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पद्य

रहे सलामत मेरा सजना
कविता

रहे सलामत मेरा सजना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारे भारत के नर नारी, करवा चौथ मनाते। अपने ही अपनों से मिलकर, अपना उन्हें बनाते। पार्वती शिव और गजानन, की पूजा होती है। चौथ तिथि को पूज्य सुहागिन, सारे दुख खोती है। उत्तम पति की आस ह्रदय रख, कन्यायें व्रत करतीं। सारे सुख सौभाग्य प्राप्ति की, मन में आशा भरतीं। निराहार निर्जल व्रत रखकर, सुंदर रूप सजातीं। दीर्घायु हों सजन हमारे, प्रभु से खैर मनातीं। सारे दिन पकवान बनातीं, गृह कारज करतीं हैं। कर सोलह श्रृंगार सँवरतीं, मन उमंग भरतीं हैं। नए वस्त्र आभूषण पाकर, मन ही मन मुस्कातीं। रहे सलामत मेरा सजना, गीत प्यार के गातीं। अंबर में जब चाँद दीखता, तब पूजा विस्तारें। चलनी और दीप ज्योति से, उसकी छटा निहारें। मधुमय जीवन हो हम सबका, इसी भाव से जीतीं। चाँद देखकर खुश हो जातीं, साजन से जल पीतीं।...
सड़क के किनारे
कविता

सड़क के किनारे

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** सड़क के किनारे बैठी वह जीण-शीर्ण आधे घूंघट में, हाथों में पके-अधपके चावलों का कटोरा लिए। पेट के गड्डे को भर रही थी कुछ इस तरह कि मानो फिर कभी खाली न होगा। लेकर कुदाल उन नाजुक हाथों में, फिर से एक नाली को खोदना होगा। अकेली नहीं थी वह! दामपत्य जीवन के सुबूत उसके दो कर्मवीर सुपु‍त्र, कुदाल के हत्थे को अधिकार स्वरूप छीनने का प्रयत्न कर रहे थे। क्योंकि यही तो मिलेगा उन्हें कुछ संभलने पर! शुक्र है कि उन्होंने कागज कलम नहीं माँगी। वर्ना कहाँ से लाकर देती वो इन निरक्षरों को अक्षर? सुघढ़ थी पर पढ़ी-लिखी नहीं थी वह। पेट की आग में झुलस गया था उस रूपवती का रूप। वर्ना आधुनिकता के अधनंगे लिबास में, सड़क के किनारे किसी रेस्तराँ में वेटर को कुछ इठलाती ऑर्डर लिखवाती। पर वह तो सूँत-सूँतकर खाए...
कलम मेरी पहचान
कविता

कलम मेरी पहचान

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हर जंग लड़ा लिखते-लिखते, सत्कर्म हीं एक इरादा है। हम कलम के वीर सिपाही हैं, ये है अपना ऐलान। है कलम मेरी पहचान...२ इतिहास गवाह हमारा है, दुश्मन को भी ललकारा है। बस मुद्दों की हीं लड़ाई है, बेतुक न मेरी धारा है। हम होते नहीं हैरान। है कलम मेरी पहचान...२ हम पड़ते नहीं प्रपंचों में, नित शब्द समागम करते हैं। हर जगह तुरत छा जाते हम, बस शांति प्रेम रस ढरते हैं। मुझमे है शक्ति तमाम। है कलम मेरी पहचान...२ अनमोल मिलन होता अपना, सब देख चकित रह जाते हैं। सबकी बोली थम जाती है, जब शब्द हमारे आते हैं। हो कार्य मेरा अविराम। है कलम मेरी पहचान...२ न जाति धर्म का भेद-भाव, सबसे मेरा गहरा लगाव। आनंदित हो "आनंद" कलम, है दिखलाती अपना प्रभाव। हुई कलम आज वरदान। है कलम मेरी पहचान...२ परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पि...
करवा चौथ
कविता

करवा चौथ

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ। माँगूँगी तेरे लिए लंबी उमर, भूखी,प्यासी बैठी हूँ।। सोलह सिंगार करके, सिंदूर तेरे नाम के भरके। तैयार हूँ सज-धज के, प्या र है जन्मोंजनम के।। सही-सलामत तुम रहो, इसलिए कष्ट सहती हूँ। मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ।। तुम ही मेरे अच्छे दोस्त हो, तुम मेरे भगवान हो। तुम ही तपस्या के फल हो, प्रभु के वरदान हो।। शिव-पार्वती, गणेश की, पूजा-अर्चना करती हूँ। मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ।। छुप गया चाँद बादलों में, अब कैसे दीदार करूँ। जीवन साथी पास खड़े, कुछ पल इंतजार करूँ।। जब उदय हुआ माँगी आशीष, सौभाग्यवती रहूँ। मेरे साजन, मैं सुहागन, करवा चौथ व्रत रखी हूँ।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल....
मंगल खुशियां लाते मिट्टी के दीपक
कविता

मंगल खुशियां लाते मिट्टी के दीपक

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मिट्टी के प्यारे न्यारे दीपक, रौशनी में खिलखिलाते जलते-जलते तेलबाती के दीपक, घर को चमकाते दीपोत्सव से प्रकाशोत्सव पर्व तक छा जाते मिट्टी के शुभ मंगल दीपक, खुशियां भर-भर लाते कुम्हार के हाथों से, मथकर चिकनी मिट्टी के चाक के चक्कर कच्ची मिट्टी के लगाते सुहावने सुंदर आकृति में मिट्टी के दीपक बन जाते देख कच्ची मिट्टी के दीपक, हम मोहित होते जाते जगमगाते लुभाते, सुहावनी रौशनी, दीपक फैलाते मन को हर्षाते, जगमगाते, रोशनी खुशियां बिखराते प्रदूषण से सबको, तेलबाती के मिट्टी के दीपक बचाते घर-घर का मंगल उजियारा दीपोत्सव के दीपक बढ़ाते मिट्टी में रमते मिलते उत्सव की बेला पर मंगल गीत से आंगन को मधुरिम बनाते घर भर के आंगन में दीपक सगुन भरते जाते विराजमान होकर घर के कोने कोने तक सुख समृद्ध कुशल मंगल क...
करवाचौथ मनाव रे
गीत

करवाचौथ मनाव रे

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** करवाचौथ मनाओ रे चालो धीरे-धीरे चालो धीरे-धीरे, सखी री चालो धीरे-धीरे लाल-लाल लुगड़ो, असमानी पोलको माथे टीको नाक माय नथनी चुड़लो चमचम, नौलखी हरवो गजरा री कलियाँ बिखरे रे चालो धीरे-धीरे हाथे सजी है पूजा नी थाली माटी रो करवो, चाँदी री छलनी दिवड़ो री ज्योति दमके रे चालो धीरे-धीरे करवाचौथ री रात बी आई गई सासू बई ने प्रेम से सरगी सजाई मेहँदी भर्या दोई हाथ रे चालो धीरे-धीरे सौलह सिंगार म्हारा पियाजी लाया चाँद री वाट जोऊँ, सखियाँ बी आई गई म्हारो चाँद तो म्हारा साथ रे चालो धीरे-धीरे दो-दो चाँद म्हारे आँगने उतर्या ऊ चाँद तो घटतो ने बढतो म्हारो चाँद तो सदा मुस्काय रे चालो धीरे-धीरे करवाचौथ मनाव रे सखी चालो धीरे-धीरे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह ...
चाँद निकलेगा सजन फिर श्रृंगार होगा
गीत

चाँद निकलेगा सजन फिर श्रृंगार होगा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँद निकलेगा सजन जब देख फिर श्रृंगार होगा। व्रत रखे साजन सुहागन साथ तो भरतार होगा।। उम्र लंबी हो सजन की नित्य करती कामना है। माँगती वरदान प्रभु से वामिनी सुख साधना है।। देख करवाचौथ को पूजा करूँ मन मीत आजा। गंग सी बहती चलूँ अब संग गाती गीत राजा।। ओट चलनी देखती जिसको वही तो प्यार होगा। सात जन्मों का निराला संग अपना मान प्रियतम। है खनक चूड़ी झनक पायल सुनाती नित्य सरगम।। नाक की नथनी कहे साजन सदा ही ध्यान देगा। आज करवा चौथ को चंदा कहे प्रिय मान देगा राम सिय जोड़ी रहे सुंदर सजन संसार होगा। बन चकोरी राह तकती ये सुहागन देख तेरा। प्रीत का हिय है बसेरा चाँद सीमा पार मेरा।। अर्ध्य देती चाँद को वंदन करूँ प्रिय प्रेम पलता। चन्द्र ले जा आज पाती दिव्य दीपक प्रेम जलता।। डोर पावन प्रेम की पनपे यही आधार होगा। ...
दो डाकू
कविता

दो डाकू

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** डाका शब्द सुन डाकू भी चौक रहे, कुत्ते खामोश और टीवी चैनल भौक रहे, दो दोस्त बड़े हुए, बेरोजगारी के घेरे में खड़े हुए, करें क्या नहीं सूझ रहे थे, दाने दाने के लिए जूझ रहे थे, वे छोटी-मोटी चोरी करना नहीं चाहते थे, पर पुनः भूखे मरना नहीं चाहते थे, दोनों चाहते थे डाका डाला जाये, घर के बाहर हाथी पाला जाये, एक लड़ने लड़ाने की शरारत करता था, दूजा जोर-जोर से ख़िलाफात करता था, पहला शरारत ही करता रहा और दूसरा नेता बन गया, लोग पीछे चलने लगे वो उनका प्रणेता बन गया, फिर एक ने सीधा बैंक में डाका डाला, एक झटके में करोड़ों निकाला, साथी नेता ने विरोध में रैली निकाला, भावनाओं पर भरने लगा मिर्च-मसाला, डाकू कुछ दिनों बाद पकड़ा गया, गिरफ्त में माल सहित आ गया, पर नेता ने डाका डालने का एक नायाब तरीका निक...
तुम अजेय हो
कविता

तुम अजेय हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे। गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।। साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो। घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।। तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो। स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।। चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है। संघर्षों में मिली विफलता, मूल‌ सफलता का पड़ाव है।। करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी। भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।। भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी। बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।। घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना । तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली...
पूनम का चाँद
कविता

पूनम का चाँद

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरद पूनम चंद्रमा की शीतल चांदनी। तन मन को सुखदायक है मन भावनी।। पवन का स्पर्श कपोंलों को गुदगुदाता।411 तन- मन आनंदित खुशी के गीत गाता।। पक्षियों का कलरव खूब मन को भाता। गुनगुनी धूप का झोंका मन को सुहाता।। चाँद की रश्मियाँ प्रीतम की याद दिलाती। वो पुरानी स्मृतियाँ मन्द-मन्द मुस्काती।। शरद चंद्र की चांदनी देती सुखद आभास। दिखाता नई डगर, नए लक्ष्य का एहसास।। चांद की कोमल रश्मियाँ देती नयी ऊर्जा नई ताकत नव ऊष्मा प्रेरक कर्म ही पूजा।। नवरात्रि में करते हमसब मां की आराधना शरद पूनम की पूर्ण ऊर्जा से करते वन्दना।। चंद्रमा की शीतल किरण ऊर्जा युक्त खीर मिटा देती सब जन के तन- मन की पीर।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) न...
जीवन और प्रेम में कभी-कभी
कविता

जीवन और प्रेम में कभी-कभी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन और प्रेम में कभी-कभी एक तरफ की एक छोटी सी- 'नासमझी की त्रुटि' जब दोनों तरफ के एक महान सुन्दर-सुखमय -प्रेममय- मोहक-जीवन, उसके सपने तथा उसकी हॅसी-खुशी की सम्भावना का ध्वंसन कर देती है... और जब- नहीं रह जाता है कोई उपाय- उन अतीत के सपनों में- उन सम्भावित जीवनों को टटोलने की खोजने और पाने की तथा वापस लौटने की...; और जब सुखमय-हर्षमय- सौन्दर्यमय-समृद्धि से भरे 'जीवन-स्वार्थ की आशा;' किसी तरह से पूर्णतः निर्मूल होकर समय के बवण्डर में कण-कण से धूलधूसरित होकर बिखर जाती है तथा जब जन्मों-जन्म के 'एकल-सपने' अलग-अलग होकर अपने-अपने ढंग से ऑखों की गहराइयों में सपाट होकर किसी एक तरफ से चुभने लगते हैं... तथा जब 'दोनों तरफ से अपलक दर्शन की भूख' वर्तमान में किसी भी तरफ से ऑखों में कसैलापन प...
नासमझ इश्क
कविता

नासमझ इश्क

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हम ढूढ़ते रह गए उनको हर निग़ाह में, पर वो तो खो ही गए ओर किसी की बाहों में। हम ने तो हमेशा उनसे इक़रार ही किया था पर वो ही हर बार इन्कार ही करते रह गए। हमने तो खो दिए हर लफ्ज़ उनको मनाने में पर उन्होंने तोड़ दिया हर अल्फ़ाज़ हमे भुलाने में। हमारा तो बीत ही गया जीवन उनसे इश्क़ निभाने में पर उन्होंने गुज़ार ही दिया हर लम्हा हमें सताने में। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
जिसे जो कहना है कहने दो
कविता

जिसे जो कहना है कहने दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिसे जो कहना है कहने दो, मुझे मेरे सांचे में रहने दो, मुझे क्या करना है, कहां जाना है, क्या खाना है, किन सोये हुओं को जगाना है, मुझे नहीं कभी मजबूर होना है, किन जाहिलों से दूर होना है, ये मुझे तय करने दो, जमीं पर अपना पांव खुद धरने दो, मुझे मिली ऐसी शिक्षा कि सिर्फ अपना न सोचूं, जो जा चुका है उसके लिए सिर न नोचूं, शायद जरूरत हो मेरी तनिक भी मेरे समाज को, पढ़ाना है, जगाना है, तो क्यों बदलूं अपने अंदाज को, मजलूमों को अपनी बातें कहने दो, प्रगति की बयार उनके घर तक भी बहने दो, जिसे जो कहना है कहने दो, मुझे इंसानियत, भाईचारा, नैतिकता और संवैधानिक सांचे में रहने दो। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिका...
धरती माता क्यों
कविता

धरती माता क्यों

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पालती है मां नन्हे शिशु को गोद बैठाकर जलपान कराकर, भोजन देकर हाथ-पैर चलवाकर वस्त्र पहनाकर, अन्नप्राशन करवाकर गोद उठाकर घुटने चलवाकर, उंगली पकड़ाकर साइकिल चलवाकर पढ़ना, लिखना सिखलाकर सभी प्रकार के भोजन से बालक को बलवान बनाकर आध्यात्मिकता के भाव जगाकर नैतिकता का पाठ पढ़ाकर पुरुषार्थ का अर्थ समझाकर नन्हे पादप सम शिशु को गगनचुंबी वृक्ष बना देती है। धरतीमाता ही हमको अपनी गोद बैठाकर जल, भोजन दे, अन्न उगाकर कागज, कपड़े दिलवाकर पवन, ऊर्जा हम तक पहुंचा कर अपने सीने पर चलना सिखलाकर हर प्राणी का भार उठाकर उत्तम संदेशा लाती है हमको बढ़ना सिखलाती‌ है मां जैसी इसी शक्ति से धरती हमको आध्यात्मिकता का 'परोपकाराय सताम् विभूतय:' के (सज्जनों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है) दिव्यभाव का नैतिकता का अन...
अहंकार
कविता

अहंकार

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अहंकार की राजशाही इस कदर हावी होती त्रुटि स्वीकार न होती दर्प में लवलीन होती। सोच लो ज़रा रुक जाओ देख तो लो कौन है सही। अनबन हो या गलती गर्व से शुरू होती । अहंकार की राजशाही इस कदर हावी होती। अंतिम दृश्य विनाश का देख रही है ये दृष्टि समस्याओं का मूल कारण हमारी घमंड़ वृत्ति। सारा खेल बिगाड़ती दुःख के दिन देखती। व्यक्तित्व का पतन चरित्र का होता हनन। सदा अभद्र व्यवहार करती दुराचार व्यभिचार की जननी। आंखों पर बंधी अहंकार की पट्टी। स्वीकारने की वृत्ति एक कदम आगे लाती। ईश्वर अर्थ समर्पित कर हर कर्म सार्थक करती। ग़लत और सही का भेद जानकर दे दो अहंकार की आहुति। तब समाप्त होगी अहंकार की राजशाही। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुके...
स्वयं आत्मबल
कविता

स्वयं आत्मबल

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** चलता जा बढ़ता जा बढ़ाता जा मन का बल मत तोड़ हिम्मत हो जा निडर बढ़ता जाएगा स्वयं आत्मबल कदमों को बढ़ाता मनशक्ति बढ़ाता बढ़ता आगे निकल मत थाम कदम हिम्मत से ले काम बढ़ाकर मन का बल खुशियां का मिलेगा स्वयं आत्मबल बढ़ाकर विवेकपूर्ण मन के नेक विचार अनुभव खुशियों में बढ़ा आत्मिक बल खिलता चला आएगा स्वयं आत्मबल खुशियों सी लता सा फैल जाएगा संसार उच्च ख्यालों का बढ़ता जाएगा प्यार मन ही मन में भरेगा बंधायेगा अन्तर्मन करूणा प्रेम सम्बल झूठ कपट छलकपट त्यागकर पायेगा वही स्वयं आत्मबल फैलते रहे अन्तर्मन में सच्चाई ईमानदारी बढ़ते जाए उत्तम भाव रहे न मन कभी चंचल भूलकर जीवन के दुख मिलेगा चैन और बल मन ही मन भरता पायेगा दरदिन हरपल स्वयं आत्मबल परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति ...
शरद पूर्णिमा की रात
कविता

शरद पूर्णिमा की रात

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** आसमान सजी है तारों की लड़ी से, रहस्यमय चन्द्रमा की सोलह कलाएँ। वृंदावन में कान्हा ने रासलीला रचाई, नाच रही गोपियाँ बनकर अप्सराएँ।। चाँदनी, मणि की आभा बिखेर रही, श्वेत हीरक धूमिल है इसके समक्ष। साधक, संयमी भाव से व्रत करता, स्वर्णिम सिन्धुजा प्रतिमा है प्रत्यक्ष।। कौमुदी किरणें अमृत की वर्षा करती, निशीथ में महालक्ष्मी विचरती संसार। कौन मनुष्य जाग रहा धरा पर अभी, वर, अभय और वैभव दूँगी उपहार।। मांगलिक कार्य, गीत गाते हुए मगन, खीर से भोग लगाता मुझे अद्वितीय। पूजा से खुश करने वाले सेवक को, लोक में समृद्धि, परलोक में सद्गति।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण '...
भोर का फैले उजाला
गीत

भोर का फैले उजाला

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** भोर का फैले उजाला हर तरफ, दृष्टि-पथ आबाद होना चाहिए। मौन क्यों बैठे हुए हो मीत तुम, अब मुखर संवाद होना चाहिए।। साजिशें हैं हर कदम जंजीर सी, है विसंगति का यहाँ अब तो कहर। आँसुओं की गंग मे डूबे सभी, गाँव क्या हैं रो रहे व्याकुल शहर।। छल रहे विश्वासघाती से मधुर, आज परिसंवाद होना चाहिए। भोर का फैले उजाला हर तरफ, दृष्टि-पथआबाद होना चाहिए।। फूल बगिया के सभी मुरझा गये, है दुखी मधुमास, मन मधुकर विकल। वंचनाओं से करो अब मुक्त मन, और जीवन-लक्ष्य हो मंगल सफल।। कंटकों को भूल 'मीना' जय वरो, जीत का अनुनाद होना चाहिए। भोर का फैले उजाला हर तरफ, दृष्टि-पथ आबाद होना चाहिए।। ले अपाहिज जिन्दगी मजबूर सब, हर तरफ से मिल रहा उपहास है। जल गयी बस्ती लुटी है झोपड़ी, अब सुदर्शन चक्र से ही आस है।। द्रोपदी की ...
अंधे की प्रजाति
कविता

अंधे की प्रजाति

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आँख से अंधा जीवन भर हाथ में लाठी पकड़ कर चलता है जब भी आँख दिखता है उसी वक्त लाठी को पहले फेंकता है। स्वार्थी मनुष्य भी आँख रहते हुए अंधे की तरह काम करता है मतलब निकलने के बाद पथ प्रदर्शक को ही बदनाम करता है। इस दुनिया में दुष्ट, स्वार्थी व अहसान फरामोश भरे पड़े हैं पनाह देने वाले के ही रास्ते रोककर चट्टान की तरह खड़े हैं। आजकल लूटेरे लोग दूसरों के हक को छीनकर हरदम जोश में रहते हैं कौन कैसा है पता ही नहीं चलता यहाँ बेईमान भी सफ़ेदपोश में घूमते है। सूरज की रोशनी भी कम पड़ जाती है यदि हृदय के भीतर ही अंधेरा हो सज्जन व्यक्ति भी नजर नहीं आता यदि चारों तरफ़ बेईमानों का ही बसेरा हो। अंधे दो तरह के होते हैं, एक जो अपनी आँखों से कुछ देख नहीं सकता दूसरा वो जो आँख रहते हुए भी सच और झूठ में भेद नहीं कर सकता। प...
मुख पर आधा घूँघट डाले
कविता

मुख पर आधा घूँघट डाले

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सज-धज कर तैयार हुई है, होती आज विदाई। लौट-लौट घर देख रही है, बेटी हुई पराई। मुख पर आधा घूँघट डाले, देख रही भाई को। तिरछी चितवन से निहारती, है रोती माई को। आँसू छुपा, खड़े हैं पापा, सोच रहे हैं मन में। विछड़ रही है आज पिता से, बेटी इस जीवन में। रोना चाहे रहे हैं नैना, सागर भर आया है। आँगन द्वार देहरी छूटी, छूट रहा साया है। कर सोलह श्रृंगार जा रही, आज पिया के अँगना। नथ, मेहंदी, कुंडल कानों में, पहन कलाई कँगना। कभी याद आती बाबुल की, कभी बहन की आती। माँ,भैया सँग याद गेह की, पल-पल बहुत सताती। छोड़ चली बाबुल का अँगना, भैया बहना छूटे। टूट रही रिश्तों की डोरी, आज धैर्य भी टूटे। पिया मिलन की बात सोच कर, मन ही मन मुस्काती। जिस आँगन में बचपन बीता, उसे भुला नहिं पाती। समझाती फिर, अपने मन ...
जय माँ कात्यायिनी
कविता

जय माँ कात्यायिनी

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** नमो नमो माँ जयतु कात्यायिनी दु:ख मेंटनी धूम्रलोचन माते कालग्रासिनी अघमोचिनी शुम्भ निशुम्भ मर्दिनी विनाशिनी पाप वारिणी चुण्ड मुण्ड को यमलोक प्रेषिणी जय भवानी महिषासुर त्रिशूल संहारिणी दुर्गे शिवानी जगत हित प्रगटी कात्यायिनी मातु भवानी परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वारा "हिन्दी रत्न" सम्मान से सम्मानित, मुक्तक लोक द्वारा चित्र मंथन सृजन सम्मान, महात्मा गाँधी शांति सम्मान आदि स...
उपहार नवरात्रि का
कविता

उपहार नवरात्रि का

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** त्रेता में सीता हरण हुआ, दशमुख ने रूप छुपाया है, अब कलयुग में कितने सीता हरण हुए ,कितने दुष्टो ने नाम छुपाया है। श्री राम ने रावण मारा है, अब कौन राम पैदा होंगे इन दुष्टों के संहार ने को? इन आतताईयों के मारने को? सीता ने मृग की गलती की, अब तुम कितनी गलती करती हो, अपने दिल से तुम भी पूछो, तुम भी तो गलती करती हो? पैसा सोना सौंदर्य ऐश इसके खातिर तुम बिकती हो। क्यों मां की कोख लजाती हो, क्यों अपने धर्म से विचलित होती हो। धर्म ग्रंथों को पढ़कर देखो, तुम सीता राधा द्रोपति बनो। अपने धर्म का आदर करना, तुम शास्त्र से पढ़कर हे सीखो। अपनी शान से तुम जियो, रोशन कर दो तुम मातृभूमि को, जग में नाम "उज्ज्वल" कर दो। बन जाओ झांसी की रानी अहिल्या रजिया द्रोपति प्रतिभा। छूने ना दो इन दुष्टों को, बन जाओ रणचंडी ...
सांस का सफर …
कविता

सांस का सफर …

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। है दूर ना किनारा, जब साथ हो तुम्हारा- २ अनमोल है ये रिश्ता, तू बन चुकी सहारा- २ जज्बा गजब है तेरा, दुनिया का भी ना डर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर .... हमराही मेरे हमको, उस छोर तक ले जाना- २ जिस ओर ना पहुंचता, बेदर्द ये जमाना- २ अनजान इस सफर में, बस दर्द का कहर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर ... आनंद के कलम की, कड़ियां कभी रुके ना- २ जो प्रण है मेरे दिल में, वो प्रण कभी चुके ना- २ दरिया के बीच से हीं, मेरे प्रेम की डहर है,...
इन्तजार
कविता

इन्तजार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अधर बनी गुलाब पंखुरी नयन बने कमल से नयन भी करते इशारे प्रेम के बालो से निकली लट से छुप जाते नयन माथे पे बिंदिया सजी लगती प्रभात किरण कंगन की खनक पायल की रुनझुन कानो में घोल देती मिश्री कमर तक लहराते लटके बालों से घटा भी शरमा जाए हाथो में लगी मेहंदी खुशबू हवाओं को महकाए सज धज के दरवाजे की ओट से इंतजार में आँखों से आँसू इन्तजार टीस के बन जाते गवाह इन्तजार होता सौतन की तरह बस इतनी सी दुरी इन्तजार की कर देती बेहाल प्रेम रूठने का आवरण पहन शब्दों पर लगा जाता कर्फ्यू सूरज निकला फिर सांझ ढली फिर वही इंतजार दरवाजे की ओट से समय की पहचान कर रहा कोई इंतजार घर आने का तितलियाँ उडी खुशबू महकी लबो पर खिल, उठी गुलाब की पंखुड़ी समय ने प्रेम को परखा नववर्ष में चहका प्यार। परिचय :- संजय वर्मा "द...
राजनीति की चिल्ल पों
कविता

राजनीति की चिल्ल पों

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजनीति प्रवक्ता के बोल, रटे रटाए दिखते हैं। आड़ा तिरछा पूछ लिया तो, प्रति प्रश्न ही करते हैं। बोलने से कमाई होती, पर दिशाहीन चलते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं। अच्छा बोलने वाले का तो, हुनर दिलाता है मौका। गलत बात टकरा जाए, वक्ता जड़ते छक्का चौका। बस तारीफों के पुल बांधों, भले नहीं सोना चोखा। गुजरे समय में खूब जिनसे, पार्टी ने खाया धोखा। उन चतुरों की खातिर देखो, बस अंगार चमकते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं। वकील कानूनी भाषा से, रखें तर्क वितर्क कुतर्क। अदालत फैसला रहे एक, पर वक्ता दलील में फर्क। अपने मतलब का जोड़-तोड़, दिखाकर ही पाते हर्ष। आरोप अपराध अंतर में, करते कई बार विमर्श। कागज सबूत फोटो अनेक , पैरवी में दमकते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते ह...