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पद्य

वो दिन कब आएगा
कविता

वो दिन कब आएगा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां मानता हूं कि दलित आदिवासियों के पास समस्याएं हैं, पर उनके पास अपनी परंपराएं हैं, उनके मन में भी सवाल है, यदि दाग दे तो बवाल है, व्यवस्था ऊपर आरोप है, सत्ता की ओर से प्रत्यारोप है, अपने पुरखे रूपी भगवान से उम्मीद है, अपने धरोहरों से अटूट प्रीत है, कुछ अतार्किकता है, दिलों में मार्मिकता है, जातियों में खंड खंड है, कहीं कहीं थोड़े बहुत पाखंड है, प्रशासनिक ज्यादिता है, अपनी रूढ़िवादिता है, यहां तक वोट देने का अधिकार है, पर कुछ दलालों के कारण बन जाता एकदिनी व्यापार है, केकड़ावृत्ति वाला समाज है, खंडित जिनका हर साज है, पर अफसोस मानवीयता और अमानवीयता में से चयन करने में पीछे रह जाते हैं, समाज के गोद में बैठे दलालों के कारण हरदम, हरपल धोखा खाते हैं, शिक्षा का सही उपयोग क्यों नहीं कर पाते...
प्रीति की रीति के दोहे
दोहा

प्रीति की रीति के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन दिखता है वहाँ, जहाँ प्रीति की रीति। अंतर्मन में चेतना, पले नेह की नीति।। नित्य प्रीति की रीति से, जीवन बने महान। ढाई आखर यदि रहें, दूर रहे अवसान।। संग प्रीति की रीति है, तो जीवन खुशहाल। कोमल भावों से सदा, इंसां मालामाल।। जियो प्रीति की रीति ले, तो सब कुछ आसान। मन की पावनता सदा, लाती है उत्थान।। जहाँ प्रीति की रीति है, वहाँ बिखरता नूर। सुख आ जाता साथ में, हो हर मुश्किल दूर।। ताप प्रीति की रीति है, जो हरती अवसाद। श्याम-राधिका हो गए, सदियों को आबाद।। अगर प्रीति की रीति है, तो होगा यशगान। दिल से दिल जुड़कर सदा, रचते नवल विधान।। आज प्रीति की रीति से, युग को दे दो ताप। जीवन तब अनमोल हो, दर्द उड़े बन भाप।। प्रीति रीति मंगल रचे, करे सदा आबाद। प्रीति बिना इंसान तो, हो जाता बरबाद।। रीति प...
नौकर
कविता

नौकर

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा पता पूछकर, मुझकों अपमानित, मत करना। छलक जायगा, दुखः का मनघट, दुखित न मन को करना। दिन अपने कट, जाते हंसकर, सो जाता रातों, को रोकर, मैं होटल का नौकर। दुखः के घूंट, निगलकर अपने, आंसू पी लेता हूँ, फटकारों से फटा, हुआ दिल हँसकर, मै सी लेता हूँ, साहस है मुझमें, जीने का झूठे, बर्तन धोकर, मै होटल का नौकर। तुम्हीं बताओं उम्र है, मेरी ललकारें सुनने की, मैले फटे पुराने कपडे़, पहनू मै नित धोकर, मै होटल का नौकर। किसी चमन का साथी, फूल बना हूँ, जीवन की बहती, धारा का फूल बना हूँ, धुतकारों या पुचकारो तुम तुमकों है अधिकार सभी, मुझको पता नहीं है, कब किसने छोड़, दिया है बोकर, मै होटल का नौकर। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्...
बारिश की बूॅंदें
कविता

बारिश की बूॅंदें

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मैं हूॅं बारिश की बूंदें, मैं भी तो प्रभु की सुंदर रचना ही हूॅं। जब सावन की बरसात आती हैं, तब मैं गगन से चलकर। अठखेलियां करती हुई, धरा से मिलन करने आती हूॅं। मैं रिमझिम-रिमझिम वर्षा संग, सबके उर उमंग भरती हूॅं। मैं हूॅं बारिश की बूॅंदें, अति लघु जल कण, अल्पायु हूॅं। मैं धरा पर आकर स्वयं खुश हो, मानव के अधरों पर मुस्कान बिखेरती हूॅं, मैं जब रज में मिलूॅं, सौंधी सुगंध। माटी सी महकाती हूॅं, धरावासियों के तन भिगो रोमांच भरुॅं। मैं हूॅं बारिश की बूॅंदें, जब पेड़, लता, वृक्ष, पत्तों पर गिरती हूॅं। कुछ काल रहती हूॅं, तब भानु प्रकाश किरणें मुझे धवल, सूक्षम मोती सा चमका, मेरा सौन्दर्य बढ़ाती हैं। दादुर, मोर, पपीहा, कोयल, तोता, चिड़िया, मधुर गान करें। मैं हूं बारिश की बूॅंदें, जब मैं ...
आओ साथ बैठते हैं
कविता

आओ साथ बैठते हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ साथ बैठते हैं ना हो कोई भीड़ ना कोलाहल, श्वेत श्याम चित्रों में रंग भरते हैं चाय की प्याली हाथों में लेकर चलचित्र सी बीती जिंदगी को पुनः सिलसिलेवार करते हैं उम्र के ढलते पडाव पर स्वयं की अभिव्यक्ति से सरोकार करते हैं जीवन आनंदमय था या थी दुःख की बदली, क्यूँ हम उस पल को याद करते हैं हम स्वयं ही अपनी देखभाल करते हैं! बच्चे बड़े हो गए उनको उड़ना हमने ही सिखाया, वो ऊंची उड़ान भर सुनहरे भविष्य का सपना साकार करते हैं, सृष्टि ने अद्भुत उपहार दिए हर रंग हर रूप में इस जग को उनके संरक्षण का प्रण लेते हैं हम ही पुराने मित्रों को फिर से नया संदेश भेजते हैं!! परमेश्वर के श्री चरणों में नमन कर, जनकल्याण का आशीष लेते हैं, जीवन जीने की कला का पुनः निर्माण करते हैं आओ पास बैठ...
मेरे पिताजी मेरे भगवान
कविता

मेरे पिताजी मेरे भगवान

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** परम पूज्य मेरे पिताजी, तुम मेरे भगवान हो। जीवनदान तुमसे ही पाया, तुम मेरी जान हो।। मेरे मालिक मेरे पिताजी, तुम मेरे जन्मदाता हो। जनम दिया है दुनिया में, मेरे भाग्य विधाता हो। मेरे पिताजी इस संसार के, वह निराले इंसान है। मेरे पिताजी का जीवन में, जो सर्वोत्तम स्थान है। मेरे भाग्य में है पिताजी, यह ईश्वर का वरदान है। मुझे छत की क्या जरूरत, पिताजी आसमान है। बापू की क्षमता माँ की ममता, मैं करूं सम्मान है। अहो भाग्य से मुझे मिले, सर्वदा करूं गुणगान है। जीवन दुःख मेरे जो आया, बापू ने सहन किया। मैने देखे सपने जितने, पिताजी ने ही पूर्ण किया। इस जीवन में पिताजी ने, अमूल्य दिया उपहार है। जीवन में लौटा ना सकूं, अतुल्य किया उपकार है। खून पसीने में रहकर, मुझे मेरा अधिकार दिया। छ...
लहरों का संदेश
कविता

लहरों का संदेश

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** सागर की लहरों में हमदम रेस चला करती है तीव्र गति, अबाध, स्मितमुख दौड़ा करती हैं न कोई रोकटोक न कोई प्रतिस्पर्धा इधर उधर से भाग-भाग कर एकाकार हुआ करती हैं गुफ़ा, कंदरा में ऋषि मुनि खोजा करते मोक्ष मार्ग इन लहरों को देखो, चलचल कर पा जातीं खुला मोक्ष का द्वार लहरें चल-चल कर अपना काम किया करती हैं चलते रहने का मानव को संदेश दिया करती हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्...
काखर पाछु म जाना हे
आंचलिक बोली, कविता

काखर पाछु म जाना हे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दु माडल हे देस के आघु जेला चाहव चुन ल जी, का करम कुकरम हे एखर भीतरी आवव थोरकुन गुन ल जी, गोड़ गिरव अउ माथा रगड़व एक माडल ह कहिथे जी, जनमानस ल भरमाये खातिर आस्था के धार बहिथे जी, जात पात बरिन ल मान के खुदे नीच कहलावव जी, बइठान्गुर के बात ल मानव पेट ओखर सहलावव जी, जाति धरम के पाछु म आंखी मुंदा जावव जी, हाथी कस ताकत ल अपन छिन छिन म भुला जावव जी, एक बरन ह राजा रहि एक बरन ह रद्दा बताही जी, एक बरन ह लुटही खसोटही बाकी धार बोहाही जी, हजारों बरस के पाखंड ह जोर से फेर बोमियाही जी, पुरखा हमर रोये रहिन हे जइसे वोही दिन ह लउट के आही जी, अब बात करन दूसर माडल के ओमा का का होही जी, कोन उड़ही अद्धर अकास म कोन धरती म सुत रोही जी, संविधान ह रक्छा करही सबला सबल बनाही जी, भाई बरोबर सब मिल जुल रहीं समता के फुल ...
अतिरिक्त
कविता

अतिरिक्त

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम चेहरे की मुस्कुराहट पर मत जाओ बहुत गम होते हैं सीने में दफन। तुम झूठी वफाओं में मत आओ बहुत ख़्वाब होते हैं आधे अधूरे से। तुम इन सिमटी हुई निगाहों पर मत जाओ बहुत कुछ बिखरा हुआ होता है छुपी हुई निगाहें में। तुम टूटे हुए ह्रदय पर मत जाओ बहुत शेष होता है प्रेम ओरों के लिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
वक्त
कविता

वक्त

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** गुज़रते वक्त के साथ लोग गुज़र ही जायेंगे रह जाएगी उनकी यादें उन यादो में अनगिनत काफ़िले और उन काफिलो का अकेला मुसाफ़िर जो अब मौन है जिसे सब जानते है पर अब गुजरते वक्त के साथ..! परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के ...
लोकतंत्र का पवित्र मंदिर हूं मैं
कविता

लोकतंत्र का पवित्र मंदिर हूं मैं

माधवी तारे लंदन ******************** (नया संसद भवन २८ मई २००३) आज की रवि किरणों से चमकता हुआ न कोई गगन से उतर कर आया फरिश्ता परतंत्रता का चोला उतार, अपनों के परिश्रम से निर्मित स्वतंत्र देश के अमृत महोत्सव का प्रतीक हूं मैं. देश का विकास या समस्या का हो मसला या विदेश का हो कोई मामला सबसे खुली चर्चा करके, हल निकालने वाला हलधर हूं मैं न तो मैं विदेश में स्थापित होने वाला न ही देश की हर बात जग भर फैलाने वाला दूरदर्शन का कोई चैनल हूं मैं सब देशवासियों की रगों में देशभक्ति स्रोत जगाने वाला निर्मल बहता हुआ निर्झर हूं मैं गीता का वचन है ”यो माम् यथा प्रपद्यन्ते, ताम् तथैव भजाम्यहम ” मंत्रोच्चार से स्थापित लोकतंत्र का पवित्र मंदिर हूं मैं प्रस्तुति - एक वरिष्ठ भारतीय महिला नागरिक (वर्तमान निवास लंदन) परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवास...
शब्द
कविता

शब्द

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शब्दों को पूर्ण वीराम ना लगाओ शब्द, तार है मन सरगम का छंद अलंकारों से श्रृंगारित शब्द अवलंबन है जिव्हा का। कर, लेखनी, काली स्याही व्यंजन, परिमार्जन शब्दों का शब्द चमत्कृत, शब्द झंकृत शब्द-शब्द से कहानी है। स्वर व्यंजन से रचा गढ है परकोटा है अलंकारों का अंदर बाहर गिरि गव्हर है नव रसों की फुलवारी। व्यंग, राग का परी तोषण करते हास्य करें मनुहारी, क्रोध, शांत रस दर्शाते मानव मन के भाव को तू अकेला नहीं, कहता कोई अभिन्न मित्र बना लो शब्दों को। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृ...
सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का
ग़ज़ल

सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मिली जितनी कभी सोची नहीं थी। हमारी ख़्वाईशें इतनी नहीं थी। न कर पायी असर हमपर कभी वो, कही जिस बात में तल्ख़ी नहीं थी। सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का, रिवायत आपकी वैसी नहीं थी। फ़िक्र रखती तो जाकर लौट आती, हवा थी वो कोई कश्ती नहीं थी। मिली तो मिल गई जब उसने चाहा, ख़ुशी हालात से रूठी नहीं थी। किसी का नाम लेकर भूल जाना, ये आदत आपकी अच्छी नहीं थी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
अक्सर जिंदगी …
कविता

अक्सर जिंदगी …

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन हौंसले के पंख। जो उड़ना चाहते हैं आसमान की उंचाई पर। मापना चाहते हैं क्षितिज के पार क्या पता हो कोई अनुपम संसार। अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन पैरों को। जो नाचना चाहते थे जीवन की ताल पर। थिरकते थे जिंदगी के हर नये ख्याल पर।। लेकिन टूट कर रह गये अपनी ही ताल पर। अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन सपनों को। जो जिंदगी ने खुलीं आंखों में सजायें। लेकिन सपनों की हकीकत के हिस्से सिर्फ, इन्तज़ार के बंद दरवाज़े ही आयें।। अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन अपनों को। जो जिंदगी के हर अहसास में हो समायें। लेकिन जिंदगी की हर वजह में, बजूद न बन पायें। जिंदगी को मार दे और मिटा भी न पायें।। अक्सर जिंदगी छीन लेती हैं प्यार को। प्यार के हिस्सें में सिर्फ भटकाव आयें। जब मिला भी तो सा...
मेरी कल्पना से
भजन

मेरी कल्पना से

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी कल्पना से, प्रभु तुम्हारी, छवि बनाता रहूं। प्रभात वंदना में तुम्हारे दर्शनों को करता रहूं। सुमिरन कर चिंताओं को, प्रभु चरणों में रखता। प्रभु भक्ति में तुम्हारी नित, नई छवि बनाता। कल्पनाओं में डूबा, नए-नए विचारों को रखता। भक्ति से अपनी अरज को लगाता। तेरी कल्पनाओं में प्रभु दर्शन को पाता। कभी छलिया तो भोले भंडारी कहता। इसी बहाने कल्पनाओं में प्रभु दर्शन करता। प्रभु दर्शन में नित नित सुंदर छवि बनाता। मांगू यही, मेरी कल्पनाओं में दर्शन देते रहना। प्रभु कृपा बनाए रखना। दिल मैं छवि बनाए रखना। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
आ ज़िंदगी बैठ
कविता

आ ज़िंदगी बैठ

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** आ ज़िंदगी बैठ, समझा के रहुंगा। जो भी मसला है, सुलझा के रहुंगा। जितना भी क़र्ज़ है, वक्त से पूछुंगा, आज,सारा कर्ज चुका के रहूंगा ।। फिर न जिऊंगा दोहरी जिंदगी। न वक़्त की चौकसी करूंगा। जिऊंगा तुझे मैं अपने ढंग से, जिंदगी! और न बेकसी करूंगा । रखुंगा ताउम्र, अपने ही दायरे में, तुझे उंगलियों पर नचा के रहुंगा, आ ज़िंदगी बैठ, समझा के रहूंगा। फिर न मसौदा, न समझौता होगा। अपने ही उसूलों पर सौदा होगा । बहुत कर दी, जी हुजूरी या चापलूसी, अब महकमा अपना, अपना ही ओहदा होगा। लिखुंगा किरदार, हर एक का अपने ढंग से, हर एक को कहानी में बैठाकर रहुंगा। आ ज़िंदगी बैठ, समझा के रहुंगा। जो भी मसला है सुलझा के रहुंगा। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्...
माँ मानसरोवर
कविता

माँ मानसरोवर

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** माँ मानसरोवर, ऋषिकेश, माँ हरिद्वार, माँ संगम है माँ मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का एक दृश्य विहंगम है। माँ आशा, अभिलाषा, उम्मीदें, माँ प्रेम का बहता सागर है माँ ममता, करुणा, आदर की एक छलकती गागर है। माँ शक्ति, भक्ति, अभिव्यक्ति, माँ ही गौरव गाथा है माँ ही तो हर संतति की बनती भाग्य विधाता है। माँ चंदा की चाँदनी, माँ ही सूरज का ताप है माँ व्याकुल मन को सहलाती लोरी,राग, आलाप है। माँ सागर से भी गहरी है, माँ पर्वत सी विशाल है माँ के आशीषों से ही तो ऊँचा सबका भाल है । माँ ही शीतल फुहार है, माँ ही धूप और धाम है माँ के चरणों में ही तो बसते चारों धाम है। माँ से ही सब खुशियाँ हैं, माँ से ही सारे सपने हैं माँ से ही तो जीवन में होते रिश्ते सारे अपने हैं। माँ ही चोट पर मरहम है, माँ हर उलझन का हल है माँ से ह...
श्रमिकों की वंदना
कविता

श्रमिकों की वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मजदूरों का नित है वंदन, जिनसे उजियारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति-वाहक हैं। अन्न उगाते, स्वेद बहाते, सचमुच फलदायक हैं।। श्रम के आगे सभी पराजित, श्रम का जयकारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। सड़कों, पाँतों, जलयानों को, जिन ने नित्य सँवारा । यंत्रों के आधार बने जो, हर बाधा को मारा ।। संघर्षों की आँधी खेले, साहस भी वारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। ऊँचे भवनों की नींवें जो, उत्पादन जिनसे है। हर गाड़ी, मोबाइल में जो, अभिनंदन जिनसे है।। स्वेद बहा, लाता खुशहाली, श्रमसीकर प्यारा है। श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।। गर्मी, सर्दी, बरसातों में, श्रम करने की लगन लिए। करना है नित कर्म, यही ...
अर्धनारीश्वर
कविता

अर्धनारीश्वर

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझसे गलती हो गई ऐसी भी क्या, जो तन पाया अर्धनारीश्वर का । ना प्रकृति न पुरुष में गणना हुई, जबकि अंश था मुझमें भी ईश्वर का।। बधाईयां गई मैंने घर घर जाकर, फिर कोख जानकी की क्यों सूनी मिली।। ढोल की थाप पे खूब थिरके पांव, क्यों न फिर केशव की रज धूलि मिली।। समाज ने सदा उपेक्षित भाव से देखा, ना शिक्षा का अधिकार न सम्मान पाया।। बीत गए दिन रैन काल कोठरी में, हर स्थान ही तो मेरे लिए शमशान पाया।। मां का आंचल छीना बाबा का कन्धा, जन्म को मेरे धिक्कार सा माना।। क्यों न रूप स्वरूप जैसा मिला था, वैसे ही जग ने सहज ही स्वीकार जाना।। जाते किस ओर कहो ना नर न नारी हम, चौदह वर्ष प्रतीक्षारत अपलक नैन रहे ।। हे राम अहो भाग्य जो तप की श्रेणी में आंका, आशीष वचन जो सिद्ध होते आपकी देन रहे।। झलकते हैं नीर झर झर आँखों से हरपल, प...
प्राण के बाण
कविता

प्राण के बाण

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मेरी लम्बी व लोकप्रिय कविताओं में आए छाँटे हुए उद्धरणीय कवितांश "प्राण के बाण" हैं। पाठकों में इन बाणों की विशेष चर्चा है। ये बाण दोहे नहीं हैं फिर भी‌ दोहे की तरह हर बाण अपना अलग व पूरा अर्थ देता है। सूक्तियों, कहावतों व लोकोक्तियों की तरह अपना कालजयी प्रभाव छोड़ने वाले प्राण के ये बाण प्रायः लावणी, ककुभ अथवा ताटंक छन्दों में होते हैं। एक कविता या एक प्रसंग के न होने से सभी बाण अलग अलग तारतम्य में हैं। पढ़िए। प्राण के बाण की एक किश्त ============= १. जब करती निराश असफलता आती विपदा घड़ी घड़ी। पड़ी पड़ी प्रतिभाएँ पागल हो जातीं हैं बड़ी बड़ी।। २. कापुरुषों के लगे निशाने महाशूरमा चूक गए। कोयल रही टापती मौका पाकर कौए कूक गए।। 3. जब कवियों ने बढ़ाचढ़ा कर, कौओं को खगराज कहा। व्याख्या करने वालो...
नशा मुक्त हो जीवन सबका
कविता

नशा मुक्त हो जीवन सबका

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दिखावे का युग आज है, बनावट ओढ़े सर पे ताज है, राजस्व की फिकर सत्ता को मय मदिरा घर-घर में आज है, लगा हुआ है ध्यान ये सबका, झूम रहा हर वंचित तबका, खोज रहा हर कोई कृपा ये रब का, तन मन धन बर्बाद है इससे, नहीं आता बाहर कोई इस सनक से, हर कोई दुखी हैं नशे की धमक से, यारों इस नशे को अब तो छोड़ो, कीमत चुकाये हैं नशे की सबब का, नशा मुक्त हो जीवन सबका, अब बात करें उस नशे की जो जीवन में बहुत जरुरी है, करलो समाजोत्थान का नशा, मिशन के गुणगान का नशा, जागृति अभियान का नशा, हर जीवन के सम्मान का नशा, मत भूलो इस नशे से भीमराव, फुले, पेरियार भी झूमे थे, जनजागरण के इस नशे के लिए बुद्ध, कबीर, गाडगे भी घर घर घूमे थे, तो छोड़ो नशा मद्यपान का, कुछ तो सोचो अपने सम्मान का। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी :...
माँ का गुणगान
कविता

माँ का गुणगान

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** किन शब्दों से करूँ माँ का गुणगान । सृष्टि की जो है शोभा, है रत्नों की खान।। जिसकी ममता से सुरभित होता सकल यह संसार। शाश्वत प्रेम से परिपूरित जिसका हृदय महान।। रक्त की बूँदों को कर संयोजित बनती सृजन हार। पल्लवित होता बीज अंतस में होता चमत्कार।। अपने स्नेहिल वात्सल्य से जब उसका पोषण करती है । वह पुष्प कुसुमित होता पाता मां का दुलार।। माँ की महिमा का कोई नहीं है पार। माँ के हाथों होता है बच्चों का उद्धार।। दुष्कर राहों में बन जाती सहारा, जब बीच भंवर में फंसती है नाव की पतवार। लबों पर जिसके हर पल दुआएं सजती हैं। साँची प्रीति हृदय में जिसके हर पल ही पलती है। हृदय में सच्ची आस लिए प्रतिपल बच्चों का चिंतन करती है।। माँ ईश्वर का है अनमोल उपहार चरणों में जिसके स्वर्ग का द्वार.... आदर्श व त्या...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, एक सभी का नारा 'हिन्दी' भारत में जनमन की - 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। सर्व-प्राचीना, संस्कृत-जननी, भगिनी जिसकी सब भारत भाषा दर-दर की बोली 'शिशु-सरल' निर्मल जिसकी मातृ - अभिलाषा इन बोली, उपभाषा में बसता प्राण हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। माँ की लोरी, पिता का गान गिनती, पहाड़ा, अक्षर-ज्ञान कविता, कहानी और विज्ञान विकसित-सोच-समझ-अनुमान मातृभाषा में ही अपने पलता संस्कार हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। अंग्रेजी, फ्रेंच, इटाली, जर्मन रूसी, चीनी, कोरियाई, बर्मन हित्ती, ग्रीक, युनानी, रोमन अल्बानी, तुर्की, फारसी, अर्बन होंगी बहुत सी भाषाएँ पर हिन्दी सबसे मधुरा-प्यारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। ब्र...
चाय
कविता

चाय

नीलेश व्यास इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** कोरे पन्नो के केनवास पर शब्दों के चित्र बनाता हूँ, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, लिखने से पहिले, सोचने से पहिले, साहित्य सिद्धि के शब्द मंत्रों को गढ़ने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, सुबह-सुबह मजदूरी पर निकलने से पहिले, स्कूल लगने की घंटी से पहिले, फेक्ट्री जाने से पहिले, व्यापार के मुहूर्त से पहिले, संसद जाने से पहिले, भक्ति में डूब जाने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, मेहमानों के जाने से पहिले, आश्रमों में आशीर्वाद के पहिले, शुभ काम करने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, तीर्थ यात्रा में, शवयात्रा में, जीवन यात्रा में, राष्ट्र सेवा में, कभी-कभी भूख मिटाने को, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, यह चाय केवल चाय नही, यह धर्मों से ऊपर, भावनाओं से ऊपर, कभी-कभी मानव को मानव से...
मौन
कविता

मौन

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मौन की छाती में छिपा हुआ ज्वालामुखी बाहर से नहीं दिखता पर होता है सीने में असीम आग को समेटे स्वयं की आग से स्वयं को जलाता है पर धीरे धीरे ...... मौन नहीं होता सदा स्वीकार का लक्षण बल्कि अक्सर होता है यह अस्वीकार .... वह समय भी आता है जब मौन मुखर होता है अट्टहास ही तो करता है शिव के तांडव सरिस महाविनाश लीला सीने की आग बिखरकर जला देती है मौन को मौन सशब्द हो जाता जब मिट जाता है मौन होने का अभिशाप हाय! मौन इतना भयंकर !! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...