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पद्य

मानवता
गीत

मानवता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता हृदय में भरी हो, सुख की भावना। गंगा जैसा पावन मन हो , उर प्रभु साधना।। चले धर्म की राह नित्य ही, विचार कीजिए। राग-द्वेष से दूर रहें हम , सुवास दीजिए।। दीन दुखी का बने सहारा, हो शुभ कामना। शूल पथ में लाख आएँ पर, तुम मत डोलना। दोष सारे दूर कर बढ़ना, कुछ मत बोलना।। लक्ष्य फिर तुमको मिलेगा प्रभु, बाँहें थामना।। राम हिय बसते सदा तेरे, अमरित पीजिए। नैनों में मनहर छवि बसती, दरशन लीजिए।। जाप लो नित नाम प्रभु होगा, निश्चय सामना।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य...
आस्तीन के सांप
कविता

आस्तीन के सांप

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हमारे देश में वैसे तो हर तरह के सांप पाये जाते हैं, सामने आ जाये तो डर से मारे जाते हैं या भगाये जाते हैं, सांप तेजी से डसते हैं, इसलिए लोग इससे बचते हैं, पर दुनिया का सबसे खतरनाक सांप आस्तीन के सांप होते हैं, इससे रूबरू होने से कोई नहीं बचते हैं, ये हर पल आपके साथ रहेंगे, साथ सुख दुख सहेंगे, मगर अपना असली रंग ये तब दिखाता है, जब कोई खास मौका आता है, ये किसी को भी डस सकता है, डस कर ये भागता नहीं बल्कि सबको स्पष्ट नजर आता है, तब आप झुंझलाने के सिवा कुछ भी नहीं कर सकते, इसका गर्दन या पूंछ कुछ भी नहीं धर सकते, वैसे तो इनसे बचकर रहना चाहिए पर बच नहीं पाएंगे, आप संगठन वाले हों, मिशन वाले हों इनसे बिल्कुल बच नहीं पाएंगे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
सोलह कलाओं के अवतार
स्तुति

सोलह कलाओं के अवतार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रमा विष्णु के तुम अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम। जब जब नाश धर्म का होता, तब-तब जन्म सुरेश का होता सोलह कलाओं के अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम।। बने राम अहिल्या तारी, रूप कृष्ण में पूतना मारी तुम अवतारी गोकुल धाम, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। बंसी बजाएँ सबको बुलाएँ, राधा के मुरलीधर घनश्याम बैरन मुरली छीन लई, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। रास रचाएँ, गोपी नचाएँ, गोपों के तुम मितवा श्याम जय-जय कृष्ण राधे श्याम, राधा कृष्ण तुम्हें प्रणाम।। वृंदावन की कुंज गलिन को, छोड चले तुम राधा के श्याम मथुरा में जा कंस संघारे, यशोदा नंदन तुम्हें प्रणाम।। रणछोड़ भए द्वारिका बसाई, अर्जुन सम्मुख गीता रचाई जय सुखधाम, जय सुखधाम, देवकीनन्दन तुम्हें प्रणाम।। सोलह कलाओं के अवतार, राधाकृष्ण तुम्हें प्रणाम ...
मां अंजनी के लाल
भजन

मां अंजनी के लाल

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मां अंजनी के लाल है, पवन पुत्र हनुमान है, राम जी के दास है, रुद्र काअवतार है। तेजपुंज हनुमान है, महावीर बलवान है। राम काज में सदा है तत्पर, ऐसे संकट मोचन हनुमान है। बाल्यकाल में सूर्य को निगले, पृथ्वी पर हाहाकार है, सौ योजन समुंद्र को लागे, पवन पुत्र हनुमान है। लंका दहन किया है तुमने, मां सीता का पता लगाया है। राम की मुद्रिका सीता को दिनी, चूड़ामणि राम को लाए विश्वास के तुम सागर हैं। द्रोणागिरी पर्वत को लाए, बूटी घोट पिलाई है। लक्ष्मण के तो प्राण बचाए, ऐसे रक्षक बलशाली है। रावण जिससे डरा हमेशा, ऐसे मर्कट हनुमंत लाल है। राक्षसों का नाश कर आये, राम सिया का मिलन कराया, रामचरण अनुराग है। ह्रदय में सीताराम है, राम जी के दास है। आज्ञाकारी सेवक देखो, मां अंजनी का लाल है। परिचय :...
परायापन
कविता

परायापन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक एक शब्द तुम्हारा भेद़ गया। मन की कोमल दीवारों को मां के भाव शूलसे चुभ गए क्षण भर में स्तब्ध रह गई मस्तिष्क अवरुद्ध हो गया। एकाएक मन ने जागृत किया झकझोरा मुझे कहा उसने सच है, सही तो कहा उसने तुम, तुम पराए हो तू मुढ हो इस जग में। भावुक, विक्षिप्त होते हैं वह लोग जिन्हें वेअपना कहते हें। और जगहमें पराया कहता है शायद यही अति, श्रुति, रीति है जगती की।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं...
वह पद और मद में चूर हो गए
कविता

वह पद और मद में चूर हो गए

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** वह पद और मद में चूर हो गए। उनको लगा वह मशहूर हो गए।। गर सच्चाई कुछ और ही निकली आज वह अपनों से ही दूर हो गए।। वह पद और मद में चूर हो गए। जो कहते थे कि मन है उसका कोयले से भी काला आज उनकी नजर में भी वह कोहिनूर हो गए।। वह पद और मद में चूर हो गए। "अरविंद" कहे वक्त नहीं रहता सबका एक सा वक्त की मार से वह भी चकनाचूर हो गए। वह पद और मद में चूर हो गए। परिचय :-  अरविन्द सिंह गौर जन्म तिथि : १७ सितम्बर १९७९ निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) लेखन विधा : कविता, शायरी व समसामयिक सम्प्रति : वाणिज्य कर इंदौर संभाग सहायक ग्रेड तीन के पद में कार्यरत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
कितने क्यों मौन हो
कविता

कितने क्यों मौन हो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कितने क्यों मौन हो क्या आती नही अभिव्यक्ति ? या फिर जाती नही अब भी अहम भक्ति ? छोड़ दो न छंदों अलंकारों को कम से कम करो न आत्म अभिव्यक्ति। या फिर जाती नहीं अब भी शकी अभिव्यक्ति ? हिंदू हिंदुस्तान की शान है थोड़ा तो सम्मान रख लो आता नहीं रस तो भाव ही अभिव्यक्त कर लो या फिर आती नहीं भाव की अभिव्यक्ति भी? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
कौन हूँ मैं….?
कविता

कौन हूँ मैं….?

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** कौन हूँ मैं.....ऐ जिंदगी तू ही बता, थक गया हूँ मैं खुद को ढूँढते-ढूँढते I अब कोई ख्वाहिश नहीं पालता मन में, विरक्ति हो गई है नित एक ही ख्वाब बुनते-बुनते I सुनता हूँ जीवन में फूल भी हैं, काँटे भी हैं, मेरा जीवन बीत गया काँटे ही चुनते-चुनते I तानों कलंकों के बीच, जिंदगी से हारा नहीं हूँ मैं, लोगों की चुभती बातों से, धैर्य टूट जाता सहते-सहते I किसी से शिकायत नहीं अपनी व्यथा पर, मुझे चले जाना है दुनिया से यूँही चलते-चलते I ऊपरवाला भी व्यथित होगा मेरी नियति पर, रो रहा होगा, मेरी करुण-वेदना सुनते-सुनते I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
पल दो पल की साँसें तेरी
कविता

पल दो पल की साँसें तेरी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नाजुक बड़ी, साँस की डोरी, आओ इसे सम्हालें। टूटेगी कब, पता नहीं कुछ, जल्दी मंजिल पालें। पल दो पल की साँसें तेरी, पल दो पल की काया। छोड़ जगत सबको जाना है, कहाँ कोई रुक पाया। पानी कैसा बना बुलबुला, यह मानव तन तेरा। जीवन नहीं हमेशा तेरा, है पल भर का डेरा। आया है जो, वो जाएगा, स्थिर नहीं ठिकाना। सदा लगा रहता दुनिया में, सबका आना-जाना। दुनिया रैन बसेरा तेरा, क्यों इतना इतराता। प्राण पखेरू कब उड़ जाए, पता नहीं चल पाता। करता है गुमान तू भारी, अपनी देख जवानी। नाम शेष रह जाता जग में, रहती शेष कहानी। धन-वैभव, माया में उलझा, भूला दुनियादारी। चार दिवस का जीवन तेरा, चलने की तैयारी। पूजन भजन किया नहिं तूने, रहा जवानी सोता। बुला रहा दर्प में हरदम, पछताए क्या होता? छोड़ सकल जंजाल जगत के, प्र...
वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी
कविता

वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हिज्र तक़दीर नहीं वस्ल का वा'दा भी नहीं हम ने खोया भी नहीं आप को पाया भी नहीं अब वो वीरानी वो तन्हाई वो गुमनामी है अब कोई मुझ से है वाबस्ता तमाशा भी नहीं कभी मुस्काए कभी रोए तिरी यादों में बिन तिरे मैं ने कोई लम्हा गुज़ारा भी नहीं वो न जाने क्यों मोहब्बत का गुमाँ रखने लगा मेरी जानिब से अभी ऐसा इशारा भी नहीं ख़ुद को दीवाना मिरा सब को बताता है मगर मेरा दीवाना मिरे नख़रे उठाता भी नहीं मेरी तन्हाई मुझे और दिखाएगी भी क्या अब मिरे आसमाँ में एक सितारा भी नहीं डूब जाना ही मुक़द्दर हुआ जाता है क्या अब मयस्सर मुझे तिनके का सहारा भी नहीं चारागर फिर तू बने क्यों है मसीहा सब का मेरे ज़ख़्मों का तिरे पास मुदावा भी नहीं दिल के सहरा को 'अनन्या' जो बनाए गुलशन ख़ुश्क आँखों में वो शादाब नज़ारा भी नही...
श्याम पधारो
गीत, स्तुति

श्याम पधारो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** रक्षक बनकर श्याम पधारो, ले लो फिर अवतार। पावन भारत की धरती पर, अब जन्मो करतार।। घोर निराशा मन में छाई, मानव है कमजोर। काम क्रोध मद मोह हृदय में, थामो जीवन डोर।। शरण तुम्हारी कान्हा आए, तिमिर बढ़ा घनघोर। अब भी चीर दुशासन हरते, दुष्टों का है जोर।। सतपथ में बाधक बनते हैं, बढ़ते अत्याचार। गीता का भी पाठ पढ़ा दो, व्याकुल होते लाल। नैतिकता की दे दो शिक्षा, बन कर सबकी ढाल।। आनंदित इस जग को कर दो, चमकें सबके भाल। धर्म सनातन हो आभूषण, बदले टेढ़ी चाल।। राग छोड़कर पश्चिम का हम, रखें पूर्व संस्कार। त्याग समर्पण पाथ चलें नित, हमको दो वरदान। शील सादगी को अपनाकर, नित्य करें उत्थान। सत्य निष्ठ गंम्भीर बनें हम, दे दो जीवन दान। जीवन सार्थक कर लें अपना, कृपा करो भगवान।। मर्यादा के रक्षक प्रभु तुम, ज...
अमृत की धारा
गीत

अमृत की धारा

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** ओ ओ ओ ओ .. राम भगति ध्यान में ध्यान जो लगाएं ... भवसागर से मुक्ति वह पाए, तुम्हारे भगति में तुम्हारी भगति में...२ हो ओ हो ओ हो.. पत्थर स्पर्श किया जो तुमने श्रापमुक्त हुए अहिल्या माई तुम्हारी भगति से, मां सबरी के जुठे बेर तुमने जो खाए ममता की भाग जो बढ़ाए तुम्हारी भगति ने ....२ हो ओ हो ओ.. गणिका को ज्ञान से अवगत करवाएं कुरूक्षेत्र में अर्जुन को गीता सार है सुनाई तुम्हारी भगति ने....२ हो ओ हो ओ.. मीरा ने पी लिया था विष का जो प्याला, वह बन गई अमृत की धारा तुम्हारी भगति में...२ हो ओ हो ओ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सूत्र
कविता

सूत्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खबर बनाना और बेचना खबरचियों और चैनलों का शानदार और कमाऊ धंधा है, इस धंधे में प्रॉफिट बहुत है धंधा बिल्कुल नहीं मंदा है, पहले की बात और थी पर आज खबरें बनाये जाते हैं, झूठ को सच का जामा पहनाये जाते हैं, पैसे देकर खबरें बनवाये जाते हैं, वक़्त आने पर उसे भुनाये जाते हैं, तब पत्रकार बन जाते हैं पत्तलकार, पत्रकारिता बन जाता है व्यापार, इनके सूत्र होते हैं मजबूत, जिसका होता नहीं वास्तविक वजूद, सूत्रों का नाम ले दिखा जाते हैं चरित्र, एक ही थैली के चट्टे बट्टे होते हैं सारे मित्र, कभी कभी सूत्र होते हैं विश्वनीय, असल में जो होते हैं निंदनीय, ये खुद को कहते हैं लोकतंत्र का चौथा खंभा, जिसे ये अपने कर्मों से साबित कर कमाने लग जाते हैं हरे रंग की अम्मा, अब बताओ सूत्र फर्जी खबरों का आधार नहीं हो सकता, सूत्र...
गणेश-वंदना
स्तुति

गणेश-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे विघ्नविनाशक, बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। मोह, लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे लोभी, कपटी, दम्भी हंसते हैं विवेक पर पहरे रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ । गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं
कविता

मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** बड़े बुजुर्गों की कहावत सच है कि हाथी के दांत दिखाने खाने के और हैं मेरी पोल खोलना मत मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं बड़े बुजुर्गों की कहावत है कि एक उंगली दूसरे पर उठा तीन उंगली ख़ुदपर उठेगी मैं भी दूसरों पर उंगली उठाता हूं पर तीन उंगलियां का मैं दोषी हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं अपने संस्था के प्रोग्राम में मुख्य अतिथि एसपी की पत्नी जज़अधिकारी को बुलाता हूं उनमें मेरे कई बहुत काम फ़सते हैं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं मैं खुद प्राकृतिक संसाधनों का अवैध दोहन कर शासन को चुना लगाता हूं अधिकारियों के हाथ गर्म करता हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं हर गलत काम जो अवैध करता हूं समाज में सफेदपोश बनकर रहता हूं नामी संस्था का संस्थापक हूं मैं भी मतलबी दोगला स्वार्थी हूं यह सब बाते...
हिन्दी लावणी छंद
छंद

हिन्दी लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है। निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।। सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है। जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।। प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया। हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।। अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने। फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।। देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी। हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।। है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की। हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।। ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना। विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।। जो पाश्चात्य दौड़ में दौड़े, दय...
हां हूं मैं मूर्ख
कविता

हां हूं मैं मूर्ख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां हूं मैं मूर्ख, नहीं होता गुस्से में मेरा मुंह सूर्ख, बचपन से लोग कहते रहे हैं और आज भी कह रहे हैं, लगभग सबने ये घोषित किया है, घर से लेकर बाहर वालों तक ने ये वास्तविक शब्द मुझे दिया है, सच कहने की क्षमता शायद मूर्खों में ही होती है, सच्चाई के पीछे भागना और साफ हृदय का होना ही अहमकता की निशानी है, मां,भाई,बहन और पड़ोसी सभी इस बात पर एक राय हैं, समाज के लोगों ने भी माना, सामाजिक चिंतन करते देख यार दोस्तों ने भी पक्का जाना, कुरीतियों,पाखंडों,अंधविश्वास, अतिवादिता का विरोध, समझदार व्यक्ति कर ही नहीं सकता, समयानुसार जल रहे आग में अपना पांव धर ही नहीं सकता, कभी कभी तो लगता है कि मेरी बीबी बच्चे भी मेरी इस महानता को दिल की गहराई से स्वीकारते होंगे, अब तो मुझे भी लगता है कि मैं सचमुच ही मूर्ख ब...
स्वामी विवेकानंद
दोहा

स्वामी विवेकानंद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम। स्वामी जी तुम थे सदा, लिए विविध आयाम।। स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार। अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।। जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप। बिखराई नव रोशनी, दी मानव को धूप।। सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, गुरुवर थे तुम ताप। काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।। गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर। तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।। त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग। खिले संत तुमसे सदा, जीवन के नव रंग।। था सामाजिक जागरण, सरोकार, अनुबंध। कभी न टूटे आपसे, कर्मठता के बंध।। सुर, लय थे, तुम ताल थे, बने धर्म की तान। गुरुवर तुम तो शिष्य का, थे नित ही यशगान।। मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव। गुरुवर तुमने धर्म को, सौंपा पावन ताव।। वं...
गणपति स्तुति – कुण्डलिनी छंद
स्तुति

गणपति स्तुति – कुण्डलिनी छंद

कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा (छत्तीसगढ़) ******************** अधिनायक अधिपति 'अमित', अभिनंदित अधिलोक। शुभदाता करिये शमन, शरणागत का शोक।। शरणागत का शोक, विश्वमुख वरदविनायक। प्रथम नमन अवनीश, अष्टमंगल अधिनायक।। गुणवंता गुणनिधि गुणिन, गौरीसुत गणराज। सुखदायक शंकरसुवन, सिद्ध कीजिए काज।। सिद्ध कीजिए काज, जयति जय जगत नियंता। 'अमित' अथक अनुनीत, गुणाकर हे गुणवंता।। मोदक, मेवा, मधु सहित, मनोभाव मनुहार। मैं मूरख मतिमंद मति, अर्चन हो स्वीकार।। अर्चन हो स्वीकार, मिले मुझको चरणोदक। 'अमित' अकिंचन भेंट, भावमय मेवा मोदक।। सदा सहायक भक्त के, स्वामी सिद्ध समर्थ। विघ्न विनाशक विघ्नहर, कर सुविमल अव्यर्थ।। कर सुविमल अव्यर्थ, आप ही हो अवधायक। 'अमित' विनय स्वीकार, रहो अब सदा सहायक।। परिचय : कन्हैया साहू 'अमित' (शिक्षक) निवासी : भाटापारा (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पू...
हमारी हिंदी
कविता

हमारी हिंदी

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा पर दुख भरी है इसकी गाथा। हिंदी भाषी अक्सर समझ जाते अनपढ़, विदेशी भाषा बोलने वाले दिखाते अकड़। हिंदी दिवस महज एक पर्व। हिंदी बोले और लिखा तो आ वे शर्म। अपनी मातृभाषा का युवा करते तिरस्कार, गैर भाषा के सीखे सारे अचार विचार। आओ कुछ यूं करें कि हिंदी का बड़े मान, यह वेद ऋचाओं की वाणी मुनियों का है ज्ञान। रस छंद अलंकारों का इसमें है भंडार, अंतर मन के सारे भावों का है यह अनुपम आधार। सहज सरल सुंदर मीठी सी मां की ये है लोरी, बचपन यौवन इसके आंचल में पलते हैं सारे हमजोली। हिंदी हमारे अस्तित्व का मजबूत है धागा, हिंदी हमारी सिरमौर और गौरव की है गाथा। हिंदी बिन हम प्राण ही और भाव शून्य से, येहमारी सो,च कल्पना, उत्साह और जीवन की परिभाषा। शपथ लेते हैं रहेंगे सदा इसके रक्षक, बोलचाल और कामकाज सब हिंदी ...
मैं और वह
कविता

मैं और वह

अंजली सांकृत्या जयपुर (राजस्थान) ******************** मन पिशाचः बुद्ध: शिकार: शांत: अशांत: प्रण: अहिंसा धर्म: अहिंसा कर्म: अहिंसा मन: शांति हेतु उद्देशित भला दृश्यित है. हैवान मैं छुपा शैतान हूँ दिखावटी हूँ, मौन मैं दिल में दबी, बात हूँ ... संकी हूँ, आवारा मैं फिर कहीं, शांत मैं धूप मैं, छाव मैं छाव दबी धूप मैं, हू बारिश विचारो की, बादलो मे छुपी आवाज मैं, हूं अग्नि मैं, तपस्या मैं इक छलावा हूं, दिखावा मै हू स्वार्थ मैं, दबा राज हूँ बर्फ सी, जुबान मैं तितली सी, बात हूँ ... मैं कौन हूँ, मैं मौन हूँ, मैं द्वन्द्व मे, मैं अन्तर्द्वन्द्व हूँ मैं सृष्टि का विचार , मैं मन का विकार, मैं कौन हूँ मैं मौन हूँ मैं अशांत हूँ मैं शांत मैं !!!! परिचय :- अंजली सांकृत्या निवासी : जयपुर राजस्थान  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
भारतीय भाषाओं की रानी हिंदी
कविता

भारतीय भाषाओं की रानी हिंदी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** साठ प्रतिशत जनता भारत की बोल रही है हिंदी सर्वाधिक जन द्वारा भारत में फूल रही है हिंदी कंप्यूटर पे खरी उतरी उसका साथ निभाती है हिंदी प्रत्येक ध्वनि का पृथक चिह्न है जो बोलें,सो लिखती है हिंदी आज विदेशों में भी फलीभूत है हिंदी भारत की तो है ही फिजी,गयाना माॅरिशस में भी गाई जाती है हिंदी म्यांमार, भूटान, नेपाल, सिंगापुर इंडोनेशिया, युगांडा,यमन त्रिनिदाद, थाईलैंड, न्यूजीलैंड सहित लगभग पच्चिस देशों में 80 करोड़ की आबादी बोल रही है हिंदी सबका करती सम्मान है हिंदी विकासमान भाषा है हिंदी संपर्क में आई हर भाषा के शब्दों को अपनाती है हिंदी हर भाषा का सम्मान करें हम शीर्ष पर रखें हम हिंदी।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमा...
हिंदी हिंद देश की भाषा
कविता

हिंदी हिंद देश की भाषा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** हिंदी हिंदी देश-भाषा, हिंदी हैं हमारी मातृभाषा, हिंदी हैं हमारा मान, हिंदी हैं हमारा स्वाभिमान। हिंदी हैं हिंद देश की शान। हिंदी हैं हिंद का मान। हिंदी हैं हिंद देश की राजभाषा। हिंदी है हिंदी की सर्वोत्तम एकमात्र भाषा। सकल विश्व में सर्वोपरि हैं,हिंदी भाषा। हिंदी वर्णमाला आरंभ होती 'अ' से अनपढ़। हिंदी वर्णमाला अंत होती 'ज्ञ' से ज्ञानी। हिंदी हैं हर जन-जन की भाषा। आओ-आओ हम सब मिलकर, हिंदी भाषा का सम्मान करें। हर जन बोले हिंदी भाषा, हर जन पढ़ें हिंदी भाषा, हर जन लिखें हिंदी भाषा। हिंदी हिंद देश में उन्नति करें नित, हिंदी भाषा से ही हिंद देश विकास करें। हिंदी भाषी हम हिंदुस्तानी हैं। हिंदी भाषा ही हमारी जुबान हैं। हिंदी भाषा हिंद देश में अनेकता में एकता, हिंद देश में विविध भाषाओं ...
हिंदी का उत्थान करोगे …
कविता

हिंदी का उत्थान करोगे …

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हिंदी है इस देश की भाषा, सर्वाधिक है बोली जाती, किंतु विडंबना यह आज भी, क्षेत्रीयता में तोली जाती। पूछता हूँ, देश के कर्णधारों से, क्या राष्ट्रभाषा का ऐसा ही सम्मान करोगे? कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? पिचहत्तर साल व्यतीत हो गए, पाये अपनी आजादी को, किंतु कभी क्या सोचा तुमने, गौरव देना है हिंदी को। अपनी अंग्रेजी सोच का तुम, जो नहीं कभी बलिदान करोगे, कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? माँ को मम्मी डैड पिता को, चाचा ताऊ अंकल हैं, चाची बन कर आंट घूमतीं, देसी के ऊपर डंकल हैं। गैरों पर अपनों से बढ़कर, जब ऐसा अभिमान करोगे, कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? भारतेंदु को भूल गए तुम, भूले तुम मीरा दिनकर को, सूर कबीर तुलसी को भूले, बस याद रखा तो मिल्टन को। हिंदी के गौरव को भुला, क्या इनका...
हिंदी की अभिलाषा
कविता

हिंदी की अभिलाषा

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** मैं राष्ट्रभाषा बन जाऊं सभी के मुंह पर खिल खिलाऊ। यह मेरी प्यारी भाषा सभी को सीखने की अभिलाषा। जिसमें मैंने सीखें न ट ख ट इसमें बात करता झ ट प ट। गोपन मन को दे दी भाषा हिंदी मेरी प्यारी भाषा। इसको कबीर ने अपनाया मीराबाई ने मान दिया। आज़ादी के दीवानों ने इस हिंदी को सम्मान दिया। भारत की आशा है हिंदी मेरी प्यारी भाषा है हिंदी। आओ हिंदी में पढ़े-लिखे करें काम सारे हिंदी में। जिसका सौंदर्य एक बिंदी में यह मेरी प्यारी भाषा। सभी को सीखने की अभिलाषा परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचि...