वो दिन कब आएगा
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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हां मानता हूं कि
दलित आदिवासियों
के पास समस्याएं हैं,
पर उनके पास
अपनी परंपराएं हैं,
उनके मन में भी सवाल है,
यदि दाग दे तो बवाल है,
व्यवस्था ऊपर आरोप है,
सत्ता की ओर से
प्रत्यारोप है,
अपने पुरखे रूपी
भगवान से उम्मीद है,
अपने धरोहरों से
अटूट प्रीत है,
कुछ अतार्किकता है,
दिलों में मार्मिकता है,
जातियों में खंड खंड है,
कहीं कहीं थोड़े
बहुत पाखंड है,
प्रशासनिक ज्यादिता है,
अपनी रूढ़िवादिता है,
यहां तक वोट देने
का अधिकार है,
पर कुछ दलालों के कारण
बन जाता एकदिनी व्यापार है,
केकड़ावृत्ति वाला समाज है,
खंडित जिनका हर साज है,
पर अफसोस
मानवीयता और
अमानवीयता में से
चयन करने में
पीछे रह जाते हैं,
समाज के गोद में बैठे
दलालों के कारण
हरदम, हरपल
धोखा खाते हैं,
शिक्षा का सही उपयोग
क्यों नहीं कर पाते...