Monday, March 10राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

धुन
कविता

धुन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम थिरक रहे हैं उनके भक्ति भरे धुनों पर, हम गर्व कर रहे हैं उनके बनाये नमूनों पर, तांडव, विरह, विवाह, मिलन सारे के सारे धुन उनके, सत्ता, ताकत, धमक है जिनके, हमारे धुन है बेबसी के, मदहोशी के, खामोशी के, लाचारी के, दुत्कारी के, चित्कारी के, मनुहारी के, बदहाली के, कंगाली के, सामाजिक दलाली के, पता नहीं कब रच पाएंगे धुन, समता के, ममता के, टूटती विषमता के, न्याय के, इंसाफ के, अत्याचारियों के पश्चाताप के, सम्मान के, संविधान के, ज्ञान के, विज्ञान के, देश के विधान के, एक-एक अनुच्छेद के संज्ञान के, तैयार करने ही होंगे एक ऐसा धुन जिससे थिरके सारा देश, भूला के सारा द्वेष व क्लेश, जिसमें से न आए धर्म व जातिय गंध की कर्कश आवाज, हमें रचना होगा, सृजना होगा ऐसा साज। परिचय :-...
उत्तराधिकारी
कविता

उत्तराधिकारी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वयं का उत्तराधिकारी चुनना क्यों जरूरी हुआ क्या वंश परंपरा ही है उत्तराधिकार की परिभाषा??? कितने प्रश्न कितने ऊबाल हैं मन के भीतर चिन्तित हो रहे विचार अपनी दिशाओं से मुक्त होकर स्वार्थ को कर्तव्य समझ कर ! किसको दूँ इस पथ को, संरक्षित कर निरंतर बढ़ने का संदेश किस सत्य से उजागर करूँ अपनों से अपने होने का अधिकार?? कर्म-धर्म, करुणा के संरक्षण से, चुनना चाहता हूँ एक ऐसा पथिक जो संघर्ष की शपथ ले जीवों के उद्धार का सृष्टि को संवारने का, उसका कर्ज चुकाने का जाने कैसी विडंबना है, नकार नहीं सकता बोझ से भरे रिश्तों को क्यों ढ़ो रहे हैं इन्सानियत को जिंदा लाशों की तरह आजकल हवाओं में कुछ जहर सा फैला हुआ है रक्त में समा जाने का डर है इसे, कैसे दूर करूँ इसका ये कसैलापन इस जीवन से क्या परिण...
पहला प्यार
कविता

पहला प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र आँखों की खोया प्यार ढूंढने में बीत जाती खोजता मन मजनू बन प्रकृति की बहारों में मुलाकाते होती थी गवाह बने वृक्ष तले डालियों पकड़े इंतजार पावों के छालों की परवाह फूलों को भी थी फूलों ने बिछाए कारपेट बहारें फिर छा गई मगरअब तुम खो गई सोचता हूँ क्या इश्क भी बूढ़ा होता ? शायद कभी नहीं पहला प्यार हमेशा जवान होता यादों के सहारें। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेख...
चांद कहवा छुपल
आंचलिक बोली, कविता

चांद कहवा छुपल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। दिल के दरवान दिल के दरद ना बुझे। नीर अखियां के गिरल त सब बह गईल।। जेके अखियां के पुतरी बनवले रहीं। उ बदल जायी अइसे खबर ना रहे।। आसमां के परी जिनके जानत रहीं। छोड़ अइसे दिहें तनिको डर ना रहे।। इहे जीवन के असली सच्चाई बा हो। नाहीं मुहवा खुलल बात सब कह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। बनके परछाई जे हमरा साथे चलल। आज ओही के रहिया निहारत बानी।। जे सजावल सनेहिया के संसार के। का भईल अब कि उनके बिसारत बानी।। सात सूर जेके आपन बनवले रही। बेसुरापन के फिर भी झलक रह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। सुख के सपना देखल आज सपना भईल। जान जायी की रही बा फेरा लगल।। आस के जो जरवनी दीया बुझ गईल...
बेटी के दुश्मन
कविता

बेटी के दुश्मन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पापी, कामुक बने भेड़िए, नहीं सुरक्षित बालाएं। नीच, अधर्मी, पापाचारी, पहने फिरते मालाएं। घर में नहीं सुरक्षित बेटी, यही शिकायत जन-जन से। जिंदा नोंच रहे हैं उस को, जो अबोध है तन-मन से। जीभ काट लो हत्यारे की, पापी अत्याचारी की। जिसने दशा बना डाली है, कामुक हो, बेचारी की। हाथ काट कर करो निहत्था, दुष्टों और जाहिलों को। करो समूल नष्ट असुरों को, मामा सभी माहिलों को। जनम जनम तक पुश्तें रोयें, पापी और अधर्मी की। सात जनम तक रहें पीढ़ियाँ, जेलों बीच कुकर्मी की। फूल सरीखी नव वाला की, जिसनें दशा बना डाली। उठा खड़ग काटो गर्दन को, बन करके दुर्गा काली। गर मजबूर रहेगी बेटी, कामी, पापाचारी से। स्वयं खून के घूँट पिएगी, सामाजिक लाचारी से। दफना दो जमीन में उनको, जिनके मुँह पर हैं ताले। गौर वर्ण दिखत...
उन्नति का पथ
कविता

उन्नति का पथ

नीलम तोलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उन्नति का पथ, शायद वृत्ताकार या शायद त्रिभुज जैसा होता है। जितनी तेजी से आगे बढ़ो, उतनी ही तेजी से, लौट आना होता है। उत्कर्षो का सुख होता है... अनित्य! हर बार एक नूतन उड़ान, एक नव संघर्ष, एक नए आकाश की खोज, रुकने नही देती कहीं... तृष्णा के बीज पनपते है... निरंतर... चित्त भीतर... अनेक जीवन और अनेक मृत्यु के बीच.. संतुष्टि विकलती है, अनुकूल मिट्टी और मन के मौसम को, शायद कोई बुद्ध, शायद कोई कबीर, कोई यीशु या राम मिले.. कि चेतना अग्रसर हो.. एकांगी निर्वाण पथ पर.. शायद कभी... परिचय :- नीलम तोलानी निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
हिंदी प्रेमियों का बस तुमसे इतना कहना है
कविता

हिंदी प्रेमियों का बस तुमसे इतना कहना है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** अंग्रेजी में लिखकर दुनिया को समझाना भैंस के आगे बीन बजाना ही तो है... हमने जब भी उजले पन्नों पर कोई बात लिखी वो बात लिखी अपनी हिंदी में। जो बात लिखकर हमने दुनिया को समझाई वह बात भी समझाई अपनी हिंदी में। अंग्रेजी में लिखकर दुनिया को समझाना भैंस के आगे बीन बजाना ही तो है, जो बात यहां सबसे जल्दी सबके समझ में आई वो बात आई अपनी हिंद मे। भारत के सर्वोच्च शिखर से जब कोई अंग्रेजी में जनता को बात समझाता है, वह बात कभी समझा नहीं पाया काश वही बात होती समझाई अपनी हिंदी मे। हिंदी हमारा अभिमान है अंग्रेजी बोल कर इसका भारत में अपमान मत करो यारों, भारत की अलौकिक सभ्यता छिपी है अपनी यह हिंदी की जगमगाई बिंदी मे। आधुनिकता में डूबा खुद युवा आजकल अंग्रेजी बोलना अपना सम्मान समझता है, हिंदी की गरिमा क्या होती है भारत...
वादियां बुला रही है
कविता

वादियां बुला रही है

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** वादियां बुला रही है मन को लुभा रही है, देख नजारे वादियों के आंखों में समा रहे हैं, ऊंचे पर्वत गगन विशाल, मेघों के झुंड का प्रेम मिलाप , प्रकृति में बहार फूलों की छाई, गगन चूमते वृक्ष अपार, इंद्रदेव भी तत्पर रहते , हर क्षण वर्षा करते अपार, कल-कल करती नदियां हे देखो, शोर मचा कर गिरती पहाड़, पवित्र करें पावन हे धरा को, हे कठिन राह दुर्लभ है पहाड़, देख नजारा प्रकृति का, जिस प्रकृति को उसने हे रचा? वह कितना सुंदर कोमल, जिस प्रकृति को उसने है रचा, उगते सूरज की पहली है किरण, कंचन सी साड़ी ओढ़े पर्वत, देख नजारा प्रकृति का, वादियां बुला रही हरदम परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी...
कवि हृदय
कविता

कवि हृदय

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कौन कहता है हम कुछ नहीं कौन कहता है हम कहीं नहीं जिंदगी की उदास राहों में जिंदगी की गम भरी रातों में। कोई खोजे हमें भूखे लोगों की बस्ती में हम कहां नहीं हैं, हम वहां नहीं है जहां रसरंग बरसता हो जहां मोह उत्पन्न हो क्योंकि वहां कवि हृदय का स्थान नहीं है।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
ममता भरे आंचल को पहचानो
कविता

ममता भरे आंचल को पहचानो

श्रीमती निर्मला वर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे महिलाओं .... ओ महिलाओं .... ममता भरे माँ के मन और आंचल को पहचानो, सौम्य आवरण से तन-मन संभालो। विष फैल रहा वासना का इन दृश्यों से, अपनी अस्मिता के साथ इस समाज को बचा लो।। हिम्मत है जब इतनी कि धरती से आसमान तक फहराए हैं तुमने परचम, हिम्मत को हिकारत में ना बदलो कि, लाज में डूब जाए नारी का धरम। लाचार ना बनो इतनी कि तन की ही कीमत रह जाए, मन दब जाए इतना कि रिश्तो की बलि चढ़ जाए। तन ढल जाएगा जब, कीमत भी चली जाएगी। रिश्तो की छांव के लिए जिंदगी तरस जाएगी।। रुको .... जरा सुनो इस अर्थ के अंधड़ से बचकर उस मार्ग पर चल दो, जिस मार्ग में तुमने शासन को संभाला है, आसमान में अंतरिक्ष की ऊंचाई को नापा है, कितने 'तुलसी' को महामार्ग दिखलाया है, महापुरुषों की जननी का महाश्रेष्ठ पद पाया है, ...
अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)
छंद

अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** (वीर छ्न्द में आल्हा) अतीक का अन्त जिस प्रयाग की कुम्भ भूमि को, करते थे दो नर बदनाम। रूह काँप उट्ठेगी सुनकर, उनके कर्मों का अंजाम।।१।। जिस फिरोज अहमद का इक्का, रुक जाता था देख ढलान। इसी शख्स की औलादों ने, पाप बाँध कर भरी उड़ान।।२।। जैसी करनी वैसी भरनी, फसलें वैसी जैसे बीज। जैसी कुर्सी वैसी बैठक, जैसी सूरत वैसी खीज।।३।। प्रलयंकारी अत्याचारी, दुखदाई वरदान प्रतीक। दोनों विकट सहोदर युग के, नेता अशरफ और अतीक।।४।। अपराधी बन गए सांसद, और विधायक दोनों डान। था दुर्भाग्य देश का कैसा, दोनों भाई काल समान।।५।। मगर समय ने पलटी मारी, धरती हिली हिला आकाश। दोनों ने ही खुद कर डाला, खुद के घर का सत्यानाश।।६।। लूटमार रँगदारी ओछी, राजनीति छल से भरपूर। काम न आई ज़ब्त हो गई, पाप सनी सम्पदा...
तलाश सच्ची खुशी की
कविता

तलाश सच्ची खुशी की

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** तलाशने चले खुशियां, पर कोसों दूर निकल पड़ी और हुई चूर, जीवन में चकनाचूर सी जीवन की खुशियां मिलने जुलने की रीत प्रीत बिना हुई जीवन में अंधकार सी जीवन की खुशियां आज मानव भटकती जीवनशैली में जीवन की मिलनसारिता के अभावों पर अद्भुत द्रष्टा देता दर्शाता अक्सर पूछता है खुद से हूँ व्यस्त जरूर जीवनशैली में कब कहाँ कैसे किस मोड़ पर मिलेगी सच्ची खुशियां उदासीनता सी झुलसियां में आपा-धापी के चकाचोंध चेहरे में मुस्कुराहटें ले ली करवटें झलकती झुलसियां और उदासीनता गुल बस हुई तो, बस हृदयानंद की खुशियां बांधे अनर्गल बोझ का सेहरा गवांकर मौका सुनहरा पूछता है मानव ओरों से कहाँ छुपी है कहाँ बिछुड़ी जीवन की खुशियां अनमोल खुशियां जुटाने की हिम्मत तलाशते तलाशते अन्तर्मन से सिमटती सिमट रही अनमोल अन्तर्मन की...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

बबीता कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन में आगे बढ़ना है तो, संघर्ष का दामन हम थामे चलेंगे फूल बिछे हों या कांटे हों, राह अपनी हम न छोड़ेंगे। चाहे जो विपदायें आये, मुख को जरा हम न मोड़ेंगे। साथ रहें या रहें न साथी, हिम्मत मगर हम न छोड़ेंगे। संकल्प ले यदि मन में अपने, उत्साह कभी कम न हम होने देंगे संघर्ष ही जीवन है हमारा अपने विकास के लिए संघर्ष करते रहेंगे। परिचय :- बबीता कुमारी निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
मानवता-धर्म
कविता

मानवता-धर्म

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मानव का जन्म लिया पुण्य से, मानवता ना समझ सके प्रभु वरदान है जीवन ये भी ना पहचान सके..??? मनुष्यता का कवच ओढ़े, धर्म अधर्म को तौल रहे क्रूरता अट्टहास लगाती, निज इच्छाओं से मौन रहे??? करुणा-प्रेम, सेवा-सम्मान, है मानव धर्म की परिभाषा ईन दैव गुणों से भी तुम ये जीवन-व्यक्तित्व ना संवार सके घोर विडंबना व्याप्त हुई मानव दानव से भिन्न नहीं प्रलय विनाश के द्वार निज स्वार्थ वश खोल रहे पाशविकता है चरम चढी मनुजता पर अधम बढ़ा है करुणा हृदय से सूख गई मानव प्राणों का भूखा है...?? क्यूँ भटक गया है धर्म तत्व, उलझा है अधम अंधेरों में क्या था पौरुष कैसा मानव जब जीवन ही असंवेदनशील हुआ हे मनुज, उठो, अब भी पुण्य कमा सकते हो सत्य आचरण का संकल्प लिए इस सृष्टि को संचित कर सकते हो मत होने दो सं...
ईद आ गई है
कविता

ईद आ गई है

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** लो फिर से ईद आ गई है । खुशियाँ दिल में छा गई है ।। रमज़ान की इबादत का तोहफ़ा मिला है । किसी से नहीं शिकवा न कोई गिला है ।। मोहब्बतों के शीर से दस्तरख्वान सजाना है । भूलाकर रंजिशें सारी गले सबको लगाना है ।। महक सेवईयों की भा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।। हमारे जिस्म-हमारी रूह को पाक कर दिया है । रोज़े की फज़ीलत ने हर बुराई को ख़ाक कर दिया है ।। ईद के चांद ने रोशन किया है खुशनसीबी का रास्ता । नहीं लौटेंगे अब गुनाहों की और सबको ख़ुदा का वास्ता ।। राह ईमान की दिखा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।। आज ईदी मुहब्बत की बांटना है हमको । गमों से खुशियां अब छांटना है हमको ।। नब्ज़ पर अपनी इख्तियार कर लिया था । दामन को अपनी नेकियों से भर लिया था ।। ज़र्रे ज़र्रे में रौनक छा गई है । लो फिर से ईद आ गई है ।।...
ये औरतें भी न…
कविता

ये औरतें भी न…

रेणु अग्रवाल बरगढ़ (उड़ीसा) ******************** हर बार हैरान हो जाती हूँ मैं जब भी सोचती हूँ कि हार गईं ये ... लेकिन उठ खड़ी होती हैं एक नई शक्ति के साथ दो-दो हाथ करने रोज़मर्रा की तकलीफों से पता नहीं इतनी ताकत लाती कहाँ से हैं? ये औरतें भी न! कितनी आसानी से हर किसी के जीवन में अपनी जगह बना लेती हैं जैसे पानी हर बरतन जैसा ही हो जाता है एक जगह जन्म लेती हैं और फिर अपनी जड़ों समेत उखाड़कर एक नई ज़मीन पर लगा कर उगने के लिए छोड़ दी जाती हैं अजनबी लोगों के बीच इस तरह अपनी पहली रसोई बनाती हैं जैसे उसी रसोईघर में सदियों से पका रही हों छप्पन भोग ढूँढती हैं घर के हर सदस्य के जीवन में थोड़ी सी जगह अपने लिए कभी पुचकारी जाती हैं तो कभी फटकारी जाती हैं माँ बाप के नाम पर ताने भी खाती हैं कितनी भी हो प्रबुद्ध घर की मुरगी दाल बराबर अनपढ़ के नाम से ...
महाप्रभु वल्लभ चालीसा
दोहा

महाप्रभु वल्लभ चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* श्री वल्लभ सुमिरन करुं, मनुज रूप अवतार। लीला राधे श्याम की, कीनी जग विस्तार।। जयजय महप्रभु वल्लभदेवा। पुष्टि मार्ग को तुम्ही सेवा।।१ इलम्मागारु कोख से आये। लक्षमन भट्ट पिता कहाये।।२ संवत पंद्रह सौ पैंतीसा। एकादशी को जन्में ईशा।।३ कृष्णा पक्ष मास बैसाखा। धरम महीना जग की आशा।।४ जिला रायपुर चम्पा ग्रामा। आये वल्लभ जन कल्याणा।।५ गोपाल कृष्ण कुल के देवा। मातु पिता सब करते सेवा।।६ गुरु मंगला विल्व पढ़ाया। अष्टादश का मंत्र बताया।।७ काशी में प्रभु विद्या पाई। अल्पकाल में करी पढ़ाई।।८ स्वामी नारायण दी शिक्षा। तिरदंडा संयासी दिक्षा।।९ ब्रह्मसूत्रअणु भाष्य बनाया। उत्तर मीमांसा कहलाया।।१० भगवत टीका की कर रचना। तत्व अर्थ दीपा का लिखना।।११ अग्निदेव अवतारा भाई। जगत गुरु की पदवी पाई।।१२ काशी अं...
दुखों का आना …
कविता

दुखों का आना …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सुख-दुख दोनों हमारे आसपास है दोनों ही इस जग मे बहुत खास है आगे पीछे आना इसकी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है आना जाना जब पहले से तय है हर गम के लिए पहले से सज्य है सुख-दुख भी उसी की महोब्बत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख दोनों ही करनी फल है इस सम रहकर सहना ही हल है सहने की अब तो बनानी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है गम की बदली भी छायेगी कभी बसंत से बहार भी आयेगी कभी एकदूजे के पीछे आने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख मे सम रहकर जीते है दोनों ही अच्छे है सहकर जीते है जो आता, उसे जाने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्...
अधूरे होकर भी पूरे
कविता

अधूरे होकर भी पूरे

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** वे साथ रहें पूरक बन कर पर एक दूजे के पास नहीं। जीवन का अर्थ समेट चलते हैं साथ भी फिर भी साथ नहीं। वे साथ रहे पूरक बनकर ... चिंगारी भी है, समर्पण भी है एक दूजे को अर्पण भी, वो समांतर पथ पर चलते हैं बनकर एक-दूजे का दर्पण भी संकल्प लिए, श्रद्धानत हो, अर्धांग भी हैं और अंतर भी। वे साथ रहे पूरक बनकर ... जैसे हो किनारा और नदी जैसे हो चंदा और धरती जैसे हो खुशबू और पवन जैसे अंबर और तारांगण। चलते संग-संग शुभ यात्रा पर कहीं मिलन नहीं फिर भी संगम। वे साथ रहे पूरक बनकर ... एक दृष्टि में देखो एक ही हैं। एक दृष्टि से देखो अलग कहीं। जो अलग किया अस्तित्व नहीं फिर तो जीवन का अर्थ नहीं। सागर में विलीन होकर ही है सही मिलन का सुख और सार सही। वे साथ रहे पूरक बनकर ... परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्...
हमर भीम बाबा
कविता

हमर भीम बाबा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा जी धन्य होगे लिखित संविधान के रचैय्या अम्बेडकर महान होगे सरल अउ सहज व्यक्तित्व के धनी रिहिस हे सादा जीवन उच्च विचार के मणि रिहिस हे धरम-करम के रद्दा बतैय्या वो तो पूजनीय होगे ... अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... जात-पात अउ भेदभाव के गड्डा ला पाटीस हे छुआछूत अउ कुरीति के जड़ ल वो गाढ़िस हे अइसनहा मानव मन के जनैय्या महामानव होगे अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... संत मनीषी साधू सन्यासी मन के संग ल धरिस हे तीन रतन अउ पञ्चशील के सन्देश ल गढ़िस हे अष्ट मारग म चलैय्या बौद्ध धरम के पुजारी होगे अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे ... बाबा के रद्दा अपनाही उंकर जिनगी सरग बन जाही खान-पान रहन-सहन सुधारही उंकरे बेड़ापार हो जाही *श्र...
नीड़
कविता

नीड़

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चूं-चूं करती आई मेरी रानी चिड़िया, नीड़ बनाती अपनी बढ़िया-बढ़िया। नित करते अपने संरक्षण वास्ते, नीड़ बनाती अपनी बढ़िया-बढ़िया।। कल-कल बहती सारी नदियां रोज विचार करती है चिड़िया। रोज पीढ़ी मेरी बढ़े भी आगे कैसे, विचारमंथन करती है नित चिड़िया।। दाना-पानी भोजन व्यवस्था, लगी रहती है हमेशा रानी चिड़िया। मीठी मधुर-मधुर गाए गीत नित, नीड़ अपनी रोज सुन्दर करती बढ़िया।। अपनी मधुर वाणी से मन सबकी मोह लेती, करती हमेशा उपकार का कार्य चिड़िया।। नित नया नीड़ बना तिनकों से अपनी खुद का, प्यार का भाव सभी में जगाती है चिड़िया।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
बाकी है
कविता

बाकी है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। जो तुम तक पहुंच न पाई मेरी सदायें बाकी है। मेरे खामोश लफ्जों की हजारों बातें बाकी है। थकी आंखों का लम्बा अभी इंतजार बाकी है। जो रूह को सकून दे जाता तेरा दिदार बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। किस कसूर की दी है सजा अभी इल्ज़ाम बाकी है। मौत का दे दिया फरमान अभी हमारी जान बाकी है। सजदों में बांधी उस डोर की अभी वो गांठ बाकी है। क्यों दुआएं कबूली नही गई वो फरियाद बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। हम ने अजमा लिया सब को खुदा का इम्तिहान बाकी है। इश्क़ का यह स...
बच्चे देश का भविष्य
कविता

बच्चे देश का भविष्य

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** बच्चे हैं हमारे देश का भविष्य, हमें मिलकर इनका बचपन बचाना है, स्कूल में भेज बच्चों को, काबिल उन्हें बनाना है, बाल मजदूरी से बचपन, उबर नहीं कभी पाता है, शारीरिक मानसिक बच्चे को, बड़ा आघात लग जाता है, हैं खेलने, पढ़ने के दिन जो, दुस्वार यह हों जातें हैं, बाल मजदूरी से बच्चों के, जीवन तबाह हो जाते हैं, गांँव शहर ए मेरे देश के लोगों, बाल मजदूरी पर रोक लगानी है, बच्चों का जीवन खुशहाल बने ऐसी व्यवस्था मिलकर हमें बनानी है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
छोटी काशी (गोला)
कविता

छोटी काशी (गोला)

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मन उत्सुक था घोर चपलता, सम्भव नहीं इसे समझाना, महादेव का था ये बुलावा, अब तो हमको था ही जाना। दुःख के काले बादल उड़ गए, मिट गयी मन की घोर उदासी, काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। देख दृश्य छोटी काशी का, मैल मिट गया सारा जी का। मन व्याकुल था आंखें तरसी, दर्शन मिलें तों आंखें बरषी। इससे जुड़ी है राम कहानी, जो चौदह वर्ष हुए वनवासी।। काशी-काशी, काशी काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। दूर-दूर से आते हैं जन महादेव के दर्शन पाने। कई संन्यासी दिखें यहां जो खुद को हर के रंग में ढालें। कुछ तो देखें घोर तपस्वी, कुछ तो मिलें यहां संन्यासी काशी-काशी, काशी-काशी पहुंच गए हम छोटी काशी।। परिचय :- गौरव श्रीवास्तव निवासी - अमावा (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
वीरान सी बस्ती
कविता

वीरान सी बस्ती

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** सुनसान सी सड़के झांकती है मेरी और, मानो कह रही है वो मुझसे, अपने कदमो की आहट से, महका दे इस गाँव को। वीरान सी इस बस्ती में , झुका हुआ बरगद का पेड़ खड़ा है, मानो वो मुझसे कह रहा है, आ बैठ़ मेरी छाँव में। वीरान सी इस बस्ती में, खाली पड़े मकानों की दीवारें, मुझसे कुछ यूँ बोल रही है, आ खेल तू इस आँगन में। वीरान सी इस बस्ती में, खेतों की ये मिट्टी, मुझसे कुछ यू बोल रही है, आकर छू ले मुझको, चारों और फैला दे, सौंधी सी मिट्टी की खुशबू को। वीरान सी इस बस्ती में, सुनसान सी सड़कें, मानो मुझसे कुछ कह रही है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...