Friday, January 31राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

दर्द का अहसास
कविता

दर्द का अहसास

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य लड़की सभी लड़कियों से खास है जीवन दुभर पर जीने की बेशुमार आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी मानसिकता लड़कियों से भी भिन्न है उसकी सोच माँ के गम से सर्वथा अभिन्न है जिसे माँ के अंदर करनी बाप की तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है आँख मे गम के आंसू अक्सर सोचती है क्या आयेगी खुशीयों के अवसर कितने गम है फिर भी नवजीवन की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब-2 से सवाल उसके जेहन मे उठती है जवाब के तलाश मे खुद से भी तो रूठती है जवाब मिलने का उसे अब भी एक आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सब कुछ होकर कुछ भी तो नहीं होता है? ऐसा इत्तेफाक दुनिया मे क्योंकर होता है? तब से मुझे भी उसके उत्तर की तलाश है एक लड़की जिसे...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का ताना-बाना। चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मेला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना। मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत। जीने की जिजीविषा, यहां संघर्षों का रेला। सीख कसौटी, मीठी घुड़की, आंगन में मिलती। जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार। बहन- भाई का रिश्ता, मणियों की मीठी माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन। संबंधों में नैतिकता, परिवार पुनीत यज्ञ शाला। दादा - दादी की सीख, नाना - नानी की परवाह। चाचा-चाची, ताऊ-ताई, यूं रिश्तों की चित्रशाला। वैभवी गीता का ...
फिर भी चलते ही जाना है
कविता

फिर भी चलते ही जाना है

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** संघर्षों की अमित कहानी जीवन की सच्चाई है पीड़ा और तंग हाली में भी जिंदगी ने खुशियां पाई है। कष्टों की परिभाषा क्या सोचो और विचार करो कठिन डगर पर भी तुम थोड़ा सुकून तलाश करो कितनों का घर तो देखो खुला आसमान बसेरा है सुख दुःख की क्या बात करें जीवन में कष्ट घनेरा है। फिर भी चलते ही जाना नियति है यह कुदरत की रुको नहीं तुम कर्म करो बदलो रेखा किस्मत की। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
गड्ढे की छलांग (ताटंक)
कविता

गड्ढे की छलांग (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। साहस मेहनत छलांग धरो, अपनी क्षमता बढ़ जाती। बुरा दूसरों का किए बिना, लक्ष्य भेदना सिखलाती। अनुभव बिन उद्योग संचालन, नई राह में लीन हुए। अब शोख शर्मीला बच्चा कहे, दुनियादारी जीत गए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। गड्ढा खोदने में जो तल्लीन, उनके पास समय कम हो। बाधक बनने में खो देते, जो संस्कार जरूरी हो। उनके घर की कलह कहानी, यत्र-तत्र गम गीत नए। बचपन से रहे कलंक ग्रस्त, अब ज्यादा ही दीन हुए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। स्पर्धा कारोबार के स्वामी, भाग्य से बहुत कमाते। हमने सुने कुछ ऐसे बोल, वो सोना चना...
हम नेताओं पर छोड़ दो
कविता

हम नेताओं पर छोड़ दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पहले तो बुदबुदाया, फिर नेताजी जोर से चिल्लाया, क्या जमाना आ गया दुनिया बन रही बुरे कर्मों की दीवानी, बढ़ रही है देखो मनमानी, मन से मनमानी तोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। हर विभाग वाले कर रहे भ्रष्टाचार, काम वे जिससे है आम जनता को सरोकार, युवा बैठे हैं बेकार, आह्वान है नई पीढ़ी से भ्रष्टता की दिशा मोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। गरीबी ऐसी कि नारी देह बेच रही, ऊंचे पद वाले गरीब देश की खुफिया जानकारी खेंच रहे, कुछ देश ही बेच रहे, भाइयों वतन बचाने पर जोर दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। भारत के नेता किससे कमजोर है, हमारे मस्तिष्क का होता बहुत जोर है, भले ही हम नहीं सुधर सकते हैं, पर हम कुछ भी कर सकते हैं, हमारा समर्थन चहुंओर पुरजोर हो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। परिचय :...
मन नहीं करता
कविता

मन नहीं करता

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तमाशबीन इस जग में जीने का मन नहीं करता गड्ढे में सड़कें हैं चलने का मन न ही करता नक्शों में सड़कें दिख तो जातीं हैं उन्हें पगडंडी कहने का मन नहीं करता पेड़ों पर शाखें हैं जमीन में जड़ें हैं फूल तो दूर पत्तों को देखने का मन न ही होता। नदियों में पानी नहीं, धरतीं को छेद रहे पर धरती का सानी नहीं चुल्लू भर पानी में डूब मरने का मन करता। बड़ों के ठाट वही छोटो की बात वहीं। भूखे नगौ की बात कहां श्मशान में कफ़न जलाने का मन नहीं करता परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पी...
चाय
कविता

चाय

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चाय तो है अमृत का प्याला, ठंडी में जीवन का सहारा, भली कहो चाहे बुरी कहो, पर चाय से बनता हर कोई प्यारा, चाय के बिना आतिथ्य नहीं, अतिथि का सत्कार नहीं, चाय के बिना फीका सम्मान, चाय से सब सुस्ती मिटती, गरीबों को फुर्ती है मिलती, चाय के बिना जीवन बेकार, चाय के बिना आलस नहीं जाता, जीवन में सुस्ती है लाता, "किरण" को तो चाय से प्यार, पर स्वास्थ्य के लिए यह हे नुकसान। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंड...
बेटी
कविता

बेटी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बेटी होती विदा मन परेशान है घर होगा तेरे बिन सूना आँखे आज हैरान है। दिल का टुकड़ा छूटा आँगन बेजान है कोई आवाज आती नहीं दस्तक बेजान है। तेरे बिना बहते नयन मन अब उदास है पायल की आवाज आती नहीं अंगना भी उदास है परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज...
वल्लभभाई पटेल
कविता

वल्लभभाई पटेल

अभिषेक शुक्ला सीतापुर (उत्तर प्रदेश) ******************** 'सिंह सा गर्जन और हृदय मे कोमल भाव रखते थे, वल्लभभाई पटेल जी से तो सारे दुश्मन डरते थे। बारदौली सत्याग्रह का सफल नेतृत्व आपने किया, 'सरदार' की उपाधि वहाँ की जनता ने आपको दिया। एकता को वास्तविक स्वरूप भी आपने ही दे डाला, रियासतों का एकीकरण भी पल भर मे कर डाला। प्रयास से आपने सारी समस्याओं को हल कर दिया, सबने आपको भारत का 'लौह पुरुष' था मान लिया। देश का मानचित्र विश्व पटल पर बदल कर रख दिया, लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने कमाल कर दिया। ३१ अक्टूबर को हम सब भारतवासी 'राष्ट्रीय एकता दिवस' मनाते है, आपकी याद मे हम 'स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते है।' परिचय : अभिषेक शुक्ला निवासी : सीतापुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित ए...
मतलबी दुनिया
कविता

मतलबी दुनिया

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** किसी को अपना मत समझ यहाॅं सब मतलब के साथी है कब तुझे गिरा कर आगे बढ़ जाऍं सारे जलाने वाले हाथ है यहाॅं होश में होकर भी बेहोश सारे यहाॅं ख़ुद को बचाने में मशगूल है तेरा रास्ता बंद कर कब मंज़िल में खड़े हो जाऍं सब अपना रास्ता बनाने में लगे है यहाॅं सब जुगाड़ू है यहाॅं हाथ सेंक कर तमाशा देखने वाले हज़ारों हैं यहाॅं तेरी ऑंख खुलेगी जब यहाॅं तो तू किनारे पड़ा होगा किसी और का महल खड़ा होगा यहाॅं बहुत हमदर्द है यहाॅं पीछे मुड़ा की तेरा राज़ खोलने वाले खड़े है यहाॅं मीठा बोल कर तूझे अपना बनाएंगे यहाॅं फिर तेरे पीछे तेरी ही हॅंसी उड़ाएंगे यहाॅं।। परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : ...
तुझसे आस लगाएं बैठी हूँ
कविता

तुझसे आस लगाएं बैठी हूँ

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं, तु आए तो, मैं अपना मन हल्का कर डालूं, कुछ अपने मन की, तो कुछ तेरे मन की, बात मैं कर डालूं, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं । तु तो चंचल मन की हठ वाली है, आधी राह से फिर मुड़ जाती है, मैं राही तेरी आस में वही रुक जाती हूँ, तुम मुझसे मिलने आओगी ना, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं , तु आए तो, मैं अपना मन हल्का कर डालूं। सारे जग में, मैं तेरी ही बात करती हूँ, फिर भी तुम मुझसे खफा हो जाती हो, मैं तुम्हें पूर्ण करना चाहूँ, तब तुम अधूरी सी रहती हो, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं। तुम अपनी मनमानी करती हो, मेरा मन जब अशांत हो, तो तुम अपनी हलचल करती हो, मुझसे अपने आप को, पूरा तुम करवाती हो, फिर मेरी पूर्ण कविता बन जाती हो, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं । परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए....
ऐ वीर जवान
कविता

ऐ वीर जवान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ऐे सैनिक ! फौज़ी, जवान, है तेरा नितअभिनंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। गर्मी, जाड़े, बारिश में भी, तू सच्चा सेनानी अपनी माटी की रक्षा को, तेरी अमर जवानी तेरी देशभक्ति लखकर के, माथे तेरे चंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। आँधी-तूफाँ खाते हैं भय, हरदम माथ झुकाते रिपु तो तुझको देख सिहरता, घुसपैठी थर्राते सीमाओं के प्रहरी तू तो, वीर शिवा का नंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। तू सीमा पर डँटा हुआ पर, हम त्यौहार मनाते तू जगता, मौसम से लड़ता, हम नींदों में जाते तेरे कारण खुशहाली है, किंचित भी ना क्रंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। मात-पिता, बहना-भाई सब, तेरे भी हैं नाते तू पति है, तो पुत्र भी चोखा, तुझको सभी सुहाते पर अपने इस मुल्क़ की ख़ातिर, छोड़े तू सब...
कश्मकश आम इन्सान की
कविता

कश्मकश आम इन्सान की

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* न जानवर हूँ न हैवान हूँ दुख है मैं इन्सान हूँ अर्थ बदल गया ईमान जल गया मैं पत्थर नही हूँ. इसलिए ठोकर खाता हूँ दिल है.. इसलिए टूट जाता हूँ. मैं सच बोलता हूँ तो साथ छोड़ता है इन्साफ वक्त का पाबंद हूँ मगर उपलब्धी का हकदार नही. कर्तव्य में विश्वास है मगर प्रशंसा का अधिकार नही दिखावे से जलता हूँ इज्ज़त पे मरता हूँ धोखे का भय है दोस्ती से डरता हूँ गली में टहलता हूँ हर दरवाजा़ आज बन्द है मतलब के लोग हैं इस बात का रंज है. दुख का साथी नही सुख का ढोल है बेटे का बाप से भाई का भाई से दौलत का खेल है बाप के मरनें तक रिश्तों में मेल है सच पे जी सकता नही झूठ सह सकता नही न ढल सका मैं कभी इसका मुझको खेद है बदल गया हर चीज़ क्यों इसमें कोई भेद है हर लोग आज़ हैवान हैं गम तो है इस ...
कुर्सी का खेल
कविता

कुर्सी का खेल

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जमीन पर बैठने वाले मानव, चटाई पर बैठने लगे हैं आज। छोटी सी तिपाई पर बैठने वाले, कुर्सी पर बैठे कर रहे हैं राज।। राजा जनता, प्रजा बन गयी, आज सेवक बन गया राजा। प्रजा तरस रही दाने-दाने को, राजा खा रहा पेट भर खाजा।। लोभ का लॉलीपॉप दिखाया है, स्वाद मीठा है या फिर नमकीन। सभी दौड़ रहे उनके पीछे-पीछे, कसमों, वादों पर करके यकीन।। देखते हैं नये सूरज की रोशनी, अंधेरा होगा या फैलेगा प्रकाश। वंचितों को मिलेगा उनका हक, जीत पाता है लोगों का विश्वास।। पहिए की कुर्सी घूमेगी किस ओर, कब तक सही पटरी पर चलेगी रेल। किसको मिलेगा कितना फायदा, कुर्सीधारी खेलेंगे कुर्सी का खेल।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग स...
नासमझ बेटा
कविता

नासमझ बेटा

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मात-पिता की बात मान लो, नही पड़े दुख सहना, समझा- समझा हार गए क्यों, नहीं मानते कहना, कहने बैठो गर कुछ इनको, कहे नासमझ हमको, भूल रहे जीवन से शिक्षा, दूर करे है तमको। इनकी बातें बड़ी निराली, चकित सभी को करती, सुने नहीं है बात बड़ों की, देख इन्हें माँ डरती, जुबां चलाएं सबके आगे, करते हैं मनमानी, घर में अपना रौब जमा कर, करते है नादानी। दो आखर को पढ़ कर समझे, खुद को बेशक ज्ञानी। पड़ जाए जो बोझ उठाना, याद करे वो नानी, फिर मत कहना नहीं समझ थी, हमें नहीं समझाया, निकल गया जो समय हाथ से, लौट कहो कब आया। बन जायेगा जीवन तेरा, सुनो ध्यान धर बातें, तेरे ही सुख खातिर जागे, हैं हम कितनी रातें, केवल सच ही जीवन नैया पार करेगा तेरी, इसीलिए बेटा बातों पर, अमल करो बिन देरी परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जीं...
दादी-नानी
कविता, बाल कविताएं

दादी-नानी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दादी-नानी की बरगद सी छांव में। बच्चे सीखते ज्ञान बैठकर पांव में। प्रज्वलित दीप की स्वर्णिम चमक, आलोकित बिखर रही आंगन में। द्वय शेर शावक से सुकुमार बाल, यूं एकाग्रचित्त ध्यान मग्न कथा में। कब कैसे तोड़े है विकट चक्रव्यूह, और क्या करें उग्र ज्वालामुखी में। जगत में उलझन भरी पगडंडियों, पर चले दुर्गम पथों के छलाव में। संस्कृति, संस्कार, सीख, सभ्यता, समझ लो फर्क शहर और गांव में। धर्म अर्थ काम मोक्ष की परिभाषा, सारे गुण कर्तव्यनिष्ठ पुरूषार्थ में। सुनते सार गर्भित कथा कहानियां, सहायक सुदृढ़ चरित्र निर्माण में। मन वचन कर्म से नर अवधूत बने, धर्म समाहित मां के सच्चे ज्ञान में। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रम...
समीर में शब्द उड़ाकर देख
कविता

समीर में शब्द उड़ाकर देख

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** समीर में शब्द उड़ाकर देख । भावों को भव्य बनाकर देख। मेघा से बातें आंख मिचौली आंसू में भाव भिंगाकर देख। होंगे अलंकृत उपमा उपमेय करुणा के बीज उगाकर देख। छंद बंध मुक्त उन्मुक्त अज्ञेय सस्वर नवगीत गाकर देख। पर्वत पृकति पृथ्वी पाषाण मन में श्रृंगार सजाकर देख। संयोग वियोग प्रयोग नियोग बिंब सागर में नहाकर देख। सरोज सूरज तारक चंद्रिका नयनों से नीर बहाकर देख। चांदनी रात में आकाशी बातें धरा पर चांद खिलाकर देख। परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
लहर का अनुमान
कविता

लहर का अनुमान

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बहुजनों की भीड़ देखकर कभी भी न करें लहर का अनुमान, बोलने से पहले दस बार सोच लो वर्ना हो जाओगे बदनाम, भीड़ का इस्तेमाल कैसे करें इनको पता ही नहीं, खैर इसमें इनकी कोई खता नहीं, ये बहकावे में सबसे ज्यादा आते हैं, अपने शक्ति का खुद मजाक उड़ाते हैं, बाद में जिनका समर्थन किये उनका पैर पकड़ गिड़गिड़ाते हैं, वक्त रहते समझ नहीं पाते हैं, सारी जिंदगी बेईमानी करने वाला निर्णायक दिन ईमानदार बनता है, रिश्वत के बदले दुश्मन को चुनता है, एक विचारधारा के होते नहीं है, खास सपने संजोते नहीं है, विरोधी इन्हें भला लगता है, अपना तो मनचला लगता है, भूल जाता है प्रतिद्वंद्वी के विचार, यादों से निकल जाता है भूतकाल के शोषण और अत्याचार, तो भीड़ देख न करें गुणगान, धराशायी हो सकता है लहर का अनुमान। परिचय :-  राजे...
मैं जलती रही
कविता

मैं जलती रही

डाँ. बबिता सिंह हाजीपुर वैशाली (बिहार) ******************** जग उठे कब ज्ञान इस संसार में प्रार्थना के पुण्य बल वरदान में साधना मेरी सफल हो जाएगी आस ले में रोशनी जलती रही। दूर हो तुम लौ दीया की मैं बनी धैर्य को बाँधे उम्र की डोर से संग मेरे कारवां चलता रहा आस ले मैं रोशनी जलती रही। कर निछावर अंतर तम से शब्द-शब्द चैन की आहुति दे कर ज्ञान यज्ञ हो के विह्वल मान को रच कर सदा आस ले मैं रोशनी जलती रही । मूल्य रस से पाल कर स्वाभिमान दे दीक्षा बस सम्मान का मुझको मिले जल उठो तुम ज्ञान के भंडार से आस ले मैं रोशनी जलती रही। नवकिरण बन जाओ तुम प्रभात की कुर्बान हो देश जग मान पर स्तंभ हो तुम भारत के आधार हो आस ले मैं रोशनी जलती रही। परिचय :- डाँ. बबिता सिंह निवासी : हाजीपुर वैशाली (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचन...
महान देश
कविता

महान देश

डॉ. अर्जुन गुप्ता 'गुंजन' प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** हरी भरी वसुंधरा सदा हरा मचान है। सुनील आसमान है नया-नया वितान है॥ नगाधिराज है यहाँ बड़ा अभेद्य वेश में। पयोधि पांव धो रहा सदा महान देश में॥ पठार भूमि है कहीं कहीं कछार है धरा। उपत्यका यहाँ कहीं कहीं धरा हरा भरा॥ घने कहीं कहीं अगम्य वन्य हैं बड़े यहाँ। सदा हरा वितान और वन्य कंटिला जहाँ॥ विरान थार है यहाँ कहीं कहीं पहाड़ है। विभिन्न जीव हैं जहाँ कहीं कहीं दहाड़ है॥ कहीं सुरम्य घाटियाँ कहीं कहीं अगम्यता। यही महान देश है भरी सदा सुरम्यता॥ नयी बयार है अभी नयी नयी उमंग है। नवीनता लिये हुये अभी नयी तरंग है॥ नयी सवेर है उठो सदा बढे चलो अभी। नवीन पंथ पे सदा चलो बढो अभी सभी॥ स्वदेश के सिपाहियों अदम्य हो सदा सभी। प्रवीर शूर साहसी बढ़े चलो सभी अभी॥ महान देशभक्तिपूर्ण भावना सदा रहे। सदा स्वदेश के लिये ...
पावस के सवैया
कविता

पावस के सवैया

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मन को तन को, नव जीवन दे, बरसात बहार सुहावन है। जब नीर हमें सबको सुख दे, तब गीत जगे मनभावन है। बरसे बदरा हम भीग गए, पर नीर सदा अति पावन है। सुख की बगिया मन फूल खिलें, बरसे सँग नेह सुसावन है। मन भीग गया,तन भीग गया, अब गीत जगा,यशगान नया। बरसा बहकी,बरसा चहकी, हर एक कहे वरदान नया। बिजली चमकी, बिजली दमकी, बरसे अब तो अहसान नया। हमको तुमको, इनको उनको, भर देे, नव दे, अब प्रान नया। हम जीत गए, हम प्रीत भए, अब तो हर ओर लुभावन है। कितना सुखदा, हर ली विपदा, नव आस सजा यह सावन है। अब रात गई, वह बात गई, नव रीति यहां अब आवन है। बरसे बदरा, हर ओर बही, जल की रसधार सुहावन है । अब गीत लबों पर गूँज रहा, यह है महिमा अति मौसम की। परदेश गए बलमा जिनके, उनको अब आग पले ग़म की। नव माप लिए,नव ताप लिए, बदरा हर बात सदा ...
मादक नैन
गीत

मादक नैन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं। सुरभित यौवन ले अँगड़ाई, प्रियतम हमें बिसारे हैं।। निश्छल प्रीति हमारी साजन, सावन-सी मदमाती है। दुग्धमयी निर्झरिणी-सी ये देख तुम्हें इठलाती है।। प्रियवर बसते हो तुम हिय में, हर पल राह निहारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ मादक नैन हमारे हैं।। करते व्याकुल नयन प्रतीक्षा, कंचन काया मुरझाई। प्रणय सेज हँसती हैं मुझ पर, प्रतिपल डसती तन्हाई मौन अधर, पायल के घुँघरू, निशदिन तुम्हें पुकारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं।। खोई मधुऋतु की है सरगम, दुख के बादल मँडराते। छाया है घनघोर अँधेरा, जलते जुगनू घबराते।। पीड़ाओं के भँवर-जाल में, डूबे सभी किनारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी...
सारे धर्म नेक है
कविता

सारे धर्म नेक है

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** सभी धर्मो का करे सम्मान। भारतीय संविधान देता है यह पैगाम। हमारे देश की सबसे बड़ी विशेषता धर्म निरपेक्षता। एक देश-अनेक धर्म करते रहो अच्छे कर्म। मत पालो भ्रम अच्छे है सारे धर्म। धर्म निरपेक्षता का उदाहरण भारत में पाया जाता हैं। यहां हर मुस्लमान भी दीवाली मनाता है। पाले अपने धर्म को और करे दूसरो का सम्मान सब एक दूसरे मे मिलकर रहें हिंदू हो या मुसलमान। सारे धर्म अच्छे है सारे धर्म नेक है। एक है भारत देश पर यहां धर्म अनेक है। गुरुद्वारे के लंगर में सभी लोग जाते है। ईद की सेवईया हिंदू भाई भी खाते हैं। अपने धर्म को शिद्दत से निभाये। न करे ऐसे काम कि दूसरे को तकलीफ हो जाय। कहीं अली की जय है कहीं बजरंगबली की जय है। हमारे देश में तो सारे धर्मो की जय है। परिचय : डॉ. प्रताप...
हुई समीरण संदल
गीत

हुई समीरण संदल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन के उर्वरा धरा पर, खिले प्रीति के पाटल। नाचे मन चंचल।। भावों का प्रस्पंदन तन में, लेने लगा हिलोरे। स्वप्निल चित्र छापने वाले, पृष्ठ पड़े जब कोरे।। प्रस्वेदी तन लगा महकने, हुई समीरण संदल।। नाचे मन चंचल.... (१) दिव्य प्रगल्भा सम्मोहन की, कुसुमित सेज सजाती। चटुल दृगों के संकेतों से, मुझको पास बुलाती।। लोहित लब पर मधु नद जैसे, स्वर उसके हैं प्रांजल।। नाचे मन चंचल....(२) स्वाति बूँद की आस सजाये, मन का चातक डोले। स्वागत में अभिसारी दृग भी, द्वार प्रणय का खोले।। ऋतुपति ने छू किया पलाशी, दग्ध देह का अंचल।। नाचे मन चंचल....(३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
अधूरी ख्वाहिशें
कविता

अधूरी ख्वाहिशें

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** हर दिल में पलें ख्वाहिशें कई, कुछ कही, कुछ अनकही सी, कुछ उजागर, कुछ राज़ सी, कुछ पूरी, कुछ अधूरी सी। कुछ बन पाती है हकीकत, कुछ दबी रह जाती है मन में, कुछ को मिल पाती है मंजिल, कुछ भटक जाती है सफर में। अधूरी ख्वाहिशें तोड़ देती है, जीवन का रुख मोड़ देती है, शांत मन को झकझोर देती है, अनजानों से नाते जोड़ देती है। हर ख्वाहिश पूरी हो, जरुरी तो नहीं, तेरे रुक जाने से, थमती दुनिया नहीं, टूटे इक सपना गर, नया सपना बुन, इक रही अधूरी तो क्या, नई ख़्वाहिश चुन। पूरा करने ख़्वाहिश, जी जान लगा दे, कर प्रयास, पूरा ध्यान लगा दे, फिर भी रहे यदि, ख़्वाहिश अधूरी, समझ प्रयासों में रह गई कुछ कमी। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...