Thursday, April 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

गरीबी
कविता

गरीबी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन में क्या क्या ना कराती गरीबी, झूठन के बर्तन, झाडू और पोछा, ऊपर से चार ताने सुनाती हे ये गरीबी। हथोडा और पावडा, गेती और तगारी, ठंडी हो या हो बारिश, गर्मी मै पसीना बहाती गरीबी। सेठो के बोल सहना थैलो का बोझ सहना, हर वक्त ठेला ढोना, सीखाती हे ये गरीबी। रूखी और सुखी खाना, जीवन को हे चलाना, बच्चों को एक भिखारी बनाती हे ये गरीबी। कोई तो भीख मांगे कोई जेब हाथ मारे, कोई चोरी और डाका डाले, हाथो मै हथकड़ी डलवाती है ये गरीबी। तुम गरीबो को दो सहारा, जीवन को दो किनारा, तुम बाँह उनकी थामो, रोजगार से लगा दो, बन जाये उनका जीवन, धन व्यर्थ ना गँवावो, गरीबी के दिन हे भारी, अमीर की रात न्यारी, जरा सोचकर तो देखो, तुम सूट पेन्ट वालो परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांव...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर उडे नव वर्ष के पांखी खुले आकाश में छोड़ आये नीड़ कितने, ओर कितनों से जुड़ेंगे कौन जाने कब, कहां फिर रास्ते कोरे मुड़ेंगे फिर सुरभि के कलश ले, सांसें गगन वातास में बहुत से संदर्भ ऐसे भी रहें हैं जो नहीं हारे आंधियों के सफ़र में क्या हुआ, कुछ किरकिरे अनुभव रहें हों भीड़ के छोड़ देगा समय उनको, हाशियों फिर कैसे विश्वास से बढ़ो आगे नये वर्ष में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं ...
खर्चे बहुत बढ़े
कविता

खर्चे बहुत बढ़े

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** पूर्णिका प्यार के अख्तियार के चर्चे बहुत बढ़े। इतिहास के पन्ने घटे पर्चे बहुत बढ़े।। अब शीरी न फरहाद न लैला नही मजनूँ, नवयुग की अप्सराओं के खर्चे बहुत बढ़े। दिल लगाने में बढ़ा है आजकल जोखिम, इश्क में है तीक्ष्णता मर्चे बहुत बढ़े। तारिकायें मोहती है किन्तु उलझन है, नीलाम होता हुश्न अगरचे बहुत बढ़े। कब्र में हैं पैर फिर भी आजमाते है, दिया सी उम्मीद के किर्चे बहुत बढ़े। प्रेम है पूजा कहा जाता रहा जिसे, बदनाम करने के लिए लुच्चे बहुत बढ़े। परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
ये पल ये दिन तुम याद रखना यारो
कविता

ये पल ये दिन तुम याद रखना यारो

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** ये पल ये दिन तुम याद रखना यारो हम रहे ना रहे खयाल रखना यारो एक पल का भरोसा हमारा नहीं सपना मेरा तुम संभाल रखना यारो कोई कब तुमसे अलविदा कह जाए ख़ुदा के लिये तुम तैयार रखना यारो गीत खुशियों के गाकर तुम अपने दिल मे सपना संभाल रखना यारो दुखी न हो कोई मुफ़लिसी में कोई गीरे न ऑसू तुम रूमाल रखना यारो विश्व हमारे चरण छूए यूगो यूगो तक हाथो मे ऐसा तुम चराग रखना यारो स्नेह हो अपनत्व हो जीवन तत्व हो सब के प्रती हृदय दयाल रखना यारो गम की आग मे जल न पाए कोई भी अपनी राहो मे ऐसी चाल रखना यारो कत्ल न हो पाएं अपनी नज़र से यारो ऑखो मे ऐसी जलाल रखना यारो सर्वेभवन्तूसूखीन की भावना लिये हो सदा साथ ऐसी मिशाल रखना यारो आज मिलकर इक संकल्प ले 'मोहन' संकोच का,तुम न सवाल रखना यारो परिचय :- मन...
नव्य वर्ष
दोहा

नव्य वर्ष

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ग्यारह महिने दौड़ती, सबकी अपनी रेल। नवल माह पूरा करे, अंतिम वाला खेल।। सुंदर शोभा पलक पर, रखना सदा जरूर। बूंद पत्ते अवसान से, निज स्थल होते दूर।। सबक पड़ोसी माह से, मिल जाता हर बार। दिसंबर को पछाड़ता, नवल साल संसार।। दुर्गम पथ नदिया चले, अनुपम दे उपहार। वक्त घड़ी चलती सरल, अनुभव मिले अपार।। खो देने का भय रहे, याद बिदा का मोल। बूढ़ा वक्त दरक रहा, नूतन परतें खोल।। चूके समय बहाव में, परिणिति भी अनजान। अहम आहुति बता रहा, भूल गए अनुमान।। खुशियाँ पल संयोग से, जब भी खोले द्वार। भुलवाए संताप का, भारी भरकम भार।। स्नेहयुक्त संसार में, पल पल जीवन खास। चाहत रंगत ही सदा, हरदम रखना पास।। संकट मोड़ खड़ा मिले, अनर्थ भी तैयार। पकड़ नहीं तकदीर पे, कहता दिल आगार।। आवागमन युक्ति चले, नूतन समझो ...
वैदिक ज्ञान भरें अंतस में
कविता

वैदिक ज्ञान भरें अंतस में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारे जग में सर्वश्रेष्ठ हैं, वैदिक परंपरायें। हम ऋषि-मुनियों की संताने, मिलकर सब अपनायें। वैदिक धर्म सकल दुनिया में, परम पुरातन भाई। पावनता लख इसकी महिमा, वेदों ने भी गाई। भारत,आर्यावर्त इसी का, वैदिक नाम पुराना। वैदिक धर्म, सनातन को भी, सारे जग ने माना। कालखंड,भारतीय संस्कृति का, ही वैदिक कहलाता। वैदिक ज्ञान,सभ्यता वैदिक, सकल जगत अपनाता। भारतीय वैदिक संस्कृति को, दुनिया ने अपनाया। इसे मानने वालों ने ही, सुख मय जीवन पाया। वैदिक रीति-रिवाज, हमारे, सकल जगत ने जाने। है नैतिक दायित्व हमारा, हम भी इनको माने। वैदिक ज्ञान सदा जीवन को, उन्नति पथ ले जाता। जिसमें वैदिक ज्ञान भरा वो, मान जगत में पाता। वैदिक परंपरायें हमको, उत्तम राह दिखातीं। स्वाभिमान से जियें जिंदगी, सबको यही सिखातीं। ...
नये साल के नये हिसाब
कविता

नये साल के नये हिसाब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आओ... नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। जिंदगी ने लम्हा-लम्हा कितना घटाव दिया। उस सब का जोड़ कर ले। जो दर्द कई गुना बढ़ते ही गए। आओ... चंद उम्मीदों से उन्हें भाग कर ले।। आओ नए साल पर कुछ हिसा -किताब कर ले। जिंदगी बड़ी तेजी से निकल जाती है। जबकि लगता है यह गुजराती ही नहीं है। इसी बात पर फिर से वहीं बात कर ले। घूम-घाम कर, फिर से उसी घेरे में घूमती है जिंदगी। हम खड़े किसी त्रिकोण में जिंदगी को, फिर से नई उम्मीद से वर्गाकार कर ले। आओ नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। जो लोग....कहते है। यह करेंगे... वह करेंगे रेजोल्यूशन तो एक भुलावा है। जबकि हम भी जानते हैं। पिछले बीते हुए तमाम सालों में कौन-सा खंबा उखाड़ डाला है। आओ फिर भी ...फिर से एक नई उम्मीद कर ले। आओ नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। ...
अयोध्या नगरी
कविता

अयोध्या नगरी

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** २२ जनवरी २०२४ सिर्फ एक तारीख नहीं है पन्नों पर इतिहास लिखा एक जायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगाI हिन्दू हो तो गर्व करो तुम अपने हिन्दू होने पर लहरा दो भगवा जाकर तुम भारत के कोने-कोने पर लिख दो एक गाथा ऐसी तुम कि, देश गौरवशाली कहलायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगाI कितने लालों ने जान गवाई सीने पर गोली खाकर के चढ़ गए कोठारी बंधू जो बाबरी के गुम्बद पर जाकर के जो हँसकर जान गवां बैठे, न दूजा गवां कोई पायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगा। पाँच सौ वर्षों तक प्रभु श्रीराम ने कितने कष्ट सहे सूर्यवंशी मर्यादा पुरूषोत्तम एक टेंट के अंदर बैठे रहे स्वर्ण सिंहासन पर प्रभु श्रीराम को अब बैठाया जायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या ...
लक्ष्य की ओर
कविता

लक्ष्य की ओर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** चलो नया साल में कुछ नया करेंगे। हार को फिर भव्य जीत में बदलेंगे।। अतीत की बीती बातें याद आयेंगी। कभी रुलायेंगी तो कभी हँसायेंगी।। क्या खोया है और क्या पाया हमने? खुद उन्नति की गणित लगाया हमने।। समय लाता परिवर्तन और स्थिरता। मानव मानसिक शक्ति में गंभीरता।। सब कुछ भूल कर नव शुरुआत होगी। एक बार फिर संघर्ष से मुलाकात होगी।। प्रयासों का बीज धरती पर बोते चलेंगे। तभी हमको कर्म का मीठा फल मिलेंगे।। उम्मीद की कलम से तकदीर लिखेंगे। जीवन की पुस्तिका में सात रंग भरेंगे।। बढ़ेंगे आगे सभी भर कर मन में जुनून। लक्ष्य को पाकर हमको मिलेगा सुकून।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक...
पुरानी पेंशन
कविता

पुरानी पेंशन

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** रोक ली क्यों पुरानी पेंशन, अब तो कर दो लागू। आस लगाए बैठे कब से, बन बैठे क्या साधू। यहां जवानी अपनी खो दी, कैसे कटे बुढ़ापा। नहीं सुनी जो बातें हमारी, हम खो देंगे आपा।। हक हमारा देते नहीं है, वंचित करते हमको । सता के हम सबको यूं, मिलता क्या है तुमको। मात- पिता से रहते हरदम, दूर बहुत सपनों से। घर बार दिया है छोड़ हमने, दूर रहें अपनों से।। शपथ सभी ने मिलकर ली थी, नाम देश हो कतरा। आंधी आए तूफान आए, नहीं हमें है खतरा दो -दो पेंशन है नेता की, हमें एक न मिलती। कब तक रहेगा दोगलापन, घर पर खुशी ने खिलती।। करो बहाल पुरानी पेंशन, खुशी दिला दो हमको। दुख से मिल जाएं छुटकारा, अपना कहेंगे तुमको । जीवन को खुशहाल बना दो, करते हो क्यों देरी। सब कुछ है हाथ में तुम्हारे, बात सुनो जी मेरी।। परिचय :-  ...
तेरा मेरा इतना नाता
कविता

तेरा मेरा इतना नाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं परिपक्व एक बुढ़ापा तू मुस्काता बचपन सा मैं ढलती एक रात हूँ तू उगता सूरज प्यारा मैं प्यासी बंजर धरती तू बरसता सावन सा आया तेरा मेरा इतना नाता मैं माटी का दीपक तू उजली बाती सा मैं कलकल बहती नदिया सी तुझमे जोर समुंदर का सारा तेरा मेरा इतना नाता मैं एक सूखा फूल हूँ तू नन्हा कोपल का जाया मैं हूँ कड़वी नीम निम्बोली तू मीठा शहद सा भाया तेरा मेरा इतना नाता मैं पल पल बीता लम्हा हूँ तू नए साल सा इठलाता मैं हूँ एक खत्म कहानी तू ख्वाब सा सबको भाता तेरा मेरा इतना नाता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
नववर्ष के दोहे
दोहा

नववर्ष के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया हौसला धारकर, कर लें नया धमाल। अभिनंदित करना हमें, सचमुच में नव काल।। नवल चेतना संग ले, करें अग्र प्रस्थान। होगा आने वाला वर्ष तब, सचमुच में आसान।। वंदन करने आ रहा, एक नया दिनमान। कर्म नया,संकल्प नव, गढ़ लें नया विधान।। बीती बातें भूलकर, आगे बढ़ लें मीत। तभी हमारी ज़िन्दगी, पाएगी नव जीत।। कटुताएँ सब भूलकर, गायें मधुरिम गीत। तब सब कुछ मंगलमयी, होगा सुखद प्रतीत।। देती हमको अब हवा, एक नया पैग़ाम। पाना हमको आज तो, कुछ चोखे आयाम।। कितना उजला हो गया, देखो तो दिन आज। है मौसम भी तो नया, बजता है नव साज़।। पायें मंज़िल आज तो, कर हर दूर विषाद। नहीं करें हम वक़्त से, बिरथा में फरियाद।। साहस से हम लें खिला, काँटों में भी फूल। दुख पहले सुख बाद में, यही सत्य का मूल।। अभिनंदित हो वर्ष नव, बिखरायें ...
प्रीतम पावस बन कर आए
गीत

प्रीतम पावस बन कर आए

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीतम पावस बन कर आए, बरसे मन की अँगनाई में। खनक उठे कँगना भी मेरे, बीते दिन की तरुणाई में।। नव किसलय आये बागों में मधुकर उपवन-उपवन डोले मधु से भरी हुई कलियों का, हौले-हौले घूँघट खोले।। जीवन में माधव आया है, खोया मन अब शहनाई में प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। साँस-साँस पर नाम लिखा है, सपनों की नित गूथूँ माला। तुम मेरे कान्हा मैं राधा, जादू कैसा प्रियतम डाला।। गीत प्रणय के गातीं झूमूँ, मैं कोयल सी अमराई में। प्रियतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। प्रेमपाश में बँधी पिया मैं, नशा प्रीति का जैसे छाया। गाल लाल पिय हुए छुअन से, निखरी कंचन सी है काया।। तुम्हें खोजनी उतरी चितवन, दृग -झीलों की गहराई में। प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। पर...
आज चिट्ठी आई है
कविता

आज चिट्ठी आई है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** प्रेम की पाती लेकर आता था डाकिया पुकारता जब नाम मेरा हिरणी सी चपलता लिए कर जाती थी चौखट को पार लगा लेती दिल से प्रेम की पाती । आज चिठ्ठी आई है चिट्ठी को छुपकर पढ़ती ढाई अक्षर प्रेम को जोड़ लेती ख्वाबो से रिश्ते होसला ,ज़माने से डर नहीं का भर लेती मन में । वो सामने आते तो होंठ थरथराने लगते मानों शब्द को कर्फ्यू लगा हो बस आँखे ही कर जाती थी प्रेम का इजहार । सुबह नींद खुली तो लगा जैसे एक ख्वाब देखा था प्रेम का अब डाकिया भी नहीं लाता प्रेम की चिट्ठी मैने भी चिट्ठी लिखी ही नहीं क्योंकि हो जाती है मोबाइल पर प्रेम की बातें । परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत...
वो अदना सा आदमी
कविता

वो अदना सा आदमी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हमने देखे हैं कि बड़े-बड़े तुर्रमखां लोग भी जेब से नहीं निकालते एक भी दमड़ी, जब कोई भूखा, कोई जरूरतमंद, कोई असहाय, आ जाए गुहार करने कुछ मदद की, तब दिहाड़ी करने वाले की जेब से निकलता है मदद को चंद सिक्के, जो वो बचाकर रखा रहता है अपनी मुश्किल पलों पर इस्तेमाल करने खातिर, उन्हें नहीं होता देने में कुछ मलाल, क्योंकि वो भी गुजरा रहता है किसी समय इस तरह के नाजुक पलों से, तब जाग उठता है उसके अंदर की इंसानियत, वैसे भी पेट भरा हुआ भी गाहे बगाहे निकालते रहते हैं इनसे पैसे, कभी चंदे के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, तो कभी उत्सव के नाम पर, यहीं तो है वो अदना सा आदमी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित ...
घनघोर घटाएँ
गीत

घनघोर घटाएँ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** छाईं हैं घनघोर घटाएँ, तन-मन को आनंदित कर दे। अंतस् का तम दूर सभी हो, जीवन को अनुरंजित कर दे।। नेह-किरण तेरी मिल जाए, दुविधा में जीवन है सारा। मधुरस नैनों से छलका दो, रातें काली, राही हारा।। दम घुटता है अँधियारो में, जीवन पथ को दीपित कर दे। निठुर काल की छाया जग पे, मौत सँदेशा पल-पल लाती। रोते नैना विकल सभी हैं, क्षणभंगुर काया घबराती।। विहग-वृंद सब घायल होते, आस-दीप आलोकित कर दे। पीर बड़ी है पर्वत से भी, टूटी सारी है आशाएँ। क्रंदन करती है ये धरती, पग-पग पर देखो बाधाएँ।। डूबी निष्ठाओं की नौका, प्रेम-बीज को रोपित कर दे। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
नये साल का गीत
गीत

नये साल का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया काल है, नया साल है, गीत नया हम गाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। बीत गया जो, उसे भुलाकर, हम गतिमान बनेंगे जो भी बाधाएँ, मायूसी, उनको आज हनेंगे गहन तिमिर को पराभूत कर, नया दिनमान उगाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। काँटों से कैसा अब डरना, फूलों की चाहत छोड़ें लिए हौसला अंतर्मन में, हम दरिया का रुख मोड़ें गिरियों को हम धूल चटाकर, आगत में हरषाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। जीवन बहुत सुहाना होगा, यही सुनिश्चित कर लें बिखरी यहाँ ढेर सी खुशियाँ, उनसे दामन भर लें सूरज से हम नेह लगाकर, आलोकित हो जाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प...
बदल नहीं पा रहा हूं
कविता

बदल नहीं पा रहा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अछूत हूं साब, गंगाजल से भी नहाता हूं, नित्यप्रति प्रार्थना करने मंदिर भी जाता हूं, ये अलग बात है कि वहां लतियाया जाता हूं, वहां से घर आकर घरवालों को सुनी कथा सुनाता हूं, चमत्कारियों का हूनर बताता हूं, साल में कई बार कराता हूं पूजापाठ, ये परंपरा नहीं भूलता चाहे गरीबी रहे या ठाठ, पूण्य कमाने की चाहत रखता हूं, प्रवचनों का स्वाद चखता हूं, अपने पूर्वज का सर कटाने के बाद भी नित्य मंत्र जपता हूं, लोग खाने को मेरे घर में नहीं आते तो क्या हुआ मंदिर में भंडारे कराता हूं, ब्रह्मदेवों को जिमाता हूं, इतना सब कुछ करने के बाद भी पता नहीं क्यों अभी भी बना हुआ हूं अछूत, पता नहीं देवों को क्यों नहीं आ रही दया जस का तस ही हूं नहीं हो पा रहा सछूत, तो बताओ किसको दोष दूं? अपनी जात को? उनके खयालात को? ...
माँ
कविता

माँ

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ बेटी का नाता महान, समझना पाया कोई जहान। माँ आशा की किरण है जगत मै माँ विश्वास की आस। माँ भाव का दर्पण है, माँ प्रभात की मुस्कान। माँ प्रेम की डोर है, बेटी पतंग समान। धरती जैसा धैर्य हे उसमे सागर जैसी थाह। अम्बर सी स्तब्ध हे रहती, विशाल हृदय स्वभाव। सब उलझनो का सुलझन हैं वो, ममता प्यार दुलार। मनोबल है बच्चों का वह तो, माँ हे उच्च विचार है। माँ जीवन में प्रहरी है तो, दूरद्रष्टा पिता महान। माँ शान्ति की मूरत मेरी, गम सहना हे स्वभाव। सूरज सा माँ तेज है तुझमें, किरण सा हे प्रकाश। माँ पीहर में हे फुलवारी महके जीवन जहान। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां ...
वही तो नहीं …
कविता

वही तो नहीं …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जिसे देख के बहार आयी थी मेरे मे निखार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। जब ये घटना -घटी तुम थे नायक मै थी नटी निहारती रही कटी सी कटी रह गयी आंखें फटी सी फटी मैं हिस्सो में अब बंटी ही बंटी मन ने माना मै पटी तो पटी उसके लिए स्वर्ग से उतार आयी थी मुर्तिवत खड़ी जैसे उधार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। सांसे मानों थम सी गयीं निगाहें उसपे जम सी गयी मैं थोड़ी सहम सी गयी उसपे जैसे रम सी गयी गुस्सा भी अधम सी गयी ज़िंदगी से ग़म सी गयी मैं लिए जिंदगी के सपने हजार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। मेरे खुशी का ठिकान नहीं था उस जैसा कोई पहलवान नहीं था मुझ जैसा वो नादान नहीं था उसका पटना आसान नहीं था वैसा कोई महान नहीं था अब मेरा कोई अरमान नहीं था उसके मिलने से पहले मैं बीमार आयी थी कहीं तुम वह...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** लो फिर आ गया है नव वर्ष, दौड़ता हुआ संकल्पों की गर्द से ढका। पहाड़ी प्रदेशों में भेड़ चराता हुआ, सड़क किनारे टुकड़े लोहे प्लास्टिक के चुनता। भीड़ भरे चौराहे पर वाहनों की रेलमपेल में कटोरी थामें, चंद सिक्कों की खनक से मुस्काता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, आंखों में जीजिविषा भरे मेहनत से सरोकार साइकिल रिक्शा पर पसीने से लथपथ पैडल मारता। पतासी के ठेले पर जीरा नमक संग अपनी जठराग्नि से लड़ता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, खेतों की मेड़ों से, हरी दूब पर पूस की ठंड से विकल, टखनों तक पानी में डूबा। उम्मीद को पगड़ी में बांधे, रात गठरी सा ठिठुरता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, दृढ़ निश्चय, कृत संकल्पित हो। कुछ वादे, कुछ इरादे थामें। कच्ची बस्ती से होता हुआ, मध्यम वर्ग के गलियारों से निकलकर स...
हिमाचल गान
कविता

हिमाचल गान

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उच्च हिमालय बहती नदियां कल कल करती झरनों की आवाजें फैली हरियाली, सुगंधित सुमन महके समीर, बहकी कलियाँ ऐसी गोद हिमाचल की जय-जय-जय हिमाचल की। ऊंचे वृक्ष, नीची नदियां कर्कश करती चट्टानें चहकते पक्षी, महकती फसलें सरसराहट करता पानी गरजते बादल, बसरते घन ऐसी गोद हिमाचल की जय-जय-जय हिमाचल की। बाल ग्वाल, लाल गाल मदमस्त धूप, अनंत गगन मीठी बातें, ठंडी रातें धौलाधार की श्रंखलाएँ देवों की भूमि, सनातन की आन ऐसी गोद हिमाचल की जय-जय-जय हिमाचल की। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
शून्य से शिखर तक
दोहा

शून्य से शिखर तक

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्य को पाकर दिखाना है मुझको। जीत का परचम लहराना है मुझको।। इस दुनिया में कठिन कुछ भी नहीं, शून्य से शिखर तक जाना है मुझको।। यदि जीवन एक खेल है तो मैं खेलूँगा। चाहे लाख मुसीबतें आए मैं झेलूँगा।। प्रेरित होकर ध्यान लगाना है कर्म में, असंभव को संभव करके दिखाऊँगा।। रच सकता है तो रच मेरे लिए चक्रव्यूह। महारथियों के दल चाहे खड़े हो प्रत्यूह।। ज्ञान हासिल किया है मैंने माँ के गर्भ में, इस बार सातवें द्वार को भेदेगा अभिमन्यु।। रह-रह कर अभी जवानी ने ली अँगड़ाई। सुनहरे भविष्य के लिए लड़नी है लड़ाई।। अपने हाथों लिखना है मुझे नया इतिहास, यही सही समय है, शुरू करनी है पढ़ाई।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुय...
नव वर्ष २०२४ पर दोहे
दोहा

नव वर्ष २०२४ पर दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनन्दन नव वर्ष। नई सुबह की नव किरणें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली फूलों से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नये साल के भाल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। शुभ यश जीवन में मिलें, हर्षित हो चहुं ओर। अभिनन्दन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठा कर हाथ। जीव जगत आनंद में, सदा रहें हर छोर। नये साल से आरज़ू, स्वर्णिम करना भोर। नूतन वर्ष शोभित हो सदा, सदी के भाल। दो हज़ार चौबीस में, भारत हो खुशहाल। झोली भर शुभ कामना, आप सभी को आज। मन में जो सपने बुने, होंगे पूरे काज। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
नूतन वर्ष
कविता

नूतन वर्ष

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जीवन है अनमोल मूल्यवान और अनमोल नेकविचार बनाये भेदभाव को दूर भगाएं समाज, देश कल्याण में बेजिझक मिलकर सब आगे आएं, वर्षभर के दिन, महीने और साल लौटकर वापस अब नहीं आयेंगे नववर्ष में आपस में वापस फिर हम मिलते चले जायेंगे करने को है बहुत कुछ समाज, देश जाति के प्रगति के काज जीवन सुख-दुख का सागर है सद्भाव और सुविचारों से अनमोल स्वच्छ विचार बनाएं सबको उठाएं सबको जगाएं सबको मिलकर बढ़ाये समस्त जनों की खातिर मंगल कल्याण का गीत एकसुर में मिलकर गाये निःस्वार्थ सेवाभावना से निर्धन ग़रीबों असहाय के हम मिलकर मददगार क्यों न सभी बन जाएं, इस महत सेवा के रास्ते में भरा है अनन्त असीम प्रेमप्रीतप्यार स्नेहता का खोलता है यह आपस में द्वार यही दीप मिलकर जलाएं सद्धविचार लाएं भेदभाव दूर भगाएं जीवन को भयमुक्त बनाएं नए सा...