मनुष्य
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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यदि मनुष्य हो,
मनुष्यता को अपनाओ
धर्म अधर्म, रंग रूप,
के भेदभाव को छोडो
ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना हो,
श्रेष्ठ बनकर दिखाओ!
स्वयं के ज्ञान चक्षु को खोलो,
धर्म की ध्वनि को पहचानो,
निकल पडो इस दुरूह पथ पर
पथिक बनकर, वहीं रुकना,
मनुष्य की परिभाषा ढूँढने,
जहां वो मिलेगा जीवों के रूप में,
जो नहीं होगा घृणा,
द्वेष, ईर्ष्या से संचित,
वहीं मिलेगी परिभाषा
तुम्हें मनुजता की,
निश्चल प्रेम, स्नेह,
करुणा भक्ति और बहुत कुछ,
अज्ञानता के बोझ से
निकल कर शाश्वत
सत्य को पहचानो,
यदि मानव बन
मानवता को समझ सके,
तो लौट आना परिपूर्ण बन
अपनी उसी कुटिया में,
जहाँ मिलेगा ईश्वर,
अल्लाह, खुदा,
हंसता-मुस्कराता,
निश्चल प्रेम से सराबोर
जीवों के रूप में
तब कह देना तुम,
सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना हो
मनुष्य के रूप में!...