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पद्य

आज़ाद पुरुष
कविता

आज़ाद पुरुष

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उठो देश के लोगों खुद के अधिकारों को ज़रा एक बार पहचानो। निकलकर झूठे किरदारों से खुद के व्यक्तित्व को ज़रा एक बार निखारो। सत्ता सत्ताधारियों की नहीं सत्ता को अजमाने वालों की सदा होती आई है। खुद की अजमाईस कर खुद की एक सत्ता ज़रा एक बार बनाना सीखो। उठो देश के लोगो खुद के अंदर के सत्य पुरुष को ज़रा एक बार पहचानो। आज़ाद पुरुष की तरह सत्य के लिए एक बार ज़रा जीवन जी कर देखो। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
भारतवासी
कविता

भारतवासी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भारतवासी माटी पूजे, तुमको बात बताता हूँ। बहती है गंगा-यमुना, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ।। पर्वतराज हिमालय जिसके हर संकट को हरता है। तीन ओर का सागर, जिसकी चरण-वंदना करता है।। बच्चो जानो, भारत माँ को, जिसका कण-कण सुंदर है। शस्य श्यामला मातृभूमि है, पर्वत-नदियां अंदर है।। ताल-तलैया, मैदानों की, आभा बहुत लुभाती है। मेरे बच्चो! दुर्ग-महल में, इतिहासों की थाती है।। लक्ष्मी बाई, वीर शिवा से, दमकी नित्य जवानी है। महाराणा ने चेतक के सँग, रच दी नवल कहानी है।। दीवाली, होली की आभा, ईद खुशी को लाती है। भारत को बच्चो! जानो तुम, जिसकी हवा सुहाती है।। पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, सभी ओर हरियाली है। हर मुखड़े पर हर्ष दिख रहा, सभी ओर खुशहाली है।। बच्चो! जानो मातृभूमि को, जो हम सबकी माता है। भारत माता की जय ब...
जीव से प्रेम
कविता

जीव से प्रेम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवों से मेरा प्रेम, मानो मन का वृंदावन हो जाना, उनके मौन से मुखरित होना मानो प्रभुमय हो जाना, उनसे भावों से जुड़ना मानो हृदय करुणामय हो जाना! उनके कष्ट से जुड़ना मानो आत्मा का जागृत हो जाना!! निमित्त बनना मानो प्रभु का आशीर्वाद मिलना!! उन से जुड़ना उतना ही सरल है जितना कृष्णा की मुरली में संगीत का होना उनसे प्रेम ना होना उतना ही कठिन है, जितना राम के लिए मन में शुद्धता का ना होना!! प्रेम असीमित है, अथाह है, जितना हो कम है निःस्वार्थ प्रेम, ईश्वर की आराधना है प्रेम, मनुष्य से प्रेम, पशुओं से प्रेम पक्षियों और पेड़ पौधों से अथाह प्रेम, प्रकृति से प्रेम, सृष्टि से प्रेम , यही हैं अनन्त, अविनाशी प्रेम परमात्मा से प्रेम अंतहीन, नाथों के नाथ......पशुपतिनाथ से प्रेम!! परिचय :...
गीत गणतंत्र का
कविता

गीत गणतंत्र का

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** संविधान में संजोये गए सभी मूलमंत्र का, चलो सब मिल गाते हैं गीत गणतंत्र का, न रहा कोई रंक और न रहा कोई राजा, हर कोई बजाओ मिल प्रजातांत्रिक बाजा, चुनावी वक्त आया तो चुनने से पहले किसी को, खूब सोचो समझो और रखो होंठों पे हंसी को, खोजना है अब सबको आयाम तो विकास के, बदल जाएंगे फिजां जल्द अपने आसपास के, जानना ही होगा हमें नियम व अनुच्छेद को, मिटाना ही पड़ेगा धर्म, जाति-पाती भेद को, यहां नहीं कोई मालिक वो तो है आम जनता, लोकतांत्रिक शासन की होती है जान जनता, गर अपनी जेब भरने को कोई भ्रष्टाचार लाए, न्यायालय में घसीट उसे सद आचरण सिखाएं, ध्वज ही फहराने से न होते कर्तव्य पूरा, नियमों को नहीं मानो तो है सब अधूरा, अधिकारी हो गर मदारी तो जनता बने जमूरा, कानून को जो न मानें मानो खाया वो धतूरा, जनता का, जनता के द्...
संदेह
कविता

संदेह

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** संदेह को संदेह मत रहने दे। इसके निवारण का उपाय ढूंढ ले। ******* जिसके प्रति संदेह होता है। वह विश्वास योग्य नहीं होता है। ******* संदेह होने का जरूर होता है कारण। यह सच है या झूठ कर लीजिए निवारण। ******* संदेह से अच्छे अच्छे रिश्ते भी खत्म हो जाते है। जिगरी दोस्त भी दुश्मन बन जाते है। ******** उन्होंने अपने प्यार के पौधे में शक का पानी डाला बेवजह अपने रिश्ते को उजाड़ डाला। ******** संदेह एक धीमा जहर है जो अपना असर धीरे-धीरे दिखाता है। हमारे रिश्ते को दीमक की तरह खाता है। ******* विश्वास सभी पे करें अंध विश्वास किसी पर नहीं थोड़ा शक भले हो बेशक पर उसको मिटा लेना है सही। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता...
बिखर रहे, माला के मोती
कविता

बिखर रहे, माला के मोती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देख-देख कर पीड़ा होती। बिखर रहे, माला के मोती।। तंत्र बना अब लूट तंत्र है, है बस्ती का मुखिया बहरा। गली-गली में दिखी गरीबी, कितने ही दर, तम है गहरा।। झूठ ठहाके लगा रहा है, सच्चाई छुप-छुपकर रोती। बहुतायत झूठे नारों की, मिलते हैं वादों के प्याले। कहते थे सुख घर आयेंगे, मिले पाँव को लेकिन छाले।। रोज बयानों के खेतों में, बस नफ़रत ही फसलें बोती। जाने कितनी ही दीवारें, मन से मन के बीच बना दी। बात किसी की कब सुनता है, मौसम हठी, ढीठ, उन्मादी।। उसकी बातें, उसकी घातें, लगता जैसे सुई चुभोती। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : नि...
आजादी की एकता
कविता

आजादी की एकता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** विविधता में एकता का एक ऐसा आंदोलन चलाया विश्वभर में आश्चर्यजनक एक शोध बनकर दिखाया हिंसात्मक पथ पर कभी भी कोई आगे नहीं आया देश की मिट्टी से किया देशप्रेम स्नेह प्यार निभाया देश की मिट्टी में मर मिटने देशप्रेमी कसम खाया चढ़कर फांसी का फंदा हंसता हंसता प्राण गंवाया अविराम मरतामिटता देशप्रेमी लहूलुहान नजर आया देश की खातिर देशप्रेमी बेहिचक एक आवाज उठाया जुबान की वही आवाज का देशप्रेमियों पर था साया जाति धर्म भाषा त्यागकर एकता स्वयं दिखलाया विविधता में एकता की मजबूतगांठ देशप्रेमी बनाया कूदकर देशप्रेम में देशप्रेमी देश को सुरक्षित कराया यही है हिंदुस्तान, देशप्रेम के पथ का पाठ था सिखाया परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
आओ, संस्कारों से संक्रमण मिटाएँ
कविता

आओ, संस्कारों से संक्रमण मिटाएँ

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हम सब भारत के वीर सिपाही भारत माँ के प्रति नतमस्तक हों अपना तन मन और जीवन भारत माँ को समर्पित हो। हम भारत के वीर सेनानी अपना भूगोल समझ में आता है जो करे देश से ग़द्दारी उसको भी झुकाना आता है। बढ़ा प्रदूषण संस्कारों में उसे सम्भालने आगे आएँ जो दूषित हुए संस्कार वो स्वच्छ बनाने आगे आएँ। हम भारत माँ के रक्षक हैं भ्रष्टाचार नहीं चलने देंगे भ्रष्टाचारी ग़द्दार देश के मशाल न उनकी जलने देंगे। लोभ मोह की सत्ता ने हमको लाचार बना डाला इसी मोहवश भारत को जयचंदों का आगार बना डाला। इस लोभ मोह को अब और न बढ़ने देंगे लालच के भूखे भेड़ों की अब और नहीं चलने देंगे। गाथा यह प्रण लेने और जगाने भारत का जनमन अपना मन स्वच्छ बनाकर भारत माँ को अर्पित तन मन। हम स्वच्छ स्वयं हो जाएँ मन का भ्...
अब जब जब हम गणतंत्र मनाएँ
कविता

अब जब जब हम गणतंत्र मनाएँ

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। भूलें हैं अबतक जिन-जिन को खोजें उनके त्यागी जीवन को फाड़े पन्नों को फिर से जोड़ें 'सच' को सत्य की तरफ फिर मोड़ें नव प्रेरणा की नव कथा सुनाएंँ! अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। याद करें उत्सर्ग की प्रथा 'चौड़ा सीना ऊचा माथा' पुनर्जागरण का वह युग रक्तरंजित संघर्ष की गाथा जब तब दुर्बलता के गीत न गाएंँ! अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। उनके 'स्वप्न' अनोखे थे जो स्वराज हित देखे थे 'उर्जा और उत्कर्ष से भरा' वो नवभारत के लेखे थे अब से नवोत्थान की राह बनाएंँ! अब जब हम गणतंत्र मनाएंँ अपना इतिहास पुनः पढ़ जाएँ।। 'क्रान्तिकारी' युगद्रष्टा थे वो लोकतंत्र के स्रष्टा थे वो स्वातंत्र्य यज्ञ की ज्वाला में संग्राम कुण्ड क...
गाथा बेटी की
कविता

गाथा बेटी की

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी इतिहास की गाथा है, बेटी तलवार की धार (लक्ष्मीबाई) बेटी अग्नि की ज्वाला है (मैना) बेटी व्यक्तित्व की खान (अहिल्याबाई होल्कर)। बेटी साहस वीर है (कल्पना चावला) बेटी धर्मनिष्ठ महान (सीता)। बेटी सुंदर मोहिनी ( दमयंती रूपमती) बेटी समाज मै मान( मदर टेरेसा) बेटी आर्थिक सशक्तिकरण की स्तंभ है(सावित्री जिंदल ) बेटी योद्धा महान (दुर्गावती)। बेटी शूरवीर है (केकइ) बेटी पिता की लाज (सीता) बेटी त्याग तपस्या है (राधा) बेटी धैर्य की खान (कुंती)। बेटी घर में उत्साह है (माधुरी) बेटी है हर शौक (मुस्कान) बेटी शान्त चित्त है (ज्योति) बेटी आँगन में बहार (पायल आयु) बेटी से हर त्यौहार है, बेटी रक्षा सूत्र, बेटी आँगन की तुलसी है, बेटी ममता प्यार और दुलार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : स...
कृपण
कविता

कृपण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पाकर भी कुछ देता नहीं कितना कृपण हैं इन्सान देकर भी कुछ लेता नही कितना एहसानी है भगवान। पाषाण भी देता है ठोकर। पत्ते भी करतें हैं आवाज़ पर, पर देते हैं, समीर देते हैं छाया। हर जड चेतन कुछ लुटाता है और देता है परन्तु, परन्तु स्वार्थ, स्वार्थ में इन्सान सब कुछ पाना चाहता है देना नहीं। यह उसकी तु,टी नही जमाने का कायदा है न चाह कर भी बेबस हैं इन्सान। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचना...
हम सभी है मौज़ में
कविता

हम सभी है मौज़ में

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज हम सभी हैं मौज़ में क्योंकर जाएं हम फ़ौज़ में। सबको अपने-अपने सुख की चाह है सबकी अपनी मंज़िल, अपनी राह है देश पर मर मिटने वाले तो कोई और थे आज किसको अपने देश की परवाह है इंसान स्वयं अपनी खोज़ में आज हम सभी हैं मौज़ में। इस समय जो उठ रही है दूर आंधी न किसी ने रोकने की है पाल बांधी सभी अपने आपको समझ बैठे खुद़ा अब न कोई आएगा फिर से वो गांधी मानवता रो रही है रोज में आज हम सभी हैं मौज़ में। किस किस से मांगने जाएंगे न्याय छल, कपट, धोखा, फरेब़, अन्याय न सुनी जाती पुकार किसी की यहां है ग़रीब़ी, मुफ़लिसी न कोई उपाय ईमान जा गिरा है हौज़ में आज हम सभी हैं मौज़ में। परिचय :- डॉ. रमेशचंद्र मालवीय निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मजबूत इन्सान
कविता

मजबूत इन्सान

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर, पगडंडी पर पड़े पतछड के कोलाहल में किसी की अस्पष्ट आवाज़ सुनाईं दी पिछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था। सोचा मेरा भृम होगा आगे चली, फिर दखा कोई नहीं था । फिर कोई बोला पिछे मत देखो आगे चलो, बढ़ो मंजिल अभी दूर है आत्म विश्वास, साहस, साथ, सामिप्य मैं तुम्हें दुंगा मैं मन हूं तुम्हारा। अकेलापन, सन्नाटे, तुफान से। लड़ना सिखों, बढ़ो आगे। पिछे मुड़ना कायरता हैं और तुम कायर नही मेरे साथी मजबूत इन्सान हों पथ चाहे कैसा भी हो उसे सुगम बनाओं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत ह...
महादानव
कविता

महादानव

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जीवित नहीं मुर्दे हो तुम महानगर के महामानव नहीं महादानव हो तुम। अपने मतलब के लिए बनाते हो हर किसी को अपने ख्वाबों का परिंदा फिर कहते हो अब भी मैं हुँ सब में जिंदा। शर्म कर्म बेच कर अपनी दो टके के लोगों को कहते हो सब को किरदार मेरा है अब भी सबसे उम्दा। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
जानवर हमसे बात करते हैं
कविता

जानवर हमसे बात करते हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हर एक जीव हमसे बात करते हैं उनके मासूमियत से भरे चेहरे हमसे बात करते हैं, उनकी अठखेलियाँ, उनका भोलापन हमसे रुबरू होते हैं नहीं समझ पाता जो कोई उनकी पीड़ा, उनकी वेदना उसकी सिसकी भरी आंहे वो सब तकलीफें हमसे बाटना चाहते हैं,! उनको नहीं समझ आता इंसानी भेष का मुखौटा इंसानी आक्रोश, इंसानी आतंक उनके भयभीत चेहरे हमसे बात करते हैं , जो सह पाऊँ उनकी पीड़ा की तपिश वही मेरे यज्ञ की आहुति होगी पूजा, हवन, अराधना तभी मेरी पूरी होगी!! नहीं पहनना चाहती आधुनिकता भरी, भारी भरकम पोशाक जिसमें इन्सानियत, मानवता दम तोड़ने लगे, उनका निश्चल प्रेम, उनका निःस्वार्थ अपनापन मुझे इंसानी पाठ पढ़ाते हैं, जीवों के हर रूप मे बसे ईश्वर ... हमसे बात करते हैं!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति :...
सड़क दुर्घटना
कविता

सड़क दुर्घटना

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सफर में तुम भी हो, सफर में मैं भी हूँ। नजर में तुम भी हो, नजर में मैं भी हूँ।। जिंदगी की गाड़ी चल रही आराम से, अकेले तुम भी हो, अकेले मैं भी हूँ।। रफ्तार में तुम भी हो, रफ्तार में मैं भी हूँ। मुसाफिर तुम भी हो, मुसाफिर मैं भी हूँ।। सबको पहुँचना है जल्दी अपनी मंजिल, मदहोश तुम भी हो, मदहोश मैं भी हूँ।। सड़क में तुम भी हो, सड़क में मैं भी हूँ। गाड़ी में तुम भी हो, गाड़ी में मैं भी हूँ।। सड़क दुर्घटना में हो गई जनता की मौत, खबर में तुम भी हो, खबर में मैं भी हूँ।। मसान में तुम भी हो, मसान में मैं भी हूँ। राख धुआँ तुम भी हो, राख धुआँ मैं भी हूँ।। जीवन कीमती है, ध्यान से चलाओ गाड़ी, क्योंकि मानव तुम भी हो, मानव मैं भी हूँ? परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भारत त्योहारों का देश है अनोखा अति मतवाला। पग-पग पर यह तो नित खुशियां बिखेरने वाला।। रौनक है,नाच-गान और मस्तियों के मेले हैं। सारे उमंग में भरे हैं, कोई भी यहां नहीं अकेले हैं।। कहीं सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व है। तो कहीं मतवाले पोंगल पर हो रहा सबको गर्व है।। कहीं लोहड़ी का हो रहा सच में व्यापक सम्मान है। तो कहीं नदी स्नान से पावनता की बढ़ी आन है।। संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का उत्सव है। तो भांगड़े की तान पर थिरकता हुआ मानव है।। खिचड़ी का स्वाद है, तो तिली के लड्डू का जलवा है। बिखर रहा भाईचारा, प्रेम, नहीं किसी तरह का बल्ला है।। आकाश में छाई है आकर्षक पतंगों की निराली छटा। नदियों के किनारे लगे झूले, भरे मेरे, है सुंदर घटा।। दान-पुण्य के प्रति व्यापक अनुराग...
यूँ बन जाती है कविता
कविता

यूँ बन जाती है कविता

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** शब्दों का मीठा टुकड़ा मुस्काता मनभाता मुखड़ा धुँधली यादों में खोया मन रोता रहा जीवन का दुखड़ा जलता रहा अलाव तपता.... यूँ बन जाती है कविता.... मन एक तपिश बढ़ी पवन में कशिश बढ़ी तन कुछ कह न सका मन वह सह न सका बिन धुंवे रहा सुलगता..... यूँ बन जाती है कविता.... घाव मौन सिसकते रहे अरमान यूँ बिखरते रहे कुछ कहे,कुछ अनकहे झरने प्रेम के बहते रहे अंदेशा तूफ़ान का रहा बढ़ता... यूँ बन जाती है कविता.... काग़ज़ की नाव ही सही भाव नफ़रत के ही सही बहाने बनते बिगड़ते रहे पर डोर तो जुड़ी ही रही रंग प्राची नभ रहा चढता..... यूँ ही बन जाती है कविता.... आस अभी मन से छूटी नहीं चल रही सांसे भी टूटी नहीं चिंगारी को ज़रूरत हवा की आग भड़कने से रूकती नहीं पर रूख हवा का रहा पलटता... ऐसे ही बन जाती है कव...
नशे से नाश
कविता

नशे से नाश

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** नशे से नाश विनाश, नशे से सर्वनाश मत करो नशा, मत रहो नशे के पास।।१।। पूछो उनसे, जो करते नशे, नशे में कूदे खोए धन समृद्धि सम्पत्ति, नशे से डूबे।।२।। जो रहे नशे में चूर, पड़ता असर है सुदूर बुरी आदतें नशे की, नशे में होते चूर चूर।।३।। नशे से हानियाँ, पारिवारिक परेशानियां नशे के प्रचलनों की बढ़ रही कहानियां।।४।। नशे को रोकने में बढ़े विचार, रुके नशा अविलंब करें प्रयास, रुके समाज मे नशा।।५।। नशे के लत में पड़े वे लोग, दुःख रहे भोग अशान्ति में घिरकर लगाए लूटने के रोग।। ६।। समाज में कोई भी करे नशा, मत करो गुस्सा समझाओ सिखाओ, दिखाओ बनाओ अच्छा।।७।। नशे से घटती स्थिरता आत्मविश्वास साहसिकता घुटुनभरी जिंदगी में नशेड़ियों बनकर जीवन जीता।।८।। नशे के कारण अक्सर बढ़ते है, जगह जगह अपराध नशेड़ियों को...
आ जाओ तिरंगा के नीचे
कविता

आ जाओ तिरंगा के नीचे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सम्मान की लड़ाई बाद में लड़ते रहना पहले अपनी जान बचाओ, जुबानी जंग भी लड़ो और जरूरत पड़ने पर हथियार भी उठाओ, इन मीठे बोलने वालों के झांसे में मत आओ, चंद सिक्के खातिर दरी न उठाओ, जिंदा रहे तो मिलेंगे अपने अनुसार जीने के हजार तरीके, दिमाग लगाओ, समाज की गंदगी मिटाओ, सबसे अच्छा तरीका है समाज से पाखंड को हटाओ, विश्वास तो करके देखो कि बिना अंधविश्वास शानदार जिंदगी जी सकते हो, मन मस्तिष्क को साफ रख लोगों को मानसिक गुलामी क्या है बताओ, इससे होने वाली पीढ़ीगत नुकसान गिनाओ, क्यों भागना किसी धूर्त के पीछे, उनका काम ही है पाखंड परोसना तो उनसे ऊपर उठ ले आओ उन्हें कदमों के नीचे, एक जुट होने के लिए काफी है एक सर्वमान्य ध्वज तिरंगा, जिसके नीचे सुरक्षित रहेगा आन, बान, शान और रह पाएंगे जिंदा, क्योंक...
बिक रहा क्यों न्याय
गीत

बिक रहा क्यों न्याय

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बिक रहा क्यों न्याय सिक्कों में, झूठ सत्य को छलता। फटती जनता की छाती है, कौन देता दिलासा। लूटें नेता नित्य वतन को, देने बैठे झाँसा।। निष्ठाएँ भी धूल मिलीं सब, द्वेष हृदय में पलता। मुखड़ों पर हैं चढ़े मुखौटे, गाते राग-दरबारी। चमचों का बस जमघट होता, पैसों की मारामारी।। डसते विषधर भोली जनता, वश नहीं कुछ चलता। घात -प्रतिघात करें सभा में, तंत्र हो रहा आहत। मतलब की बस राजनीति है, हवा हो रही राहत।। काम साधने करें अपाहिज़, टूटा छप्पर जलता। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधी...
महाकुंभ पावन प्रयाग में
कविता

महाकुंभ पावन प्रयाग में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पावन पूर्ण कुंभ की बेला, बड़े भाग्य से आई। खुशी अनोखी जनमानस के, अंतस में है छाई। महाकुंभ पावन प्रयाग में, दिव्य छटा लाया है। द्वादश पूर्ण कुंभ जब बीते, तब अवसर पाया है। बारह पूर्ण कुंभ होने पर, महाकुंभ आता है। यह केवल प्रयाग में आता, जन-जन हर्षाता है। गंगा जमुना सरस्वती का, संगम तीर्थ कहाता। मिट जाते सब पाप मनुज के, जो जन यहाँ नहाता। धन्य धरा पावन प्रयाग की, लगा कुंभ का मेला। महाकुंभ की छटा निराली, यहाँ मनुज का रेला। सभी तीर्थ आते प्रयाग में, धन्य भाग्य भारत के। पाप ताप संताप मिटाते, दीन दुखी औरत के। जिनके दर्शन सुलभ नहीं वे, साधु संत आए हैं। जिनकी प्रभु में परम आस्था, भक्त स्वयं आए हैं। गंगा तट की शोभा सुषमा, मुख से कहीं न जाती। लख सौंदर्य प्रयागराज का, इंद्रपुरी शर...
सिंदूरी  सूरज
कविता

सिंदूरी सूरज

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** सुहानी सी ढलती शाम नजरें टिकी थी अस्त होते सूरज पर खोया खोया सा मन कैसे खोजूं चढते भानु की दैदीप्यमान अरूणिमा गरिमा की द्योतक से उभरता मन ललचाता वो लाल रंग कहाँ नजर आ रहा था तमतमाता भास्कर आँखे चुंधियाते चमचमाते दिवाकर का वो सुनहरा रंग बस नजर आ रहा है दिन और दोपहर के रंगों का मिश्रण धुंधला धुंधला सा निस्तेज मगर फीकी फीकी लाली लिए क्षितिज में डूबते सूरज का सिंदूरी रंग बना गया सूरज को सिंदूरी सूरज....! परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र...
वास्तविक रहस्य
कविता

वास्तविक रहस्य

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** गली-गली फिरती युवती बन राधा प्रेम भयो न कोई। गली-गली फिरते संत बन योगी ध्यान मग्न न कोई। गली-गली फिरते साधक बन तपस्वी चिंतन करत न कोई। गली-गली फिरते ज्ञानी बन सुविज्ञ आत्मज्ञान करत न कोई। गली-गली फिरते अनुरागी बन कृष्ण आत्म समर्पण करत न कोई। गली-गली फिरते नायक बन योद्धा आत्म द्वंद्व करत न कोई। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
माँ
कविता

माँ

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** लुका छिपा सा माँ का प्रेम, अति गहरा माँ का है प्रेम, परछाई सा लुकाछिपा, सूरज सा उजला हे प्रेम, वृक्ष सी गहराई इसमें, फूलो सी महकाई इसमें, स्तब्ध गगन आकाश सी व्यापक व्यापक व्योम सितारों सी चमक, शान्त चित्त वो प्रेम की मूरत, घर को स्वर्ग बनाती माँ है। सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग, हर युग मे प्रेम परीक्षा माँ है, कभी देवकी कभी यशोदा, कभी कौसल्या सी परीक्षा माँ है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२...