हमारा लोकतंत्र
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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हिम्मत, ताक़त, शौर्य विहँसते,
तीन रंग हर्षाये हैं।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा,
जन-जन तो मुस्काये हैं।।
क़ुर्बानी ने नग़मे गाये,
आज़ादी का वंदन है।
ज़ज़्बातों की बगिया महकी,
राष्ट्रधर्म -अभिनंदन है।।
सत्य,प्रेम और सद्भावों के,
बादलतो नित छाये हैं।
सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा,
जन-जन तो मुस्काये हैं।।
ज्ञान और विज्ञान की गाथा,
हमने अंतरिक्ष जीता।
सप्त दशक का सफ़र सुहाना,
हर दिन है सुख में बीता।।
कला और साहित्य प्रगतिके,
पैमाने तो भाये हैं।
सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा,
जन-जन तो मुस्काये हैं।।
शिक्षा और व्यापार मुदितहैं,
उद्योगों की जय-जय है।
अर्थ व्यवस्था, रक्षा, सेना,
मधुर-सुहानी इक लय है।।
गंगा-जमुनी तहज़ीबें हैं,
विश्व गुरू कहलाये हैं।
सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा,
जन-जन तो मुस्काये हैं।।
जीव...