प्रेम की गांठ
संजय वर्मा "दॄष्टि"
मनावर (धार)
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ठंडी हवा
मचल कर न चल
ठंड की आबो हवा
कही चुरा न ले जिया
बेचैन तकती निगाहे
मौसम में देखती
दरख्तों को
सोचता मन
कह उठता
बहारे भी
जवान होती।
धड़कने बढ़ जाती
प्रेमियों की
जाने क्यों
जब जब बहार
आती-जाती
बांधी थी कभी
मनोकामना के लिए
प्रेम की गांठे।
परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि"
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
सं...