारों का।। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। तेरी जननी की हरी कोख, करुणा की तरल पिटारी से। अवतरण हुआ है हे कृशानु! तेरा बुझती चिनगारी से।। हे हुताशनी पावक सपूत! बलधर अकूत...
सपनों का महल
कविता

सपनों का महल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैंने कभी संजोए सपने सपनों में खो, खो कर कई महल ढहाये मैंने सपनों में बना-बना कर। आया कोई दूर गगन से तारांगणो का व्युह करो आंगन को दीप्त मेरे समा गया पुनः सपनों में। भर-भर पूंज उलिचा मैने सपनों के दोनों से गति प्रकाश की देखी मैंने कोसो, मिलो थी जो दूर मन बावरा उड़-उड़ जाता गवर्नर क्षितिज से दूर। यह पर्वतों की हरियाली वृक्षों की ऐ छाया शाख-शाख पर क्यों पुकारे पी-पी पपीहा गान। सपनों में जो मंजर देखा देखा स्वयं को चहकते हुए आंखें खुली तो न था पर्वत न हीं उलिचा गया कोई पुंज। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...
हनुमान जन्म
भजन, स्तुति

हनुमान जन्म

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** चैत्र मास पूर्णिमा आई, हनुमान जन्मोत्सव अपने संग लाई। हम सबके उर में अपार आनंद पाई, चहुंओर हर्ष की लहर छाई। हम सब हनुमान जन्मोत्सव धूमधाम से मनाई। हे!हनुमान तेरे दर्शन को नैना तरस गए, हे!पवन पुत्र हनुमान। आज भारत भू जन्मे हो। हे! राम भक्त हनुमान, तुम्हें हम करबद्ध हो सादर करें प्रणाम। सबहि भक्त तेरे चरणों में लिपट जाए। हे!पवन पुत्र तुम तो शंकर अवतारी हो। अंजनी लाल हो जग के तुम, तेरी महिमा अति न्यारी, निराली अनंत। तुम सूरज निगल बजरंगी कहलाए हो। लंका जला सीता सूचना लाए, लक्ष्मण प्राण बचाने, पूरा पर्वत उठा लाए। हम सब तेरा गुणगान करें। ऐसा वरदान दो। घर-घर तेरा नाम करें, दुष्ट दलन तुम कहलाए, भक्तों के कष्ट हरने आए हो। दो शक्ति हमें इतनी अपार, हम तेरी सेवा निस्वार्थ भाव से कर पाए...
अजर-अमर हैं अंजनि नंदन
भजन, स्तुति

अजर-अमर हैं अंजनि नंदन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बुद्धिमान तुम महाबली हो, ज्ञानी गुणी कहाते। स्वर्ण शिखर-सी देह आपकी, बजरंगी कहलाते। ज्ञान गुणों के सागर हो तुम, अतुलित बल तन भरते। रामदूत कहलाते हो तुम, कष्ट सभी के हरते। पवन पुत्र, हनुमान हठीले, पवन वेग से जाते। रक्त वर्ण फल समझ सूर्य को, पलभर में खा जाते। अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, बल बुद्धि विद्या देते। भय-बाधा, पीड़ा जीवन की, पल भर में हर लेते। अजर-अमर, तुम अंजनि नंदन, दूर करो मम पीड़ा। करने खोज, जानकी जी की, लिया आपने बेड़ा। ह्रदय आपके राम सिया हैं, राम दूत बजरंगी। संकट मोचन, कुमति निवारक, सदा सुमित के संगी। तेजपुंज महावीर आपको, सीताराम हमारी। सेवा भाव देख हनुमत का, स्वयं राम बलिहारी। दुर्गम काज जगत के जितने, सभी सुगम हो जाते। पाते हैं बैकुंठ, भक्त जन, जो हनुमत गुण गाते...
संकल्प
कविता

संकल्प

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तपस्विनी की सुता भला, तप में विश्राम क्या पाऊंगी। प्रतिदिन नव कोपल सम ही मैं, आगे बढ़ती ही जाऊंगी। हरक्षण जो कष्ट लिए उर में, मैं उस वसुधा की जाई हूं। हो आदि पुरुष भी नतमस्तक, ऐसी शक्ति बन आई हूं। क्यों लक्ष्य नहीं मैं पाऊंगी, ना पीछे कदम हटाऊंगी। बाधाओं से लड़ जाऊंगी, निज स्वत: ढाल हो जाऊंगी। गर मार्ग बिना कंटक के हों, मंजिल में प्रीत न पाऊंगी। बिन बाधाओं के प्राप्त हुआ, वह लक्ष्य नहीं अभिशाप हुआ। जितनी ही असफलता आए, उतना ही कदम बढ़ाऊंगी। हरगिज भी ना अकुलाऊंगी, एक दिन मंजिल पा जाऊंगी। परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
राम नवमी
भजन, मुक्तक

राम नवमी

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** प्रभू राम के अवतरण का दिवस है, था उद्देश्य क्या ये जगत को बताओ। प्रभू नाम पावन है गंगा के जल सा, जपो इसको और जग से मुक्ति को पाओ। प्रभु राम के... प्रभू ने मनु को वचन ये दिया था, मैं बन पुत्र आऊंगा घर मे तुम्हारे। धरा को प्रभू ने वचन ये दिया था, हारूँगा तेरा भार राक्षस संघारे। वचन को निभाकर दिया ये संदेसा, वचन जो दिया है उसे तुम निभाओ। प्रभू राम के ... ऋषि श्राप को मान देने के हेतु, रची लीला, सीता हरण थे कराये। विरह में बिलखते फिरे वो बनो में, तो हनुमंत ले जाके स्वामी मिलाये। दिया वचन उसको तेरा दुःख हारूँगा, और तुम खोज सीता को मैत्री निभाओ। प्रभू राम के... प्रभुनाम उच्चार हनुमत गए तो, हरी माँ की पीड़ा, और लंका जलाये। चले रामजी साथ बनार और भालू, थे नल नील लिख "राम" सेतु बनाये। दिए कई अवसर पर दंभी ...
हारते हुए मन को समझना
कविता

हारते हुए मन को समझना

काजल कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** ये जिंदगी है मेरे दोस्त, बहुत आजमाएगी। जो चाहा नहीं कभी, वो भी करवाएगी ।। पर मतलब नहीं इसका, हम हारकर बैठ जाएं। कोशिशें छोड़ दें, खुद को समझाकर बैठ जाएं ।। अभी तो सफर लंबा है, बहुत दूर जाना है। जो रूठे हैं रास्ते उनको भी मनाना है ।। मत सुना करो उनकी जो रास नहीं आते । इंतजार उनका कैसा ..... जो इंतजार का अर्थ नही जानते ।। हर कोई हमें प्यार करे ये हमारे बस में नहीं । पर हम सबको प्यार दें, बेशक हमारे बस में है ।। हां, टूटी चीजें चुभती हैं, बहुत सताती हैं। मन की उदासी का बवंडर ले आती है ।। घुट-घुट के हम खुद में सिमट से जाते हैं । चाहकर भी इससे निकल नही पाते हैं ।। इसलिए खुद को ऐसा बनने मत देना । बेवजह आसुओं को बाहर निकलने मत देना ।। कह दे कोई खुदगर्ज तो चुपचाप सुनना । पर हमदर्द हमेश...
रामभक्त हनुमान जी
स्तुति

रामभक्त हनुमान जी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** चिरंजीवी परमभक्त, भगवान राम के अनन्य सेवक बजरंगबली हनुमान जी का जन्मोत्सव आज है जिसे दुनिया उनके बारह नामों हनुमान, अजंनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुण सखा, पिंगाक्ष, अमित विक्रम, उदधि क्रमण सीता शोक विनाशन, लक्ष्मण प्राणदाता, दशग्रीव दर्पहा से जानती, पुकारती है रोज प्रातः काल इन नामों का जाप करती है। तुलसीदास जी ने जिसे विज्ञानी बताया जिनके विज्ञान ज्ञान से, दुनिया आज भी हैरान है। लंका दहन के लिए रावण की सभा में पूंछ को बढ़ाते जाना अशोक वाटिका में मां सीता के सामने अपने लघु और विशालकाय रुप दिखाना विशालकाय समुद्र के पार जाना विज्ञान ही तो था जिसे रामकथा वाचक मुरारी बापू विश्वास का विज्ञान मानते कहते हैं लंका मे सीता जी की खोज, संजीवनी बूंटी लाकर, लक्ष्मण की प्र...
ज़िम्मेदार कौन
कविता

ज़िम्मेदार कौन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कहीं ट्रक से ट्रक टकराता है, कहीं कोई बिना ब्रेक की गाड़ी दौड़ाता है इनका परिणाम हादसा होता है इनका ज़िम्मेदार कौन होता है? कहीं शराबी ड्राइवर ट्रक चलाता है कहीं बिना लाइसेंस के वैन भगाता है कभी स्कूल बस अनफ़िट होती है ये सब हादसों के शिकार होते हैं इनका ज़िम्मेदार कौन होता है कभी ८० की रफ़्तार मासूमों की जान लेती है कभी ओवरलोडेड ट्रक पलट जाता है कहीं गड्ढे गाड़ी उछालते हैं प्रति दिन हज़ारों जानें जाती हैं कोई मोबाइल के चलते गाड़ी चलाता है कोई असावधान हो जाता है लगातार गाड़ी चलाचला कर किसी की नींद पूरी नहीं होती ये सब कइयों की मौत से खेल जाते हैं इन सबका ज़िम्मेदार कौन होता है? ज़रा सोचें, ज़रा समझें, इनमें से कोई कारणों के ज़िम्मेदार हम स्वयं होते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : ...
हे ! महावीर
कविता

हे ! महावीर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** महावीर कल्याणक तुमने दिया अहिंसा-गीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। राजपाठ तुमने सब त्यागा, करने जग कल्याण। हिंसा और को मारा, अधरम को नित वाण।। जितीन्द्रिय तुम नीति-प्रणेता, तुम करुणा की जीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। कठिन साधना तुमने साधी, तुम पाया था ज्ञान। नवल चेतना, उजियारे से, किया पाप-अवसान।। तुमने चोखा साधक बनकर, दिया हमें नवनीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। नीति, रीति का मार्ग दिखाया, सत्य सार बतलाया। मानवता के तु हो प्रहरी, रूप हमें है भाया।। त्यागी तुम-सा और न देखा, खोजा बहुत अतीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। भटक रहा था मनुज निरंतर, तुमने उसको साधा, महावीर तुम, इंद्रिय-विजेता, परे भोग की बाधा।। कर्म सिखाया, सदाचार भी, तुम हो भावातीत। तुम हो म...
दूर कहीं अब चल
कविता

दूर कहीं अब चल

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** राहत के दो पल आँखों से ओझल। रोज लड़े हम तुम निकला कोई हल ? न्यौता देतीं नित दो आँखें चंचल। झेल नहीं पाए हम अपनों के छल। भीड़ भरे जग से दूर कहीं अब चल। मौन तुझे पाकर चुप है कोलाहल। कितने गहरे हैं रिश्तों के दलदल। है आस मिलेंगे ही आज नहीं तो कल। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
सम्राट अशोक
कविता

सम्राट अशोक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिंदुसार के पुत्र आपने एकछत्र साम्राज्य बनाया था, देश तो देश विदेशों में भी अपना लोहा मनवाया था, देख लहू की धार, अपने मन को विचलित पाया था, मन की शांति पाने खातिर बुद्धत्व को अपनाया था, लाखों स्तूप और शिलालेख धम्म के लिए बनाया था, हिंसा त्यागा अहिंसा अपनाया, खुद का मन निर्मल बनाया, आपने ही अथक प्रयत्न कर बुद्ध राह सहेजा था, पुत्र महेंद्र पुत्री संघमित्रा को समुद्र पार तभी तो भेजा था, शिक्षा लेने दुनियाभर से हर वर्ष हजारों आते थे, शिक्षा के संग शासन सुमता की बातें लेकर जाते थे, अशोक चक्र और चार शेर चिन्ह को देश ने यूं ही नहीं अपनाया है, विदेशियों ने अपने ग्रंथों में महान अशोक के निर्भीक शासनकाल का गुण गाया है, लड़ना नहीं है हमको अब तो मिलकर एक हो जाना है, अपना राज लाकर फिर से प्रियदर्शी का ...